सभी आदरणीय पाठकों को मेरा नमस्कार। मेरा नाम राज है और मैं अहमदाबाद (गुजरात) का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 23 साल है.. मेरी कद-काठी ठीक है। रंग गेहुआ और दिखने में ठीक हूँ।
मैं एक नियमित पाठक हूँ। काफी कहानियां पढ़ने के बाद मैंने भी सोचा कि अपनी कहानी भेजी जाए।
यह मेरी पहली कहानी है।
मेरी रिश्तेदारी में एक शादी का मौका आया.. जिसकी वजह से मुझे गांव जाना पड़ा। उधर मेरा स्वागत किया गया।
पहले तो थोड़ा नया-नया लगा.. फिर मैं भी सबके साथ शादी की तैयारियों में लग गया।
अभी भी मेहमान आ रहे थे।
तब शाम को मेरी दूर की रिश्तेदार दीदी जो करीब पैंतीस साल की थीं.. उनको मैंने देखा, वो अभी भी जवान लग रही थीं।
मैंने उनको तीन साल पहले देखा था, तब उनका शरीर उतना भरा हुआ नहीं था.. पर अब तो उनकी चूचियां बड़ी हो गई थीं और गाण्ड भी बहुत ज्यादा बाहर निकल आई थी।
उनके साथ में एक लड़की भी थी.. जो तक़रीबन अठारह साल की होगी। वह मेरी भांजी थी, उसका नाम दिव्या था। वह बहुत ही गोरी-चिट्टी थी।
जब हंसती थी.. तो उसके गाल में छोटे गड्डे बनते थे। उसकी बड़ी-बड़ी आँखें बहुत ही सुन्दर लग रही थीं। उसके चूचे ज्यादा बड़े नहीं थे.. पर गाण्ड थोड़ी बड़ी थी। इतनी गदराई हुई गाण्ड थी कि उसकी जीन्स में मुश्किल से सम्भली हुई थी.. लगता था कि अभी जीन्स फट जाएगी।
मैंने उससे बात करने की कोशिश की.. पर वो कोई न कोई बहाना बनाकर दूसरी लड़कियों के साथ भाग जाती थी।
मैंने दीदी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उसे लड़कों से बात करना अच्छा नहीं लगता।
शाम को खाना खाने के बाद सब लोग छत पर सोने के लिए चले गए। जब मैं गया.. तो जगह नहीं थी।
तभी दीदी ने मुझे आवाज लगाई।
मैंने देखा कि उनका बिस्तर कोने में था और वह उनकी बेटी के साथ सो रही थी, बीच में थोड़ी जगह थी।
उनके कहने पर मैं बीच में ही लेट गया.. पर जगह बहुत कम थी।
बाद में दीदी मुझसे मेरे बारे में सब बात करने लगी.. पर मैं उनकी तरफ मुँह करके लेटा हुआ था.. तो मेरा लण्ड उनके कूल्हे से लगा हुआ था और धीरे-धीरे टाइट हो रहा था।
अब मेरा लण्ड पूरा खड़ा हो चुका था। शायद दीदी ने उसे महसूस कर लिया था.. तो वो और मुझसे चिपकने लगीं और सेक्सी बातें करने लगीं।
मैं बहुत गर्म हो गया, शायद वो भी बहुत गर्म हो गई थीं।
वो नींद का बहाना करके उधर मुँह करके सो गईं।
हमारे बीच न के बराबर की जगह बची थी। थोड़ी देर बाद वह और थोड़ा सा पीछे को ऐसे खिसकीं.. जैसे वह नींद में हों.. और मेरा लण्ड उनकी गाण्ड की दरार में फिट हो गया।
मेरा लण्ड एकदम सख्त हो कर दर्द करने लगा था.. तो मैंने सोचा कि गाण्ड की दरार में घिसके अपना पानी निकाल दिया जाए।
मैं थोड़ा पीछे हुआ और अपने लण्ड को ज़िप खोल कर बाहर निकाल लिया, उनका पेटीकोट धीरे-धीरे ऊपर खिसकाया।
नीचे उन्होंने पैन्टी पहन रखी थी। मैंने लण्ड को गाण्ड से लगाया तो पता चला कि पैन्टी पूरी गीली हो गई थी।
मैं लण्ड को ऊपर से ही घिसने लगा।
पैंटी की वजह से मजा नहीं आ रहा था.. तो मैंने उसे निकालने की सोची।
वैसे तो पैंटी ढीली ही थी। मैंने पैंटी को थोड़ा खींचा तो तो वह थोड़ा खिसकी.. पर बड़ी गाण्ड की वजह से अटक गई। मैंने और कोशिश की.. पर कामयाबी नहीं मिली।
इधर मेरे लण्ड का बुरा हाल हो रहा था और झटके खा रहा था। मैंने बहुत जोर देकर पैंटी नीचे की ओर खींची तो वो सरक कर घुटनों तक चली गई।
मुझे ऐसा लगा कि दीदी ने थोड़ी मदद की हो।
दीदी थोड़ा हिलीं और फिर से सो गईं।
अब उनकी गाण्ड बिल्कुल खुली थी। दीदी ने भी अपने घुटने पूरी तरह मोड़ लिए थे.. तो गाण्ड भी बहुत बड़ी और खुली लग रही थी।
