प्रमोद और मोहन वासना के जिन पंखों पर उड़े थे वो तो ज़िम्मेदारी के बोझ तले कमज़ोर पड़ गए थे। रूपा दस साल की हुई तब मोहन की माँ भी गुज़र गईं और मोहन अपने दो बच्चों के साथ बिलकुल अकेला रह गया। तब तक पंकज के भी स्कूल की पढ़ाई पूरी हो गई थी। कुछ ही महीनों में वो कॉलेज की पढ़ाई के लिए शहर चला गया। उसका मेडिकल कॉलेज में सेलेक्शन तो हो गया था लेकिन हॉस्टल मिलने में कुछ समय लग गया तो कुछ महीने वो प्रमोद के घर ही रहा।
एक तरफ पंकज की सोनाली के साथ बचपन वाली दोस्ती अब रोमांस में बदल रही थी तो दूसरी ओर मोहन के सर पर रूपा की पूरी ज़िम्मेदारी आ गई थी। खाना बनाने से लेकर घर की साफ़-सफाई तक सारा काम मोहन खुद करता था। रूपा थोड़ी बहुत मदद कर दिया करती थी लेकिन मोहन उसे पढ़ाई में ध्यान लगाने के लिए ज्यादा जोर देता था।
इधर रूपा हाई-स्कूल में पहुंची और उधर पंकज ने अपनी डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर ली थी। जब उसकी इंटर्नशिप चल रही थी तो वो अक्सर सोनाली से मिलने उसके शहर चला जाया करता था। अब उसके पास थोड़ा समय भी था और पैसे भी। ऐसे ही मिलते मिलाते दोनों चुदाई भी करने लगे। पंकज किसी अच्छे से होटल में रूम बुक कर लेता और सोनाली कॉलेज बंक करके आ जाती और फिर पूरा दिन मस्त चुदाई का खेल चलता।
इंटर्नशिप पूरी होते ही पंकज ने अपने पिता मोहन और सोनाली के मम्मी-पापा दोनों को कह दिया कि उसे सोनाली से शादी करनी है।
वो दोनों तो पहले से ही पक्के दोस्त थे उन्हें क्या समस्या होनी थी। सोनाली की माँ थोड़ी नाखुश थी क्योंकि उसके हिसाब से मोहन ठरकी था और उसे लगता था कि कहीं वो सोनाली पर पूरी नज़र ना डाले और क्या पता पंकज भी अपने बाप पर गया हो और सोनाली को अपने दोस्तों से चुदवता फिरे।
लेकिन जब मियाँ, बीवी और बीवी का बाप भी राज़ी तो क्या करेंगी माँजी।
दोनों की शादी धूम-धाम से हुई और फिर सोनाली पंकज के साथ दूसरे शहर में चली गई जहाँ पंकज ने अपना क्लिनिक खोला था।
इधर जब रूपा ने जवानी की दहलीज़ पर कदम रखा तो मोहन का मन भी डोलने लगा था। मोहन का मन इसलिए डोला था कि एक तो मोहन को काफी समय हो गया था स्त्री संसर्ग के बिना और उस पर रूपा बिलकुल अपनी माँ जैसी दिखती थी; लेकिन मोहन नहीं चाहता था कि रूपा की पढ़ाई में कोई रुकावट आये इसलिए उसने रूपा को उसके भाई के साथ रहने के लिए शहर ये बहाना बना कर भेज दिया कि वहां पढ़ाई अच्छी हो जाएगी और साथ में कॉलेज की तैयारी भी कर लेगी।
रूपा ने भी इस बात को गंभीरता से लिया और पढ़ाई में अपना दिल लगाया। स्कूल की पढ़ाई के साथ साथ अच्छे कॉलेज में एडमिशन के लिए एंट्रेंस एग्जाम की भी तैयारी की। उधर एक बेडरूम में पंकज और सोनाली की चुदाई चलती थी और दूसरे बेडरूम में रूपा की पढ़ाई। दिन में भी कभी उसका ध्यान उसके भैया-भाभी की चुहुलबाज़ी पर नहीं जाता था।
आखिर उसकी मेहनत रंग लाई और शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में उसका सेलेक्शन हो गया। पहले सेमिस्टर के रिजल्ट्स भी अच्छे आये तब जा कर रूपा को थोड़ा सुकून मिला और उसने पढ़ाई के अलावा भी दूसरी बातों की तरफ ध्यान देना शुरू किया। ज़ाहिर है सेक्स उन बातों में से एक था। अब उसका ध्यान अपने भैया कि उन सब हरकतों पर जाने लगा था जो वो हर कभी नज़रें बचा कर सोनाली भाभी के साथ साथ करते थे। कभी किचन में भाभी के उरोजों को मसलते हुए दिख जाते तो कभी बाथरूम से नहा कर आती हुई भाभी के टॉवेल के नीचे हाथ डाल कर उनकी चूत के साथ छेड़खानी करते हुए।
इन सब बातों को सोच सोच कर रूपा रोज़ रात को अपनी चूत सहलाते हुए सो जाती। सब कुछ ऐसे ही चलता रहता अगर होली के एक दिन पहले सोनाली की नज़र, रंग खरीदते समय एक भांग की दूकान पर ना पड़ी होती। उसने सोचा क्यों ना थोड़ी मस्ती की जाए तो वो थोड़ी ताज़ी घुटी हुई भांग खरीद कर ले आई। अगले दिन सुबह वो भांग नाश्ते में मिला दी गई।
रूपा ने नाश्ता किया और चुपके से जा कर अपने सोते हुए भैया के चेहरे पर रंग से कलाकारी करके आ गई। सोनाली अभी किचन में ही थी कि पंकज उठ कर बाथरूम गया तो देखा किसी ने उसे पहले ही कार्टून बना दिया है। उसने भी जोश में आ कर किचन में काम कर रही सोनाली को पीछे से पकड़ कर रंग दिया। उसका चेहरा ही नहीं बल्कि कुर्ती में हाथ डाल कर उसके स्तनों पर भी अपने हाथों के छापे लगा दिए।
सोनाली- अरे ये क्या तरीका है… अभी तो मैं काम कर रही हूँ। नाश्ता करने तक तो इंतज़ार कर लिया होता।
पंकज- नाश्ते तक? तुमने तो मेरे जागने तक का इंतज़ार नहीं किया।
पंकज ने अपनी शक्ल दिखाई तो सोनाली हँसी रोक नहीं पाई।
सोनाली- अरे बाबा, मैं तो नाश्ता बनाने में बिजी थी। ये देखो मेरे हाथ … यह ज़रूर रूपा का काम होगा।
पंकज- इस रूपा की बच्ची को तो मैं नहीं छोडूंगा आज।
इतना कह कर पंकज रूपा के कमरे की तरफ भागा। लेकिन रूपा रंग लगवाने के लिए तैयार नहीं थी वो भी इधर उधर भागने लगी। आखिर रूपा को किसी भी तरह पकड़ कर रंगने के चक्कर में पंकज का एक हाथ उसकी छाती पर पड़ गया और उसने अपनी बहन के स्तन को दबाते हुए अपनी ओर खींचा। इससे रूपा शर्मा गई और जैसे ही पंकज को अहसास हुआ कि क्या हो गया है तो वो भी थोड़ा सकुचा गया। यह पहली बार था जब उसने अपनी पत्नी के अलावा किसी और के उरोजों को छुआ था वो भी अपनी सगी बहन के।
इतने में रूपा भाग कर घर से बाहर निकली लेकिन उसकी किस्मत में रंगना ही लिखा था। उसके कॉलेज की कुछ सहेलियाँ और उनके बॉय-फ्रेंड्स इनके घर की तरफ ही आ रहे थे उन्होंने झटपट उसे पकड़ लिया और फिर तो रूपा की वो रंगाई हुई है कि समझो अंग अंग रंग में सरोबार हो गया। भीड़ में किसने उसके स्तनों का मर्दन किया और किसने नितम्बों का ये तो उसे भी नहीं पता चला।
लेकिन उसे मज़ा भी बहुत आया क्योंकि कई दिनों से वो खुद ही के स्पर्श से कामुकता का अनुभव कर रही थी। आज पहले अपने ही भैया के हाथों उसके उरोजों का उद्घाटन हुआ था और अब इतने लोगों ने उसे छुआ था कि उसके लिए इस सुख की अनुभूति का वर्णन करना संभव नहीं था। ऊपर से भजियों में मिली भांग ने भी अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था।
इधर सोनाली ने अपने हाथों से अपने पति को भांग वाले भजिये खिलाने शुरू किये। लेकिन पंकज आज कुछ ज्यादा ही रोमाँटिक हो रहा था उसने भी अपने होंठों में दबा दबा कर वही भजिये सोनाली को खिलने शुरू किये। सोनाली भी मन नहीं कर पाई क्योंकि उनका पहला चुम्बन ऐसे भी पंकज ने उसे चॉकलेट खिलने के बहाने किया था। इधर पंकज और सोनाली को भांग का नशा चढ़ना शुरू हुआ उधर नशे में चूर और रंग में सराबोर रूपा ने दरवाज़े पर दस्तक दी।
पंकज ने दरवाज़ा खोला तो उसके तो होश ही उड़ गए। उस भीगे बदन के साथ जिस नशीली अदा से वो खड़ी थी उसे देख कर पंकज का लण्ड झटके मारने लगा। वो अन्दर आई तो उसके ठण्ड के मारे कड़क हुए चूचुक जो टी-शर्ट के बाहर से ही साफ़ दिख रहे थे और उसके पुन्दों के बीच की घांटी में फंसी उसकी गीली स्कर्ट जो उसके नितम्बों की गोलाई स्पष्ट कर रही थी उसे देख कर तो पंकज का ईमान अपनी सगी बहन पर भी डोल गया। तभी सोनाली भी आ गई।
सोनाली- ननद रानी, बाहर ही पूरा डलवा चुकी हो या घर में भी कुछ डलवाओगी?
