बात 1977 की है जब भारत के उत्तरी भाग के किसी गाँव में दो परिवार रहते थे। पड़ोसी तो वो थे ही लेकिन एक और बात थी, जो उनमें समान थी या शायद असामान्य थी; वो यह कि दोनों परिवारों में दो-दो ही सदस्य थे। एक परिवार में पिता का देहांत हो चुका था तो दूसरे में माँ नहीं थी, लेकिन दोनों के एक-एक बेटा था। मोहन तब ग्यारह का होगा और प्रमोद दस का; दोनों की बहुत पक्की दोस्ती थी।
दोस्ती तो मोहन की माँ से, प्रमोद के बाबा की भी अच्छी थी, लेकिन समाज को दिखाने के लिए वो अक्सर यही कहते थे कि अकेली औरत का इकलौता बेटा है तो उसकी मदद कर देते हैं। ऐसे तो मोहन के घर के सारे बाहरी काम प्रमोद के बाबा ही करते थे; चाहे वो किराने का सामान लाने की बात हो या फिर खेती-बाड़ी के काम; लेकिन दुनिया को दिखाने के लिए मोहन को हमेशा साथ रखना होता था।
मोहन की माँ भी अपने लायक सारे काम कर दिया करती थी, जैसे कि प्रमोद और उसके बाबा के लिए खाना बनाना, कपड़े धोना और उनके घर की साफ़-सफाई। लेकिन ये शायद ही किसी को पता था कि वो केवल घर की साफ़-सफाई में ही नहीं बल्कि चुदाई में भी पूरा साथ देती थी।
सच कहें तो इसमें कोई बुराई भी नहीं थी; दोनों अपने जीवनसाथी खो चुके थे, ऐसे में हर तरह से एक दूसरे का सहारा बन कर ज़िन्दगी काटना ही सही तरीका था।
मोहन को अक्सर खेती-बाड़ी के काम के लिए खेत-खलिहान में रहना पड़ता था। नाम के लिए ही सही लेकिन इस वजह से वो पढ़ाई में काफी पिछड़ गया था। यूँ तो सारा काम प्रमोद के बाबा करवाते थे लेकिन मोहन उनके साथ घूम घूम कर दुनियादारी कुछ जल्दी ही सीख गया था। किताबों से ज़्यादा उसे खेती और राजनीति की समझ हो गई थी। वैसे भी उम्र में प्रमोद से थोड़ा बड़ा ही था तो स्कूल में उसके डर से प्रमोद की तरफ कोई नज़र उठा कर देख भी नहीं सकता था। प्रमोद भी पढ़ाई में मोहन की मदद कर दिया करता था।
जब भी मोहन को काम से और प्रमोद को पढ़ाई से फुर्सत मिलती तो दोनों साथ ही रहते थे। कभी अपने पहिये दौड़ाते हुए दूर खेतों में चले जाते तो कभी नदी किनारे जा कर चपटे पत्थरों को पानी पर टिप्पे खिलवाते। जब थक जाते तो कहीं अमराई में बैठ कर गप्पें लड़ते रहते। दोनों के बीच कभी कोई बात छिपी नहीं रह पाती थी। हर बात एक दूसरे को बता दिया करते थे।
अब तक तो ये बातें बच्चों वाली ही हुआ करतीं थीं लेकिन अब दोनों किशोरावस्था की दहलीज़ पर खड़े थे; अब बहुत कुछ बदलने वाला था।
मोहन की माँ कामुक प्रवृत्ति की तो थी ही लकिन साथ में वो एक दबंग और बेपरवाह किस्म की औरत भी थी। मोहन के सामने ही कपड़े बदल लेना, या नहाने के बाद अपने उरोजों को ढके बिना ही मोहन के सामने से निकल जाना एक आम बात थी। वैसे मोहन ने कभी उसे कमर से नीचे नंगी नहीं देखा था और न ही उसकी इस स्वच्छंदता के पीछे अपने बेटे के लिए कोई वासना थी। उसकी काम-वासना की पूर्ति प्रमोद के बाबा से हो जाती थी। ये तो शायद उसे ऐसा कुछ लगता था शायद कि माँ के स्तन तो होते ही उसके बच्चे के लिए हैं तो उस से उन्हें क्या छिपाना।
मोहन बारह साल का होने को आ गया था लेकिन अब भी कभी कभी उसकी माँ उसे अपना दूध पिला दिया करती थी। दूध तो इस उम्र में क्या निकलेगा लेकिन ये दोनों के रिश्तों की नजदीकियों का एक मूर्त रूप था। वैसे तो ये माँ-बेटे के बीच का एक वात्सल्य-पूर्ण क्रिया-कलाप था, लेकिन आज कुछ बदलने वाला था। मोहन आज अपनी फसल बेच कर आया था। आ कर उसने सारे पैसे माँ को दिए फिर नहा धो कर खाना खाया, और फिर माँ-बेटा सोने चले गए। दोनों एक ही बिस्तर पर साथ ही सोते थे।
मोहन- माँ, तुझे पता है आज वो सेठ गल्ला कम भाव पे लेने का बोल रहा था।
माँ- फिर?
मोहन- फिर क्या! मैंने तो बोल दिया कि सेठ! हमरे बैल इत्ते नाजुक भी नैयें के दूसरी मंडी तक ना जा पाएंगे। फिर आ गओ लाइन पे। जित्ते कई थी उत्तेई दिए।
माँ- अरे मेरा बेटा तो सयाना हो गया रे।
इसना कह कर माँ ने मोहन को चूम लिया और गए से लगा लिया। फिर दोनों पहले जैसे लेटे थे वैसे ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। कुछ देर के सन्नाटे के बाद धीरे से माँ की आवाज़ आई- दुद्दू पियेगा?
मोहन- हओ!
माँ ने अपने ब्लाउज के नीचे के कुछ बटन खोले और अपन एक स्तन निकाल कर मोहन की तरफ़ आगे कर दिया। मोहन हमेशा की तरह एक हाथ से उसको सहारा दे कर चूचुक अपने मुँह में ले कर ऐसे चूसने लगा जैसे वो उसकी आज की मेहनत का इनाम हो।
लेकिन अब बचपन साथ छोड़ रहा था और समय के साथ माँ ने भी ऐसे आग्रह करना पहले कम और फिर धीरे धीरे बंद कर दिए। मोहन भी अपनी किसानी के काम में व्यस्त रहने लगा और उसके अन्दर से भी ये बच्चों वाली चाहतें ख़त्म होने लगीं थीं और अब उसकी अपनी उम्र के लोगों के साथ ज्यादा जमने लगी थी खास तौर पर प्रमोद के साथ। समय यूँ ही बीत गया और दोनों शादी लायक हो गए।
एक दिन प्रमोद मोहन को अपने साथ एक ऐसी जगह ले गया जहाँ से वे छुप छुप कर गाँव की लड़कियों को नहाते हुए देख सकते थे। उन लड़कियों के नग्न स्तनों को देख कर अचानक मोहन को अपना बचपन याद आ गया जब वो अपनी माँ का दूध पिया करता था। चूंकि उसने 10-12 साल की उम्र तक भी स्तनपान किया था, उसकी यादें अभी ताज़ा थीं।
उसी रात मोहन ने अपनी माँ को फिर दूध पिलाने को कहा। वैसे तो माँ को यह बड़ी अजीब बात लगी लेकिन उसके लिए तो मोहन अब भी बच्चा ही था तो उसने हाँ कह दिया। माँ ने पहले की तरह अपने ब्लाउज के नीचे के कुछ बटन खोले और अपना एक स्तन निकाल कर मोहन की तरफ़ आगे कर दिया। लेकिन आज उसे चूसने से ज़्यादा मज़ा छूने में आ रहा था। उसकी उँगलियाँ अपने आप उस स्तन को सहलाने लगीं जैसे की सितार बजाया जा रहा हो। लेकिन सितार एक हाथ से कैसे बजता। मोहन का दूसरा हाथ अपने आप ब्लाउज के अंदर सरक गया और उसने अपनी माँ का दूसरा स्तन पूरी तरह अपनी हथेली में भर लिया।
एक स्तन आधा और एक पूरा उसके हाथ में था और वो दोनों को सहला रहा था। आज उसे कुछ अलग ही अनुभूति हो रही थी। धीरे धीरे सहलाना, मसलने में बदल गया। और तभी मोहन ने महसूस किया कि उसका लंड कड़क हो गया है। यूँ तो उसने पहले भी कई बार सुबह सुबह नींद में ऐसा महसूस किया था लेकिन अभी ये जो हो रहा था उसका कोई तो सम्बन्ध था उसकी माँ के स्तनों के साथ। उसकी बाल बुद्धि में यह बात स्पष्ट नहीं हो पा रही थी कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसी बेचैनी में वो चूसना छोड़ कर ज़ोर ज़ोर से स्तनों को मसलने लगा।
माँ- ऊँ…हूँ… बहुत पी लिया दूध… अब सो जा।
मोहन समझ गया कि माँ उसकी इस हरकत से खुश नहीं है। वैसे तो उसकी माँ वात्सल्य की मूर्ति थी लेकिन अगर गुस्सा हो जाए तो इकलौता बेटा होने का लिहाज़ नहीं करती थी। मोहन को पता था कि अब ये सब कोशिश करना खतरे से खाली नहीं है और उसने निश्चय किया कि अब वो ये सब माँ के साथ नहीं करेगा।
अगले दिन मोहन अपने इस नए अनुभव के बारे में प्रमोद को बताने के लिए बेचैन था। जैसे ही मौका मिला, प्रमोद को कहा- चल अमराई में चल कर बैठते हैं।
दोनों अपनी हमेशा वाली आरामदायक जगह पर जा कर बैठे और मोहन ने प्रमोद को सारा किस्सा बताया की कैसे माँ के स्तन दबाने से उसका लंड कड़क हो गया था।
प्रमोद को विश्वास नहीं हुआ- क्या बात कर रहा है? ऐसा भी कोई होता है क्या! मैं नहीं मानता।
मोहन- अरे मैं सच कह रहा हूँ। कैसे समझाऊं? अब तेरे सामने तो नहीं कर सकता न…
प्रमोद- आंख बंद करके सोच उस टाइम कैसा लग रहा था।
मोहन- एक काम कर मैं तेरे पुन्दे मसलता हूँ, आँखें बंद करके और सोचूंगा कि माँ के दुद्दू दबा रहा हूँ।
प्रमोद- तू मेरे मज़े लेने के लिए बहाना तो नहीं मार रहा है ना? तू भी अपनी चड्डी उतार! मैं भी देखूंगा तेरा नुन्नू कैसे खड़ा होता है।
दोनों ने अपनी चड्डी उतार दी। प्रमोद, मोहन के बगल में थोड़ा आगे होकर खड़ा हो गया और पीछे मुड़ कर मोहन के मुरझाये लण्ड को देखने लगा। मोहन ने आँखें बंद कीं और प्रमोद के नितम्बों को सहलाते हुए कल रात वाली यादों में खो गया। थोड़ी ही देर में उसका लण्ड थोड़े थोड़े झटके लेने लगा।
प्रमोद- अरे ये तो उछल रहा है। कर-कर और अच्छे से याद कर!!
प्रमोद की बात ने मोहन की कल्पना में विघ्न डाल दिया था, लेकिन कल्पना कब किसी के वश में रही है। मोहन की कल्पना के घोड़े जो थोड़े सच्चाई की धरती पर आये तो एक नया मोड़ ले लिया और उसे लगा कि जैसे वो अपनी माँ के नितम्ब सहला रहा है। इतना मन में आते ही टन्न से उसका लण्ड खड़ा हो गया।
प्रमोद- अरे! ये तो सच में खड़ा हो गया!!
मोहन ने भी आँखें खोल लीं।
मोहन- तू तो मान ही नहीं रहा था!
प्रमोद- छू के देखूं?
मोहन- देख ले! अब मैंने भी तो तेरे पुन्दे छुए हैं तो तुझे क्या मना करूँ।
प्रमोद ने अपनी दो उंगलियों और अंगूठे के बीच उस छोटे से लण्ड को पकड़ कर देखा, थोड़ा दबाया थोड़ा सहलाया।
मोहन- और कर यार! मज़ा आ रहा है।
प्रमोद- ऐसे?
मोहन- हाँ… नहीं-नहीं ऐसे नहीं… हाँ… बस ऐसे ही करता रह… बड़ा मज़ा आ रहा है याऽऽऽर!
इस तरह धीरे धीरे दोनों यार जल्दी ही अपने आप सीख गए कि लण्ड को कैसे मुठियाते हैं। ये पहली बार था तो मोहन को ज़्यादा समय नहीं लगा। वो प्रमोद के हाथ में ही झड़ गया।
मोहन- ओह्ह… आह…!
प्रमोद- अबे, ये क्या है? पेशाब तो नहीं है… सफ़ेद, चिपचिपा सा?
मोहन- पता नहीं यार लेकिन जब निकला तो एक करंट जैसा लगा था। मज़ा आ गया लेकिन मस्त वाला।
प्रमोद- सफ़ेद करंट! हे हे हे… चल तुझे इतना मज़ा आया तो मुझे भी कर ना।
मोहन- लेकिन तेरा तो खड़ा नहीं है?
भले ही दोनों जवान हो चुके थे, 18 पार कर चुके थे लेकिन मासूमियत अभी साथ छोड़ कर गई नहीं थी। वक़्त धीरे धीरे सब सिखा देता है। धीरे धीरे दोनों दोस्त अपने इस नए खेल में लग गए थे। उन्होंने लण्ड को खड़ा करना, मुठियाना और तो और चूसना भी सीख लिया। लेकिन दोनों में से कोई भी समलैंगिक नहीं था। उनकी कल्पना की उड़ान हमेशा मोहन की माँ के चारों और ही घूमती रहती थी।
इसी बीच एक रात मोहन ने अपनी माँ को बिस्तर से उठ कर जाते हुए देखा। थोड़ी देर बाद जब उसने छिप कर दूसरे कमरे में देखा तो उसकी माँ प्रमोद के पापा से चुदवा रही थी। इस बात से तो मोहन-प्रमोद की दोस्ती और गहरी हो गई। दोनों अपने माँ बाप की चुदाई की बातें कर-कर के एक दूसरे का लण्ड मुठियाते तो कभी पूरे नंगे हो कर एक साथ एक दूसरे का लण्ड चूसते और साथ-साथ एक दूसरे के बदन को सहलाते भी जाते।
कभी कभी तो जब मौका मिलता तो दोनों छिप कर अपने माँ-बाप की चुदाई देखते हुए एक दूसरे की मुठ मार लेते। लेकिन दोनों की इस लंगोटिया यारी में एक बड़ा मोड़ तब आया जब मोहन के लिए शादी का रिश्ता आया।
पास के ही गाँव में एक बहुत बड़े ज़मींदार थे। लोग तो उनको उस पूरे इलाके का राजा ही मानते थे। उनका एक लड़का सुधीर और एक लड़की संध्या थी। ज़मीन कुछ ज़्यादा ही थी तो इस डर से कि कहीं सरकार कब्ज़ा ना कर ले, काफी ज़मीन बेटी संध्या के नाम पर भी कर दी थी। हुआ ये कि इतने ऐश-ओ-आराम में बच्चे थोड़े बिगड़ गए। चौधरी जी ने भी सोचा इतना पैसा है; ज़मीन-जायदाद है; बच्चे थोड़े बिगड़ भी जाएं तो क्या फर्क पड़ता है।
लेकिन चिंता की बात तो तब सामने आई जब गाँव में काना-फूसी होने लगी कि संध्या का अपने ही बड़े भाई सुधीर के साथ कोई चक्कर है। यूँ तो चौधरी साहब खुद भी बड़े ऐय्याश किस्म के थे; तो उनको कोई फर्क नहीं पड़ता अगर उनके बेटे ने कोई रखैल पाल ली होती या गाँव में किसी और की बीवी से टांका भिड़ा लिया होता; लेकिन यह मामला तो अलग ही तरह का था। चौधरी जी ने सोचा की अपवाहों के आधार पर अपने बेटे-बेटी से इन सब के बारे में बात करना सही नहीं होगा लेकिन लोगों का मुँह भी बंद नहीं कर सकते। वैसे भी किसी की इतनी हिम्मत तो थी नहीं कि कोई उनके सामने मुँह खोल सके।
आखिर चौधरी जी ने सोचा कि बेटी की शादी करके विदा कर दें, तो न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी।
लेकिन इतनी बदनामी के बाद किसी बड़े ज़मींदार के पास रिश्ता भेजा और उसने मना कर दिया तो यह बड़ी बेइज़्ज़ती की बात होगी इसलिए चौधरी ने यह रिश्ता मोहन के लिए भेज दिया। उन्होंने बचपन से उसे अनाज मंडी में या खाद-बीज और कीटनाशक लेते हुए देखा था। उनको हमेशा लगता था कि वो बहुत मेहनती लड़का है। उनको विश्वास था कि जो जमीन उनकी बेटी के नाम है उसका सही उपयोग करके मोहन ज़रूर उनकी बेटी को सुखी रख पाएगा।
मोहन और उसकी माँ ने भी कुछ उड़ती उड़ती बातें सुनी थीं संध्या के बारे में लेकिन मोहन की माँ कौन सी दूध की धुली थी। उस पर जो ज़मीन संध्या अपने साथ लेकर आने वाली थी वो पहले ही उनकी ज़मीन से दोगुनी थी। यह बहू सिर्फ कहने के लिए नहीं बल्कि सच में लक्ष्मी का रूप थी। अब घर आती लक्ष्मी को कौन मना करता है तो मोहन की माँ ने तुरंत हाँ कर दी।
चौधरी साहब भी जल्दी में थे तो चट मंगनी पट ब्याह हो भी गया।
बारात वापस आई और सारे पूजा पाठ ख़तम हुए तब दुल्हन रिश्तेदार महिलाओं के साथ एक कमरे में बैठी थी। सुहागरात में अभी समय था तो मोहन और प्रमोद पीछे बाड़े में अकेले बैठे गप्पें लड़ा रहे थे।
प्रमोद- भाई, अब तेरी तो शादी हो गई। मुझे तो अब अपने ही हाथ से मुठ मारनी पड़ेगी।
मोहन- अरे नहीं! ऐसा कैसे होगा? पहली बार मुठ मारी थी तब से आज तक हमने हमेशा एक दूसरे की मुठ मारी है लंड चूसा है। ऐसे थोड़े ही कोई शादी होने से दोस्ती में दरार पड़ेगी।
प्रमोद- वो तो सही है, लेकिन अब तुझे चूत मिल गई है तो तू मुठ क्यों मारेगा?
मोहन- हम्म! यार जब एक दूसरे के हाथ से मुठ मार सकते हैं। एक दूसरे का लंड चूस सकते हैं तो एक दूसरे की बीवी की चूत क्यों नहीं मार सकते?
