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सगी बहन से निकाह करके सुहागरात

 



मेरी अम्मी, छोटी बहन ज़ेबा, बीवी शमा और खाला, इस कहानी के अहम पात्र हैं. उन सभी की प्राइवेसी का ख्याल रखते हुए मैंने अपना और बाकी सभी का नाम बदल दिया है. ताकि रिश्तेदारों और समाज में कोई गलत संदेश ना जाए.

मेरा नाम परवेज़ अख़्तर है. मेरी उम्र 30 साल है. मेरे अब्बू की मौत 5 साल पहले ट्रक एक्सिडेंट में हो चुकी है. चूंकि अब्बू रेलवे में क्लर्क थे, तो अनुकंपा के आधार पर उनकी जगह मेरी नौकरी लग गयी.

अब्बू के जाने के एक साल बाद अब्बू के दोस्त की बेटी शमा से मेरी शादी हो गयी. चार साल बाद शमा हमल (गर्भ) से हो गयी. घर में हम सभी बहुत खुश थे, बात भी खुशी की थी. क्योंकि घर का वारिस जो पैदा होने वाला था.

वक़्त गुज़रते देर नहीं लगता, नौ महीने कब गुज़र गए, पता ही नहीं चला. डेलिवरी का दिन आ गया … लेकिन बदकिस्मती से डेलिवरी के समय मामला कुछ फंस गया और बच्चे के जन्म के साथ ही शमा की मृत्यु हो गयी. डॉक्टर ने शमा को बचाने के बहुत कोशिश की, लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंज़ूर था.

इस हादसे से मेरे परिवार पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा. दुध-मुँहे बच्चे की परवरिश की सारी ज़िम्मेदारी अम्मी और मेरी जवान हो चुकी बहन ज़ेबा पर आ पड़ी.

उस वक्त घर में उदासी और गम का माहौल था. दो महीने बाद ज़ेबा का फाइनल एग्जाम होने वाला था. उसके बावजूद ज़ेबा बच्चे का बड़े प्यार से ख्याल एक माँ की तरह रख रही थी. दो महीने गुज़रते देर नहीं लगे. ज़ेबा ने आधी अधूरी तैयारी के साथ जैसे तैसे एग्जाम दिया और सेकेंड डिविजन से पास भी कर गयी.

चूंकि ज़ेबा उम्र में मुझसे लगभग 9 साल छोटी थी. इसलिए वो घर की दुलारी थी. मैंने गिफ्ट में उससे एंड्रायड फोन ला कर दिया, जिसे पाकर वो बहुत खुश हुई और … ‘थैंक्स भाईजान …’ बोल कर मेरे गले से लग गयी. उसके चूचे मेरे सीने से टच कर गए.

आज पहली बार ज़ेबा के गुंदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे काफ़ी मस्त लगा. उस रोज़ दिन भर मैं काफ़ी उत्तेजित रहा.

ज़ेबा निहायत ही खूबसूरत लड़की थी. गोरा रंग, भरा भरा जिस्म, उसका फिगर 34 28 34 होगा, जवानी टूट कर उस पर आई थी. आज से पहले मैंने कभी उसको ऐसी नज़रों से नहीं देखा था. लेकिन आज उसके सीने के मुलायम स्पर्श से मेरे दिल में हलचल सी मची हुई थी. मैं बार बार बच्चे को देखने के बहाने ज़ेबा के क़रीब होने का मौका तलाश करने लगा. मैं अपने दिलो-दिमाग से ऐसे ख्याल को झटकने की कोशिश कर रहा था.

लेकिन कहते हैं ना कि दिल है कि मानता नहीं.

ज़ेबा लाख मेरी सग़ी बहन थी, लेकिन थी तो एक हूर सी लड़की.

मेरी पत्नी के जाने के बाद मेरी ज़िंदगी बिल्कुल वीरान हो चुकी थी. लेकिन अचानक हुई इस घटना … और ज़ेबा का मेरे बच्चे से प्यार और ममता को देख कर उसके प्रति मेरा आकर्षण और उत्सुकता का पैमाना बढ़ता ही जा रहा था.

उसे देखने का मेरा नज़रिया बदल चुका था. अब मेरी नज़रें बहन के भरे भरे कूल्हों और मम्मों पर जा टिकतीं. ज़ेबा जब चलती. तो उसके नितंबों की थिरकन और उछलन देखने लायक होती.

