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अधूरी ख्वाहिशें - Adhuri Khwahishen Part - 2

 

अधूरी ख्वाहिशें - Adhuri Khwahishen Part - 1





जब मैं सिसकारती हुई बुरी तरह मचलने लगी तब वह एकदम से रुक गयी और उसने अपनी उंगली बाहर निकाल ली।

कुछ पल लगे मुझे संभलने में… फिर मैंने आंख खोल कर देखा तो वह उस कपड़े से, जिसे उसने दराज से निकाला था.. अपनी उंगली और मेरी योनि पौंछ रही थी। मैंने कुहनियों के बल थोड़ा उठ कर प्रश्नसूचक नेत्रों से उसे देखा।
“कुछ नहीं.. झिल्ली फटने का जो ब्लड था, वही साफ कर रही थी। फिक्र मत कर.. फारिग हो कर गर्म पानी से धो देंगे।”

मुझे भरोसा था उस पे… कि वह सब संभाल लेगी, मैं फिर वापस पीठ टिका कर धीरे-धीरे अपने दूध दबाने लगी। नशा टूटा था, खत्म नहीं हुआ था.. पौंछ पांछ कर वह ऊपर आई और मेरी घुंडियां चुसकने लगी।
“सुन.. जो थोड़ी दर्द होगी वह बर्दाश्त कर लेना क्योंकि मजा तब ही मिलेगा। कोई लड़का करता तो काफी दर्द होता.. ऐसे उतना नहीं होगा।”
“क्या करने वाली हो?” मैंने संशक भाव से कहा।
“छोटा बैंगन तेरे लिये है।”

मुझे थोड़ा अजीब लगा.. ‘अभी उंगली जाने में तो खंजर भुकने जैसा लगा था, वह बैंगन कितना दर्द देगा.. लेकिन थोड़ी देर में वह दर्द कम भी तो हो गया था।’
‘देखा जायेगा.. होने दो जो होना है।’

वह थोड़ी देर चुसकती रही मेरे निप्पलों को… फिर मेरे पेट को चूमती हुई नीचे चली गयी और जैसे पहले थी उसी पोजीशन में पंहुच कर उल्टे हाथ से योनि पर दबाव बना कर पहले थोड़ी देर उसे सीधे हाथ की उंगली से सहलाया, फिर एक उंगली अंदर उतार दी।

नाम का दर्द जरूर हुआ, लेकिन जल्दी ही जाता रहा और जब उसने उंगली अंदर बाहर करनी शुरू की तब जल्दी ही पहले जैसा मजा आने लगा और मैं ‘आह… आह…’ करने लगी।

जब मैं उसी प्वाइंट पर पंहुच गयी जहां उसके रुकने से पहले थी तब उसने एकदम दूसरी उंगली भी घुसा दी… मांसपेशियों पर एकदम से खिंचाव पड़ा और दर्द की एक तेज लहर दौड़ी, लेकिन अब मैं दर्द के बाद का मजा देख चुकी थी तो बर्दाश्त करने की ठान ली थी।

उसने इस बार उंगली रोकी नहीं थी, बल्कि चलाती रही थी और दस बारह बार में ही योनि की दीवारों ने उन दो उंगलियों भर की जगह दे दी थी और दोनों उंगलियां सुगमता से अंदर बाहर होने लगी थीं।

यह बिलकुल वैसे ही चल रहा था जैसे मैंने उसके साथ किया था। बस फर्क इतना था कि मैं बस एक काम कर पाई थी, जबकि वह दो कर रही थी।

वह चौपाये जैसी पोजीशन में थी.. और जहां अपने सीधे हाथ की उंगलियों से मेरा योनिभेदन कर रही थी, वहीं उल्टा हाथ पेट की तरफ से नीचे ले जा कर अपनी योनि भी मसलने लगी थी, जहां शायद वह बड़ा बैंगन अब भी ठुंसा हुआ था।

कमरे में पंखा चल रहा था और बाहर होती बारिश की वजह से बड़ी ठंडी हवा फेंक रहा था लेकिन हम दोनों के जिस्म ऐसे तप रहे थे कि उस ठंडक का अहसास ही नहीं हो रहा था। पंखे की आवाज में घुली हम दोनों बहनों की मादक आहें कराहें भी कमरे के वातावरण में आग भर रही थीं।

अचानक मेरे जहन को झटका लगा और दर्द की एक लहर के साथ मज़े में विघ्न पड़ गया।
अहाना ने दोनों उंगलियां निकाल कर वह छोटा वाला बैंगन घुसा दिया था जो योनि की संकुचित दीवारों को फैलाता हुआ अंदर फंस गया था.. मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मेरी योनि की मांसपेशियों ने उसे जकड़ लिया हो।

जबकि अहाना ने उसे फंसा छोड़ मेरी योनि के ऊपरी सिरे पर मौजूद मांस के उभार को ढेर सी लार से गीला करके रगड़ना शुरु कर दिया था।
मजा दर्द पर हावी होने लगा।
मैं जो गर्दन उठा कर उसे देखने लगी थी फिर गर्दन डाल कर पड़ गयी और वह एक हाथ ऊपर ला कर मेरे एक दूध को दबाने लगी.. दूसरे वाले को मैं खुद मसलने लगी।

कुछ पलों में महसूस हुआ कि योनि की अंदरूनी दीवारों से छूटते रस से गीला और मांसपेशियों के ढीला पड़ने पर बनने वाली जगह के चलते अंदर ठुंसा बैंगन बाहर सरकने लगा था। और इससे पहले वह पूरा बाहर सरक जाता, अहाना ने उसे वापस अंदर ठूंस दिया और डंठल की तरफ से पकड़ कर धीरे-धीरे अंदर बाहर करने लगी।

सख्त उंगलियों के मुकाबले यह नर्म-नर्म गुदीला बैंगन ज्यादा मजा दे रहा था। मैंने उसके हाथ पर दबाव दे कर उसे इशारा किया कि ‘जल्दी-जल्दी करे।’

अब वह थोड़ा उठ कर सुविधाजनक पोजीशन में आ गयी और फिर तेजी से उस बैंगन को अंदर बाहर करने लगी।
मेरे नशे और मजे का पारा चढ़ने लगा।

और फिर वह मुकाम भी आया जब मेरा जिस्म कमान की तरह तन गया.. अपने दोनों हाथों से मैंने अपने दूध नोच डाले और शरीर की सारी मांसपेशियाँ अकड़ गयीं। ऐसा लगा जैसे कोई ठाठें मारता लावा किनारे तोड़ कर बह चला हो।
दिमाग में इतनी गहरी सनसनाहट भर गयी कि दिमाग ही सुन्न हो गया.. कोई होश ही न रहा।

तन्द्रा तब टूटी जब अहाना ने थपक कर जगाया।
“यह क्या हो गया था मुझे.. उफ! इतना मजा.. इतना नशा!”
“आर्गेज्म.. जो इस खुजली के अंत पर मिलता है। इसी के पीछे तो मरती है दुनिया।”
“मेरा भी सफेदा निकला है क्या?” मैं उठ कर अपनी योनि देखने लगी।
“नहीं.. वह तो वीर्य होता है, जो लड़कों के निकलता है क्योंकि उसमें शुक्राणु होते हैं जो रिलीज होते हैं। हमारा तो जो थोड़ा बहुत निकलता है वह पानी जैसा होता है। छू के देख।”

मैंने अपनी उंगली योनि में लगाई तो जैसे वह बहती मिली। उंगली उसके रस से भीग गयी जो चिपचिपा था और तार बना रहा था।
“अमेजिंग!” मेरे मुंह से बस इतना ही निकला।
“चल अब मुझे इसी तरह आर्गेज्म तक पंहुचा।” वह मेरे सामने लेटती हुई बोली।
और फिर मेरी भूमिका शुरू हो गयी।

अगले दो घंटे हम दोनों बहनें यही करती रहीं और जब लगा कि पानी रुक चुका था, अम्मी कभी भी आ सकती थी तो खेल खत्म कर लिया।

यह मेरी जिंदगी का पहला मजा था जो मुझे इस कदर लज्जत भरा लगा था, जिसे शब्दों में बयान कर पाना मेरे लिये मुश्किल है।

इसके बाद मेरी जिंदगी में जो बदलाव आया वह यह था कि अब रोज रात में हम मजा लेने लगे। बैंगन तो रोज घर में ना आते थे न सुलभ थे तो हमने एक मोटे मार्कर पेन को अपना औजार बना लिया था जो रोज रात को हमारे सैयाँ जी की भूमिका निभाता था और हमारी मुनिया की खुजली मिटाता था। जब एक बार बाधा हट गयी और मजा ले लिया तो इसमें अपरिचय जैसा कुछ न रह गया और जो भी बचा खुचा अहाना जानती थी, वह सब मुझे बता दिया।

राशिद ने कह रखा था कि अगले महीने उसके मामू के यहाँ बाराबंकी में कोई रस्म है तो उसके घर के सब लोग वहां जायेंगे और वह घर पे अकेला होगा तो कंप्यूटर पे हमें कुछ स्पेशल दिखायेगा।
लेकिन अगले महीने में तो अभी महीना बाकी था।

बहरहाल वक्त जैसे-तैसे गुजरता रहा और हम अपनी रातें अपने अंदाज में गुजारते रहे।

यह बात सही है कि हमें उन रातों में मजा मिलता था लेकिन बकौल अहाना कि जो मजा गर्म गुदाज मर्दानी मुनिया में होता है, वह सख्त बेजान मार्कर कभी नहीं दे सकता। और धीरे-धीरे मेरी तड़प इस बात के लिये भी बढ़ने लगी थी कि काश मेरी मुनिया को भी एक लिंग किसी दिन नसीब हो।

मैं ग्यारहवीं में पंहुच गयी थी लेकिन लड़कियों का ही स्कूल था तो किसी लड़के से संपर्क की गुंजाइश न के बराबर थी। राह चलते लाईन मारने वाले लड़के तो बहुत थे, लेकिन उनमें से किसी पर मेरा भरोसा नहीं बनता था।

जबकि घर के आसपास भी दो ऐसे लड़के थे जो मुझ पर लाईन मारते तो थे लेकिन मैं उनकी मंशा समझ नहीं पाती थी कि वे मुनिया ही लड़ाना चाहते थे या फिर इश्क में मुब्तिला थे।

चूँकि ताजी-ताजी जवान हुई लड़की थी। फिल्में सर चढ़ कर बोलती थीं तो ऐसा तो खैर नहीं हो सकता था कि मन इश्कियाए न और दोनों में से एक पसंद भी था, लेकिन बड़ा डरपोक था कि कभी ठीक से बात भी न कर पाता था।

दूसरे मेरी इच्छा शायद इश्क से ज्यादा सेक्स की थी, लेकिन उसके हाल से लगता नहीं था कि उससे कुछ हो पायेगा।

जबकि जो दूसरा था, वह तो मौका पाते ही चढ़ जाने की फिराक में लगता था लेकिन वह एक तो मुझसे काफी बड़ा था, दूसरे शक्ल से उतना अच्छा भी नहीं था जिससे मुझे डर यह रहता था कि मैं कभी उसके साथ पकड़ी गयी, बदनाम हो गयी और उसी से शादी की नौबत आ गयी या वही शादी के लिये अड़ गया तो क्या वह मुझे जिंदगी भर के लिये शौहर के रूप में गवारा होगा।
मैं खुद को इसके लिये तैयार नहीं कर पाती थी और उसके नीचे लेटने के लिये मानसिक रूप से तैयार होते हुए भी बस इसी डर से उसकी तरफ नहीं बढ़ पाती थी कि कहीं वह हमेशा के लिये गले न पड़ जाये।

इसी ऊहापोह में मार्कर के मजे लेते महीना गुजर गया।

राशिद के घर वाले तो चले गये, लेकिन समस्या हमारी थी कि हम कैसे वहां फिट हों? जाने को धड़ल्ले से जा सकते थे, लेकिन वह सबकी नजर में रहता या तब कोई भी बुलाने या वैसे ही वहां आ सकता था।

और मुझे पक्का पता था कि हम किसी को फेस करने वाली पोजीशन में शायद वहां न हों।

रास्ता यही निकाला कि रात हम छत वाले कमरे में सोने की जिद करेंगे और सबके सोने के बाद राशिद की तरफ उतर जायेंगे।

इत्तेफाक से उस दिन भी बारिश का ही मौसम था तो हमने रात ऊपर सोने की जिद की तो किसी ने कोई ख़ास ध्यान न दिया।
वैसे भी जब तब लोग करते ही थे ऐसा।

अपने यहां का हमें पता था कि अप्पी या सुहैल ऊपर नहीं जाने वाले थे, बस डर इस बात का था कि सना या समर में से कोई न ऊपर पंहुच जाये।
लेकिन ऐसा न हुआ और सब अपनी जगह ही सो गये.. तब ग्यारह बजे हम ऊपर चले आये।

बारिश कोई खास नहीं हो रही थी, बस बूंदाबादी हो रही थी और मलिहाबाद के हिसाब से देखा जाये तो हर तरफ सन्नाटा था।

हमने जीने के दरवाजे को उसी तरह एक अद्धे से फंसाया जैसे उस दिन राशिद ने फंसाया था ताकि कोई एकदम से आ न सके। फिर चुपचाप जीने के दूसरी साईड से राशिद की तरफ उतर आये। इत्तेफाक से उसका कमरा ऊपरी मंजिल पर ही था और वह हमारा इंतजार करता मिला।

दरवाजे को मैंने लॉक किया और वह दोनों लिपट पड़े और एक दूसरे के होंठ चूसने लग गये। साथ ही राशिद अहाना के दूध भी दबाता जा रहा था।

फिर दोनों अलग हुए तो राशिद मेरी तरफ आकर्षित हुआ.. उसका कंप्यूटर ऑन था लेकिन स्क्रीन पर कोई सीन नहीं था।
“तुम्हें पता है रजिया कि सांप को सांप खा जाता है?”
“सुना है। तो?”

