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मेरा नौकर राजू और मेरी बहन - Mera Naukar Raju Aur Meri Behan

 


“मालकिन… तनिक छुट्टी चाही आठ दिन की!” बद्री चाचा मुझसे छुट्टी मांगते हुए बोले।
“क्यों चाचा?” मैंने पूछा।
“गांव जाना है, होली आवत है ना…” चाचा बोले।
“चाचा आपको तो पता है ना, साहब भी टूर पर गए हैं। इतने बड़े घर का काम मैं अकेले…” मैं बोल ही रही थी कि मुझे टोकते हुए चाचा बोले- मालकिन, पिछले चार साल से घर नहीं गए हैं, घर वाली बुलावत रही है…”

“अभी इस उम्र में घर वाली क्यों” मैं हँसते हुए उससे बोली।
“वैसा नहीं मालकिन, पर…” वह भी शर्माते हुए बोले।
“चाचा मगर आप को भी पता है ना मैं सबकुछ अकेले नहीं संभाल सकती, और आप ही हो कि अगर पंद्रह दिन के बाद चले जाते तो तब तक साहब भी आ जाते!” मैं बोली।

“आप फिकर मत करो, मैंने घर के काम के लिए अपने भतीजे को बोला है।” वह बोले।
चाचा पर तो मुझे भरोसा था पर उसके भतीजे पर? नये आदमी पर एकदम से भरोसा रखना थोड़ा मुश्किल ही था तो मैंने चाचा से पूछा- चाचा भरोसेमंद तो है ना?
ऐसे सीधे सीधे पूछना भी अच्छा नहीं लग रहा था।
“है मालकिन, मेरी जबान है…” वह बोला।

“तो फिर ठीक है… कब जा रहे हैं आप?” मैंने पूछा।
“परसों… कल रात को ही निकलेंगें।” चाचा बोले।
“हाँ चलेगा…” ऐसा कहते ही बद्री चाचा निकल गए।


प्रिय पाठको… मैं नीतू, नीतू पाटिल… मेरे पति नितिन। नितिन का खुद का बिज़नेस है। वे स्वभाव से और शरीर से बहुत ही अच्छे हैं पर उनके टूर से मुझे बहुत चिढ़ होती है, महीने के पंद्रह दिन वे टूर पे होते हैं और मैं घर में अकेली ही होती हूँ।

हमारा शहर के बाहर एक बड़ा सा बंगला है, शहर से लगभग 10-15 किलोमीटर दूर है। आजु बाजू सब बड़े बड़े बंगले ही थे, तो किसी से ज्यादा जान पहचान नहीं थी। इसीलिए जब भी नितिन टूर पर चला जाता तो मैं बहुत बोर हो जाती घर में अकेली बैठ कर… और कुछ भी करने को नहीं होता था।

बद्री चाचा हमारे घर में नौकर है। उनकी उम्र लगभग 65 साल थी फिर भी घर के सभी काम कर लेते हैं, मुझे कोई काम नहीं करना पड़ता है। अगर शहर जाना हो तो चाचा ही ड्राइविंग करते थे, तो मैंने कभी ड्राइविंग सीखी ही नहीं।

चाचा छुट्टी पे जा रहे थे तो मुझे डर सा लग रहा था। मेरी शादी होने के बाद पहली बार चाचा छुट्टी ले रहे थे। अब सब काम मुझे करना था इस डर से ही मैं उन्हें ना कह रही थी। पर उन्होंने भी चालाकी से अपने भतीजे को काम पे लगा दिया तो मुझे कोई कारण ही नहीं बचा ना कहने को।
दूसरे दिन चाचा अपने भतीजे को ले कर आ गया- मालकिन, यह लो, राजेश को ले आया हूँ”
चाचा ने आवाज दी।