प्रमोद- अरे! ऐसा थोड़े ही होता है।
मोहन- अरे तू चल आज मेरे साथ … दोनों भाई साथ में सुहागरात मनाएँगे। वैसे भी छिनाल पता नहीं क्या क्या गुल खिला के बैठी है; बड़े चर्चे थे इसके गाँव में।
प्रमोद- अरे यार तू इतना गर्म मत हो। क्या पता किसी ने जलन के मारे यूँ ही खबर उड़ा दी हो। तू अकेले ही जा और प्यार से चोदना भाभी को; अगर पहले कोई गुल खिलाए होंगे तो पता चल ही जाएगा; और नहीं तो जिस दिन मेरी शादी हो जाएगी और अपन दोनों की जोरू राज़ी होंगी तो ही मिल के चोदेंगे। बीवी है यार … अपना हाथ नहीं है कि जो उसकी खुद की कोई मर्ज़ी ना हो।
मोहन- हाँ यार, बात तो ये भी तूने सही कही। लेकिन तू अपने हाथ से मुठ नहीं मारेगा। जब तक तेरी शादी नहीं हो जाती तब तक मैं अपनी बीवी और तुझे दोनों को मज़े देने लायक दम तो रखता हूँ।
ऐसे ही बातें करते करते रात हो गई और कुछ औरतें मोहन को बुलाने आ गईं। उनमें से एक कहने लगी- काय भैया? मीता संगेई सुहागरात मन ले हो, के जोरू की मूँ दिखाई बी करे हो?
इतना कह के हँसी मजाक करते हुए औरतें मोहन को सुहागरात वाले कमरे में धकेल आईं।
अन्दर मंद रोशनी वाला बल्ब जल रहा था। मोहन ने दूसरा बल्ब भी जला दिया जिससे कमरा रोशनी से जगमगा गया। मोहन के अन्दर प्रेम की भावना कम थी और गुस्सा ज्यादा था क्योंकि उसने काफी लोगों के ताने सुने थे कि मोहन ने ज़मीन के लालच में बदचलन लड़की से शादी कर ली। वो देखना चाहता था कि संध्या कितनी दुष्चरित्र है? उस ज़माने में गाँव की शादियों में दुल्हनें लम्बे घूंघट में रहतीं थीं तो अभी तक मोहन ने संध्या को देखा नहीं था।
संध्या अपने दोनों पैर सिकोड़े सजे धजे पलंग के बीचों बीच घूंघट में छिपी बैठी थी। मोहन सीधे गया और जा कर उसका घूंघट ऐसे उठा दिया जैसे किसी सामान के ऊपर ढका कपड़ा हटाया जाता है। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र संध्या पर पड़ी, उसका आधा गुस्सा तो वहीं गायब हो गया। इतनी सुन्दर लड़की की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी।
लेकिन संध्या में लाज शर्म जैसी कोई बात नज़र नहीं आई; वो मोहन की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। उसकी ये मुस्कराहट उसके सुन्दर रूप पर और चार चाँद लगा रही थी।
मोहन से रहा नहीं गया और उसने उन मुस्कुराते हुए होंठों को चूम लिया। संध्या ने भी को शर्म किये बिना उसका पूरा साथ दिया।
लेकिन अचानक मोहन को विचार आया कि ये इतनी बेशर्मी से चुम्बन कर रही है; ज़रूर लोगों की बात सही होगी। इस विचार ने एक बार फिर उसके अन्दर बैचेनी पैदा कर दी। अब वो जल्दी से जल्दी पता करना चाहता था कि सच्चाई क्या है।
उसने ताबड़-तोड़ अपने और संध्या के कपड़े निकाल फेंके, संध्या ने भी उसका पूरा साथ दिया। जैसे ही वो पूरी नंगी हुई तो एक बार फिर उस संग-ए-मरमर की तरह तराशे हुए बदन को देख कर मोहन मंत्रमुग्ध हो गया।
जिस ज़माने की से बात है तब लड़कियां बहुत शर्मीली हुआ करती थीं और जो नहीं भी होतीं थीं वो भी कम से कम ऐसा अभिनय ही कर लेतीं थीं क्योंकि ऐसा कहते थे कि लाज-शरम औरत का गहना होती है।
पर यहाँ तो संध्या ज़रा भी नहीं शरमा रही थी। कपड़े निकालने में ना-नुकर करना तो दूर वो तो खुद मदद कर रही थी। मोहन काफी भ्रमित था कि वो इसका क्या मतलब निकाले लेकिन जब सामने ईश्वर की इतनी खूबसूरत रचना अपने प्राकृतिक रूप में मुस्कुराते हुए आपके सामने हो तो दिमाग कम ही काम करता है।
मोहन से एक बार फिर रहा नहीं गया और वो संध्या के होंठ चूमने के लिए झुका। इस बार निशाना वो होंठ थे जो बोला नहीं करते।
दरअसल मोहन को चूत की चुम्मी लेने की जल्दी इसलिए भी थी कि वो यह जानना चाहता था कि संध्या कुंवारी है या नहीं। इसीलिए उसने कमरे में ज्यादा रोशनी की थी।
जैसे ही वो संध्या की जाँघों के बीच पहुंचा, उसे एक गंध ने मदहोश कर दिया। ये कुछ ऐसी गंध थी जो अक्सर नदी या झील के आसपास के पौधों में आती है, एक ताजेपन का अहसास था उसमें।
एक और वजह जिसने मोहन को अपनी ओर खींचा था वो ये थी कि संध्या की चूत पर एक भी बाल नहीं था। छूने से साफ़ पता लगता था कि ये बाल शेव करके नहीं निकाले गए हैं, क्योंकि शेव करने के बाद त्वचा इतनी मुलायम और चिकनी नहीं रह जाती।
उत्तेजना में मोहन ने अपनी दुल्हन की पूरी चूत को चाट डाला। संध्या भी सिसकारियां लेने लगी और मोहन के सर को अपनी चूत पर दबाने लगी। मोहन ने अपनी एक उंगली गीली करके उसकी चूत में डाल दी और उसे अंदर बहार करते हुए उसकी चूत का दाना चूसने लगा।
अब तक मोहन को संध्या की चूत पर खरोंच का एक निशान तक नहीं मिला था और लंड तो दूर की बात है उसकी चूत उसे अपनी एक उंगली पर भी कसी हुई महसूस हो रही थी। अब उसे पूरा भरोसा हो गया था कि वो सब बातें झूठ थीं।
हाँ … वो दूसरी लड़कियों के मुकाबले थोड़ी ज़्यादा ही बिंदास थी लेकिन इतना तो पक्का था कि उसने अब तक किसी से चुदवाया तो नहीं था। लेकिन उसकी हरकतों से तो वो काफी अनुभवी लग रही थी।
खैर ये तो वक्त ही बताएगा कि असलियत क्या थी।
बहरहाल मोहन का सारा गुस्सा हवा हो चुका था बल्कि उसे ख़ुशी हो रही थी कि उसे इतनी सुन्दर और बिंदास बीवी मिली थी। वो ऊपर की ओर सरका और अपना एक से हाथ संध्या के सर को पीछे से अपनी ओर दबाते हुए उसके रसीले होंठों को चूसने लगा।
संध्या भी एक कदम आगे निकली और उसने अपनी जीभ से मोहन के होंठों के भीतरी हिस्से को गुदगुदाना शुरू कर दिया। मोहन का दूसरा हाथ संध्या के बाएँ स्तन को हल्के हल्के मसलते हुए उसके चूचुक के साथ छेड़खानी कर रहा था।
काफी देर तक अलग अलग तरह से चुम्बन और नग्न शरीरों के आलिंगन के बाद जब मोहन से अपने लिंग की अकड़न और संध्या से अपनी योनि का गीलापन बर्दाश्त नहीं हुआ हुआ तो मोहन ने अपना लंड संध्या की चूत में डालने की कोशिश की। लेकिन उसकी चूत का छेद इतना कसा हुआ था कि काफी कोशिश करने पर भी केवल लंड का सर अन्दर जा सका। अब ना केवल संध्या बल्कि मोहन को भी दर्द होने लगा था।
संध्या- सुनो जी! आप ज्यादा परेशान मत हो। अभी इतना चला गया है तो इतने को ही अन्दर बाहर कर लो। बाकी ऐसे ही कोशिश करते रहोगे तो कुछ दिन में पूरा चला जाएगा।
मोहन- मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे तुम्हारे जैसी बिंदास बीवी मिलेगी।
इतना कहकर मोहन ने कुछ देर छोटे छोटे धक्के मार कर चुदाई की लेकिन वो पहले ही थक चुका था और इसलिए वो इस चुदाई का उतना आनन्द नहीं ले पा रहा था जितना उम्मीद थी।
संध्या को ये बात जल्दी ही समझ आ गई, वो बोली- एक काम करो …ये अंदर बाहर रहने दो… लाओ मैं आपका लंड चूस के झड़ा देती हूँ।
मोहन- ठीक है, तुम लंड चूस लो, मैं तुम्हारी चूत चाट देता हूँ।
मोहन वैसे ही करवट ले कर लेट गया जैसे वो प्रमोद का लंड चूसते समय लेटता था। संध्या ने भी करवट ली और अपना नीचे वाला पैर सीधा रखा लेकिन ऊपर वाला सिकोड़ कर घुटना ऊपर खड़ा कर लिया जिससे उसकी चूत खुल गई। फिर लंड और चूत की चुसाई-चटाई जोर शोर से शुरू हो गई।
संध्या एक अनुभवी की तरह मोहन का लंड चूस रही थी। यहाँ तक कि वो उसके लंड का लगभग दो-तिहाई अपने गले तक अन्दर ले रही थी। इतनी अच्छी लंड चुसाई तो प्रमोद भी नहीं कर पाता था जबकि वो काफी समय से मोहन का लंड चूस रहा था। आखिर जब मोहन झड़ने वाला था तो जैसे वो प्रमोद के मुंह से निकाल लिया करता था वैसे ही संध्या के मुंह से भी निकालने की कोशिश की लेकिन संध्या ने निकालने नहीं दिया।
मोहन- मैं झड़ने वाला हूँऽऽऽ…
मोहन की बात पूरी तो हुई लेकिन संध्या ने अपना दूसरा पैर उसके सर के ऊपर से घुमाते हुए मोहन के सर को अपनी जाँघों के बीच दबा लिया और जोर जोर से अपनी कमर हिलाने लगी। अब तो मोहन को अपनी जीभ हिलाना भी नहीं पड़ रहा था, संध्या की चूत खुद ही उसके मुंह पर रगड़ रही थी। संध्या मोहन के साथ ही झड़ना चाहती थी और वही हुआ। दोनों साथ में झड़ने लगे लेकिन संध्या ने मोहन का लंड अपने मुंह से निकलने नहीं दिया। थोड़ी देर तक यूँ ही हाँफते हुए दोनों पड़े रहे।
जब मोहन का लंड ढीला पड़ा तो संध्या ने उसे किसी स्ट्रॉ की तरह चूसते हुए पूरा निचोड़ लिया। मोहन जब उठा तो संध्या ने उसे अपना मुँह खोल कर दिखाया और फिर सारा वीर्य एक घूँट में पी गई और एक बार फिर अपनी खूबसूरत मुस्कराहट बिखेर दी।
मोहन- एक बात पूछूँ?
संध्या- पूछो!
मोहन- शादी के पहले तुम्हारे बारे में बहुत खुसुर-फुसुर सुनने को मिली थी। अभी तो साफ़ समझ आ रहा है कि तुम्हारी चूत बिलकुल कुँवारी है लेकिन फिर बाक़ी सब काम तुम ऐसे कर रही हो जैसे बड़ा अनुभव हो। ये चक्कर क्या है?
संध्या- देखिये मैं आपसे झूठ नहीं बोलना चाहती लेकिन आप वादा करो कि आप गुस्सा नहीं करोगे?
मोहन- अब यार गुस्सा तो मैं पहले ही था सब लोगों के ताने सुन सुन के लेकिन तुम्हारी खूबसूरती देख के आधा गुस्सा ख़त्म हो गया और बाकी यह देख कर कि तुम कुँवारी ही हो। बाकी जो भी किया हो तुमने वो खुल के बता दो मैं गुस्सा नहीं करूँगा।
संध्या- देखिये, हमारे बाबा बहुत शौकीन किस्म के हैं। जब हम जवान होना शुरू हुए तभी से हमको समझ आने लगा था कि उनके कई औरतों के साथ सम्बन्ध थे। कई बार हम खुद उन्हें घर में काम करने वाली औरतों के साथ छेड़खानी करते हुए देख चुके थे।
मोहन- हाँ ये तो सही है। उनके भी कई किस्से सुने हैं मैंने, लेकिन फर्क ये है कि समाज में जब लोग उनके किस्से सुनाते हैं तो ऐसे सुनाते हैं जैसे उन्होंने कोई बड़ा तीर मारा हो।
संध्या- हाँ, वो मर्द हैं ना, ऐसा तो होगा ही। फिर एक दिन हमको उनके कमरे में एक छिपी हुई अलमारी मिली उसमें वैसी वाली किताबों का खज़ाना था। हमने छिप छिप कर पढ़ना शुरू किया और हमको बड़ी गुदगुदी होती थी ये सब सोच कर। हमारा भी मन करता था कि हम ये सब करके देखें। फिर हमें लगा कि जैसे बाबा घर में काम करने वाली औरतों के साथ चोरी छिपे मज़े करते है ऐसे ही क्यों ना हम भी किसी काम वाले को अपना रौब दिखा के वो सब करने को कहें जो उन किताबों में लिखा था और जिसके फोटो भी छपे थे।
मोहन- फिर?
संध्या- फिर हमने वही किया। एक हमारी ही उम्र का कामदार था, हट्टा-कट्टा गठीले बदन वाला। हमने उसको अकेले में बुलाया और डरा धमका के उसको नंगा होने के लिए कहा। उस दिन पहली बार हमने लंड छू कर देखा था। फिर अक्सर हम मौका देख कर उसको घर के किसी कोने में बुलाते और उसका लंड चूसते थे। हमको जैसे फोटो में दिखाया था वैसे उसका पूरा लंड अपने मुंह में लेना था।
मोहन- ओह्ह तभी इतना मस्त लंड चूस लेती हो… लेकिन अपवाह तो कुछ और सुनी थी। तुम्हारा भाई…
संध्या- वही बता रही हूँ। एक दिन घर के सब लोग दूसरे गाँव शादी में गए थे। मेरा जाने का मन नहीं था इसलिए मुझे भैया के साथ घर छोड़ गए थे। दोपहर को भैया जब खले की तरफ गए तो मैंने वो कामदार को बुलाया। उस दिन मैं सब कुछ कर लेना चाहती थी। हम दोनों कपड़े उतार के नंगे हुए ही थे कि भैया वापस आ गए।
वो खले की चाभी घर पर ही भूल गए थे। जैसे ही उन्होंने हमको इस हालत में देखा, उन्होंने उस कामदार को बहुत पीटा और लात मार के बहार निकाल दिया। फिर बाद में भैया ने समझाया कि ऐसे लोगों के साथ ये सब करने से बदनामी हो सकती है और वो तो बाहर जा कर लोगों को शान से बताएगा कि उसने तुम्हारे साथ क्या किया। नाम तो हमारा ही ख़राब होगा ना। मुझे उनकी बात समझ आ गई इसीलिए मेरी चूत अब तक अनछुई है। बाद में उसी कामदार ने ये सब बातें मेरे बारे में फैलाई थी।
मोहन- खैर अब इतना तो मैं भी कर चुका हूँ। मुझे ये सुन कर बुरा ज़रूर लगा कि तुमने एक काम वाले का लंड चूसा लेकिन ठीक है ये सोच कर तसल्ली कर लूँगा कि इसी बहाने तुम इतना अच्छा लंड चूसना सीख गईं। वैसे मैं और मेरा लंगोटिया यार प्रमोद भी एक दूसरे का लंड चूसते हैं।
संध्या- हाय राम! आप वैसे तो नहीं हो ना जिनको लड़के पसंद होते हैं?
मोहन- हा हा हा… अरे नहीं! वो तो बचपन में हमने एक दूसरे की मुठ मारना साथ ही सीखा था। अभी शाम को उसके साथ यही बात हो रही थी। मैंने कहा साथ मुठ मारते थे तो चल साथ चूत भी चोदेंगे तो वो बोला अगर दोनों की बीवियों को मंज़ूर होगा तो ही करेंगे नहीं तो नहीं। बोलो क्या बोलती हो?
संध्या- मैंने तो अपने आप को आपके नाम कर दिया है। आप बोलोगे कि कुएँ में कूद जाओ तो मैं कूद जाउंगी। लेकिन उनकी पत्नी ने हाँ कर दी है क्या?
मोहन- नहीं बाबा! उसकी तो अभी शादी भी नहीं हुई।
संध्या- देखिये, मैं तो आपको किसी भी बात के लिए मना नहीं करुँगी; लेकिन आप मुझे ऐसे किसी से भी चुदवाओगे क्या?
मोहन- नहीं यार, वो तो मैंने गुस्से में कह दिया था। वैसे भी प्रमोद के साथ मेरा सब सांझा है इसलिए बोल दिया था। नहीं तो कोई और तुमको आँख उठा के देख भी लेगा तो आँख फोड़ दूंगा साले की।
संध्या- अरे, मेरे भाई की आँख क्यों फोड़ोगे। अब वही तो तुम्हारा साला है ना!
संध्या के इस मजाक पर दोनों खिलखिला कर हंस पड़े। यूँ ही बातों बातों में आधी रात गुज़र गई और आखिर दोनों चैन की नींद सो गए।
अगले दिन जब मोहन ने सारी बात प्रमोद को बताई तो प्रमोद को बड़ी ख़ुशी हुई। उसने मोहन को मुबारकबाद दी और मिलवाने के लिए कहा।
मोहन- मिल लेना यार, ये सब मेहमान चले जाएं तो आराम से मिलवा दूंगा और तू कहे तो और भी बहुत कुछ कर सकते हैं साथ मिल कर।
प्रमोद- नहीं यार, ऐसे एक तरफ़ा काम नहीं करते। मेरी भी शादी हो जाने दे, फिर अगर दोनों की तरफ से हाँ हुई तो करेंगे साथ में।
मोहन- तो फिर जल्दी से शादी कर ले यार … सब मिल के मस्ती करेंगे फिर।
कुछ ही दिन में प्रमोद को भी लगने लगा कि वो अब मोहन के साथ उतना समय नहीं गुज़ार पा रहा था और जो मस्ती वो पहले किया करते थे वो काफी कम हो गई थी। मोहन को भी अपनी पत्नी को समय देना ज़रूरी था और फिर एक विषम-लैंगिक पुरुष को तो स्त्री के साथ ही सम्भोग करने का मन करेगा। प्रमोद के साथ तो ये सब इसलिए शुरू हुआ था कि कोई और चारा नहीं था और अब केवल दोस्ती निभाने के लिए चल रहा था।
प्रमोद ने भी अपने पिता को शादी के लिए इशारा किया कि हमारे घर में भी बहू होती तो काम आसान हो जाता। उनको भी बात सही लगी तो उन्होंने अपनी बिरादरी की एक पढ़ी-लिखी सुन्दर लड़की ढूँढ निकाली और शादी पक्की कर दी। लड़की का नाम शारदा था। पास के छोटे शहर में शारदा के पिता की रेडियो और घड़ी की दूकान थी। शारदा की माँ बचपन में ही गुज़र गईं थीं और बाप-बेटी अकेले वहीं शहर में रहते थे।
बहरहाल शादी हो गई और सुहागरात की बारी आई। प्रमोद के घर में कोई महिला नहीं थी इसलिए शादी के बाद रिश्तेदारों में भी कोई महिला रुकी नहीं। आखिर मोहन और संध्या ने ही मिल कर सुहागरात के लिए कमरा सजाया और संध्या ने शारदा को उसके बिस्तर पर बैठा कर एक सहेली की तरह समझा कर बाहर आ गई।
संध्या- अरे, अब आपस में चिपकना बंद करो। अब तो देवर जी को तो सुन्दर सी दुल्हन मिल गई है। जाओ देवर जी अपनी गिफ्ट खोल के देखो कैसी मिली है?