“देखा तो नहीं न.. लेकिन देखोगी तो यह कहने का कोई मतलब नहीं कि छी, ऐसा कैसे हो सकता है।”
“मैं समझी नहीं।”
“कहने का मतलब यह है कि दुनिया में बहुत कुछ ऐसा होता है जो तुम्हें मालूम नहीं, लेकिन चूँकि तुम्हें मालूम नहीं तो उसका यह मतलब नहीं कि ऐसा होता ही नहीं।”
“मैं अब भी नहीं समझी।”

“मैं एक फिल्म दिखाऊंगा तुम्हें.. यह खास तुम्हारे लिये हैं क्योंकि अहाना पहले भी देख चुकी है। ब्लू फिल्म.. समझती हो न? गंदी वाली.. जिसमें लोग मुनिया की खुजली मिटाते हैं।”

मेरा दिल धड़क उठा.. मैं अजीब अंदाज में उसे देखने लगी।

“उसमें वह सब है, जो दुनिया में होता है। लोग करते हैं.. तो इत्मीनान से देखो लेकिन यह मत सोचना कि ऐसा भला कैसे हो सकता है, तुम्हें तो पता ही नहीं था। सब कुछ होता है और सब कुछ लोग करते हैं।”
“ओके।” मैंने भी ठान लिया कि किसी तरह रियेक्ट ही नहीं करूँगी।

उसने फिल्म लगा दी और हम कंप्यूटर टेबल के पास ही तीन कुर्सियों पर बैठ गये


तब नहीं पता था, आज मैं जानती हूँ कि वो टिपिकल ब्लू फिल्म थी.. जिसमें तीन अलग जोड़ों की फिल्म थीं। एक सिंगल जोड़े की थी.. फिर एक मर्द दो औरतों के साथ करता है और तीसरी में एक औरत के साथ दो मर्द करते हैं।
यह सब कुछ सिरे से मेरे लिये नया था और काफी हद तक हैरान करने वाला था, लेकिन उसने सवाल करने से मना किया था तो कुछ पूछने या हैरानी जाहिर करने के बजाय होंठ भींचे बैठी रही।
मेरे लिये यह देखना बड़ा अजीब था कि जिस लिंग से पेशाब किया जाता था, उसे यूँ लॉलीपाप की तरह चूसा जा रहा था।

मेरे लिये यह देखना भी बड़ा आश्चर्यजनक था कि जिस योनि से सिर्फ पेशाब ही नहीं जारी होती थी, बल्कि माहवारी में गंदा खून भी निकलता था, उसे यूँ चाकलेट की तरह चाटा जा रहा था। और सबसे अजीबोगरीब चीज तो यह थी कि चूतड़ों के बीच जिस छेद से हगा जाता था, उस छेद में भी लिंग घुसा कर अंदर बाहर किया जा रहा था।
और तो और उस गंदी जगह से निकले लिंग तक को लड़की चाट रही थी.. जिसे देख कर मुझे उबकाई सी होने लगी थी।

साथ ही यह देख कर भी कि कैसे अपना सफेदा निकालते वक्त लड़के अपना लिंग लड़की की योनि से निकाल कर उसके चेहरे पर ले आते और लड़की उनके वीर्य को ऐसे मुंह में ले लेती जैसे कोई बहुत जायके की चीज हो।
छी छी…

मेरी मनःस्थिति दोनों अच्छी तरह समझ रहे थे और इसीलिये दोनों ही मुस्करा रहे थे।
फिर फिल्म खत्म होने पर दोनों मेरे सामने हो गये- किन-किन चीजों पर तुम्हें हैरानी हुई, बताओ.. हम तुम्हें कनविंस करते हैं।
“दोनों अंग कैसे गंदे होते हैं.. उन्हें कैसे चूसा चाटा जा सकता है।”

“गंदगी दिमाग में होती है, वर्ना पीने वाले तो गौमूत्र भी श्रद्धा से पीते हैं और कभी इंसान फंस जाये तो उसे भी पीना पड़ता है। ऊपर स्पेस में जो एस्ट्रोनाट रहते हैं, वे भी अपना पेशाब ही शुद्ध करके पीते हैं। जरूरत साफ सफाई की है। अगर दोनों के अंग साफ हैं तो चूसने चाटने में क्या बुराई?”
“पर लड़की की मुनिया से तो वह वाला खून भी…”

“तो क्या हुआ.. जिस दौरान खून बहता है, उस दौरान न सेक्स करते हैं न ओरल। फारिग होने के बाद लड़की साफ सुथरी हो जाती है.. कोई उसमें खून लगा तो नहीं रह जाता न?”
“और पीछे से.. छी!”
“अच्छा तुम्हें समलैंगिकों के बारे में पता है, जो एक दूसरे से ही सेक्स करते हैं। बताओ लड़का लड़के से कैसे सेक्स करेगा, दोनों के पास तो एक जैसे मुनिया है।”
“उनकी मजबूरी हो सकती है पर लड़की के साथ..”

“लड़की को भी मजा ही आता है, मजबूरी वाली क्या बात है। आखिर इसमें मजा ही आता है तभी एक लड़का, लड़का हो कर भी दूसरे लड़के के साथ इसी सेक्सुअल रिलेशन के लिये पूरी दुनिया का धिक्कार भी झेल लेता है।”
“पर फिर भी.. वहां से निकली मुनिया को लड़की कैसे चाट.. आक्क!”
“अरे तुम अपने जैसा मत सोचो यार.. यह एक फिल्म के लिये एक्ट कर रहे हैं और एक्ट से पहले छेद की अच्छे से सफाई की जाती है, यह मत सोचो कि वहां गू लगा होगा। उन्हें पहले ही क्लीन कर लिया जाता है।”

“और वह जो मुंह में ले रही थीं सफेदा.. वह ठीक था?”
“ठीक गलत लेने वाले जानें.. लेने वाले लेते ही हैं और वह कोई पेशाब नहीं होता, पेशाब से अलग एक सब्सटेंस होता है। तुम्हें हो सकता है कि खराब लगे, लेकिन जो बार-बार इसे मुंह में ले रही हैं, उन्हें यह भी टेस्टी लगने लगता है।”

“खैर.. अब? अब क्या करोगे?”
“बिस्तर पे आओ।”

हम तीनों बिस्तर पे आ गये.. राशिद ने कमरे की मेन बत्ती पहले ही बुझा रखी थी, बस कंप्यूटर की स्क्रीन की रोशनी हो रही थी।
“अब सब लोग कपड़े उतारो।” राशिद ने कपड़े उतारने की पहल करते हुए कहा।
“मम-मैं क्यों?”
“क्योंकि तुम्हें भी मजा लेना है। मुझसे शर्माओ मत.. अहाना बता चुकी है मुझे सब, जो तुम लोग करती हो। डरो मत.. तुम्हारा दिल नहीं करेगा तो मुनिया नहीं घुसाऊंगा.. बस ऐसे ही मजे ले लेना।”
“तो कपड़े क्यों उतारूं?” मैंने फिर भी जिद की।
“तो ठीक है मत उतारो.. ऐसे ही मजे लो।”

मैं एक ब्लू फिल्म देखने के बाद दिमागी रूप से इस हालत में बिलकुल भी नहीं थी कि उसकी मर्जी के खिलाफ जाऊं.. लेकिन फिर भी मेरी शर्म, मेरी अना, मेरा गुरूर मुझे बेपर्दा होने से रोक रहा था।
पर मेरी मुश्किल अहाना ने आसान कर दी.. वे दोनों नंगे हो गये तो अहाना ने जबरन मेरा कुर्ता उतार दिया और उसके कहने पे राशिद ने मेरी सलवार उतार दी।

दिखावे के तौर पर मैंने थोड़ी नाराजगी जरूर दिखाई, लेकिन उन पर कोई फर्क न पड़ा।
“अब तुम देखो और सूंघो.. इसमें क्या गंदा है?” राशिद ने अपना लिंग मेरे चेहरे के सामने कर दिया।

एकदम साफ सुथरा कुकुरमुत्ते जैसा लिंग, आगे चिकनी चमकीली छतरी सी और उससे उठती अजीब सी महक, जो गंदी तो बिलकुल भी नहीं थी.. उल्टे उत्तेजित कर रही थी।

मैं बहुत ज्यादा गौर से उसे देख या सूंघ पाती कि अहाना ने उसे लपक कर अपने मुंह में ले लिया और मेरे चेहरे के सामने ही चपड़-चपड़ चूसने लगी। वह लप-लप राशिद के लिंग को चूसती चाटती रही और वह लगभग लकड़ी की तरह सख्त हो गया।

“लो.. अब तुम देखो।” फिर उसने अपने मुंह से निकाल कर मेरे होंठों की तरफ बढ़ाया।
“नन-नहीं.. मम-मैं नहीं!” मैंने चेहरा पीछे खींचा।

उसने वहीं पड़ा अपना दुपट्टा उठाया, और उससे रगड़ कर राशिद के अपने थूक से गीले लिंग को साफ कर दिया।
“ले अब चूस.. देख तो चूस के, मजा आयेगा।” अहाना एक हाथ मेरे सर के पीछे लगा कर दूसरे हाथ से उसका लिंग मेरे होंठों से लगाती हुई बोली।

उसे मेरी मनःस्थिति अच्छी तरह पता थी कि मैं सिर्फ ऊपर से इन्कार कर रही थी… असल में कहीं न कहीं अंदर से मैं वह सब करना चाहती थी, जो किया जा सकता था।

दिखावे के लिये थोड़ी देर मैं होंठ बंद किये रही लेकिन जल्दी ही उसकी महक ने मुझे इतना बेचैन कर दिया कि मैंने होंठ खोल दिये और गोश्त की लकड़ी जैसे लिंग को अंदर आ जाने दिया।
गर्म और सख्त गोश्त.. जिसका शिश्नमुंड लिजलिजा सा था जिसे मैं तालू और जीभ से दबा सकती थी। कोई जायका तो नहीं था, लेकिन फिर भी अच्छा लगा।

पहले उन्हें देखती, झिझकती, धीरे-धीरे मुंह चलाती रही उसके लिंग पर, लेकिन फिर आखिर शर्म खत्म हो ही गयी और दोनों को भाड़ में झोंक कर उसे तन्मयता से चूसने लगी।
तब अहाना ने उसे मेरे मुंह से निकाल लिया और खुद चूसने लगी।

“अब बस करो.. ऐसा न हो कि मेरा मुंह में ही निकालने का मन होने लगे।” राशिद ने उसके मुंह से लिंग निकालते हुए कहा।
“फिर?” मैंने मासूमियत से उन्हें देखा।

उसने अहाना को चित लिटा कर उसकी टांगें फैला लीं और उल्टे हाथ से अहाना की योनि फैला कर सीधे हाथ की बीच वाली उंगली योनि के अंदर धंसा दी।

इतना तो हम दोनों बहनों ने भी पहले किया था लेकिन राशिद ने जो इससे आगे किया, वह यह था कि वह चेहरा अहाना की योनि के एकदम पास ले गया और जीभ से उसकी योनि के ऊपरी सिरे को छेड़ने लगा।
मेरे रौंगटे खड़े हो गये.. मैं गौर से उसे देखने लगी।
तो वह फिल्म मुझे इसलिये दिखाई गयी थी ताकि मैं यह सब देख कर असहज न महसूस करूँ.. और वह निर्विघ्न अपने मन की कर सकें।

“क्या देख रही है.. मेरे दूध पी न!” अहाना ने कुछ झुंझलाते हुए मुझे अपने ऊपर खींच लिया।
उस तरफ से ध्यान हटा कर मैं उसकी घुंडियों को चुसकने चुभलाने लगी।
वह बआवाजे बुलंद सिसकारती रही।

करीब दस मिनट बाद वह हट गया और अहाना की सिसकारियां थम गयीं। इससे पहले हम कुछ समझ पाते या मैं संभल पाती.. उसने मेरी जांघों पर पकड़ बना ली।

और उन्हें फैलाते हुए अपना मुंह उनके बीच डाल दिया, फिर उसकी जीभ का गीला स्पर्श मैंने अपने उसी उभरे हुए मांस पर महसूस किया जो योनि के ऊपरी सिरे पर था और दीवारों से ढका रहता था।

मुझे करेंट सा लगा, मैं तड़क कर हट जाना चाहती थी लेकिन अहाना ने स्थिति भांपते हुए मुझे पकड़ लिया और मेरे ऊपरी हिस्से पर लदते हुए अपने दूध से मेरे दूध रगड़ने लगी।
“महसूस तो कर के देख.. कितना मजा आता है।” उसने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा।

और वाकयी महसूस करते मेरे दिमाग में चिंगारियां छूटने लगीं.. नीचे “लप-लप” मेरी योनि में राशिद मुंह चला रहा था और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मैं कहीं उड़ी जा रही होऊं, जहां बस मस्ती है, मजा है, नशा है।
वह कभी मेरी योनि की साइड वाल को पकड़ कर चूसता खींचता, कभी नीचे छेद में अपनी जुबान घुसा देता, कभी ऊपर मांस के हुड को चुभलाने लगता।

और मैं महसूस कर सकती थी कि पूरी योनि पानी से भरी जा रही थी और मैं बही जा रही थी।
फिर मैं देख ही न पाई कि कब वह उठ बैठा और अपना लिंग मेरी योनि से सटा कर अंदर ठूंस दिया। मेरी हल्की सी चीख निकल गयी, लेकिन अहाना ने दबा रखा था कि छिटकने का मौका ही नहीं सुलभ था।

इतनी ज्यादा गीली होकर बहती हुई, चिकना चुकी योनि कैसे भी उसके बड़े बैंगन जैसे लिंग को रोक पाने में सक्षम नहीं थी.. फिर उसने लिंग को लार से भी चिकना किया ही होगा।

वह योनि की कसी दीवारों पर दबाव डालता अंदर तक धंस गया और दीवारें चरमरा कर रह गयीं। दर्द हो रहा था, यह अपनी जगह सच था लेकिन दिमाग पर चढ़ा नशा इतना गहरा था कि दर्द पर हावी हुआ जा रहा था।

फिर वह खुद भी लद गया मुझपे और उसने अहाना को हटा दिया.. दोनों हाथों से पहले सख्ती से मेरे दोनों दूधों का मर्दन किया और फिर उसके होंठ मेरे होंठों के पास आ गये।
मुझे उसके मुंह से सिगरेट की महक आई लेकिन वह भी भली लगी।

फिर उसने मेरे होंठों से अपने होंठ जोड़ दिये। मैंने चेहरा हटाने की कोशिश की लेकिन उसने दोनों हाथ ऊपर करके चेहरा पकड़ लिया और मेरे होंठों पर अपनी पकड़ बना ली।
यह मेरे जीवन का पहला मर्दाना चुंबन था।

