होली का नया रंग बहना के संग
सोनाली ने फ़ोन उठाया देखा सचिन का कॉल है- हेल्लो! तुझे आज मेरी याद कैसे आ गई?
सचिन- कुछ नहीं नहाने जा रहा था तो तुम्हारी याद आ गई। हा हा हा!
सोनाली- हे हे… क्या बात है दो हफ्तों में तेरे तो पर ही निकल आये?
सोनाली के मन में यह सुन कर हल्की सी गुदगुदी तो ज़रूर हुई थी कि अब सचिन भी थोड़ा खुलने लगा था, इशारों में ही सही। लेकिन वो वो फ़ोन पर इशारों से आगे ज़्यादा खुलना चाहती भी नहीं थी क्योंकि फ़ोन पर एक हद से आगे आप जा नहीं सकते और फिर मामला बीच में लटक जाता है।
सचिन- काश पर निकल आते तो उड़ कर अभी वहां ही आ जाता।
सोनाली- क्या बात है! रूपा से मिलने की इतनी जल्दी हो रही है क्या?
सचिन- नहीं, रहने दो आप नहीं समझोगी।
सोनाली ने जान बूझ कर बात को घुमा दिया था। वो जानती थी कि सचिन उसी से मिलने के लिए इतना बेक़रार हो रहा था। इस बात से वो मन ही मन खुश भी थी- और सुना, मम्मी कैसी हैं?
सचिन- मस्त हैं मक्खन मलाई के जैसी!
सोनाली मन में सोचने लगी ‘ये आज इसे क्या हो गया है पहले तो कभी मम्मी के बारे में ऐसे बात नहीं की इसने?’
सोनाली- क्यों आज मम्मी को इतना मस्का क्यों मार रहा है तू?
सचिन- मस्का मार नहीं रहा हूँ यार मम्मी तो खुद ही मस्का हैं।
सोनाली- कहीं तू…?
फिर मन में सोचने लगी ‘मम्मी के साथ भी वही गेम तो नहीं खेल रहा?’
सचिन- अच्छा दीदी मैं चलता हूँ.
बुदबुदाते हुए ‘मम्मी नहाने चली गईं।’
और सचिन ने फ़ोन रख दिया।
सोनाली को अब यकीन हो गया था कि सचिन बाथरूम के छेद से मम्मी को नंगी नहाते हुए देखने जा रहा था। शायद ये पहली बार नहीं था तभी तो मम्मी को मक्खन मलाई बोल रहा था। ये सब बातें सोच कर सोनाली चिंतित भी थी और उत्तेजित भी।
शाम को जब सब खाना खाने बैठे तो सोनाली ने बताया कि पिछले कुछ दिनों में उसकी सचिन से क्या क्या बातें हुई हैं और वो न केवल राखी पर आने को तैयार है बल्कि शायद वो इस बात को लेकर उत्तेजित भी है।
सोनाली- इशारों इशारों में मैंने छेड़ा कि अब वो मुझे बाथरूम में नहाते हुए नहीं देख पाता होगा। पहले तो वो थोड़ा झिझक गया था लेकिन आज तो उसने जो कहा उससे साफ़ समझ आता है कि न केवल वो मुझे फिर से नंगी देखना चाहता है बल्कि शायद उसने मम्मी को नहाते हुए देखना शुरू कर दिया है।
रूपा- भाभी, मेरे ख्याल से तो आप पक्का चुदने वाली हो इस बार राखी पर अपने भाई से।
पंकज- लेकिन मेरे प्लान के हिसाब से तो सोनाली के पहले तुमको उससे चुदवाना पड़ेगा।
रूपा- क्यों शुरुआत मुझसे क्यों?
पंकज- देखो तुम उस से चुदोगी तो वो तुमसे अपने दिल की बात खुल कर करने लगेगा और फिर तुम आसानी से ये पता कर पाओगी कि वो बहन चोद बनने के लिए कितना तैयार है और फिर उस हिसाब से हम आगे की प्लानिंग आसानी से कर पाएंगे।
रूपा- बात तो आप सही कह रहे हो।
सोनाली- हाँ वैसे भी मैंने उसको रूपा से दोस्ती कराने का लालच दे कर ही बुलाया है।
रूपा- भाऽऽभी! चुदवाना खुद को है और नाम मेरा लगा दिया।
सोनाली- अब यार अभी से ऐसे तो नहीं कह सकती थी न कि भाई मैं तेरे से चुदवाने के लिए बेक़रार हो रही हूँ, जल्दी आ जा।
इस बात पर सभी हंस दिए।
फिर सोनाली ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- एक बात और है, जैसा मुझे पक्का लग रहा है कि सचिन आजकल हमारी मम्मी को नंगी देख कर मुठ मारने लगा है तो आज दिन भर मैं सोच रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि मुझे चोदने के बाद उसकी हिम्मत बढ़ जाए और उसका अगला टारगेट मम्मी बन जाए।
पंकज- वो बाद की बात है यार, पहले तुम तो चुद लो उसके बाद देखेंगे कि उसके भेजे में क्या चल रहा है।
रूपा- लेकिन भैया, इस बात से मेरे दिमाग में एक खुराफात आई है।
पंकज, सोनाली- क्या?
रूपा- हम तीनो बहुत दिनों से एक साथ सेक्स कर रहे हैं और सारे आसन और जुगाड़ ट्राई कर चुके हैं। बहुत दिन से कुछ अलग नहीं किया और हमारी चुदाई अब थोड़ी बोरिंग होने लगी है। सचिन को आने में अभी एक महीना बाकी है। तब तक क्यों न हम कुछ नया करें?
सोनाली- क्या नया करने को बोल रही हो साफ़ साफ़ बताओ न यार?
रूपा- देखो जैसे अभी भाभी ने कहा कि उनको लग रहा है कहीं सचिन उसकी मम्मी को चोदने की सोचने न लग जाए। तो क्यों न हम ऐसी ही कल्पनाओं को लेकर रोल प्ले करें।
सोनाली- तुम्हारा मतलब पंकज सचिन बने और तुम मेरी मम्मी और मैं तुम लोगों की चुदाई देख कर अपनी कल्पना साकार करूँ?
रूपा- नहीं! मेरा मतलब भैया सचिन बने, मैं सोनाली, और आप सचिन की मम्मी। उसके बाद हम कोशिश करेंगे कि आपको सचिन से चुदवा दें।
पंकज- क्या बात है… ये कुछ नया आईडिया है। सच में रोज़ रोज़ एक जैसी चुदाई थोड़ी बोरिंग हो गई थी। चलो आज यही रोल प्ले करते हैं।
रूपा- देखो! सचिन (पंकज) और सोनाली (रूपा) अंदर कमरे में चुदाई कर रहे होंगे तभी सचिन की मम्मी (सोनाली) आकर देखेगी और उन पर गुस्सा होकर चिल्लाने लगेगी। और फिर जैसे तैसे दोनों भाई बहन माँ को भी अपने खेल में शामिल कर लेंगे।
सोनाली- ठीक है! सचिन (पंकज), तुम बैडरूम में जा कर अपनी बहन चोदो। मैं कपडे पहन कर आती हूँ। तुम दोनों का तो नंगे रहने का ही रोल है। लेकिन माँ को तो कपडे पहन कर आना पड़ेगा न।
सचिन (पंकज) और सोनाली (रूपा) अंदर कमरे बेड पर एक दूसरे से लिपट कर लेट गए और चूमा चाटी करने लगे। सोनाली, रूपा के कमरे में जा कर साड़ी पहन कर शारदा के रोल के लिए तैयार होने लगी।
15 मिनट बाद जब वो शारदा के रूप में बैडरूम में पहुंची तो सचिन और सोनाली डॉगी स्टाइल में चुदाई कर रहे थे और दोनों के चेहरे दरवाज़े की और ही थे।
जैसे ही शारदा न दरवाज़ा खोला… गुस्से में चिल्लाते हुए- हे भगवान! ये हो क्या रहा है? तूझे ज़रा भी शर्म नहीं आई सचिन, अपनी सगी बहन के साथ ये सब करते हुए। और सोनाली तू तो बड़ी है तूझे भी इसको रोकते नही बना?