मैंने अपना लण्ड फिर से गाण्ड की दरार में लगाया और घिसने लगा। बहुत ही गर्म गाण्ड थी.. पर लण्ड ज्यादा फिसल नहीं रहा था.. तो मैंने अपने पूरे लण्ड पर थूक लगाया और फिर थोड़ी देर घिसा। मेरे लण्ड का पानी निकलने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने उनकी जाँघों के बीच हाथ घुसाने की कोशिश की.. तो बड़ी मुश्किल से थोड़ी उंगलियां ही जा पाईं।
मुझे लगा कि इन टाइट जाँघों के बीच अपना लण्ड डाल के हिलाऊँगा तो जल्दी ही लण्ड शांत हो जाएगा। मैंने थोड़ा जोर लगाकर उनका एक पैर थोड़ा उठाया.. उतना कि लण्ड घुसा सकूँ।
मैंने लण्ड बीच में सैट करके पैर नीचे रख दिया। अब मैं धीरे-धीरे से लण्ड हिलाने लगा.. पर मुझे लगा कि उनकी चूत कामरस छोड़ रही हो.. क्योंकि जाँघों के बीच चिकनाई होने लगी थी और लण्ड आसानी से फिसल रहा था। मुझे लगा कि दीदी नींद में ही पानी छोड़ रही हैं।
मैं अब लण्ड को चूत पर ही रख कर घिसने लगा। बहुत ही गर्म चूत थी और चिकनी भी बहुत ही ज्यादा थी। मैं थोड़ा पीछे हुआ और अपना हाथ नीचे ले जाकर चूत को टटोलने लगा। मैंने उंगली से चूत का छेद ढूंढकर उस पर थोड़ा दबाव बनाया.. तो थोड़ी उंगली अन्दर हो गई।
मैंने देखा कि दीदी अभी गहरी नींद में ही हैं।
मैंने अब अपना लण्ड चूत पर लगा दिया और अपने लण्ड का टोपा चूत के छेद पर घिसने लगा।
चूत के पानी से टोपा पूरा गीला हो गया।
थोड़ी देर बाद दीदी की गाण्ड पर हाथ फेरा और देखा कि दीदी अभी भी सो रही हैं।
मैं अपने लण्ड के टोपे को चूत के छेद पे दबाने लगा। चूत बहुत ही गीली होने के कारण टोपा छेद से फिसल गया।
मैंने एक हाथ से चूत की फांकें थोड़ी फैलाईं और लण्ड को सैट कर दिया, फिर दबाव बनाने से चूत फैलने लगी.. पर उतनी नहीं कि टोपा घुस जाए।
मैंने थोड़ा पीछे होकर हल्का सा झटका मारा.. तो लगा जैसे पूरा टोपा चूत में चला गया हो। पर अगले ही पल दीदी के मुँह से थोड़ी आवाज आई और वो आगे की ओर खिसक गईं.. जिससे टोपा चूत से बाहर निकल गया।
दीदी फिर वैसे ही गाण्ड को पीछे करके सो गईं.. और अपना हाथ पीछे ले जाकर चूत को सहलाया.. फिर सो गई।
मैंने फिर लण्ड को चूत से लगाया तो पता चला कि चूत पर बहुत सारा थूक लगाया गया है।
मुझे अब पता चल गया कि दीदी जाग रही हैं और वह भी चुदने के लिए तैयार हैं।
मैं फिर चूत के छेद पर दबाव बनाने लगा और चूत भी धीरे-धीरे से फैलने लगी। तभी दीदी ने पीछे की ओर अपनी चूत को जोर से धकेला कि लण्ड के टोपे के साथ थोड़ा लण्ड भी चूत में चला गया।
धक्का थोड़ा जोर से लगा था और पीछे उनकी बेटी यानि मेरी भांजी से टकरा गया, मुझे लगा शायद वह जाग उठी हो।
मैंने भांजी से ध्यान हटा कर दीदी को चोदने के बारे में सोचा।
मैंने एक हाथ से दीदी की कमर कसके पकड़ ली और चूत चिकनी होने की वजह से जोर का धक्का लगाने की सोची।
तभी दीदी ने पीछे होकर मुझे धीरे से कहा- धीरे-धीरे लण्ड को मेरी चूत में उतारना.. दर्द हो रहा है।
मैंने दीदी से कहा- तुम खुद घुसा लो।
फिर दीदी धीरे से मेरे लण्ड पर दबाव डालना चालू किया। उनकी निगोड़ी चूत मेरा लण्ड निगलने लगी और पूरा अन्दर लेने के बाद दीदी अपनी गाण्ड हिलाने लगीं।
मैंने नीचे हाथ ले जाकर देखा कि अभी एक इंच से अधिक लण्ड बाहर है।
मैंने दीदी से बोला- अभी लण्ड थोड़ा बाकी है।
तो वह बोलीं- इससे ज्यादा अन्दर नहीं जाएगा।
अब दीदी ने मेरे लण्ड पर अपनी चूत को सरकाने की स्पीड बढ़ा दी, मुझे बहुत ही मजा आ रहा था, मैंने भी पीछे से धक्के लगाने चालू कर दिए।
सब लोग सो रहे थे और बिल्कुल सन्नाटा होने की वजह से चुदाई की धीरे से आती हुई आवाज भी जोर से सुनाई दे रही थी ‘फच…फच..फच..’