कुछ देर मैं बेहिस सी असम्बंधित बनी रही लेकिन नीचे योनि में घुसे उसके लिंग की मादक गुदगुदाहट ने ज्यादा देर बेहिस न रहने दिया और फिर मैंने होंठ खोल दिये। अब वह मेरे होंठों को चूस रहा था तो मैं उसके होंठों को चूस रही थी.. उसने मेरे मुंह में जुबान घुसाई तो मैंने उसके मुंह में जुबान घुसा दी जिसे वह चूसने लगा।

जब मैं वापस अच्छे से गर्म हो गयी तब वह उठ कर उस पोजीशन में आ गया जिसमें सामने बैठ कर योनिभेदन करते हैं.. इसमें उसका लिंग “पक” करके मेरी योनि से निकल गया था।

अब फिर अहाना अधलेटी सी हो कर मेरे एक दूध की घुंडी को होंठों से खींचती सीधे हाथ से मेरी गीली बही हुई योनि को सहलाने लगी।

जबकि राशिद ने फिर अपनी मुनिया की टोपी अंदर धंसा कर मेरी जांघों को ऊपर की तरफ दबाते हुए अंदर ठेलने लगा.. जिसे मैं साफ महसूस कर सकती थी।

कसाव बहुत ज्यादा था तो मैं अभी उतनी सहज नहीं थी, लेकिन यह भी सच था कि अब मुझे बेहद मामूली दर्द हो रहा था।
अंदर तक धंसा कर उसने वापस फिर पूरा ही बाहर निकाल लिया जो मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लगा।
लेकिन वह शायद इस तरह मेरी योनि को अपने लिंग के लिये सहज कर रहा था। धीरे-धीरे एकदम जड़ तक घुसाते और फिर वापस धीरे-धीरे करते एकदम बाहर निकाल लेता।

इस तरह दस बारह बार करने पर मैंने महसूस किया कि मेरी कसी हुई योनि में इतनी जगह बन गयी थी कि वह आराम से अपना लिंग अंदर बाहर कर सकता।

फिर उसने अहाना को हटा दिया और जैसे वन ऑन वन फाइट के मूड में आ गया। अब मैं उसे देख रही थी और वह धीरे-धीरे धक्के लगा रहा था और उसकी बैंगन जैसी मुनिया मेरी मुनिया में गहरे तक अंदर बाहर हो रही थी और इस अंदर बाहर होने में मुझे वह मज़ा आ रहा था जिसे बताने के लिये मेरे पास शब्द नहीं!
बस यही दिल कर रहा था कि यह सिलसिला यूँ ही चलता रहे और मैं क़यामत तक यूँ ही धक्के खाती रहूँ।

“अब बोल.. मज़ा आ रहा है या नहीं?” अहाना ने मेरी घुंडी मसलते हुआ पूछा।
“हूँ..” मैंने बस हुंकार ही भरी।
“खुजली मिट रही है या नहीं तुम्हारी मुनिया की?” आगे रशीद ने पूछा।

मैंने मुस्करा कर चेहरा साइड में कर लिया और वह दोनों धीरे से हंस पड़े। कमरे में भले पंखा चलने की आवाज़ हो रही हो लेकिन मेरी योनि से उभरती वो ‘फच-फच’ की मधुर ध्वनि मेरे कानों में रस घोल रही थी।

फिर शायद उन दोनों में कुछ इशारा हुआ और राशिद ने मेरी योनि से अपना फुन्तडू बाहर निकल लिया और उसी पल में अहाना किसी चौपाये की पोजीशन में हो गयी।
उसने अपने अगले हिस्से को दूध समेत बिस्तर से सटा लिया और चूतड़ों को इस हद तक हवा में ऊपर उठा दिया कि वो घुटनों के बल बैठे राशिद के लिंग के ठीक सामने एडजस्ट हो सकें।

और फिर जैसे अभी थोड़ी देर पहले फिल्म में देखा था, ठीक उसी अंदाज़ में वो अपनी मुट्ठी में अहाना के दोनों चूतड़ दबोच कर और अपना लिंग पीछे की तरफ से उसकी योनि में घुसा कर योनिभेदन करने लगा।

अब मैं उस अवस्था में पहुँच चुकी थी कि मुझे कुछ भी ख़राब, बुरा, अतिवाद या अजीब नहीं लग रहा था बल्कि सबकुछ ही अच्छा लग रहा था और मैं चाहती थी कि वो सब मेरे साथ हो।

राशिद के जोर-जोर से धक्के लगते रहे, अहाना की आहें निकलती रहीं और मैं उत्तेजित सी अपने हाथ से अपनी योनि सहलाते उन्हें देखती रही।

थोड़ी देर बाद राशिद ने मुझे इशारा किया कि मैं भी उसी पोजीशन में हो जाऊं.. अँधा क्या चाहे, दो आँखें ही न। उस वक़्त मेरी हालत वैसी ही हो रही थी।
मैंने बिल्ली बनने में देर नहीं लगायी।
और जब पीछे से उसका लिंग जगह बनाता योनि में घुसा तो ऐसे लगा जैसे खीरा-ककड़ी चटकी हो और ऐसा मज़ा आया जैसे जन्नत मिल गयी हो।

फिर उसने मेरे चूतड़ों को भी उसी तरह मसलते हुए धक्के लगाने शुरू किये। मेरे दिमाग में चिंगारियां छूटने लगीं जबकि अहाना साइड में लेटी हमे देखती अब आहिस्ता-आहिस्ता अपने दूध सहला रही थी.. उसके होंठों पर मुस्कराहट थी लेकिन मैं इस वक़्त सिर्फ अपने मज़े पर एकाग्र होना चाह रही थी।

थप-थप का एक कर्णप्रिय संगीत कमरे में पंखे की आवाज़ के साथ मिक्स हो कर गूंजता रहा और मैं जन्नत की सैर करती रही। नशे से मेरी आँखें तक मुंद गयीं थीं।

थोड़ी देर बाद यह सिलसिला फिर थमा और राशिद मुझसे अलग हो गया। वह बेड से नीचे उतर गया और अहाना को चित लिटा कर उसे एकदम किनारे खींच लिया, उस दिन की तरह.. और खुद नीचे फर्श पर बैठ उसकी जांघों में पकड़ बनाये मुंह से उसकी योनि पहले की तरह चाटने लगा।

“रज्जो.. मेरे दूध मसल और पी।” अहाना ने ऐंठते हुए कहा।
मैं पास आ गयी और एक हाथ से उसका एक दूध सहलाने मसलने लगी जबकि दूसरे की घुंडी मुंह में लेके चुभलाने लगी और वह कमान की तरह तन कर सिसकारने लगी।
“डालो अब।” फिर वह बोल पड़ी।

और राशिद उठ कर खड़ा हो गया। अपना समूचा बैंगन उसने गचाक से अहाना की मुनिया में पेल दिया और धडाधड़ धक्के लगाने लगा।
“ऐसे ही.. और जोर से.. और.. आह.. ऐसे ही.. आह.. आह.. मैं गयी… आह.. आह.”
ऐसे ही अनियंत्रित अंदाज़ में बड़बड़ाती अहाना एकदम तन गयी। बिस्तर की चादर उसने नोच डाली और गुर्राती हुई शिथिल पड़ गयी.. उसकी हालत से मैं समझ सकती थी कि वह आर्गेज्म तक पहुँच गयी थी।

“अब तुम आओ रज्जो, ध्यान रखना यह इस राउंड का लास्ट है.. मैं बह जाऊं उससे पहले ही तुम्हे मंजिल तक पहुँच जाना है।” राशिद ने बेड के दूसरे सिरे की तरफ मुझे उसी अंदाज़ में खींचते हुए कहा।

मैंने सहमति में सर हिलाया।

वह नीचे बैठ कर अब अहाना की तरह मेरी योनि भी चाटने लगा और मैं समझ न सकी कि जो मुझे थोड़ी देर पहले “छी” कहने लायक गन्दा लग रहा था, आखिर उसमे इतना मज़ा क्यों आता है।
साथ ही उसने एक उंगली मेरे छेद में उतार दी और अंदर बाहर करने लगा।

“उफ़!”
मैं बता नहीं सकती कि कैसा अनुभव था.. दिमाग की नसें खिंचने लगीं और सारे शरीर में एक अजीब आनंददायक लहर दौड़ने लगी।
और जब मेरी बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मुझे भी अहाना की तरह आखिर बोलना ही पड़ा- करो अब.. बर्दाश्त नहीं हो रहा।

वह उठ खड़ा हुआ और फिर एक तेज़ मस्ती भरी करह को मैं अपने होंठों से आज़ाद होने से न रोक सकी जब एक गर्म गोश्त की मीनार मेरी योनि में जगह बनाती अंदर तक धंस गयी।
योनि पहले से पानी-पानी हो रही थी, वो भचाभच अपनी मुनिया भोंकने लगा और मैं जोर-जोर से सिसकारने लगी।

वैसे ही तेज़ धक्के लगते रहे और मैं कराहती सिसकारती रही.. शायद उन पलों में मैं भी अहाना की तरह कुछ न कुछ बोल ही रही थी लेकिन वह खुद मेरे ही समझ में नहीं आ रहा था और न ही मैं उस तरफ ध्यान दे पाने की हालत में थी।

और फिर वो मरहला भी आया जब दिमाग में एकदम से सनसनाहट भर गयी.. शरीर एकदम अकड़ गया और योनि जैसे बह चली। लेकिन यहाँ वह अहाना की तरह थमा नहीं बल्कि उसे अपना भी निकालना था तो चलता रहा और थोड़ी देर के बाद मैंने महसूस किया कि उसकी मुनिया फूल रही थी और कुछ गर्म-गर्म मेरी योनि में भरने लगा।

वह मेरे ही ऊपर गिर कर भैंसे की तरह हांफने लगा।

यह हमारे पहले राउंड का अंत था जहाँ हम तीनों ही अपनी मंजिल तक पहुंचे थे.. इसके बाद अगले दो घंटे में दो और राउंड चले थे जहाँ हमने उस देखी हुई फिल्म की तरह और भी सारे आसन आजमाये थे और कैसा भी मज़ा बाकी न रखा था.. बस एनल सेक्स को छोड़ कर।


उस रात तीन बजे जब वापसी की तो एक चीज अजीब हुई कि अपनी साइड के जीने के दरवाजे में हमने जो अद्धा फंसाया था, वह अपनी जगह से हटा मिला, हालाँकि दरवाजा उसी तरह बंद था।

इसका कोई मतलब तब हम नहीं समझ पाये थे, लेकिन करीब चार दिन बाद शाम को जब मैं छत पर टहल रही थी तब समर आ गया और उसकी बातों से पता चला कि उस रात क्या हुआ था।
उम्र में वह मुझसे एक साल बड़ा था, घर में सबसे ज्यादा लंबा चौड़ा था और शक्ल में भी ठीक ही था। सना उससे बड़ी थी और यह इस बार इंटर में गया था।
छत पे उस घड़ी कोई और नहीं था.. यह कोई खास बात नहीं थी। घर के बाकी लोग ऊपर कम ही आते थे, बस कभी मैं या सना ही ऊपर टहलते थे।

“एक फिल्म दिखाऊं तुझे?” उसने गौर से मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
“कैसी फिल्म?” मैं उलझन से उसे देखने लगी।

उसने हाथ में पकड़े मोबाइल जो कि एन सेवेंटी था, पर कोई फिल्म लगा कर मुझे पकड़ा दी।
अंधेरे में कोई फिल्म थी शायद.. लेकिन जब कंप्यूटर की मद्धम रोशनी में चमकते चेहरों में अपना चेहरा पहचाना तो आंखें फैल गयीं, मेरे दिल की धड़कनें रुकते-रुकते बचीं।

वह अजीब अंदाज में हंसने लगा- जब इंसान मजे लेने के लिये पगलाया हो तो जनरल बातों पर भी ध्यान नहीं देता। उस रात तुम लोगों ने यह इंतजाम तो कर दिया कि कोई नीचे से न आ सके लेकिन यह ध्यान न दिया कि कोई पहले से ऊपर हो सकता था।
“मतलब?” मैं भौंचक्की सी उसे देखने लगी।

“मैं ऊपर कमरे में ही था और तुम्हारे आगे ही आया था, लेकिन इससे पहले कि पंखा बत्ती जलाता, तुम दोनों खुसुर फुसुर करती पहुँच गयी तो दिलचस्पी से बस यह देखने में लग गया कि तुम लोग कर क्या रही थी। तुम लोगों ने दरवाजे में अद्धा फंसाया और ठंडे पड़े कमरे देख कर अंदाजा लगाया कि यहाँ कोई नहीं था और उधर उतर गयी, तब पीछे से मैं उतरा।
मुझे पता था कि चूँकि उधर राशिद के सिवा कोई था नहीं तो तुम लोग उधर ही हो सकती थी और वही सच साबित हुआ।
पहले मेरा जी चाहा कि मैं भी भंडा फोड़ देने की धमकी दे कर शामिल हो जाऊँ लेकिन राशिद बहुत सुअर है, वह बाद में कैसे भी बदला निकालता ही निकालता, इसलिये बस किसी तरह बाहर की सांकों-दरारों से यह फिल्म बनाई और मुट्ठी मार कर रह गया.. लेकिन सोच लिया था कि जब राशिद पेल सकता है तो मेरे में कौन से कांटे हैं।”

“दिमाग खराब है तुम्हारा?” एकदम से मेरी जान सुलग गयी।
समर- अच्छा.. राशिद चोदे तो ठीक और हम कहें तो दिमाग खराब है। वह रंडियों वाले आसन हैं सब इसमें.. पूरे परिवार को दिखाऊँगा।
मैं- वह चूँकि हम हैं इसलिये हम समझ सकते हैं लेकिन इतनी कम रोशनी में यह कौन हैं क्या है, कोई नहीं समझ पायेगा।
समर- ढक्कन.. जो बातें कर रहे थे ब्लू फिल्म देखने के बाद और चुदने के टाईम, वह सब भी फिल्म में है।
मैं बेबसी से होंठ कुचलती उसे देखने लगी।

