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अधूरी ख्वाहिशें - Adhuri Khwahishen Part - 1

 



मैं मूलतः भोपाल का रहने वाला हूँ लेकिन पिछले तीन साल से लखनऊ में जमा हुआ हूँ और अब तो यहाँ मन ऐसा लग चुका है कि कहीं जाने का दिल भी नहीं करता।
तो इस बीच गुज़रे वक़्त में से जो पहला किस्सा मैं अर्ज़ करूँगा वो एक ऐसी खातून से जुड़ा है, जिनके सऊदी में रहने वाले शौहर आरिफ भाई से मेरी दोस्ती किसी दौर में फेसबुक पर हुई थी।

यह दोस्ती सालों से थी लेकिन इसकी तरफ ध्यान तब गया जब एक दिन आरिफ भाई को मेरी मदद की ज़रूरत पड़ी। असल में मैंने पहले कभी इस बात पे ध्यान ही नहीं दिया था कि वे लखनऊ के ही रहने वाले थे और जिस टाइम मैं दिल्ली से लखनऊ शिफ्ट हुआ हूँ, ठीक उसी वक़्त में वे वापस सऊदी गये थे।

एक दिन उन्होंने मुझसे अर्ज की थी कि मैं उनकी बीवी रज़िया की थोड़ी मदद कर दूँ, क्योंकि उनके पीछे घर में जो माँ बाप थे, वे कोर्ट कचहरी करने की सामर्थ्य नहीं रखते थे और जो उनका छोटा भाई था वो किसी ट्रेनिंग के सिलसिले में बंगलुरु गया हुआ था।

दरअसल उनका एक बच्चा था जिसके एडमिशन के लिये बर्थ सर्टिफिकेट बनवाना था और इसमें कई झंझट थे जो कि उनकी बीवी के अकेली के बस की बात नहीं थी।
उन्होंने रज़िया का नंबर दिया और अपने घर का पता बताया.. हालाँकि यह झंझटी काम था और मैंने सोचा था कि चला जाता हूँ लेकिन किसी बहाने से टाल दूंगा।

पता सिटी स्टेशन की तरफ मशक गंज का था.. पूछते पुछाते किसी तरह मैं उनके घर तक पहुंचा।

डोरबेल बजाने पर सामना आरिफ भाई के वालिद से हुआ, मैंने उन्हें सलाम किया तो जवाब देते हुए उन्होंने अन्दर बुला लिया। शायद आरिफ भाई उन्हें बता चुके थे।
ड्राइंगरूम में बिठा कर वे मेरे बारे में पूछने लगे.. थोड़ी देर बाद चाय नाश्ता लिये रज़िया भी आ गयी। मैंने हस्बे आदत गहरी निगाहों से उसका अवलोकन किया।

चौबीस-पच्चीस से ज्यादा उम्र न रही होगी उसकी.. फिगर ठीक ठाक थी, तगड़ी तंदरुस्त थी। नाक नक्शा उतना अच्छा नहीं था लेकिन जो ख़ास बात थी उसमे, वो यह कि वो खूब गोरी, एकदम झक सफ़ेद थी और उसकी तवचा भी काफी चिकनी थी।

नाश्ते की ट्रे रखते हुए उसकी निगाह मुझसे मिली थी और एक लहर सी मेरे शरीर में गुज़र गयी थी। कुछ तो था उसकी निगाह में.. जो मैं समझ नहीं पाया।

बहरहाल आगे यह तय हुआ कि चूँकि मैंने भी कोर्ट कचहरी की दौड़ पहले नहीं लगायी तो मैं बहुत ज्यादा मददगार तो नहीं हो सकता लेकिन अगर वे चाहें तो अपने तौर पर जो हो सकता है, मदद ज़रूर कर दूंगा। कल वे खुद साथ चलें कचहरी और वहां देखते हैं कि क्या हो सकता है, तब तक मैं पता भी कर लेता हूँ कि यह किस तरह हो पायेगा।

और अगले दिन मैंने रज़िया को सिटी स्टेशन के पास से पिक किया।

कचहरी केसरबाग में थी जो ज्यादा दूर नहीं था। रज़िया ने खुद को नकाब से ढक रखा था और इस सूरत में बस उसकी आँखें ही दिखाई दे रही थीं।

कचहरी में पूरा दिन खर्च हो गया.. वकील से एफिडेविट बनवाया, चालान बनवाया और जनसुविधा केंद्र में उसे पास कराने में आधे दिन से ज्यादा निकल गया। खाना वहीं बाहर फुटपाथ पे खाया.. तत्पश्चात चालान जमा कराया और फिर सारे कागज़ एसडीएम के पास मार्क कराने ले गये तो फार्म लेके कल आने को बोल गिया गया।

इसके बाद मैंने रज़िया को जहाँ से पिक किया था, वहीँ छोड़ दिया और घर चला आया।

पहले मेरा इरादा काम को टालने का था लेकिन अगर इस बहाने एक औरत के करीब रहने को मिल रहा था तो यह किया जा सकता था, यह सोच कर मैंने आज आधे दिन छुट्टी तक करनी गवारा कर ली थी। अब तो कल भी छुट्टी होनी थी.. दिन भर मैंने रज़िया से बात करने की कोशिश की थी लेकिन वो बंद गठरी बनी रही थी।

हालाँकि ऐसा भी नहीं था कि मुझे उससे कोई ख़ास उम्मीद रही हो लेकिन ये मरदाना फितरत है कि आप नज़दीक आई हर औरत में स्वाभाविक रूप से दिलचस्पी लेने लगते हैं।

अगले दिन फिर मैंने उसे वहीं से पिक किया और सीधे एसडीएम ऑफिस पहुंचा जहाँ से थोड़े खर्चे पानी की एवज में कागज़ लेके वापस वकील के पास पहुंचे तो उसने जमा कराने भेज दिया।
दोपहर तक फ़ार्म सबमिट हो गया।

“मुझे थोड़ा काम है।” वापसी में उसने बाइक पर बैठने से पहले ही कहा।
मैंने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसे देखा तो उसने आगे कहा- मुझे गोमती नगर जाना है।
मुझे क्या ऐतराज़ होता.. मैं उसे ले के चल दिया।

रास्ता मैंने बटलर रोड का चुना था.. लेकिन बैकुंठ धाम से पहले ही उसने एक जगह बाइक रुकवा ली, जहाँ से नीचे उतर कर गोमती के किनारे जाया जा सकता था।

“यहाँ!” मुझे चौंकना पड़ा- यहाँ क्या कोई मिलने आने वाला है?
“नहीं.. बस अकेले होने का जी चाह रहा था। हमारे नसीब में अकेला होना कहाँ नसीब… आज मौका था तो सोचा कि थोड़ा वक़्त यूँ भी सही। घर पे तो बोल के ही चले थे कि शाम हो जायेगी कल की तरह, तो कोई परेशानी भी नहीं।”
“पर यहाँ यूँ अकेले बैठना सेफ रहेगा भला? और यहाँ से वापस कैसे जायेंगी.. यह जगह भी तो ऐसी नहीं की कोई सवारी का साधन मिल जाये।”

“मतलब आप मुझे वाकयी अकेला छोड़ कर जाने वाले हैं?” कहते हुए उसने गहरी नज़रों से मुझे देखा और मेरा दिल जोर से धड़क कर रह गया। मैंने चुपचाप थोड़ा नीचे उतार कर बाइक स्टैंड पे टिकाई और उसके साथ नीचे बढ़ लिया।
नीचे कोई बैठने की जगह तो थी नहीं.. बस हरियाली थी, पेड़ थे और नदी किनारे बनी कंक्रीट की पट्टिका थी, जिस पर हम विचरने लगे।

“चुप रहने के लिये तो यह तन्हाई तलाशी न होगी।” मैंने उसे छेड़ने की गरज से कहा।
उसने सवालिया निगाहों से मुझे देखा.. फिर मेरा मंतव्य समझ कर चेहरा घुमा लिया। यहां भी उसने चेहरा कवर कर रखा था और मैं बस उसकी आंखें देख सकता था।

“कैसे जानते हैं आप आरिफ को?”
“फेसबुक से.. कभी जब फेसबुक पर ग्रुपबाजी होती थी तब हम एक ही ग्रुप में थे। बस तभी से दोस्ती है। मैं तब दिल्ली रहता था.. इत्तेफाक से जब वे इस बार सऊदी गये, मैं ठीक उसी वक्त लखनऊ शिफ्ट हुआ था तो मुलाकात न हो सकी।”
“मुझे नहीं पता था… मुझे लगा स्कूल कालेज के टाईम के दोस्त रहे होगे।”

“आप बताइये कुछ अपने बारे में।”

“मैं मलीहाबाद से हूँ.. आरिफ भी बेसिकली वहीं के हैं। बाद में इधर बस गये तो हमारा यहां रहना हो गया लेकिन सभी नजदीकी रिश्तेदार मलीहाबाद में ही रहते हैं।”
“कभी कभार मर्द की जरूरत वाले काम पड़ने पर काफी मुश्किल होती होगी।”
“हां अब हो जाती है। पहले अब्बू ठीक ठाक थे और आसिफ भी पढ़ रहा था तब कोई दिक्कत नहीं थी, लेकिन अब अब्बू गठिया की वजह से ज्यादा चल फिर नहीं पाते और आसिफ अब नौकरी के चक्कर में पड़ गया है।”

“तो वह अब यहां नहीं रहता?”
“फिलहाल तो रहता था, पर अब शायद मुश्किल हो। नौकरी उसकी नोएडा में लगी है.. अभी एक महीने की ट्रेनिंग पर बंगलुरू गया है, वापस आयेगा तो शायद नोएडा ही रहना पड़ेगा।”
“और मान लीजिये कोई मेडिकल इमर्जेंसी हो जाये तब?”