सोनाली- अरे यार सचिन, तू क्यों रुक गया? तू चालू रख मैं बात करती हूँ मम्मी से।
यह सुन कर शारदा तो सकते में आ गई। उसने सोचा भी नहीं था कि उसे ऐसा कुछ सुनने को मिलेगा। सचिन ने सोनाली की बात मानते हुए वापस चोदना शुरू कर दिया। सोनाली ने आँखें बंद कीं और मम्मी को हाथ से एक मिनट रुकने का इशारा किया जैसे वो वापस अपने सुरूर में आने की कोशिश कर रही हो।
थोड़ी देर रुक कर उसने आँखें खोलीं और बोली- देखो मम्मी, पहली बात तो मैं अभी बहस करने के बिल्कुल मूड में नहीं हूँ लेकिन एक बात बता देती हूँ कि ये सब करने के लिए मैंने ही सचिन को उकसाया था।
“सचिन! और तेज़ चोद!”
सचिन ने रफ़्तार बढ़ा दी। सोनाली की आँखें फिर बंद हो गईं और माथे पर बल पड़ गए जैसे उसे कोई तीव्र अनुभूति हो रही हो। उसी अवस्था में वो फिर बोली- आपकी जनरेशन की यही प्रॉब्लम है। आप लाइफ को एन्जॉय करना जानते ही नहीं हो। सोचो आप कभी ऐसे झड़े हो जैसे मैं झड़ रही हूँऽऽऽ अह… ओह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… फऽऽ… क…
पंकज और रूपा भले ही रोल प्ले कर रहे हों लेकिन रोल में असली अनुभव डालने के लिए उन्होंने यह मान लिया था कि वे यह सब अपनी माँ शर्मीला के सामने कर रहे हैं। ऐसा करने की वजह से वो इतने उत्तेजित हो गए थे कि दोनों सच में बहुत जल्दी और बहुत ज़ोर से झड़ गये थे।
सोनाली (रूपा) एक झटके से आगे झुकी जिससे सचिन (पंकज) का झड़ा हुआ लंड सटाक से उसकी चूत से बाहर आ गया। सोनाली उछल कर बेड से उतरी और अपनी माँ शारदा के सामने खड़ी हो गई।
शारदा अभी तक जो हुआ, उसके सदमे से बाहर नहीं आ पाई थी। इस बात का फायदा उठाते हुए सोनाली ने शारदा को अपनी बॉहों में लिया और उसके होंठों को चूसने लगी।
शारदा ने ऐसी किसी बात की सपने में भी अपेक्षा नहीं की थी। इस से पहले कि वो कुछ कर पाती, उसने वो अनुभव किया जो उसके जीवन मे पहली बार हुआ था। उसके पति ने कभी उसके होंठों को ऐसे नहीं चूसा था। उसके अंदर की माँ तो पूरी तरह जड़वत खड़ी थी क्योंकि सब कुछ न केवल उसकी अपेक्षा से बिल्कुल परे हो रहा था बल्कि इतना जल्दी हो रहा था कि उसे कुछ सोच कर प्रतिक्रिया करने का समय ही नहीं मिल पा रहा था।
दूसरी ओर उसके अंदर की औरत को ये स्वर्गिक अनुभूति पहली बार हो रही थी। वो किंकर्तव्यविमूढ़ सी इस वासना की धारा में बहने लगी।
सोनाली ने इसी बीच अपनी दो उंगलियां अपनी चूत में डाल रखीं थीं। उसने अपना चुम्बन तोड़ा और वो दो उंगलियां अपनी माँ को चटा दीं।
सोनाली- टेस्ट द न्यू जेनरेशन सेक्स! ( नए ज़माने के कामरस का स्वाद चखो)
शारदा ने आंखें बंद कर लीं। उसके अंदर की संस्कारी औरत ये सब होते देख नहीं सकती थी और जो दूसरी औरत थी वो इस नए स्वाद का पूर्ण आनन्द लेना चाहती थी। यही समय था जब सोनाली और सचिन ने मिलकर उसके सारे कपड़े निकाल दिये।
जब शारदा ने आँखें खोलीं तो उसके सामने उसके बेटे का वीर्य और चूत के रस में सना लंड था। ये वही रस था जिसका स्वाद वो अभी आँखें बंद करके ले रही थी। आखिर काम की प्यासी औरत की जीत हुई और उसने अपने बेटे का लंड अपने मुँह में भर लिया और उसे ताबड़तोड़ चूसने लगी। जल्दी ही लंड खड़ा भी हुआ और उसे अपनी माँ की चूत का प्रसाद भी मिला।
वैसे तो ये सब रोलप्ले था लेकिन जब भी कोई रोलप्ले पूरी शिद्दत के साथ किया जाता है तो सारी कायनात उसे सच बनाने की कोशिश में लग जाती है।
पंकज, रूपा और सोनाली के रोलप्ले ऐसे ही चलते रहे जब तक सचिन के आने का दिन नहीं आ गया।
और फिर…
अगले दिन सचिन आने वाला था और कम से कम कुछ दिनों के लिए घर का माहौल बदलने वाला था। अब न तो कोई सारा समय नंगे रह पाएगा और न ही जब मनचाहे ढंग से चुदाई हो पाएगी। पंकज, रूपा और सोनाली ने आपस में सलाह करके पूरी योजना तैयार कर ली और फिर सारी रात जम के चुदाई की ताकि अगले आने वाले कुछ दिनों में खुद पर नियंत्रण रखना आसान हो जाए
खास तौर पर पंकज ने सबसे ज़्यादा रूपा को चोदा क्योंकि सोनाली तो फिर भी मिल सकती थी लेकिन सचिन के रहते रूपा की चूत मिलना थोड़ा मुश्किल होता।
देर रात तक तरह तरह से चोदने के बाद आखिर सब थक गए।
पंकज- अब नहीं होगा मुझसे, बहुत थक गया हूँ।
सोनाली- तीन बार अपनी बहन चोद चुके हो और दो बार मुझे। आदमी हो कोई खरगोश नहीं कि बस चुदाई ही करते रहो।
रूपा- हाँ, और ऐसा भी नहीं कि अब मैं कभी मिलने वाली नहीं हूँ। भाभी को तो रात में चोद ही सकते हो और मैं भी 4-6 दिन में मिल ही जाऊँगी। तब तो भाभी सारा टाइम अपने भाई से ही चुदवाने वाली हैं तो आपको मेरी ही चूत नसीब होगी।
सोनाली- तेरे मुँह में घी-शक्कर!