अब तो मैं अक्सर जानबूझ कर अम्मी के सामने ही बच्चे को चुम्बन करते समय, ज़ेबा की तरफ इशारा करते हुए शरारत से कह देता जाओ- अपनी मम्मी की गोद में. अब तेरी अम्मी यही है.

ज़ेबा यह सुन कर बुरी तरह शर्मा जाती. मेरी अम्मी काफ़ी तजुर्बेकार औरत थीं. कई बार मुझे ज़ेबा को चोरी चोरी देखते हुए अम्मी ने आखिर पकड़ ही लिया. वो मेरी नज़रों में ज़ेबा के प्रति एक भाई के प्यार की जगह एक पुरुष की वासना भरी भूखी नज़र को पहचान गयी थीं.

ज़ेबा के लिए मेरी चाहत और प्यार को देख वो कुछ सोचने पर मजबूर हो चुकी थीं.

आख़िर एक दिन अवसर देख कर अम्मी ने मुझसे पूछ ही लिया- बेटा, आख़िर तुमने अपनी ज़िंदगी के बारे में क्या सोचा है? अब तुझे अपने भविष्य और बच्चे के लिए दूसरी शादी कर ही लेनी चाहिए.

मैंने कहा- नहीं अम्मी नहीं … मुझे शादी नहीं करनी. एक सौतेली माँ सौतेली ही होती है, ना जाने मेरे बेटे (शान) से कैसा बर्ताव करे.
तब अम्मी ने कहा- अगर तू बुरा ना माने, तो एक बात कहूँ बेटा?
मैंने कहा- हां कहो न अम्मी.
अम्मी- जब तेरे बच्चे को ज़ेबा एक अम्मी का प्यार दे सकती है, तो तुझे एक पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती?

अम्मी ने मेरे दिल की बात कह दी थी, मैं दिखावे के लिए ऊपरी मन से बोला- अम्मी, तुम भी क्या अनाप-शनाप बोल देती हो. ज़ेबा मेरी सग़ी बहन है, यह कभी नहीं हो सकता. समाज क्या कहेगा?

इस पर अम्मी ने कहा- देख बेटा, मैंने तेरी आंखों में ज़ेबा के लिए जो प्यार और आकर्षण देखा है, वो मुझसे छुपा नहीं है. मेरी तजुर्बेकार निगाहें धोखा नहीं खा सकतीं.

मैंने कहा- अम्मी, ज़ेबा इस बात के लिए कभी तैयार नहीं होगी. वैसे भी वो उम्र में मुझसे बहुत छोटी है. उसके मन में भी अपने कुछ अरमान, कुछ हसरतें तो होंगी ही. वो मुझ जैसे ज्यादा उम्र के एक विधुर को क्यों अपनाएगी?

अम्मी ने कहा- बेटा बात वो नहीं है … तुम दोनों मेरी दो आंखों की तरह हो, तुम दोनों के अलावा इस दुनिया में मेरा और कौन है? बेटा आज से कुछ साल पहले तेरे अब्बू ने मेरी कोख में जो बीज डाला था. वो पौधा अब दरख़्त की शक्ल अख्तियार कर चुका है. उस पर फल लगने ही वाले हैं. मेरी दिली ख्वाहिश है कि उस पर लगने वाला पहला रसीला और मीठा फल तू खाए.

मैं समझ गया कि अम्मी का इशारा ज़ेबा की सील तोड़ चुदाई से था.

अम्मी- ज़ेबा की शादी कहीं और हो गयी, तो वो हमसे दूर चली जाएगी. मैं चाहती हूँ कि मेरे दोनों बच्चे मेरी आखों के सामने रहें. ज़ेबा मुझे बहू के रूप में भी स्वीकार है. मैं कल ही ज़ेबा से बात करती हूँ. पराए घर की लड़की ना मालूम कैसी हो.

जब अम्मी ने अपनी शंका जताई. तो मेरे मन में तो लड्डू फूटने लगे थे. मैंने ऊपरी विरोध करना छोड़ दिया और अम्मी से बोला- अम्मी जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.