प्रमोद- आपने तो देख ली है ना आप ही बता दो कैसी है?
संध्या- बाहर से तो बहुत अच्छी है। अब अन्दर से तो आप ही खोल के देखोगे ना!
संध्या ने चुटकी लेते हुए कहा और खिलखिला के हँसते हुए अपने घर की तरफ चली गई।
मोहन- चल भाई जा, मुझे तो पता है कि तू आज पूरी चुदाई नहीं करेगा। तेरी सलाह पे तो मैंने 15 दिन लगा दिए पूरा लंड घुसाने में, तू पता नहीं कितने दिन लगाएगा। मौका मिले तो पूछ लेना। भाभी भी संध्या जैसी बिंदास हुई तो मज़े करेंगे साथ में।
प्रमोद- देखते हैं क्या लिखा है किस्मत में। संध्या भाभी सही कह रहीं थीं। गिफ्ट खोल के देखेंगे तभी पता लगेगा।
इतना कह कर प्रमोद ने मोहन से विदा ली और अपनी सुहागरात के सपने सजाए अपने कमरे की ओर चला गया। सुहागरात मनी और ठीक ही मनी लेकिन उसमें ऐसा कुछ हुआ नहीं जिसको प्रमोद उतने ही जोश से सुना पाता जितने जोश से मोहन ने उसे अपनी सुहागरात की कहानी सुनाई थी।
शारदा के ऊपर काम उम्र में ही ज़िम्मेदारियों का बोझ आ गया था और शहर में जीवन कुछ ऐसा होता है होता है कि बाहर के लोगों से मेलजोल कम ही हो पाता है उस पर शारदा के पिता को डर था कि कहीं बिन माँ की बेटी गलत रास्ते पर चली गई तो जीवन बरबाद हो जाएगा इसलिए हमेशा उसे ऐसी शिक्षा दी कि कभी स्कूल-कॉलेज की सहेलियों के साथ भी सेक्स के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं कर सकी।
एक तरह से उसके मन में सेक्स को लेकर एक डर भर गया था। मानो सेक्स करने से कुछ तो बुरा हो जाएगा। इतना तो उसे पता था कि शादी के बाद पति के साथ ये सब सामान्य जीवन का हिस्सा होता है लेकिन फिर भी सेक्स को लेकर उत्साह तो दूर की बात है, वो तो कामक्रीड़ा को लेकर सहज भी नहीं हो पा रही थी।
प्रमोद भी सौम्य पुरुष था और उस पर किसी तरह का जोर डालना नहीं चाहता था।
इसी तरह कुछ महीने बीत गए और अब कहीं जा कर प्रमोद ठीक तरह से शारदा को चोद पाता था। शारदा को भी मज़ा आने लगा था लेकिन उसके लिए अभी भी चुदाई एक बहुत ही गंभीर काम था जिसका वो आनंद तो लेती थी लेकिन इतनी स्वच्छंदता के साथ नहीं जिसमें कोई होश खो कर बस उड़ने सा लगता है। उसके हाव-भाव से ही प्रमोद कभी ऐसा नहीं लगा कि वो कभी मोहन और प्रमोद की दोस्ती में उस हद तक शामिल हो पाएगी जिसमे शर्म-लिहाज़ की सीमाएं बेमानी हो जाती हैं।
जीवन ठीक ठाक चल ही रहा था कि पता चला, शारदा के पापा बीमार रहने लगे थे। तय हुआ कि कुछ दिन के लिए प्रमोद और शारदा शहर जा कर रहेंगे। शारदा अपने पिता की सेवा करेगी और प्रमोद दुकान का काम सम्हाल लेगा। कुछ दिन कुछ महीनों में बदल गए। शारदा के पापा की तबीयत तो ठीक नहीं हुई लेकिन प्रमोद को शहर की हवा रास आ गई। पढ़े लिखे व्यक्ति को वैसे भी खेती-बाड़ी में मज़ा कम ही आता है। एक साल के अन्दर शारदा के पिता का देहांत हो गया।
लेकिन तब तक प्रमोद ने उस रेडियो घड़ी की दूकान को काफी बढ़ा लिया था। अब वो इलेक्ट्रोनिक्स के और भी सामान बेचने लगा था। उसने अपने पिता को भी शहर आने का निमंत्रण दिया लेकिन उन्होंने यह कह कर मना कर दिया कि उनको गाँव का वातावरण ही पसंद है। सच तो यह था कि उनका चक्कर अभी भी मोहन की माँ के साथ बदस्तूर चल रहा था। मोहन दोनों परिवारों की खेती सम्हाल ही रहा था और संध्या ने भी अच्छे से दोनों घरों को सम्हाल लिया था।
खैर, जीवन में एकरसता आने लगी थी, इसी बीच संध्या गर्भवती हो गई। बात ख़ुशी की थी लेकिन कुछ ही दिन में मोहन को समझ आ गया कि अब उसका कामजीवन उतना रसीला नहीं रहेगा लेकिन फिर भी संध्या इतनी चपल थी कि मोहन को किसी ना किसी तरह खुश कर ही देती थी। आखिर जब मामला ज्यादा नाज़ुक हुआ तो संध्या ने मोहन को उसके पुराने दिनों के बारे में याद दिलाया। संध्या अब मोहन के साथ बहुत खुल कर बात करने लगी थी।
संध्या- अब जब तक मैं कुछ करने लायक नहीं बची हूँ तो अपने पुराने दोस्त को क्यों नहीं बुला लेते; कब तक ऐसे तरसते रहोगे। मुझे आपको ऐसे देख कर अच्छा नहीं लगता।
मोहन- बात तो तुम सही कह रही हो लेकिन अब उसको ऐसे बुलाऊंगा तो बड़ा अजीब लगेगा कि मतलब पड़ा तो बुला लिया।
संध्या- अरे ऐसे कैसे? वो तो आपका इतना लंगोटिया यार था कि आप उससे मुझे भी चुदवाने को तैयार हो गए थे। अब क्या वो अपने दोस्त के लिए इतना भी नहीं कर सकता।
मोहन- चुदवाने को तैयार हुआ था, चुदवाया तो नहीं था ना?
संध्या- हाँ तो चुदवा भी देना लेकिन अभी मुझसे नहीं देखा जा रहा कि आप ऐसे मुरझाए हुए फिरते रहो।
मोहन- अब यार अपन तो हैं ही चोदू लोग अपने को तो कोई फर्क नहीं पड़ता अगर दोस्ती यारी में एक दूसरे की बीवी चोद लें तो, लेकिन वो भाई भी बीवी की मर्ज़ी बिना कुछ करने को मना करता है और उसकी बीवी सती सावित्री है तो वो तो मानेगी नहीं।
संध्या- ठीक है उसकी बीवी नहीं मान रही तो कोई बात नहीं मैं हाँ कह रही हूँ ना… आपको ना कोई एहसान लेने की ज़रूरत है ना को स्वार्थी महसूस करने की। बिंदास मस्ती करो अपने दोस्त के साथ। जब मैं चुदवाने लायक हो जाऊँगी तो मैं भी आप लोगों की मस्ती में शामिल हो जाऊँगी। फिर तो कोई बुरा नहीं लगेगा ना आपको?
मोहन- हाँ यार, ये तो तूने सही कही। मैं हमेशा उसी के साथ करता था सब अगर तू भी साथ रहेगी तो मज़ा ही आ जाएगा। तू कितना प्यार करती है ना मुझसे।
मोहन ने प्रमोद को गाँव बुलाया। प्रमोद, छुट्टी वाले दिन शारदा को ले कर पहुँच गया। दिन भर तो घर में सबके साथ बातचीत में गुज़र गया लेकिन रात को मोहन और प्रमोद खेत पर जा कर सोने के बहाने निकल गए। सच तो ये था कि दोनों ने खेत पर प्राइवेट में दारू पार्टी करने का प्लान बनाया था। दारू के बाद एक दूसरे का लंड चूसने का कार्यक्रम तो ज़रूर होना ही था।
रात को शारदा, संध्या के साथ ही सोई। संध्या बहुत तेज़ दिमाग थी, तो उसने शारदा के मन की टोह लेने के लिए उससे बात करना शुरू किया। वो ना केवल ये पता करना चाहती थी कि शारदा में कामवासना कितनी है, बल्कि उसे सेक्स की ओर आकर्षित भी करना चाहती थी।
संध्या- तुमको पता है, ये लोग खेत पर क्यों गए है?
शारदा- सोने के लिए। … नहीं?
संध्या- सोएंगे… सोएंगे… लेकिन सोने से पहले और भी बहुत कुछ करेंगे।
शारदा- क्या करेंगे? और आपको कैसे पता ये सब?
संध्या- मुझे इसलिए पता है कि मैंने ही मोहन को कहा था। और रही बात ये कि क्या करेंगे तो हुआ ये कि जब से मैं पेट से हुई हूँ तब से हमारी मस्ती ज़रा कम हो गई थी। मोहन ने बताया था कि ये दोनों दोस्त बचपन में ये सब मस्ती आपस में किया करते थे तो मैंने कहा एक बार पुरानी यादें ही ताज़ा कर लो।
शारदा- क्या बात कर रही हो दीदी ऐसा भी कोई होता है क्या? और आपके इन्होंने आपको बताया लेकिन मेरे यहाँ तो इन्होंने ऐसा कुछ नहीं बताया।
संध्या- अब तुम थोड़ी रिज़र्व टाइप की हो ना इसलिए बताने में झिझक रहे होंगे।
शारदा- नहीं आप झूठ बोल रही हो। मेरे ये ऐसे नहीं हैं।
संध्या- ये तो सही कही तुमने प्रमोद भाईसाहब हैं तो बड़े सीधे सच्चे आदमी लेकिन मैं झूठ नहीं बोल रही।
शारदा- सीधे सच्चे हैं ये भी बोल रही हो और ऐसे गंदे काम करने गए हैं ये भी बोल रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है।
संध्या- शारदा… शारदा… ! कितनी भोली है री तू। देख, तू जितना खुल के बात करेगी अपने पति से, वो भी उतना खुल के बताएगा ना तुझे सब। मैंने तो पहली रात को ही सब बातें जान ली थीं।
फिर संध्या ने शारदा को मोहन-प्रमोद की सारी कहानी सुना डाली जो मोहन ने उसे बताई थी।
शारदा- सच कहूँ तो मेरी कभी इतनी करीब की कोई सहेली रही ही नहीं। माँ के नहीं रहने के बाद कभी इतना समय ही नहीं मिला कि इन सब बातों में बारे में सोच सकूँ। लेकिन अब मैं कोशिश करुँगी कि इन के साथ खुल कर ये सब बातें कर सकूँ।
संध्या- मुझे ही अपनी करीब की सहेली मान लो।
शारदा- वो तो मान ही लिया है तभी तो आपसे इतनी सब बातें कर लीं।
संध्या- ऐसा है तो हम भी वो करें जो ये लोग वहां खेत पर करने गए हैं।
शारदा- नहीं दीदी, मेरी इतनी हिम्मत नहीं है। आपने किया है कभी।
संध्या- नहीं किया लेकिन सोच रही थी कि तुम हाँ कह देतीं तो एक बार ये भी करके देख लेती।
फिर थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई। थोड़ी देर बाद जब शारदा ना अपना सर घुमा कर संध्या की ओर देखा तो पाया कि संध्या बड़ी ही कामुक अदा और नशीली आँखों से एक टक उसी को देख रही थी। कुछ पलों तक वो भी उसकी आँखों में आँखें डाले सम्मोहित सी देखती रही अचानक संध्या ने अपने होंठ शारदा के होंठों पर रख दिए। शारदा की आँखें अपने आप बंद हो गईं और उसने अपने आप को उस कोमल चुम्बन की लहरों पर हिचकोले खाते हुआ पाया।
शारदा भी अब तक कम से कम चुम्बन की कला में तो पारंगत हो ही चुकी थी। वो वैसे ही संध्या का साथ देने लगी जैसे प्रमोद का देती थी। लेकिन ये अनुभव कुछ नया ही था। संध्या के पतले मुलायम होंठों के स्पर्श से मंत्रमुग्ध शारदा को पता ही नहीं चला कि कब संध्या ने उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए। संध्या ने ब्रा को नीचे सरकाया और शारदा के एक स्तन का चूचुक चूसने लगी। शारदा कभी प्रमोद को कहने की हिम्मत नहीं कर पाई थी कि वो किस तरह से अपने स्तन चुसवाना चाहती है लेकिन संध्या को तो जैसे पहले से ही पता था।
शारदा आनंद के सागर में गोते लगा रही थी कि उसका ध्यान गया कि संध्या भी एक हाथ से अपना ब्लाउज खोलने की कोशिश कर रही थी। शारदा ने भी उसकी मदद की और जल्दी ही दोनों स्त्रियाँ अर्धनग्न अवस्था में एक दूसरी के स्तनों को चूस रही थीं। संध्या शारदा के ऊपर झुक कर उसका दाहिना स्तन चूस रही थी और बायाँ अपने एक हाथ से सहला रही थी। उधर उसका दाहिना स्तन शारदा के चेहरे पर झूल रहा था जिसे शारदा किसी आम की तरह पकड़ का ऐसे चूस रही थी जैसे बछड़ा गाय का दूध पीता है।
इसी बीच वासना से सराबोर संध्या ने अपना बायाँ हाथ शारदा के साए के अन्दर सरका दिया और उसकी चूत का दाना खोजने लगी। लेकिन जैसे ही उसकी उंगली शारदा की गीली चूत के दाने को छू पाई, शारदा उठ कर बैठ गई।
शारदा- नहीं दीदी! ये सब सही नहीं है… हमको ये सब नहीं करना चाहिए।
इतना कह कर उसने जल्दी जल्दी अपनी ब्रा और ब्लाउज पहना और साड़ी ठीक करके दूसरी ओर करवट ले कर सो गई।
नींद तो दोनों को देर रात तक नहीं आई लेकिन फिर कोई बात भी नहीं हुई। अगली सुबह सब ऐसे रहा जैसे रात को कुछ हुआ ही नहीं। प्रमोद और शारदा नाश्ता करके वापस शहर चले गए।
आगे भी कई बार मोहन ने प्रमोद को बुलाया लेकिन फिर शारदा उसके साथ नहीं गई। प्रमोद की वजह से मोहन को अपने जीवन में काम-वासना की कोई कमी महसूस नहीं हो पाई। यूँ तो संध्या भी मोहन का लंड चूस कर झड़ा सकती थी और झड़ाती भी थी लेकिन अभी वो लोट-पोट होकर उत्तेजना वाली मस्ती करने की स्थिति में नहीं थी तो ये सब मोहन प्रमोद के साथ कर लेता था। यूं ही दिन बीत गए और संध्या ने एक स्वस्थ लड़के को जन्म दिया जिसका नाम आगे चल कर पंकज रखा गया।
पंकज के जन्म पर तो शारदा को प्रमोद के साथ गाँव जाना ही था और वैसे भी जिस कारण से तो उसके साथ जाने से कतराती थी वो अब था नहीं। संध्या अभी इस अवस्था में नहीं थी कि शारदा के साथ कोई शरारत कर सके। वैसे शारदा को संध्या पसंद थी। उसी की सलाह का नतीजा था कि पिछले कई दिनों से प्रमोद-शारदा के सम्बन्ध बहुत रंगीन हुए जा रहे थे। लेकिन शारदा के संस्कार उसे अपने पति के अलावा किसी और के साथ कामानंद की अनुभूति करने से रोकते थे और इसीलिए वो संध्या से ज्यादा नजदीकी रखने में झिझक रही थी।
जो भी हो, शारदा ने आते ही संध्या की मदद करना शुरू कर दिया ताकि वो आराम कर सके और अपने बच्चे का ध्यान रख सके। मोहन, प्रमोद और प्रमोद के बाबा खेती-बाड़ी की बातों में लगे रहे। रात को हमेशा की तरह मोहन और प्रमोद खेत पर दारू पार्टी और मस्ती करने चले गए। आज मोहन बहुत खुश था उसके घर में बेटा जो हुआ था, लेकिन नशे का थोडा सुरूर चढ़ने के बाद मोहन ने प्रमोद को एक और खुशखबरी सुनाई।
मोहन- यार! इतने दिन तूने मेरा बहुत साथ दिया। बहुत मज़े करे अपन ने यहाँ मिल के।
प्रमोद- दोस्त ही दोस्त के काम आता है यार।
मोहन- हम्म… लेकिन तू मेरा खास दोस्त है… तो तेरे लिए एक और खुशखबरी है।
प्रमोद- क्या?
मोहन- मैं संध्या के साथ मज़े नहीं कर पा रहा था तब उसी ने मुझे बोला था तुझे बुलाने को। वो ये भी बोली थी कि अगर तू मेरे साथ मस्ती करेगा तो वो भी टाइम आने पर हमारी मस्ती में साथ देगी।
प्रमोद- वो साथ तो दे ही रही है ना… पता होते हुए भी हमको यहाँ आने देती है। मेरी बीवी को भी वासना की ऐसी पट्टी पढ़ाई है कि कुछ महीनों से तो मेरी जिंदगी रंगीन हो गई है।
मोहन- अरे नहीं यार… तुझे चढ़ गई है… तू समझ नहीं रहा है।
प्रमोद- समझ रहा हूँ यार। पिछली बार शारदा एक रात भाभी के साथ रुकी थी और उन्होंने जाने क्या पट्टी पढ़ाई कि जो औरत पहले ठीक से चुदवाती भी नहीं थी वो अब खुद ही मुझे चोद देती है।
मोहन- अरे यार मैं बोल रहा हूँ कि संध्या भी अब हम दोनों को एक साथ चोद देगी!