रूपा नशे में खुद पर काबू नहीं कर पाई और नशीले अंदाज़ में खिलखिला दी। सोनाली को रूपा की वजह से ही सुबह सुबह रंग दिया गया था उसका बदला तो उसे लेना ही था।
सोनाली- तुम्हारी वजह से मैं रंगी गई थी। बदला लिए बिना कैसे छोड़ दूं। अब बाहर तो कोई कोरी जगह दिख नहीं रही है तो अन्दर ही लगाना पड़ेगा।
इतना कह कर सोनाली ने रूपा के टॉप में हाथ डाल कर उसके मम्में रंग दिए। इस बात पर रूपा भी बिदक गई।
रूपा- भैया, भाभी को पकड़ो, मैं भी रंग लगाऊँगी।
पंकज ने सोनाली को पीछे से ऐसे पकड़ लिया कि उसके दोनों हाथ भी पीछे ही बंध गए। रूपा कुर्ती के गले में हाथ डाल कर सोनाली के जोबन को रंगने जा ही रही थी कि उसने देखा वहां पहले ही रंग लगा हुआ है।
रूपा- क्या यार भैया! आपने तो इनके खरबूजे पहले ही रंग दिए हैं।
पंकज- तो तू सलवार निकाल के तरबूजे रंग दे!
रूपा ने सलवार का नाड़ा खींचा और सोनाली की पेंटी में अपने दोनों हाथ डालकर उसके दोनों कूल्हों पर रंग लगाने लगी। इधर पंकज ने सोनाली की कुर्ती निकालने की कोशिश की तो उसकी पकड़ कमज़ोर पड़ गई। उसने सोचा था कि कुर्ती तो पकड़ में रहेगी लेकिन सोनाली खुद उसमें से निकल भागी और तुरंत पंकज के पीछे जा कर उसे धक्का मार दिया। अब सोनाली केवल ब्रा और पेंटी में थी।
पंकज अभी ठीक से समझ भी नहीं पाया था कि क्या हुआ है, वो लड़खड़ा गया और रूपा के ऊपर जा गिरा। उसके हाथ में जो सोनाली की कुर्ती थी उसमें रूपा का सर फंस गया। पंकज अभी रूपा का सहारा ले कर अभी थोड़ा सम्हला ही था कि, सोनाली ने पंकज की अंडरवेयर नीचे खसका दी, और रूपा के हाथ उसके भाई के नंगे नितम्बों पर रख दिए। पंकज का लण्ड भी फनफना के उछल पड़ा।
सोनाली- मेरी सलवार निकलवाओगे। ये लो अब अपनी तशरीफ़ रंगवाओ!
तीनों भांग के नशे में ज्यादा सोच नहीं पा रहे थे। सबसे कम सोनाली को ही चढ़ी थी क्योंकि उसे पता था इसलिए उसने बस उतने ही भजिये खाए थे जितने पंकज ने उसे जबरन खिला दिए थे। पंकज को अब चढ़ने लगी थी लेकिन रूपा पूरी तरह से भंग के नशे में गुम थी। नशा अपनी जगह था लेकिन सर पर कुर्ती फंसे होने की वजह से अब रूपा को कुछ दिख नहीं रहा था। वो मस्त अपने भाई के पुन्दों पर रंग मले जा रही थी और हँसे जा रही थी।
पंकज को भले ही ज्यादा नशा नहीं था लेकिन आज सुबह ही उसने पहली बार अपनी बहन के स्तनों को कपड़ों के ऊपर से ही सही लेकिन महसूस तो किया था और उसके मन को कुछ वर्जित कल्पनाएँ जैसे छू कर निकल गईं थीं। अब जब उसकी बहन के कोमल हाथ उसके नग्न नितम्बों को सहला रहे थे तो वो कल्पनाएँ फिर वापस आ गईं और वो किम्कर्तव्यविमूढ़ हुआ वहीं खड़ा रह गया। इतने समय का फायदा उठाते हुए सोनाली रूपा के पीछे पहुँच चुकी थी और उसकी स्कर्ट भी खसकाना चाहती थी।
सोनाली- और तुमने मेरी सलवार खिसकाई थी… ये लो गई तुम्हारी स्कर्ट!
लेकिन जल्दीबाज़ी में और शायद कुछ नशे की वजह से सोनाली ने स्कर्ट के साथ साथ रूपा की पेंटी भी खिसका दी। पंकज का लण्ड सीधे अपनी बहन की चूत से जा टकराया लेकिन तब तक पंकज और रूपा भी अपनी हड़बड़ाहट से बाहर आ गए थे। रूपा गुस्से में पलटी और सोनाली के ऊपर टूट पड़ी।
रूपा- तुमने मुझे नंगी किया? मैं तुमको नहीं छोडूंगी भाभी!