और इतना कह कर सोनाली ने ने रूपा को चूम लिया। इस बात पर सब हंसने लगे और फिर सब सो गए।
अगला दिन एक नया सवेरा ले कर आने वाला था।
सुबह उठने के बाद सबने फ्रेश होकर नाश्ता किया और फिर तीनों ने गोला बना कर एक साथ एक दूसरे को गले लगाया (जैसा फुटबॉल के खिलाड़ी अक्सर करते हैं)। उन्होंने वादा किया कि वो पूरी कोशिश करेंगे कि अगली बार जब वो इस तरह गले मिलें तो सचिन भी उनके साथ हो।
उसके बाद पंकज तैयार होकर क्लीनिक चला गया। रूपा ने आज कॉलेज से बंक मार दी क्योंकि वो अपनी भाभी के साथ सचिन को लेने स्टेशन जाने वाली थी।
दोनों ने मिल कर घर सजाया, जो कुशन और गद्दे, सेक्स की सहूलियत के लिए इधर उधर बिखरे पड़े थे उनको अपनी जगह पर रखा गया। सहूलियत के लिए जो 1-2 कंडोम के डब्बे हर कमरे में पड़े हुए थे, उनको वापस छिपा कर रख दिया गया। टीवी के पास जो चुदाई के वीडियो की सीडी/डीवीडी का ढेर था, उसे भी छिपा कर उसकी जगह बॉलीवुड के सेक्सी गीतों और फिल्मों की डीवीडी रख दी गईं।
तब तक ट्रेन के आने का समय भी होने लगा था तो दोनों ननद-भौजाई जल्दी से तैयार होकर रेलवे स्टेशन की तरफ चल दीं। कार सोनाली चला रही थी और रूपा उसके मज़े ले रही थी।
रूपा- क्या भाभी, बड़ी जल्दी हो रही है अपने भाई से मिलने की। आपको देख कर तो ऐसा लग रहा है कि आपसे सब्र नहीं होना। मुझे तो लगता है वहीं स्टेशन पर ही कोई रूम बुक करवाना पड़ेगा आप दोनों के लिए।
सोनाली- रहने दे… रहने दे। खुद के मन में लड्डू फूट रहे हैं, मुझे बोल रही है।
रूपा- मेरे मन में क्यों लड्डू फूटेंगे?
सोनाली- पहले तो तू ही चुदवाने वाली है न उस से। नए लंड के बारे में सोच सोच के चूत में गुदगुदी हो रही होगी इसलिए मेरा नाम ले ले कर ये सब बोल रही है।
रूपा- भाभी आप भी न… बड़ी वो हो।
इतने में स्टेशन आ गया और गाड़ी पार्क कर के दोनों गेट की तरफ बढ़ गईं।
थोड़ी ही देर में सचिन आता हुआ दिखाई दिया। उसने अपना हाथ लहरा के इशारा किया इधर सोनाली ने भी अपना हाथ हवा में हिला कर हेलो वाला इशारा किया। रूपा ने पहली बार उसे इस नज़र से देखा था, वो मंत्रमुग्ध सी देखती ही रह गई।
शादी में तो वो इतना व्यस्त था कि खुद कैसा दिख रहा है उसका होश ही नहीं था। बहन की शादी में भाई के पास कहाँ समय होता है सजने धजने का।
जैसे ही वो पास आया, सोनाली ने उसे गले से लगा लिया, शादी के पहले उसने कभी ऐसा नहीं किया था। एक तो शादी के पहले लड़कियां होती ही हैं थोड़ी रिज़र्व टाइप की और ऊपर से इनके बीच जिस तरह का आकर्षण था, उसके चलते सोनाली को लगता था कि अगर वो सचिन के ज़्यादा पास गई तो कहीं कुछ कर न बैठे। लेकिन आज न उसे कोई झिझक थी न कोई डर, इसलिए वो दिल खोल कर अपने भाई से गले मिल रही थी।
सचिन की तो हालत ख़राब हो गई थी, जिस बहन को वो छिप छिप कर नंगी देखा करता था, आज वो उसकी बांहों में थी। उसके वो कोमल उरोज जिनको वो हमेशा छूना चाहता था, वो आज उसकी छाती से चिपके हुए थे। उसने भी सोनाली को अपनी बाँहों में जकड़ लिया था। दिल तो किया कि हथेलियों को पीठ से नीचे सरका कर नितम्बों को सहला दे लेकिन उसके हाथ कमर से आगे न जा पाए। हिम्मत ही नहीं हुई बावजूद इसके कि फ़ोन पर दोनों बहुत खुल गए थे, असली में जब सामने आते हैं तो बात कुछ और हो जाती हैं।
इनको देख कर रूपा भी बड़ी उत्तेजित हो गई थी, उसे लगा अब उसकी बारी है तो जैसे ही सचिन सोनाली से अलग हुआ और सोनाली ने कहा- ये मेरी ननद रूपा!
सचिन ने हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया और रूपा ने गले मिलने के लिए दोनों हाथ। फिर अचानक से सचिन का हाथ देख कर उसे होश आया और उसने भी हाथ मिला लिया।
इस बात से सोनाली को बड़ी हंसी आई लेकिन उसने हंसी छिपा ली।
लेकिन सारे रास्ते जब भी उसकी नज़रें रूपा से मिलतीं वो मुस्कुरा देती और रूपा मन मसोस कर रह जाती।
रास्ते भर इधर उधर की बातें होती रहीं जैसे घर पर सब कैसे हैं वगैरा वगैरा।
घर पहुंच कर सोनाली ने सचिन को कहा कि वो नहा ले फिर सब खाना खा लेंगे।
सचिन- नहाने के लिए ही तो आया हूँ मैं यहाँ।
सोनाली ने एक बड़ी सी मुस्कराहट के साथ उसे बाथरूम का दरवाज़ा दिखाया और किचन में चली गई।
सचिन ने देखा वो काफी बड़ा बाथरूम था। आम घरों में जितने बड़े साधारण कमरे होते हैं उतना बड़ा। दरवाज़ा उसके एक कोने में था। दरवाज़े के ठीक सामने वाले कोने में पर्दा लगा हुआ था जिसके पीछे एक बड़ा सा तिकोना बाथ टब था। उसके सामने के कोने में चमचमाता हुआ हाई-टेक कमोड था। इन दोनों के सामने और दरवाज़े से लगी हुई दीवार पर एक बड़ा पूरी दीवार के साइज का दर्पण था और एक बड़ा सिंक जो ग्रेनाइट के प्लेटफॉर्म में फिट था।
बाथ टब का बाहरी हिस्सा गोल था (पिज़्ज़ा के बड़े टुकड़े जैसा)। उसके अंदर ३ कोनों पर बैठने की जगह दी हुई थी लेकिन जितना बड़ा वो था उसमें 4-5 लोग आराम से बैठ सकते थे। अंदर तरह तरह की लाइट्स और शॉवर्स लगे हुए थे जिनकी सेटिंग के लिए एक पैनल भी था। इसके चारों ओर फाइबर का पारदर्शी गोल कवर था जो आधा स्लाइड हो कर दरवाज़े का काम करता था और इसके चारों ओर एक सुन्दर पर्दा लगा हुआ था ताकि अगर कोई टॉयलेट या सिंक का प्रयोग करना चाहे तो नहाने वाले को न देख सके।
ये सब देख कर सचिन के मुँह से अपने आप ‘वाओ’ निकल गया। वो नहाते नहाते सोचने लगा कि दीदी की तो ऐश है। लेकिन एक बात उसे दुखी कर रही थी कि यहाँ अगर वो बाथरूम के दरवाज़े में छेद कर भी ले तो पता नहीं सोनाली को नहाते हुए देख पाएगा या नहीं क्योंकि अंदर एक पर्दा और भी था।
आखिर उसने उन सब नए नए उपकरणों के साथ छेड़खानी करते हुए सारी सेटिंग्स आज़मा कर देखीं और बहुत देर तक नहाने के बाद जब वो बाथरूम से बहार निकला तो रूपा वहीं सामने खड़ी थी।
रूपा गुस्से में- क्या यार नहाने के लिए दरवाज़ा बंद करने की क्या जरूरत थी।
इतना कह के वो अंदर चली गई और दरवाज़ा बंद कर लिया।
सचिन कुछ समझ नहीं पाया कि हुआ क्या था। वो किचन में सोनाली के पास गया और जब उसने पूछा कि ये सब क्या था तब सोनाली ने उसे समझाया।
सोनाली- देखो, बाथ टब के चारों तरफ तो परदा है न… तो नहाने के लिए दरवाज़ा बंद नहीं करते ताकि किसी को टॉयलेट या सिंक यूज़ करना को तो कर सके। बेचारी रूपा को कब से पेशाब आ रही थी लेकिन तुम्हारे चक्कर में रोक कर खड़ी थी। इसलिए गुस्सा हो रही थी। अब समझे?