प्रमोद- क्या? हम दोनों को? मतलब…
मोहन- मतलब ये कि मेरी भाभी तैयार हो ना हो… तेरी भाभी तैयार है अपन दोनों से साथ में चुदवाने के लिए। तो अब अगली बार जब तू आएगा तो अपन साथ मिल उसके साथ मज़े करेंगे।
प्रमोद- ऐसा है तो यार, एक खुशखबरी मेरे पास भी है।
मोहन- क्या? बता भाई बता… आज तो दिन ही ख़ुशी का है।
प्रमोद- देख वो मेरी दूकान पर मैंने जो टीवी कूलर बेचना शुरू किया था ना तो टीवी कंपनी ने टारगेट दिया था। पूरा करने वाले डीलर को यूरोप में दो लोगों के लिए 5 दिन घुमाने का इनाम था। तो मैंने तो टारगेट से ज्यादा टीवी बेच डाले। तो अब जल्दी ही यूरोप जाने का प्रोग्राम है।
मोहन- मुबारक हो भाई। लेकिन, इसका मेरी वाली खुशखबरी से क्या वास्ता।
प्रमोद- वास्ता ये है कि मैंने अभी तुझे बताया ना कि भाभी की संगती में रह के शारदा ढंग से चुदाई करना सीख गई। इसलिए मुझे उम्मीद है कि वहां विदेशी लोगों का खुलापन देखेगी तो शायद वो भी हमारी मस्ती में शामिल होने को राजी हो जाए। मैंने सुना है वहां किसी किसी बीच पर नंगे घूमना आम बात है।
मोहन- ऐसा है क्या? फिर तो घुमा ला। तब तक संध्या की चूत भी थोड़ी टाइट हो जाएगी। फिर दोनों भाई मिल के साथ में भाभीचोद बनेंगे।
इस बात पर दोनों बहुत हँसे।
नशे का सुरूर और वासना अब सर चढ़ चुका था। दोनों जल्दी ही नंगे हो गए और एक दूसरे की बीवी को कैसे चोदेंगे ये बातें करते करते मस्ती करने लगे। ऐसे तो दोनों एक दूसरे की पत्नी के बारे इज्ज़त से ही बात करते थे लेकिन आज नशे में उनको शायद लग रहा था कि उनकी कल्पना सच हो ही जाएगी। आगे क्या होने वाला था ये तो समय को ही पता था।
प्रमोद- देख वो मेरी दूकान पर मैंने जो टीवी कूलर बेचना शुरू किया था ना तो टीवी कंपनी ने टारगेट दिया था। पूरा करने वाले डीलर को यूरोप में दो लोगों के लिए 5 दिन घुमाने का इनाम था। तो मैंने तो टारगेट से ज्यादा टीवी बेच डाले। तो अब जल्दी ही यूरोप जाने का प्रोग्राम है।
मोहन- मुबारक हो भाई। लेकिन, इसका मेरी वाली खुशखबरी से क्या वास्ता।प्रमोद- वास्ता ये है कि मैंने अभी तुझे बताया ना कि भाभी की संगती में रह के शारदा ढंग से चुदाई करना सीख गई। इसलिए मुझे उम्मीद है कि वहां विदेशी लोगों का खुलापन देखेगी तो शायद वो भी हमारी मस्ती में शामिल होने को राजी हो जाए। मैंने सुना है वहां किसी किसी बीच पर नंगे घूमना आम बात है।
मोहन- ऐसा है क्या? फिर तो घुमा ला। तब तक संध्या की चूत भी थोड़ी टाइट हो जाएगी। फिर दोनों भाई मिल के साथ में भाभीचोद बनेंगे।
इस बात पर दोनों बहुत हँसे।नशे का सुरूर और वासना अब सर चढ़ चुका था। दोनों जल्दी ही नंगे हो गए और एक दूसरे की बीवी को कैसे चोदेंगे ये बातें करते करते मस्ती करने लगे। ऐसे तो दोनों एक दूसरे की पत्नी के बारे इज्ज़त से ही बात करते थे लेकिन आज नशे में उनको शायद लग रहा था कि उनकी कल्पना सच हो ही जाएगी। आगे क्या होने वाला था ये तो समय को ही पता था।
अगले दिन प्रमोद वापस शहर आ गया। अगले दो महीने तो पासपोर्ट और वीज़ा के जुगाड़ में निकल गए, उसके बाद प्रमोद ने ट्रेवल एजेंट के साथ मिल कर काफी विचार विमर्श किया और प्लान में काफी सारे बदलाव करवाए। ट्रेवल एजेंट को कंपनी जो भी पैसे दे रही थी उसके अलावा प्रमोद ने भी अपनी तरफ से उसे पैसे दिए ताकि प्लान में कुछ और चीज़ें जोड़ी जा सकें। जो ज़रूरी नहीं लगा उसे हटा कर कुछ पैसे बचा भी लिए। प्रमोद अब असली बनिया बनता जा रहा था।
प्रमोद ने शारदा को जैसा देस वैसा भेस का हवाला दे कर कुछ मॉडर्न कपड़े खरीदवा दिए थे। शारदा भी संध्या की सलाह मान कर कुछ खुल गई थी इसलिए उसने ज्यादा आनाकानी नहीं की।
आखिर वो दिन आ गया जब प्रमोद और शारदा को अपने हनीमून पर निकलना था।
एक लम्बी फ्लाइट के बाद सुबह ये लोग पेरिस पहुंचे। शुरुवात हल्के फुल्के घूमने फिरने से ही करने का प्लान था। कुछ उत्तेजना बनाए रखने के लिए प्रमोद ने शारदा को स्कर्ट-टॉप के अन्दर कुछ ना पहनने की सलाह दी थी जो कि शारदा ने मान ली थी।
सबसे पहले लूव्र संग्रहालय जाने का कार्यक्रम था। जब कभी शारदा थोड़ी बोर होने लगती तो मौका देख कर प्रमोद उसके कसे हुए टॉप के ऊपर से ही उसके उरोजों को छेड़ देता जो कि बिना ब्रा के उस टॉप के ऊपर से भी काफी मुलायम लग रहे थे। यूं तो गर्मी के दिन थे लेकिन पेरिस में थोड़ी ठण्ड तो फिर भी थी ही। जब तक ये लूव्र संग्रहालय में घूम रहे थे तब तक तो महसूस नहीं हुआ था, लेकिन जैस ही वो वहां से बाहर आये, अचानक ठंडी हवा के झोके ने दोनों के रोंगटे खड़े कर दिए।
कुछ देर बाद प्रदीप का ध्यान गया कि केवल रोंगटे ही खड़े नहीं हुए थे बल्कि साथ कुछ और भी खड़े हुए थे। नहीं नहीं अभी तक तो प्रमोद का लंड सोया हुआ था, लेकिन अब शायद शारदा के खड़े हुए चूचुक देख कर वो भी जागने लगा था। उसके कसे हुए टॉप के अन्दर वो नग्न उरोज जो अपनी गोलाइयों को पूरे प्राकृतिक रूप में उस टॉप के अन्दर से भी प्रदर्शित कर पा रहे थे. अब और भी नग्नता के और भी करीब आ गए थे क्योंकि अब शारदा के दोनों चूचुक साफ़ खड़े हुए दिखाई दे रहे थे। उसे इस रूप में देख कर उसकी नंगी देह की कल्पना करना बहुत मुश्किल काम नहीं रह गया था।
प्रमोद ने इस दृश्य को हमेशा के लिए संजो लेने के लिए अपने कोडॅक कैमरा से उसकी एक तस्वीर ले ली। फिर वो एफिल टावर जैसे और भी कई जगहों पर गए। दोनों ने बहुत मज़ा किया। शाम को अपने अगले गंतव्य पर जाने के लिए एअरपोर्ट पर चेक-इन करने के बाद जब दोनों वहीँ एअरपोर्ट के शौपिंग एरिया में घूम रहे थे तब अचानक प्रमोद की नज़र में कुछ आया और चलते चलते प्रमोद ऊपर वाली मंज़िल पर शारदा को कुछ दिखाने लगा।
प्रमोद- वो देखो! उस दूकान पर पहिये वाले जूते मिलते हैं।
शारदा- तो उसमें क्या बड़ी बात है? वो तो अपने यहाँ भी मिलते हैं।
प्रमोद- और वहां पर खेलकूद का सामान मिलता है।
शारदा- क्या, हो क्या गया है आपको? मुझे वहां ये सब फालतू चीज़ें क्यों दिखा रहे हो?
प्रमोद- ताकि तुम यहाँ नीचे ना देख पाओ। हा हा हा…
जैसे ही शारदा ने नीचे देखा तो वो चौंक गई। वो एक कांच के फर्श पर खड़ी थी और उसके नीचे निचली मंजिल पर लोग आ-जा रहे थे। पहले तो उसे बड़ा मज़ा आया कि वो जैसे हवा में उड़ रही है लेकिन जैसे ही उसे याद आया कि अपनी स्कर्ट के अन्दर वो बिलकुल नंगी है और उसकी चूत अब सब लोगों के सामने खुली हुई है, वो शर्म से पानी पानी हो गई। उसने जल्दी से अपने पाँव सिकोड़ लिए।
शारदा- आप भी ना, बड़े बेशर्म हैं। पहले बता देते तो मैं सम्हाल के आती ना।
प्रमोद- फिर ये मज़ा कहाँ से आता?
शारदा- आपको अपनी पत्नी की उस की नुमाइश करने में मज़ा आता है?
प्रमोद- ‘उस की’?
शारदा- हाँ, मतलब मेरी वो… समझ जाओ ना!
प्रमोद- अरे यार, यहाँ हिंदी कोई नहीं समझता। चूत बोलो चूत!
शारदा- आप दिन पे दिन बहुत बेशर्म होते जा रहे हैं। तो मेरी चूत दुनिया को दिखा के क्या मज़ा मिला आपको?
प्रमोद- तुम भी तो दिन पे दिन बिंदास होती जा रही हो। रही बात तुम्हारी चूत की तो मज़ा तो दुनिया को आया होगा मुझे तो तुमको और बिंदास बनाना है इसलिए ऐसा किया।
शारदा- इतनी बिंदास तो हो गई हूँ। आगे हो के आपको चोद डालती हूँ। ऐसे गंदे गंदे शब्द बोलने लगी हूँ। और कितना बिंदास बनाओगे?
प्रमोद- इतना कि सारी दुनिया के सामने मुझे चोद सको।
शारदा- मजाक मत करो। कोई सारी दुनिया के सामने नंगा होता है क्या? पागल कहेगी सारी दुनिया।
इस बात पर प्रमोद बस मुस्कुरा दिया। मन ही मन वो ये सोच कर हंस रहा था कि शारदा को अभी पता नहीं था कि वो जहाँ जा रहे हैं वो किस बात के लिए प्रसिद्ध है। केप ड’अग्ड, फ्रांस में उस समय एक छोटा सा गाँव था तो अपने प्रकृतिवादी रिसॉर्ट्स के लिए उन दिनों काफी प्रसिद्ध हो रहा था। रात का खाना प्लेन में ही हो गया और सोने के समय से पहले दोनों रिसोर्ट में पहुँच गए थे। थकान काफी थी इसलिए सीधा सोने चले गए। अगली सुबह शारदा फ्रेश हो कर आई और तैयार होने के लिए अपने कपड़े निकालने लगी।
शारदा- आज कहाँ चलना है और उस हिसाब से क्या कपड़े पहनूं?
प्रमोद- वो बिकिनी ली थी ना, फूलों के प्रिंट वाली वो पहन लो और उसके ऊपर ये कुरता डाल लो।
शारदा- क्या बात कर रहे हो आप भी। ये इतना झीना कुरता वो भी ये चिंदी जैसे कपड़ों के ऊपर। नहीं नहीं… ये पहन के मैं बाहर नहीं जा सकती। मुझे तो लगा था आपने ये इसलिए दिलवाया है कि अगर ज़्यादा गर्मी पड़ी तो रात को पहन के सोने के काम आएगा।
प्रमोद- एक काम करो। ये पहन लो… साथ में हम ये बड़ी वाली शाल ले चलते हैं, अगर तुमको लगे कि कोई तुमको गलत नज़र से देख रहा है तो ये ओढ़ लेना।
शारदा- ठीक है। और आप क्या पहनोगे?
प्रमोद- बस ये एक चड्डी काफी है।
शारदा- हाँ, आप तो हो ही बेशरम।
फिर दोनों तैयार हो कर निकल पड़े। एक बास्केट में वही बड़ी सी शाल कुछ बियर की कैन और कुछ नमकीन रख लिया था। बीच ज्यादा दूर नहीं था, बल्कि यूँ कहें कि सामने ही दिख रहा था बस वहां तक पहुंचना था। दूर से लोग बीच पर धूप सेंकते दिख रहे थे लेकिन ठीक से नहीं। तभी थोड़ी दूरी पर एक अधेड़ उम्र का आदमी बीच की तरफ जाता हुआ दिखाई दिया। उसके पास भी वैसा ही बास्केट था जैसा होटल वालों ने प्रमोद और शारदा को दिया था लेकिन वो पूरा नंगा था।
शारदा- हे भगवान! सुबह सुबह ये पागल ही दिखाना था? अब देखो, मैं कल ही कह रही थी ना… इस इंसान को आप पागल ही कहोगे ना। चलो अपन थोड़ा दूसरी तरफ चल देते हैं।
प्रमोद- तुम्हारा मतलब उस तरफ?
प्रमोद ने इशारा करके बताया और जब शारदा ने उस दिशा में देखा तो दंग रह गई। वहां एक खूबसूरत जोड़ा जो लगभग उनकी ही उम्र के थे और वो भी पूरे नंग-धड़ंग बीच की ओर जा रहे थे। वो आपस में बात करते हुए बड़ी फुर्ती से बीच की ओर बढ़ रहे थे और उनकी हरकतों को देख कर कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो पागल थे। शारदा कुछ समझ पाती इस से पहले प्रमोद ने एक और दिशा में इशारा किया।
वहां तो एक पूरा परिवार नंगा बैठा था। पति-पत्नी और एक करीब दस साल की लड़की और लगभग छह साल का लड़का जो वहां रेत में किले बना रहे थे। ये लोग अब बीच पर आ गए थे और हर जगह जो भी स्त्री-पुरुष और बच्चे धूप सेंक रहे थे वो सब नंगे ही थे। शारदा तो कुछ समझ ही नहीं पा रही थी।
शारदा- ये सब क्या हो रहा है। कहाँ ले आए हो आप हमको?
प्रमोद- ये एक प्रकृतिवादी लोगों का गाँव है। इन लोगों का मानना है कि प्रकृति ने जैसा हमें बनाया है, हमको वैसे ही रहना चाहिए। इनका खानपान रहन सहन सब प्राकृतिक होता है।
इतना कहते कहते प्रमोद ने बास्केट में रखी शाल रेत पर बिछा दी और अपनी चड्डी निकाल कर उस पर लेट गया।
शारदा- अरे ये लोग जो हैं वो हैं लेकिन आप तो शर्म थोड़ी करो। ऐसे सबके सामने नंगे हो रहे हो!
प्रमोद- जैसा देस वैसा भेस। बल्कि अगर तुम ऐसे घूमोगी तो सब तुमको ही देखेंगे। मैं तो कहता हूँ कम से कम ये कुरता तो निकाल ही दो।
प्रमोद अपनी बीवी को नंगी करना चाहता था कि उसकी शर्म पूरी खुल जाए और वो अपनी नंगी बीवी की नंगी कहानी अपने दोस्त और भाभी को सुनाये.
शारदा को प्रमोद की बात सही लगी। अब तक काफी लोग उसे अजीब नज़र से देख चुके थे। उसने भी कुरता निकाल दिया और शाल के ऊपर लेट गई। दोनों एक दूसरे की तरफ करवट ले कर लेटे थे और अपने एक हाथ पर सर को टिका कर दूसरे हाथ से बियर पी रहे थे। प्रमोद ने शारदा को हज़ार बार नंगी देखा था लेकिन आज ऐसे खुले बीच पर बिकिनी में उसे देख कर प्रमोद का लंड खड़ा हो गया। उधर शारदा ने पहली बार बियर पी थी तो उसे थोड़ी चढ़ने लगी थी।
शारदा- अरे तुम्हारा तो लंड खड़ा हो गया। चूस दूं क्या?
प्रमोद- अरे नहीं! यहाँ लोग प्राकृतिक रहने के लिए नंगे रहते हैं सेक्स के लिए नहीं। लेकिन अब ये खड़ा हो गया है तो इसको लेकर तो कहीं जा भी नहीं सकते… अच्छा नहीं लगेगा। तुम्हारे कुरते से ढक लेता हूँ तुम हाथ से हिला के झड़ा दो।
शारदा ने थोड़ी देर कोशिश की लेकिन जब प्रमोद नहीं झड़ा तो शारदा नशे में बोलने लगी- चोद लो यार, यहाँ सब वैसे भी नंगे ही तो घूम रहे हैं।
शारदा नशे में समझ नहीं पा रही थी कि वहां बच्चों वाले परिवार भी थे।
लेकिन प्रमोद को एक नया उपाय सूझा, उसने शारदा को समुद्र में चलने को कहा। दोनों भाग कर पानी में चले गए और इतने गहरे पानी में जा कर खड़े हो गये कि पानी उनकी छाती तक था। कभी लहर भी आती तो गले तक ही आ रहा था।
ऐसे में प्रमोद ने शारदा की बिकिनी बॉटम (पेंटी) को नीचे सरका के पीछे से अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। समंदर की लहरों में दोनों की चुदाई के झटके कहीं खो गए और देखने वालों को यही लग रहा है कि कोई अपनी बीवी के साथ लहरों का आनंद ले रहा है। शारदा पर नशे की खुमारी थी और ऊपर से समंदर की लहरों में झूलते हुए ऐसी चुदाई उसने पहली बार अनुभव की थी।
आखिर में जब वो झड़ी तो कुछ देर के लिए तो आनंद के अतिरेक से वो बिल्कुल निढाल पड़ गई। अगर प्रमोद तब उसे पकड़ ना लेता तो शायद वो डूब ही जाती।
थोड़ी देर बाद जब उसे थोड़ा होश आया तो नशा पूरी तरह से उतर चुका था।
जैसे ही वो सम्हालने लायक हुई उसे एक और झटका लगा।
उसकी बिकिनी बॉटम गायब थी। जब प्रमोद ने चोदने के लिए उसे नीचे सरकाया था तब तो शारदा ने उसे अपने पैर चौड़े करके घुटनों से ऊपर अटका रखा था लेकिन चुदाई के मज़े में जब उसका बदन ढीला पड़ा तो वो नीचे सरक कर लहरों में कहीं बह गई। दोनों ने मिल कर काफी ढूँढा लेकिन आसपास कहीं नज़र नहीं आई।
शारदा- मैं ऐसे बाहर नहीं निकल सकती; आप मुझे आपका बरमूडा ला कर दो ना, मैं वही पहन कर बाहर आ जाऊँगी।
प्रमोद- ऐसे घबराओ मत यार, दिमाग से काम लो। यहाँ सब औरतें नंगी ही घूम रही हैं ऐसे में तुमने बिकिनी पहनी थी वही लोगों को अजीब लग रहा था। अब तुम मेरे साइज़ का बरमुडा पहनोगी और उसे हाथ से पकड़ कर चलोगी तो सब हँसेंगे तुम पर। ऐसे ही चल दोगी तो शायद कोई देखेगा भी नहीं।
ठन्डे दिमाग से सोचा तो बात शारदा को भी सही लगी; थोड़ी हिम्मत करके वो बाहर आ गई। थोड़ी ही देर में उसे समझ आ गया कि अगर वो इस बीच पर नंगी भी घूमे तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
दोनों ने तौलिये से अपने अपने बदन को सुखाया और वहीं थोड़ा घूमने का सोचा।
प्रमोद- अब ये ऊपर की ब्रा भी निकाल ही दो। बड़ा अजीब लग रहा है, चूत दिखा रही हो और बोबे छुपा रही हो।
शारदा- हे हे… बात तो आपकी सही है, और वैसे भी यहाँ किसी को फर्क नहीं पद रहा कि मैं यहाँ नंगी खड़ी हूँ।
इतना कहकर शारदा ने बिकिनी टॉप भी निकाल दिया और खुले आसमान के नीचे पूरी नंगी हो गई। काफी देर तक दोनों वहीं बीच पर घूमते रहे। शारदा को आज़ादी का एक नया ही अहसास हो रहा था। वो नंगी ही बीच पर दौड़ लगा रही थी समंदर की आती जाती लहरों में छई-छप्पा-छई कर रही थी। प्रमोद बहुत खुश था शारदा का ये रूप देख कर।
उसे समझ आ गया कि अगर वो इस बीच पर नंगी भी घूमे तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता।
दोनों ने तौलिये से अपने अपने बदन को सुखाया और वहीं थोड़ा घूमने का सोचा।प्रमोद- अब ये ऊपर की ब्रा भी निकाल ही दो। बड़ा अजीब लग रहा है, चूत दिखा रही हो और बोबे छुपा रही हो।
शारदा- हे हे… बात तो आपकी सही है, और वैसे भी यहाँ किसी को फर्क नहीं पद रहा कि मैं यहाँ नंगी खड़ी हूँ।इतना कहकर शारदा ने बिकिनी टॉप भी निकाल दिया और खुले आसमान के नीचे पूरी नंगी हो गई। काफी देर तक दोनों वहीं बीच पर घूमते रहे। शारदा को आज़ादी का एक नया ही अहसास हो रहा था। वो नंगी ही बीच पर दौड़ लगा रही थी समंदर की आती जाती लहरों में छई-छप्पा-छई कर रही थी। प्रमोद बहुत खुश था शारदा का ये रूप देख कर।
अब तो शारदा रिसोर्ट में भी नंगी घूमने से नहीं शर्मा रही थी। उस रात ठण्ड ज़रूर थी लेकिन फिर भी चाँद की हल्की रोशनी में दोनों फिर नंगे अकेले बीच पर गए। वहां एक जगह काफी सारे जुगनू दिखाई दिए। उन जुगनुओं की झिलमिल रोशनी में शारदा का नंगा बदन जब अंगड़ाई लेते हुए प्रमोद ने देखा तो उसका लंड तुरंत पत्थर का हो गया। फिर उन जुगनुओं के बीच खुले आसमान के नीचे जो चुदाई हुई वो शायद जीवन में एक ही बार होती है।
मानो चुदाई का दंगल हो जहाँ ना किसी को चित करना है ना खुद को बचाने कोशिश लेकिन फिर भी कुश्ती जारी है। ये तो बस अन्दर की उत्तेजना है जो इस रूप में बाहर आ रही है। इसमें प्यार भी है; रोमांच भी और वासना भी है। चुदाई कम हो रही थी और गुत्थम-गुत्थी ज्यादा। जब थोड़े थक जाते तो चुदाई कर लेते और फिर जोश आ जाता तो एक बार फिर दंगल शुरू हो जाता। आखिर दोनों झड़े तो दोनों ने ये माना कि इतनी अच्छी चुदाई उन्होंने कभी नहीं की थी। मज़ा आ गया!