समर- वैसे मेरी आदत है लोगों के वीडियो शूट करने की.. एक बार जमीर चच्चा और तेरी अम्मी की भी शूट की थी।
मैं- छी!
समर- छी काहे की बे.. करने वालों को शर्म नहीं, हम शूट करने वालों को क्यों शर्म हो, पर वह इतनी ओपन नहीं थी, हां फिर भी कभी जरूरत पड़ी तो चच्ची का मुंह बंद रखने के काम जरूर आ सकती है।
“कितने गंदे जहन के हो।” मुझे उससे एकदम नफरत सी होने लगी।

समर- बहुत ज्यादा। पूरा खानदान यह समझता है कि पकड़े जाने के बाद से शाहिद भाई और शाजिया अप्पी का रिश्ता खत्म हो गया था लेकिन आज भी कहीं मौका मिल जाये तो शाहिद भाई चोदने से बाज नहीं आते। ऐसे ही एक मौके की उनकी भी पोर्न क्लिप बना रखी है।

मेरा जी चाहा कि उसका फोन ही तोड़ दूं.. मैंने हाथ उठाया लेकिन उसने झपट कर फोन छीन लिया।
“इससे कुछ नहीं होगा.. सारी क्लिप्स मेमोरी कार्ड में हैं।”
“तुम आखिर चाहते क्या हो?” मैंने बेबसी से उसे देखते हुए कहा।

“तुम दोनों को चोदना और वह भी फुल इत्मीनान से। कुछ इंतजाम बनाता हूँ कि सुहैल को दिन भर के लिये बालागंज, लखनऊ या बाराबंकी भेज दूं.. फिर शाजिया अप्पी को ब्लैकमेल करूँगा कि वह चच्ची को ले के कहीं बाहर टहल आयें रिश्तेदारी में। या सुहैल समेत तुम्हारे ननिहाल ही हो आयें.. तब बताता हूँ।” इतना कह कर वह चला गया।

उसके जाने के बाद मेरे लिये भी वहां रुकना मुश्किल था तो मैं सनसनाता दिमाग लिये वहां से चली आई।

नीचे मैं अपनी उलझन में पड़ी घर के किसी भी काम से दूर रही और रात में जब अहाना ने इसका कारण पूछा तो मैंने बता दिया और सुन कर वह भी सन्न रह गयी।

लेकिन रात तक सोचते-सोचते हमारा दिमाग बदल गया- वैसे एक तरह से सोच तो इसमें बुराई क्या है। तन हम दोनों के पास है, भूख हमें रोज लगती है और राशिद महीने दो महीने में कहीं हमारे हाथ लग पाता है।
“तो इसे चढ़ा लें खुद पे?” मैंने फिर भी प्रतिरोध किया।

“बुराई क्या इसमें.. हमारे लिये जैसे राशिद है वैसे ही यह है। राशिद को समझ हमने चुना था, इसने हमें चुन लिया। फिर राशिद इक्कीस-बाईस साल का है, यह अट्ठरह साल का.. उससे ज्यादा ही कड़क साबित होगा।”

मैं अपने तौर पर विरोध करती तो रही लेकिन खुद से जानती थी कि विरोध का कोई मतलब ही नहीं था। दोनों से हमारा समान रिश्ता था और उससे ज्यादा कोई बात ही नहीं थी.. न ही राशिद से इश्क था।

बहरहाल, मन ही मन मैं भी आखिर इस नये और एक और तजुर्बे के लिये तैयार हो ही गयी और सुबह उठी तो कल रात वाला कोई बोझ बाकी नहीं था।
अब इस बात का इंतजार था कि वह मौका कब आयेगा। इस बीच चूँकि एक ही घर में रहते थे तो समर से मेरा और अहाना का सामना कई बार हुआ लेकिन उसने किसी भी तरह रियेक्ट ही नहीं किया।
हफ्ता गुजर गया.. इस बीच रात में हम दोनों बहनों का खेल भी जारी रहा।

फिर एक दिन अम्मी ने कहा कि वह आज दुबग्गे जा रही हैं तो मुझे अहसास हुआ कि शायद समर का अप्पी पर दबाव काम कर गया है।
दुबग्गे में ननिहाल था हमारा और जब भी अम्मी जातीं तो सुबह की गयी शाम को ही वापस लौटती थीं।

उस दिन भी यही हुआ.. वह सुबह तैयार हो कर शाजिया अप्पी और सुहैल को ले कर चली गयीं और पीछे रह गयीं तो हम दोनों योनियां।

और अगले घंटे में ही शैतान की तरह समर मुसल्लत हो गया था। हालाँकि उसने पूछने पर बताया कि उसे शाजिया अप्पी से बात करने की हिम्मत ही नहीं पड़ी थी और न ही मौका मिल पाया था.. जो हुआ था वह सहज रूप से हुआ था।

चलो जैसे भी हुआ पर कमीने की तो बन आई।

“तो उतार दें कपड़े?” अहाना ने उसे देखते आंख मारते कहा।
“पहले घर ठीक से लॉक कर दो कि कहीं कोई आ न सके और देख लो कि उस दिन की तरह पहले से ही कोई हो न..”

पहले से वहां खैर कौन होता, यह हमारा हिस्सा था, छत की तरह कोई साझी संपत्ति तो थी नहीं। बहरहाल, हमने घर अच्छी तरह लॉक कर दिया।

“तुम लोगों को याद है कि बचपन में हम कैसे गलियारे में पानी में रपट लगाते फिसलते थे।”

हमारे हिस्से में ही एक लंबा गलियारा था जिसके इधर उधर कमरे और किचन थे। सालों पहले जब हम छोटे बच्चे थे तो गैलरी के फर्श को पानी से गीला कर लेते थे और स्लिप हो कर एक सिरे से दूसरे सिरे तक रेस लगाते थे।

लेकिन आज उसे यह क्या सूझी।

“चलो एक बार फिर बच्चे बन जायें.. तब हम निक्कर पहने होते थे, आज बिना निक्कर के ही।”

और इस बेशर्मी की शुरुआत उसी ने की.. एकदम से कपड़े उतार के नंगा हो गया। बाकी उसका जिस्म तो देखा भाला था लेकिन मुनिया ही देखी भाली नहीं थी। वह सुहैल के ही साइज की थी.. मतलब राशिद से थोड़ी कम ही थी और इस बात से जहां मुझे थोड़ी मायूसी हुई, वहीं अहाना को शायद ज्यादा खराब लगा था।

लेकिन उसने हमारी मायूसी पर कोई ध्यान दिये बगैर दो बाल्टी पानी गैलरी में उड़ेल दिया और उसमें फिसल गया।
फिर अहाना ने पहल की.. उसने सारे कपड़े उतारे और वह भी फिसल गयी। मुझे नहीं लगा कि अहाना के नंगे बदन ने समर पर कोई बहुत बड़ा असर डाला हो। हां बच्चे की तरह खुश जरूर हो गया था।

फिर मुझे भी खिलवाड़ करने का दिल करने लगा और मैंने भी सारे कपड़े उतार दिये और एकदम नंगी हो कर फर्श पर फिसल गयी।

“चलो रेस लगाते हैं।” समर ने अहाना के चूतड़ पर चपत लगाते हुए कहा।

अब उसकी मर्जी थी तो लगानी ही थी। हम एक सिरे पर, जिधर गैलरी की कगर थी, एक लाईन से रुकते फिर जोर लगा कर आगे की तरफ मछली की तरह फिसल जाते।

पानी कम पड़ता तो और डाल लेते.. और यूँ ही कभी दो-दो तो कभी तीनों रेस करते।

लेकिन कभी बच्चे होंगे.. अब बच्चे नहीं थे। अब हमारे अंग यूँ फर्श से रगड़ने पर उत्तेजना पैदा कर रहे थे। खुद उसका लिंग भी खड़ा हो गया था।

“अब दो-दो हो के स्लिप होते हैं।” अंततः उसने अहाना को दबोचते हुए कहा।
“वह कैसे महाराज?”
“बताता हूँ।”

हम औंधे पड़े नंगे-नंगे फिसल रहे थे तो उस कंडीशन में मैंने हम लोगों के शरीर में जो वाज़ेह फर्क नोट किये वह यह थे कि हम दोनों बहनों के दूध और घुंडियां अब समान हो चुके थे, जबकि मेरे चूतड़ अहाना के मुकाबले ज्यादा बाहर निकले हुए थे और समर के चूतड़ हम दोनों के मुकाबले एकदम फ्लैट थे।

उसने अहाना के ऊपर हो कर अपनी लार से अपने लिंग को गीला किया और पीछे से ही उसकी योनि में ठूंस दिया।

अब दो औंधे बदन एकदूसरे पे लदे पेट के बल फिसल रहे थे। मुझे सिंगल बदन उनके साथ रेस लगानी पड़ रही थी तो मैं ही जीत जाती थी।

फिर इसी अंदाज में वह पीठ के बल हो गये। पहले अहाना नीचे थी और उसकी योनि में लिंग ठूंसे समर ऊपर था। फिर समर पीठ के बल नीचे हो गया और अहाना उसके लिंग को योनि में लिये-लिये ऊपर हो गयी।

इस फार्मेट में मुझे भी पीठ के बल फिसलना पड़ा, लेकिन सिंगल बदन होने की वजह से जीत तब भी मेरे ही हाथ लगी।

“अब तू आ मेरे नीचे।” उसने अहाना को अलग करते हुए कहा।

फिर अहाना की जगह मैं हो गयी। हम फिर पेट के बल हो गये। उसने पीछे की तरफ से मेरी योनि में अपना लिंग ठूंस दिया। मेरी योनि इन सब तमाशों से पहले ही बुरी तरह गीली हो रही थी और दूसरे उसका राशिद जितना था भी नहीं जो मैं पहले ले चुकी थी.. तो कोई खास परेशानी हुई भी नहीं।

हम फिर फिसलने लगे लेकिन अब अहाना जीत जाती थी सिंगल शरीर के कारण।

फिर पीठ के बल हो कर उल्टी फिसलन हुई।

इसके बाद उसने एक अजीब खेल किया कि गैलरी के अंतिम सिरे पर मुझे और अहाना को बारी-बारी इस तरह टिका दे कि हमारी दोनों टांगे आखिरी हद तक फैल जायें और उसे हमारी एकदम खुली पुसी दिखती रहे..

और वह पीछे से इस तरह फिसलता आये कि उसका जिस्म हमारे चूतड़ से टकरा कर ऊपर चढ़ता चला जाये और उसका लिंग अंत में हमारी योनि में आ धंसे।

शुरुआत में यही चीज खतरनाक भी हो सकती थी लेकिन तब तक हम तीनों ही काफी गरम हो चुके थे और लसलसा पानी छोड़ रहे थे जिससे उसके पूरे लिंग पर और हमारी योनि के आसपास इतनी चिकनाहट हो गयी थी कि निशाना गलत भी लगता तो भी वह फिसल कर गड्ढा ढूंढ ही लेता।

जब टेम्प्रेचर काफी बढ़ गया तो खेल रुक गया.. उसने वहीं बारी-बारी हमारा योनिभेदन करना शुरू कर दिया।
पोजीशन वहां क्या बनती.. हमें औंधा लिटाये वह पीछे से जैसे लिंग डाल के फिसल रहा था, वैसे ही फिर लिंग डाल के धक्के लगाने लगता।

लेकिन फिर भी हमें मजा तो आ ही रहा था और हम दोनों ही सिसकार-सिसकार कर मजे ले रहे थे। और इसी तरह धक्के लगाते-लगाते उसका लिंग फूल कर मेरे चूतड़ों की दरार में बह गया और वह साइड में लुढ़क कर हांफने लगा।

हालाँकि हम मंजिल तक नहीं पंहुचे थे.. आर्गेज्म तो क्या उसके आसपास भी नहीं पंहुचे थे लेकिन कर भी क्या सकते थे जब पहलवान ही धराशायी हो गया था।

वैसे भी औरत को यह सिफत हासिल है कि जैसा मजा मर्द को स्खलन पर आता है उसके आसपास का मजा औरत हर धक्के पर ले सकती है, इसलिये ही मर्द का औरत को आर्गेज्म तक पंहुचाये बिना स्खलित हो जाना उतना मैटर नहीं करता।

मैंने चूतड़ों से उसका वीर्य धो दिया और तीनों करीब दस मिनट तो उसी हाल में पड़े रहे।


“अब थोड़ा कड़वा तेल ले आओ और बाथरूम में चलो।” आखिरकार वह उठता हुआ बोला।

अब यह कड़वा तेल पता नहीं क्या करेगा.. यह सोचती मैं ही उठी और किचन में घुस गयी। वहां सरसों के तेल की शीशी मौजूद थी और मैं उसे ही ले आई, जब तक वे दोनों भी उठ चुके थे।
हम बाथरूम में आ गये।

बाथरूम में एक सिटकनी वाली थोड़ी दिक्कत छोड़ दो वह काफी बड़ा था और आज तो वैसे भी सिटकनी की जरूरत नहीं थी।
उसने शॉवर चालू किया तो हम तीनों फिर नहा गये।

फिर उसके कहने पर हमने अपने शरीरों पर तेल चुपड़ लिया और इसके बाद जो खेल हुआ वह तीनों की चिंगारियाँ छुड़ाने के लिये काफी था।

तेल पानी के साथ बुरी तरह चिकनाये शरीर लिये हम बुरी तरह एक दूसरे को रगड़ने लगे। कभी मैं उसका लिंग चूसने लगती, कभी वह और अहाना मेरे दूध मसलने और चूसने लगते, कभी वह नीचे मुंह डाल कर कभी मेरी, कभी अहाना की योनि चाटने लगता।

जल्दी ही हम तीनों सुलगने लगे।
फिर दीवार से टेक लगा कर वह नीचे बैठ गया और अपने लिंग को तेल से नहला लिया।

“पता नहीं राशिद ने तुम लोगों की गांड मारी या नहीं, लेकिन आज मैं पहले वही मारूंगा.. ताकि आगे की आग बरकरार रहे और दर्द के बावजूद तुम लोग मरवा लो।” उसने पहले अहाना को खींचते हुए कहा।
“भक.. आगे से कर न। क्यों गंदे छेद के चक्कर में पड़ा है।” अहाना ने कमजोर सा प्रतिरोध किया।
“गंदा छेद? हे हे हे हे.. दो लौंडों की मार चुका हूँ। उसका मजा अलग ही होता है बे… गंदा क्या.. मारने के बाद धो लेंगे न।”