सचिन- और किसी ने पर्दा हटा दिया तो?
इतना कह कर सचिन ने धीरे से आंख मार दी।
सोनाली- तो पर्दा हटाने वाला भी तो दिखाई देगा न।
सोनाली ने एक शैतानी सी मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा।
खाना तैयार था सब जा कर खाने के टेबल पर बैठ गए और खाना खाने लगे।
सचिन- माफ़ करना रूपा, मेरे कारण तुमको तकलीफ उठानी पड़ी। मुझे पता नहीं था कि यहाँ का क्या सिस्टम है।
रूपा- कोई बात नहीं यार, वो तो उस समय मुझे ज़ोर की लगी थी इसलिए गुस्से में बोल दिया था लेकिन तुम दिल पर मत लेना। ठीक है?
सचिन मन में ‘दिल पर लेना ही होगा तो तेरे इन दोनों चाँद के टुकड़ों को लूँगा न जानेमन।’
खाना खाने के बाद तीनों मिल कर गप्पें लड़ने लगे। चुटकुले-कहानियां चल रहे थे कि तभी बातों बातों में रूपा ने कहा- पता है भाभी, कल मेरे कॉलेज में हॉस्टल की लड़कियों ने एक जोक सुनाया। एक हॉस्टल में सुबह 6 से 7 का समय जिम का था और अक्सर लड़कियां उस टाइम में साइकिल चलाती थीं।
एक दिन 7 बजे एक लड़की हांफती हुई जिम वाली मैडम के पास आई और बोली- मैडम दस मिनट और साइकिल चला लूँ?
मैडम बोली- ठीक है, लेकिन आगे से ध्यान रखना सात बजे के बाद नहीं।
लेकिन कोई न कोई लड़की रोज़ ऐसा पूछती थी।
एक दिन गुस्से में मैडम चिल्लाई- आज के बाद किसी से एक मिनट भी ज़्यादा माँगा तो सबकी साइकिल में सीट लगवा दूँगी.
इतना सुनते ही सोनाली ज़ोर से हंसी और रूपा के हाथ से हाथ टकरा कर हाय किया। दोनों पेट पकड़ कर हंस रहीं थीं और सचिन के कुछ पल्ले नहीं पड़ रहा था।
आखिर उस से रहा नहीं गया और उसने पूछ लिया कि इसका क्या मतलब हुआ?
सोनाली- अरे मेरे लल्लू… साइकिल में सीट नहीं होगी तो क्या होगा? डंडा ! अब समझ आया?
सचिन- ओह्ह तो ये बात थी। अब यार मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि रूपा ऐसा जोक सुना सकती है। और लल्लू किसको बोला? आप इतने ही चालू हो तो ये सवाल का जवाब दो?
तीन लड़कियां कुल्फी खा रहीं हैं। एक पिघला के खा रही है एक चूस के खा रही है और एक काट के खा रही है तो तीनों में से कौन शादीशुदा है?
बताओ?
सोनाली- सिंपल है यार जो चूस के (आँख मारते हुए) खा रही है वो शादीशुदा है।
रूपा- वैसे तो भाभी, चूस के खाने वाली भी कोई ज़रूरी नहीं है कि शादीशुदा ही हो. लेकिन क्या है न कि अपने सचिन को उससे ऐसी ‘उम्मीद’ नहीं होगी। हा हा हा…
दोनों फिर पेट पाकर कर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगीं। सचिन का तो पोपट हो गया था लेकिन वो न केवल अब उन दोनों से साथ ज़्यादा खुल गया था बल्कि उसके मन में रूपा के लिए आकर्षण भी पैदा होने लगा था।
सोनाली से तो उसे कोई खास उम्मीद नहीं थी क्योंकि वो दीदी थी लेकिन अब उसका मन होने लगा था कि अगर मौका मिले तो वो रूपा को चोद दे। लेकिन अब तक की बातों से तो कोई भी समझ सकता है कि दुनिया सचिन की ‘उम्मीदों’ से कहीं आगे जा चुकी है।
यूँ ही चुहलबाज़ी करते हुए दिन कब बीत गया पता ही नहीं चला। शाम को जब पंकज वापस आया तो तीनों सोफे पर बैठे सनी लिओनी की जिस्म-2 देख रहे थे। सचिन बीच में बैठा था और उसने अपनी दोनों बाँहें सोनाली और रूपा के गले में डाल रखीं थीं। अपनी उंगलियों से वो उनके कंधे सहला रहा था। पंकज को ये देख कर ख़ुशी हुई कि सचिन जल्दी ही इतना घुल मिल गया था। उसने सोचा, चलो अच्छा है, अब आगे ज़्यादा दिक्कत नहीं होगी। लेकिन सचिन ने जैसे ही देखा कि जीजाजी आ गए हैं उसने अपने दोनों हाथ झट से हटा लिए।
पंकज- अरे इतना टेंशन न ले यार, इस घर में हम शर्म लिहाज़ नाम का जीव पालते ही नहीं हैं। हा हा हा…
रूपा- हाँ भैया, यही बात हम इसको दिन भर से सिखा रहे हैं लेकिन ये पता नहीं कहाँ कहाँ की तहजीब और अपेक्षाएं पाल कर बैठा है।
सचिन- अच्छा बाबा गलती हो गई। अब यार, हमारे घर में हमारे माँ-बाप ने जैसा माहौल बना कर रखा था वैसा ही सीख गए।
पंकज- यार, माहौल तो हमारे घर भी वही था लेकिन अब हम माँ-बाप से दूर यहाँ अकेले रह रहे हैं, तो अब तो खुल कर रह ही सकते हैं न। इसीलिए यहाँ तो सब खुलेआम होता है। तुमको कोई समस्या हो तो बता देना, हम वैसा एडजस्ट कर लेंगे।
सचिन- अरे नहीं नहीं, मुझे तो अच्छा लग रहा है। ज़्यादा सोचने की ज़रुरत नहीं पड़ रही। जैसे नदी की धारा में बहते चले जा रहा हूँ।
रूपा- क्या बात है, सचिन तो एक ही दिन में कवि बन गया।
ऐसे ही बातों बातों में समय कब निकल गया पता ही नहीं चला। सबने खाना भी खा लिया और रूपा ने घोषणा भी कर दी कि वो सोने जा रही है।
सोनाली- तू हमारे कमरे में ही सो जा, सचिन और पंकज तेरे कमरे में सो जाएंगे।
सचिन- अरे दीदी, रहने दो मैं यहीं सोफे पर सो जाऊंगा।
रूपा- भाभी! भैया को क्यों वनवास दे रही हो। मुझे कोई दिक्कत नहीं है सचिन चाहे तो मेरे कमरे में ही सो सकता है।
सोनाली- सचिन, तुम रूपा के कमरे में जाओ। पंकज को जहाँ सोना होगा वो अपने हिसाब से देख लेगा। दोनों ही बेड काफी बड़े हैं।
सोनाली ने हाथ पकड़ कर रूपा को अपने साथ ले जाते हुए धीरे से कहा- सचिन अभी इतना बोल्ड भी नहीं हुआ है। वो तुम्हारे साथ सोने को तैयार नहीं होगा और यहीं सो जाएगा फिर हमको प्लान आगे बढ़ाना और मुश्किल होगा।
रूपा- हम्म… ठीक है अभी आपके साथ ही चलती हूँ, फिर बाद में देखेंगे।
सोनाली और रूपा बैडरूम में चले गए। उधर पंकज बाथरूम से हाथ-मुँह धो कर वापस आया तो सचिन रूपा के रूम में जा रहा था।
पंकज- अच्छा तुम रूपा के रूम में सोने जा रहे हो?