फिर दोनों ने वहीं समंदर में अपनी रेत साफ़ की और रिसोर्ट में वापस आ कर सो गए।
अगली सुबह शारदा ने नहीं पूछा कि क्या पहनना है। आज वो फ्रेश होने के बाद नंगी ही बाथरूम से बाहर आई।
शारदा- चलो मैं तो तैयार हूँ।
प्रमोद- मैं भी तैयार हूँ। देखा नंगे रहने के कितने फायदे हैं।
उस पूरे दिन उन्होंने बीच पर मस्ती की। शारदा भी अब पूरी बेशरम हो गई थी। बीच के एक किनारे पर बड़ी सी चट्टान की ओट में चुदाई भी कर ली। बहरहाल अगले दिन यहाँ से विदा लेना था और फिर से कपड़े वालों की दुनिया में जाना था। शारदा ने वेल-बॉटम वाला पेंट और डिज़ाइनर शर्ट पहना था। शाम तक दोनों एम्स्टर्डम पहुँच गए थे। सफ़र ज्यादा लम्बा नहीं था तो थकान उतनी नहीं थी। प्रमोद ने उसे कुछ ख़ास दिखने के लिए साथ चलने को कहा। शारदा ने एक मैक्सी पहन ली जिसके अन्दर वो अभी भी नंगी थी। उसे अब नंगेपन का अहसास भाने लगा था।
प्रमोद उसे एम्स्टर्डम के रेड-लाइट डिस्ट्रिक्ट ले गया जहाँ जो उनकी होटल से पैदल जाने लायक दूरी पर ही था। पूरी सड़क पर जितने भी घर थे सबके सामने लड़कियां बहुत ही छोटे कपड़े पहन कर खड़ी हुई थीं। प्रमोद ने शारदा को बताया के ये सब पैसे ले कर सेक्स करने के लिए खड़ी हुई हैं।
शारदा- आप भी ना! अब मैं बिंदास हो गई हूँ तो इसका मतलब ये नहीं कि आप मुझे ऐसी जगह ले आओ। मुझसे आपका मन नहीं भर रहा क्या?
प्रमोद- अरे नहीं यार! यहाँ इस सब को गलत नहीं मानते ये सब इसको एक बिज़नस की तरह करती हैं और सरकार को टैक्स भी देती हैं।
शारदा- चलो ठीक है लेकिन फिर भी आपको क्या ज़रूरत पड़ गई यहाँ आने की? मुझे बिल्कुल पसंद नहीं कि आप मेरे अलावा किसी और की तरफ नज़र उठा कर भी देखो।
प्रमोद- अरे नहीं यार, तू फिकर ना कर। मैं तो तुझे दिखाने के लिए लाया था क्योंकि अपने उधर तो तुझे ले कर गया तो लोग तेरे पीछे ही पड़ जाएंगे इसलिए सोचा ये जगह सही है जहाँ तू बिना किसी फिकर के देख सकती है कि ये सब देह व्यापार कैसा होता है।
शारदा- चलो ठीक है देख लिया अब वापस चलो।
प्रमोद- हाँ अभी तो चलो लेकिन कल वापस आएँगे। यहाँ एक क्लब है वहां कल के शो की बुकिंग करवाई है।
उस रात प्रमोद ने शारदा को नहीं चोदा। थकान का बहाना करके सो गया लेकिन सच तो ये था कि उसे पता था कि शारदा को अब रोज़ चुदाई की आदत हो गई है और आज चुदाई नहीं मिली तो कल वो बहुत चुदासी रहेगी। अगली रात के सपने देखते देखते वो सो गया।
अगले दिन दोनों दिन भर ट्यूलिप गार्डन और एम्स्टर्डम की नहरों में घूमते रहे, और भी कई जगह गए लेकिन शाम से पहले होटल वापस आ गए। शाम को फ्रेश होकर तैयार होने के लिए प्रमोद ने शारदा को एक मिनी स्कर्ट और नूडल स्ट्रिंग वाला टॉप पहनने को कहा। अब तक शारदा की शर्म तो ख़त्म हो ही चुकी थी इसलिए उसने कोई नखरा तो किया ही नहीं बल्कि बिना कहे अन्दर भी कुछ नहीं पहना।
तैयार होकर डिनर के समय से पहले ही दोनों एक क्लब के सामने जा पहुंचे जिसके ऊपर लिखा था ‘बार नाईटक्लब – कासा रोज़ा’
अन्दर पहले से रिज़र्व जगह तक पहुँचाने के लिए एक लड़की साथ आई जिसने एक बड़ी चमकीली बिकिनी पहनी हुई थी। उसने उन्हें एक कमरे में ले जा कर एक सोफे पर बैठने को कहा और चली गई। ये बहुत ही आरामदायक सोफे था जिस पर दो लोग आराम से बैठ सकते थे। सोफे के सामने एक टेबल था जिस पर कुछ ग्लास और सजावटी सामान था।
कमरे के दूसरे कोने में ठीक वैसा ही सोफे और टेबल लगा हुआ था और इस कमरे की सामने की दीवार नहीं थी बल्कि कुछ ही दूरी पर एक स्टेज था जो दरअसल एक बड़े हॉल में थे और ये कमरा केवल इसलिए बनाया गया था कि हॉल के लोग इस कमरे के अन्दर ना देख सकें और यहाँ बैठे लोग स्टेज का शो प्राइवेट में देख सकें।
थोड़ी ही देर में एक और जोड़ा इस कमरे में आया और दूसरे सोफे पर बैठ गया।
इस दूसरे जोड़े में जो लड़की थी उसने बहुत ही छोटी मिनी स्कर्ट पहनी थी और अन्दर आ कर उसने अपना जैकेट उतार दिया जिसके अन्दर उसने एक लगभग ब्रा जैसी ही डिज़ाइनर टॉप पहनी थी। दोनों आते ही चिपक कर बैठ गए और चोंच से चोंच लड़ाने लगे।
प्रमोद ने अपना खाने-पीने का आर्डर पहले ही कर दिया था तो कुछ ही देर में वही वेट्रेस एक शैम्पेन की बोतल लेकर आई और दोनों के ग्लास भर के बोतल बर्फ की बाल्टी में रख कर दूसरे जोड़े से आर्डर लेने चली गई।
शारदा- यहाँ क्या खाने के साथ डांस का शो होता है या कोई नाटक होता है?
प्रमोद- देखते जाओ। यहाँ वो होगा जो तुमने कभी नहीं देखा होगा। अभी तो तुम अपना ड्रिंक लो। चियर्स!!!
दोनों पीने लगे… कुछ ही देर में म्यूजिक भी बजने लगा। तभी वेट्रेस उस दूसरे वाले जोड़े का आर्डर ले कर आई। उन्होंने टकीला शॉट्स आर्डर किये थे। एक ट्रे में काफी सारे छोटे छोटे ग्लास रखे हुए थे और साथ में कुछ नींबू और कुछ और भी चीज़ें थीं। उस आदमी ने कुछ कहा तो वेट्रेस ने अपनी बिकिनी ब्रा खोल दी फिर एक टॉवल से अपने स्तनों को साफ़ किया फिर एक चुचुक पर नींबू का रस और दूसरे पर नमक लगाया फिर एक टकीला ग्लास अपने दोनों स्तनों के बीच दबा कर उस आदमी के पास गई, उसने ग्लास से टकीला पी और फिर उसके दोनों चुचुकों को चूस कर नमक और नींबू चाटा।
शारदा ने जब ये देखा तो दंग रह गई। वो कुछ कहती कि तभी स्टेज पर शो शुरू हो गया।
एक लड़का और एक लड़की म्यूजिक पर डांस कर रहे थे। धीरे धीरे वो अपने कपड़े निकालने लगे और बड़ा ही मादक नृत्य करने लगे। इधर प्रमोद ने शारदा के पीछे से अपना एक हाथ उसके टॉप में डाल दिया और उसके एक स्तन को सहलाने लगा। शारदा को अब थोड़ी शर्म आने लगी।
शारदा- क्या कर रहे हो यार?
प्रमोद- उधर देखो!
शारदा ने जब देखा तो दूसरे कोने में जो आदमी था वो अपनी साथी की टॉप ऊपर सरका चुका था और उसके चूचुकों को बारी बारी चूस रहा था। कभी दोनों चुम्बन करने लगते तो वो उसके स्तनों को मसलने लगता। शारदा पर शैम्पेन का नशा असर करने लगा था। सामने वो नाचते युगल पूर्ण नग्नावस्था में बहुत मादक रूप में आलिंगन और चुम्बन करते हुए थिरक रहे थे। शारदा भी कल से चुदासी बैठी थी। उसने भी जोश में आ कर अपना टॉप निकाल दिया और प्रमोद के सर को अपने स्तनों के बीच दबा कर मसलने लगी।
स्टेज पर चुदाई शुरू हो गई थी और कमरे के दूसरे कोने में बैठा युगल भी पीछे नहीं था। वो अपनी महिला साथी को टेबल पर झुका कर पीछे से चोद रहा था। म्यूजिक की धुन भी ऐसी थी कि लग रहा था चुदाई के लिए ही बनी थी। कुछ ही देर में शारदा और प्रमोद पूरे नंगे थे और चुदाई कर रहे थे। शारदा पलटी और सोफे के बाजू पर अपनी कोहनियाँ टेक कर घोड़ी बन गई ताकि प्रमोद उसे पीछे से चोद सके लेकिन देखा कि सामने वाला जोड़ा भी ठीक उसी आसन में चुदाई कर रहा था।
सामने वाला युगल शारदा और प्रमोद को देख कर मुस्कुराया और दोनों तरफ से इशारे में ही हेल्लो-हाय हुई।
अनजान युवक- वुड यू लाइक टु स्वैप? (क्या आप अदला बदली करना पसंद करोगे)
प्रमोद- शी वोंट एप्रूव (वो मंज़ूरी नहीं देगी)
अनजान युवक- नो प्रॉब्लम (कोई बात नहीं)
शारदा और प्रमोद दोनों के लिए ही यह पहली बार था कि वो किसी के सामने ऐसे चुदाई कर रहे थे। उस पर बातें भी होने लगीं तो उत्तेजना कुछ और ही बढ़ गई और उधर स्टेज पर लड़के ने लड़की के मुख में अपना वीर्य छोड़ दिया ये देख कर शारदा झड़ने लगी और उसने भी नशे में यही करने की ठान ली और उठ कर बैठ गई अपना मुख खोल कर। इतना देख कर ही प्रमोद की उत्तेजना चरम पर पहुँच गई और उसने शारदा के मुँह में अपना वीर्य छोड़ दिया।
इतना ड्रिंक करने के बाद वैसे ही शारदा का मन कुछ नमकीन खाने का हो रहा था। उसे वीर्य का स्वाद पसंद आ गया और वो पूरा निगल गई बाक़ी जो इधर उधर लग गया था उसे भी उंगली से निकाल कर चाट गई और बाकी लंड को कोल्ड्रिंक की स्ट्रॉ जैसे चूस के उसके अन्दर से जो मिला वो भी खा गई। आखिर दोनों ने कपड़े पहने और नशे में लड़खड़ाते हुए गाने एक दूसरे को अनाप-शनाप बकते हुए होटल वापस आ गए।
यूरोप के पांच दिन पूरे हो चुके थे, अगले दिन शारदा ने प्रमोद से नहीं पूछा कि उसे क्या पहनना है। वो अपना सलवार-सूट पहन कर अपने देश वापस आने के लिए तैयार थी।
यूरोप से वापस आने के बाद एक अलग ही जोश आ गया था प्रमोद और शारदा के जीवन में। अब शारदा पहले जैसी नहीं रह गई थी; उसे अब चोदा-चादी के इस खेल में मज़ा आने लगा था। दरअसल मज़ा कभी चुदाई में नहीं होता। मज़ा तो उन खेलों में होता है जो चुदाई के साथ साथ खेले जाते हैं। मज़ा समाज के उन नियमों को चकमा देने में होता है जिनको आप बचपन से बिना सोचे समझे निभाए जा रहे हो।
देर रात सुनसान सड़क पर चुदाई करने में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि सड़क कोई बहुत आरामदायक जगह होती है। चलती ट्रेन में सबके सोने के बाद चुदाई में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि वो कोई आसान काम है। दिन दिहाड़े किसी और के खेत में घुस के चोदने में ज्यादा मज़ा आता है पर इसलिए नहीं कि खेतों में कोई सौंधी खुशबू होती है।
इन सब जोखिम भरे तरीकों से चोदने-चुदाने में ज्यादा मज़ा इसलिए आता है क्योंकि एक तो जोखिम भरे काम उत्तेजना बढ़ाते हैं और ऊपर से हमारे अन्दर का जो जानवर है जिसको प्रकृति ने नंगा पैदा किया था वो वापस आज़ादी का अनुभव करता है। आज़ादी उन नियमों से जो समाज ने हम पर थोपे हैं जिनका शायद कोई फायदा भी होगा लेकिन फिर भी वो हमें अपने सर पर रखा वज़न ही लगते हैं।
शारदा इस वज़न से मुक्त हो गई थी इसलिए अब वो प्रमोद के साथ ये सारे काम करने में पूरी तरह से उसका साथ देने लगी थी। घर पर अब वो अक्सर नंगी ही रहती थी; जब भी गाँव जाते तो कभी किसी के खेत में तो कभी नदी के किनारे किसी टेकरी के पीछे चुदाई कर लेते। बस में, ट्रेन में, कभी मोहल्ले की पीछे वाली गली में तो कभी अपने ही घर की छत पर। शायद ही कोई जगह बची हो जहाँ प्रमोद ने शारदा को चोदा ना हो।
इस सब में कई महीने निकल गए। अब तो बस एक ही ख्वाहिश बाकी थी कि वो अपने दोस्त मोहन के साथ मिल कर शारदा और संध्या की सामूहिक चुदाई कर पाए। समय निकलते देर नहीं लगती, जल्दी ही पंकज एक साल का हो गया और मोहन ने उसके जन्मदिन पर प्रमोद और शारदा को बुलाया।
जन्मदिन मनाने के बाद मोहन और पंकज अकेले में बैठ कर बातें कर रहे थे।
प्रमोद- और सुना! संध्या भाभी की टाइट हुई कि नहीं?
मोहन- अरे तू भी क्या शर्मा रहा है सीधे सीधे बोल ना कि भाभी की चूत टाइट हुई या नहीं?
प्रमोद- हाँ यार वही, तूने कहा था ना कि भाभी की चूत वापस टाइट हो जाए फिर प्रोग्राम करेंगे।
मोहन- इसीलिए तो तुम लोगों को बुलाया है। तेरी शारदा तैयार हो तो अभी कर लेते हैं।
प्रमोद- अरे तैयार तो हो ही जाएगी। यूरोप में जो जो करके हम आये हैं उसके बाद मुझे नहीं लगता कि मना करेगी, लेकिन फिर भी मुझे एक बार बात कर लेने दे। अगर सब सही रहा तो न्यू इयर की पार्टी मनाने तुम हमारे यहाँ आ जाना फिर वहीं करेंगे जो करना है।
मोहन- ठीक है फिर। जहाँ इतना इंतज़ार किया वहां थोड़ा और सही। लेकिन अपनी यूरोप की कहानी ज़रा विस्तार में तो सुना।
फिर देर रात तक प्रमोद ने मोहन को यूरोप की पूरी कहानी एक एक बारीकी के साथ सुना दी।
अगले दिन शारदा और प्रमोद शहर वापस आ गए। उस रात प्रमोद ने वो विडियो कैसेट निकाले जो वो एम्स्टर्डम से ले कर आया था। इनमें उस समय की 8-10 मानी हुई पोर्न फ़िल्में थीं। उसने उनमें से वो फिल्म निकाली जिसमें दो जोड़े आपस में एक दूसरे के पति-पत्नी के साथ मिल कर सामूहिक सेक्स करते हैं।
फिल्म को देखते देखते शारदा उत्तेजित हो कर प्रमोद का लंड और अपनी चूत सहलाने लगी।
प्रमोद- याद है, हमने भी एम्स्टर्डम में ऐसे ही किसी अनजान कपल के साथ सेक्स किया था।
शारदा- हाँ! बड़ा मज़ा आया था। लेकिन ये लोग तो अदला बदली कर रहे हैं मैंने तो आपके ही साथ किया था बस।
प्रमोद- तो अदला बदली भी कर लेती, मैंने कब मना किया था।
शारदा- अरे नहीं, ये कभी नहीं हो सकता। आपके अलावा कोई मुझे छू नहीं सकता।
प्रमोद- लेकिन मेरी इजाज़त तो तब तो कर सकती हो ना?
शारदा- अरे ऐसे कैसे … मेरा शरीर है तो आपकी इजाज़त से क्या होगा। अग्नि के सात फेरे ले कर ये शरीर आपको सौंपा है तो आपके अलावा किसी और को छूने भी नहीं दूँगी मैं।
प्रमोद- ठीक है ठीक है बाबा … लेकिन जो एम्स्टर्डम के उस क्लब में किया था वैसा कुछ तो कर सकती हो ना?