“पड़ोसी ही काम आयेंगे, थोड़े बहुत काम या वक्त जरूरत के लिये पड़ोसियों से बना के रखनी पड़ती है और उनकी उम्मीद भी बनी रहती है।”
“उम्मीद.. कैसी उम्मीद?” मैं उलझन में पड़ गया।
“आप के परिवार में कौन-कौन है?” उसने बात काट दी।

“दो भाई बहन हैं पर यहां कोई नहीं, सब भोपाल में रहते हैं। मैं अकेला रहता हूँ यहां.. यहीं नौकरी करता हूँ एक मोबाइल कंपनी में। शादी कब हुई आपकी?
“छः साल हो गये.. तीन साल बाद बेटा हुआ। अब उसके भी स्कूल का टाईम आ गया।”

बस ऐसे ही रस्मी बातें.. कुछ भी खास नहीं। ऐसा लगा जैसे वह अपना बताना कम और मेरा जानना ज्यादा चाहती हो।

मैं भी घाघ आदमी हूँ.. मैंने महसूस कर लिया था कि शायद वह परखना चाहती है कि मैं भरोसे के लायक हूँ या नहीं.. और मैं भी उसी नीयत से सधे हुए जवाब देता रहा।

इस बीच वक्त को चलाती सुइयों ने दो घंटे पार कर लिये और यूँ चल फिर करते बदन में थकन भी आ गयी तो हम वापस हो लिये।
मैं उसे वापस सिटी स्टेशन के पास छोड़ कर घर चला आया।

इस बात को फिर चार दिन गुजर गये, मेरी रजिया से कैसे भी कोई बात नहीं हुई। हालाँकि इस बीच मेरा दिल कई बार चाहा कि उसे फोन करूँ, लेकिन हर बार इस आशंका ने रोक लिया कि कहीं वह मेरे सब्र और परिपक्वता को आजमाने की फिराक में न हो।

फिर पांचवे दिन बृहस्पतिवार रात को उसका फोन आया, जब मैं हस्बे दस्तूर नेट सर्फिंग में रत था। फोन बजा था, लेकिन जब तक मैं उठाता.. कट गया था।
मैंने काल बैक की।
“हलो।” पांच दिन बाद उसकी आवाज सुनाई दी।
“हाँ सॉरी.. आपकी कॉल मिस्ड हो गयी।”

“अं.. नन-नहीं.. वह गलती से लग गयी थी।” उसकी आवाज़ से ऐसा लगा जैसे हिचक रही हो, घबरा रही हो।

जबकि इस गलती को मैं उससे बेहतर महसूस कर सकता था। उससे बेहतर समझ सकता था। मैंने पूरी शालीनता के साथ जवाब दिया- जी मैं समझ सकता हूँ।
“क्या?” वो कुछ चौंक सी गयी।
“बस यही.. कि इंसान अगर इस कदर अकेला हो कि उसके पास बात करने वाला भी कोई न हो तो उसके साथ ऐसी गलतियों की सम्भावना बनी रहती है।”
“नन… नहीं.. आप गलत समझ रहे। मेरे पास बात करने के लिये बहन है और सहेलियां भी हैं।” ऐसा लगा जैसे कहते हुए उसके कंठ में आवाज़ फँस रही हो।

“जी इस तरह सभी के पास होते हैं लेकिन हर किसी से इंसान अपनी तड़प नहीं कह सकता, अपनी हर तकलीफ नहीं ब्यान कर सकता.. और खास कर बहन से तो बिलकुल नहीं।”
“मैं समझी नहीं। कैसी तकलीफ?”
“तकलीफ अपने अरमानों की… तकलीफ अपने हाथ से रेत की तरह फिसलते जवानी के उस वक़्त की जो एक बार गुज़र गया तो फिर कभी वापस नहीं आता।”
इस बार उससे कुछ बोलते न बना।

“ऐसा नहीं कि मैं समझ नहीं सकता कि आप किस ज़हनी कशमकश के दौर से गुज़र रही हैं। आप कहना भी चाहती हैं लेकिन आपकी तहजीब और आपके संस्कार आपको रोक भी रहें। मैं फिर भी समझ सकता हूँ कि उस औरत के दिल पर क्या गुज़रती है जिसका पति उसे राशन की तरह मिलता हो.. दो तीन साल में एक बार। कुछ मुख़्तसर वक़्त के लिये।”

“ऐसी बात नहीं।” वह एकदम बुझे और हल्के स्वर में बोली जैसे खुद से हार रही हो।

“मेरी बात होती है आरिफ से.. मिस्री, सूडानी, चीनी, रशियन, फ्रेंच, अमेरिकन कोई बची नहीं है भाई से। हर वीक विजिट करते हैं लेकिन आपका क्या? आपको सब्र ही करना है.. ऐसा नहीं है कि यह कोई अकेले आपकी समस्या है जो आप छुपा लेंगी या मुझे बातों से बहला देंगी.. यह उन सारी औरतों का दर्द है जिनके शौहर विदेश में कहीं पैसे कमाने में खपे हुए हैं..
और उनकी बीवियां यहाँ खुद को सब्र के पहाड़ के तले दबाये दिन गिनती रहती हैं। वे नहीं रोक पाते खुद को.. ऐसे हर मकाम पे, जहाँ नौकरियों के लिये लोग जाते हैं, उनकी जिस्म की ज़रूरतों के मद्देनज़र इंतजामात रहते ही हैं लेकिन पीछे औरतों के लिये कोई इंतजाम नहीं।
उनकी ज़रूरतों को समझता ही कौन है.. ध्यान देता ही कौन है? उससे यही उम्मीद रहती है कि वो अपने जज़्बात को दफ़न कर ले। अपने जवानी की गर्माहट से भरपूर वजूद को बर्फ की सिल बना ले और अपनी उम्र के सबसे सुनहरे दौर को यूँही गुज़र जाने दे।”

“प्लीज़.. चुप हो जाइये।” उसने दबाने की कोशिश की लेकिन उसकी आवाज़ ने उसकी सिसकी ज़ाहिर कर दी।
“डरिये मत, झिझकिये मत.. मेरे सीने में बड़े बड़े राज़ दफ़न हैं। जो कहना चाहती हैं खुल के कहिये.. आप बेशक मुझे अपना वह दोस्त समझ सकती हैं जिससे आप पूरी सेफ्टी के साथ जैसी चाहें बात कर सकती हैं।”

“मैं नहीं समझ पाती.. मुझे क्या बात करनी चाहिये।” मुझे लगा, वो मुझ पर भरोसा कर रही है।
“कोई बात नहीं.. चलिये मैं ही बात करता हूँ। आप बस जवाब देते रहिये.. ठीक है?”
“ठीक है।” उसने समर्पण कर दिया।

“अच्छा बताइये, शादी से पहले कभी सेक्स किया था क्या आपने या सीधे शादी के बाद ही शुरुआत हुई?”
पर वह चुप रह गयी।

“आप शायद इसलिये चुप हैं कि ये आपकी जिंदगी से जुड़ा सीक्रेट है और किसी अजनबी के सामने इस बारे में बात करना आपको ठीक नहीं लग रहा, लेकिन यकीन कीजिये मुझे आपको कभी भी, कैसे भी ब्लैकमेल करने में दिलचस्पी नहीं और दूसरे मैं आपको अपना कोई राज़ पहले बता देता हूँ जिससे आप मुझ पर यकीन कर सकें।”
“कैसा राज़?”

मैंने फिर उसे बताया कि मैं Sex कहानियाँ भी लिखता हूँ, वो चाहे तो पढ़ सकती है। उसके कहने पे मैंने उसके व्हाट्सअप पे लिंक भी भेज दिया.. पर अब उसे इस बात का संशय हो गया की कहीं मैं उसकी कहानी भी तो नहीं लिख दूंगा, तो मैंने उसे इस बात का यकीन दिलाया कि मैं अगर लिखूंगा भी तो कोई यह नहीं समझ पायेगा कि यह कहानी उसकी है।

लेकिन वह बाद की बात थी, फिलहाल जैसे तैसे उसे यकीन हो पाया कि मैं उसके राज़ को राज़ ही रखूँगा तब आगे बात करने पर राज़ी हुई।
“मेरा पिछला सवाल अभी अधूरा है भाभी जान!”
“कौन सा सवाल?”
“शादी से पहले सेक्स वाला।”

“हाँ किया था.. मैं जिस तरह के माहौल में रही थी वहां इससे बच पाना मुश्किल था और मुझे इस बात का डर भी था कि यह बात मेरे शादीशुदा जीवन पे पता नहीं क्या असर डालेगी, लेकिन उन्होंने इस बात पे यकीन कर लिया था कि मुझे हस्तमैथुन की आदत थी।”

“मैं समझ सकता हूँ.. ये और ज्यादा तकलीफ पैदा करने वाली बात हुई कि जिस मज़े से आप अनजान नहीं थीं और शायद आदी थीं, वो आपको यूँ किश्तों में मिल पा रहा है।”

“हम्म.. कभी-कभी इतना परेशान हो जाती हूँ कि बीच रात में उठ कर पानी में बर्फ डाल कर नहाती हूँ, फिर भी चैन नहीं पड़ती।”
“कभी कोई रास्ता बनाने की कोशिश नहीं की?”
“बहुत मुश्किल है जॉइंट फैमिली में। चार छ: महीने में जब मायके जाती हूँ तब थोड़ी राहत मिल पाती है, यहाँ तो फिर वही। फिर वही बिस्तर, फिर वही करवटें, फिर वही गर्म साँसें.. कैसे समझाऊं, किसे समझाऊं कि जब मर्द पास नहीं होता तो कैसा महसूस होता है उसकी जवान बीवी को।”

“बहुत सी औरतें इसका इलाज ढूंढ लेती हैं.. आप भी ढूंढ लीजिये। इसके सिवा और कोई रास्ता नहीं.. धीरे-धीरे जो जवानी आप आरिफ मियां के पीछे फूँक डालेंगी, वह फिर कभी वापस नहीं आनी और आरिफ भाई का क्या है, वे तो सब मज़े ले ही रहे हैं.. जैसे बाहर रहने वाले सभी मर्द लेते हैं।”
इस बार वह चुप रह गयी।

“एक बात पूछूं?”
“क्या?”
“मैंने आपको देखा है और देखने के बाद से दिमाग में एक सवाल चक्कर काट रहा है, अगर उसका जवाब मिल जाये तो मुझे भी सुकून मिल जाये।”
“क्या?”
“आप एकदम गोरी हैं.. एकदम सफ़ेद.. उस हिसाब से आपके निप्पल कैसे होंगे? काले या ब्राउन?”
“क्या.. कैसी बात कर रहे हैं आप?” वह एकदम से भड़क गयी और उसने फोन काट दिया।

मुझे लगा गड़बड़ हो गयी.. शायद मैंने जल्दी कर दी। मुझे अपनी जल्दबाजी पे अफ़सोस होने लगा और सॉरी बोलने के लिये मैंने वापस फोन किया, लेकिन उसने उठाया ही नहीं तो वहाट्सअप पे ही सॉरी बोल के अपनी ग्लानि ज़ाहिर की और अपनी हार का ग़म मनाता सो गया।
सुबह उठा तो उसका मैसेज पड़ा था जो उसने रात तीन बजे किया था।
“ब्राउन!“