मुझे कुछ समय पहले की वो घटना याद आ गयी. आज भी उस घटना को याद करके विचलित और रोमांचित हो जाता हूँ. उस वक़्त ज़ेबा जवान हो चुकी थी. इतवार का दिन था. घर की छत पर बने रूम में मैं ऑफिस का हिसाब किताब देख रहा था. ज़ेबा का भी स्कूल बंद था.
मेरी पत्नी अपने पहले बच्चे की डेलिवरी के लिए अपने पीहर में थी.

ऑफिस का काम करते करते थक गया, तो छत पर फ्रेश हवा लेने जैसी ही बाहर निकला. नीचे आंगन में ज़ेबा मादरज़ाद नंगी नहा रही थी. यह देख मैं स्तब्ध रह गया और आंगन की तरफ बनी छत की रेलिंग के पास बैठ कर उस पर रखे फूल के गमले के बीच से खूबसूरत नज़ारा देखने लगा.

ये दृश्य इतना कामुक था कि बयान करना मुश्किल है. एक कमसिन लड़की, जो जवानी के दलीज़ पर खड़ी दस्तक दे रही हो, उसके जिस्म के बारे में क्या कहा जा सकता है. एकदम दूध सी गोरी … छोटी सी उभरी हुई चुत, जो इस बात की तरफ इशारा कर रही थी कि ज़ेबा की चुत से मासिक चक्र शुरू हो चुका था. उसकी नाज़ुक सी पतली कमर … और उस पर उभरे गुंदाज़ कूल्हे, समोसों से कुछ ही बड़े चूचे … आह … बड़ा ही दिलकश नजारा था.

मैंने फ़ौरन अपने मोबाइल से उसकी नंगी जवानी की वीडियो बना ली. अब मैं अक्सर उस वीडियो को देख कर सोचता था कि वो कौन खुशनसीब होगा, जो ज़ेबा की चुत चुदाई करेगा. खुदा की रहमत मुझ पर हुई और आज नसीब मुझ पर मेहरबान हो गया था. ज़ेबा पके हुए फल की तरह मेरे झोली में गिरने वाली थी.

आप खुद समझ सकते हैं कि मेरी अम्मी कितनी हिम्मत और मज़बूत इरादे वाली औरत थी, जो हमारे समाज में सगे भाई-बहन की शादी वर्जित होने के बावजूद इतना बड़ा निर्णय ले चुकी थी.

फिर अम्मी ने 2 ही दिन बाद मौका देख कर ज़ेबा से बात की. अम्मी ने जब अपनी इच्छा बताई, तो पहले तो जेबा बहुत गुस्सा हुई. लेकिन जब अम्मी ने उसे भाई की दूसरी शादी, घर का खर्चा, दूसरी पत्नी का बच्चे से बरताव जैसी दिक्कतें बताई और यह शंका जताई कि कहीं वो औरत बेटा को बहका कर अपने वश में ना कर ले, तो फिर हम कहां जाएंगे.

अम्मी की बातों में दम था. अम्मी जेबा से बोलीं- देख बेटी … शान तुझे अपनी अम्मी समझता है कम से कम खाला होने के नाते तू अपने बच्चे और शान के बीच में भेद भाव तो नहीं करेगी.

अम्मी के मुँह से बच्चे की बात सुन वो शर्मा गयी और अपना चेहरा छुपाते हुए बोली- धत अम्मी … आप भी ना..!

अम्मी ने लोहा गरम देखा तो हथौड़ा चलाते हुए बोल दिया- बेटी हालात को देखते हुए कोई उचित फ़ैसला लेना, जिससे कि सब का भला हो. तेरे भाई ने भी शुरू में अपना विरोध जताया था … लेकिन शायद शान के प्रति तेरी ममता व स्नेह को देख उसने अपनी सहमति दे दी है.

यह सुन कर ज़ेबा शरम से लाल हो गयी. उसने झिझकते हुए अम्मी से निर्णय लेने के लिए एक हफ़्ते का वक़्त मांग लिया.

ज़ेबा अब मेरे सामने आने से कतरा रही थी. उससे एक आध बार नज़रें मिलीं, तो वो बुरी तरह झेंप गयी. नारी सुलभ लज्जा के कारण ऐसा होना तो लाज़िमी था.