प्रतिरोध मैं भी करना चाहती थी लेकिन यह अहसास था कि चलनी उसकी ही थी तो खामखाह पें-पें करने का कोई मतलब भी नहीं था।
“रज्जो.. तू बैठ के यहीं देख, तेरी देख-देख के गीली हो जायेगी और मुनिया मांगने लगेगी।” उसने बेशर्मी से हंसते हुए मुझे भी पास बिठा लिया।

मैं उसके पास उससे सट कर बैठ गयी। हम दोनों ने पैर सीधे फैला रखे थे और उसने अहाना को औंधा, मतलब पेट के बल हमारी जांघों पे ऐसे लिटाया कि अहाना का कमर के ऊपर का हिस्सा मेरी जांघों पर आया और नीचे का, या यूँ कहो कि उसके चूतड़ समर की गोद में आये।

“देख छेद इसका!” समर ने मुझे कोहनी मारते हुए कहा।
उसने तेल से चिकनाये चूतड़ फैला कर मुझे अहाना का चुन्नटों भरा गहरे रंग का छेद दिखाया, जो अंदर लाल हो रहा था।
पहले उसे यूँ ही एक उंगली से सहलाया फिर उसमें शीशी के ढक्कन में तेल लेकर उड़ेल दिया। थोड़ा तेल कटोरी की तरह ऊपर रुका तो थोड़ा अंदर उतर गया।

फिर उसने मुझसे कहा कि मैं उसके चूतड़ों की दरार फैलाये रखूं कि छेद सामने उभरा रहे और वह खुद एक उंगली से छेद को खोदने लगा।

ऊपर दिखता तेल भी अंदर उतर गया।

फिर धीरे से उसने अपनी बीच वाली उंगली एक पोर अंदर उतार दी। अहाना जोर से ‘सी…’ कर उठी, जबकि वह बेशर्मी से हंसने लगा- अभी देखना कैसा मजा आने लगेगा।
उसने एक ही पोर अंदर बाहर करना शुरू किया धीरे-धीरे.. मैं यह देख सकती थी कि हर बार वह उंगली एक सूत ज्यादा धंसा देता था और देखते-देखते अब उसकी पूरी उंगली अंदर बाहर होने लगी थी।
और अहाना इस तरह ‘सी… सी…’ कर रही थी जैसे उसे अब मजा आने लगा हो।

“क्यों अन्नू.. अब मजा आ रहा है न?” उसने दूसरे हाथ को नीचे ले जा कर मेरी गोद में मौजूद दूध मसलते हुए पूछा।
“हं-हां।”
“बस ऐसे ही लंड से भी आयेगा, थोड़ा छेद ढीला हो जाये बस।”
“करो कैसे भी.. अब अच्छा लग रहा है।”
यह सुन कर मेरे छेद की सलवटों में मसमसाहट होने लगी।

उसने ढक्कन से भर कर और तेल छेद में उड़ेला और एक पूरी के साथ दूसरी उंगली भी थोड़ी-थोड़ी घुसाने लगा। अहाना ने भी इसे महसूस कर लिया था इसलिये अब उसकी सीत्कारें ठंडी पड़ गयी थीं।

शायद वह दर्द के साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रही थी.. और उसकी एडजस्टमेंट देख समर ने बाकायदा दोनों उंगलियां पूरी उतार दीं।

फिर पहले कुछ देर तो मुझे भी लगा कि छेद सख्त है और उंगलिया पूरे कसाव में अंदर जा रही हैं लेकिन धीरे-धीरे वह भी आसानी से अंदर बाहर होने लगीं।

अहाना फिर “सी… सी…” करने लगी थी।

जब उसकी दोनों उंगलियां तेजी और सुगमता से चलने लगीं तो उसने अहाना को हटा दिया।
“अब तू आ.. तेरा छेद ढीला करता हूँ।”

मैंने महसूस किया जैसे मैं यह शब्द सुनना चाहती थी… जैसे मैं अपनी बारी आने के लिये मानसिक रूप से खुद ही तैयार थी कि कब वह कहे और कब मैं उसकी गोद में औंधी लेट जाऊं।

मेरी जगह अहाना ने ले ली थी और मैंने अपना चूतड़ वाला हिस्सा समर की गोद में टिका कर दूध वाला हिस्सा अहाना की गोद में रख लिया था।

फिर मेरे साथ भी वही हुआ और जिस घड़ी उसने एक उंगली मेरे छेद में उतारी तो एकदम बेहद हल्के से दर्द का अहसास तो जरूर हुआ लेकिन फौरन ही मजा भी आने लगा।
जल्दी ही मैंने उसकी दोनों उंगलियों को आत्मसात कर लिया और मजा लेने लगी।

अहाना की मनःस्थिति क्या थी, पता नहीं लेकिन मैंने दिमाग में यह बिठा लिया था कि मलत्याग में भी जब कभी पैखाना टाईट होता है तो उतनी मोटाई में तो मल निकलता ही है जितनी उसके लिंग की थी.. तो मतलब उतना फैल ही सकता था।

यानि अगर दर्द होता भी तो बर्दाश्त के लायक ही होगा और जब अभी उंगलियों के अंदर बाहर होने पे मजा आ रहा था तो लिंग के अंदर बाहर होने पे क्या न आयेगा।
छेद उसके हिसाब से ढीला हो चुका तो उसने मुझे उठा दिया।

“अब बताओ.. पहले कौन डलवायेगा?”
“मेरी मारो.. मैं अभी एकदम गर्म हूँ। अहाना को फिर से गर्म कर के तब डालना।” मैंने खुद आगे बढ़ कर मौका ले लिया।

“ठीक है.. देख मैं ऐसे ही बैठा हूँ। तू मेरी तरफ पीठ कर के मेरे लंड पर ठीक वैसे ही बैठ, जैसे हगते में बैठती है और अन्नू.. तू सामने से लगी रह और अपने हाथ से इसकी चूत का दाना सहलाती रह ताकि इसकी गर्मी बरकरार रहे।”

उसके बताये मुताबिक मैं अपनी पीठ उसके पेट से सटाते उस पर लगभग शौच की पोजीशन में बैठ गयी। मेरी गुदा का छेद उसके लिंग की टोपी पर टिक गया। अहाना मेरे एकदम सामने मुझसे लगभग चिपकी हुई बैठ गयी एक हाथ से मेरे इस कंधे से उस कंधे तक दबाव बनाती, दूसरे हाथ से मेरी योनि के ऊपरी सिरे को सहलाने लगी, योनि के छेद में उंगली करने लगी।
मेरे दिमाग में फुलझड़ियां छूटने लगीं।

समर ने पीछे से मेरी कमर पर दबाव बना लिया था और मुझे नीचे बिठाने लगा था.. मैं खुद भी नीचे बैठने पर जोर लगा रही थी, लेकिन लगता था उसके लिंग की कैप जैसे फंस गयी हो।

फिर लगातार दबाव की वजह से चुन्नटें एकदम फैल गयीं और “गच” से टोपी अंदर धंस गयी। मेरी एकदम चीख निकल गयी और दर्द की एक तेज लहर उठी। मैंने वापस उठना चाहा लेकिन अहाना ने ऊपर से दबा दिया और समर ने नीचे से दबा लिया।
मेरे एकदम से आंसू छलक आये- छछ-छोड़ दो… बहुत दर्द हो रहा है।
मैंने कसमसाते हुए कहा।

“पहली बार में दर्द तो होता ही है.. क्या आगे में दर्द नहीं हुई थी, लेकिन फिर मजा आया था न? उसी तरह इसमें भी आयेगा.. थोड़ा सब्र तो करो।”

बचने की कोई सूरत न देख मैंने खुद को शिथिल छोड़ दिया और पहले जो बस टोपी ही अंदर धंसी थी, वहीं खुद को ढीला छोड़ने से पूरा ही अंदर चला गया।

जब समर ने जान लिया कि मैं निकलने की कोशिश नहीं करूँगी तो उसने अहाना को कहा कि वह मेरा एक दूध मसलते हुए दूसरे हाथ से मेरी योनि में उंगली से चोदन करे, जबकि खुद उल्टे हाथ से मेरा दूसरा दूध मसलते सीधे हाथ से योनि के ऊपरी सिरे को सहलाने लगा।

थोड़ी ही देर में उत्तेजना का पारा वापस चढ़ने लगा और यह ख्याल भी निकल गया कि उसका लिंग मेरी गुदा में ठुंसा हुआ था।
“हम्म.. अब करो।” मैंने समर की जांघ थपथपाते हुए इशारा किया।
“मैं बाद में करूँगा.. अभी तुम करो। ऊपर नीचे हो।”

मैंने ऊपर नीचे होना शुरू किया। पहले थोड़ी जलन महसूस हुई और कुछ-कुछ अहसास इस बात का भी हो रहा था कि जैसे पोट्टी का दबाव हो लेकिन धीरे-धीरे इन पर लज्जत का अहसास भारी पड़ गया और नीचे होने पे जब मेरे चूतड़ उसके बाल भरे पेट के निचले हिस्से से टकराते तो अलग ही मजा आता।

हालाँकि यह पोजीशन मेरे लिये सुविधाजनक नहीं थी और मैं जल्दी ही थक गयी।
थक गयी तो उसने मुझे हटा दिया और अहाना को बिठा लिया। अहाना के साथ भी सेम प्रक्रिया दोहराई गयी और उसे भी सब ठीक वैसा ही महसूस हुआ जैसा मुझे हुआ था।
फिर वह भी थक गयी तो हम उठ खड़े हुए।

अब चूँकि बाथरूम के सख्त फर्श पर कोई ऐसा आसन तो आजमाया नहीं जा सकता था, जिसमें घुटने इस्तेमाल होते हों.. इसलिये बेहतर बस यही था कि हम नलके को पकड़ कर झुक गये और उसने खड़े-खड़े पीछे से भोगना चालू कर दिया।

करीब आधे घंटे तक वह हम दोनों से उसी अंदाज में बारी-बारी गुदामैथुन करता रहा।

इसमें फिलहाल कोई आर्गेज्म की गुंजाइश तो नहीं थी लेकिन यह भी सच था कि मजा भरपूर आया था, हालाँकि बाद में हम दोनों के छेद सूज गये थे और यहां तक कि पोट्टी करने में भी तकलीफ हुई थी और कई दिन तक दर्द रही थी।

बहरहाल, आधे घंटे के बाद उसने अहाना की गुदा में अपना सफेदा उगल दिया और ढीला हो कर वहीं पड़ गया।
जबकि अहाना के छेद से धीरे-धीरे बह कर उसका वीर्य पड़े रहने तक बाहर आता रहा।

फिर हम कायदे से नहाये और बाथरूम साफ करके बाहर आ गये।

वह कहीं चला गया और हम खा पी कर आराम करने लग गये। पता तो था ही कि शैतान अभी फिर धमकेगा।

दो बजे वह वापस आया और इस बार रणक्षेत्र हमारा बेडरूम ही बना।
वह कई तरह के कंडोम ले आया था.. एक्स्ट्रा थिन, एक्स्ट्रा डॉट्स, एक्स्ट्रा रिब्स जैसे पता नहीं क्या क्या।

फिर उसने चार बार और हमें आगे से फक किया। इस दौरान शायद ही कोई आसन बचा हो जो उसने आजमाया न हो और सारे कंडोम भी इस्तेमाल कर डाले।

इस बीच उसने चार बार अपना वीर्य निकाला और दो बार हम भी आर्गेज्म तक पंहुचे। जब जाने की नौबत आई तो बच्चू की खुद भी टांगें लड़खड़ाने लगी थीं।
फिर आगे चल कर यह सिलसिला आम हो गया।

जब यह सब हुआ, उस दौरान में ग्यारहवीं में थी और जब इंटर के बाद प्राइवेट से बीए कर रही थी तब आरिफ के साथ मेरी शादी हो गयी।

इस बीच जितनी बार हो सकता था राशिद और समर ने हम दोनों बहनों की मुनिया की खुजली मिटाई.. और इस बीच शायद हमने सेक्स से सम्बंधित सभी कांड किये।

पहली बार ब्लू फिल्म देखने के बाद जिन चीजों पर हमने चर्चा की थी, उनमें से अंततः लगभग सभी कांड करते हुए फिर हमने वीर्य मुंह में लेना भी शुरू कर दिया था, भले बाद में थूक देते थे।

बस एक ही चीज थी जो हम कभी नहीं कर पाये.. कभी अपनी गुदा से निकले उनके लिंग को चूसने की हिम्मत हम न जुटा पाये।

समर के बार-बार करने से जब हमें गुदामैथुन की भी लत हो गयी थी तब हमने खुद से फोर्स करके राशिद को भी इसके लिये तैयार कर लिया था, हालाँकि खुद उसका इसमें कोई खास रुझान नहीं था।

लेकिन समर के मुकाबले हमें राशिद के साथ ज्यादा मजा आता था इसलिये हमने खुद ही एनल सेक्स के लिये उसे परोस दिया था।

शादी के बाद मेरी ढीली योनि ने आरिफ में शक के बीज जरूर बोये थे और वह मेरे हस्तमैथुन वाले बयान से एकदम संतुष्ट भी नहीं हुआ था, उसने बाकायदा मेरी जासूसी कराई थी लेकिन हाथ कुछ न लगा था।

वैसे भी हमारे साथ जो भी हुआ था, वह घर में ही हुआ था.. इस बात पे भला कौन शक करता और बाहर के लोगों के लिये तो हम शरीफजात लड़कियाँ ही थे, जो कभी भी किसी को देखना तक गवारा नहीं करते थे।

फिर खुद आरिफ कौन सा शरीफ था.. शादी से पहले एक भाभी से सम्बंध थे और शादी के बाद सऊदी में भी जहां तहां मुंह मारता रहता है।

यहां सास ससुर, देवर के बीच कोई जुगाड़ बन पाना मुश्किल है, देवर पर ट्राई किया कि वही मेरी विपदा समझ ले, लेकिन वह कहीं और किसी लड़की के चक्कर में पड़ा है।

ऐसे में बस यही है कि साल में तीन चार बार बस जो मायके जाना हो पाता है तो समर काम आ जाता है। घर में चूँकि कोई अब होता भी नहीं अम्मी के सिवा, तो उतनी दिक्कत नहीं। राशिद की शादी हो चुकी और उसे अब मेरे मायके जाने पे इतना भी मौका नहीं मिल पाता कि मेरे साथ अकेले हो सके.. सेक्स तो दूर की बात है।

हालाँकि अब्बू सऊदी छोड़ अब यहीं रहते हैं लेकिन घर पर उनके पांव कम ही टिकते हैं, सो जब तक समर की शादी नहीं हो जाती, पूरी सुविधा है मुनिया की खुजली मिटाने की.. समस्या बस यही है कि वहां ज्यादा जा नहीं सकती।

कभी जमीर अंकल और अम्मी के सम्बंधों के बारे में बहुत खराब लगता था और किसी-किसी वक्त में नफरत भी होती थी लेकिन आज अपनी सोचती हूँ तो उनकी तकलीफ समझ में आती है।

आज सबकुछ वैसा ही तो है, अब्बू की जगह आरिफ हैं और अम्मी की जगह मैं हूँ.. लेकिन अम्मी के पास जमीर अंकल जैसी परमानेंट सुविधा थी जो मेरे पास नहीं है।

काश मेरे पास भी वैसी कोई सुविधा होती, काश मैं भी ऐसे ही किसी के जरिये अपने हिस्से का सुख हासिल कर सकती।

इन्हीं सब “काश” को मेरे मुंह पर मारते हुए रजिया ने अपनी बात खत्म की थी। उसने यह सारी बातें तीन रातों में बताई थी। बातें तो और भी थीं लेकिन लिखीं मैंने बस उतनी ही, जितनी मुझे लिखने लायक लगीं।

अब मेरा अगला सवाल यही था कि क्या मैं उसके “काश” का जवाब बन सकता था?