सोनाली इस अचानक हमले से अपना संतुलन खो बैठी और फर्श पर तिरछी पड़ गई। रूपा ने इसका फायदा उठाते हुए उसकी पेंटी खींच ली। जब रूपा अपनी भाभी को नंगी करने की कोशिश में झुकी हुई थी तो उसके भैया उसके चूतड़ों के बीच उसकी चूत के दीदार कर रहे थे। पंकज का लण्ड जैसे फटने को था उससे रहा नहीं गया और उसने अपना टी-शर्ट खुद निकाल फेंका और पूरा नंगा हो गया।
पंकज ने तुरंत अपना लण्ड अपनी बहन के मुस्कुराते हुए भगोष्ठों (चूत के होंठ) के बीच घुसा दिया। रूपा चिहुंक उठी, और तुरंत सीधी होकर पलटी। तब तक उसके हाथ में उसकी भाभी की पेंटी आ गई थी, लेकिन अपने सामने अपने भाई को पूरा नंगा देख कर वो ठिठक कर वहीं खड़ी रह गई। उसके आँखें उसके तनतनाए हुए लण्ड पर जमी हुए थी और इसी का फ़ायदा उठा कर सोनाली ने पाछे से उसका टी-शर्ट खींच लिया। अब दोनों ननद-भाभी केवल एक-एक ब्रा में थी और पंकज बिलकुल नंगा उनको देख कर अपना लण्ड मुठिया रहा था।
रूपा भी कैसे चुप रहती वो भी सोनाली से गुत्थम-गुत्था हो गई। दोनों करीब-करीब नंगी लड़कियों में एक दूसरे को पूरी नंगी करने के लिए कुश्ती चल रही थी। पहले रूपा ने सोनाली की ब्रा निकाल ली लेकिन खुद को सोनाली के चुंगल से नहीं निकाल पाई। आखिर जब रूपा की ब्रा सोनाली के हाथ आई तब तक रूपा पलट चुकी थी लेकिन तब भी सोनाली ने उसे नहीं छोड़ा था। अब सोनाली फर्श पर पीठ के बल लेटी थी और उसने पीछे से रूपा को उसके बाजुओं के नीचे से अपने हाथ फंसा कर उसके कन्धों को पकड़ा हुआ था। दोनों पूरी नंगी थीं और दोनों की नज़रों के सामने पंकज नंगा खड़ा मुठ मार रहा था।
सोनाली- चला अपनी पिचकारी पंकज! रंग डे अपनी बहन को अपने सफ़ेद रंग से।
रूपा- नहीं भाभी छोड़ो मुझे… ही ही ही… नहीं भैया प्लीज़… सू-सू मत करना प्लीज़!!!
सोनाली- अरे तुम चलाओ पिचकारी… ही ही ही।
रूपा शायद सोनाली की बात का मतलब नहीं समझी थी। दोनों भाँग की मस्ती में मस्त होकर हँसे जा रहीं थीं। पंकज ने पहली बार अपनी बहन को नंगी देखा था और जिस तरह की नंगी लड़कियों की कुश्ती उसे देखने को मिल रही थी उसके बाद किसी भी आदमी को झड़ने में ज्यादा समय नहीं लग सकता खासकर जब उनमें से एक लड़की उसकी बहन हो।
पंकज के लण्ड से वीर्य की फुहार छूट पड़ी और पहली बूँद रूपा के स्तन पर जा गिरी। सोनाली ने उसे रूपा के चूचुक पर मॉल दिया। इस से रूपा का भी मज़ा आ गया और उसका छटपटाना बंद हो गया।
पंकज आगे बढ़ा और अगली 1-2 धार उसने रूपा और सोनाली के चेहरे पर भी छोड़ दीं। रूपा को अब तक ये तो समझ आ गया था कि ये पेशाब नहीं था। सोनाली ने वीर्य की कुछ बूँदें रूपा के चेहरे से चाट लीं और फिर रूपा को फ्रेंच-किस करके उसे भी भाई उसके भाई के वीर्य का स्वाद चखा दिया। फिर सबसे पहले सोनाली उठ खड़ी हुई और धीमी आवाज़ में मस्ती वाली अदा से पंकज को छेड़ने लगी।
सोनाली- याद है… हमारी पहली होली पर तुमने मुझे ऐसे ही रंगा था… लेकिन तब इतना रंग नहीं निकला था तुम्हारी पिचकारी से।
पंकज (शरमाते हुए)- अब क्या बोलूं… तब तुम अकेली थीं, अभी दो के हिसाब से…
सोनाली- हाँ हाँ पता है मुझे… आज दूसरी में कुछ ज्यादा ही इंटरेस्टेड हो रहे हो।
सोनाली (जोर से)- चलो सब चल के नहा लेते हैं। बहुत हो गई होली… (धीरे से) अब कुछ ठुकाई हो जाए।
पंकज डॉक्टर था तो उसने पहले ही सोनाली को समझा रखा था कि होली पर कौन सा रंग इस्तेमाल करना चाहिए। ये सूखा वाला आर्गेनिक रंग था जिसे छूटने में ज्यादा देर नहीं लगती। जल्दी ही सबका रंग तो उतर गया लेकिन भंग का रंग थोड़ा बाकी था या शायद भांग तो उतर गई थी पर मस्ती अभी भी चढ़ी हुई थी। पंकज और सोनाली शॉवर के नीचे बांहों में बाहें डाले एक दूसरे के नंगे बदन को सहला रहे थे और चुम्बन का आनन्द ले रहे थे।
रूपा उनकी तरफ ना देखने का नाटक करते हुए दूसरी तरफ मुँह करके खड़ी थी लेकिन झुक कर पैरों को साफ़ करने के बहाने से अपने पैरों के बीच से अपने भाई के लण्ड का दीदार कर रही थी जो अब वापस से सख्त लौड़ा बन चुका था। उधर चुम्बन टूटा तो पंकज, सोनाली के उरोजों पर टूट पड़ा। तभी सोनाली की नज़र रूपा पर गई जो कनखियों से उनकी ही तरफ देख रही थी।
सोनाली ने पंकज का कड़क लण्ड किसी हैंडल की तरह पकड़ा और उसे खीचते हुए पंकज को रूपा के पीछे खड़ा कर दिया। रूपा उठने को हुई तो सोनाली ने अपने एक हाथ से उसकी पीठ को दबाते हुए दूसरे से पंकज का लण्ड उसकी बहन की चूत के मुहाने पर रख दिया और फिर उसी हाथ से पंकज का चूतड़ पर एक चपत जमा दी, ठीक वैसे जैसे घोड़े को दौड़ाने के लिए उसके पिछवाड़े पर मारी जाती है।
रूपा- आह! आऊ!! आऽऽऽ
बस इतना, और अपने भाई घोड़े जैसे लण्ड के तीन धक्कों से रूपा ने अपना कुँवारापन हमेशा के लिए खो दिया। लेकिन कुँवारेपन के बोझ तले अपनी जवानी को सड़ाना चाहता भी कौन है। रूपा तो खुद कब से अपनी चूत की चटनी बनाने के लिए एक मूसल ढूँढ रही थी, जो आज उसकी भाभी ने खुद अपने हाथों से लाकर उसकी चूत पर रख दिया था। दर्द ख़त्म हो चुका था और अब जो अनुभव रूपा को हो रहा था उससे उसे ऐसा लग रहा था कि बस ये चुदाई यूँ ही चलती रहे; कभी ख़त्म ही ना हो।
सोनाली इन दोनों की उत्तेजना बढाने के लिए गन्दी गन्दी बातें बोल रही थी और कभी रूपा के स्तनों को सहला रही थी तो कभी उसे चूम रही थी। काश रूपा की कामना सच हो पाती और ये भाई बहन की चुदाई कभी ख़त्म ही ना होती।
यह कहानी यहीं समाप्त होती है लेकिन इसको पढ़ने के बाद आप पहले ही प्रकाशित हो चुकी शृंखला
होली के बाद की रंगोली
को पूरी पढ़ सकते हैं।
“होली के बाद की रंगोली” के उत्तरार्ध (Sequel) में कहानी को आगे बढ़ाया जाएगा लेकिन वो काफी बाद की बात है उसे भविष्य के लिए छोड़ देते हैं।
बाथरूम ने नहाते नहाते जब मैं रूपा को चोद रहा था, तब तक नहाने की वजह से हम सब का नशा उतर चुका था लेकिन फिर भी मेरी बीवी और रूपा को कोई आपत्ति नहीं थी और हम तीनों पूरे होश में चुदाई का लुत्फ़ उठा रहे थे।
पहले मुझे लगा कि सोना (सोनाली) नशे में है इसलिए कुछ नहीं कह रही है लेकिन फिर जब रूपा को चोदने के बाद मैं उसे चोद रहा था तो वो रूपा के साथ मस्ती कर रही थी, उसको दोबारा चुदाई के लिए तैयार कर रही थी।
आखिर में जब वो झड़ने की कगार पर पहुंची तो रूपा को मुझे किस करने को कहा और मुझे उसकी चूचियां मसलने को। मैं अपनी बहन के मुख में जीभ डाल कर उसे किस कर रहा था और साथ में बाएँ हाथ से उसे अपनी बाहों में भर के उसकी बाईं चूची मसल रहा था जबकि दाईं चूची मेरी छाती से चिपकी हुई थी। दूसरे हाथ से मैं सोना की कमर पकड़ के उसे चोद रहा था।
हम भाई बहन की ये वासना भरी स्थिति देखते हुए सोना जोर से झड़ने लगी।
बाथरूम से बाहर आकर भी किसी ने कपड़े नहीं पहने, सबने नंगे ही खाना खाया और फिर तीनों बेडरूम में ऐसे ही एक साथ लेट गए। मेरे एक तरफ रूपा और दूसरी तरफ सोना, दोनों मेरी तरफ करवट ले कर और मुझसे चिपक कर लेटी थीं।
मैंने कहा- आज जो भी हुआ वो कभी सोचा नहीं था. ना कि कभी ऐसा भी हो सकता है।
दोनों ने एक साथ कहा- हम्म्म…
“मज़ा तो बहुत आया लेकिन सोना, तुम्हें बुरा तो नहीं लगा? और रूपा तुम्हें?” मैंने दोनों से एक साथ सवाल कर दिया।
पहले रूपा बोली- शुरू में अजीब लगा था लेकिन नशे में कुछ ज्यादा समझ नहीं आया और फिर बाद में मजा आने लगा।
सोना ने भी इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- शुरू में नशे और मस्ती में ये समझ ही नहीं आया कि तुम मेरे सामने अपनी बहन चोद रहे हो. लेकिन जैसे जैसे होश आता गया, मुझे बुरा लगने की बजाए और अच्छा लगने लगा। तुम अपनी सगी बहन चोद रहे हो, यह सोच सोच कर तो मैं इतनी गीली हो गई थी कि आज तक कभी नहीं हुई।
“हाँ, वो तो मैं समझ सकता हूँ, मैंने भी तुमको कभी इतनी जोर से झाड़ते नहीं देखा। लेकिन ये सब शुरू शराब के नशे से हुआ और बाद में चुदाई के मज़े में मैंने भी ध्यान नहीं दिया कि मैं बहनचोद बन गया हूँ। इसलिए अब जब सोचता हूँ तो लगता है कि कहीं हमने कुछ गलत तो नहीं कर लिया?”