अम्मी को हड्डी के रोग की दिक्कत थी, वो बहुत कम चलती फिरती थीं, लेकिन आज दर्द ज्यादा होने कारण शाम को जब ज़ेबा मुझे चाय देने आई, तो मैंने उसे रोक लिया और बोला- देखो ज़ेबा अम्मी हम दोनों की शादी करना चाहती हैं. लेकिन तुम किसी दबाव में … या ऊपरी मन से फ़ैसला मत लेना. तुम्हें कोई और पसंद है, तो खुल कर बताना. उस लड़के से मैं तुम्हारी शादी करवा दूंगा.
ज़ेबा सिर झुकाए बोली- नहीं भाईजान ऐसी कोई बात नहीं है … मैं जो भी फ़ैसला लूँगी परिवार के भलाई में लूँगी.

यह कह कर वो चली गयी. पांच दिन गुज़र जाने के बाद भी जब ज़ेबा की तरफ से कोई जवाब नहीं आया, तो मुझे शंका होने लगी कि कहीं वो शादी से इंकार ना कर दे.

मैंने एक प्लान बनाया और एक फेक आईडी से 15 – 16 पॉर्न क्लिप की वीडियो उसके मोबाइल पर सेंड कर दीं. कुछ वीडियो में भाई बहन सेक्स और कुछ में नीग्रो वा यूरोपियन लड़की की थ्रीसम चुदाई की वीडियो क्लिप्स थीं.

उस दिन रात को अम्मी के सो जाने के बाद ज़ेबा के कमरे के दरवाजे में बने की-होल से मैंने देखा तो बगल में शान सो रहा था और ज़ेबा मोबाइल देखने में बिज़ी थी.

मैं समझ गया कि वो पॉर्न क्लिप देख रही है. अब मुझे सुबह उठ कर प्लान नम्बर दो पर काम करना था.

सुबह ज़ेबा जाग चुकी थी और बच्चे के लिए दूध का फीडर तैयार कर रही थी. मैं नहाने के लिए लुंगी बनियान लेकर बाथरूम में घुस गया.

उस दिन अम्मी के घुटनों में कुछ ज्यादा ही दर्द था. इसलिए मुझे उनको अपने प्लान में कुछ इस तरह से शामिल किया था कि वो मेरी बात से मना कर दें.

अपने प्लान के मुताबिक मैं जानबूझ कर तौलिया नहीं लाया था. कोई 15 मिनट बाद मैंने अम्मी को आवाज़ दी- अम्मी, मैं अपना तौलिया भूल आया हूँ, प्लीज़ ज़रा दे देना.

अम्मी ने ज़ेबा को आवाज़ लगाई- अरे बेटी ज़ेबा … मेरे पैरों में दर्द है, ज़रा परवेज को उसका तौलिया तो दे आ.

अम्मी ने जब 2-3 बार आवाज़ दी, तो ज़ेबा ने जबाव दिया- ठीक है … अम्मी दिए दे रही हूँ.

ज़ेबा ने जैसे ही बाथरूम के दरवाजे को नॉक किया, मैंने दरवाजे ओपन कर दिया. मेरे शरीर पर एक कपड़ा नहीं था. मेरे 9 इंच के लंड पर ज़ेबा की नज़र पड़ते ही वो स्तब्ध रह गयी.


उसके मुँह से केवल इतना निकला- बाप रे इत्ता बड़ा.
इस वक़्त मेरा लंड तोप की नाल की तरह सीधा खड़ा था. उसकी आंखें हैरानी से फटी हुई थीं.
मैंने शरारत से कहा- ज़ेबा देखो ना … ये तुम्हें सलामी मार रहा है.

यह कह कर मैंने अपने लंड को 3-4 बार अप-डाउन कर दिया.

उसने तिरछी नज़र से देखा और यह कहते हुए भाग गई- धत भाईजान आप भी ना …

वो शर्माते हुए भाग गयी थी, मगर मेरा चलाया तीर अपने सही निशाने पर लगा चुका था. पहले पॉर्न वीडियो और अपने लंड का दीदार करवाके मैंने उसके अन्दर की वासना और सेक्स की इच्छा को भड़का दिया था.

शाम को जब ऑफिस से वापस आया, तो अम्मी ने यह खुशख़बरी दी कि ज़ेबा ने अपनी सहमति दे दी है. मेरा प्लान सफल रहा.


अम्मी ने रात को ही खाला को फोन करके बुला लिया. दूसरे ही दिन खाला पहुंच गईं. अम्मी ने सारी बातों की जानकारी खाला को दे दी. खाला ने अम्मी के फ़ैसले पर मुहर लगा दी और 5 दिन बाद जुमे को शादी की तारीख तय कर दी.