जिसे पढ़ कर मेरा स्ट्रेस जाता रहा था और नीचे मैंने बस इतना लिख दिया था कि ‘मुझे भी यही लगा था।’
बहरहाल, यह पहली बाधा थी जो उसने सफलतापूर्वक पार कर ली थी और मैं आज के लिये इतने पर ही खुश था।

दिन गुजर गया.. रात में उसने मैसेज किया कि फिलहाल व्हाट्सअप पे ही बात करो, उसे जरूरत महसूस होगी तो वह कॉल कर लेगी।

फिर उसने बताया कि उसे मेरे यूँ एकदम से पूछने पे खराब तो लगा था लेकिन फिर तीन बजे तक वह  मेरी कहानियाँ पढ़ती रही थी और अंत में उसे लगा था कि सवाल उतना भी बुरा नहीं था और वह जवाब दे सकती थी।

मैं कहानियाँ पढ़ने के बाद की उसकी मानसिक अवस्था बेहतर समझ सकता था।

उसने गौसिया की कहानी एक्चुअल रूप में जाननी चाही ताकि कहानी के हिसाब से उनके बीच छुपाव के लिये आजमाये गये एहतियाती कदमों को परख सके.. तो मैंने उसे नाम, जगह और संबंधित एक्टिविटीज बदल कर सुना दी, जिससे गौसिया की आइडेंटिटी कहीं से भी जाहिर न हो।

वह मुतमइन हो गयी.. जबकि हकीकत यह थी कि सच वह भी नहीं था। मेरी नजर में सच की जरूरत भी उसे नहीं थी और न ही किसी पढ़ने वाले को होनी चाहिये क्योंकि कहानी का उद्देश्य मात्र मनोरंजन होता है और हर पढ़ने वाले के लिये वही मुख्य होना चाहिये।

वह निश्चिंत हो गयी तो उसे बातचीत की पटरी पर लाना आसान हो गया.. जो कहानियाँ छप चुकी थीं, उनके सिवा भी मैं रात दो बजे तक उसे अपनी निजी जिंदगी के बारे बताता रहा।

खासकर उन बातों को जो सेक्स से जुड़ी थीं.. जिनमें अंतरंगता भी थी और अश्लीलता भी थी।

मैंने यह खास इसलिये किया था कि वह पढ़ते-पढ़ते बहने लगे। उसकी दिमागी रौ को डिस्टर्ब न करने के उद्देश्य से मैंने उसका कुछ भी नहीं पूछा और बस सहज भाव से अपनी ही बताता रहा।

दो बजे जब आंखें और उंगलियां थक गयीं तब उससे विदा ली.. मुझे अंदाजा था कि उसके लिये सोना कितना मुश्किल रहा होगा। जबकि मेरी सेहत पर इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ना था क्योंकि मैं उसकी तरह तरसा नदीदा नहीं था, बल्कि खाया पिया और अघाया हुआ था।

मैं परिपक्व था.. मैं सब्रदार था, मेरा खुद पर नियंत्रण था, मुझे जल्दबाजी की आदत नहीं थी। मुझे धीमी आंच पे पके व्यंजन का जायका पता था।

अगली रात मैंने उससे अर्ज़ की.. कि अब मैं उसकी बातें जानना चाहूँगा, उसके पहले सहवास के बारे में.. उसके खास यादगार लम्हों के बारे में। अगर वह लिख सकती है इतना, तो लिखे या बताना चाहे तो मैं कॉल कर सकता हूँ।

लिखा हुआ रिकार्ड बन जाता है, जो मुझे पता था कि वह नहीं चाहेगी.. हालाँकि बातचीत भी रिकार्ड की जा सकती है, लेकिन वह अक्सर लोग तब करते हैं जब इरादे ही नेक न हों।

जबकि उसने पूछा कि इससे क्या होगा? क्या उसकी समस्या का समाधान हो पायेगा.. या उसकी सुलगती अधूरी ख्वाहिशों को कोई किनारा मिल पायेगा?
तब मैंने उसे समझाया कि सेक्स सिर्फ शारीरिक लज्जत के लिये ही नहीं होता, दिमागी सुकून के लिये भी होता है और दुनिया में बहुत से ऐसे लोग मिल जायेंगे जो किसी विपरीत लिंगी से सिर्फ सेक्स चैट करके, उसे छूकर, अपनी गोद में बिठा भर के या कुछ पल अंतरंग हो कर ही सेक्सुअल सैटिस्फैक्शन यानि यौन सन्तुष्टि पा लेते हैं।

यह भी कुछ ऐसा है.. अगर वह बतायेगी तो शायद गुजरे वक्त से निकल कर वह एक-एक लम्हा वापस जिंदा हो उठे जिसने उसे कभी माझी में वह भरपूर लज्जत बख्शी थी, जिसके लिये उम्र के इस मकाम पर आज उसे तरसना पड़ रहा है।
और यह उसके लिये कम संतुष्टि की बात नहीं होगी.. यह अपने अंतरंग पलों को किसी और के बहाने वापस जी लेने जैसा अनुभव देगा, जिसकी उसे इस वक्त सख्त जरूरत है।

वह सोच में पड़ गयी.. फिर इतना ही पूछ पाई कि क्या यह गलत नहीं होगा?
मैंने समझाया.. क्यों गलत होगा भला? सेक्स को क्यों हम एक टैबू मान कर चलते हैं। क्या यह हमारे जीवन से जुड़ा सबसे अहम घटक नहीं?

पूर्व के समाज ने इसे टैबू बनाया हुआ है और बावजूद इसके धड़ाधड़ आबादी बढ़ा रहा है और सौ में से नब्बे लोग इन समाजों में यौनकुंठित और दुखी ही पाये जाते हैं। जबकि पश्चिमी सभ्यता में यह रोज के खाने पीने जैसा आम व्यवहार है और वे सेक्स को खुल कर जीते हैं और पूर्व के मुकाबले वे ज्यादा खुश और खुशहाल होते हैं।

यह हमारी बौद्धिक समस्या है कि हमने अपनी जरूरतों से इतर सही-गलत नैतिक-अनैतिक के मर्दाने पैमाने गढ़ रखे हैं.. और यह जरूरतों के आगे समर्पण ही है कि पूरा समाज दोगलेपन के मापदंडों पर खरा उतरता है।

मेरी बातों का उसपे सकारात्मक असर पड़ा और वह इस बारे में बात करने के लिये तैयार हो गयी।
मैंने उसे समझाया कि ईयरफोन के सहारे बोलते हुए वह आंखें बंद करके वापस उसी वक्त में पंहुच जाये और एक-एक बात को यूँ याद करे, जैसे वह सब फिर से उसके साथ गुजर रहा हो।
उसने ऐसा ही किया।

और अब आगे जो भी आप पढ़ेंगे, वह लिख मैं रहा हूँ लेकिन शब्द रजिया के हैं।

मैं यानि रजिया मलीहाबाद के एक बड़े से पुश्तैनी घर में रहने वाली तीन भाइयों की संयुक्त परिवार का हिस्सा थी.. मेरे वालिद सबसे छोटे थे भाइयों में और हम तीन बहन और एक भाई थे, मेरा नंबर सबसे आखिर में था।
जबकि सबसे बड़े अब्बू के परिवार में तीन बेटे और उनसे छोटे तुफैल चाचा के परिवार में एक बेटा और एक बेटी ही थे। यानि तीन भाइयों के परिवार में पांच लड़के और तीन लड़कियाँ थीं।

बड़े अब्बू के बेटे चूँकि मुझसे काफी बड़े थे तो उनके दो बेटों की शादी हो चुकी थी और बड़े भाइजान का एक बच्चा भी था, जबकि तुफैल चाचा के सना और समर हमारे साथ के ही थे।

खेलकूद के साथ गुजरते बचपन के पार अपनी योनि की ओर मेरा ध्यान पहली बार तब गया था जब मेरी माहवारी शुरू हुई थी। अम्मी को बताया तो उन्होंने शाजिया अप्पी, जो मुझसे चार साल बड़ी थीं.. के पास भेज दिया और उन्होंने मुझे न सिर्फ साफ किया, बल्कि माहवारी के बारे में बता कर पैड भी लगाने को दिया।

फिर उन खास दिनों में ही योनि की तरफ ध्यान नहीं जाता था बल्कि कभी-कभी वहां हाथ लगता या अपने अर्धविकसित स्तनों पर हाथ लगता तो कई मादक सी लहरें पूरे जिस्म में दौड़ जाती थीं।
तब इसका कोई मतलब तो समझ में नहीं आता था लेकिन बस अच्छा लगता था और अच्छा लगता था तो कभी दोपहर में जब बाकी लोग सोने की मुद्रा में हों तो खुद को सहला या रगड़ लेती थी।

यूँ तो रात को मेरा सोना मुझसे बड़ी बहन अहाना के साथ ही होता था, लेकिन कभी अकेले सोने का मौका मिल जाता तो काफी रात तक खुद को सहलाती रगड़ती थी। या फिर अक्सर तो नहीं लेकिन कभी कभार नहाने में वक्त और मौका मिल जाता था तो खुद से छेड़छाड़ कर लेती थी।

बाथरूम में नल नहीं लगा था, बाहर लगा था जिससे पाईप के सहारे अंदर तसला पानी से भर लेते थे और उस पानी से नहाते थे लेकिन मौका मिलने पे मैं उस पाईप को दबा कर प्रेशर से पानी या तो अपने निप्पल्स पर मारती थी या फिर अपनी योनि पर..
इससे एक नशा सा चढ़ता था और अजीब से मजे की प्राप्ति होती थी।

इस बारे में हालाँकि मैंने कभी किसी और से बात नहीं की.. क्योंकि मुझे लगता था कि यह गलत है और किसी से कहने में मेरी ही बेइज़्ज़ती है। उस वक़्त मुझे कोई ऐसा कंटेंट भी उपलब्ध नहीं था और न ही तब कोई स्मार्टफोन और नेट हमें उपलब्ध था, जिससे मुझे इस सब के बारे में पता चल सकता।
और न ही कोई बताने वाला था।

फिर यूँ ही दो साल और गुज़र गये… मैं हाई स्कूल में पहुँच गयी लेकिन तब तक मुझे कभी किसी परिपक्व लिंग के दर्शन नहीं हुए थे।

एक दिन स्कूल से वापसी में रास्ते में एक पागल दिखा, जिसके कपड़े फटे हुए थे और वो सड़क किनारे बैठा अपनी फटी पैंट से अपना लिंग बाहर निकाले सहला रहा था। वह मेरी जिंदगी में देखा पहला मैच्योर लिंग था.. हालंकि वो उस वक़्त पूरी तरह तनाव में नहीं था लेकिन फिर भी खड़ा था।