वो काफी देर चुप रही थी और फिर आहिस्ता से बोली थी- कैसे? मतलब कैसे पॉसिबल है यह.. क्योंकि घर से निकलना मेरे लिये आसान नहीं और घर पे किसी के आने की कोई सम्भावना ही नहीं तो फिर?

“उसके साथ सवाल यह जुड़ा है कि आप किस हद तक जा सकती हैं इसके लिये।”

“मतलब?”

“मतलब यही कि क्या आप यह चाहती हैं कि खुदा आपका चाहा सुख खुद से आपकी झोली में डाल दे या फिर उसे हासिल करने के लिये आप खुद भी कोई मेहनत करने के लिये तैयार हैं या रिस्क उठाने के लिये तैयार हैं?”
“अपने आप से सुख मेरी झोली में आ जाये, इतनी अच्छी किस्मत होती तो छः साल से तड़प और तरस न रही होती। बहुत तवील अरसा है यह खुदा को अजमाने के लिये। अब तक भी यह सुख मुझे तब ही हासिल हुआ है जब मैंने खुद इसके लिये मेहनत की है।”
“मतलब मेहनत कर सकती हैं और रिस्क उठा सकती हैं।”
“एक हद तक।”

“फ़िक्र मत कीजिये.. सिर्फ उतना कहूँगा जितना कर पाना आपके लिये मुमकिन हो। पर एक बात और बताइये.. उस ब्लू फिल्म की लगभग सब चीज़ें आपने कर ली थीं, एक चीज़ को छोड़ कर.. लेकिन मेरे हिसाब से आपने एक चीज़ और नहीं की थी।”
“क्या?”
“दो मर्दों के साथ एक लड़की का सेक्स करना।”

“वह कभी पॉसिबल भी नहीं था क्योंकि जिन दो मर्दों ने मुझे छुआ वे कभी एक दूसरे के साथ नहीं हो सकते थे। उनका आपस में रिश्ता न होता या पहले से इस तरह की कंटीन्युटी होती तो बात अलग थी।”
“पर अगर मौका बनता तो क्या आप जातीं इसके लिये?”

इस सवाल पर वह कुछ देर के लिये चुप रह गयी.. शायद खुद को टटोल रही थी कि अगर कभी राशिद और समर एक साथ उसे आगे और पीछे से भोगते तो वह स्वीकार करती या नहीं?

“शायद चली जाती.. इस चीज़ में पहली बाधा एनल सेक्स था जो मैं पार कर ही चुकी थी और दूसरी बाधा दोनों से उस तरह का रिलेशन होना था जो कि आलरेडी था।”


“अब अगर मान लीजिये आपको इसके लिये जाना पड़े जहाँ एक हाफ अजनबी हो, यानि मैं और एक फुल अजनबी यानि मेरा कोई दोस्त.. तो जाने की रिस्क उठा पाएंगी। आपकी पहचान छुपी रहने की गारंटी मेरी और इस बात की भी कि यह चीज़ कभी भी आपके लिये भविष्य में परेशानी का सबब नहीं बनने वाली।”
“शायद नहीं।”

“जवाब देने में जल्दबाजी मत कीजिये।  नितिन। उसके शामिल होने पे आप सवाल उठा सकती हैं लेकिन एक मज़बूरी है। मेरे पास कोई सुरक्षित जगह नहीं.. होटल ले जाना आपको प्रफर करूँगा नहीं।
सिर्फ एक ही सुरक्षित जगह है.. नितिन का घर, वह अलीगंज में एक सरकारी क्वार्टर टाइप घर में रहता है एक लड़के के साथ, जो सरकारी नौकरी में है लेकिन वह आजकल किसी ट्रेनिंग पर बाहर गया है तो नितिन अकेला है।
वह इतना शरीफ तो है कि कभी इस तरह की बातों को न आगे बढ़ाता है और न ही उनका फायदा उठाने की कोशिश करता है लेकिन इतना भी शरीफ नहीं कि मैं उसके घर आपको ले जाकर वक़्त गुजारूं और वह चुप रह कर कहीं टहलने चला जाये।
अब वह हमारे साथ शामिल होगा तो नौबत वही आएगी जिसका कि मैंने ज़िक्र किया और आपको जिससे परहेज़ भी नहीं। समस्या बस अनजान लोगों की है लेकिन कभी-कभी अनजान लोग ही अपनी पहचान छुपाये रखने में आसानी बन जाते हैं।
सोचिये न आपको वह कभी जानने वाला और न ही कभी शायद कभी वैसे उससे आपकी मुलाकात हो पाये.. और आगे भी वो मेरे साथ या अकेले ही आपके काम आ सकता है, अगर आप चाहेंगी तो।
जल्दबाजी नहीं.. इत्मीनान से रात भर सोच लीजिये। बात नितिन की नहीं मेरी है.. अगर मुझ पर भरोसा करती हैं तो एक बार आजमा कर देख लीजिये।”

“मैं सोचूंगी।” इस बार उसने सकारात्मक सन्देश दिया।

“जी बिल्कुल… कल सुबह बता दीजियेगा.. कल छुट्टी है, वह कहीं निकल जाये, उससे पहले ही उसे बताना पड़ेगा।”
उसने फोन काट दिया।

बात अश्लील थी और किसी भी सभ्य महिला के लिये एकदम अस्वीकार्य थी लेकिन वह जिस हालत में थी और जिस तरह मर्द के संसर्ग को तरस रही थी, उसमे मुझे पूरा यकीन था कि देर सवेर वह मान जायेगी।

और मेरा यकीन गलत न साबित हुआ। सुबह ही उसने फोन करके पूछा कि उसे क्या करना होगा। मैंने कह दिया कि घर कह दो कि बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के साथ ही उसका आधार भी बनना ज़रूरी था और उसके लिये जा रही हो। एक मेरा दोस्त इस काम में जुड़ा है और मैं उससे टाइम ले लेता हूँ..

वैसा ही हुआ और एक घंटे बाद मैं उसे सिटी स्टेशन के पास से पिक कर रहा था। इस बीच मैंने आधार वाले दोस्त से बात कर ली थी और नितिन को भी राज़ी कर लिया था कि कुछ ज़रूरी सामान के साथ तैयार रहे।

हम यूनियन बैंक पहुंचे और वहां यूँ तो आधार बनवाने या संशोधन करवाने वालों की लम्बी लाइन थी लेकिन अपना कम एक घंटे में हो गया और वहां से निकल कर हम अलीगंज आ गये।

रज़िया का बच्चा भी उसी की तरह गोरा चिट्टा और खूबसूरत था, जिसके लिये हम उम्मीद कर रहे थे कि वह सो जायेगा और इसके लिये थोड़ा सा इंतजाम भी कर लिया था।

नितिन रज़िया को देख के वैसे ही खुश हो गया जैसे निदा को देख के हो गया था.. कमीने ने आभार में मुझे ही किस कर लिया कि मैं कैसा नेकदिल दोस्त था कि उसके सूखे सामान के लिये रसीली बारिश का इंतज़ाम कर देता था।

उस छोटे से घर में नीचे ऊपर दो कमरे थे और नीचे ही एक स्टोर जैसा कमरा भी था। नीचे कमरे में टीवी लगा हुआ था जिसपे कुछ प्रोग्राम देखते हम आपस में बतियाने लगे। बच्चा अपने खेलने में मस्त हो गया.. उसके खेलने के लिये भी नितिन को आसपड़ोस से कुछ खिलौने अरेंज करने पड़े थे।

आपस में बात करने से रज़िया नितिन से भी सहज हो गयी, जो थोड़ी देर पहले खिंची-खिंची दिखाई दे रही थी।

करीब साढ़े बारह बजे बच्चा कुछ खाने की जिद करने लगा तो नितिन ने उसके लिये मैगी बना दी और वह खुश हो गया। थोड़ी सी चालाकी उसने यह की थी कि मैगी में बेहद मामूली नींद की दवा मिक्स कर दी थी जिसे खाने के दस मिनट बाद बच्चा सो गया।

कमरे के दरवाज़े को बंद करके अब हमने बच्चे को वहीं पड़ी इकलौते बेड पर सुलाया और नितिन के कहने पर हम अन्दर वाले छोटे कमरे में आ गये जहाँ उसने तीन गद्दों को ज़मीन पर बिछा कर आधे से ज्यादा कवर कर लिया था।

“तो अब शुरू करें… हमारे पास कोई बहुत ज्यादा वक़्त नहीं।” मैंने रज़िया का हाथ थामते हुए कहा।

उसने मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन आँखों ही आँखों में मौन सहमति दी।

मैं समझ सकता था कि वह कोई कुंवारी लड़की नहीं थी और न ही इतनी शरीफ थी कि उसे उसके पति के सिवा किसी ने छुआ न हो.. भले कल उसने एकदम से इन्कार कर दिया हो लेकिन जब उसने मन से स्वीकार कर लिया होगा तब से एक-एक पल इस चीज़ का इंतज़ार कर रही होगी।

हम तीनों ही ज़मीन पर बिछे गद्दों पर पसर गये।
मैंने उसे आहिस्ता से अपनी तरफ खींच लिया और वह निराश्रित सी मेरी बाहों में आ गयी। एक नए स्पर्श से उभरी सिहरन मैं साफ़ महसूस कर सकता था।

नकाब तो उसने आते ही उतार दी थी लेकिन उसके पूरे शरीर को मूंदने वाले कपड़े क्या कम थे।

“हो सकता है कि आपको शर्म महसूस हो और बार-बार हिचकें झिझकें.. तो ऐसा कीजिये कि आँख पर रुमाल बाँध लीजिये। इससे आपको आसानी रहेगी।”

उसे मेरा आइडिया सही लगा और मैंने ही रुमाल उसकी आँखों पे बाँध दिया.. नितिन को मैंने इशारे में समझा दिया था कि वह अभी फिलहाल दूर रहे और पहल मुझे करने दे।

इसके बाद मैंने उसे बाहों में ले लिया और अपने होंठ उसके होंठों के इतने पास ले गया कि हम दोनों की गर्म-गर्म साँसें एक दूसरे के चेहरे से टकराने लगीं।

फिर मैंने अपने होंठ उसके होंठ पर टिका दिये। एक सर्द लहर सी उसके बदन से दौड़ कर मेरे शरीर में समां गयी। ऐसा नहीं था कि सबकुछ उसके लिये ही नया था, मेरे लिये भी वह एक नया जिस्म था, नया अनुभव था, नया रोमांच था।

मैंने धीरे-धीरे उसके उसके होंठ चूसने-चुभलाने शुरू किये।

पहले तो वह थोड़ी असहज रही और ऐसा भी महसूस हुआ जैसे वह शरीर से भले न लेकिन दिमाग से प्रतिरोध कर रही हो। दो लगभग अजनबी मर्दों के साथ एकदम बनी यह पोजीशन भला किसे सहज रहने देती। कहीं न कहीं उसके मन में यह विचार भी ज़रूर रहा होगा कि वह गलत कर रही है।
लेकिन ऐसे हर अहसास पर जिस्मानी भूख हावी पड़ जाती है।

उसके होंठ चूसते-चूसते मैंने एक हाथ से उसके बूब सहलाये.. नर्म गुदाज गोश्त के अवयव, लेकिन कपड़े के अहसास से दबे। उनका अहिस्ता-आहिस्ता मर्दन करते-करते मैं उसके होंठ चूसने में तब तक लगा रहा जब तक कि उसके मन से असहजता निकल न गयी।

फिर उसके व्यवहार में आक्रामकता महसूस करके मैंने नितिन को इशारा किया और वह भी रजिया के बदन से आ सटा।

तत्काल उसके शरीर में सिहरन दौड़ी और इस नए स्पर्श पर उसकी क्रिया थमी.. पर मैंने अपने हाथ और होंठ चलाने जारी रखे।

फिर पीछे से नितिन भी अपने दोनों हाथ चलाने लगा.. एक हाथ से उसने रज़िया के नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया था तो दूसरे हाथ को आगे लाकर मेरे साथ ही उसके दूध दबाने लगा।

रज़िया की आँखें मुझसे छिपी थीं लेकिन मैं उसके चेहरे से उसके दिमाग में चलती कशमकश पढ़ सकता था.. वह एडजस्ट करने की वैसी ही कोशिश कर रही थी जैसी कभी पहली बार में राशिद के साथ की थी।

करीब तीन या चार मिनट तक हम उसे यूँ रगड़ते रहे और वह असहज और निष्क्रिय रही.. यह एक घरेलू महिला की पहचान थी.. फिर वापस वह सक्रिय हुई और मेरे होंठ चुसकने लगी, जैसे खुद को हमारे हवाले छोड़ दिया हो।

जब नितिन के स्पर्श की बाधा पार कर ली तो मैंने अपने हाथों का दबाव डालते हुए उसे नितिन की तरफ कर दिया और नितिन ने दोनों हाथों से उसका चेहरा थामते हुए उसके होंठ चूसने शुरू कर दिये।