चूंकि मोहल्ले के लोग हमें जानते थे कि सगे भाई-बहन की शादी इस्लाम में मना है … इसलिए हम लोगों ने खाला के यहां जाकर शादी करने का फ़ैसला लिया. दूसरे दिन ऑफिस से एक हफ्ते की सीएल ले कर घर में ताला लगा कर हम तीनों खाला के घर आ गए. मैंने वापस आने के बाद घर बदलने का भी तय कर लिया था.

खाला थोड़ा लालची औरत थीं. मैंने उनके हाथ पर सब कुछ बेहतर ढंग से मैनेज करने के लिए 2 लाख का चैक रख दिया. साथ ही मैंने खाला से रात सबके सो जाने के बाद ज़ेबा से मिलने की इच्छा जताई.

खाला हंसती हुई बोलीं- अरे बेटा जल्दी क्या है … तीन दिन बाद तो किला फ़तह करना ही है … जल्दबाज़ी क्या है?
मैंने उनकी तरफ मुस्कुरा कर देखा.
तो खाला मुस्कुराते हुए बोलीं- ठीक है बाबा … सबके सोने के बाद मिला दूँगी.

खाला ने मुझे बताया कि मैंने ज़ेबा को कह दिया है कि परवेज तुमसे मिलना चाहता है. उसने हामी भर दी है.

अपनी खाला की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिलते ही मैंने उसी रात को उससे मिलने का तय कर लिया.

ठीक समय पर मैंने धीरे से ज़ेबा के कमरे में दाखिल हो गया. उसके कमरे का दरवाजा अन्दर से खुला था. वो मुझे देख हड़बड़ा गयी और शर्म से हथेलियों से अपने मुँह छुपा लिया. मैं धीरे से उसके क़रीब गया और उसके कंधे पर हाथ रखा, तो मारे शर्म के जेबा दोहरी हो गयी.

मैं उसके बगल मैं बैठ गया और पीठ पर हाथ फेरते हुए बोला- ज़ेबा क्या तुम्हें यह शादी पसंद नहीं है. … या मैं पसंद नहीं हूँ?

ज़ेबा ने लड़खड़ाते हुए कहा- न..आ..हहीं वो ऐसी … ब्बा..आ.त न..हई है … आप ब..हुत … अच्छे हैं.

ज़ेबा शायद कुछ ज्यादा नर्वस थी. मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया. मैंने महसूस किया कि वो कांप रही थी. मैं उसके सिर के बालों को सहलाने लगा, तो उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया.

मैंने ‘ज़ेबा आई लव यू’ बोल कर उसके गाल पर एक किस कर दिया.

वो बोल पड़ी- न..हीं भैया … आज न.हीं …
मैं- अरे पगली आज कुछ नहीं करूंगा … लेकिन परसों हमारी सुहागरात होगी, उस दिन कोई बहाना नहीं चलेगा.

वो समझ गयी कि भाईजान उस दिन उसे चोदे बिना नहीं मानेंगे. कुंवारी चुत और 9 इंच का लंड … बाप रे क्या … होगा.
मेरी बहन यह सोच कर ही डर रही थी.

मैं कुछ देर रुकने के बाद ज़ेबा को गुडनाइट बोल कर अपने कमरे में आ कर सो गया.

दूसरे दिन खाला ज़ेबा को ब्यूटी पार्लर ले गईं. उधर उसके जिस्म के सारे गैरज़रूरी बालों को रिमूव करवा के वैक्सिंग और मसाज करवा दिया.

इससे ज़ेबा में अब और भी निखार आ गया था.

कल जुमे को शादी और रात में ही सुहागरात थी. एक एक पल मुझ पर भारी गुज़र रहा था. मैं ज़ेबा से हमबिस्तर होने के लिए बेताब था.

मैं लगभग एक साल से सूखा पड़ा था. लंड में काफ़ी तनाव हो रहा था. वो काले नाग की तरह बिल में घुसने के लिए बार बार फन फैला रहा था.

आख़िर जुमे का वो मुबारक दिन आ ही गया. शाम को सादगी से 7 बजे निकाह और 9 बजे डिनर हुआ. फिर 11 बजते बजते सब कार्यक्रम समाप्त हो गए.