और फिर कई दिन तक वो अर्धउत्तेजित लिंग मेरे दिमाग में नाचता रहा और मेरे होंठों को खुश्क करता रहा.. वह कला सा गन्दा, घिनावना लिंग था लेकिन जाने कौन सा आकर्षण था उसमे कि मेरे दिमाग से निकलता ही नहीं था।

वह पागल तो कई बार दिखा लेकिन फिर कभी उसका लिंग न दिख पाया.. लेकिन इसका एक बुरा असर मेरे दिमाग पर यह पड़ा कि मेरी बेचैन निगाहें हर मर्द में उनकी जाँघों के जोड़ पर लिंग का उभार तलाशने लगीं और दिमाग इस कल्पना में रत हो जाता कि वह कैसा होगा।

यहाँ तक कि मैं अपने घर के सभी चचेरे भाइयों के लिये भी उसी तरह सोचने लगी और नज़रें बचाते हुए उनकी जांघों के जोड़ पर मौजूद उभार को देखने और महसूस करने में लगी रहती।
मैं जानती थी कि यह गलत है और खुद को बाज़ रखने की कोशिश भी भरसक करती लेकिन कामयाब तभी तक रह पाती, जब तक कोई मर्द सामने न हो।
खासकर तब मेरा ध्यान उनकी तरफ और जाता था जब वे लोअर पहन कर घर में फिर रहे होते।

और ऐसा भी नहीं था कि यह सब अकारण था, बल्कि इसके बीज तो मेरे अवचेतन में बचपन से रोपे जा चुके थे.. जो तुफैल चाचा की बीवी थीं, यानि सना और समर की अम्मी, उनका कैरेक्टर भी अजीब था, वो अक्सर मायके चली जाती थीं और घर में अक्सर होते झगड़े से मुझे पता चलता था कि वे अपने किसी यार से मिलने जाती थीं।

कई बार उन्हें इधर-उधर पकड़ा भी गया था और काफी उधम चौकड़ी भी मचती थी लेकिन उन पर कोई असर पड़ता मैंने नहीं देखा था.. हाँ अब ढलती उम्र में शायद उनके शौक कमज़ोर पड़ चुके थे।

उनके सिवा बड़े अब्बू की फैमिली में खुद बड़े अब्बू ही एक नंबर के अय्याश इंसान थे, जिनके किस्से जब तब सामने आते थे। बहु पोते वाले हो कर भी कोई उनकी रखैल थी, उसके पास रातें गुजरने से बाज़ नहीं आते थे।

और ठीक इसी तर्ज़ पर मेरी अम्मी भी थीं.. मेरे अब्बू सऊदी में रहते थे तो उनके एक खास दोस्त थे ज़मीर अंकल, अब्बू के कहने पे घर के हाल चाल और वक़्त ज़रुरत मदद के लिये आते रहते थे।

लेकिन यह बाद में मुझे अहसास हुआ कि वे अकेले में मौका पाते ही मेरी अम्मी के शौहर की भूमिका भी निभा लेते थे, इस बात पर भी घर में कई बार बवाल हुआ था लेकिन चूँकि सबके खुद के कारनामे काले थे तो ऐसे में नैतिक ठेकेदारी कौन लेता।

तब मुझे इस बात का कोई अंदाज़ा नहीं था लेकिन बाद में अहसास हो गया था कि मैं दरअसल उनकी ही औलाद थी, वो हम चार भाई बहनों में सिर्फ मेरा खास ख़याल रखते थे और उन्होंने ही मेरी शादी भी अपने भतीजे यानि आरिफ से करायी थी।

इसके सिवा एक कांड और हुआ था घर में.. जो मैंने देखा तो नहीं था लेकिन जब घर में हो-हल्ला मचा तो सुना सब मैंने ज़रूर था।

बड़े अब्बू के तीन बेटे थे.. शाहिद, वाजिद, और राशिद, इनमें से शाहिद सबसे बड़े थे और एक दिन सबसे ऊपर के एक कमरे में वह और शाजिया अप्पी एकदम नंगे पकड़े गये थे.. ये बात और थी कि तब मुझे यह भी पता नहीं था कि शाजिया अप्पी वहां शाहिद भाई के साथ नंगी होकर क्या कर रही थीं।

तब मैंने उनसे पूछने की कोशिश भी की लेकिन उन्होंने मुझे डांट कर चुप करा दिया था। उस वक़्त बड़ी चिल्ल पों हुई थी और अप्पी की पिटाई भी हुई थी, जबकि शाहिद भाई तो घर से ही भाग गये थे और एक हफ्ते बाद लौटे थे।

खैर.. हम चारों में सुहैल सबसे छोटा था और एक दिन इत्तेफाक से मैंने उसे भी ऐसी ही हरकत करते देखा था जो मुझे काफी दिन तक कचोटती रही थी।

हमारे यहाँ बाथरूम की सिटकनी में थोड़ी प्रॉब्लम थी, उसे बंद करने के बाद साइड में घुमाया न जाये तो वो धीरे-धीरे नीचे आ जाती थी और यही शायद उस वक़्त भी हुआ था जब मैंने दरवाज़े पर धक्का लगाया तो खुल गया।

मुझे लगा अन्दर कोई नहीं था लेकिन सुहैल अन्दर था और उसी पागल की तरह अपने लिंग को अपने हाथ में पकड़े जोर-जोर से रगड़ रहा था।
एकदम से दरवाज़ा खुलने और मुझे सामने देख कर वो बुरी तरह चौंका, उसकी आँखें फैलीं लेकिन शायद वह जिस अवस्था में था उसमें खुद को रोक पाना उसके लिये नामुमकिन था और मेरे देखते-देखते उसके लिंग से जो सफ़ेद से द्रव्य की पिचकारी छूटी तो वो मेरे कुरते तक भी आई और मैं हैरानी से उसे देखने लगी.
जबकि वह अपने लिंग को अपने दोनों हाथों में दबाने छुपाने की कोशिश करता एकदम नीचे उकड़ू बैठ गया था।

“यह क्या है?” मैंने अपने कुरते पर आये सफ़ेद लसलसे पदार्थ को उंगली से छूते हुए कहा- क्या हो गया तुझे? और यह क्या है सफ़ेद-सफ़ेद?
“तुम जाओ.. तुम बाहर जाओ..” वह ऐसे याचनात्मक स्वर में बोला कि मुझे लगा वो बस अभी रो ही देगा।
“तुम ठीक तो हो… तुम्हें कुछ हुआ तो नहीं?” मैंने चिंताजनक स्वर में कहा।
“नहीं।” उसने रुआंसे होकर कहा।

मैंने न चाहते हुए भी खुद को बाथरूम से बाहर कर लिया और उसने उठ कर दरवाज़ा बंद कर लिया. शायद अन्दर खुद की सफाई पुछाई कर रहा था और फिर मेरे देखते-देखते निकल कर बिना कोई जवाब दिये भाग खड़ा हुआ।

मैंने वापस बाथरूम चेक किया तो कहीं कोई चिह्न नहीं दिखा था उस सफ़ेद पदार्थ का और मेरे कुरते पर भी जो था वो हल्का हो गया था.. तो मैंने उसे धोकर साफ़ कर लिया।

इस बात का ज़िक्र मैंने अहाना से किया तो उसने मुस्करा कर टाल दिया कि उसे इस बारे में नहीं पता था, लेकिन उसकी मुस्कराहट कहती थी कि उसे सबकुछ पता था।
बाद में मैंने सुहैल से फिर पूछा था लेकिन उसने फिर कोई जवाब नहीं दिया था।
बहरहाल बात आई गयी हो गयी।


फिर एक दिन बारिश के मौसम में…
रात में हम सब नीचे ही लेटते थे लेकिन कभी ठन्डे मौसम या बारिश का लुत्फ़ लेने के लिये कोई ऊपर भी जा के सो जाता था। ऊपर तिमंजिले पर बड़ा सा बरामदा था और तीन कमरे भी बने थे, जिसमें दो कमरे रहने सोने लायक थे तो एक कमरा स्टोर रूम की तरह यूज़ होता था।
अहाना मेरे साथ ही सोती थी, जबकि अप्पी को अम्मी शाहिद भाई वाले केस के बाद से ही अपने साथ सुलाने लगी थीं और सुहैल अलग अकेला कमरे में सोता था।

रात बारिश हो रही थी और मौसम काफी सर्द था जब करीब एक बजे मेरी नींद खुल गयी। अहाना अपनी जगह से गायब थी.. मुझे लगा बाथरूम गयी होगी पेशाब करने के लिये, लेकिन काफी देर के इंतज़ार के बाद भी जब वापस न लौटी तो मुझे फ़िक्र हुई।

मैंने उठ कर बाथरूम टॉयलेट चेक किया.. वह वहां नहीं थी। तो कहाँ गयी होगी.. अम्मी और सुहैल के कमरे में देखा.. वहां भी नहीं थी। पहले सोचा कि अम्मी को उठाऊं या जोर से आवाज़ देके देखू, लेकिन फिर सोचा क्यों किसी की नींद खराब करनी, खुद ही देख लेती हूँ पहले।

ऊपर दूसरी मंजिल पे भी बड़ा बरामदा और दो कमरे बने थे लेकिन वह खाली ही रहते थे और कभी कभार मेहमान आने पर ही आबाद होते थे.. अहाना वहां भी कहीं नहीं थी।

फिर ज़रूर बारिश का मौसम एन्जॉय करने ऊपर ही गयी होगी।

ऊपर बड़े से हिस्से में छत बारिश के पानी से भीग रही थी। जिधर सीढियां खुलती थीं, उधर ही बरामदा और तीनों कमरे थे। दोनों कमरे देखे लेकिन वह वहां भी नहीं नज़र आई तो मुझे फ़िक्र हुई.. कहाँ चली गयी थी? क्या चाचा की तरफ या बड़े अब्बू की तरफ चली गयी थी?