सचिन- हाँ, रूपा दीदी के साथ सोने गई है।
पंकज- ओह्ह तो मुझे तुम्हारे साथ सोना है।
सचिन- अरे नहीं आप चाहो तो रूपा को वापस भेज दो, मैंने तो कहा था मैं सोफे पर सो जाऊंगा।
पंकज- अरे नहीं नहीं… ऐसा कैसे? तुम आराम से बेड पर ही सोओ मैं देख लूँगा जो भी होगा।
पंकज के ज़ोर देने पर सचिन रूपा के बेड पर ही सो गया। ये डबल-बेड ज़रूर था लेकिन उतना बड़ा भी नहीं जितना बैडरूम वाला बेड था। पंकज भी दूसरा कोना पकड़ कर लेट गया। कुछ देर तक दोनों ने इधर उधर की बातें कीं और फिर सो गए। सचिन को तो अभी नींद नहीं आ रही थी। एक तो वो अपने घर से बाहर कम ही जाता था तो किसी नई जगह पर नींद मुश्किल से ही आती थी, उस पर आज दिन भर में जो कुछ भी हुआ था वो सब उसके दिमाग में घूम रहा था.
अधिकतर वो रूपा के बारे में ही सोच रहा था ‘रूपा कितनी बोल्ड लड़की है न, दीदी भी इतनी बोल्ड होतीं तो पता नहीं शायद हमारे बीच कुछ हो गया होता। जीजाजी बोल रहे थे कि वो कोई लिहाज़ नहीं मानते, कहीं सच में उनका कोई चक्कर तो नहीं हो रूपा के साथ? अरे नहीं, ये सब मेरे गंदे दिमाग की उपज है। सब मेरे जैसे अपनी ही बहन पर लट्टू थोड़े ही होते हैं। लेकिन रूपा का मेरे साथ तो चक्कर चल ही सकता है। इसमें तो कोई बुराई नहीं है।’
सचिन इसी सब सोच में डूबा हुआ था कि उसने देखा की पंकज धीरे से उठा और कमरे से बहार चला गया। पहले तो उसे लगा कि शायद पेशाब करने गए होंगे लेकिन जब कुछ देर तक कोई हलचल नहीं हुई तो वो समझ गया कि जीजाजी बैडरूम में चले गए हैं। सचिन फिर सोच में पड़ गया कि कहीं उसका शक सही तो नहीं था। कहीं जीजाजी और रूपा… अरे नहीं, वो तो दीदी के लिए गए होंगे। लेकिन रूपा भी तो वहीं है, तो क्या जीजाजी अपनी बहन के सामने ही दीदी के साथ वो सब करने लग जाएंगे?
सचिन की उधेड़बुन अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि उसने किसी को कमरे में आते देखा। लेकिन ये तो साफ़ था की वो उसके जीजाजी नहीं थे। सचिन की उलझन तुरंत दूर हो गई जैसे ही रूपा बेड पर आ कर बैठी। उसने एक लम्बा टी-शर्ट पहना हुआ था जिसके नीचे कुछ भी नहीं था। शायद पैंटी होगी लेकिन वो दिख नहीं रही थी क्योंकि वो टी-शर्ट इतना लम्बा था कि घुटनो से थोड़ा ही ऊपर तक आ रहा था।
सचिन- क्या हुआ रूपा तुम यहाँ?
रूपा लेटते हुए- हाँ यार मुझे तो पहले ही पता था कि भैया, भाभी की बिना नहीं रह पाएंगे।
सचिन- तो मैं बाहर चला जाता हूँ सोफे पर!
रूपा- मैं क्या तुमको ड्रैक्युला जैसी दिखती हूँ?
सचिन- नहीं तो!
रूपा- तो फिर सोए रहो न यार, वैसे भी मुझे तुम्हारे जैसे संस्कारी लड़के से कैसा डर?
सचिन को लगा जैसे किसी ने उसकी शराफत को चुनौती दे दी हो। वैसे उसको पता था कि वो कोई शरीफ नहीं है। जो लड़का अपनी बहन और माँ को नंगी नहाते हुए देख कर मुठ मारता रहा हो वो शरीफ कैसे हो सकता है लेकिन फिर भी जो शराफत की उसकी छवि सब लोगों के मन में बनी हुई थी वो उसको बने रहने देना चाहता था। एक सोनाली ही थी जिसके सामने वो सच में नंगा था क्योकि उसके आलावा बाकी सब उसे शरीफ ही समझते थे।
आखिर अपनी शराफत की चादर ओढ़ कर सचिन सो गया। नींद में जैसे उसने कोई सपना देखा हो और उसे लगा कि कोई बिल्ली अचानक उछल कर उसकी कमर पर बैठ गई है। इसी हड़बड़ी में उसकी नींद खुली और उसने देखा कि रूपा करवट बदलते बदलते उसके बिल्कुल पास आ चुकी थी और उसने अपना एक पैर मोड़ कर सचिन की कमर पर रख दिया था।
पैर के मुड़ने से उसका लम्बा टी-शर्ट काफी ऊपर तक सरक गया था और उसकी जांघें यहाँ तक कि उसके कूल्हों का निचला भाग तक नंगा हो गया था। लेकिन यहाँ तक भी पैंटी का कोई नामोनिशान नहीं था।
सचिन का ईमान डगमगा गया और उसने उसकी जाँघों पर अपना हाथ रख दिया। कुछ देर तक जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो सचिन ने रूपा की नंगी जाँघों को सहलाना शुरू कर दिया। इतनी चिकनी और मुलायम त्वचा का अनुभव उसने शायद अपनी कल्पना में ही किया होगा, या फिर बचपन में कभी, जो वो भूल चूका था।
इस अनुभव ने उसकी हिम्मत को और बढ़ा दिया और उसने हाथ आगे बढ़ा कर रूपा के नितम्बों तक ले गया। भरे मुलायम गोल नितम्बों को हलके से मसलते हुए जब उसने हाथ टी-शर्ट के अंदर तक डाला तो उसे लगा कि वहां कोई पैंटी नहीं थी। इस बात की पुष्टि जैसे ही हुई उसकी धड़कन और तेज़ हो गई और लंड ने एक और अंगड़ाई झटके के साथ ली। कुछ देर तक वो दोनों नितम्बों को अपने हाथ से सहलाता रहा लेकिन फिर जब हिम्मत करके उसने अपन हाथ दोनों के बीच की घाटी में डाला तब समझ आया कि उसने जी-स्ट्रिंग पहनी हुई थी जिसमे केवल योनि के ऊपर एक तिकोना कपड़ा होता है, जिसके तीनों छोर पर डोरियां लगी होती हैं।
सचिन ने हिम्मत नहीं हारी, आखिर ये पहली बार था जब वो किसी लड़की के गुप्तांग के इतने करीब तक पहुंच पाया था। उसने जी-स्ट्रिंग के बाजू से दो उँगलियाँ अंदर सरका कर रूपा के भग-प्रदेश को छुआ ही था कि अचानक रूपा ने करवट बदल ली और अपना टी-शर्ट नीचे करके चादर ओढ़ कर सो गई। सचिन की धड़कन अभी भी रेलगाड़ी की तरह तेज़ दौड़ रही थी। उसकी उँगलियों ने जिस अहसास को अभी अभी अनुभव किया था वो अभी भी ताज़ा था। पूरी रात वो करवटें बदलता रहा लेकिन नींद नहीं आई।
आखिर भोर के पहले पहर ने उसे सुला ही दिया।
अगली सुबह वो काफी देर से उठा तब तक पंकज जा चुका था और सोनाली व रूपा फ्रेश हो कर चाय-नाश्ता भी कर चुकी थीं। जाने कहाँ से रूपा को पता चल गया और वो उसके लिए कॉफ़ी लेकर आ गई। उसके व्यवहार से ये बिल्कुल नहीं लग रहा था कि उसे रात के बारे में कुछ भी याद है।
सचिन को इस बात से सुकून मिला कि रूपा को कुछ याद नहीं था, वरना वो तो इसी बात से चिंतित था कि कहीं उसे कुछ याद रह गया तो ये जो उनके रिश्ते में थोड़ी नज़दीकियां बनी हैं ये भी कहीं हाथ से निकल न जाएं।
कॉफी पीकर सचिन बहार आया तो सोनाली ने कहा- सचिन, नाश्ता लगा दिया है, लेकिन थोड़ा कम ही लेना क्योंकि इतना देर से उठे हो कि खाने का समय भी बस हो ही गया है। नाश्ता करके नहा लेना, फिर सब साथ में खाना खाएंगे।
सचिन- जी दीदी!