खाला और उनकी बेटियों ने मेरा हाथ पकड़ कर उस कमरे में पहुंचा दिया … जहां ज़ेबा घूंघट में सिर झुकाए बैठी थी. बगल की टेबल पर केसर बादाम वाला दूध दो गिलासों में रखा था. चाँदी के वर्क़ लगे पान और गोले के लेट की शीशी भी रखी थी.

नारियल तेल देखते ही मैं मन ही मन मुस्करा दिया. फिर दरवाजे को बंद करके मैं ज़ेबा के पास बैठ गया.

मैंने घूंघट उठा कर उसके चेहरे को देखा और मुँह दिखाई में गोल्ड की रिंग उसकी उंगली में पहना दी. मैंने अपने दोनों हाथों में उसके चेहरे को ले लिया और उसके लबों पर अपने लब रख कर चुम्बन किया.

कुछ देर तक की बातचीत के बाद धीरे धीरे उसके सारे ज़ेवर उतार कर उसे अपनी बांहों में भर कर दस मिनट तक चूमाचाटी की. ज़ेबा बुरी तरह शर्मा रही थी … जब मैंने उसके मम्मों पर हाथ रखा, तो उसने अपने आपको सिकोड़ लिया.

वो सिहरते हुए बोल पड़ी- भ..आ.ई. यहां … गुदगदी लगती है.
मैं बोला- ज़ेबा, अब तुम मेरी बहन नहीं, मेरी बीवी हो.

मैं धीरे धीरे उसके नाज़ुक अंगों को सहलाने व दबाने लगा. कुछ पल के बाद मैंने उसके जिस्म से कपड़े उतारना शुरू कर दिए.
वो ना-नुकुर और हल्का विरोध करती रही … लेकिन उससे बहला फुसला कर मैं उसका जम्पर और ब्रा उतारने में कामयाब हो गया.

ज़ेबा की दूध की तरह गोरे बदन को और उसकी गोल व सख़्त चुचियों को देख कर मैं बेक़ाबू हो गया. ज़ेबा ने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी चुचियों को छिपा लिया. मेरा लंड फनफना कर तन चुका था.

ज़ेबा के लगातार विरोध करने और ये कहने कि ‘भाई प्लीज़ … ऐसा नहीं करो. … आंह भाई ..’ करते रहने के बावजूद मैंने उसका लहंगा और पैंटी को भी उतार कर ही दम लिया.

अब ज़ेबा मेरे सामने पूरी तरह नंगी थी. मैं उसकी भरपूर जवानी को देख बौखला गया था. उसका पका हुआ जिस्म देख कर मेरे लिए अपने आपको रोकना मुश्किल हो गया था.
ज़ेबा ने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी कुंवारी चुत छिपा रखी थी.

मैंने चालाकी से उसके दोनों मम्मों की तारीफ की, तो बेध्यानी में चुत से हथेलियों को हटा कर उसने अपने दोनों हाथों से चुचियों को छिपा लिया.

तभी मैंने उसकी चुत को देख लिया. छोटी सी थोड़ा उभरी हुई मक्खन जैसी चुत देख कर मैं बेक़ाबू हो गया और मैंने जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार दिए.

ज़ेबा मेरे 9 इंच लंबे और 3 इंच मोटे लंड देख कर सहम गयी.

वो घबराई सी बोली- भ..आ.ई … प्लीज़ इतने बड़े से नहीं होगा.


उसने डर कर दोनों हथेलियों से चुत को छिपा ली. मगर मैं कहां रुकने वाला था. मैं ज़ेबा से लिपट गया. कोई दस मिनट तक उसकी चुचियों के मुनक्का चूसने के बाद सारे जिस्म पर चुंबनों की बारिश कर दी.

मेरी इन हरकतों से ज़ेबा भी धीरे धीरे गर्म होने लगी. ज़ाहिर सी बात थी वो एक इक्कीस साल की भरपूर जवानी से लबरेज़ लड़की थी और मैं एक तजुर्बा कर मर्द था. मैंने उसकी कामेच्छा को पूरी तरह जगा दिया था.

अब उसके मुँह से सिसकारियां और नाक से गरम सांसें निकलनी शुरू हो गईं. उसकी दोनों चुचियां ऊपर नीचे हो रही थीं, जो इस बात की अलामत थीं कि ज़ेबा में सेक्स करने की ख्वाहिश जाग चुकी थी. मैं बहुत खुश था.