शारदा मुस्कुराती हुई- क्यों? फिर से एम्स्टर्डम चलने का मन है क्या?
प्रमोद- नहीं लेकिन वो काम तो यहाँ भी हो सकता है ना!
शारदा- यहाँ भी वैसे क्लब हैं क्या?
प्रमोद- क्लब तो नहीं हैं लेकिन तुम हाँ तो करो हम घर में ही क्लब बना लेंगे।
शारदा- देखना कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाए। किसे बुलाओगे; रंडियों को?
प्रमोद- नहीं यार, वो मोहन को मैंने बताया था कि हमने क्या क्या किया वहां तो उसका भी मन था। अब परदेस जाना वो चाहता नहीं है तो मैंने सोचा आगर तुम हाँ करो तो उसको और संध्या भाभी को यहीं पर वो सब मज़े करवा दें।
शारदा कुछ सोचते हुए- हम्म … संध्या भाभी तो शायद मान भी जाएंगी। लेकिन मुझे आपके अलावा कोई छुएगा नहीं; ये वादा करो तो मुझे मंज़ूर है।
प्रमोद- एम्स्टर्डम में भी तो किसी ने कुछ नहीं किया था ना तुमको। बस वैसे ही करेंगे। चिंता ना करो मोहन नहीं चोदेगा तुमको। मैं ही चोदूँगा बस … ऐसे …
फिर प्रमोद ने इसी ख़ुशी में शारदा को जम के चोदा। शारदा भी उन यादों से काफी उत्तेजित हो गई थी। साथ साथ वो अदला-बदली करके चुदाई करने वाली फिल्म का वीडियो भी देखती जा रही थी। उसे भी चुदाई में बड़ा मज़ा आया। अगले ही दिन प्रमोद ने मोहन को सन्देश भिजवा दिया कि न्यू इयर मनाने शहर आ जाए। यह तो बस एक कोडवर्ड था जिससे मोहन समझ जाए कि शारदा तैयार है।
31 दिसंबर 1987 की शाम के पहले ही मोहन और संध्या, पंकज को अपनी दादी के भरोसे छोड़ कर एक रात के लिए प्रमोद के घर आ गए। यहाँ कोई बड़ा बूढ़ा तो था नहीं, सब हमउम्र थे और ना केवल मोहन-प्रमोद बल्कि संध्या-शारदा के भी काफी हद तक अन्तरंग समबन्ध रह चुके थे। यह अलग बात है कि शारदा को किसी और के साथ ऐसे समबन्ध रखना सही नहीं लगता था इसलिए उसने संध्या से दूरी बनाई हुई थी लेकिन आज तो उनके संबंधों में एक नया मोड़ आने वाला था।
संध्या अन्दर रसोई में शारदा का हाथ बंटाने चली गई।
संध्या- क्या बना रही है?
शारदा- मसाला पापड़ के लिए मसाला बना रही हूँ। खाना तो ये बोले खाने की शायद ज़रूरत ना पड़े नाश्ते से ही पेट भरने का प्रोग्राम है।
संध्या- हाँ, वैसे भी ऐसे में थोड़ा पेट हल्का ही रहे तो सही है।
शारदा- तुमको पता है ना ये दोनों क्या क्या सोच कर बैठे हुए हैं?
संध्या- मुझे इनके प्लान का तुझसे तो ज्यादा ही पता रहता है।
शारदा- हाँ, जब इन्होंने कहा तो मुझे यही लगा था कि तुम तो तैयार हो ही जाओगी।
संध्या- देख शारदा! मेरा तो सीधा हिसाब है पति बोले तो मैं तो किसी और से भी चुदवा लूँ।
शारदा- हाय दैया! दीदी, आप भी ना … कैसी बातें करती हो।
इधर संध्या और शारदा की बातें शुरू हो रहीं थीं जिसमें यूरोप की यात्रा की यादें थीं तो संध्या की टिप्पणियां भी थीं कि अगर वो होती तो क्या क्या हो सकता था। संध्या शारदा को और भी बिंदास बनाने की कोशिश कर रही थी। उधर मोहन और प्रमोद योजना बना रहे थे कि कैसे इन महिलाओं की स्वाभाविक शर्म के पर्दे को गिराया जाए और अपने लक्ष्य तक पहुंचा जाए।
प्रमोद- बाकी सब तो ठीक है यार लेकिन शारदा ने साफ़ कह दिया है कि वो मेरे अलावा किसी और से नहीं चुदवाएगी। मैंने सोचा एक बार साथ मिल के चुदाई तो कर लें फिर हो सकता है उसकी हिम्मत बढ़ जाए और हम अदला-बदली भी कर पाएं।
मोहन- तू फिकर मत कर, मैं संध्या को ही चोदूँगा। लेकिन संध्या ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी है, तो अगर तुम दोनों का जुगाड़ जम जाए तो मुझे आपत्ति नहीं है, तू संध्या को चोद सकता है।
रात 9 बजे तक तो ऐसे ही बातें चलती रहीं और उधर रसोई का काम ख़त्म करके शारदा और संध्या भी तैयार हो गईं थीं। फिर दारु पीते हुए गप्पें लड़ाने का दौर शुरू हुआ। मोहन और प्रमोद स्कॉच पी रहे थे और महिलाओं के लिए व्हाइट वाइन लाई गई थी।
कुछ देर तक इधर उधर की बातों के बाद यूरोप की बातें शुरू हुईं। शारदा शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी लेकिन संध्या आगे होकर शारदा की बताई हुई बातें चटखारे लेकर सुना रही थी।
मोहन- फिर वो नंगे बीच पर बस नंगे होकर घूमे ही … या कुछ किया भी?
प्रमोद- दिन में तो नहीं, लेकिन रात को किया था … जुगनुओं के साथ।
संध्या- क्या बात कर रहे हो प्रमोद भाईसाहब। बस जुगनुओं के साथ? शारदा तो बता रही थी किसी क्लब में किसी और जोड़े के साथ भी किया था?
शारदा (धीरे से)- क्या दीदी आप भी … सबके सामने!
आखिर सबने मिल कर एक सेक्सी फिल्म देखने का फैसला किया। प्रमोद ने जो ब्लू फिल्मों की कैस्सेट्स लेकर आया था उनमें से सबसे कम सेक्स वाली फिल्म लगा दी। इसमें चुदाई को बहुत ज्यादा गहराई से नहीं दिखाया था। बस नंगे होकर चुम्बन-आलिंगन तक ही दिखाया था लेकिन बहुत ही उत्तेजक तरीके से जैसे कि स्तनों को लड़के की छाती से चिपक कर दबना या उनकी जीभों का आपस में खेल करना जो कि काफी करीब से फिल्माया गया था। इसको देख कर सब काफी उत्तेजित हो गए थे।
संध्या मोहन के साथ ही बैठ गई थी और मोहन मैक्सी के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबा रहा था। एक बार तो उस से रहा नहीं गया और उसने उंदर हाथ डाल कर संध्या का एक स्तन मसल डाला। उधर वाइन का असर शारदा पर भी होने लगा था और इस फिल्म के दृश्यों ने उसकी वासना भड़का दी थी वो भी प्रमोद के साथ जीभ से जीभ लड़ा कर चुम्बन करने लगी।
फिल्म ख़त्म हुई तब तक 12 बजने में 10 मिनट कम थे।
मोहन- यार, काश हम भी तुम्हारे नग्न समुद्रतट यानि न्यूड बीच वाला अनुभव ले पाते।
संध्या- मुझे तो उस क्लब में जाकर चुदवाने का मन कर रहा है।
प्रमोद- क्यों ना हम यहीं वो क्लब बना लें। मान लो यही वो क्लब है और हम न्यू इयर मनाने यहाँ आये हैं।
संध्या- एक काम करते हैं जैसे ही 12 बजेंगे, हम सब एक साथ नंगे हो जाएँगे तो फिर किसी को पहले या बाद में नहीं होना पड़ेगा और शर्म भी नहीं आएगी।
मोहन- ठीक है फिर ऐसे कपड़े पहन लेते हैं जो एक झटके में निकल जाएं।
शारदा- आप लोग अन्दर जा कर लुंगी पहन लो।
संध्या- हाँ, हमारे कपड़े तो वैसे भी केवल ये डोरियों से अटके हैं बस अन्दर के कपड़े निकालने पड़ेंगे तो वो हम पहले ही निकाल लेते हैं।
संध्या और शारदा ने जो मैक्सी पहनी थीं उनमें कंधे पर बस दो डोरी थीं जिनके सहारे पूरी ड्रेस लटक रही थी। जब दोनों मर्द बेडरूम में लुंगी लेने गए तो संध्या ने अपनी निगरानी में शारदा के ब्रा और पेंटी निकलवा दिए और खुद के भी निकाल दिए। 12 बजने में 1 ही मिनट बचा था।
प्रमोद (ऊंची आवाज़ में)- एक काम करो आप लोग भी यहाँ बेडरूम में ही आ जाओ।
शारदा- ठीक है जी।
शारदा ने नशे में लहराती हुई आवाज़ में जवाब दिया.
दोनों बेडरूम में पहुंचे तो प्रमोद और मोहन लुंगी लपेट कर आधे नंगे खड़े थे और आखिरी मिनट के सेकंड्स गिन रहे थे।
49 … 50 … 51 … 52 … 53 … 54 … 55 … 56 … 57 … 58 … 59 … हैप्पी न्यू इयर !!!
एक झटके में दोनों लुंगियां ज़मीन पर थीं। अगले ही क्षण संध्या की मैक्सी भी फर्श पर गिर गई लेकिन शारदा ने अपनी मैक्सी निकलने के बजाए दोनों हाथों से अपनी आँखें बंद कर लीं थीं। आखिर संध्या ने ही उसे अपने गले लगाते हुए उसकी मैक्सी नीचे खसका दी। वैसे शायद वो ऐसी हालत में संध्या को अपने से चिपकने ना देती लेकिन अभी शर्म के मारे वो उससे चिपक गई और अपना सर उसके कंधे पर झुका कर आँखें मूँद लीं।
मोहन जाकर संध्या के पीछे चिपक गया और प्रमोद शारदा का पीछे। संध्या ने प्रमोद को आँख मारते हुए चुम्बन का इशारा किया और अपने होंठ आगे कर दिए। प्रमोद भी हल्का नशे में था और न्यू इयर पार्टी की मस्ती थी सो अलग। उसने भी आवाज़ किये बिना अपने होंठ संध्या के होंठों से टकरा कर हल्का सा चुम्बन ले लिया। तभी संध्या ने शारदा धक्का दे कर अपने से अलग किया।
संध्या- अब तू अपना पति सम्हाल; मैं अपना सम्हालती हूँ।
इतना कह कर संध्या पलटी और घुटनों के बल बैठ कर मोहन का लंड चूसने लगी। प्रमोद ने शारदा को पीछे से पकड़ लिया और एक हाथ से उसके स्तन मसलने लगा और दूसरे से उसकी चूत का दाना।
एम्स्टर्डम में तो कोई अनजान था जिसके सामने शारदा ने चुदवाया था और वहां एक जोड़ा स्टेज पर खुले आम चुदाई कर रहा था जिसे देख कर उसे जोश आ गया था; लेकिन यहाँ तो उसके पति का लंगोटिया यार था जिसके सामने वो नंगी खड़ी थी और वो अपनी पत्नी से लंड चुसवाते हुए उसके नंगे बदन को निहार रहा था।
पहली बार अपने बचपन के दोस्त की नंगी बीवी को देखते हुए मोहन के लंड को लोहे की रॉड बनने में देर नहीं लगी। उसने संध्या को वहीँ बिस्तर पर पटका और उसकी कमर के नीचे तकिया लगा कर उसे चोदने लगा। संध्या के दोनों पैरों को उसने अपने हाथों से पकड़ रखा था और खुद घुटने मोड़ कर बिस्तर पर बैठे बैठे उसे चोद रहा था।
प्रमोद और शारदा कुछ देर तक तो उनकी चुदाई देखते रहे फिर प्रमोद संध्या के बाजू में पीछे दीवार पर तकिया लगा कर अधलेटा सा बैठ गया और शारदा को अपना लंड चूसने के लिए कहा। पहले तो कुछ देर उसने बिस्तर के किनारे बैठ कर प्रमोद का लंड चूसा लेकिन फिर सुविधा के हिसाब से बिस्तर पर पैर मोड़ कर बैठी और झुक कर चूसने लगी। ऐसे में उसकी गांड मोहन की आँखों के ठीक सामने थी और दोनों जंघाओं के बीच उसकी चिकनी मुनिया भी झाँक रही थी।
मोहन कभी शारदा की गांड और चूत को देखता तो कभी उसके झूलते मम्मों को। संध्या का ध्यान काफी देर से मोहन की नज़रों पर था। उसने भी सोचा क्यों ना वो कोई शरारत करे। उसने अपना सर प्रमोद की ओर घुमाया और जैसे ही प्रमोद ने उसकी ओर देखा, संध्या ने अपने हाथों से अपने स्तनों को सहलाते हुए आँखों से उनकी ओर इशारा किया और फिर अपने होंठों से एक हवाई चुम्बन प्रमोद की ओर फेंका।
प्रमोद इस मादक आमंत्रण के सम्मोहन में बंध कर जैसे खुद-ब-खुद संध्या की ओर झुका और उसके रसीले आमों का रस चूसने लगा। शारदा तो प्रमोद के लंड पर झुकी थी इसलिए देख नहीं पाई कि अभी अभी क्या हुआ लेकिन इस हरकत ने मोहन का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। उसकी आँखों के सामने उसका दोस्त उसकी बीवी के स्तनों को मसलते हुए चूस रहा था। मोहन की उत्तेजना और बढ़ गई और उस से रहा नहीं गया। उसने भी शारदा की गांड पर हाथ फेरते हुए एक उंगली उसकी भीगी-भीगी चुनिया-मुनिया के अन्दर सरका दी।
शारदा को तो जैसे करंट लग गया। पहले तो वो कुछ क्षणों के लिए जैसे मदहोशी के आगोश में समां गई लेकिन जैसे ही वो मदहोशी टूटी उसे याद आया कि उसके पति ने वादा किया था कि उसके अलावा शारदा को कोई नहीं चोदेगा और वो अचानक उठ कर बैठ गई और गुस्से से मोहन की ओर मुड़ी…
शारदा- आपकी हिम्म… त…
लेकिन तभी उसे एहसास हुआ कि उसने अभी अभी क्या देखा था। उसने अपना सर वापस प्रमोद की ओर घुमाया और देखा कि वो अभी भी संध्या का स्तनपान करने में व्यस्त था।
शारदा- अब समझ आया। यही चाहिए था ना आपको? तो फिर मेरी क्या ज़रूरत थी। मुझे अपने चरित्र पर कोई दाग नहीं लगवाना; आपको जो करना है कीजिये; मैं मना नहीं करती लेकिन मुझे इस सब में शामिल नहीं होना है। मैं जा रही हूँ। आप लोग मज़े करो।
इस से पहले कि प्रमोद सम्हाल पाता या समझ पाता कि क्या हुआ है, शारदा बाहर निकल गई।
प्रमोद- क्या हुआ यार, अचानक से इतना क्यों भड़क गई। अच्छा नहीं लगा तो मना कर देती।
मोहन- नहीं यार! भाभी भड़कीं तो मेरी हरकत से थी फिर तेरी हरकत देख के उनका गुस्सा बेकाबू हो गया।
प्रमोद- तुझे तो मैंने बताया था ना कि वो मेरे अलावा किसी से नहीं चुदवाएगी फिर तूने हरकत की क्यों?
मोहन- नहीं यार, मेरा चोदने का कोई इरादा नहीं था। वो तो तुझे संध्या के बोबे चूसते देखा तो सोचा छूने में क्या हर्ज़ है तो मैंने एक उंगली भाभी की चूत में डाल दी पीछे से, ये सोच के कि उनको भी थोड़ा मज़ा आ जाएगा।
प्रमोद- अरे यार! गलती मेरी ही है। उसने कहा था कि उसे मेरे अलावा कोई हाथ नहीं लगाएगा और मैंने तुझे बोल दिया कि मेरे अलावा कोई नहीं चोदेगा। अब तो ये ग़लतफ़हमी महंगी पड़ गई। खैर तुम अपनी चुदाई खत्म करो मैं जा के देखता हूँ मना सकता हूँ या नहीं अब उसको। आधे घंटे में वापस ना आऊं तो फिर इंतज़ार मत करना।
मोहन और संध्या का तो मन फीका पड़ गया था, तो उन्होंने फिर आगे चुदाई नहीं की। प्रमोद ने भी शारदा को मानाने की कोशिश की लेकिन उसने बात करने से साफ़ इन्कार कर दिया। प्रमोद ने फिर वापस जाना सही नहीं समझा, वो वहीं शारदा के साथ चिपक कर सो गया।
उधर मोहन-संध्या ने भी कुछ समय तक इंतज़ार किया फिर वो भी सो गए। अगली सुबह दोनों जल्दी निकल गए क्योकि पंकज को उसकी दादी के भरोसे छोड़ कर आए थे तो ज्यादा देर रुक नहीं सकते थे।
सामूहिक चुदाई की पहली कोशिश नाकाम हो चुकी थी। आगे भी इसके हो पाने के कोई आसार नज़र नहीं आ रहे थे। आखिर हर किसी को अपनी ज़िन्दगी में कोई तो नया रंग भरना ही था। प्रमोद और मोहन दोनों अपने अपने तरीके से कोशिश करने लगे।
प्रमोद ने अपनी उन ब्लू फिल्म वाली कैस्सेट्स का सहारा लिया जो वो एम्स्टर्डम से लाया था, लेकिन मोहन के लिए अब कुछ नया करने को बचा नहीं था। पंकज अभी छोटा था उसके सोने तक वैसे भी मोहन कुछ कर नहीं पाता था और देर रात तक इतना समय होता नहीं था कि कुछ खास किया जा सके।
धीरे धीरे मोहन और संध्या का काम जीवन नीरस होने लगा था।
लेकिन प्रमोद के अभी कोई बच्चे नहीं थे उसने शारदा के साथ ब्लू फिल्म देखना शुरू किया। हालाँकि शारदा विवाहेतर संबंधों के पक्ष में नहीं थी फिर भी पता नहीं क्यों उसे 1974 में बनी इमैन्युएल (Emmanuelle) नाम की फिल्म बहुत पसंद आई। उसमें भी नायिका का पति उसे मज़े करने के लिए प्रोत्साहित करता रहता था। लेकिन शायद जो उसे पसंद आया था वो उस नायिका के कामानंद का प्रदर्शन था।
इस फिल्म का कई भाग थे और कई महीनों तक शारदा बस उन्ही को देखने की माँग करती रहती थी। आखिर एक दिन प्रमोद के कहने पर उन्होंने 1976 में बनी ऐलिस इन वंडरलैंड देखी। ये एक तरह से हास्य फिल्म थी। सेक्स में कॉमेडी का मिलना ही एक अलग अनुभव था उस पर हिंदी फिल्मों की तरह गाने भी। चुदाई करते करते गाना गाते कलाकार सोच कर ही हँसी आती है। ये शारदा ही नहीं बल्कि प्रमोद के लिए भी एक नया अनुभव था।
लेकिन इस फिल्म से शारदा को एक और नई बात सीखने को मिली जो उसने पहले कभी सपने भी नहीं सोची थी। और वो थी रिश्तों में चुदाई। इस फिल्म में ऐलिस, एक जुड़वां भाई-बहन से मिलती है जिनका नाम ट्विडलीडी और ट्विडलीडम था। वो बच्चों की तरह खेलते खेलते चुदाई करते रहते हैं। शारदा को ये बात अजीब सी लगी।
शारदा- इन्होंने ऐसा क्यों दिखाया? भाई-बहन भी कभी ऐसा करते हैं क्या!