थोड़ी देर में ही चूत ने पानी छोड़ दिया।
दीदी ने मुझे रोक दिया और गहरी साँसें लेने लगीं और बोलीं- मेरा काम हो गया है.. तुम भी जल्दी अपना पानी निकाल दो।
मैंने दीदी की कमर कसके पकड़ ली और तेज-तेज धक्के मारने लगा।
अब लण्ड पूरा जड़ तक अन्दर जा रहा था।
दीदी की दर्द भरी ‘आहें..’ भी निकलने लगी थीं।
अचानक लण्ड जोर से झटके खाने लगा और और मैंने बहुत सी वीर्य की पिचकारियां चूत में छोड़ दीं।
कुछ पलों के बाद मैंने लण्ड बाहर खींच लिया.. तो दीदी ने पीछे मुड़ कर मुझे गाल पर एक किस किया और बोली- थैंक यू..
मैंने अपना लण्ड पैन्ट में कर लिया और दीदी ने भी पैंटी पहन कर कम्बल ओढ़ लिया और सो गईं।
अब रात के दो बज गए थे और थोड़ी ठण्ड भी लगने लगी थी। मैंने दीदी के कम्बल में घुसना चाहा.. पर वो चुदने के बाद आराम से सो गई थीं और उनका कम्बल भी छोटा था, उनके कम्बल में दो आदमी नहीं सो सकते थे.. तो मैं इधर-उधर कम्बल ढूंढने लगा।
तभी मेरी नज़र दिव्या यानि मेरी भांजी पर पड़ी, उसका कम्बल बहुत ही बड़ा था, मैं उसके साथ सो सकता था।
मैं उसके कम्बल में घुस गया।
उसका शरीर बहुत ही गर्म था। वह मेरी तरफ मुँह करके लेटी हुई थी.. तो उसके रसीले होंठ बिल्कुल मेरे सामने थे। मैंने उसे हल्के से चूम लिया, मुझे बहुत ही मजा आया।
उसने ऊपर टी-शर्ट और नीचे जीन्स पहन रखी थी।
मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा था, मैंने उसके चूचों पर हल्के से हाथ फिराया। चूचे बहुत बड़े नहीं थे.. मुठ्ठी में आसानी से आ रहे थे। मैंने उनको थोड़ी देर दबाया.. तो साली हिलने लगी।
मैंने सोचा कि कहीं साली जग गई तो हंगामा हो जाएगा.. इसलिए उसके चूचों से अपने हाथ को हटा लिया।
अब मुझे भी नींद आने लगी थी.. तो मैंने सो जाना ही ठीक समझा।
चार बजे का समय हो गया था और लोग भी जागने लगे थे। क्योंकि शादी की तैयारी करने की वजह से कोई-कोई आदमी जल्दी उठ जाते हैं।
मैं भी एक खाली बिस्तर देख कर उसमें जाकर सो गया.. जो अभी-अभी कोई ख़ाली करके गया था।
मुझे जल्दी ही नींद आ गई।
सुबह मेरी नींद बहुत देर से खुली। धूप निकल आई थी और लोगों के बोलने की आवाज सुनाई दे रही थी।
मैंने आस-पास देखा तो मेरे सिवाए और कोई नहीं था, सब लोग उठ कर जा चुके थे, दीदी और दिव्या भी जा चुके थे।
सब लोग भागम-भाग कर रहे थे.. किसी को बोलते सुना कि बारात आने वाली है।
मैं भी जल्दी से स्नान करके तैयार हो गया।
बारात आ गई और रस्में शुरू की गईं।
सब जवान लड़के-लड़कियां दूल्हे और दुल्हन के बीच होने वाली रस्मों को देखने के लिए खड़े हो गए थे, मैं भी दीदी के पास जाकर खड़ा हो गया।
जगह बहुत ही कम थी और लड़कियां भी बहुत धक्का-मुक्की कर रही थीं। अब मैं देखने की कोशिश करने लगा और दीदी के कंधे पकड़ कर पीछे खड़ा हो गया।
दीदी की गांड बड़ी होने की वजह से थोड़ा हिलने पर ही मेरे लंड से रगड़ खा रही थी। मेरा लंड पैन्ट के अन्दर खड़ा हो चुका था और दीदी की गांड में घुसने को बेताब था।
दीदी पीछे मुड़ कर थोड़ा मुस्कुराईं और फिर शादी देखने लग गईं।
दीदी के कंधे पकड़ कर मैं ऊपर से ही उनकी गांड में धक्के लगा रहा था और दीदी भी अपनी गांड पीछे की ओर धकेल रही थीं, बहुत मजा आ रहा था।
तभी मेरी नजर एक लड़की पर पड़ी।