अब मैंने उसे पीठ की तरफ से सट के अपने उलटे हाथ को उसके कुरते की चाक से अंदर घुसाया और ऊपर लाकर उसकी कॉटन की ब्रा के ऊपर से ही उसके बाएं वक्ष को दबाने मसलने लगा और सीधे हाथ को उसकी सलवार और पैंटी के अन्दर घुसा दिया।

नीचे एकदम सफाचट पेडू था.. यानि वह तैयारी करके ही आई थी.. और थोड़ा नीचे ले जाकर उसकी गर्म भाप छोड़ती योनि पर फिराने लगा।

योनि पर स्पर्श पाते ही उसका जिस्म एकदम थरथरा गया और वह कुछ हद तक सिकुड़ गयी लेकिन अगले पल में एकदम आक्रामकता से नितिन के होंठ चूसने लगी जबकि अब तक निर्लिप्त सी थी।

मेरे लिये नीचे एक सुखद आश्चर्य था.. नीचे उसकी क्लाइटोरिस वाल काफी बाहर निकली हुई थीं.. एकदम अंग्रेजों की तरह। यह चीज़ तब ही हो सकती थी जब ताज़ी-ताज़ी जवान हुई लड़की के साथ ही मुखमैथुन होना शुरू हो जाये। अगर इसके बाद भी आरिफ ने उसकी हस्तमैथुन वाली बात पर यकीन कर लिया था तो बंदा चोदू होते हुए भी नादान ही था।

मैंने अब तक जितनी भी लड़कियां भोगी थीं, इतनी बड़ी क्लिट्स कभी किसी की नहीं पायीं थीं.. यह मेरी सबसे पसंदीदा चीज़ थी जो चाहने के बावजूद अब तक मुझे नहीं मिली थी।
मैं उन्हें देखने के लिये बेचैन हो उठा।

जबकि मेरे सहलाने, उसके भगान्कुर को रगड़ने और एक पोर तक एक उंगली अंदर धंसा देने की वजह से रज़िया एकदम गर्म हो उठी थी।

मैंने नितिन को उससे अलग होने का इशारा किया और नीचे से उठाते हुए उसके कुरते को उसके शरीर से बाहर निकाल दिया। नीचे सफ़ेद कॉटन की ब्रा थी लेकिन नितिन ने पीछे से हुक खोल दिये तो मैंने उसे भी निकाल फेंका।

एक नारी सुलभ प्रतिक्रिया के तहत उसने दोनों हाथों से एकदम अपने वक्ष छुपा लिये लेकिन मैंने उसके हाथ थामते हुए उन्हें हटा दिया। मैं उसके चेहरे को देख सकता था जो शर्म से लाल पड़ गया था।

उसके निप्पल गहरे भूरे रंग के थे और आसपास फैला उसी के रंग का एरोला पुराने एक रूपये के सिक्के से कुछ ज्यादा ही बड़ा था और वक्ष भी अड़तीस और चालीस के बीच के साइज़ के थे, जिन्हें देखते हम दोनों के होंठ सूख रहे थे।
मैं उसके साइड में इस तरह चिपक गया कि उसके होंठ चूस सकूँ और एक हाथ से उसके एक स्तन को इस तरह मसल सकूँ की निप्पल को भी भरपूर रगड़ मिले।
जबकि नितिन भी दूसरे साइड से उसी तरह चिपक गया और वह भी वही करने लगा।

जल्दी ही उसकी शर्म ख़त्म हो गयी और चेहरे से ही वासना बरसने लगीं और मुंह से ‘सी…-सी…’ उच्चारित होने लगी। नितिन ने मेरा इशारा समझते हुए अपने पीछे रखा शहद उठा लिया, जबकि मैंने पीठ पे हाथ लगा कर सहारा देते हुए उसे लिटा दिया।

उसने दोनों बूब्स पर शहद टपका दिया और उन्हें अच्छे से गीला कर दिया। रज़िया को एकदम से यह गीला अनुभव समझ में नहीं आया लेकिन शायद उसे मेरी निदा वाली कहानी का तजुर्बा याद आ गया तो उसके होंठों पर मुस्कराहट तैर गयी। हम यह सब निदा के साथ कर चुके थे।

फिर बड़े आराम से हम दोनों ने उसके एक-एक वक्ष पर कब्ज़ा कर लिया और शहद चाटने लगे। शहद क्या, हम तो उसके एरोला पर कुत्ते की तरह जीभ फेर रहे थे, उसके निप्पल को चूस रहे थे, कुचल रहे थे दांतों से हल्के-हल्के.. और चुभला रहे थे।

उसके चूचुक बच्चे को दूध पिलाये होने की वजह से आलरेडी काफी बाहर भी निकले हुए थे और मोटे भी थे जो हमारे होंठों की चुसाई पाकर और सख्त हो रहे थे।

पहले कुछ देर वो अपने दांतों से होंठ कुचलती बर्दाश्त करती रही, फिर बेताबी से हम दोनों के सरों पे हाथ फेरने लगी, उन्हें दबाने लगी, जैसे कह रही हो कि बस इसी तरह और चूसो.. और हम दोनों ही बच्चे बने उसके दूध पीते रहे।

शहद चट जाता तो हम और डाल लेते.. नितिन तो उसकी नाभि तक जाने लगा था।
थोड़ी देर में वह जब अच्छे से गरमा गयी तो उसने मेरे सर को नीचे की तरफ धक्का दिया, जिसका स्पष्ट मतलब था कि अब उसे नीचे का मज़ा चाहिये था।

मैं उसके ऊपर से उठ गया.. नितिन ने मुझे देखा लेकिन मैंने उसे उसी तरह लगे रहने का इशारा किया और खुद रज़िया की सलवार का जारबंद खोलने लगा। जारबंद खोल कर सलवार नीचे सरकानी चाही तो उसके चूतरों के नीचे दबे होने की वजह से न उतरी।

लेकिन इस अवरोध को उसने तत्काल समझा और अपने चूतड़ खुद से उठाते हुए सलवार को नीचे उतर जाने दिया जिसे उसके पायंचों से निकाल कर मैंने किनारे डाल दिया।

फिर उसकी पैंटी की इलास्टिक में उंगलियाँ फंसा कर उसे नीचे उतारता चला गया।


अब वह मेरे सामने मादरजात नंगी थी.. उसका पूरा झक सफ़ेद बदन आवरण रहित मेरे सामने था। मुझे लगा था कि योनि के आसपास का हिस्सा तो ज़रूर काला होगा लेकिन वो भी काला होने के बजाय हल्का हरापन लिये था।

मैंने उसके घुटने मोड़ते हुए उसकी टांगें उठायीं और फैला दीं। अब उसकी योनि अपने सम्पूर्ण रूप में मेरे सामने थी।

साइज़ तो वही जाना पहचाना था लेकिन सबसे बड़ा फर्क वही था कि उसकी कलिकाएँ आजतक देखीं सबसे बड़ी थीं जो इस बात की स्पष्ट द्योतक थीं कि बहुत शुरूआती स्टेज से ही उनकी ज़बरदस्त चुसाई हुई थी।

उसका भगान्कुर भी थोड़ा मोटा ही था जो इस बात का संकेत था कि वह जल्दी ही गर्म हो जाती होगी।

“कभी आरिफ ने यह नहीं पूछा कि यह क्लिटोरिस इतनी बड़ी क्यों हैं?” मैंने तर्जनी उंगली से उसकी कलिकाएँ छूते हुए कहा।
“पूछा… मैंने कहा बचपन से ही बड़ी हैं। उसे शक हुआ लेकिन कभी समझ नहीं पाया।”

“जबकि ये अर्ली स्टेज पर चुसाई से इस हद तक बढ़ जाती हैं.. मतलब इतना बड़ा चोदु है लेकिन इस मामले में अनाड़ी निकला.. खैर, मुझे यह बेहद पसंद हैं और यह मेरी पसंद के मुताबिक हैं।”

“मुझे भी देखने दे.. किस चोदू को यह न पसंद होंगी।” नितिन ने उसके दूध से मुंह हटाते हुए कहा और उठ कर उसकी योनि देखने लगा।

मैंने उंगली और अंगूठे के दबाव से उसकी योनि फैला कर अन्दर देखा.. छेद खुला हुआ था और लगता था कि वह कोई भी साइज़ आराम से ले सकने में सक्षम थी। मैंने उसके दोनों पैरों को इस तरह उसके पेट से सटा दिया कि उसकी गुदा का छेद सामने आ गया।

देख कर ही वह किसी कदर खुला हुआ लग रहा था.. कहने को तो सारी चुन्नटें मिली हुई थीं लेकिन उनमें सख्ती नहीं लग रही थी। मैंने थूक से गीली करके एक उंगली छेद पर सटा कर अन्दर दबाई.. बहुत मामूली अवरोध के साथ वह अंदर उतर गयी।
फिर मेरे साथ ही एक उंगली नितिन ने भी थूक से गीली करके अन्दर धंसाई.. वह भी आराम से अंदर चली गयी।
“आराम से जाएगा।” उसने संतुष्टि से सर हिलाते हुए कहा।

बहरहाल, अब हमारे शरीरों पर कपड़े बोझ हो रहे थे। हमने उतारने में देर नहीं लगायी और पूरी तरह नग्न हो कर रज़िया से सट गये।

तीन नंगे बदन एक दूसरे से सटे, एक दूसरे को रगड़ते चिंगारियां छोड़ने लगे।

मैं उसके सरहाने आ गया और मैंने अपना लिंग उसके होंठों से सटा दिया। मुझे लगा था कि वह थोड़े नखरे दिखाएगी लेकिन यह देख कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि उसने सहजता से होंठ खोले और उसे अन्दर ले लिया।

वह एकदम सधे हुए अंदाज़ में लिंग पे कभी जीभ रोल करती, कभी उसे तालू और जीभ के बीच दबा कर अंदर सरकाती। एकदम परफेक्ट। मैं उसके दूध दबाने लगा और मुझे चुसाते देख नितिन भी ऊपर सरहाने आ बैठा और जबरन अपना लिंग उसके मुंह में घुसाने लगा।

उसकी बेताबी देख मैंने अपना लिंग निकाल लिया और रज़िया ने उसका लिंग मुंह में लेकर चूसना शुरू का दिया। वह देख भले न सकती हो लेकिन अब मुंह में ले लिया था तो साफ़ महसूस कर सकती थी कि उसके और मेरे लिंग में वही फर्क था जो समर और राशिद के लिंग में था।

और खुद मुझे बता चुकी थी कि उसे समर के मुकाबले राशिद का लिंग ज्यादा पसंद था, क्योंकि वह ज्यादा लम्बा और मोटा था। हाँ यह फर्क था हम दोनों के लिंग में और मैंने निदा की में इसे स्पष्ट भी किया था।

अब शायद गर्माहट पर्याप्त हो चुकी थी और उसके चेहरे पर छाई शर्म की लाली बिल्कुल लुप्त हो चुकी थी। उसे खुद से अब उस पट्टी की ज़रुरत नहीं महसूस हो रह थी जो कि उसकी आँखों पर बंधी हुई थी।

उसने पट्टी हटा दी और उठ बैठी.. एकदम भूखी बिल्ली की तरह वासनायुक्त निगाहों से हम दोनों को देखा.. कहीं कोई शर्म नहीं। वह कोई नयी उम्र की लड़की नहीं थी, बल्कि खूब खेली खायी एक औरत थी और अपनी ज़रुरत को लेकर एकदम मुखर और स्पष्ट थी।

अब तक वह जैसे भोग्या वाले रोल में थी और हम दोनों जैसे उसे भोग रहे थे लेकिन अब उसे यह मंज़ूर नहीं था। उसने खुद से आगे बढ़ कर मुझे चिपका लिया और मुझे रगड़ने लगी।

होंठों से जैसे मेरे होंठ चूसे डाल रही थी, अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दे रही थी और मेरी जीभ खींच-खींच कर चूस रही थी.. अपने दूध बुरी तरह मेरे सीने से ऐसे रगड़ रही थी कि उसके निप्पल को बाकायदा मसलाहट मिलती रहे, साथ ही मेरी जांघ पर इस तरह अपनी योनि टिका कर पैर इधर-उधर करके बैठी थी कि आगे-पीछे हो कर उसे भी रगड़ देती रहे।
मैंने भी उसे रगड़ने में भरपूर सहयोग दिया।

नज़ारा काफी कामोत्तेजक था जो नितिन के लिये हाहाकारी था.. वह भी उसकी पीठ की तरफ से आ कर सटा तो रज़िया ने मुझे छोड़ दिया और उसी अंदाज़ में नितिन से चिपक कर उसे रगड़ने लगी।

कुछ देर बाद हाँफते हुए रुक कर मुझे देखने लगी- उस दिन की तरह कुछ मलाई वगैरह भी रखे हो क्या?
“हाँ-हाँ!” जवाब मेरी जगह नितिन ने दिया. वह भी समझ चुका था कि उसे निदा के साथ गुज़रे पलों के बारे में सब पता था,

फिर उसने जो मलाई रखी थी वह रज़िया को दे दी और रज़िया ने ही न सिर्फ अपने पूरे जिस्म पर वो मलाई मली और हम दोनों के जिस्मों पर भी उसी ने मल दी.. खासकर अपनी योनि और हम दोनों के लिंगों पर।

तत्पश्चात हम फिर एक दूसरे को रगड़ने लगे.. कहीं हम उसे किस करने लगते, कहीं वो मेरे होंठ चूसने लगती, कहीं नितिन के.. कभी वो हमारे सीने पे चढ़ के चूसने चाटने लगती, कहीं हम उसके दूध पीने चाटने लगते।

कहीं वह नीचे जाकर आर हमारे लिंग चाटने लगती तो कहीं मैं उसकी योनि में मुंह डाल कर उसकी कलिकायें खींचता तो कहीं उसके भगान्कुर को तो कभी नितिन उसकी योनि में मुंह डाल देता।

और यूँ ही हम तीनों आग हो कर सुलगने लगे।

“अब डालो.. मैं और नहीं बर्दाश्त कर सकती.. आह!” वो अंततः सिसकारते हुए बोली।

फ़ौरन उसकी मंशा के अनुरूप मैं उसकी टांगों के बीच आ गया। नितिन समझता था कि मेरा नंबर पहले क्यों था और वह अपना लिंग उसके मुंह में डाल कर चलाने लगा और मैंने थूक से गीला करके अपने लिंग को तीन-चार बार उसकी गीली, बह रही योनि पर रगड़ कर अन्दर उतार दिया।