रूपा- नहीं भैया, आप ऐसा ना सोचो, मैं तो बचपन से ही आपको बहुत चाहती थी और जब जवानी आई तो आप ही वो पहले मर्द थे जिसको मैं अपनी कल्पना में चोदा करती थी। मेरे ख्याल से कोई भी लड़की कभी ना कभी अपने भाई की ओर आकर्षित ज़रूर होती है.
सोनाली- हम्म्म, वो तो है.
रूपा- क्योंकि सबसे पहले आप ही थे जिसको मैं इतना पास से देख पाती थी। और याद है वो एक बार जब आप बाथरूम से नहा के आ रहे थे और मैं जा रही थी तब आपका टॉवेल खुल गया था। वो पहली बार था जब मैंने कोई जवान लंड देखा था। उस दिन पहली बार मैंने बाथरूम में अपनी चूत में उंगली डाल के अपनी मुनिया को शांत किया था। वो तो ये समाज के नियम कानूनों की वजह से आगे कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई और इसी वजह से आज जब आज आपने अपना लंड मेरी चूत में डाला तो मैंने शुरू में थोड़ा मना भी किया लेकिन इसका मतलब ये नहीं था कि मैं ऐसा नहीं चाहती थी।
पंकज- चलो अच्छा हुआ तुमने ये सब बता दिया अब मैं बिना किसी अपराधबोध (गिल्टी फीलिंग) के तुम्हारे साथ मज़े कर पाऊंगा। और सोना, तुम बहुत हाँ में हाँ मिला रहीं थीं। तुम्हारी भी कोई ऐसी तमन्ना थी क्या अपने भाई के साथ?
सोनाली- हाँ, लेकिन यहाँ तो आग दोनों तरफ बराबर लगी थी।
रूपा- क्या बात है भाभी, फिर क्या आप पहले ही चुदवा चुकी हो अपने भाई से?
सोनाली- अरे न…हीं!
रूपा- अब समझ आया आपको हमारी चुदाई देख कर बुरा क्यों नहीं लगा। क्या बात है भैया, भाभी तो पहले से ही भाईचोद हैं.
ऐसा कहते कहते रूपा बहुत उत्तेजित हो गई और मुझसे और जोर से चिपकते हुए उसने मेरा लंड अपने हाथ में लेकर 2-3 झटके मुठ भी मार दी।
सोनाली- अरे यार बात तो सुन लो। ऐसा कुछ नहीं हुआ था हमारे बीच।
रूपा- दोनों तरफ आग बराबर लगी हो फिर भी हवनकुंड में घी ना गिरे, ऐसा कैसे हो सकता है?
सोनाली- बताती हूँ बाबा पूरी कहानी बताती हूँ:
एक बार मैं रात को पानी पीने किचन में गई तो देखा सचिन के कमरे से हल्की लाइट आ रही थी। धीरे से खिड़की का दरवाज़ा हटा कर देखा तो सचिन कंप्यूटर के सामने नंगा बैठा ब्लू फिल्म देख रहा था और साथ में मुठ मार रहा था। उसका लंड देखा तो मैं देखती ही रह गई। फिर वो थोड़ी देर बाद झड़ गया और सो गया। उस रात मुझे नींद ही नहीं आई, सारी रात आँखों के सामने उसका लंड घूमता रहा और मैं अपनी चूत में उंगली करती रही।
उसके बाद मैंने कई रातें इस चक्कर में बिना सोए बिता दीं कि शायद फिर कुछ वैसा ही देखने को मिल जाए लेकिन कभी टाइमिंग सही नहीं बैठी।
एक दिन मेरे दिमाग में आईडिया आया कि एक तरीका है जिस से मैं रोज़ वो मस्त लंड देख सकती थी। फिर एक दिन जब घर पर मैं अकेली थी तो बड़ी मेहनत से मैंने बाथरूम के दरवाज़े में ऐसा छेद किया जो आसानी से किसी को समझ ना आये।
उसके बाद जब भी सचिन नहाने जाता, मैं मौका देख के उस छेद से उसको नंगा देख लिया करती थी। लेकिन हमेशा वो लटका हुआ लंड ही देखने को मिलता था। कुछ महीने ऐसे ही बीत गए फिर एक दिन जब मैंने छेद से देखा तो सचिन ने अपना लंड हाथ में ले कर सहलाना शुरू कर दिया। देखते ही देखते वो तन के खड़ा हो गया। लेकिन सचिन मुठ मारने के जगह उससे खेल रहा था बस। उस दिन के बाद से वो रोज़ नहाते वक़्त अपने लंड से खेलता और कभी कभी मुठ भी मारता।
मेरे दिन मज़े में कट रहे थे। जब घर में कोई और ना होता तो मैं नंगी हो कर जाती और उसको देखते देखते अपनी चूत और चूचों के साथ खेल कर झड़ भी जाती थी। लेकिन एक दिन मेरे मन में ख्याल आया कि पहले तो सचिन कभी अपने लंड से नहीं खेलता था फिर अचानक अब रोज़ ऐसा क्यों करने लगा? मुझे शक हुआ कि कहीं इसे पता तो नहीं कि मैं उसे देखती हूँ। पर अगर ऐसा ही था तो मतलब वो इस छेद के बारे में जानता था और वो भी इसका इस्तेमाल करता होगा।
उसके बाद जब मैं नहाने गई तो मैंने ध्यान देना शुरू किया। मेरी नज़र उस छेद पर ही टिकी थी। थोड़ी देर बाद सच में उस छेद से जो थोडा लाइट आ रहा था वो बंद हो गया। मतलब कोई मुझे देख रहा था।
लेकिन कौन था ये नहीं कहा जा सकता था। अगले दिन मैं बाथरूम में आ कर नंगी हुई और शावर चालू करके तुरंत मैंने अन्दर से बाहर की तरफ देखना शुरू किया। थोड़ी देर बाद देखा सचिन आया दरवाज़े के पास आकर बैठ गया। मैं तुरंत खड़ी हो गई और नहाने लगी।
लेकिन मेरे दिमाग में ये ख्याल भी था कि मेरा भाई मुझे नंगी नहाते हुए देख रहा था और इसलिए मैं ना केवल बाहर से नहा रही थी बल्कि अन्दर से भी बहुत गीली हो गई थी। आखिर मैंने भी चूत में ऊँगली करके खुद को शांत किया।
उसके बाद हम दोनों एक दूसरे को उस छेद से अपनी जवानी के जलवे दिखने लगे। कभी कभी मैं बड़ी कामुक अदा से नहाती तो कभी अपने नंगे शरीर से खेलती रहती। और वो भी यही सब करता था। लेकिन कभी ना उसकी हिम्मत हुई कि इस से आगे कुछ करे और ना मेरी हिम्मत हुई। समाज के ये सब जो कायदे हमें शुरू से सिखा दिए जाते हैं इसकी वजह से एक सीमा के बाद आगे बढ़ना मुश्किल लगता है। एक डर बैठा होता है दिल में कि अगर कुछ किया तो पता नहीं क्या होगा.