नाश्ता करके सचिन घर में इधर उधर टहलने लगा। रूपा ने अब एक दूसरी ड्रेस पहन ली थी जो उस रात वाले टी-शर्ट से कोई बहुत अलग नहीं थी। फर्क इतना था कि ये थोड़ी कसी हुई थी और इस पर ऊपर से नीचे तक काली और सफ़ेद पट्टियां थीं।
एक बात और, ये घुटनों से काफी ऊपर भी थी और इसकी बाँहें कलाइयों तक पूरी ढकी हुई थीं। रूपा बहुत सेक्सी लग रही थी इसमें। सचिन ने तो ऐसी ड्रेस पहने केवल 1-2 लड़कियों को ही देखा था वो भी कॉलेज की पार्टी में। सचिन की तो उनसे कभी बात तक करने की हिम्मत नहीं हुई थी।
खाना लगभग तैयार था इसलिए सोनाली ने सचिन को जल्दी से जा कर नहाने के लिए कहा तो वो नहाने चला गया।
अभी ठीक से नहाना शुरू भी नहीं किया था कि उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी।
रूपा- बड़ी जल्दी सारा सिस्टम समझ गए सचिन! मैं तो डर गई थी कि कहीं आज भी घंटा भर रोक के न रखना पड़े।
सचिन को कमोड का ढक्कन खोलने की आवाज़ आई और साथ में ये ख्याल भी कि पर्दा तो शावर में लगा है कमोड तो खुले में है। तब तक रूपा के पेशाब करने की आवाज़ भी आने लगी थी। शस्स्स्सऽऽऽ…
उसने हिम्मत करके स्लाइडिंग दरवाज़े को थोड़ा खोला और परदे के किनारे से आँख लगा कर बाहर देखा। ठीक सामने रूपा कमोड पर बैठ कर पेशाब करती हुई दिखाई दी। उसकी ड्रेस नाभि से ऊपर तक उठी हुई थी, ज़ाहिर है कोई पैंटी नहीं थी और चूत बिल्कुल चिकनी… सचिन के मन में रात वाली कोमल अनुभूति ताज़ा हो गई। लेकिन छूने और देखने दोनों की अपनी अलग अनुभूति होती है।
वो डबलरोटी के बन की तरह फूले और आपस में चिपके दो चिकने भगोष्ठ, उनके बीच से बाहर झांकती छोटी सी भगनासा (क्लिट)। उसके नीचे से निकलती पानी की धार… हाँ वो पीली बिल्कुल नहीं थी। बिल्कुल पानी की तरह साफ पेशाब की धार जो सीधा कमोड में गिर रही थी।
सचिन ने सोचा था कि पैंटी शायद नीचे पैरों में फंसी होगी लेकिन वो वहां भी नहीं थी। मतलब आज रूपा ने कोई पैंटी पहनी ही नहीं थी?
इसका जवाब भी जल्दी ही मिल गया। रूपा ने बाजू से एक टिश्यू लेकर अपनी चूत को साफ़ किया और खड़ी हो गई। कमोड को बंद करके वो सिंक के पास गई और वहां से अपनी पैंटी (जी-स्ट्रिंग) उठाई। वो उसे पहनने के लिए झुकी लेकिन फिर रुक गई, वापस खड़े हो कर उसने उसे सूंघा और फिर वहीं प्लेटफॉर्म पर रख दिया और खुद को आइने में निहारने लगी।
उसकी वो ड्रेस जो अब तक उसकी नाभि के ऊपर तक चढ़ी हुई थी, उसे नीचे करने की बजाए उसने उसे अब बाहों तक ऊपर चढ़ा लिया। उसके ऐसा करते ही उसके दोनों कबूतर आज़ाद पंछी की तरह फड़फड़ा कर बाहर आ गए।
रूपा ने अपने स्तनों को दोनों हाथों में भर कर सहलाया, थोड़ा दबाया और खेल खेल में उनके चुचूक उमेठ कर खींचे भी। इसी बीच वो अपनी कमर भी हल्के से लहराने लगी जैसे किसी हल्की सी धुन पर नाच रही हो और इससे सचिन का ध्यान अपने आप ही उसके नितम्बों की ओर चला गया, ऐसे लग रहे थे जैसे रेगिस्तान में तूफ़ान के बाद रेत के स्तूप बन गए हों, एकदम सुडौल और बेदाग।
अचानक उसकी कमर पेंडुलम की तरह दाएं-बाएं हिलते हिलते, एक ओर रुक गई और जब सचिन की नज़र ऊपर गई तो उसे लगा जैसे रूपा दर्पण में से उसी की तरफ देख रही थी। रूपा ने एक आँख मारी और मुस्कुरा दी।
सचिन घबरा कर जल्दी से पर्दा छोड़ दिया और स्लाइडर बंद कर लिया।
इस घटना से सचिन बहुत उत्तेजित हो गया था और रात वाली बात उसकी उत्तेजना को और बढ़ा रही थी। आखिर उससे रहा नहीं गया और उसने रूपा की कल्पना करते हुआ मुठ मारना शुरू कर दिया। उसे पक्का यकीन नहीं था कि रूपा ने वो आँख उसे देख कर ही मारी थी या वो दर्पण में खुद को देख कर ऐसा कर रही थी लेकिन फिर भी उसका दिल यही चाहता था कि काश वो इशारा उस ही के लिए हो। आज बहुत दिनों के बाद मुठ मारने में उसे इतना मजा आया था।
मुठ मारने के बाद नहा-धो कर जब सचिन टब से बाहर आया तो उसने देखा कि रूपा की पैंटी अभी भी सिंक वाले प्लेटफॉर्म पर ही पड़ी थी। उसने उठा कर उसे सूंघा… वाह! क्या खुशबू थी जवानी की। उसने उसे अपनी चड्डी में डाल लिया ताकि बाद में भी उसकी खुशबू ले सके। बाथरूम से बाहर आया तो सोनाली ने कहा कि जल्दी से तैयार हो जाओ और खाना खा लो।
सचिन अपने (रूपा के) कमरे में गया और वो रूपा की पैंटी उसने अपने सूटकेस में छिपा कर रख दी। फिर टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहन कर वो बाहर आ गया। रूपा पहले ही डाइनिंग टेबल पर बैठी थी और सोनाली खाना लगा रही थी। तभी सोनाली के हाथों से कुछ चम्मचें नीचे गिर गईं।
सोनाली उठाने के लिए झुक ही रही थी कि सचिन ने कहा- रहने दो दीदी आप खाना लगाओ मैं उठा देता हूँ।
जैसे ही वो टेबल के नीचे गया रूपा ने अपने पैर चौड़े कर दिए और उनको एड़ी ऊपर नीचे करके हिलने लगी जिससे अनायास ही सचिन का ध्यान उसकी तरफ चला गया। जो उसने देखा उससे एक बार फिर उसकी धड़कनों ने अपनी रफ़्तार बढ़ा दी और लंड वापस नींद से जाग गया। वही एकदम चिकनी चूत… मेरी आँखों के सामने थी जो उसने थोड़ी देर पहले दूर से देखी थी, वो फूली हुई चूत ठीक उसके सामने थी।
सचिन मन भर कर उसे देखना चाहता था लेकिन तभी रूपा ने कहा- क्या हुआ सचिन, चम्मच नहीं मिल रहे क्या?