अब हम दोनों भाई बहन का रिश्ता कुछ पल का मेहमान रह गया था. कुछ लम्हों में हम दोनों एक दूसरे में समा जाने वाले थे और एक नये रिश्ते में शुरुआत होने वाली थी. मैं ज़ेबा के जिस्म के हर हिस्से को सहलाते व रगड़ते हुए अपने मंज़िल की तरफ बढ़ रहा था, तभी ज़ेबा का हाथ मेरे लंड पर चला गया.

मेरी बहन ने मेरे लंड को धीरे से पकड़ लिया, लेकिन लंड की लंबाई और मोटाई को महसूस कर, बदहवास हो गयी. बात भी सही थी. मेरे लंड का यह विकराल रूप देखकर अच्छे अच्छों की हालत खराब हो जाती है, यह तो फिर भी एक सील बंद कली थी. कली से फूल बनने का सफ़र एक कुंवारी लड़की के लिए कष्टदायक तो होती ही है.

ज़ेबा रोनी सी सूरत बनाते हुए बोली- भाई … प्लीज़ आप आज कुछ मत कीजिएगा. … आपका यह बहुत बड़ा और मोटा है.
मैंने उसे प्यार से समझाया- कुछ नहीं होगा.

ये कह कर मैंने उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसके पेट की तरफ मोड़ दिया. ऐसा करते ही ज़ेबा की भीग चुकी चुत की फांक खुल गयी. उसकी बुर पर छोटी सी क्लिटोरिस नन्हें कबूतर की चोंच की तरह बाहर निकल आई.

मैंने अपनी दो उंगलियों से दरार को और फैलाया.

वाह … क्या मस्त नज़ारा था … चुत के नीचे छोटा सा पिंक छेद अपने आप ऐसे खुल और बंद हो रहा था, जैसे कि तितली के दोनों पर खुलते और बंद होते हैं. मुझे लग रहा था कि मेरे लंड के स्वागत के लिए यह छेद खुल और बंद हो रहा था.

अब मैं अपने आपे से बाहर हो गया और ज़ेबा की फ्रेश चुत की दरार में जीभ डाल कर चाटना और चूसना शुरू कर दिया. दस मिनट में ही वो हाय तौबा मचाने लगी. उसने अपने दोनों हाथों से बेडशीट पकड़ ली और तकिये पर सर को इधर उधर करने लगी. तभी अचानक अपने दोनों हाथों से मेरे सर के बालों को पकड़ कर 6-7 झटके लेकर निढाल हो गयी.

ज़ेबा झड़ चुकी थी. मेरा मुँह चुत से निकले पानी से भर गया था. बुर के हल्के नमकीन पानी को मैं बेहिचक पी गया.

इस तरह ज़ेबा को मैंने 2 बार झाड़ दिया और तीसरी बार मैंने तोप की नाल की तरह खड़े लंड को चुत की दरार के बीच सैट करके रख दिया. कोई 10-12 मर्तबा अप-डाउन करने के बाद मैंने जेबा की कमसिन जवानी क़िले के फाटक को तोड़ कर घुसने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा.

इस तरह मैंने 7-8 बार किले में दाखिल होने की कोशिश की. उधर ज़ेबा बुरी तरह कराह रही थी और मुझे धकेलने की कोशिश कर रही थी. वो बार बार मुझसे विनती कर रही थी … रो-रो कर दुहाई देती रही … लेकिन आज मैंने भी ज़िद पकड़ ली थी.

फिर नारियल तेल की याद आई, तो साइड की टेबल से नारियल तेल लेकर मैंने अपने लंड पर और ज़ेबा की चुत की फांक के बीच अच्छी तरह लगा दिया. अब मैंने फिर से मोर्चा संभाल लिया.

दोबार तो लंड इधर उधर फिसल गया, लेकिन तीसरी बार सैट करके आगे की तरफ पूरी ताक़त से एक भरपूर झटका मारा.

ज़ेबा के मुँह से भंयकर चीख निकलती, उससे पहले मैंने अपना मुँह उसके मुँह पर रख दिया. उसकी चीख घुट कर रह गयी.