और इस से पहले कि हम दोनों में से कोई इस डर से मुक्ति पाने की कगार पर आता, मेरी शादी हो गई और मैं यहाँ आ गई।
रूपा- वाह भाभी! वाह! क्या दिमाग पाया है। ये आईडिया मुझे क्यों नहीं आया। मैं बेकार कल्पना में ही भैया के लंड के बारे में सोच सोच के जैसे तैसे खुद को संतुष्ट किया करती थी।
सोनाली- अरे, लेकिन दिमाग से क्या होता है। किस्मत तो तुम्हारी ज्यादा अच्छी निकली ना। मुझे तो बस देखने को मिलता था, तुम्हें तो चोदने को मिल गया। और शायद तुम कल्पना में ज्यादा रहीं इसलिए तुम्हारे अन्दर दबी हुई भावनाएं ज्यादा थीं इसीलिए शायद आज तुमने कायदों को ताक पर रख दिया. मुझे कुछ हद तक संतुष्टि मिल जाया करती थी इसलिए कभी ज्यादा हिम्मत नहीं कर पाई.
सोनाली की शक्ल देख कर मुझे उस पर तरस आ गया और मैंने बोल दिया- यार तुम फिकर ना करो, तुमने हम दोनों भाई बहन की चुदाई में मदद की है तो हमारा भी फ़र्ज़ बनता है कि हम तुमको तुम्हारे भाई से चुदवाने में मदद करें।
सोनाली की तो जैसे लाटरी लग गई हो, वो तुरंत ख़ुशी से उठ कर बैठ गई और और कहने लगी- वाओ, सच! मगर कैसे? और सचिन मुझे चोदना चाहेगा या नहीं?
पंकज- अरे बाबा इतना टेंशन ना लो। देखो तुमने खुद बोला ना कि समाज के डर से तुम्हारी हिम्मत नहीं हुई लेकिन अब तो तुम अकेली नहीं हो ना। हम भी तुम्हारे साथ हैं। जैसे आज तुमने हमें चुदाई के लिए प्रोत्साहित किया वैसे हम भी तुम दोनों भाई बहन की चुदाई के लिए सही माहोल बनाने में मदद करेंगे। तुम वो सब चिंता अभी से ना करो, कुछ ना कुछ प्लान तो बन ही जाएगा।
रूपा- हाँ भाभी, हम आपको आपके भाई से ज़रूर चुदवाएंगे लेकिन अभी तो आप हम दोनों भाई बहन की चुदाई की चीअर लीडर बनो।
इतना कह कर रूपा भी उठ कर बैठ गई और मेरा लौड़ा, जो उसने अब तक सहला सहला के कड़क कर दिया था उसको, अपनी चूत पर सेट करने लगी। सोनाली भी ख़ुशी में हम दोनों को प्रोत्साहित करने लगी।
सोनाली- हाँ हाँ क्यों नहीं मेरे भेनचोद पति की चुदक्कड़ बहन, जितना चुदवाना है चुदवा। अपने भाई के लंड पर बैठ कर घुड़सवारी कर। और पंकज तुम भी चलाओ अपना लंड इसकी चूत में जैसे इंजन में पिस्टन चलता है। बुझा दो इसकी चूत की आग अपने लंड के पानी से।
सोनाली की बातें हमारी उत्तेजना और बढ़ा रही थीं और मेरी बहन मेरा लंड अपनी चूत में लिए उसके ऊपर उछल रही थी। मैं भी नीचे से उसका साथ दे रहा था और साथ ही दोनों हाथों से उसके चूचे भी मसल रहा था।
इस तरह हम तीनों ने मिल कर रात भर चुदाई की।
एक बार तो वो दोनों 69 की पोजीशन में एक दूसरी की चूत का दाना चूस रहीं थीं और मैं बारी बारे दोनों की चूत चोद रहा था। दोनों ने मिल कर कई बार मेरा लंड भी चूसा और एक बार तो दोनों में होड़ लगी थी कि मैं किसके मुँह में झडूंगा।
ऐसे ही मस्ती करते करते वो रात तो निकल गई और फिर अगले दिन से हम रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में व्यस्त हो गए। रूपा अब हम दोनों के साथ ही सोने लगी थी और हम सब मिल कर सेक्स किया करते थे।
हमारे दिन (और रातें) मज़े में कट रहे थे। मुझे 2-2 चूत चोदने को मिल रहीं थीं। घर में किसी की शर्म लिहाज़ करने की ज़रुरत नहीं थी। सब सारा समय नंगे ही रहते थे। XXX विडियो टीवी पर ऐसे चलते थे जैसे घरों में आम तौर पर म्यूजिक चैनल चलते हैं, माहौल एकदम मस्त था।
लेकिन एक दिन जब सोनाली को चोदने के बाद मैं रूपा को चोद रहा था तो मैंने देखा कि सोनाली लेटे-लेटे हमें देख रही है लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था जैसे किसी और ख्याल में खोई हुई हो।
तब अचानक मुझे याद आया कि उसे भी अपने भाई की याद आ रही होगी। हम दोनों भाई-बहन की चुदाई देख कर उसका भी मन उसके भाई से चुदवाने को करता होगा। हमने उससे वादा भी किया था लेकिन हम अपने मज़े में इतने खो गए थे कि भूल ही गए।
मुझे ये सोच सोच कर बहुत आत्मग्लानि का अनुभव हुआ और मैं झड़ नहीं पाया। जैसे ही रूपा झड़ी, मैंने अपना लंड बाहर निकाला और मैं दोनों के बीच लेट गया। मेरा खड़ा तना हुआ लंड देख कर सोनाली बोली- अरे तुम्हारा तो अभी भी खड़ा हुआ है। लाओ मैं एक बार फिर चुदवा लेती हूँ।
पंकज- नहीं, अभी मूड नहीं है।
सोनाली- अरे ऐसा क्या हो गया? अभी तो पूरे जोश में रूपा की चुदाई कर रहे थे।
पंकज- वही तो… जब मैं उसे चोद रहा था तो मैंने देखा तुम पता नहीं किन ख्यालों में खोई हुई हो। तब मुझे याद आया कि तुमको भी शायद सचिन से ऐसे ही चुदवाने तमन्ना हो रही होगी। और हमने तुमको वादा भी किया था लेकिन हम भूल ही गए। मुझसे तुम्हारी उदासी देखी नहीं गई इसलिए मूड ख़राब हो गया।
इतना सुनते ही सोनाली ने मुझे गले लगा लिया और जोर से एक चुम्मी लेकर मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़ते हुए बोली- जिसका पति उसके बारे में इतना सोचता हो वो भला उदास कैसे रह सकती है। आपने बिल्कुल सही समझा, मैं अपने भाई के ख्यालों में ही खोई हुई थी। लेकिन मुझे पता है आप अपना वादा नहीं भूले हैं और निभाएंगे भी इसलिए अभी तो मुझे आप पर बहुत प्यार आ रहा है।