मैं अभी खड़ी-खड़ी सोच ही रही थी कि ऐसी आवाज़ हुई जैसे कोई कराहा हो.. मैं चौंक गयी। धड़कनें बेतरतीब हो गयीं। स्टोर रूम के सिवा कोई और जगह वहां ऐसी नहीं थी, जहाँ से यह आवाज़ आ सकती थी।
मैंने दरवाज़े पर जोर दिया.. पर वह अन्दर से बंद था। मतलब कोई अंदर था। मैंने कान लगा कर अंदर की आवाज़ सुनने की कोशिश की लेकिन बारिश के शोर की वजह से यह मुमकिन न हुआ।

खिड़की भी बंद थी.. क्या किया जा सकता था। मैंने वहां पड़े प्लास्टिक के ड्रम को देखा जो टांड़ पर चढ़ने के लिये वहां रखा रहता था.. उसे खिड़की के पास लगा कर ऊपर रोशनदान से अन्दर देखा जा सकता था।

वह कोई ख़ास वजनी नहीं था, मैंने उसे गोल घुमाते हुए खिड़की के पास एडजस्ट कर लिया और ऊपर चढ़ गयी.. हालाँकि किसी अनजानी आशंका से मेरा दिल कांप रहा था और मैं डर भी रही थी लेकिन इतना यकीन था कि यहाँ कोई बाहर वाला नहीं आ सकता था, जो भी था घर का ही था कोई।

लेकिन खिड़की दरवाज़ा बंद करके अन्दर कर क्या रहा था?

ऊपर से अंदर का दृश्य तो दिखा लेकिन कुछ खास नहीं.. हालाँकि परली साइड की खिड़की खुली हुई थी उस वक़्त और उससे बाहर की कुछ रोशनी तो अंदर आ रही थी लेकिन वहीँ खिड़की से सटे पड़े तख्त पर दो परछाईं के सिवा और कुछ देख पाना संभव नहीं था।

थोड़ी देर तक देखती, समझने की कोशिश में लगी रही लेकिन समझ में नहीं आया, दिल जोर-जोर से धड़कता रहा।

लेकिन इत्तेफाक से एकदम बिजली कड़की और कुछ पल के लिये एकदम दिन जैसी रोशनी हो गयी जिसमे सबकुछ साफ़-साफ़ देखा जा सकता था और मैंने देखा भी।

वह राशिद और अहाना थे और यह काफी नहीं था, खतरनाक यह था कि वे दोनों ही मादरज़ात नग्न थे और अहाना तख़्त पर चित लेती हुई थी अपनी दोनों टांगें फैलाए और राशिद उसके ऊपर लदा हुआ उसके वक्ष चूस रहा था और उसके नितम्ब ऊपर नीचे हो रहे थे जैसे वो अहाना के पेडू को दबा रहा हो।

उस कुछ पल की रोशनी में सिर्फ मैंने ही उन्हें नहीं देखा था, बल्कि मेरी दिशा में मुंह किये अहाना ने भी मुझे देख लिया था और जब अगली बार कुछ पल बाद बिजली चमकी तो मैंने दोनों को ही फक् चेहरा लिये अपनी ओर देखते पाया था।

मुझे वहां खड़े रहना ठीक न लगा और मैं नीचे उतर आई, लेकिन मैं अगले कदम का फैसला न कर पाई.. मेरे दिमाग में वही पुरानी बात हथौड़े की तरह बज रही थी कि शाहिद भाई और शाजिया अप्पी इसी जगह नंगे पकड़े गये थे।

और आज मैंने राशिद और अहाना को पकड़ा था.. क्या मुझे घर के बाकी लोगों को बुलाना चाहिये?

लेकिन इससे ज्यादा मुझ पर यह उत्कंठा भारी पड़ रही थी कि आखिर पहले या अब ये भाई बहन नंगे होकर क्या रहे थे?

इस कशमकश में कम से कम इतना वक्त तो गुजर गया कि राशिद अपनी लोअर पहनता बाहर निकल आया और बाहर अकेले मुझे देख ऐसा लगा जैसे उसकी जान में जान आई हो।

“तुम यहां क्या कर रही हो?” उसने धीरे से मेरा हाथ पकड़ते हुए कहा।
“अहाना को ढूंढ रही थी, पर तुम लोग कर क्या रहे थे.. क्या हो रहा है यह सब?” मैंने हाथ छुड़ाते हुए थोड़े तेज स्वर में कहा।

उसने घबरा कर इधर-उधर देखा.. बारिश और बादल का शोर बदस्तूर था। फिर उसने जीने के दरवाजे को बंद करके नीचे वहीं पड़ा अद्धा इस तरह फंसा दिया कि कोई उधर से खोलना चाहे भी तो खुल न सके।

“यह क्या कर रहे हो?”
“बताता हूँ।” उसने थोड़े इत्मीनान से कहा और फिर दूसरी साईड के जीने के दरवाजे के साथ भी यही किया.. फिर मुझे देखते हुए बोला- पहले ही कर लेना चाहिये था, लेकिन कई बार जल्दबाजी भारी पड़ जाती है। यहां आओ।

फिर वह मुझे पकड़ कर अंदर घसीट लाया जहां अहाना तख्त पर अब बैठ गयी थी और कपड़े भी उसने पहन लिये थे और डरी सहमी मुझे देख रही थी।
राशिद ने परली साईड की खिड़की बंद की, दरवाजा वापस बंद किया और बत्ती जला दी। मैं उन दोनों को ही घूरे जा रही थी.. उसने मुझे कंधे से पकड़ कर तख्त पर बिठा दिया और देखने लगा।

“अब पूछो.. क्या पूछना चाहती हो?” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
“आखिर तुम लोग यहां नंगे हो कर यह कर क्या रहे थे?”
“तुम्हें नहीं पता? तुम सच में जानना चाहती हो या घर में दूसरों को बता कर हमारी पिटाई कराना चाहती हो.. पहले यह फैसला कर लो।”

मैं सोच में पड़ गयी.. पिटाई का अंदेशा था तो जो वह कर रहे थे, जरूर वह गलत ही था, क्योंकि पहले शाहिद शाजिया के केस में भी इसीलिये तमाशा हुआ था।
लेकिन उस तमाशे से भी उसे उसके सवाल का जवाब कभी मिल नहीं पाया था और इस बार भी उम्मीद नहीं कि मिल जाये.. तब फिर?

“बताओ.. क्या कर रहे थे?” अंततः मैंने जानने में दिलचस्पी दिखाई।
“प्रॉमिस करती हो कि कभी किसी को कहोगी नहीं। न कहने और चुप रहने के और भी फायदे हैं जो बाद में सामने आयेंगे।”
“ओके.. नहीं कहूंगी। अब बताओ।”

“देखो.. तुम्हें पता है, जो तुम्हारी टांगों के बीच में जो सुसू करने के लिये मुनिया होती है, उसे पुसी कहते हैं।”
“तो?”
“जब लड़की जवान हो जाती है.. तो किसी-किसी टाईम उसकी मुनिया में अंदर की तरफ बड़े जोर की खुजली मचती है, इतनी तेज कि लड़की परेशान हो जाती है।”
“भक्क.. उल्लू न बनाओ, मुझे तो न हुई कभी ऐसी खुजली?”

“नहीं हुई तो होयेगी।” इतनी देर में पहली बार अहाना बोली, जिसके चेहरे पर अब राहत के भाव दिखने लगे थे- पर यह सबको ही होती है।
“लड़कों को भी?” मैंने सख्त हैरानी से कहा।

“और क्या.. लड़कों को भी। लड़कों की मुनिया बाहर निकली होती है तो वह उसे रगड़ कर खुजला सकते हैं लेकिन लड़की की मुनिया तो अंदर की तरफ होती है तो वह लड़कों की तरह नहीं खुजा सकती न।” राशिद ने आगे कहा।
“तत… तो क्या.. उस दिन सुहैल को भी वह खुजली हो रही थी जब..”
“और क्या.. वह खामखाह में अपनी मुनिया थोड़े रगड़ रहा था।” इस बार अहाना ने कहा।
“लल… लेकिन तब पूछा था तो क्यों नहीं बताया था।”

“क्योंकि तब ठीक से समझा नहीं सकती थी.. अब राशिद हैं तो डेमो दे के समझा सकते हैं।”
“हां क्यों नहीं.. देखो।”

और राशिद ने अपनी इलास्टिक वाली लोअर नीचे खिसका कर अपना लिंग बाहर निकाल लिया.. ठीक मेरे सामने और मैं बड़े गौर से उसे देखने लगी।
वह भी उस पागल की तरह अर्धउत्तेजित अवस्था में था.. लेकिन राशिद ने उसे हाथ से सहलाया तो वह एकदम टाईट हो गया। डेढ़ इंच की मोटाई रही होगी और छः से सात इंच के करीब लंबाई थी।

“देखो.. यह खुजली ऊपर मुनिया की टोपी से ले कर नीचे जड़ तक मचती है और यूँ हाथ से इसे ऊपर नीचे रगड़ना पड़ता है।” राशिद ने दो तीन बार हाथ चला के दिखाया।
“लेकिन सुहैल के जो सफेद-सफेद निकला था, वह क्या था?” मेरी उलझन अभी खत्म नहीं हुई थी- मुनिया से तो पानी जैसी पेशाब ही निकलती है, पर वह तो गाढ़ा सफेद?
“खुजली की जड़ तो वही होता है। देखो, जब हम जवान हो जाते हैं तब वह सफेदा हमारी मुनिया के अंदर बनने लगता है और जैसे ही वह थोड़ा सा इकट्ठा होता है, हमारी मुनिया में भयंकर खुजली पैदा होती है और जब तक हम उसे निकाल नहीं देते, हमें चैन नहीं पड़ता।”

“तुम भी निकालती हो?” मैंने ताज्जुब से अहाना को देखा।
“और क्या.. जिस दिन तुम्हें खुजली होनी शुरू होगी, तुम भी निकालोगी। तुम्हारे दिन भी आ गये अब।” उसने जैसे मजे लेते हुए कहा।
“तुम कैसे निकालती हो.. सुहैल तो अपने हाथ से अपनी मुनिया रगड़ रहा था, तुम कैसे रगड़ती हो?”