मेरे लंड का सुपारा ज़ेबा की चुत को ‘खछ..’ की आवाज़ से फाड़ते हुए अन्दर घुस गया. ज़ेबा बुरी तरह छटपटा रही थी, मुझसे अपने आपको छुड़वाने का असफल प्रयास कर रही थी. लेकिन कहां शेर और कहां बकरी … सारी कोशिशें नाकाम हो गईं.

जेबा का दर्द से बुरा हाल था. मैं जानता था कि अभी अगर मैंने दया दिखाई, तो ये फिर दोबारा छोड़ने नहीं देगी. इसलिए मैंने उसे दबोचे रखा और धीरे धीरे लंड को इंच दर इंच अन्दर सरकाता रहा.

मुझे ऐसा फील हो रहा था कि मेरा लौड़ा रबरबैंड में फंसा हुआ सा अन्दर जा रहा है.

ज़ेबा के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद आख़िरकार मैंने 5 इंच लंड चुत में पेल दिया. बाकी बचे 4 इंच को दो जोरदार धक्के लगा कर पूरा 9 इंच लंड अन्दर पेल दिया. मेरे कुछ धक्कों ने भाई बहन के रिश्ते को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था. रिश्तों के मायने ही बदल गए थे.

ज़ेबा की हालत पतली थी. मैं प्यार से उसे ढांढस बंधाता रहा- बस … बस … अब हो गया मेरी जान.

मैंने प्यार से उसके आंसुओं को पौंछा. कुछ देर रुक कर फिर से लिपलॉक किस किया और धीरे धीरे लंड आगे पीछे करने लगा. मेरा लंड बुर के खून से लथपथ हो गया था.

धीरे धीरे चुदाई रफ़्तार पकड़ती चली गयी. अब ज़ेबा का विरोध ख़त्म हो चुका था. वो खामोशी से मुझे देख रही थी. शायद उसे भी चुदाई में मज़ा आने लगा था. मैं उसकी दोनों चुचियों को पकड़ कर तेज़ी से धक्का लगाने लगा. चुदाई का मधुर संगीत ‘फ़च … फ़च..पच..’ से कमरा गूँज रहा था.

लगभग 40 मिनट के मेरे 80-90 शॉट लगने के बीच ज़ेबा दो मर्तबा झड़ चुकी थी. ज़ेबा चुदाई की मस्ती में आंखें बंद किए पड़ी थी. आख़िर 15 – 20 धक्के लगाने के बाद मैं भी 10-12 झटकों के साथ झड़ गया.

ज़ेबा की चुत मेरे रस से भर गयी थी. उस रात मैं ज़ेबा को 2-3 बार और चोदना चाहता था, लेकिन उसने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग ली.

सुबह बेडशीट पर जगह जगह खून और वीर्य के धब्बे देख कर खाला रात की सारी कहानी समझ गयी.

दो दिन तक उस को चलने फिरने में तकलीफ़ रही. तीसरे दिन मैंने 2 बार चुदाई की. दस दिन बाद मैंने ज़ेबा की गांड भी मार ली. गांड मरवाने में भी उस ने काफ़ी प्रोटेस्ट किया … लेकिन मैं उसकी गांड के दरवाजे से भी अन्दर दाखिल होने में कामयाब हो गया.

इस तरह वक़्त को तेज़ी से गुज़रते देर नहीं लगा. एक दिन जब मैं ऑफिस से आया, तो खाला ने ज़ेबा के पेट से होने की खुशखबरी सुनाई. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. नौ महीने बाद ज़ेबा ने 8 पौंड के स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. इस तरह 5 साल में ज़ेबा ने मेरे 3 बच्चों को जन्म दिया. आज हम खुशहाल ज़िंदगी गुजार रहे हैं.

परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे से 2-2 रिश्ते में बँधे हुए थे. ज़ेबा मेरी सग़ी बहन भी थी और पत्नी भी. शान को छोड़ कर ज़ेबा से जन्मे बच्चे मेरे बेटे भी थे और भांजे भी थे. अम्मी मेरे बच्चों की नानी भी थी और दादी भी. कितनी सुखद थी हमारी ज़िंदगी … और एक दूसरे से रिश्ते.

दोस्तो, सग़ी बहन की चुदाई में जो मज़ा है … वो किसी और में नहीं. साथ ही वो आपके बच्चों की अम्मी भी बनी हो … तो क्या कहने.


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