उसकी आँखों में आंसू भर आये थे और मुझे पता था वो ख़ुशी के आंसू थे। उसने मुझे बहुत ही कोमल सा चुम्बन किया और हम एक दूसरे के होंठों को हौले हौले चूसने लगे। इस चुम्बन में वासना की उफान नहीं बल्कि सच्चे प्यार की स्थिरता थी। हम दोनों एक दूसरे की ओर करवट किये हुए लेटे थे और एक दूसरे को बाहों में भरे हुए सर से पाँव तक एक दूसरे से चिपके हुए थे। हमारी जांघें और पैर आपस में ऐसे गुत्थम गुत्था थे जैसे आपस में बंध जाना चाहते हों।
स ऐसे ही चिपके हुए मैं कभी उसकी पीठ सहलाता तो कभी नितम्बों से होता हुआ जाँघों तक हल्के से सहला देता, तो कभी स्तनों के बाजू से अपनी उंगलियाँ सरसरा देता।
सोनाली ने धीरे से अपना हाथ पीछे से अपने दोनों पैरों के बीच सरकाया और उसकी दोनों जाँघों के बीच दबे मेरे लिंग को धीरे से अपनी योनि में फिसला दिया। ना तो हमारा चुम्बन टूटा, ना ही आलिंगन लेकिन हम दोनों ने धीरे धीरे अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया। कभी वो हल्के से मेरे नितम्बों को अपनी हथेलियों से मसल देती तो कभी मैं अपने हाथों से उसके स्तनों तो दबा देता या फिर उसके नितम्बों को अपनी हथेलियों का सहारा देकर अपना लिंग उसकी योनि की गहराइयों तक पहुंचा देता।
यह सब हम बहुत आराम से और हौले हौले कर रहे थे। ऐसा लग रहा था मानो आज हमने पहली बार प्यार करना सीखा था। ना जाने कब तक हम ऐसे ही धीरे धीरे अपने इस अनूठे समागम के आनन्द में गोते लगाते रहे।
और भी अजब बात यह थी कि जब हम अपने अतिरेक पर पहुंचे तो भी हमारी रफ़्तार बहुत तेज़ नहीं हुई, ना ही हमारा आलिंगन या चुम्बन टूटा। लेकिन इतनी देर तक पहले कभी हमने पराकाष्ठा (climax) का अनुभव नहीं किया था। काफी देर तक मेरा लिंग सोनाली की योनि में वीर्य की वर्षा करता रहा और उसकी योनि भी मेरे लिंग को ऐसे चूसती रही जैसे कोई बच्चा अपना अंगूठा चूसता है।
सब ख़त्म होने के बाद भी हम ऐसे ही चिपके पड़े रहे, बीच बीच में कभी कभी मेरा लिंग झटका मार देता तो उसकी योनि भी कस जाती या उसकी योनि में खिंचाव आ जाता और उसकी वजह से मेरा लिंग झटके मारने लगता।
हम पता नहीं कितनी देर ऐसे ही पड़े रहते लेकिन रूपा हमें वापस इसी दुनिया में वापस ले आई।
रूपा- भैया!!! भाभी!!! ये क्या था?
तब हमें होश आया कि हम अकेले नहीं थे। मैंने धीरे से सोनाली की पीठ पर हाथ फेरा और उसे सहलाते हुआ अपना लिंग बाहर निकाल लिया और उसके गालों पर एक प्यार भरा चुम्बन देकर मैं बैठ गया।
सोनाली भी उठ कर बैठ गई थी।
मैं- यार क्या था ये तो नहीं पता लेकिन ऐसा पहले कभी अनुभव नहीं किया था। शायद इसी को प्यार करना कहते हैं।
रूपा- तो अब तक जो हम कर रहे थे वो क्या था?
सोनाली- वो चुदाई थी!
और इतना कह कर सोनाली हंस पड़ी। हम दोनों भी हंसने लगे। खैर उस वक़्त तो रात बहुत हो गई थी और हमको सबको नींद आ रही थी इसलिए हम सो गए लेकिन एक बात जो मुझे समझ आई वो यह कि जब सेक्स में इमोशन (भावनाएं) भी हों तो वो एक अलग ही अनुभव होता है। लेकिन अब भावनाएं कोई K-Y जेली तो है नहीं कि बाज़ार से लाओ और चूत में लगा के चुदाई का मज़ा बढ़ा लो। वो तो जब आना होता है तभी आती हैं। और चुदाई का मजा तो कभी भी लिया जा सकता है।
इसलिए ज्यादा भावनाओं में बहने के बजाए मैं अपनी बीवी को उसके भाई से चुदवाने के तरीके सोचने लगा। अगला दिन इसी उधेड़बुन और रोज़मर्रा के कामॉम में निकल गया। रात को जब सब खाना खाने बैठे तब मैंने ये बात निकाली- मेरे इस बारे में सोचने से ही अगर सोनाली को मुझ पर इतना प्यार आ सकता है तो सोचो अगर मैंने सच में अगर इसको इसके भाई से चुदवा दिया तो ये मुझे कितना प्यार करेगी।
सोनाली- हाँ, मैं यही सोच कर इतना भावुक हो गई थी कि मेरा पति मुझे कितना प्यार करता है। मेरी ख़ुशी के लिए वह ये काम तक करने को तैयार है जो कोई पति सपने में भी मंजूर नहीं करता।
रूपा- नहीं भाभी, मैंने अपनी शादीशुदा सहेलियों से सुना है कई पति आजकल स्वैपिंग करते हैं। अपनी पत्नियों को दूसरों से चुदवाते हैं और खुद उनकी पत्नी को चोदते हैं।
सोनाली- हाँ… लेकिन वो तो ये सब अपनी मस्ती के लिए करते हैं ना। मेरे भाई की तो कोई बीवी भी नहीं है।
रूपा- हाँ, लेकिन बदले में आपने भी तो भैया को मुझे चोदने दिया ना।
सोनाली- हाँ, क्योंकि मैं भी तुम्हारे भैया से उतना ही प्यार करती हूँ, इनकी ख़ुशी के लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ।
मैं- सो स्वीट! तुमको जो करना था वो तुम कर चुकीं लेकिन अभी तो हमको तुम्हारी ख़ुशी के लिए कुछ करना है ना। तो देखो मैंने बहुत सोचा है इस बारे में। हमको बहुत सम्हाल कर कदम उठाने पड़ेंगे। कुछ गड़बड़ हो गई तो ना केवल तुम बल्कि मैं और रूपा भी बदनाम हो जाएंगे।
सोनाली- हाँ वो तो है। देखो अगर आसानी से हो सकता हो तो ठीक है नहीं तो रहने दो। मैं तुम्हारे साथ ही खुश हूँ।
मैं- चिंता ना करो, मैंने बहुत सोच समझ कर ऐसा प्लान बनाया है कि खतरा बहुत कम है।
रूपा- क्या प्लान है वो भी तो बताओ?
पंकज- देखो, 2-3 महीने बाद राखी है। तब तक तुम सचिन से फ़ोन पर बातें करते समय पता करो कि वो भी अब तक तुम्हारे बारे में वैसा ही सोचता है या नहीं। हो सके तो थोड़ी भूमिका भी बना लेना और फिर राखी पर उसको एक हफ्ते के लिए बुला लो यहाँ। त्यौहार ही ऐसा है कि कोई शक भी नहीं करेगा और काम भी हो जाएगा।
रूपा- अरे यार नहीं भैया, मैंने तो इस राखी के लिए बहुत प्लान बना रखे थे कि इस बार कुछ स्पेशल तरीके से मनाऊँगी आपके साथ। कोई और टाइम सोचो ना?