मैं उस समय ऊपर के बैडरूम में थी, मैंने ऊपर से देखा तो नीचे चाचा और उनका भतीजा खड़ा था।
मैं सीढ़ियों से नीचे आ गयी और सोफे पर बैठ गई।
“हा…तो नाम क्या है?” मैंने उसे पूछा।
तो उसने हाथ जोड़ते हुए बताया- जी राजेश…
“क्या क्या काम आता है?” मैंने पूछा।
“जी सबकुछ, जो आप कहेंगे, सब करेगा” चाचा बोले।
” चाचा मैंने सवाल उससे किया है…” मैं बोली।
“अच्छा माफी…” ऐसे कहते हुए चाचा चुपचाप खड़े हो गए।

“गाड़ी चला लेते हो…” मैंने पूछा।
“जी आवत है!” वह बोला।
“लाइसेन्स है?” मैंने पूछा।
“हाँ…” उसने अपना लाइसेंस मुझे दिखाया।

“चाचा इसे सब कुछ समझा दो, सब काम वगैरा, मैं बाहर जा रही हूं।” मैंने उन्हें बताया और घर से बाहर निकली।
बाहर टैक्सी पकड़कर मैं शहर चली गयी।

होली दो दिन बाद थी तो सारे मार्केट में हलचल थी। सारी दुकानें रंगबिरंगी हो गयी थी। मैंने मॉल में जाकर अपने लिए शॉपिंग की, फिर एटीएम में जाकर पैसे निकाले। बाद में रिक्शा पकड़कर घर आ गयी।
घर में आते ही राजेश ने मुझे पानी लाकर दिया। फिर उसे रात का खाना ऊपर बेडरूम में लाने को बोलकर मैं बेडरूम में चली गई।

शाम को मैंने चाचा को पैसे दिए, उसी रात की गाड़ी से चाचा अपने गांव को चले गए।
दूसरे दिन सुबह बैडरूम का दरवाजा बजने से मेरी नींद खुली।
“कौन है?” मैंने पूछा।
“मैं हूँ मेमसाब, चाय!” बाहर से राजेश की आवाज आई।

मैंने उठकर अपना गाउन ठीक किया और दरवाजा खोला, उसने चाय टेबल पर रखी और चला गया।

मैंने चाय पीते पीते पेपर पढ़ा, फिर नहा के नीचे जाने लगी कि तभी फोन की घंटी बजी।
“हाँ सीमा बोल?” मेरी बहन सीमा का फ़ोन था।
“दीदी आज दोपहर को टाइम है क्या?” उसने मुझे पूछा।
“हाँ है ना, क्या बात है?” उसने मुझे पूछा।
“कुछ नहीं, बहुत दिन हुए तुमसे मिले हुए, तो सोचा तुमसे मिल लूं।” वह बोली।

“मैं एक फ्रेंड के घर जा रही हूँ दोपहर को, चार बजे तक लौटूंगी, तुम ऐसा करो, चार बजे आ जाओ।”
“ओके दीदी, पर तुम चार बजे तक आ जाओगी ना?” वह बोली।
“हाँ बाबा, आ जाऊँगी।” मैंने बोला।


मैंने राजेश को बुलाया- राजेश, दोपहर को मेरी बहन आने वाली है, दोपहर को खाना थोड़ा ज्यादा बनाना।”
“जी मेमसाब…” राजेश बोला।
“मैं बाहर जा रही हूँ, दरवाजा बंद कर लेना।” उसको बोलकर मैं घर से बाहर निकली।

“मेरा काम तीन बजे ही खत्म हो गया, मैं रिक्शा पकड़ कर घर की तरफ निकली। चार बजे सीमा आने वाली थी, उसके साथ क्या क्या बातें करनी है इस बारे में मैं सोचने लगी।