प्रमोद- ज़्यादातर नहीं करते। लेकिन शारदा, दुनिया बहुत बड़ी है हर तरह के लोग हैं। कुछ लोग करते भी होंगे।
शारदा- पता नहीं। मुझे तो नहीं लगता। वैसे भी ये तो मजाकिया फिल्म है वो भी काल्पनिक दुनिया के बारे में इसलिए दिखा दिया होगा।
प्रमोद- तुमको ऐसा लगता है तो फिर मैं तुमको एक और फिल्म दिखाता हूँ। मैंने भी नहीं देखी है लेकिन पोस्टर देख कर ही समझ गया था कि उसमें क्या है।
शारदा- क्या नाम है उस फिल्म का?
प्रमोद- टैबू
शारदा- मतलब?
प्रमोद- वर्जित।
यह शायद दुनिया की पहली फिल्म थी जिसमें माँ-बेटे के बीच के कामुक रिश्ते को इतनी गहराई से दिखाया था। फिल्म में माँ-बेटे की चुदाई देख कर तो शारदा थर थर कांपने लगी, वो दृश्य उसके सेक्स को झेल पाने की मानसिक शक्ति से बहुत ऊपर था; उसके हाथ पैर ढीले पड़ गए और दिल की धड़कन राजधानी एक्सप्रेस के साथ रेस लगाने लगी।
उस दिन शारदा चुदाई के समय एक लाश की तरह पड़ी रही लेकिन जो अनुभव उसकी चूत को हुआ वो शायद पहले कभी नहीं हुआ था। सच है… सेक्स, शरीर का नहीं दिमाग का खेल है।
प्रमोद और शारदा ने जब ये ब्लू फिल्में देखना शुरू किया तब इस सब के बिलकुल विपरीत मोहन और संध्या की आँखों से नींद गायब थी और वो एक रात बिस्तर पर पड़े पड़े अपने नीरस काम-जीवन पर चर्चा कर रहे थे। वही पुराना घिसा-पिटा चुदाई का खेल खेलने में अब उन्हें कोई रूचि नहीं रह गई थी।
संध्या- देखो क्या से क्या हो गया। कहाँ तो आप प्रमोद के साथ मज़े कर लेते थे और कहाँ अब मेरे होते हुए भी कुछ नहीं कर पा रहे।
मोहन- तब तो माँ की चुदाई देख कर मस्ती करते थे अब अकेले अकेले मज़ा नहीं आ रहा। प्रमोद की बीवी ने भी मना कर दिया नहीं तो अपनी ज़िन्दगी ऐश में कटती।
संध्या- क्या कहा आपने? माँ की चुदाई?
मोहन तो संध्या को पूरी कहानी बताई कि कैसे वो अपनी माँ और प्रमोद के पापा की चुदाई देखते थे और दरअसल कैसे उनके आपस में मुठ मारने की शुरुआत भी उसकी माँ की वजह से ही हुई थी।
यह सब सुनते सुनते संध्या के दिमाग में एक खुराफात आई।
संध्या- प्रमोद के पापा तो मम्मी को अब भी चोदते होंगे। क्यों ना हम भी उनकी चुदाई देख देख के चुदाई करें?
मोहन- नहीं यार, अब वो सुराख से देख कर मज़ा नहीं आयेगा, और वैसे देखते देखते तुमको कैसे चोद पाऊंगा।
संध्या- ये तुम्हारी माँ के बेडरूम और हमारे बेडरूम के बीच की दीवार में एक तरफ़ा आईना लगवा लें तो कैसा रहेगा?
मोहन- हम्म! आईडिया तो अच्छा है लेकिन माँ यहाँ आई तो उसे दिख जाएगा कि उस आईने से हमें सब दीखता है। एक मिनट सोचने दो।
आखिर सोच समझ कर सही प्लान मिल ही गया। सबसे पहले अपने बेडरूम को नया बनाने की बात की गई और फिर मोहन ने कहा कि हम अपने आराम के साथ साथ माँ को भी वही आराम देंगे और इस तरह दोनों बेडरूम को फिर से बनवाने का काम शुरू किया। दोनों बेडरूम के बीच की दीवार में दोनों तरफ एक जैसे आईने लगवाए गए जिनके बीच दीवार नहीं थी। पंकज के लिए एक छोटा बिस्तर बनवाया गया जो एक पार्टीशन के उस तरफ रखा था जिस से चुदाई के वक़्त कोई बाधा ना हो।
दोनों बेडरूम के दर्पण एक दम सामान्य दर्पण ही दिखाई देते थे लेकिन मोहन के बेडरूम के दर्पण को सरका कर आसानी से हटाया जा सकता था। उसके बाद केवल माँ के बेडरूम का दर्पण लगा रहता जिसमें से मोहन के तरफ से सब साफ़ दिखाई देता था। ये बात मोहन ने संध्या को भी नहीं बताई थी कि माँ के तरफ वाला दर्पण भी हटाया जा सकता था लेकिन उसको खोलने की कुण्डी प्रमोद के बेडरूम की ही तरफ थी।
तो अब सबके सोने के बाद मोहन के बेडरूम का दर्पण हटा दिया जाता और वो खिड़की अब एक लाइव टीवी बन जाती लेकिन अक्सर उस पर एक ही बोरिंग का कार्यक्रम चल रहा होता था जिसमें मोहन की माँ सोती हुई दिखाई देती थी। लेकिन कभी कभी मोहन और संध्या की किस्मत अच्छी होती तो उस पर लाइव ब्लू फिल्म चलती थी जिसकी हीरोइन मोहन की माँ होती थी।
कई महीनों तक मोहन और संध्या ने बड़े मज़े किये. संध्या को तो बड़ा जोश आ जाता था और वो मोहन की माँ को रंडी, छिनाल और पता नहीं क्या कह कर चिढ़ाती थी कि देख कैसे तेरी माँ अपने यार से चुदा रही है।
मोहन को भी इस बात से और जोश आता और वो संध्या को दुगनी ताकत से चोदता। मोहन और संध्या के काम-जीवन में फिर से एक नई ऊर्जा आ गई थी।
लेकिन ये सब ज्यादा समय नहीं चल पाया। एक दिन जब प्रमोद के पापा सुबह खेत पर घूमने गए तो वहां उनको सांप ने काट लिया और जब तक कोई उनको वहां बेहोश पड़ा देख पता बहुत देर हो चुकी थी। अस्पताल जाते जाते ही उनकी मौत हो गई। माहौल थोड़ा ग़मगीन हो गया और इस बीच किसी के दिमाग में ये बात नहीं आई कि अब मोहन और संध्या को उनकी लाइव ब्लू फिल्म देखने को नहीं मिलेगी।
ग़म और ख़ुशी रात और दिन की तरह होते हैं। एक जाता है तो दूसरा आता है। अगले ही महीने शारदा ने बताया कि वो गर्भवती है। प्रमोद को लगा कि शायद उसके बाबूजी उसके बेटे के रूप में वापस आने वाले हैं। सारे ग़म फिर खुशी में बदल गए।
लेकिन मोहन और संध्या के लिए तो सब कुछ फिर से नीरस हो गया था। प्रमोद के ऐश भी खत्म होने ही वाले थे क्योंकि ना केवल शारदा गर्भवती होने के कारण अब पहले जैसे चुदा नहीं सकती थी बल्कि उसने उन सब ब्लू फिल्मों को भी ताले में बंद कर दिया था क्योंकि उसे लगता था कि इस सब का आने वाले बच्चे पर गलत असर पड़ेगा।
जहाँ चाह वहां राह … नदी अपना रास्ता खुद ढूँढ लेती है। संध्या ने मोहन को एक तीर से दो निशाने लगाने की सलाह दी।
संध्या- देखो जी, ऐसे वापस नीरस होने से कोई फायदा नहीं है। उधर शारदा भी पेट से है। मेरे टाइम पर प्रमोद भाईसाहब ने आपका साथ दिया था। अब आप उनका साथ दे दो…
मोहन- साथ देने का वादा तो तूने भी किया था।
संध्या- अरे! अब आप कहोगे तो मैं मना करुँगी क्या। आप जाकर निमंत्रण तो दो।
मोहन- चुदाई निमंत्रण? हे हे हे!!!
मोहन जब शहर गया तो प्रमोद की दुकान पर जा कर उसने अपनी बात उसे बता दी और कह दिया कि जब मन करे आ जाना। प्रमोद ने हमेशा की तरह पूरी ईमानदारी के साथ शारदा से पूछ लिया।
प्रमोद- मोहन आया था कुछ काम से तो आधे घंटे दुकान पर बैठ कर गया। कह रहा था कि संध्या पेट से थी तो तुमने बड़ा साथ दिया था। अब मैं चाहूँ तो वो मेरा साथ दे सकता है।
शारदा- हाँ तो चले जाओ… और अगर आपके दोस्त को दिक्कत ना हो तो संध्या के साथ भी कर लेना जो करना हो।
प्रमोद- अरे नहीं, तुमको तो वो पसंद नहीं था ना। मैं उसके साथ नहीं करूँगा।
शारदा- नहीं नहीं, वो तो मुझे कोई हाथ लगाए ये पसंद नहीं है। आपको अच्छा लगता है ये सब तो मैं क्यों आपकी तमन्नाओं के रास्ते का पत्थर बनूँ।
प्रमोद- तुमको पक्का कोई समस्या नहीं है ना?
शारदा- मुझे क्या समस्या होगी? बल्कि मैं तो कहती हूँ ऐसे जम के चोदना उसको कि वो भी याद रखे कि शारदा का पति क्या मस्त चोदता है।
प्रमोद को तो मन ही मन मज़ा आ गया। पहली बार वो किसी पराई नारी को चोदने जा रहा था वो भी अपने बचपन के यार के साथ मिल कर। आखिर अगले रविवार की दोपहर वो घर से निकला तब भी शारदा ने कह कर भेजा कि अच्छे से चोदना, जल्दी झड़ के मेरी नाक मत कटा देना।
प्रमोद शाम तक गाँव पहुँच गया। खाना खा पीकर सब सोने चले गए और प्रमोद, मोहन के साथ बैठ कर दारू पी रहा था। अभी एक-एक पैग ही लगाया था कि संध्या ने आकर कहा कि पंकज सो गया है।
दोनों मोहन के बेडरूम में चले गए। संध्या एक पतली सी नाइटी पहने बिस्तर के बीचों बीच लेटी थी लेकिन उसने अपना ऊपरी हिस्सा कोहनियों के बल उठा रखा था। मोहन ने अपना शर्ट निकाल फेंका और केवल चड्डी में संध्या के पीछे जाकर बैठ गया। संध्या ने अपना सर उसकी गोद में रख दिया।
मोहन ने अपने दोनों हाथ उसकी नाइटी के अन्दर डाल कर कुछ देर उसके स्तनों को वैसे ही सहलाया फिर धीरे से नाइटी की डोरियाँ कन्धों पर से नीचे सरका कर उसे कमर तक खिसका दिया। बाकी संध्या ने खुद नाइटी कमर से नीचे निकाल कर फेंक दी। अब वो पूरी नंगी थी। प्रमोद ने सोचा नहीं था कि सबकुछ इतना जल्दी हो जाएगा। वो तो अभी शर्ट ही निकाल रहा था और उसका तो अभी ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ था।
मोहन- आओ ठाकुर! भोग लगाओ।
प्रमोद- नहीं यार तुम्हारी पत्नी है, शुरुआत तुम ही करो।
संध्या- सुनो जी, आप ही ज़रा चाट के गीली कर दो। तब तक मैं प्रमोद भाई साहब का खड़ा करती हूँ। भाई साब आप इधर आइये।
मोहन नीचे जा कर संध्या की चूत चाटने लगा और संध्या ने प्रमोद की चड्डी नीचे खींच कर निकाल दी। उसका लंड बड़ा तो हो गया था लेकिन अभी खड़ा नहीं हुआ था। संध्या ने उसे गपाक से अपने मुँह में लिया और चूसने लगी। पता नहीं वो संध्या की चूत की खुशबू थी या उसके प्रमोद के लंड को चूसने का दृश्य जिसने मोहन का लंड जल्दी ही कड़क कर दिया। मोहन ने तुरंत उठ कर अपनी चड्डी उतारी और वहीं बैठ कर संध्या को चोदना शुरू कर दिया।
तभी संध्या उठी और कुश्ती के किसी दाव की तरह मोहन को चित करते हुए उसके ऊपर चढ़ कर बैठ गई। प्रमोद को अचम्भा ये हो रहा था कि इस पूरे दाव में उसने मोहन के लंड को अपनी चूत से निकलने नहीं दिया।
संध्या- वो क्या है ना भाई साब, लेटे-लेटे लंड चूसना थोड़ा मुश्किल रहता है। आइये अभी अच्छे से चूस के दो मिनट में आपके लंड को लौड़ा बनाती हूँ।
संध्या किसी घुड़सवारी करती हुई लड़की की तरह उछल उछल कर मोहन को चोद रही थी और एक हाथ से पकड़ कर प्रमोद का लंड भी चूस रही थी। पता नहीं क्या सच में वो प्रमोद को बेहतर चूस पा रही थी या फिर उसके उछलते हुए स्तनों का वो मादक दृश्य था, या फिर शायद संध्या का मोहन पर हावी होने का वो अंदाज़ जो प्रमोद को बड़ा उत्तेजक लगा था; जो भी जो प्रमोद का लंड अब कड़क होकर झटके मारने लगा था। संध्या ने प्रमोद को छोड़ा और झुक कर अपने स्तन मोहन की छाती पर टिका दिए।
संध्या- भाईसाब, आप एक काम करो पीछे वाले छेद में डाल दो। अपने दोस्त की बीवी की गांड मार लो आज!
प्रमोद- यार तू डाल ले ना पीछे, मैं आगे आ जाता हूँ। मुझे पीछे का कोई आईडिया नहीं है।
मोहन- आईडिया तो मुझे भी नहीं है यार। मैंने भी आज तक इसकी गांड नहीं मारी है। तू ही कर दे उद्घाटन।
संध्या- हाँ हाँ भाईसाब जल्दी डाल दो। बड़े दिन से मन था आगे-पीछे एक साथ लंड लेने का। एक फोटो में देखा था तब से सपने देख रही हूँ। आज आप मेरा सपना सच कर ही दो।
प्रमोद ने थोड़ा थूक अपने लंड पर लगाया और थोड़ा संध्या की गांड पर और लंड को उसकी गांड के छेद पर रख कर दबा दिया। लंड की मुंडी तो आसानी से चली गई लेकिन तभी संध्या की गांड का छल्ला कस गया और उसका लंड ऐसे फंस गया कि ना अन्दर जा रहा था ना बाहर। थोड़ी देर तक कोशिश करने के बाद कहीं जा कर प्रमोद अपने लंड को पूरा अन्दर घुसा पाया।
अब संध्या ने कमर हिलाना शुरू किया चूत का लंड अन्दर जाता तो गांड का बाहर आता और जब पीछे धक्का मरती तो चूत का लंड बाहर की ओर निकलता और गांड वाला अन्दर घुस जाता।
प्रमोद और मोहन को कुछ करना ही नहीं पर रहा था। अकेली संध्या दो-दो लंडों को एक साथ चोद रही थी। आखिर उसकी उत्तेजना चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई, वो कुछ देर तक बहुत तेज़ी से स्टीम इंजन की रॉड के जैसे आगे पीछे हुई और फिर झड़ गई।
जब संध्या के धक्के बंद हुए तो मोहन और प्रमोद ने अपने लंड आगे पीछे करना शुरू किया। अब जब लंड आगे पीछे हुए तो दोनों को एक दूसरे के लंड का अहसास भी हुआ। पुरानी यादें भी ताज़ा हो गईं जब वो बचपन में लंड से लंड लड़ाते थे। आखिर दोनों से इस नए अनुभव का रोमांच बर्दाश्त नहीं हुआ और जल्दी ही दोनों संध्या की चूत और गांड में ही झड़ गए।
उसके बाद एक बार मोहन ने अकेले गांड मारने का अनुभव लिया और प्रमोद ने खड़े खड़े संध्या को चोदा ये देख कर मोहन का लंड भी खड़ा हो गया और संध्या प्रमोद के गले में बाँहें डाल कर और उसकी कमर को अपनी टांगों में जकड़ कर लटक गई फिर पीछे से मोहन ने उसकी गांड में अपना लंड डाल दिया और फिर दोनों ने मिलकर संध्या को अपने दो-दो लंडों पर उछाल-उछाल कर चोदा।
आखिर संध्या को बीच में सैंडविच बना कर तीनों नंगे ही सो गए। सुबह प्रमोद की नींद जल्दी खुल गई थी। उसने संध्या के अंगों से खेलना और सहलाना शुरू किया तो संध्या भी उठ गई। उसने प्रमोद को अपने साथ आने को कहा। दोनों नंगे ही कमरे से बाहर आ गए। प्रमोद को समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है, संध्या चाहती क्या है। उसने धीरे से खुसुर-फुसुर बात करने का सोचा।
प्रमोद- हम कहाँ जा रहे हैं?
संध्या- मेरी सासू माँ के कमरे में।
प्रमोद- पागल हो क्या? मुझे ऐसे नंगे वहां क्यों ले जा रही हो?
संध्या- माँजी इस समय नहा रही होतीं हैं मेरी बड़ी तमन्ना थी उनके नहाते टाइम उनके बिस्तर में चुदवाने की, लेकिन कभी नींद ही नहीं खुलती थी।
संध्या ने धीरे से दरवाज़ा थोड़ा सा खोल कर देखा। अन्दर कोई नहीं था। शायद संध्या की सासु अटैच्ड बाथरूम में नहाने गई हुईं थीं। संध्या ने दरवाज़ा पूरा खोल कर खुला ही छोड़ दिया और प्रमोद को अन्दर बुला कर जल्दी से उसका लंड चूसने लगी। अन्दर से नल के चलने की आवाज़ आ रही थी। प्रमोद की धड़कन डर के मारे बहुत तेज़ हो गई थी। शायद इसी वजह से उसका लंड भी जल्दी खड़ा हो गया।
संध्या जल्दी से लेट गई और अपनी टांगें चौड़ी कर दीं। उसकी चूत भी पूरी गीली हो गई थी। प्रमोद ने बिना समय गंवाए अपना लंड उसकी चूत में पेल दिया और संध्या के ऊपर लेट कर उसे जल्दी जल्दी चोदने लगा। तभी अन्दर से मग भर भर के पानी डालने की आवाज़ आने लगी।
ॐ गंगे च यमुने! चैव गोदावरी! सरस्वति! नर्मदे! सिंधु! कावेरि!…
संध्या- जल्दी चोदो माँ जी आने वाली हैं।
प्रमोद ने चुदाई की रफ़्तार इतनी बढ़ा दी कि शायद कोई और टाइम होता तो छह कर भी इतना तेज़ नहीं चोद पाता। तभी बाथरूम के दरवाज़े के खुलने की आवाज़ आई और प्रमोद ने आव देखा ना ताओ संध्या को वैसे ही गोद में उठा कर बाहर की तरफ भगा। इधर भी भाग ही रहा था कि उसके लंड ने संध्या की चूत में अपना लावा उगलना शुरू कर दिया। आखिर उसने मोहन के कमरे में जा कर ही सांस ली। संध्या को बिस्तर पर पटक के खुद भी उसी के ऊपर लेट गया। उसका लंड अभी भी संध्या की चूत में था। इस सब में मोहन की भी नींद खुल गई थी।
मोहन- क्या हुआ सुबह सुबह चुदाई शुरू कर दी? और ये दरवाज़ा क्यों खोल रखा है। देखो माँ के उठने का टाइम हो गया है कहीं इधर आ गईं तो लफड़ा हो जाएगा।
इस बात पर दोनों हंस पड़े। प्रमोद का लंड अब तक अपनी सारी मलाई संध्या की कटोरी में खाली कर चुका था। वो उठा और जा कर दरवाज़ा बंद कर दिया। फिर प्रमोद ने बताया कि वो अभी क्या गुल खिला के आये हैं।
यह सुन कर तो मोहन के भी दिल की धड़कन बढ़ गई।
खैर सबने उठ कर नाश्ता किया और प्रमोद को विदा किया। प्रमोद जब घर पहुंचा तो शारदा उसी की राह देख रही थी।
शारदा- क्या क्या किया फिर रात को?