पंकज- हम्म… ऐसा है तो… एक काम करेंगे!!… सोनाली, तुम उसको राखी से पहले ही बुलवा लेना तो अगर सब कुछ सही हुआ तो राखी से पहले ही सोनाली सचिन से चुदवा चुकी होगी और फिर हम चारों मिल कर तुम्हारे हिसाब से स्पेशल राखी मना लेंगे।
रूपा- हाँ ये बात कुछ ठीक है. और वैसे भी भाभी की वजह से ही तो मैं आपके साथ इतना खुल पाई हूँ। इनकी इजाज़त ना होती तो आज हम तीनों यहाँ नंगे बैठ कर खाना न खा रहे होते। इसलिए इनके लिए इतना रिस्क तो ले ही सकते हैं।
सोनाली- अब खाना खत्म हो गया हो तो बेडरूम में चलें। एक तो तुम लोगों ने मेरी और सचिन की चुदाई की बात कर करके मुझे इतना गर्म कर दिया है कि देखो ये कुर्सी तक गीली हो गई मेरे चूत के रस से।
पंकज- ऐसा है तो चलो रूपा, आज स्वीट डिश में तुम्हारी भाभी की चूत का रस ही चाट लेंगे दोनों भाई-बहन।
इसके साथ ही सब हंस पड़े और हाथ मुह धो कर अगली चुदाई के लिए तैयार होने लगे।
अगले दिन मैं क्लीनिक चला गया और रूपा कॉलेज, तब सोनाली ने सचिन (सोनाली का भाई) को कॉल लगाया।
सोनाली- क्या बात है यार, तुम तो अपनी बहन को भूल ही गए? कभी खुद भी कॉल कर लिया करो।
सचिन- नहीं दीदी, आपको कैसे भूल सकता हूँ, वो ज़रा प्रोजेक्ट में बिजी हो गया था। फाइनल इयर है ना तो इसलिए!
सोनाली- ओह हाँ! वो तो है, फिर सारा टाइम पढ़ाई में ही लगे रहते हो या कोई दोस्त भी बनाई है?
सचिन- ‘बनाई है?’ मतलब आप गर्लफ्रेंड के बारे में पूछ रही हो? पहले तो कभी नहीं पूछा जब यहाँ थीं तब। अब क्या जीजाजी की संगत का असर हो गया जो भाई की गर्लफ्रेंड की फिकर होने लगी।
सोनाली- हा हा हा… नहीं यार, सोचा अब तुम हमें मिस नहीं करते हो तो शायद कोई गर्लफ्रेंड बना ली हो। हम तो तुम्हें बहुत मिस करते हैं। अभी नहाने जा ही रही थी कि सोचा तुमको फ़ोन करके पूछ लूँ कि तुमको हमारी याद क्यों नहीं आती।
सचिन- ओह्ह… मतलब… हम्म… अब मैं क्या बोलूँ?
वो सोनाली की बात में छिपा इशारा समझ गया था लेकिन पहले कभी उसने सोचा नहीं था कि सोनाली कभी इस बारे में बात करेगी। वैसे सोनाली और सचिन दोनों ही ये जानते थे कि वो एक दूसरे को छिप छिप कर नहाते हुए देखते थे। दोनों ये भी समझते थे कि ये बात दोनों को पता है क्योंकि दोनों ना केवल देखते थे बल्कि दिखाते भी थे।
सचिन ने सोनाली की जो अदाएं देखीं थीं उस छेद से उसे देखने के बाद वो भी जानता था कि उसकी दीदी उसको रिझाने की पूरी कोशिश कर रही थी।
लेकिन एक तो माता-पिता के साथ एक छोटे घर में रहते हुए दोनों का साथ में अकेले होना ही बहुत कम होता था उस पर कभी पढ़ाई की टेंशन तो कभी किसी का मूड ठीक नहीं। इन सब के बाद भी जो कुछ मौके मिले तो फटी पड़ी रहती थी कि कहीं कुछ गलत हो गया तो जितना मजा मिल रहा है वो भी हाथ से ना चला जाए। कभी कभी जब जैसे तैसे हिम्मत जुटाई तो मौका ही हाथ से फिसल जाता था।
ऐसे करते करते काफी समय हाथ से निकल गया और फिर सोनाली की शादी हो गई।
आज जब सोनाली ने इशारे में ही सही लेकिन वही पुराने तार छेड़े तो सचिन के दिल कि धड़कन अचानक बढ़ गई और वो हड़बड़ा गया लेकिन फिर उसने अपने आप को सम्हालते हुए कहा- दरअसल दीदी ऐसा है ना, कि मैं कॉलेज में थोड़ा पढ़ाकू लड़कों की श्रेणी में आता हूँ, तो जो लड़कियाँ सारा टाइम पढ़ाई की ही बात करती हैं, बस उन्ही से बात हो पाती है। बाकी किसी से बात करने का कभी मौका ही नहीं मिलता, तो पढ़ाई के अलावा लड़कियों से कैसे बात करना है उसमें मैं थोड़ा कमज़ोर हूँ।
सोनाली- अच्छा ये बात है। तो ठीक है, तू एक काम कर कुछ दिन के लिए यहाँ आ जा, यहाँ पंकज की बहन रूपा भी हमारे साथ रहती है। कुछ दिन उसके साथ रहेगा तो तेरी झिझक भी निकल जाएगी और क्या पता तुझे रूपा ही पसंद आ जाए और तू उसे ही गर्लफ्रेंड बना ले।
सचिन- बात तो ठीक है लेकिन यहाँ मम्मी-पापा को क्या कहूँगा कि पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर मैं कुछ दिन के लिए दीदी के पास जा रहा हूँ और वो भी लड़की पटाने की ट्रेनिंग लेने? हा हा हा…
सोनाली- ओके बाबा! लेकिन राखी पर तो आ सकता है ना? उसके लिए तो कोई मना नहीं करेगा?
सचिन- हाँ वो तो है। तब तक मेरा प्रोजेक्ट भी ख़त्म हो जाएगा।
सोनाली- गुड! अच्छा ठीक है अब रखती हूँ… नहाने जा रही हूँ… अब तो तू ज़रूर मिस करेगा मुझे।
शरारती अंदाज़ में इतना कह कर सोनाली ने फ़ोन रख दिया और नहाने चली गई। आज उसकी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं थीं और वो साधारण तरीके से नहाने के बजाए उसी कामुक तरीके से नहा रही थी जैसे उसका भाई अभी भी उसे देख रहा है। उसने अपने उरोजों को अपने दोनों हाथों में भर के मसला और चूचियों को चुटकी से पकड़ कर उमेठा, फिर खींचा।
पानी से भीगते अपने बदन को सहलाते हुए अपना दायाँ हाथ वो अपनी जाँघों के बीच ले गई और अपनी एक उंगली से भगनासा (क्लिटोरिस, चूत का दाना) को सहलाने लगी। एक एक करके बाकी उंगलियाँ उसने अपनी चूत में डाल लीं और अन्दर बाहर करने लगी। उसकी आँखें बंद थीं और उसके मन में उसके भाई का लंड घूम रहा था.