वह मेरी भांजी दिव्या थी, वह मेरी ओर ही देख रही थी और उसने मुझे धक्के लगाते हुए भी देख लिया था।
मैंने उसी वक़्त दीदी के कंधे छोड़ दिए और थोड़ा दूर खड़ा हो गया।
मैंने दिव्या की ओर देखा.. तो वह मेरी ओर देख कर मुस्कुराई, मैं भी उसके सामने मुस्कुराया।
अब मुझे यह डर था कि कहीं वो यह धक्के लगाने वाली बात सबको बता न दे.. नहीं तो इज्जत की माँ चुद जाएगी।
वह मुस्कुराते हुए बहुत ही सुन्दर लग रही थी, उसके सफ़ेद दांत.. लाल होंठों के बीच और भी लाल लग रहे थे।
मैं उसकी तरफ देख रहा था.. तभी उसने मेरी ओर गुस्से से देखा और छत पर आने का इशारा किया।
मैं थोड़ा घबरा गया और सोचने लगा कि वह किसी को कुछ बता देगी तो क्या होगा। वह लोगों के बीच में से जाते हुए छत पर चली गई।
मैं भी सबकी नजर बचा कर छत पर पहुँचा तो वह सामने ही खड़ी थी।
मैं कुछ बोलता.. उससे पहले ही वह बोल पड़ी- मेरी मम्मी के पीछे क्या कर रहे थे? कोई शर्म नाम की चीज है क्या तुममें?
मैंने थोड़े घबराते हुए कहा- वो मैं शादी की रस्म देखने की कोशिश कर रहा था.. तो थोड़ा सा धक्का लग गया।
इतना सुनते ही वह बोली- अच्छा तो यह बात तो ठीक है कि भीड़ की वजह से धक्का लग जाता है.. पर तुम रात को भी मेरी मम्मी को बहुत तेज धक्के लगा रहे थे।
मैं थोड़ी देर उसके चेहरे की ओर देखता रहा।
मैंने पूछा- तुमको कैसे पता?
वह थोड़ा मेरे पास आई और बोली- मुझे सब पता है कि तुम मम्मी के साथ सेक्स कर रहे थे और मैं यह बात अभी नीचे जाकर सबको बताने वाली हूँ।
मेरी तो गांड ही फट गई.. मैं बहुत घबरा गया और लगभग गिड़गिड़ाते हुए उससे बोला- प्लीज मुझे माफ़ कर दो.. अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी।
वह मेरा हाथ पकड़ कर बोली- मैं किसी को कुछ नहीं बताऊँगी.. पर एक शर्त है।
मैं बहुत खुश हो गया कि अगर यह कुछ नहीं बताएगी.. तो मैं कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ।
मैंने उससे पूछा- कौन सी शर्त?
वह बोली- शर्त यह है कि तुम्हें मुझे भी धक्के लगाने पड़ेंगे। कल जो काम तुमने मेरे चूचे सहला कर अधूरा छोड़ा था आज वो सब पूरा करना।
पहले तो मैं भौचक्का रह गया.. फिर मैं बहुत खुश हो गया, मैंने उसी समय ‘हाँ’ कर दी।
वह मुस्कुराते हुए बोली- कल मुझे अपने गांव जाना है.. तो तुम्हें यह काम आज रात को ही करना पड़ेगा।
अब हम दोनों नीचे आ गए।
दीदी हम दोनों को नीचे आता देख रही थीं।
सब रस्में भी खत्म हो चुकी थीं।
अब मैं रात होने का इंतजार करने लगा, मैं पूरा दिन दिव्या को चोदने के सपनों में ही खोया रहा, उसकी बड़ी गांड देखकर बार-बार मेरा लंड खडा हो रहा था।
मेरा लंड पैन्ट में तंबू बन गया था और बुरी तरह अकड़ गया था। तभी दीदी उधर आईं और मेरे खड़े हुए लंड को देखकर बोलीं- अरे तेरा लंड तो खड़ा हो गया है। कोई ऐसे देखेगा.. तो क्या सोचेगा.. चल पड़ोस में एक घर खाली है.. उधर इसको शांत करते हैं, मेरी चूत में भी बहुत खुजली हो रही है।
दीदी अपनी गांड मटकाते हुए आगे चलने लगीं। उनकी गांड बहुत ही अच्छी लग रही थी। मैं भी अपने खड़े हुए लण्ड को छुपाते हुए उनके पीछे चल पड़ा।
वहाँ जाकर हम एक-दूसरे को चूमने लगे, वो मुझे पागलों की तरह चूम रही थीं। उनके होंठ बहुत ही रसीले थे, मैं भी होंठों को चूमने लगा।