ज़ाहिर है कि एक बच्चे को पैदा कर चुकी खेली खायी योनि थी तो कोई भी दिक्कत नहीं थी और बड़े आराम से अन्दर उतर गया लेकिन रज़िया के लिये उसे एक मुद्दत बाद नसीब हुआ लिंग था और वह ‘अश्श’ करके करह उठी।

फिर थोड़ी तन कर नितिन के लिंग तो और आक्रामक अंदाज़ में चूसने लगी, जबकि मुझे अहसास हुआ था कि उसकी योनि काफी गहरी थी और काफी मजेदार थी।

मैं धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा.. पैर उसने मोड़ कर हवा में उठा लिये थे और उस पोजीशन में जितनी भी अपनी योनि बाहर उभार सकती थी, उसने उभार दी थी और अब मैं “गचाक-गचाक” पेल रहा था.. स्पीड धीरे-धीरे बढ़ने लगी।

लेकिन थोड़ी देर में ही नितिन आ धमका और मुझे अपना लिंग निकालना पड़ा।

अब मैं किसी अंग्रेज़ की तरह वापस उसे नहीं चुसा सकता था, पता चलता कि वक़्त से पहले ही खलास हो जाता.. लेकिन उसके दूध ज़रूर पीने शुरू कर दिये और हाथ से भी उसकी भगनासा को सहलाने लगा जबकि नितिन ने अपना समूचा लिंग उसकी योनि की गहराई में उतार दिया था और वह एक आनंददायक ‘आह’ करके रह गयी थी।

वह मेरे मुकाबले में कम उम्र था, ज्यादा जोशीला था और उसमे आक्रामकता भी बहुत थी। वह तेज़-तेज़ ऐसे धक्के लगाने लगा जैसे रज़िया की योनि फाड़ के रख देगा और रज़िया भी हर धक्के पर जोर से सिसकारने लगी जो यह बताता था कि उसे इसमें भी काफी मज़ा आ रहा था।

“हटो!” अचानक उसने कहा।

नितिन ने लिंग निकाल लिया और मैं भी उससे अलग हट गया।

उसने टाइम वेस्ट नहीं किया और फ़ौरन चौपाये की पोजीशन में ऐसे आ गयी कि उसका चेहरा उसके दूध समेत गद्दे से रगड़ने लगा और उसके नितम्ब एकदम हवा में उठ गये।

यहाँ उसने पहल के लिये मुझे थपथाया और मैं उठ कर उसके पीछे आ गया। मैंने उसके नितम्ब अपने हिसाब से एडजस्ट किये और सामने से खुली उसकी योनि में अपना लिंग उतार दिया।

अब न सिर्फ मैं धक्के लगा रहा था बल्कि वो खुद भी अपने चूतड़ आगे पीछे कर के लिंग को ग्रहण कर रही थी और बाहर फेंक रही थी और साथ ही जोर-जोर से सिसकार भी रही थी। नितिन प्रशंसात्मक निगाहों से उसे बैठा देख रहा था।

जब मैं अच्छे से ले चुका और मेरा पारा काफी चढ़ गया तो उसने नितिन को आने का इशारा किया और मैं उससे अलग हो कर हाँफते हुए खुद को संभालने लगा।

सहवास के पलों में सकुचाई शरमाई घरेलू महिला को उसने कहीं पीछे छोड़ दिया था और एकदम चुदक्कड़ औरत की तरह वह खुल कर पेश आ रही थी और अपने हिस्से का मज़ा ले रही थी.. इससे मैं समझ सकता था कि उसके दिमाग में यही था कि अभी जो जन्नत उपलब्ध है, खुल के जी लो.. क्या पता फिर मिले न मिले।

और नितिन तो नितिन था.. इतने जोर से धक्के लगा रहा था कि पूरा कमरा ‘भच-भच’ की आवाजों से गूंजने लगा था और वह अपनी चीखें दबाती कराह रही थी उम्म्ह… अहह… हय… याह… लेकिन लग नहीं रहा था कि उसे कोई तकलीफ हो रही थी।

“बस.. बस.. अब तुम आओ इमरान.. पीछे डालो।” थोड़ी देर की कसरत के बाद उसने कहा।
नितिन हट गया.. मैं उसकी जगह आ गया। एक बार उसकी भचभचायी योनि में लिंग घुसा कर गीला किया और फिर सुपारे की नोक उसके चुन्नटों भरे छेद भर टिका अन्दर दबाया। चुन्नटें तत्काल फैलीं और लिंग अंदर धंसता चला गया, योनि की तरह गर्म-गर्म अनुभव हुआ।

फिर कुछ सुस्त धक्कों के बाद मैं तेज़ी से चलने लगा। वो फिर अपने चूतड़ों को आगे पीछे करके समागम में भरपूर सहयोग कर रही थी। मेरी जांघें उसके चूतड़ों से लड़ कर ‘थप-थप’ की धवनि पैदा कर रही थीं।
लेकिन मेरा बहुत देर चलना दुरूह हो गया और मैं रोकने की लाख कोशिश करते हुए भी झड़ गया। अंतिम पलों में मैंने उसके चूतड़ों को कस कर भींच लिया था।

लगा नहीं कि नितिन को इस बात से कुछ ऐतराज़ हुआ था क्योंकि उसे तो एक्स्ट्रा चिकनाई मिल गयी थी और मैंने जैसे ही अपना लिंग निकाला उसने अपना ठूंस दिया और थोड़ी सुस्ती के बाद दौड़ने लगा।

मेरे मुकाबले उसके धक्के तूफानी थे और दबे-दबे अंदाज़ में रज़िया को चीखने पर मजबूर कर रहे थे और उसकी जांघों से रज़िया के चूतड़ों के टकराने का शोर और ज्यादा तेज़ था। इस आक्रामकता ने रज़िया को भी ओर्गेज़म तक पहुँचने का मार्ग सुलभ कर दिया और वह एक हाथ नीचे ले जा कर अपने भगान्कुर को तेज़ी से रगड़ने लगी थी।

फिर वह एकदम जोर से सिसकारते हुए ऐंठ गयी।
नितिन ने भी उसकी अवस्था समझ ली थी और उसने भी दो चार धक्कों में ही अपना माल भी उसके छेद के अंदर ही छोड़ दिया।

फिर हम तीनों ही अलग-अलग पड़ कर हांफते हुए अपनी हालत दुरुस्त करने लगे।

“मार्वलस!” मेरे मुंह से निकला और वह मुस्करा कर रह गयी।

अगले दस मिनट तक हम उसी अवस्था में पड़े रहे और फिर एक-एक उठ कर बाहर वाले कमरे से अटैच बाथरूम में खुद को अच्छे से साफ़ कर आये और अगले चरण के लिये तैयार हो गये।

“इस बार डबल अटैक रहेगा।” मैंने आँख दबाते हुए कहा और नितिन से सहमति में सर हिलाया, जबकि रज़िया होंठ दबा कर मुस्करा कर रह गयी।

हम एक दूसरे से फिर सट कर चूमने, चूसने, सहलाने, रगड़ने लगे और जिस्मों में हल्की हरारत आने के पश्चात् नितिन ने हमारा तीसरा आइटम लिक्विड चाकलेट निकाला और हमने उसने शरीर पर मल दिया और अपने लिंगों पर मल दिया।

अब इस पोजीशन में आ गये कि एक उसे जहाँ लिंग चुसा कर चाकलेट खिलाये तो दूसरा उसके बदन को कुत्ते की तरह चाटते उसके जिस्म से चाकलेट साफ़ करे। मैंने साफ़ कर दी तो नितिन ने फिर से लगायी, उसने साफ़ कर दी तो मैंने फिर लगायी। इसी तरह अपने लिंगों पर भी हमने कई बार चाकलेट मली।

उसकी योनि की भी गहरे तक चटाई हुई और उसके पीछे के छेद की भी और दोनों ही छेद एकदम गीले होकर जैसे अपना खिलौना मांगने लगे।

“अब डालो.. बहुत देर फोरप्ले नहीं बर्दाश्त होता मुझसे।” रज़िया ने मचलते हुए कहा।

नितिन चित लेट गया अपना लिंग सीधा छत की ओर खड़ा करके और वह उस पर अपनी योनि टिकाते अपने घुटनों पर जोर देती इस तरह बैठी कि नितिन का लिंग तो उसकी योनि में समता चला गया लेकिन उसका वज़न नितिन पर न आया। उसका मुंह नितिन की ओर ही था और वो झुकती हुई उसके चेहरे तक पहुँच गयी और उसके होंठ चुभलाने लगी।

नीचे ने नितिन ने अपने चूतड़ उठा-उठा कर धक्के लगाने शुरू किये और थोड़े ही धक्कों के बाद उसने मेरी ओर देखा, जिसका साफ़ मतलब था कि अब मेरा काम था।

जिस पोजीशन में वो थी, उसका पीछे का छेद खुल गया था और मैंने अपनी लार से गीला करके अपना लिंग उसके गुदा के छेद में उतार दिया। आगे नितिन का मोटा लिंग होने की वजह से पीछे का रास्ता खुद से ही संकुचित हो गया था और मुझे एकदम टाईट मज़ा दे रहा था।

इससे पहले हमने यह पोजीशन निदा के साथ अपनाई थी लेकिन वह नयी और अनाड़ी लड़की थी तो सीधे हमारे पेट पे बैठ ही जाती थी, जिससे नीचे वाला बंदा धक्के नहीं लगा पाता था जबकि रज़िया उसके मुकाबले अनुभवी और खेली खायी औरत थी, उसने इतना गैप बना रखा था कि नीचे से नितिन भी धक्के लगा सके।

हम दोनों की रेल चल पड़ी और भकाभक धक्के लगने के मधुर और कर्णप्रिय शोर से कमरा गूंजने लगा और साथ ही रज़िया की भिंची-भिंची सिसकारियों से कमरे का वातावरण और भी मादक हो रहा था।

काफी देर हम इसी तरह धक्के लागाते रहे.. चूँकि अभी एक बार झड़ के हटे थे तो जल्दी जल्दी झड़ने की सम्भावना भी नहीं थी.. लेकिन बहरहाल जब एक पोज़ीशन में देर हो गयी तो मैं नीचे हो गया तो नितिन ऊपर से उसकी गांड मारने लगा।

लेकिन एक पोजीशन तो रज़िया की भी थी और वह भी थकनी ही थी.. और वह थकी थी तो नितिन को फिर नीचे ही आना पड़ा, लेकिन उसका पीछे का छेद फिर भी बरक़रार रहा क्योंकि अब रज़िया ने मेरी तरफ मुंह कर लिया था और लेटे हुए नितिन की तरफ उसकी पीठ थी।

सामने से मैंने उसकी योनि में लिंग ठूंस दिया और थोड़ा उसकी तरफ झुकते हुए अपना वज़न एक हाथ पर रखते हुए दुसरे हाथ से उसके एक दूध दबाते हुए धक्के लगाने लगा।

जबकि अपने सीने से लगभग सटी हुई रज़िया के दोनों ही दूध नितिन नीचे से मसल रहा था.. और मुझे उसी में साझेदारी करनी पड़ रही थी। यहाँ एक बात यह गौरतलब थी कि कोई अपना वज़न किसी के ऊपर नहीं डाल रहा था। न मैं रज़िया पर और न ही रज़िया नितिन पर और इसीलिये धक्के लगाने की जबर सुविधा हासिल थी।

अंधाधुंध धक्के लगने लगे।
धक्के लगाते-लगाते हम तीनों का ही पारा चढ़ने लगा।
फिर जब तीनों ही इस पोजीशन में थक गये तो हम अलग हो गये। दो-तीन मिनट सुस्ताये वहीं पड़ कर और फिर रज़िया के संकेत पर यूँ घुटनों के बल खड़े हो गये कि हम दोनों के सीने और चेहरे एक दूसरे के सामने थे और हमारे लिंग एक दूसरे से टकरा रहे थे।

फिर वो हमारे बीच इस तरह फिट हो गयी कि उसकी योनि में नितिन का लिंग घुस गया और गुदा में मेरा और यूँ हमारे बीच वह सैंडविच बन गयी।

फिर हम तो हल्के-हल्के ही हिले लेकिन वह ऊपर-नीचे होती खुद से धक्के लेने लगी।

नितिन थोड़ी पीठ मोड़ कर अपने मुंह उसके दूध पीने लगा था और मैं भी हाथ आगे ले जा कर उसके पेट और वक्ष के निचले हिस्से को सहलाने लगा था।

पहले उसने धीरे-धीरे धक्के लगाये, फिर तेज़ होती गयी और एक लम्हा ऐसा आया जब वो जैसे पागल हो गयी। बुरी तरह सिसकारते हुए वो आंधी तूफ़ान की तरह ऊपर नीचे होने लगी।

वह चरम पर पहुँच रही थी।

और यह महसूस करके हम भी पूरा सहयोग देते मंजिल की ओर बढ़ चले और एक पॉइंट ऐसा आया कि हम तीनों ही चरम तक पहुँच कर एक दूसरे से ऐसे चिपक गये जैसे एक दूसरे में ही समां जायेंगे।

सबकी हड्डियाँ तक कड़क गयीं।

और फिर खुले तो अलग-अलग गिर कर गद्दे पर फैल गये और भैसों की तरह हांफने लगे।

इसके बाद उसके बच्चे के सोने तक एक राउंड और चल पाया और उसमे भी हमने उसके दोनों ही छेद पीटे। इस बार एकसाथ न पीट के अलग-अलग पीटे और बहरहाल तीनों ही ने चरम सुख प्राप्त किया।

और अंततः खेल ख़त्म हुआ।

फिर बच्चा उठ गया और हमने खुद को साफ़ करके कपड़े पहने और तत्पश्चात मैं उसे वापस सिटी स्टेशन तक छोड़ आया, जहाँ से वह अपने घर निकल गयी। रात को उसने बताया ज़रूर कि यह उसकी जिंदगी का अब तक का सबसे बेहतरीन तजुर्बा था और इसके लिये उसने मेरा शुक्रिया अदा किया।

मेरी यह कहानी यहीं पर समाप्त होती है

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