सीमा मेरे से दो साल छोटी थी। सबसे छोटी होने के कारण बड़े ही लाड़ प्यार से पली बढ़ी थी। मैं हर बार उसके स्तनों की तुलना मेरे स्तनों से करती पर हर बार वही जीत जाती, ऐसा ही हाल नितम्बों का था। उसकी फिगर बड़ी ही आकर्षक थी और उसे उसने संभाली भी थी। रंग में गोरी सीमा दिखने में मुझसे ज्यादा अच्छी थी, मुँह फट थी, बिल्कुल बिन्दास रहती थी। शादी के बाद भी उसका स्वभाव नहीं बदला था।

वह बहुत बार मुझे कहती- दीदी, जीजू को तो अपना बिज़नेस प्यारा है, तुम क्यों अपने आप को तड़पा रही हो, कोई जवान मर्द रखो ना अपने यहाँ काम पे, वह दिन में काम करेगा फिर रात को काssssम भी करेगा…
पर मैंने कभी उसकी बातें गंभीरता से नहीं ली, मुझे उसमें कोई रस नहीं था। वह हमेशा से ही ऐसे बिन्दास बोलती थी पर मुझे नहीं लगता कि उसने भी कभी ऐसा कुछ किया होगा।

“मैडम आपका घर आ गया!” ऑटो ड्राइवर के बोलते ही मैं विचारों से बाहर आ गयी।
ऑटो से उतर कर मैंने उसको पैसे दिए और गेट के अंदर चली गई।

लॉक खोल कर घर के अंदर गयी, राजेश कहीं दिखाई नहीं दे रहा था तो मैंने खुद ही किचन में जा कर फ्रिज में से पानी निकालकर पिया। फिर हॉल में सोफे पर बैठ कर पीछे रेस्ट पे सिर रख कर आंख बंद करके बैठ गई।
अचानक ही कुछ आवाज कानों में पड़ी, मैंने आंखें खोल कर देखा तो कुछ भी नहीं था। शायद मुझे वहम हो रहा था… यह सोच कर फिर से आंखें बंद कर लेट गयी। ऊपर पंखा भी पूरी स्पीड में घूम रहा था। कुछ वक्त शांति थी पर फिर से वही आवाज सुनाई पड़ी।

मैंने ध्यान दिया तो पता चला आवाज ऊपर के बेडरूम से आ रही थी। मेरे बैडरूम के पास एक गेस्ट रूम है उसी रूम से।
राजेश मेरे न रहते मेरे बैडरूम में जाने की हिम्मत नहीं करेगा। इसलिए थोड़ा डरते हुए मैं ऊपर जाने लगी।

जैसे जैसे मैं रूम के पास जा रही थी वैसे ही आवाजें तेज होने लगी।
ये तो सिसकारियों की आवाजें थी, किसी औरत की सिसकारियों की… मगर कौन हो सकता है? राजेश ने कोई लड़की तो नहीं बुलायी ना, या फिर उसकी बीवी हो?
मेरे घर में ना रहते हुए उसका यह क्या काम चल रहा था। काम को आये हुए एक ही दिन हुआ था और वह औरतें लाने लगा था।

मुझे तो अब घर में उसके साथ अकेले रहने में भी डर लगने लगा था।
“अभी उसे रंगे हाथ पकड़ती हूँ।” उन गरम सिसकारियों की वजह से मेरे अंदर भी हलचल पैदा होने लगी थी।
“आहहह… आहहह… और और… आउच…” उस औरत की सिसकारियाँ सुनाई दे रही थी।


“यह ले हमारा बबुआ… यही चाही… था न तुम्हें… ले…हमार… और ले!” मुझे राजेश की आवाज सुनाई दी, तब मुझे पूरा यकीन हुआ।
यह तो राजेश ही है… पता नहीं कौन सी छिनाल को लाया है… मेरी इज्जत तो पूरी मिट्टी में मिला दी… पता नहीं किस किस ने देखा उसको उस रंडी को यहां लाते हुए।