मुझे थोड़ा हटा कर वो खुद ही अपने कपड़े उतारने लगीं, पहले उसने अपनी साड़ी को उतार कर रख दिया, बाद में उनका ब्लाउज जो कि बहुत ही टाइट लग रहा था.. उनके बड़े-बड़े चूचे उसमें समां नहीं रहे थे।
उन्होंने ब्लाउज के साथ ब्रा भी उतार दी और उनके गोरे-गोरे चूचे आज़ाद हो गए।
मैं उनके चूचों को जोर-जोर से दबाने लगा, उनके मुँह से मादक आवाजें निकलने लगीं।
इधर मेरा लंड भी टाइट हो गया था तो मैंने दीदी का हाथ पकड़ कर मेरे लंड पर रख दिया।
वो पैन्ट के ऊपर से ही उसे सहलाने लगीं।
मैंने उनके पेटीकोट का नाड़ा खोलना चाहा.. पर खुल नहीं रहा था और मैं बहुत उत्तेजित हो गया था। मैंने एक झटके से नाड़ा तोड़ दिया, इसके साथ ही पेटीकोट फर्श पर जा गिरा।
अब दीदी सिर्फ पैन्टी में रह गई थीं, उनकी पैंटी लाल रंग की थी.. जो कि उनके गोरे बदन पर बहुत सेक्सी लग रही थी।
थोड़ी देर बाद वह बोलीं- मुझे तुम्हारा लंड चूसना है.. काफी समय से किसी का लंड नहीं चूसा।
दीदी रात को मेरा लण्ड नहीं चूस पाई थी।
वह खुद घुटनों के बल नीचे बैठ गईं और मेरी पैन्ट की ज़िप खोल दी, मेरा लंड बाहर निकाला.. पहले थोड़ी देर हाथ से मुठियाया.. फिर मुँह में लेकर चूसने लगीं।
वो बिल्कुल रंडी की तरह लंड चूस रही थीं, पूरा लंड मुँह में लेने की कोशिश कर रही थीं.. जिससे कभी-कभी उनको खांसी भी आ जाती थी।
मैंने खुश होकर कहा- अरे वाह दीदी, आप तो बहुत अच्छे से लंड चूस रही हो.. लगता है आपने बहुत लंड चूसे हैं।
मैंने अब कसके उनका सर पकड़ लिया और उनके मुँह में ही धक्के लगाने लगा।
मैंने अपनी गति बढ़ा दी, थोड़ी देर में ही मैंने उनके गले में वीर्य की पिचकारी मार दी।
अब मेरी बारी थी उनकी चूत का पानी निकालने की.. मैंने उन्हें नीचे लिटा दिया। उन्होंने खुद अपनी पैंटी उतारकर साइड में रख दी और घुटने मोड़कर पैर फैला दिए.. जिससे उनकी चूत ऊपर की ओर उठ गई।
उनकी चूत पर एक भी बाल नहीं था.. और चूत एकदम पाव की तरह फूली हुई थी, थोड़े साँवले सी चूत के होंठ और उसके नीचे लाल छेद बड़ा ही प्यारा लग रहा था।
मैं चूत के दाने को चूसने लगा और एक हाथ से उनकी चूचियां भी दबाने लगा, उनके मुँह से लगातार मादक आहें निकल रही थीं।
अब मैंने एक उंगली भी चूत में डाल दी और अन्दर-बाहर करने लगा, दीदी को बहुत मजा आ रहा था।
थोड़ी देर बाद मैंने दो उंगलियाँ चूत में डाल दीं और तेजी से अन्दर-बाहर करने लगा।
दीदी भी अपनी कमर उचकाने लगीं और उनकी चूत से पानी निकल पड़ा।
मेरे होंठ उनके पानी से भीग गए।
पानी निकल जाने से वो हाँफने लगीं और मुझे भी थोड़ी देर रुकने कर करने को कहा।
कुछ पल आराम करने के बाद उन्होंने मेरा लंड पकड़ लिया और बोलीं- अरे तेरा लंड तो फिर से खड़ा हो गया.. चल इसको मेरी चूत में डाल दे।
उस जगह खिड़की थोड़ी ऊपर थी.. जिसमें से रास्ते पर आने-जाने वाले लोग दिखते थे, मैंने दीदी को वह खिड़की पकड़ कर झुका दिया। अब उनकी मोटी गांड ठीक मेरे सामने थी।
मैं लंड डालने ही वाला था कि वो पीछे मुड़ीं और बोलीं- ला तेरे लंड पर थूक लगाती हूँ.. नहीं तो मुझे बहुत दर्द होगा।
दीदी फिर खिड़की पकड़ कर झुक गईं। मैंने चूत के छेद पर लंड रखा और हल्का धक्का दिया तो टोपा चूत में घुस गया। उनकी हल्की सी दर्द भरी सिसकारी निकल गई, तीन चार धक्कों में ही पूरा लंड दीदी की चूत में उतार दिया।