“यही तो परेशानी है कि लड़की कैसे रगड़े। ऐसे में उसे लड़के की जरूरत पड़ती है जिसकी मुनिया में भी खुजली हो रही हो।”
“फिर?” मैंने अविश्वास से दोनों को देखा।
“फिर क्या.. लड़का अपनी मुनिया लड़की की मुनिया में घुसा कर रगड़ता है, और फिर दोनों का सफेदा निकल पाता है, तब कहीं जा कर राहत मिलती है।”

“भक्क.. गंदे! उल्लू न बनाओ.. यह सब झूठ बक रहे हो। ऐसा हो ही नहीं सकता.. लड़की की मुनिया क्या मैंने देखी नहीं। मेरे पास भी है.. उसमें इतनी जगह ही नहीं होती कि लड़के की इतनी बड़ी सी मुनिया उसमें घुस जाये। तुम दोनों झूठ बोल रहे हो।


“अरे.. सुनो तो सही, तुम्हें यकीन नहीं न.. लेकिन ऐसा ही होता है, इसीलिये तो लड़का लड़की की शादी की जाती है कि वे अपने कमरे में जब भी उन्हें खुजली हो.. वह मिटा सकें।”
“शाहिद भाई और शाजिया अप्पी यही तो कर रहे थे जब पकड़े गये थे, लेकिन उनकी आपस में शादी नहीं हुई थी तो इसीलिये तमाशा बन गया।”
“मुझे यकीन नहीं।” मैंने अविश्वास भरे स्वर में कहा।
“अच्छा डेमो दे के दिखायें? क्योंकि इस समय भी मुझे और अहाना दोनों को बुरी तरह खुजली हो रही है।”
“दिखाओ।”

“चल अहाना.. रजिया को यकीन नहीं कि ऐसा होता है, इसे करके ही दिखा देते हैं।”
“ठीक है।”
उसने झट से कुर्ता उतारा, ब्रेसरी तो रात में पहनती ही नहीं थी और फिर झुक कर सलवार और पैंटी भी उतार दी।

“हाय.. तुम्हें शर्म नहीं आ रही.. राशिद भाई के सामने नंगी हो गयी एकदम? छी…” मुझे एकदम इतनी तेज शर्म आई कि चेहरा तक गर्म हो गया।

“तो पहन लूं कपड़े और तड़पती रहूं खुजली लिये।” अहाना ने मुंह बनाते हुए कहा।
“अरे तो सलवार खिसका के मुनिया खोल देती.. पूरी नंगी होने की क्या जरूरत थी?”

“मैं बताता हूँ। अभी समझ में आ जायेगा।” राशिद ने अपनी लोअर उतारते हुए कहा और खुद भी नंगा हो गया।

फिर उसने मेरे पास ही अहाना की दोनों टांगें पकड़ कर तख्त के किनारे खींच लिया और उन्हें फैला कर अपना लिंग उसकी मुनिया पर रगड़ने लगा।

मैंने गौर से अहाना की योनि देखते हुए खुद की योनि से उसकी तुलना की.. जाहिरी तौर पर तो वह एकदम मेरे जैसी ही थी। बहनें होने की वजह से यह समानता तो होनी ही थी। क्या वह अंदर से भी मेरे जैसी ही थी?

“अब तुम देखो.. क्या यह ऐसे घुस सकता है?” राशिद ने मेरी तरफ देखते हुए कहा।
“नहीं.. वही तो मैं कह रही हूँ कि कैसे भी नहीं घुस सकता, मुझे उल्लू न बनाओ। बड़े होशियार बनते हो।”
“अरे बाबा, तेरे सवाल का जवाब ही दे रहा हूं, जो पूछ रही थी कि कपड़े क्यों उतारे। यह ऐसे नहीं घुस सकता, जब तक अहाना की मुनिया में चिकनाई न आ जाये।”
“और वह कैसे आयेगी?” मैंने संशक स्वर में कहा।

“ऐसे!” कहने के बाद राशिद अहाना पर लद गया और उसे सहलाने लगा.. साथ ही एक हाथ से उसका एक वक्ष पकड़ कर उसे दबाते हुए चुचुक को मुंह में रख कर चुभलाने लगा।
“भक.. दूध तो बच्चे पीते हैं और अहाना को अभी दूध आयेगा कहां?” मेरी हंसी छूट गयी।
“जब बच्चा पीता है तब दूध आता है और जब बड़ा पीता है तब मुनिया में चिकनाई आती है।” अहाना ने सिस्कारते हुए कहा।

अब मैं सीरियस हो गयी और दोनों की हरकत देखने लगी.. अहाना की आंखें मुंदी जा रही थीं और वह एक हाथ से अपने ऊपर लदे राशिद की पीठ सहला रही थी तो दूसरे हाथ से उसका सर.. और राशिद दोनों हाथों से उसे नीचे से ऊपर सहला रहा था, उसके दूध दबा रहा था और बारी-बारी एक-एक दूध पी रहा था।

फिर दोनों के चेहरे मिले और दोनों एक दूसरे के होंठ चूसने लगे.. यह नजारा फिल्मों की वजह से मेरा देखा भाला था और उस वक्त मेरे लिये बाकी नजारे से ज्यादा खतरनाक था।
रगों में खून चटकने लगा.. चिंगारियां उड़ने लगीं और दिल धाड़-धाड़ पसलियों में बजने लगा। होंठ खुश्क हो गये और गले में भी कांटे पड़ने लगे।
एक अजीब सी बेचैनी भरी ऐंठन नस-नस में होने लगी।

“हां अब देखो।” सहसा राशिद की आवाज ने मेरी निमग्नता तोड़ दी और मैं जैसे चौंक कर होश में आ गयी और उसे देखने लगी, जो अब मुझे देखता सीधा हो रहा था।

उसने पहले की तरह अहाना की दोनों टांगें फैलायीं और अपना लिंग उसकी योनि पर रखते हुए दबाया.. योनि के गहरे रंग के होंठ खुले और राशिद के लिंग का अग्रभाग उसमें गायब हो गया।
मेरी हैरानी की इन्तहा न रही.. छोटे टमाटर जैसा हिस्सा योनि की फांक में एकदम गुम हो गया।

फिर मेरे पसीना छूट गया यह देख के.. कि धीरे-धीरे उसका समूचा लिंग ही अहाना की योनि की गहराई में उतरता गायब हो गया और उसकी जड़ के बाल अहाना की योनि के आसपास फैले बालों से टकराने लगे।

मैं हैरत से मुंह फाड़े उन दोनों को देख रही थी और वे दोनों मुस्कराते हुए मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे मुझे गलत साबित करने पर खुश हो रहे हों।

“अब यकीन करोगी?”
मैंने फंसे कंठ से ‘हाँ’ कहते हुए सहमति में गर्दन हिलाई।

राशिद ने अहाना को एकदम तख़्त के किनारे कर लिया था कि उसके नितम्ब आधे तख़्त से बाहर हो गये थे और दोनों पाँव घुटनों से मोड़ कर इतने पीछे कर दिये थे कि एकदम पेट से लग गये थे और इस तरह उसकी योनि आगे हो कर एकदम उभर आई थी।

जबकि राशिद खड़ा ही था और उसने अपने पेट के निचले हिस्से को इतना दूर रखा था कि मैं उसके बड़े से लिंग को अहाना की योनि से अग्रभाग तक बाहर निकलते और फिर जड़ तक वापस अंदर जाते साफ़-साफ़ देख सकूँ।

“अब इस तरह दोनों लोगों की खुजली एक साथ मिट जाती है और हाथ या किसी बाहरी सहारे की ज़रुरत नहीं पड़ती।” राशिद ने तिरछे चेहरे से मुझे देखते हुए कहा।
“बाहरी सहारा?” मैंने उलझनपूर्ण नेत्रों से उसे देखा।
“वह बाद में समझा देगी अहाना.. अभी तुम फिलहाल देखो कि हम खुजली कैसे मिटाते हैं।”

फिर जैसे दोनों ने मेरी तरफ से ध्यान हटा लिया और रशीद भचाभच धक्के लगाने लगा। बाहर भले बारिश का शोर हो लेकिन फिर भी इतने नज़दीक होती फच-फच मैं आसानी से सुन सकती थी। जहाँ यह खुजली करते राशिद की साँसें भारी हो उठी थीं वहीं अहाना ‘आह-आह’ करके सीत्कार कर रही थी।

फिर थोड़ी देर बाद राशिद ने उसकी योनि के अन्दर से भीगा चमकता लिंग बाहर निकाल लिया और मैं फिर चक्कर में पड़ गयी।
“कहाँ… निकला नहीं सफेदा?”
“अरे इतनी जल्दी थोड़े निकलता बाबा.. काफी देर खुजाना पड़ता है और एक ही आसन में खुजाते-खुजाते तकलीफ हो जाती है।” उसने अहाना को थापक कर उठाते हुए कहा।

अहाना खड़ी हो गयी और फिर एक पाँव नीचे और एक पाँव तख़्त पर रख कर थोड़ा मेरा सहारा लेते हुए झुक सी गयी.. जबकि राशिद उसके पीछे से यूँ चिपक गया कि मैं समझ सकती थी कि उसने पीछे की तरफ से अहाना की योनि में अपना लिंग घुसा दिया होगा।

फिर अब जो उसने धक्के लगाने शुरू किये उसके जांघें अहाना के चूतड़ों से टकरा कर ‘थप-थप’ का शोर करने लगीं। दोनों हाथों से उसने अहाना के दूध पकड़ लिये थे जो अभी एकदम मेरे पास थे और बुरी तरह उन्हें मसल रहा था।

दोनों ही अब ‘सीसी… उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ करने लगे थे। काफी देर तक इसी अवस्था में दोनों थप-थप करते रहे और फिर एकदम राशिद हट गया और उसके थपकी देने पर अहाना वापस पहले की तरह लेट गयी।

मैंने उसका लिंग देखा.. वह पूरी तरह किसी लिसलिसे द्रव्य से नहाया हुआ चमक रहा था, जिसे उसने मेरे देखते-देखते वापस अहाना की योनि में घुसा दिया और उसके ऊपर लद गया।

अब वो अहाना पर लदा उसके दूध पी रहा था और दबा रहा था जबकि अहाना ने नीचे से अपनी टांगों में उसकी जांघे कस ली थीं और दोनों हाथों से राशिद के चूतड़ों का ऊपरी हिस्सा जकड़ लिया था और उसे यूँ बार नीचे दबा रही थी जैसे उसके लिंग को और गहराई में उतार लेना चाहती हो।

ठीक यही तो देखा था मैंने… थोड़ी देर पहले, बिजली की रोशनी में। तब मैं समझ न सकी थी कि आखिर हो क्या रहा था लेकिन अब मैं समझ सकती थी कि क्या हो रहा था।

और फिर दोनों की तेज़ कराहें गूंजी।
मैं थोड़ा चौंक गयी और गौर से दोनों को देखने लगी। उन्होंने एक दूसरे को इस कदर सख्ती से भींच लिया था जैसे पसलियाँ तोड़ कर एक दूसरे में समां जाना चाहते हों। कुछ सेकेंड दोनों की कैफियत वही रही, फिर दोनों के जिस्म ढीले पड़ गये।