बाहर निकलते हुए सचिन- नहीं चम्मच तो मिल गए थे, लेकिन कुछ और भी मिल गया था, वही देख रहा था।
इतना कह कर सचिन ने भी धीरे से आँख मार दी।
सोनाली ने कहा कि वो उनके लिए गरमा-गर्म फुल्के बना कर ला रही है इसलिए वो बाद में खाना खा लेगी। सचिन और रूपा ने खाना शुरू किया और मौका देख कर सचिन ने धीमी आवाज़ में बात आगे बढ़ने की कोशिश की- तुम रात को कमरे में वापस क्यों आ गईं थीं? क्या हुआ था बैडरूम में?
रूपा- बताया तो था कि भैया से रहा नहीं गया तो वो और भाभी लगे हुए थे। मेरी नींद डिस्टर्ब हो रही थी तो मैं अपने रूम में आ गई।
सचिन- लगे हुए थे मतलब?
उसने आश्चर्य से पूछा.
रूपा- अब यार हस्बैंड-वाइफ बैडरूम में और किस काम में लगे हो सकते हैं? सेक्स कर रहे थे और क्या?
सचिन- क्या बात कर रही हो यार! तुम्हारे भैया तुम्हारे सामने ही?
रूपा- अरे बताया था न, यहाँ हम ज़्यादा लिहाज़ नहीं पालते।
सचिन- हाँ लेकिन फिर भी… कुछ पहना था या नहीं?
रूपा- कोई कपड़े पहन कर सेक्स करता है क्या?
सचिन- मतलब तुमने दीदी-जीजाजी को नंगे सेक्स करते हुए देखा है?
रूपा- हाँ यार, तभी तो मैं अपने रूम में आ गई थी न।
सचिन- लेकिन तुम्हारे आने से तो उनको पता चल गया होगा न कि तुमने उन्हें देख लिया है?
रूपा- हाँ तो… मैं तो उनको बोल कर आई कि आप लोग एन्जॉय करो, मैं अपने रूम में जा रही हूँ।
सचिन- सही है यार! तुम्हारी फॅमिली तो कुछ ज़्यादा ही ओपन है।
रूपा- अब यार सब तुम्हारी वजह से हुआ। कल तुम मेरे रूम में सोने से इतना न शर्माते तो ये सब होता ही नहीं न।
तभी सोनाली रोटियां देने आ गई और कुछ देर तक चुप्पी रही फिर जब सोनाली वापस किचन में गई तो रूपा ने थोड़े शैतानी अंदाज़ में धीरे से कहा- वैसे ये पहली बार नहीं था, जब मैंने भैया को नंगा देखा था। पहले भी कई बार मैं उनको नहाते हुए देख चुकी हूँ।
रूपा ने आँख मारते हुए कहा।
सचिन- क्या बात कर रही हो! कैसे?
रूपा- एक पर्दा ही है यार। थोड़ा सा सरका कर चुपके चुपके देख लेती थी।
सचिन- लेकिन फिर तो उनको भी दिख जाता होगा न की तुम देख रही हो?
रूपा- पता नहीं, मुझे ऐसा कभी लगा तो नहीं की उनको पता चला हो क्योकि मैं नीचे के कोने से देखती थी जहाँ नज़र काम ही जाती है, लेकिन क्या पता देख भी लिया हो इसीलिए शायद अब उनको मेरे सामने शर्म नहीं आती।
तब तक दोनों का खाना हो चुके थे और सोनाली भी किचन के काम से फुर्सत हो गई थी।
सोनाली- बहुत गर्मी है यार। तुम लोग टीवी देखो मैं तो नहा कर आती हूँ, उसके बाद ही खाना खाऊँगी।
रूपा और सचिन टीवी पर कोई कॉमेडी प्रोग्राम देखने लगे और सोनाली नहाने चली गई। थोड़ी देर बाद सचिन के दिमाग में कुछ ख्याल आया और उसने पेशाब जाने का बहाना बनाया और बाथरूम में आ गया। जैसा कि रूपा ने बताया था, उसने भी नीचे के कोने से परदे को थोड़ा सा हटाकर अंदर देखा तो बहुत दिनों के बाद अपनी बहन का वही हसीन नंगा बदन देख कर सिहर उठा। वो वहीं बैठ कर देखने लगा और उसने अपना लंड भी बाहर निकाल लिया।
उसने अपने लंड को सहलाना शुरू किया ही था कि रूपा की आवाज़ आई- सचिन क्या हुआ! ज़िप में फंस गई क्या? हा हा हा…
सचिन को होश आया कि उसने पेशाब का बहाना बनाया था तो वो ज़्यादा देर नहीं रुक सकता था, उसने जल्दी से अपने शॉर्ट्स ऊपर किये और बाहर आ गया।
रूपा- क्या कर रहे थे?
सचिन- पेशाब करने गया था यार बहुत समय से नहीं की थी इसलिए इतना टाइम लग गया।
रूपा- तुम्हारा ये तो कुछ और ही कह रहा है।
रूपा ने सचिन के शॉर्ट्स में बने तम्बू की तरफ इशारा करते हुए कहा।
सचिन ने तुरंत अपने खड़े लंड को दोनों हाथों से छुपाया और सकपका कर वहीं बैठ गया।
रूपा- टेंशन मत ले यार, ये काम हमने भी किये हैं। अभी ही तो बताया था न तुझे…
रूपा ने माहौल को हल्का करने की कोशिश करते हुए कहा।
सचिन धीरे से- इसीलिए तो सोचा, मैं भी आज़मा के देख लूँ।
और फिर दोनों हंसने लगे।
तब तक सोनाली भी वापस आ गई थी। वो डाइनिंग टेबल पर अपने खाने की तैयारी में लग गई और इधर सोफे पर रूपा और सचिन की खुसुर-फुसुर शुरू हो गई।
रूपा- वैसे जितना तम्बू अभी देखने को मिला उस हिसाब से तुम्हारा हथियार भैया से काम तो नहीं होगा।
सचिन- मुझे क्या पता उनका तो तुमने ही देखा है।
रूपा- तुमने भाभी को आज आज पहली बार देखा है या… इतना कह कर रूपा ने एक शैतानी मुस्कराहट के साथ अपनी भवें उछालते हुए सवाल किया।
सचिन शरमाते हुए- पहले भी देखता था घर पर।
रूपा- क्या बात है दोस्त फिर तो हम एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हुए। और बताओ न कुछ… कैसे देखते थे? उनको कभी पता चला या नहीं? बताओ बताओ…
रूपा ने ये सारा खेल सचिन से ये सारी बातें उगलवाने के लिए ही रचा था। वो ये सब पहले से जानती थी लेकिन प्लान के हिसाब से उसे ये सब सचिन से ही उगलवाना था। सचिन ने अपनी पूरी कहानी बता डाली की कैसे शुरुवात सोनाली ने ही की थी लेकिन बाद में उन दोनों को पता चल गया था कि वो एक दूसरे को नहाते हुए देखते हैं। फिर वो एक दूसरे के लिए नहाते वक़्त सेक्सी हरकतें भी करने लगे थे और मुठ भी मारते थे, लेकिन उससे आगे बढ़ने की कभी हिम्मत नहीं हुई।
इससे पहले की बात आगे बढ़ती, सोनाली अपना खाना ख़त्म करके आ गई और सचिन के दूसरे बाजू में बैठ गई।
सोनाली- चलो तो आज फिर कौन सी फिल्म देखनी है?