अब मैंने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू कर दिए, दीदी को भी मजा आने लगा, वो खुद अपने चूचे दबाने लगीं।
मैंने दीदी की कमर पकड़ ली और हचक कर धक्के लगाने लगा। दीदी के पैर कांपने लगे और उनकी चूत पानी छोड़ने लगी। उनकी चूत मेरे लंड को भींच रही थी।
दीदी की चूत की गर्मी से मैं भी ज्यादा समय टिक नहीं सका और चूत में अपना पानी छोड़ दिया।
झड़ने के बाद पास ही पड़ी पैंटी से दीदी ने अपनी चूत और मेरा लंड अच्छी तरह से साफ कर दिया।
मैंने और दीदी ने कपड़े पहने और हम वापस घर आ गए।
दीदी चूत मरवा कर बड़ी खुश लग रही थीं।
खाना खाने का समय भी हो चुका था.. तो हम खाना खाने चले गए। बाक़ी सब काम खत्म करके हम सब छत पर सोने चले गए। आज जगह भी ज्यादा थी तो मैंने दीदी से थोड़ी दूर अपना गद्दा बिछा दिया.. और सबके सोने का इंतजार करने लगा।
सब लोग खाना खाकर सोने की तैयारी करने लगे.. आज जगह ज्यादा थी क्योंकि काफी लोग जा चुके थे.
छत पर मैं अकेला एक और सोया हुआ था और थोड़ी दूरी पर दीदी और दिव्या यानि कि मेरी भांजी सोये हुए थे. मैं सोने की कोशिश कर रहा था, पर नींद नहीं आ रही थी क्योंकि आज दिव्या की चूत मिलने की आस जगी हुई थी.
मैंने घड़ी में देखा तो ग्यारह बज चुके थे और लगभग सभी लोग थक कर सो गए थे. मुझे लगा कि दीदी सो गई हैं और यही सही मौका है, अपनी भांजी दिव्या को चोदने का. मैं अपने बिस्तर पर से उठा और दीदी और दिव्या के बीच में जाकर लेट गया.
मैंने देखा कि दिव्या मुझसे विपरीत दिशा में मुँह करके सो रही थी और उसके घुटने मुड़े होने की वजह से उसकी गांड और भी बड़ी लग रही थी.
मैंने धीरे से गांड पे हाथ फेरा और चूतड़ को हल्के से दबाया तो मुझे उसकी मुलायम गांड पर हाथ फेरने में मजा आ गया. सच में बड़ी ही मक्खन मुलायम गांड थी उसकी. तभी मुझे लगा कि दीदी जाग रही हैं और अपनी चुत को जोर जोर से सहला रही हैं.
मैंने उनके कम्बल में हाथ डालके उनके पेट पे रख दिया. उन्होंने चुत सहलाना रोक दिया. मैं धीरे धीरे हाथ चुत पे ले गया तो चुत पर दीदी ने हाथ रखा हुआ था. मैंने उनका हाथ हटाने की कोशिश की, तो उन्होंने रोक मुझे रोक दिया.
मैंने थोड़ा जोर लगाके उनके हाथ को हटाया और अपना हाथ चुत पे रखा. उनकी चुत बहुत ही गीली थी और चुत में कोई चीज घुसाई गई थी. मैंने उस चीज को हाथ से महसूस किया तो पता चला कि दीदी ने अपनी चुत में एक बैंगन घुसा रखा है जिसको वह अन्दर बाहर कर रही थीं.
मैंने दीदी को कान में धीरे से बोला- क्या दीदी.. भाई का लंड होते हुए बैंगन चुत में घुसा लिया? यह बैंगन अभी का अभी निकालो और मेरा लंड अपनी चुत में डलवा लो.
दीदी ने मेरे लंड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ लिया और बोलीं- अगर ऐसा है तो खुद ही मेरी इस चुत में से बैंगन निकाल कर अपना लंड डाल दो.
मैंने बैंगन को ऊपर से पकड़ा जो कि चुत से एक इंच ही बाहर निकला हुआ था. थोड़ा खींचने पर आधा बैंगन बाहर निकल आया.. आधा अब भी अन्दर ही था. मैंने निकालने की कोशिश की तो दीदी के मुँह से दर्द भरी सिसकारी निकलने लगी. मैंने और ज़ोर लगाकर बैंगन खींचा तो बैंगन बाहर आने लगा. दीदी ने मेरा लंड कस कर पकड़ लिया और कराहने लगीं.
मैंने दूसरा हाथ चुत पर लगा कर महसूस किया कि चुत बहुत ही ज्यादा फ़ैल चुकी थी और बैंगन का नीचे का हिस्सा बहुत ही मोटा था.