आम तौर पर सोनाली हस्त-मैथुन नहीं करती थी। खासकर शादी के बाद तो उसने ऐसा कभी नहीं किया था लेकिन आज अपने भाई के लंड की कल्पना करते हुए उसे ऐसा करने में बड़ा मजा आया था। वो सोचने लगी कि जब वो सच में उसे चोदेगा तब कैसा लगेगा।
उधर सचिन की धड़कन अभी भी बढ़ी हुई थी, उसका मन अब प्रोजेक्ट में नहीं लग रहा था, बेचैनी में वो इधर उधर टहल रहा था, उसका लंड खड़ा तो नहीं था लेकिन उसमें एक अजीब सी गुदगुदी सी हो रही थी जैसे नींद खुलने पर अंगड़ाई लेने का मन करता है, वैसे ही उसका भी अपने लंड को मसलने का मन कर रहा था।
आखिर ऐसे ही टहलते टहलते जब वो बाथरूम के पास से गुज़रा तो उसे अन्दर नहाने की आवाज़ सुनाई दी। उसे पता था कि अन्दर उसकी माँ नहा रही होंगी क्योंकि उस वक़्त घर में वो दोनों ही थे।
शारदा वैसे तो दो बड़े बच्चों की माँ थी लेकिन हमेशा अपने काम में क्रियाशील रहने और व्यस्तता के कारण उनका शरीर सुडौल और त्वचा सुन्दर थी।
वैसे तो सचिन ने कभी शारदा को इस नज़र से नहीं देखा था लेकिन आज उसकी बेचैनी ने उसे मजबूर कर दिया था। उसने सोचा न समझा और अपनी आँख उस छेद से लगा दी जिससे वो अपनी बहन सोनाली को देखा करता था। उसकी आँखों ने जो देखा उसकी खबर शायद उसके दिमाग से भी पहले उसके लंड को लग गई थी, वो लंड जो अब तक बेचैन पड़ा करवटें बदल रहा था, वही अब अंगड़ाई ले कर उठ खड़ा हुआ था।
सचिन ने अपना लंड अपनी मुट्ठी में लेकर हिलाना शुरू कर दिया। उसने पहली बार अपनी मम्मी के हुस्न को इस तरह नंगा देखा था। 36-30-35 का सुडौल बदन, डी कप साइज के बड़े बड़े उरोज जो ज़्यादा लटके नहीं थे और वो मस्त गोल भरे हुए नितम्ब… सचिन का लंड थोड़ी ही देर में झड़ गया, वो इतना ज्यादा झड़ा जितना पहले कभी नहीं झड़ा था।
वैसे तो 42 साल की शारदा अपनी बेटी सोनाली से कुछ काम सुन्दर नहीं थी लेकिन आज सचिन के इस कदर झड़ने का करण इससे कहीं ज़्यादा था। एक तो बहन की शादी के बाद से उसे कोई मौका नहीं मिला था। फिर अभी अभी सोनाली ने पुरानी यादें ताज़ा कर दी थीं और इन सब पर तुर्रा ये कि उसने अपनी माँ को नंगी देखा था।
सनी लियोनी को नंगी देख कर किसी को इतना झटका नहीं लगेगा जितना किसी पड़ोस की लड़की को नंगी देख कर लगेगा क्योंकि जिस बात की आप अपेक्षा नहीं करते, जब वो होती है तो उत्तेजना ज़्यादा होती है। और अगर वो औरत आपकी माँ हो तो फिर तो बात नियंत्रण से बाहर हो जाती है।
सचिन भी इतनी उत्तेजना सहन नहीं कर पाया और जल्दी से लंड और हाथ धोकर अपने कमरे में जा कर सो गया।
सोनाली भी अपने भाई की कल्पना में डूबी रही सारा दिन और जब शाम को पंकज घर आया तो उस पर टूट पड़ी। वहीं ड्राइंग रूम में ही उसे नंगा करने लगी, बड़ी मुश्किल से पंकज जैसे तैसे दरवाज़ा बंद कर पाया।
रूपा अभी वापस नहीं आई थी क्योंकि वो अपने दोस्तों के साथ कॉलेज के बाद फिल्म देखने चली गई थी। सोनाली और पंकज दोनों घर में अकेले ही थे। खैर अकेले न होते तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता।
सोनाली तो पहले से ही नंगी थी। पंकज के कपड़े उतरते ही सोनाली ने इसका लटका हुआ लंड अपने मुँह में भर लिया। अब क्लीनिक से ट्रैफिक के धक्के खा कर आए हुए आदमी का लंड इतनी आसानी से तुरंत तो खड़ा नहीं हो सकता। सोनाली उसे चूसे जा रही थी और वो नर्म पड़ा 4 इंच का ही उसके मुंह में भरा हुआ था। वैसे तो अभी सोनाली को गले तक लंड लेना नहीं आया था। लेकिन अभी लंड की जो अवस्था थी, उसमें सोनाली ने उसे जड़ तक अपने मुँह में ले रखा था और उसके होंठ पंकज के अंडकोष को छू रहे थे।
यह पंकज के लिए एक नया अनुभव था और उसके छोटे मियाँ को खड़े होने में देर नहीं लगी। जब वो पूरी तरह खड़ा हो गया तो पंकज ने कोशिश की कि वो उसे सोनाली के मुँह से निकाल कर चूत में डाल दे, लेकिन जब सोनाली ने छोड़ने से मना कर दिया तो पंकज ने सोनाली को कमर से पकड़ कर उठाया और उसकी जाँघों को अपने कन्धों पर रख कर खड़ा हो गया अब वो खड़े खड़े अपनी बीवी की चूत चाट रहा था और सोनाली उसके कन्धों पर उलटी लटकी हुई उसका लंड चूस रही थी।
तभी रूपा भी घर आ गई थी, उसने हमेशा की तरह अपनी चाभी से दरवाज़ा खोला और सामने जो देखा तो देखती ही रह गई। कुछ देर तक तो वो यूँ ही अवाक् खड़ी उनको देखती रही, फिर जब उसे होश आया तो उसने दरवाज़ा बंद किया और जल्दी से कपड़े निकाल कर अपने भाई के पीछे से जाकर उससे चिपक गई। फिर धीरे से नीचे सरकते हुए भैया के नितम्बों को चूमते हुए उनकी दोनों जाँघों के बीच अपना सर डाल कर रूपा उनके बॉल्स (अंडकोष) चूसने लगी।
शायद इसी वजह से थोड़ी ही देर में पंकज, सोनाली के मुँह में झड़ने लगा।
वैसे तो शायद सोनाली उसका पूरा रस चूस जाती लेकिन शायद रूपा के अंडे चूसने की वजह से रस कुछ ज़्यादा ही निकल गया था या फिर उलटे लटके होने की वजह से सोनाली कण्ट्रोल नहीं कर पाई और थोड़ा वीर्य उसके मुँह से छलक कर नीचे बहने लगा जिसको रूपा ने जल्दी से चाट लिया।
यह देख कर सोनाली इतना उत्तेजित हो गई कि वो भी तुरंत झड़ने लगी।
उसके बाद पंकज ने उसको नीचे उतारा और सोनाली ने रूपा के होंठों पर लगा पंकज का वीर्य चाटना शुरू कर दिया। रूपा ने भी उसके होंठों और गालों पर जो वीर्य लगा था वो चाट लिया।
यह देख कर पंकज हंस पड़ा और फिर सब हंसने लगे।
इसके बाद सबने खाना खाया और बैडरूम में सोने चले गए।
आज सोनाली अलग ही मूड में थी- आज तुम दोनों भाई बहन चुदाई करो, मैं बस देखूंगी।
रूपा- क्यों भाभी? ऐसा क्यों?
सोनाली- कुछ नहीं, आज कल्पना में मैं सचिन के साथ चुदाई करना चाहती हूँ तो तुमको देख कर मुझे थोड़ी प्रेरणा मिल जाएगी।
और फिर पंकज ने रूपा को खूब चोदा और उनको देख देख कर सोनाली ने जी भर के अपने भाई के नाम की चूत-घिसाई की। लेकिन आज रूपा और सोनाली ने एक नया खेल सीख लिया था, मिल बाँट कर लंड का रस पीने का खेल। पंकज चूत में झड़े या मुँह में या कहीं और भी झड़े, रूपा या सोनाली उसे चाट कर अपने मुँह में भर लेती और फिर दोनों उसे एक दूसरी के मुँह से चाट कर या चूस कर निकालती और पी जाती।
ननद भौजाई के इस खेल ने उनके रिश्ते हो और मज़बूत कर दिया था, उन दोनों की कोई सगी बहन नहीं थी लेकिन अब वो एक दूसरे को अपनी बहन की तरह ही मानने लगी थी।
कुछ दिन ऐसे ही गुज़र गए फिर एक दिन सोनाली को सचिन का कॉल आया।


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