मैं खुद ही चौंक गयी ‘रंडी छिनाल’ जैसे शब्द मैंने कभी इस्तमाल नहीं किये थे। कभी किसी के झगड़ों में या फिर शराबी के मुँह से सुने थे। पर आज मन में ही सही मैंने उन शब्दों का इस्तेमाल किया था।
वो कुछ भी हो, उन शब्दों की वजह से या फिर उन सिसकारियों की वजह से, मेरी चुत के पानी का स्तर अब बढ़ने लगा था। किधर किधर तो गुदगुदी होनी शुरू हो गयी थी। अंदर ही अंदर चुत के पास के बाल अकड़ने लगे थे। मेरे अंदर की बेचैनी अब बढ़ने लगी थी।

मेरा हाथ अपने आप ही मेरी चुत पर गया और मैंने अपनी चुत अपने कपड़ों के ऊपर से ही दबा दी। मेरे स्पर्श से मेरी चुत में गुदगुदी होने लगी, तन बदन रोमांचित होने लगा।

“हे भगवान, चार बजने को हैं… अगर सीमा ने यह देख लिया तो पहले राजेश को थप्पड़ जड़ देगी, फिर उसे घर से बाहर निकाल देगी। मैं घर में अकेली होती हूँ उसे पता है, मेरी इतनी चिंता तो उसे भी है, आखिरकार मेरी बहन है वह!” मेरे मन में मेरी बहन का खयाल आया।
“भाड़ में जाए यह राजेश… बाहर आने के बाद उसे देखती हूं। मैं पहले नीचे जाकर बैठती हूँ, सीमा आ गयी तो गजब हो जाएगा… बहुत ही बिन्दास है वह… मेरे ऊपर भी शक ले सकती है।” मैं नीचे जाने के लिए मुड़ी तभी राजेश की आवाज मेरे कानों में पड़ी।

“ईइह… लो कुतिया… ईइह लो हमार आखरी दाओ… ले.. जोर से… पूरा का पूरा मक्खन छोड़ते हैं तुम्हरे अंदर… ले छिनाल…” उस आवाज ने मुझे फिर से मेरी चुत रगड़ने को मजबूर कर दिया। अंदर इतना पानी था कि मेरी पैंटी पूरी गीली हो गयी थी।

“आह… क्या हो रहा है मुझे… इतना पानी… मैं क्यों गरम हो रही हूँ… और खुशबू भी बहुत मादक है…” अचानक मेरा हाथ मेरे नाक के पास ले जाते हुए मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी।
मैं फिर से नीचे जाने को मुड़ी तो मुझे उस औरत का आवाज आई- नहीं राजू… अंदर मत छोड़ना प्लीज… हमेशा की तरह अंदर मत…

वह उतना ही बोली पर मेरे नीचे की जमीन मानो हिलने लगी।
“ये… ये… तो सीमा की आवाज है… मतलब सीमा… नहीं नहीं… सीमा ऐसे नहीं करेगी… शायद मुझे ही गलतफहमी हुई होगी!” मन में कह कर मैं नीचे जाने लगी।
“क्या मेमसाब… आप भी देरी से बोली… मेरा मक्खन अंदर ही गिर गया ना..” राजेश बोला।

“मेमसाब?!? राजेश उसे मेमसाब बोल रहा है, इसका मतलब यह कोई रंडी नहीं है, कोई घरेलू औरत है, मैं घर में नहीं हूँ यह देख कर उसने इसे बुलाया होगा।”
मैं एक एक कदम दूर जा रही थी पर आगे के वाक्य से मैं थम गई।
“अरे राजू… कोई बात नहीं… तुम्हारा मक्खन मुझे बहुत पसंद है… मगर उसका टेस्ट मुझे बहुत पसंद है… तुमने तो सारा मेरे नीचे के होठों में डाल दिया… अब मैं टेस्ट कैसे करूँ?”