कुछ और सेकेंड के बाद राशिद अहाना के ऊपर से हट गया और अपना सफेदे में सौंदा हुआ लिंग पास पड़े रुमाल से पोंछने लगा, जबकि मैंने अहाना की योनि देखी तो उसमे से बह-बह कर वही सफ़ेद द्रव्य बाहर आ रहा था।

अब वे दोनों मुझे देख रहे थे और दोनों के चेहरों पर एक अजीब सी मुस्कराहट थी, जबकि मैं सूखे गले और होंठ के साथ उन दोनों के अंगों को देख रही थी।

उस रात मैं अहाना के साथ नीचे आ गयी थी उनकी खुजली मिटने के बाद… फिर अहाना तो सो गयी थी चैन से, लेकिन मुझे सुबह ही नींद आ पाई थी।

एक अजब सी बेचैनी परेशान करती रही थी… नस-नस में एक मादकता भरी ऐंठन होती रही थी। योनि पर हाथ लगाने से करेंट जैसा लग रहा था.. ऐसा लग रहा था जैसे कुछ लावे की तरह उबल रहा है तन बदन में… जो अपने किनारों को तोड़ना चाहता है, लेकिन क्या… कैसे… यह मेरी समझ से परे था और यही बेचैनी मुझे रात भर जगाती रही।

सुबह ग्यारह बजे तक मैं सोती रही। किसी के जगाने पर भी न जगी.. और जब जगी भी तो दिमाग पर एक अजीब सी बोझिलता तारी रही।
जो रात गुजरा था, वह जागते में देखा गया सपने जैसा था.. लेकिन सिर्फ उस पूरे दिन ही नहीं, बल्कि कई दिन तक दिमाग में उसी तरह चलता रहा।

मैंने अहाना से बात करने की कोशिश की, लेकिन उसने हर बार कोई न कोई बहाना बना कर टाल दिया और वह बात भी अधूरी रह गयी कि लड़की कैसा ‘सहारा’ ले सकती है, अपनी खुजली मिटाने के लिये।

उस घटना के करीब दस दिन बाद फिर एक दिन ऐसा मौका बना जब घर पे मैं और अहाना अकेले बचे।
दरअसल अम्मी शाजिया अप्पी को ले कर खाला के यहाँ गयी थीं और मौसम खराब था तो उन्होंने फोन कर दिया था कि देर से लौटेंगी, जबकि सुहैल लखनऊ गया हुआ था और शाम तक वापस आना था।

जाहिर है कि जब मौसम था, मौका था तो अहाना की मुनिया में खुजली मचनी ही थी, लेकिन उसके लिये समस्या यह थी कि राशिद वहां थे ही नहीं.. वह बाराबंकी गये हुए थे।
“कितना अच्छा मौसम था और कितना अच्छा मौका था।” अहाना ने बड़े हसरत भरे अंदाज में कहा।
“अब नहीं हो सकता तो काहे रो रही हो।”
“हो तो सकता है.. दूसरे तरीके से सही।” उसने आंखें चमकाते हुए कहा।
“कैसे?” मेरे लिये उलझन भरी बात थी।

“तुम पूछ रही थी न कि खुजली मिटाने के लिये लड़के को तो हाथ का सहारा है.. लड़की को क्या?”
‘हां-हां.. बताओ?’ मेरी दिलचस्पी फिर पैदा हो गयी।
“बताती हूँ। इससे अच्छा मौका और कहां मिलेगा।” वह हंसती हुई किचन की तरफ चली गयी।


थोड़ी देर बाद दुपट्टे में कुछ लिये वापस लौटी तो सीधे घर को अच्छी तरह लॉक करने का हुक्म सुना दिया कि कोई बाहरी एकदम से टपक न पड़े।
यहां यह बता दूँ कि भले उस घर में तीन परिवार रहते थे, लेकिन सबके हिस्से बंटे हुए थे और जब प्राइवेसी चाहते, अपने हिस्से को किसी भी आवागमन से सुरक्षित कर सकते थे।

सब कुछ अच्छे से बंद कर के हम अपने कमरे में आ गये तब उसने दिखाया कि वह किचन से दो लंबे बैंगन उठा लाई थी। एक तो लंबा और मोटा सा था जबकि दूसरा उसका आधा ही था।

फिर मेरे देखते देखते उसने अपने सारे कपड़े उतार डाले और उस रात की तरह नग्न हो गयी।

“सुन.. यह जो बैंगन है, यही समझ लड़के की मुनिया है और यही मेरी मुनिया की खुजली मिटायेगा, लेकिन यह भी तब जायेगा जब अंदर चिकनाई हो।”

“अब यहां कैसे चिकनाई लाओगी.. वहां तो राशिद भाई थे।”
“यहां तू है न.. आज तू राशिद बन जा।”
“मम-मैं.. कैसे?”
“देख रजिया.. खुजली तो तुझे भी होती है, तू राशिद के रोल में आ जा, हम दोनों की खुजली मिट जायेगी।”
“मुझे कब खुजली होती है?” मैंने सख्त हैरानी से उसे देखा।

“जिस रात मैंने और राशिद ने अपनी खुजली मिटाई थी और नीचे वापस आये थे, तो मैं तो चैन से सो गयी थी और हमेशा की तरह सुबह उठ गयी थी, लेकिन तू सोती रही थी ग्यारह बजे तक.. क्यों?”

“क्योंकि मैं रात को सो नहीं पाई थी.. नींद ही सुबह आई थी, तो देर तक ही सोऊंगी न।”
“क्यों.. क्यों नहीं नींद आई थी?”
“वव-वह…” जवाब देने में मैं अटक गयी और बेबसी से उसे घूरने लगी।

“क्योंकि जो तुमने देखा था वह तुम्हारे दिमाग में नाचता रहा था और अपने पूरे जिस्म में एक अजीब सी नशे भरी अकड़न और बेचैनी महसूस होती रही थी रात भर.. जिसे तुम न समझ सकती थी, न बयान कर सकती थी।”
मैं चुप उसे देखती रही, लेकिन वह मेरी खामोशी से मेरी सहमति का अंदाजा लगा सकती थी।

“वही होती है मुनिया की खुजली.. अभी थोड़ा वक्त गुजरने दो, फिर तुम्हें महसूस होने लगेगी और तब देखना कैसे किसी चीज की रगड़ तुम्हारी खुजली को शांत करती है।”

मेरे होंठ और गला सूखने लगे और अहाना ने मेरा दुपट्टा गले से निकाल कर किनारे डाल दिया। फिर चाक से पकड़ कर कुर्ता ऊपर खींचा.. मेरे हाथ स्वमेव ही ऊपर उठते चले गये, जिससे कुर्ता सर से होता बाहर निकल गया।
मैं महसूस कर रही थी कि मुझमें प्रतिरोध करने जैसी कोई भावना नहीं थी। आखिर सामने मेरी वह बहन थी जो मेरे साथ ही बड़ी हुई थी और मैं जिस पर सबसे ज्यादा भरोसा करती थी।
फिर उसने मेरी ब्रा भी खोल कर हटा दी।

अब मेरे दूध.. मेरे शरीर का ऊपरी हिस्सा उसी की तरह आवरणरहित था। मैंने हम दोनों के दूध की तुलना की.. मेरा साइज जहां बत्तीस डी था, वहीं उसका साईज चौंतीस बी था।
इसके अलावा उसकी घुंडियां बाहर निकली हुईं और बड़ी थीं जबकि मेरी घुंडियां छोटी और पिचकी हुई थीं। कुछ हद तक मुझे हीनता का अहसास हुआ।
“मेरी छोटी हैं।” मैंने थोड़ी मायूसी से कहा।
“हां.. जब तक इस्तेमाल होना नहीं शुरू होतीं तब तक छोटी रहतीं, इस्तेमाल होने लगेंगी तो बढ़ जायेंगी।” अहाना ने उन्हें सहलाते हुए कहा।

ऐसा नहीं था कि उसका हाथ ‘वहां’ पहली बार लगा हो, लेकिन आज अजीब सा महसूस हुआ.. जैसे कोई मस्ती भरी सनसनाहट पूरे जिस्म में दौड़ गयी हो।

जबकि अहाना ने दोनों हाथ नीचे करके सलवार का जारबंद खोल दिया और मुझे कंधों से दबाते हुए पीठ के बल लिटा दिया और मेरी पैंटी में उंगलियां फंसाते उसे यूँ नीचे किया कि सलवार समेत उतरती चली गयी।

अब हम दोनों बहनें एक जैसी अवस्था में थीं.. एकदम नग्न। कपड़े का एक रेशा तक नहीं था हमारे जिस्म पर।

वह मेरे दाहिनी तरफ मुझसे सट कर लेट गयी और अपनी तर्जनी उंगली मेरे गले से ले कर सीने तक फिराने लगी। जब उसकी उंगली मेरी घुंडियों से छुई तो अजीब सी मादक गुदगुदी नीचे योनि तक महसूस हुई।

मैं चाह रही थी कि वह वहां और टच करे लेकिन वह उंगली नीचे उतार ले गयी और पेट से होती मेरी योनि पर ले जा कर ऐसे दबाई कि मेरी योनि की फांक उसकी उंगली के नीचे आ गयी और ऊपर का अंगुल आधे इंच तक अंदर धंस गया।

मुझे एकदम करेंट सा लगा और मैं तड़प गयी.. मैंने टांगें सिकोड़ते हुए उसका हाथ जोर से हटा दिया और वह खिलखिला कर हंस पड़ी- हटाने की नहीं होती जानेमन… जो महसूस करोगी बस वही है खुजली। तुम्हारी घुंडियां छोटी हैं न.. अभी देखना।
फिर वह शरारत से मुझे देखती मेरी दोनों घुंडियों को बारी-बारी जीभ की नोक से छेड़ने लगी और उसके हर स्पर्श पर मेरे जिस्म में तेज करेंट सा लगता।

और मैं देख रही थी अपनी सिकुड़ी पिचकी घुंडियों के तंतुओं में आते तनाव को.. वे ठोस हो रही थीं, बाहर उभर रही थीं और नुकीली हो रही थीं। फिर मेरे देखते-देखते वे एकदम तन गयीं और अहाना एक घुंडी को चुटकी से मसलती दूसरी को अपने मुंह में लेकर ऐसे चुसकने लगी जैसे बच्चे दूध पीते हैं।

“अच्छा लग रहा है न.. मजा आ रहा है न?” बीच में ही उसने पूछा।
“हां!” जवाब देते वक्त मेरी आंखें मुंदी जा रही थीं मजे से और मैं न चाहते हुए भी उसके सर को सहलाने लगी थी।
“अब देख तेरी मुनिया में चिकनाई आई या नहीं।”