रूपा- रंगरसिया कैसी रहेगी?
सोनाली- ओये होये! किसके रंग की रसिया हो रही हो आज? चलो ठीक है, मैंने भी नहीं देखी है, मुझे भी देखनी थी वो।
और ठीक कल की तरह सचिन बीच में बैठा था और रूपा-सोनाली उसके दोनों तरफ। सब कल की ही तरह फिल्म देख रहे थे, लेकिन आज रूपा का हाथ सचिन की जांघ पर रखा था और सचिन भी कन्धों से नीचे रूपा की बाँहें अपनी उंगलियों से सहला रहा था। उधर जैसे वो उसकी बांह सहलाता वैसे ही रूपा की उंगलियाँ सचिन की जांघ पर थिरकती थीं। थोड़ी हिम्मत करके सचिन 1-2 उंगलियों से रूपा के स्तन के बाजू में छूने और कुरेदने लगा। रूपा ने भी अपना हाथ थोड़ा ऊपर कर लिया और वो अब उसके लंड के काफी करीब थी।
तभी फिल्म में वो सीन आया जिसमे हीरो-हीरोइन नंगे एक दूसरे से लिपटे हुए एक दूसरे को रंगों से सरोबार कर रहे थे और नंगे ही काफी तरह की मस्तियाँ कर रहे थे। सचिन का लंड खड़ा तो पहले से ही था लेकिन ये देख कर और कड़क हो गया और उसने रूपा के स्तन को पूरी तरह से पकड़ का भींच दिया और उसे मसलने लगा। रूपा भी उस सीन से काफी उत्तेजित हो चुकी थी, उस पर सचिन की हरकत ने उसे हरी झंडी दिखा दी और उसने भी सचिन का लंड पकड़ कर उसे ज़ोर से दबा दिया।
आम तौर पर लंड को इतनी ज़ोर से दबाने पर किसी भी लड़के की दर्द से चीख निकल सकती थी लेकिन वो इतना कड़क हो चुका था कि सचिन को ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा। जब सीन ख़त्म हुआ और सचिन को थोड़ा होश आया तो उसने देखा कि सोनाली फिल्म को नहीं बल्कि इन दोनों को ही देख रही थी और मुस्कुरा रही थी।
सचिन थोड़ा झिझक गया और उठ कर पानी पीने चला गया।
फिल्म ख़त्म होते होते पंकज भी वापस आ चुका था। पंकज बाथरूम में फ्रेश होने गया और रूपा अपने रूम में किसी काम से गई तो सोनाली ने सचिन को पास बुला कर कहा- मैंने सोचा था रूपा के साथ रह कर तुम लड़कियों से बात करना सीख जाओगे लेकिन तुम तो…
सचिन- सॉरी दीदी, अब बस हो गया और वो भी तो साथ दे रही थी न।
सोनाली- अरे मेरा वो मतलब नहीं था, मेरी तरफ से तो पूरी छूट है, जो करना है कर। अगर तू कहेगा तो मैं तो इससे तेरी शादी तक करवा सकती हूँ। जिस काम से तुझे ख़ुशी मिले उससे तो मैं खुश ही होऊँगी न।
तभी पंकज वापस आ गया और डिनर की तैयारी होने लगी। डिनर के बाद पंकज ने कहा- आज तो ड्रिंक करने का मन कर रहा है, चलो सचिन 1-1 पेग हो जाए।
सचिन- नहीं मैं नहीं पीता।
पंकज- अरे! तुम्हारी दीदी तो पीती है, तुम नहीं पीते?
सचिन- दीदी! आपने कब से पीना शुरू कर दिया?
सचिन ने सोनाली को पुकारते हुए कहा।
सोनाली- अरे नहीं, किसी खास मौके पर इनके साथ ही थोड़ी ले लेती हूँ।
दोनों जीजा साले बाहर बालकनी में कुर्सी लगा कर बैठ गए और पंकज ने दो पेग बनाए। रूपा ने नमकीन काजू की एक प्लेट ला कर रख दी और कहा- मैं सोने जा रही हूँ। सचिन, ज़्यादा नखरे करने की जरूरत नहीं है, सीधे मेरे कमरे में आकर सो जाना। भैया आप समझाओ न इसे।
इतना कह कर रूपा तो चली गई, पंकज सचिन से बोला- हाँ यार, देख अब तू बाहर न सोये इसलिए तेरी दीदी ने कल रूपा को अंदर सुला लिया था और उस चक्कर में फिर… अब यार मैं तेरी दीदी के बिना नहीं रह सकता। समझ रहा है न?
सचिन- हाँ, रूपा ने मुझे बताया था।
पंकज- तो भाई तू रूपा के रूम में ही सो जाना। देख तुझे मैंने पहले ही बोल दिया था हमारे यहाँ ये सब लिहाज़ वाली बातें नहीं मानते और फिर रूपा ने खुद तुझे कहा है न आने को।
सचिन- हाँ लेकिन फिर भी वो आपकी बहन है, इसलिए मैं थोड़ा…
अब तक दोनों के पेग लगभग ख़त्म हो चुके थे और थोड़ा सुरूर भी चढ़ गया था।
पंकज- ये बात तो सही है, वो मेरी बहन है। उसकी मर्ज़ी के खिलाफ किसी ने उसको हाथ भी लगाया तो कमीने का हाथ तोड़ दूंगा। पर तू ही बता, अभी मैं तेरी बहन के साथ बैडरूम में क्या करने वाला हूँ, तुझे पता है न। फिर भी तुझे तो बुरा नहीं लगेगा न? तो यार मेरी बहन की मर्ज़ी से कोई कुछ भी करे मैं बुरा क्यों मानूं।
सचिन- तो मतलब आपकी बहन की मर्ज़ी से मैं अभी उसके साथ कुछ कर लूँ, तो आपको कोई फर्क नहीं पड़ेगा?
पंकज- यार तू किसी भी लड़की की मर्ज़ी से उसके साथ कुछ भी कर। जब तक लड़की की मर्ज़ी से है, सब सही है। फिर वो मेरी बहन हो या तेरी।
इतना कह कर पंकज ने बॉटम-अप किया और बैडरूम की तरफ चला गया। सचिन वैसे ही नशे में था। आज उसने पहली बार पी थी। ऊपर से ये आखिरी में जीजाजी जो बोल गए थे वो उसके दिमाग में घूम रहा था और उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि इस बात का वो क्या मतलब निकाले ‘फिर वो मेरी बहन हो या तेरी!’
तो क्या अगर मैं सोनाली की मर्ज़ी से उसे चोद दूँ तो जीजाजी को इस बात से भी फर्क नहीं पड़ेगा?
यही सब सोचते सोचते वो रूपा के कमरे की ओर चल पड़ा। मन तो उसने पूरा बना लिया था कि आज की रात वो रूपा को चोद ही देगा लेकिन अब जब बात मर्ज़ी की भी है तो ये सोचना भी ज़रूरी है कि उसको चुदाई के लिए कैसे राज़ी करें। एक तो ये पीने का बाद दिमाग वैसे ही धीरे काम कर रहा है।


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