यह तो पक्का सीमा की आवाज है, और बोलने की स्टाइल भी सीमा जैसी है।
मेरा शक सही साबित हो रहा था।

“कोई बात नहीं… ईह लो हमार चम्मच… ले लो मुँह में और टेसट कर लो!” राजेश बोला।
बाद में मुझे ‘पुटु’ कर आवाज आई और ‘सुर्र…सुर्र…’ कर चूसने की आवाज।

अब तो मेरे चुत के गीलेपन की हद हो गयी, नीचे जाने के बजाय मैंने अब मेरे रूम में जाकर कपड़े बदलने की सोची और मेरे रूम की तरफ मुड़ी।
“चलो अब जल्दी से… यह अब ठीक करो… दीदी के आने का टाइम हो गया है।”
उसके शब्दों से मैं चौंक गयी, मुझे अब पक्का यकीन हो गया कि वह सीमा ही थी।


मैं अपने बेड रूम के सामने ही खड़ी थी। मैंने रूम के अंदर जाकर रूम का दरवाजा हल्के से लगा दिया। अंदर जाते ही मैंने सलवार कमीज उतार दी। मैं ब्रा और पैंटी में ही आईने के सामने खड़ी हो कर अपने आप को निहारने लगी।
“अहह..क्या सही फिगर है मेरी… पर सीमा जितनी अच्छी नहीं है ना!” मैं फिर नेगेटिव सोच रही थी.

“कितनी गीली हो गई हूँ मैं, इससे पहले मैं कभी दिन में गीली नहीं हुई थी, मगर उनके शब्दों ने और सिसकारियों ने मुझे पूरा पिंघला दिया, मेरी पैंटी भी पूरी तरह से मेरी चुत से चिपकी हुई है और उसमें दिख रही है मेरी चुत की दरार… अहह…” उस दरार पर हल्के से मेरी उंगली मैंने फिराई तो मेरे पूरे शरीर पर रोंगटे खड़े हो गए।

मैंने हाथ पीछे ले जाते हुए मेरी ब्रा का हुक निकाल कर ब्रा निकाल दी। मेरे कोमल मुलायम स्तन पूरे रोगटों से भरे हुए थे। मेरे निप्पल भी अब कड़े हो गए थे। मैंने उनको अपनी उंगलियों में पकड़ कर दबा दिए।
मेरे मुख से ‘आsssहह…’ सीत्कार बाहर निकली। मैंने अपने स्तनों को मेरे हाथो से पकड़ कर दबाया, मेरे मन में खयाल आया- ऐसे ही राजेश ने सीमा के स्तनों को दबाया होगा, ऐसे ही!
मैंने खुद ही अपने स्तनों को सहलाया और खुद ही मुस्कुराई, आगे के विचार मुझे उत्तेजना के शिखर पर पहुँचा रही थी।

“ऐसे ही दबाता होगा ना वो सीमा के स्तन, पर उसके स्तन मेरे स्तनों से ज्यादा कड़क होंगे क्या? न जाने पर उसके मर्दाना हाठों में उसके स्तन पूरे नहीं समा सकते, ऐसे ही छुआ होगा उसने सीमा के निप्पलों को!” ये सोचते हुए मैं अपने निप्पल पर उंगलियाँ फिराने लगी।
“ऐसे ही उसने अपनी उंगलियाँ उसके पेट पर घुमाई होंगी.” कहकर मैंने अपनी उंगलियाँ मेरे पेट पर घुमाते हुए मेरी चुत पर ले गयी और ‘सीssssह’ मैंने अपनी टांगें भींचते हुए चुत पर दबा दी।
मैं अब अपनी आंखें बंद करके कामुकता के शिखर पर पहुँच रही थी।
“दीदी… दीदी… मैं आ गयी, कहाँ हो तुम?” जैसे ही सीमा का आवाज आई, मैं झट से बाथरूम में चली गयी।

अंदर जाकर मैंने शावर लिया और अपने बदन को तौलिये से पौंछने लगी।

तभी दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी।
“कौन है…?” मैंने पूछा।
“मैं सीमा..” जवाब आया।
“दो मिनट रुको, मैं चेंज कर रही हूँ.” मैं बोली.