करीब पांच मिनट मेरे दोनों दूध पीने के बाद उसने सर उठाया और पहले की तरह मेरे साईड में हो गयी, जबकि अब तक वह मुझ पर लदी हुई थी।

मैं कुहनियों के बल थोड़ा उठ कर देखने लगी, हालाँकि उस हालत में मुझे सिवा अपनी योनि के आसपास फैले काले काले बालों के और कुछ नहीं दिख रहा था। लेकिन उसने अपनी बीच वाली उंगली थोड़ा धंसाते हुए मेरी योनि में फिराई और एक चटकन सी मेरी रगों में दौड़ गयी। ऐसा लगा जैसे पूरा बदन गनगना कर रह गया हो।

जबकि वह मेरी आंखों के आगे अपनी भीगी चमकती उंगली नचा रही थी.. उसने उंगली और अंगूठे को मिला कर तार सा बना कर दिखाया और मैं आश्चर्यचकित रह गयी- यह कहां से आ गया.. मुनिया में तो बस पानी जैसा पेशाब ही निकलता है।
वह हंसने लगी- अब बड़ी हो जा लाडो… वह जवान होने से पहले तक निकलता है। जवान होने के बाद पेशाब और रस दोनों निकलता है.. लड़कों को भी और लड़की को भी।

“और करो.. अच्छा लग रहा था।” मैंने सिसकारते हुए कहा।
“बस यह जो अच्छा लगना होता है न यही मुनिया की खुजली होती है। अकेले ही मजे लोगी क्या… मुझे भी तो दो। उस दिन देखा था न राशिद को मुझे रगड़ते, सहलाते, चूमते-चूसते.. बस वही सब तुम करो। मेरे लिये राशिद बन जाओ, फिर मैं तुम्हारे लिये बन जाऊंगी।”

मेरे मस्ती से सराबोर दिमाग को झटका सा लगा और मैं उसे देखने लगी जो मंद-मंद मुस्करा रही थी।
चलो ऐसे ही सही…

अब वो लेट गयी और मैं अपनी दोनों टांगें उसके इधर-उधर करके उस पर लद गयी और ठीक उस दिन के अंदाज़ में उसे रगड़ने सहलाने लगी। मैंने महसूस किया कि उसके दूध मेरे दूध के मुकाबले थोड़े नरम थे, शायद इस्तेमाल के बाद यह फर्क आता हो.. मैं उन्हें यूँ दबाने लगी थी जैसे कोई स्पंजी बॉल दबा रही होऊं और साथ ही उसकी घुंडियों को भी ऐसे चूसने लगी जैसे बच्चा दूध पीता है।

साथ ही बीच-बीच में दांतों से भी कुतर रही थी हल्के-हल्के, कि उसे तकलीफ न हो.. यह उसने भी किया था और मैं उसे वही लौटा रही थी जो उसने मुझे दिया था।

लेकिन वह मेरी तरह पड़ी न रही बल्कि उसने भी साथ में मुझे रगड़ना सहलाना शुरू कर दिया और अब सूरतेहाल यह था कि हम दोनों बहनें ही एक दूसरी को मसल रही थी, सहला रही थी और एक दूसरे के दूध पी रही थी।

फिर करीब छः सात मिनट बाद उसने मुझे अपने ऊपर से हटाया- बस अब बहुत चिकना गयी मेरी मुनिया… तू ऐसा कर कि नीचे बैठ। हाँ ऐसे और यूँ अपनी दोनों उंगली पूरी अंदर घुसा दे।
अहाना भारी सांसों के बीच न सिर्फ बोली, बल्कि उसने मुझे बिठाते हुए अपने दोनों पैर मेरे इधर-उधर कर लिये और दो उँगलियाँ फ्लैट अंदाज़ में दिखायीं।

मैंने वैसा ही किया और उसके मुंह से तेज़ सिसकारी सी निकल गयी।
जबकि मुझे ऐसा लगा था जैसे उसकी गर्म भाप छोड़ती योनि में ढेर सा लसलसा पानी भरा हुआ था जिसमे मेरी उंगलियाँ तर होतीं गहरे में उतर गयीं थीं।
“अब तेज़ी से अन्दर बाहर कर!” उसने फिर सिसकारते हुए कहा।

मैंने वैसे ही किया और वो “आह… ओह…” करती तेज़ी से सिसकारते हुए अपने दूध मसलने लगी. थोड़ी ही देर में उसका चेहरा तपने लगा और आँखें भिंच गयीं। फिर अजीब सी नज़रों से मुझे देखते हुए मेरा हाथ रोक दिया।

“अब इस बड़े वाले बैंगन को ले और अपनी ढेर सी लार इसपे लगा के इसे अंदर घुसा दे!”

एकदम से मेरे मुंह से निकलने को हुआ कि इतना बड़ा बैंगन भला कैसे घुसेगा लेकिन फिर मुझे उस रात की बात याद आ गयी कि कैसे राशिद ने इसी बैंगन के साइज़ का अपना लिंग इसी योनि में घुसाया था।

किसी बहस का कोई मतलब ही नहीं… मैंने वही किया। मुंह में ढेर सी लार बनायी और उसे उस बैंगन पर मल दिया। वह चमकने लगा और तब अहाना के इशारे पर मैंने उसे अपनी उँगलियों की जगह अहाना की योनि में घुसा दिया।

मुझे डर लग रहा था कि उसे तकलीफ न हो लेकिन उसे तो लगा जैसे मज़ा ही आ गया हो, उसने जोर की ‘आह…’ के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं और मुट्ठियों में बेड की चादर भींच ली। मैंने बैंगन को डंठल तक घुसा कर देखा कि वह कहाँ तक जा सकता है।

और यह बस एक सेंटीमीटर ही बचा था बाहर… फिर उसके निर्देशानुसार मैं उसे अंदर बाहर करने लगी और वह ‘आह… आह…’ करती फिर अपने दोनों दूध मसलने लगी।

फिर एकदम से उसने मुझे गिरा लिया और मेरे ऊपर लद कर मुझे चूमने रगड़ने लगी। उसकी योनि में ठुंसा बैंगन ठुंसे-ठुंसे मेरे हाथ से छूट गया। वो मेरे चूचुक चुभलाने लगी, दूध मसलने लगी और एकदम फिर मेरे दिमाग पर नशा तारी होने लगा।
“सुन.. तेरी झिल्ली फट चुकी है या नहीं?” अहाना ने उखड़ी-उखड़ी साँसों के दरमियान कहा।
“पता नहीं… मुझे नहीं पता यह सब!”

उसने बेड के साइड की दराज़ से एक कपड़ा निकाल लिया और मुझे सरहाने से सटा कर खुद मेरी फैली हुई टांगों के बीच औंधी लेट गयी और अपने उलटे हाथ से मेरी योनि ऊपर की तरफ से फैला कर अपने सीधे हाथ की बिचली उंगली से योनि के ऊपरी सिरे को सहलाने लगी।

मेरे दिमाग में चिंगारियां छूटने लगीं।

मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि पेशाब करने वाली जगह में इतना अकूत आनंद हो सकता है। एकाध बार मैंने उकडूं बैठ कर और नीचे शीशा रख के अपनी योनि को अंदर से देखने की कोशिश की थी लेकिन उसकी बनावट ही मेरी समझ में नहीं आई थी।

अलबत्ता इतना समझ सकती थी कि योनि में ऊपर की तरफ जो हुड सा उभरा हुआ मांस रहता है, इस वक़्त अहाना वही सहला रही थी और मेरे नस-नस में इतना गहरा नशा फैल रहा था जिसे मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकती थी।

इसी मज़े के बीच अहाना ने अपनी उंगली एक झटके से मेरी योनि के अंदर उतार दी। मेरे नशे को एक झटका सा लगा और मुंह से हल्की सी चीख निकल गयी.. ऐसा लगा था जैसे कोई सरिया सी मेरी अंदरूनी चमड़ी को छीलती अंदर भुक गयी हो।

मैंने तड़प कर उसकी उंगली निकालनी चाही लेकिन उसने मेरे पेडू पर दबाव डाल मुझे ऐसा करने से रोक दिया।
“चुपचाप पड़ी रह पागल… तेरी सील तो उंगली ने तोड़ी तो तुझे ज़रा ही तकलीफ हुई और मेरी सोच.. मेरी सील इस बैंगन जैसी मुनिया से टूटी थी लेकिन फिर भी मैंने बर्दाश्त किया था न… हम लड़कियों को यह बर्दाश करना ही होता है।”
“ऐसा लग रहा है जैसे चाकू घुसा दिया हो।”

“भक.. चाकू पहले घुसवाया है क्या जो उसका तजुर्बा है? कुछ नहीं होता रे.. बस थोड़ी देर सब्र कर। अभी पहले से ज्यादा मज़ा आने लगेगा।”

मेरा सारा नशा काफूर हो चुका था, लेकिन अपनी बिचली उंगली अंदर घुसाये-घुसाये उसने उलटे हाथ के अंगूठे से वही रगड़न देनी शुरू की जहाँ पहले उंगली से सहला रही थी।
धीरे-धीरे नशा फिर चढ़ने लगा।

उसके कहने पे मैंने अपने दूध और घुंडियों को अपने ही हाथों से मसलना शुरू कर दिया. मेरी योनि के ऊपरी सिरे पर उसके अंगूठे की सहलाहट वापस उसी अजीब सी तरंग को जिंदा कर रही थी, जो पहले टूट गयी थी।

धीरे धीरे नशा चढ़ता गया और दर्द पर हावी होता गया.. फिर एक दौर वह भी आया कि दर्द काफूर हो गया और रह गया तो बस मज़ा।

अब अहाना धीरे-धीरे उंगली अंदर बाहर करने लगी.. कोई बहुत ज्यादा नहीं, बस डेढ़-दो इंच तक ही अंदर बाहर कर रही थी लेकिन इतने में भी मुझे गज़ब का मज़ा आ रहा था।

“क्यों री… अब समझ में आया कि मुनिया की खुजली क्या होती है और यह कैसे मिटती है?” बीच में अहाना की आवाज़ मेरे कानों तक पहुंची लेकिन मैंने बोलने की ज़रुरत न समझी।

मैंने महसूस किया कि अब खुद बखुद मेरे मुंह से वैसी ही “आहें…” उच्चारित होने लगी थीं जैसे थोड़ी देर पहले अहाना के मुंह से निकल रही थीं और शरीर की एक एक नस में मादकता से भरपूर ऐंठन भारती जा रही थी।

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