मैंने ताकत लगा कर झटके से बैंगन खींचा तो फच की आवाज के साथ बैंगन बाहर आ गया. दीदी ने खुद अपने मुँह पर हाथ रख कर चीख को दबा दिया.
मैंने बैंगन को साइड में रख दिया जो कि करीब 7-8 इंच लंबा था. दीदी अचानक मेरे दोनों ओर अपने पैर फैला कर बैठ गईं और मेरा लंड निकाल कर पूरा थूक से चिकना कर दिया. फिर मेरा लंड चुत पे रख कर उस पर बैठ गईं, मेरा लंड सरक कर दीदी की चुत में घुस गया.
दीदी थोड़ा ऊपर उठाकर पूरा लंड बाहर निकालतीं और फिर धच से बैठकर पूरा लौड़ा अपनी चुत में घुसा लेतीं. ऐसा तीन चार बार करने से ही उनका पानी निकल गया और वह झड़ गईं, पर मेरा पानी निकलना जरूरी था.
मैंने उनकी कमर पकड़ ली और नीचे से जोर जोर से धक्के लगाने लगा. थोड़ी देर में ही दीदी ने मुझे रोक लिया और बोलीं- अब बस करो.. अब नहीं चुदवा सकती.. अन्दर चोट लग रही है. प्लीज अपना लंड बाहर निकाल लो.
पर मैंने फिर से उनकी कमर पकड़ ली और धक्के लगाने लगा, बहुत मजा आ रहा था. तभी वह रोने लगीं और अचानक मेरे हाथ छुड़ा कर लंड से नीचे उतर कर अपनी पैंटी पहनने लगीं.
मैं बहुत ही उत्तेजित हो गया था और किसी भी हालात में अपने लंड को शांत करना चाहता था. मैंने उनको घुमा कर घोड़ी बना दिया और पैंटी को फाड़ दिया. अपनी एक उंगली उनकी गांड में घुसाकर जोर जोर से अन्दर बाहर करने लगा. उनको दर्द हो रहा था, पर मैंने अपना काम चालू रखा.
थोड़ी देर बाद उनके गांड के छेद को थूक लगा कर चिकना कर दिया और अपने लंड का सुपारा छेद पे रख दिया. मैं दीदी के बड़े चुचे दबाने लगा. दीदी भी अब फिर से गर्म होने लगी थीं. मैंने लंड का दबाव बढ़ाया तो चिकनाई की वजह से लंड नीचे की ओर फिसल गया और थोड़ा चिकनी चुत में भी घुस गया.
दीदी ने भी पीछे एक दो धक्के लगाके पूरा लंड अपनी चुत में ले लिया और हिलने लगीं. मैंने लंड को खाली करने के लिए चुत का भोसड़ा बनाने को ही ठीक समझा और दीदी की चूत पर पिल पड़ा.
दीदी भी मस्त आहें भरते हुए चुत रगड़वाने लगीं. उनकी चुत फिर से गरम हो गई थी और अब वे भी पूरी मस्ती से चुदाई का मजा ले रही थीं.
मुझे लगा था कि दीदी की चुत में ही मेरे लंड का रस निकल जाएगा. पर पता नहीं आज दिव्या की चुत मिलने के चक्कर मेरा लंड झड़ने को राजी नहीं था.
करीब दस मिनट दीदी की चुदाई में दीदी फिर से झड़ गईं और उनकी चुत में जलन होने लगी, उन्होंने मेरे लंड से खुद की चुत को अलग कर लिया. मैंने उन्हें फिर से पकड़ा तो वे मना करने लगीं.
मैंने उनसे कहा कि मेरा लंड तो झाड़ दो, अभी मेरा पानी नहीं निकला है.
तो दीदी ने कहा कि आज तुझे क्या हो गया है.. तू अब तक क्यों नहीं झड़ा?
मैंने उनको अपनी तरफ खींचते हुए उनके मम्मों को अपने हाथों में लेकर मसलना शुरू किया और कहा- मुझे नहीं पता किस वजह से लंड नहीं झड़ रहा है लेकिन आप मुझे अधूरा मत छोड़ो, प्लीज़ मेरे लंड को शांत करो.
दीदी बोलीं- हाथ से मुठ मार ले. अब मुझे चूत की जलन सही नहीं जा रही है.
मैंने कहा- चलो चूत में सही पीछे गांड में करवा लो.
मैंने उनके जबाव का इन्तजार नहीं किया और उनको फिर से झुका कर उनकी गांड के छेद पर लंड का सुपारा टिकाने का प्रयास किया. पर लंड भी पूरा बहनचोद बन चुका था, वो साला फिर से दीदी की चूत की तरफ फिसल गया.
दीदी ने अपनी कमर हिलाई तो लंड चुत से हट गया. मुझे भी तो अब ही गांड मारनी थी तो मैंने चुत की तरफ से लंड हटा कर फिर गांड के छेद पे रख दिया. मैंने दीदी को लंड सही से छेद पे टिकाये रखने को बोला.