“क्या दीदी, मुझसे क्या शर्माना, दरवाजा खोलो ना… मुझे तुम्हें देखना है.” वह बोली।
“बकवास बंद करो सीमा!” मैंने गाउन पहना और दरवाजा खोला।

दरवाजा खोलते ही सीमा सीधी अंदर आ गयी और मुझे गले लगा लिया- दीदी, कितने दिन बाद मिल रही हो!
तभी राजेश ने दरवाजा खटखटाया- मेमसाब यह लो शरबत!
ऐसा बोलकर उसने शरबत का ग्लास टेबल पर रखा।

“राजेश कहाँ गए थे तुम?” मैंने पूछा।
“मेमसाब… वो… वो…” अचानक मेरे सवाल की वजह से वह थोड़ा घबराया, पर उसकी नजर सीमा पर ही थी।
“क्या वो… वो… कब से आई हूं मैं… पर तुम्हारा कोई पता ही नहीं?” मैंने जरा चिल्लाते हुए कहा।
“मेमसाब, चावल… वो चावल लेने गए थे!” वह बोला.
“चावल, चावल तो हैं ना घर में!” मैं बोली।
“हाँ… पर बासमती नहीं है… बिरयानी बनाने की सोच रहा था, ये मेमसाब भी आई हैं ना!” सीमा की तरफ देखते हुए राजेश बोला।
“अच्छा.. अच्छा… जाओ कुछ नाश्ता बनाओ.” मैं बोली।

“क्या बनाऊँ मेमसाब?” वह बोला.
सीमा बोली- समोसा चाट बनाओ, तुम्हारा अच्छा होता है.
अचानक सीमा बोली तो मैंने चौंक कर सीमा की तरफ देखा, तब तक उसने अपनी जीभ दांतों तले दबा भी दी थी।
“तुम को कैसे पता?” मैंने पूछा।
“अरे… नहीं… नार्थ में ऐसी ही चीजें होती हैं ना…” वह नजर चुराते हुए बोली।

“हाँ तो लाओ ना… और दो घंटे तक हमे डिस्टर्ब मत करो, कुछ लगेगा तो बोल देंगे!”
“जी मेमसाब!” वह बोलकर चला गया।

उसके जाने के बाद मैंने दरवाजा बंद कर दिया, तब तक सीमा बेड पर बैठ गयी थी।
दरवाजा बंद कर के मैं सीमा के पास आई और उसे पूछा- सच बोल सीमा, तू इसको पहचानती है क्या?
“नहीं दीदी, मैं कैसे पहचानूँगी इसे?” उसने तो सरासर इन्कार कर दिया।

“सीमा, बताती हो कि नहीं?” मैंने ग़ुस्से से बोली तो वह भी ग़ुस्से से बोली- दीदी, जो भी कहना है, साफ साफ कहो!
“मुझे बस इतना ही कहना है कि जो कुछ भी है सच बोल, क्या चल रहा है तुम्हारा?” मैं बोली।
“क्या चल है मेरा?” उसने उल्टा मुझे ही सवाल किया।
“मैंने आज सब अपनी आँखों से देखा है.” मैं बोली.
तो वो अटकते हुए बोली- यह कैसे मुमकिन है, दरवाजा तो बंद था!
बोलने के बाद उसे अहसास हुआ उसने फट से जीभ अपने दांतों तले दबा दी।

“पकड़ी गई न… अब बताओ तुम्हारे और राजेश की बीच में क्या चल रहा है?” मैंने पूछा।
मैंने उसे पकड़ा जरूर था पर उसपे गुस्सा होने के बजाय उसके मुंह से उसकी कहानी सुनने में ज्यादा रस था। मेरे दिमाग से चुत ज्यादा उत्सुक थी। उनकी बातें अभी भी मुझे याद आने लगी थी। मेरी चुत भी अब गीली होने लगी थी।

“बताती हूँ!” बोलकर उसने कहानी सुनानी चालू कर दी।

“दीदी, तुम्हें तो पता है, राकेश हमेशा टूर पर रहते हैं। मैं भी तुम्हारी तरह घर में अकेली रहती हूं, मुझे भी घर खाने को दौड़ता है। पिछले साल हमारे घर का नौकर काम छोड़ कर चला गया। मैं नौकरानी रखने के बारे में सोच रही थी पर नौकरानी मिलना शहर में बहुत ही मुश्किल है। मिल भी गयी तो भी काम उसके हिसाब से होगा। और फिर चौबीस घंटे काम करने वाली नौकरानी मिलना भी बहुत मुश्किल काम है। तो फिर से नौकर रखने का सोचा, तब उसके बारे में तुमसे बात भी की थी.”
“हाँ तुम बोली तो थी, तब मैंने बद्री चाचा से बात भी की थी.” मैं बोली।

“वही तो, तभी बद्री चाचा ने राजेश को हमारे घर भेजा। राजेश भी घर के सारे काम पूरा मन लगाकर करता। और वह ईमानदार भी है। मुझे सारा घर खाने को दौड़ता। तुम्हें तो पता ही है कि मैं कितनी बिंदास स्टाइल की हूँ। पिछली होली को ही इसकी शुरुआत हुई।
पिछले साल हमारा पूरा कॉलेज का ग्रुप होली खेलने का प्लान बना रहा था। हम सब घर से कहीं बाहर जाकर होली खेलने वाले थे पर ऐन मौके पे तीनों लड़कों ने प्लान कैंसिल कर दिया, तो हम चारों लड़कियाँ ही बची। अब लड़कियाँ कहाँ बाहर जाएंगी तो हम सब ने मेरे घर पर होली सेलिब्रेट करने की सोची। प्लान के नुसार हम सब सुबह नौ बजे मेरे घर पर मिले। मैंने और राजेश ने पहले ही पूरी तैयारी कर ली थी।

वे तीनों मतलब रंजू, राखी, चेतना। उनको तो तुम पहचानती ही हो, वो सब भी मेरी तरह बोल्ड हैं। वे तीनों मेरे घर पर आई। राजेश ने पराँठे बनाये थे, हम सबने भरपेट खाना खाया, फिर बाहर गार्डन में आकर के होली खेली। हम चारों लड़कियाँ पूरी तरह से भीग चुकी थी।

फिर मैंने राजेश से टॉवल मंगवाया और सिर को और बदन को पौंछ कर घर में आ गयी।
घर में आ कर सब बारी बारी नहायी और कपड़े चेंज किये।
अब फिर सब को ज़ोरों से भूख लगी थी।

तभी रंजू बोली- सीमा, ड्रिंक्स है क्या तुम्हारे पास?
“क्यों, आज अचानक?” मैंने पूछा।
“ऐसे ही मूड है.” उसने बोला।
“नहीं यार… आज नहीं है, लेकिन अक्सर मेरे घर में होती है हर बार। मैं और राकेश पीते हैं साथ में!” मैंने बताया।
“हम्म…तो फिर जाने दो.” कहकर वह बैड पर बैठ गयी.