दीदी अपनी साँस रोक कर एक हाथ से मेरे लंड को पकड़ा और एक हाथ से अपनी गांड फैलाने की कोशिश करने लगीं. मैंने भी दीदी की कमर को कसकर पकड़ लिया और पूरी ताकत लगा कर धक्का मारा. इस धक्के में मेरा आधे से ज्यादा लंड दीदी की गांड की गहराइयों में उतर गया.
लंड के घुसते ही दीदी के मुँह से एक दर्द भरी चीख निकल गई- ओह्ह.. माँ.. मर.. गई..
मैंने दीदी की चिल्लपों की परवाह न करते हुए उनके लटकते मम्मों को अपने हाथों में भरा और दीदी की गांड की धकापेल चुदाई शुरू कर दी.
दीदी मुझसे छूटने की कोशिश करने लगीं. उन्होंने मेरे हाथ छुड़ा लिए और पीछे हाथ लाकर मेरा लौड़ा अपनी गांड में से बाहर खींच लिया.
मैंने उनको फिर पकड़ कर गांड मारने की कोशिश की, मगर वह मुझे धक्का देकर अपने कपड़े सही करने लगीं और नीचे जाने लगीं. मैंने उन्हें नहीं रोका क्योंकि वह बहुत गुस्सा हो गई थीं. मैंने उनको जाने दिया.
उनके जाने के बाद अब मेरे पास दिव्या को चोदने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.
मैं दिव्या के बाजू में आकर लेट गया और लंड सहलाने लगा. मैं अभी आँख बंद करके सोच ही रहा था कि दिव्या से कैसे शुरुआत करूँ.. तभी मुझे मेरे हाथ पर जो मेरे लंड पर लगा था, नर्म हाथ का अहसास हुआ. मैंने देखा तो दिव्या उठ गई थी और मेरे लंड पर उसका हाथ था.
मैंने उसकी तरफ देखा तो बोली- क्या हुआ डियर मामा.. लंड की आग बुझी नहीं क्या?
मैं उसकी बात का जबाव देता, तभी वो उठ कर बैठी हो गई और उनसे मेरा हाथ लंड से हटाते हुए लंड को अपनी जीभ से सहला दिया.
आह.. लंड ने एकदम से तुनकी मारी और दिव्या ने मेरा लंड मुँह में ले लिया.
मैंने दोनों हाथ खुला छोड़ दिए और अपना लंड अपनी भांजी के मुँह में चूसे जाने के अहसास से मजा लेने लगा.
दिव्या ने अभी दो मिनट ही मेरा लंड चूसा होगा कि मेरे लंड से रस निकलने को होने लगा, मैंने उससे कहा- लंड झड़ने वाला है, रस पियोगी क्या?
दिव्या बोली- मामा, लंड से रस से मुझे उबकाई आती है, आप मेरे मुंह में अपना पानी मत निकालना.
मैंने अपना लंड बाहर खींच लिया और अपना पानी बिस्तर पर निकाल दिया.
अब मैं आराम से बिस्तर पर लेट गया और दिव्या को अपने ऊपर लेकर उसके लबों को चूमने लगा. मेरा एक हाथ उसकी गर्दन पर था और दूसरा उसके कूल्हों पर…
दिव्या बड़े जोश से मेरे साथ फ्रेंच किस कर रही थी, वो इस खेल की अनुभवी लग रही थी.
थोड़ी देर जवान लड़की के बदन की गर्मी और वासना ने मेरी कामवासना पुनः भडका दी, मेरा लंड फिर से जोश में आने लगा.
अब मैंने दिव्या के कपडे उतारने शुरू किये, उसे पूरी नंगी किया और बिस्तर पर लिटा कर उसके ऊपर आ गया. दिव्या ने खुद से अपनी टाँगें चौड़ी की और मेरा लंड अपने हाथ से पकड़ कर अपनी चूत पर लगाया और मुझे धक्का मारने के लिए कहा. दिव्या की कामवासना अपने चरम पर थी.
जैसे ही मैंने धक्का मारा, मेरा लंड उसकी चूत में ऐसे घुस गया जैसे मक्खन में गर्म चाकू!
दिव्या पूरी खाई खेली थी.
मैंने दिव्या को काफी देर तक चोदा और उसे चुत चुदाई पूर्ण आनन्द दिलाया. इसके बाद जब मैं झड़ने को था तो मैंने दिव्या को बताया कि मैं आने वाला हूँ तो उसने कहा- मामा जी, आप मेरी चूत में ही अपना माल छोड़ दो! मेरे पास इसका इलाज है.
मैंने अपना रस अपनी भानजी की चूत में छोड़ दिया.
अब मैं पूरा थक चुका था तो मैं अपने बिस्तर पर जाकर सो गया.
अगले दिन मेरी भानजी दिव्या बहुत खुश दिख रही थी और मेरे साथ हंस हंस कर बातें कर रही थी और मौक़ा मिलने पर कामुकता भरी शरारतें भी कर रही थी.


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