तभी दरवाजा बजा।
“कौन है?” मैंने पूछा।
“मैं हूँ… राजेश… खाना लाया हूँ.” वह बाहर से बोला।
“ओके ओके… अंदर आ जाओ.”
राजू अंदर आ गया और टेबल पर सब सामान रखने लगा।

“राजू तुम नहीं गए कहीं होली खेलने?” राखी ने पूछा।
“नही… शाम को खेलूंगा.” वह बोला।
“शाम को… तुम्हारे यहाँ तो होली बहुत धूमधाम से मनाते हैं.” चेतना बोली।
“जी मेमसाब सबसे बड़ी होली तो हमारे गांव में ही मनाते है, एक दूजे को रंग लगाकर… थोड़ी भंगवा पी कर। बहुत मजा आता है.” राजेश जोश में सब बोलने लगा।

“भंगवा??” चेतना ने पूछा।
हम तीनों को भी समझ में नहीं आया था तो हम भी ध्यान से सुनने लगी।
“भंगवा… उससे एक नशे वाला शर्बत बनता है.” वह बोला।
नशे का नाम सुनते ही रंजू बोली- काश यहाँ भी नशे वाली शर्बत होती!
हम तीनों भी हंसने लगी।

“आपको चाहिए क्या?” राजेश बोला.
रंजू मूड में आ गयी- है क्या तुम्हारे पास?
रंजू ने पूछा।
“हाँ, भांग तो हमेशा ही मेरे पास रहती है.” राजू बोला।

“तो गर्ल्स ट्राय करें?” रंजू ने पूछा.
हमें भी कुछ नया चाहिए ही था तो सबने हाँ कर दी।
“चलेगा राजू हमें दे दो न टेस्ट!” रंजू बोली।
“अभी बना के लाते हैं.” राजू बोला.
“खाइके पान बनारस वाला…” गाना गाते गाते नीचे चला गया।

“बढ़िया है तुम्हारा नौकर.” रंजू बोली।
“इससे भी बढ़िया है.” चेतना बोली।
“कौन?” हम तीनों ने उसकी तरफ देखा तो वह घबरा गई।
“नहीं… कोई नहीं” वह बोली।
“कौन? कौन?” रंजू उसे चिढ़ाती हुई बोली।
“नही…कोई नहीं” चेतना इधर उधर देखते हुए बोली।

“तुम्हारा नौकर… क्या नाम है उसका?” राखी कुछ सोचते हुए बोली।
“कौन… दामोदर?” रंजू ने चेतना को चिकोटी काटते हुए पूछा।
“हाँ याररर… क्या मस्त है ना!” अब राखी लगी चेतना की टांग खींचने लगी।
“हाँ यार… उसका वो ना बहुत बढ़िया है… और मजबूत है.” चेतना भी उनके झांसे में आकर सब बताने लगी।
“तुम्हें कैसे मालूम?” रंजू बोली।
“वो एकदिन खुले में नहा रहा था ना… तब देखा.” चेतना बोली।
“नंगा ही नहा रहा था क्या?” रंजू ने पूछा।
“नहीं यार… नंगा कैसे नहाएगा… पर उसका टॉवल खुल गया और मुझे दिखा उसका… मूसल!” चेतना शर्माते हुए बोली.

“तो फिर लिया या नहीं चुत में?” रंजू ने पूछा।
“हाँ लिया ना… एक बार… बहुत मजा आया था…” चेतना सब याद करते हुए बोली।
“पर मैं शर्त लगाकर कहती हूं कि राजू का उससे भी बड़ा होगा.” राखी को क्या सूझी क्या पता।
“चुप करो, राजू को बीच में मत लाओ.” मैं डांटते हुए बोली।
“क्यों… सीमा को बुरा लगा?” रंजू मुझे चिकोटी काटते हुए बोली।
“वैसे कुछ नहीं… क्यों बेचारे को…” मैं बोल ही रही थी.
कि राखी बीच में बोली- तुमने भी उसे चढ़ा लिया है क्या?
“कुछ भी बोलती हो…” मैं थोड़ा शर्माते हुए बोली।
“कुछ भी क्या… मन हुआ तो करने का… और वैसे ही तुम्हें बहुत जरूरत है… दिन ब दिन तुम बहुत बोर होती जा रही हो!”
रंजू मुझे चिढ़ाती हुई बोली.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

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