प्रमोद- मोहन और मैंने संध्या को खूब चोदा और गांड भी मारी। यहाँ तक कि दोनों काम साथ में भी किये, एक चोद रहा था और एक गांड मार रहा था। खूब गर्म सेक्स का मजा लिया.
शारदा- आप झूठ बोल रहे हो ना? मुझे चिढ़ाने के लिए?
प्रमोद- झूठ क्यों बोलूँगा? तुम्ही ने तो कहा था ना कि नाक मत कटाना। तो मैंने संध्या को मोहन से ज्यादा ही चोदा होगा। मज़ा आ गया उसको।
शारदा- मुझे आपसे ये उम्मीद नहीं थी।
इतना कह कर शारदा दुखी होकर बेडरूम में चली और दरवाज़ा अन्दर से बंद कर लिया। प्रमोद ने बाहर से समझाया कि उसके कहने ही पर तो वो गया था अगर वो मन कर देती तो नहीं जाता। आखिर जब कुछ नहीं हुआ तो वो चुपचाप दूकान पर चला गया। शाम को आया तो शारदा सामान्य थी। उसने अपने व्यवहार के लिए माफ़ी भी मांगी और कहा कि ये पहली बार था इसलिए वो बर्दाश्त नहीं कर पाई लेकिन आगे से वो ऐसा नहीं करेगी।
अगले कुछ महीनों में प्रमोद 2-4 बार गाँव गया लेकिन उसको समझ आ गया कि शारदा को ये पसंद नहीं आ रहा था। वो कुछ ना भी कहती तो उसके व्यवहार से समझ आ जाता कि वो इस सब से खुश नहीं है। आखिर समय आने पर शारदा ने एक बेटी को जन्म दिया जिसका नाम उन्होंने सोनाली रखा। प्रमोद ने शारदा को वादा किया कि अब वो संध्या को चोदने गाँव नहीं जाएगा।
मोहन और प्रमोद अक्सर मिलते रहते थे। कभी कभी संध्या भी आ जाती थी और कभी कभी छुट्टियों में प्रमोद का परिवार भी गाँव जाता था। दोनों परिवारों की दोस्ती खत्म नहीं हुई और ना ही कम हुई लेकिन उस दोस्ती में से सेक्स का जो हिस्सा था वो खत्म हो गया था।
प्रमोद के इस फैसले के बाद प्रमोद ने तो एक सामान्य जीवन जीने का निर्णय ले लिया था लेकिन मोहन और संध्या की हवस अभी खत्म नहीं हुई थी और उनके लिए ऐसा जीवन बड़ा ही नीरस था।
बड़ी मुश्किल से एक ही साल गुज़रा था कि संध्या का दिमाग फिर कोई नई तरकीब ढूँढने में लग गया जिस से वो अपनी जिंदगी में फिर से वासना के नए नए रंग भर सके।
एक बार जब मोहन किसी काम से एक हफ्ते के लिए बाहर गया हुआ था तो दो दिन में ही संध्या की हालत खराब हो गई क्योंकि अब तो वो सीधी सच्ची चुदाई भी उसे नहीं मिल रही थी। रात को उसे नींद नहीं आ रही थी।
काफी देर तक करवटें बदलने के बाद अचानक वो उठ गई और बेचैनी से कमरे में इधर उधर घूमने लगी। फिर ना जाने उसके मन में क्या आया कि उसने दीवार के उस दर्पण को सरकाया और दूसरे कमरे में देखने लगी।
मोहन की माँ दूसरी ओर करवट ले कर सो रही थी। उस खिड़की के एक तरफ़ा कांच से देखते हुए संध्या उन यादों में खो गई जब वो इसी खिड़की से मोहन की माँ को चुदते हुए देखते थे और फिर मोहन उसे दुगनी रफ़्तार से चोदता था। जब वो इन यादों से बहार निकली तो उसकी नज़र एक छोटी सी कुण्डी पर पड़ी। जिज्ञासावश जब संध्या ने उसे खींचा तो दूसरी ओर का कांच भी खुलने लगा। उसे अब तक नहीं पता था कि इस दर्पण को भी हटाया जा सकता है।
इसी बात से संध्या के मन में एक विचार आया कि जिस आग में वो जल रही है, क्या पता वही आग इस खिड़की के दूसरी ओर भी लगी हो। उसने इसी विचार को एक योजना में बदल दिया। अगले दिन संध्या की नज़र मोहन की माँ की एक एक हरकत पर थी और वो समझ गई थी कि शायद मोहन के पापा के बाद जो स्थान प्रमोद के पापा को मिल गया था वो अब खाली है।
संध्या की सासू माँ भले ही अब अधेड़ उम्र की हो गई थी लेकिन जवानी ने जैसे उसके बदन को अब तक नहीं छोड़ा था वैसे ही उसकी हसरतें भी अब तक तो जवान ही थीं। उस रात संध्या, पंकज को सुलाने के बाद अपनी सासू माँ के कमरे में गई।
संध्या- माँ जी … सो गई क्या?
माँ- नहीं बहू, इस उमर में इत्ती जल्दी काँ नींद आबे है।
संध्या- थोड़ी देर आपके पास सो जाऊं?
माँ- हओ … आजा।
संध्या जा कर मोहन की माँ के बाजू में जा कर चिपक कर सो गई।
संध्या- मेरी माँ तो बचपन में ही गुज़र गई थी। ठीक से याद भी नहीं है।
माँ- तू जाए अपनोंई घर समझ बहू।
संध्या- हाँ तभी तो आपके पास आ गई सोने … ये बता रहे थे कि ये काफी बड़े हो गए तब तक आपने इनको अपना दूध पिलाया था।
माँ- हुम्म …
संध्या- मुझे भी पिलाओ ना!
माँ- का बात कर रई है। चुप कर!
संध्या- बचपन की तो ठीक से याद नहीं है इसलिए सोचा आपको ही माँ समझ के बचपन की कमी पूरी कर लूँ। लेकिन …
माँ- ऐसी है तो पी ले … जे ले!
सासू माँ ने बच्चों को पिलाते हैं वैसे अपने ब्लाउज का नीचे से बटन खोल के अपना एक स्तन निकाल कर संध्या की ओर बढ़ा दिया। संध्या भी एक हाथ से पकड़ कर उसे चूसने लगी। एक औरत अच्छी तरह जानती है कि कैसे एक बच्चा दूध पीता है और किस तरह चूसने से उत्तेजना बढ़ती है। मोहन की माँ पहले ही काफी समय से वासना की आग में जल रही थी। संध्या ने उसे और भी भड़का दिया था।
उनकी धड़कन बढ़ गई थी और उनको होश ही नहीं रहा कि कब संध्या ने उनके ब्लाउज का बाकी बटन भी निकाल दिए और अब वो दोनों स्तनों को बारी बारी से चूसने लगी थी। जिस भी स्तन को वो ना चूस रही होती उसके चुचुक को अपने थूक से गीले किये हुए अंगूठे से सहलाती रहती। जिससे ऐसा आभास होता जैसे उनके दोनों चूचुक साथ में चूसे जा रहे हैं।
माँ- का कर रई है बहू … अब सेन (सहन) नईं हो रओ।
संध्या- माँ जी … मैं भी एक औरत हूँ मैं आपकी समस्या समझ सकती हूँ। आप कहें तो कुछ मदद करूँ आपकी इस तड़प को दूर करने में।
माँ- कर दे बहू … कर दे …
संध्या ने मोहन की माँ की वासना की उस आग को भड़का दिया था जो इतने समय से वक्त की राख में दबने सी लगी थी। संध्या ने सासू माँ का घाघरा उठाया और उनकी दोनों टांगें मोड़ कर फैला दीं। उन दोनों मुड़ी हुई टांगों को बांहों में भर के संध्या ने अपनी उंगलियों से माँ की चूत की फांके अलग कीं और चूत का दाना अपने होंठों में दबा कर चूसने लगी।
मोहन की माँ, कामोद्दीपन के एक अलग ही स्तर पर पहुँच गई थी। अव्वल तो ये कि उसकी चूत एक साल से भी ज्यादा समय से अनछुई थी, उस पर पहले भी कभी किसी ने उसकी चूत को मुँह नहीं लगाया था। उसकी चूत हमेशा चोदी ही गई थी। जिंदगी में पहली बार ये चूत चूसी जा रही थी। सासू माँ की कमर ऊपर नीचे होने लगी और आनंद के मारे वो छटपटा रही थी। अगर संध्या ने उनकी टांगें अपनी बाहों में कस कर पकड़ी ना होतीं तो शायद संध्या के होंठ अब तक चूत से चिपके ना रह पाते।
काफी देर तक ऐसे ही छटपटाने के बाद आखिर सासू माँ ढीली पड़ गईं। संध्या ने भी अब उनको छोड़ दिया और उनके बाजू में जा कर लेट गई। थोड़ी देर बाद जब सासू माँ की साँस में साँस आई तो उन्होंने संध्या को गले से लगा लिया।
इसके बाद तो सास-बहू ना केवल सहेलियों की तरह रहने लगीं बल्कि सासू माँ ने संध्या को और भी नई नई बातें सिखाने के लिए कहा क्योंकि उन्हें लगा हो सकता है जैसे वो चूत चटवाने के अनुभव से अब तक वंचित थीं वैसे ही और भी कुछ हो जो वो ना जानतीं हों।
संध्या ने मोहन के आने से पहले सासू माँ को आधुनिक काम शास्त्र का पूरा प्रशिक्षण दे डाला जिसमें घर पर सारा समय नंगे रहने से लेकर खुले आसमान के नीचे चुदाई के मज़े तक और मुख मैथुन से लेकर गुदा मैथुन (गांड मराई) तक के सारे गुर शामिल थे। संध्या ने भी समलैंगिक संभोग के सारे प्रयोग जो वो शारदा के साथ नहीं कर पाई थी वो सब अपनी सास के साथ कर लिए।
एक रात दोनों सास-बहू एक दूसरे की चूत चाट कर झड़ गईं और नंगी चिपक कर पड़ी पड़ी बातें करने लगीं।
माँ- बहू … सच्ची कऊँ … तूने तो अच्छेई मजा करा दए।
संध्या- हुम्म … अब साल भर से ऊपर हो गया था आपको चुदवाए हुए तो।
माँ- हम्म … जा तो सच्ची कई …
अचानक सासू माँ को होश आया कि उन्होंने गलत बात पर हामी भर दी है। पहले तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई लेकिन फिर थोड़ा साहस जुटा कर सोचा अब इसके साथ इतना सब हो गया तो क्या शर्माना।
माँ- तोय काँ से पता के १ सालई हुओ?
संध्या- आपको लगता है प्रमोद भाईसाब के बाबूजी के बारे में किसी को नहीं पता?
माँ- अब बात करन बाले तो तेरी बी पता नई का का केत थे।
संध्या- मेरी जो कहते थे वो तो मैंने सुहागरात पर ही इनको सब बता दिया था।
उसके बाद संध्या ने अपनी सासू माँ को वो सब बातें बता दीं जो उसने सुहागरात पर मोहन के साथ की थीं। उसके बाद ये भी बताया कि कैसे मोहन उनकी ही कल्पना में मुठ मारना सीखा और वो प्रमोद के साथ क्या क्या करता था। लेकिन उसके आगे की सारी बातें वो छुपा गई कि कैसे उसने भी प्रमोद से चुदवाया। लेकिन ये सब सुनने के बाद सासू माँ ने जो कहा उसकी उम्मीद संध्या ने नहीं की थी।
माँ- हम्म … चूत चटावे में मजा तो भोत आबे है, पर लंड की कसर तो लंडई पूरी करे है।
संध्या- बात तो सही है। फिर प्रमोद के पापा के बाद कोई और क्यों नहीं ढूँढा?
माँ- अब बे घर के जैसेई थे। सबे पता थी कि हम उनको घर को काम कर दें हैं ते बे हमरो बहार को काम कर दें हैं। घर में आनो जानो लगो रेत थो। जा के मारे कभी कोई ने कछु नई कई। अब अलग से चुदाबे के लाने कोइए बुलाएं तो बदनामी ना होए।
संध्या- हम्म … घर की बात घर में ही रहे तो अच्छा है। सोचती हूँ कुछ अगर आपके लिए कोई इंतज़ाम हो सकता होगा तो ज़रूर बताऊँगी।
माँ- रेन दे बहू! अब जा उमर में कोन पे भरोसा करूँ। थोड़े दिन बचे हैं। बे बी निकल जे हैं।
संध्या- मैं तो बता दूँगी भरोसा करना है कि नहीं आप सोच लेना। चलो छोड़ो … अभी मैं आपको फ्रेंच किस सिखाती हूँ।
फिर बहूरानी की कामशास्त्र की कक्षा शुरू हो गई। ऐसे ही समय कब बीत गया पता ही नहीं चला।
आखिर मोहन वापस आ गया और माँ को वापस अपने कपड़े पहन कर रहना शुरू करना पड़ा। मोहन अपने साथ विडियो कैस्सेट प्लेयर ले कर आया था। दिन में सबने मिल कर प्लेयर पर माधुरी की ‘दिल’ देखी। ये प्लेयर वो प्रमोद की दूकान से ही खरीद कर लाया था। रात को जब सब सोने लगे तब मोहन ने संध्या को बताया कि प्रमोद ने उसे कुछ चुदाई वाली फिल्मो की कैस्सेट भी दिए हैं।
मोहन- प्रमोद बोला जिन जिन फिल्मों पर शारदा भाभी ने प्रतिबन्ध लगा रखा है वो सब तू ले जा तो मैं ले आया। वो यूरोप से लाया था ये सब।
संध्या- शारदा ने प्रतिबन्ध लगाया है तो फिर तो मस्त माल होगा। लगाओ लगाओ, देखते हैं। वैसे भी बहुत दिन से तुम्हारे लंड के लिए तड़प रही हूँ। मस्त चुदाई की फिल्म देख कर चुदाई करेंगे।
उन्होंने वही फिल्म लगाई ‘टैबू’ जिसमें माँ-बेटे के काम संबंधों को बड़ी गहराई से दिखाया था। मोहन और संध्या दोनों को ही इंग्लिश समझ नहीं आती थी लेकिन कैस्सेट पर जो नंबर थे उस से ये समझ आ गया था कि ये सब एक ही सीरीज की फ़िल्में हैं। फिर ये इतने गंवार भी नहीं थे कि मॉम, सन, ब्रदर और सिस्टर जैसे शब्द ना समझ पाएं। दोनों चुदाई करते करते फिल्म देख रहे थे। जल्दी ही उनको समझ आ गया कि फिल्म की हेरोइन अपने बेटे से चुदवाने के लिए तड़प रही है। वो उसे मना तो करती है लेकिन फिर एक बार चुदाई शुरू हो जाए तो फिर और चोदने को कहती है।
संध्या- देखो कैसे चोद रहा है मादरचोद अपनी माँ को।
मोहन- अरे वो मादरचोद नहीं है। उसकी माँ बेटाचोद है।
संध्या- क्या फरक पड़ता है कद्दू दराँती पे गिरे या दराँती कद्दू पे।
संध्या- तुम्हारी माँ भी लंड के लिए तड़प रही है। वो माँगे तो दोगे अपना लंड माँ की चूत में?
मोहन- ऐसी बातें ना कर पगली अभी तेरी चूत में झड़ जाऊँगा नहीं तो। बचपन से उसी के सपने देख देख के तो मुठ मारना सीखा था। लेकिन वो नहीं लेगी मेरा।
संध्या- मैं दिलवा दूँ तो?
मोहन- तो फिर जो तू माँगे वो तुझे दिलाने की ज़िम्मेदारी मेरी।
इतना कह कर मोहन ने संध्या को पूरे जोर के साथ चोदना शुरू किया और उधर फिल्म में बेटा अपनी माँ के मुँह में झड़ा और इधर मोहन संध्या की चूत में। उसके बाद फिल्म में माँ-बेटे की चुदाई के 1-2 सीन और आये और हर बार संध्या यही चिल्लाती रही- चोद ज़ोर से मादरचोद … और ज़ोर से चोद। पता नहीं वो फिल्म के हीरो को कह रही थी या मोहन को लेकिन एक बार और झड़ के दोनों सो गए।
अगले दिन जब मोहन खेत पर गया तो संध्या ने सासू माँ से बात की।
संध्या- एक लंड मिला है आपके लिए। चाहिए तो बताना?
माँ- कौन को?
संध्या- आपको लंड दिखा दूँगी। पसंद आये तब आगे की बात करेंगे।
माँ- तोय काँ से मिल गाओ। कोई भार के अदमी से तो नईं चुदा रइए तू।
संध्या- आप फिकर मत करो आपने कहा था ना बदनामी नहीं होना चाहिए, तो आप बेफिक्र रहो।
उस रात मोहन ने फिल्म का अगला पार्ट देखने की पेशकश की तो संध्या ने मना कर दिया।
संध्या- आज आप टीवी पे नहीं लाइव अपनी माँ की नंगी पिक्चर देखो।
मोहन- क्या बात कर रही है। माँ ने किसी और से चक्कर चला लिया क्या?
संध्या- ऐसा ही कुछ समझो।
इतना कह कर संध्या ने अपनी तरफ के दर्पण को खोला और बाहर चली गई। मोहन ने देखा दूसरी ओर उसकी माँ बिस्तर पर नंगी लेटी हुई थी और एक हाथ से अपनी चूत और दूसरे से अपने चूचुक मसल रही थी। मोहन से उसे ऐसा करते हुए पहली बार देखा था। मोहन को अभी कुछ पता नहीं था कि उसकी पीठ पीछे संध्या ने उसकी माँ को क्या क्या सिखा दिया था।
अचानक माँ के कमरे का दरवाज़ा खुला और नंगी संध्या अंदर आई। मोहन को तो जैसे झटका लग गया। उसके मन में यही आया कि ये संध्या क्या कर रही है है मरवाएगी क्या।
लेकिन अगले ही पल उसकी आँखों से सामने एक अलग ही नज़ारा था। संध्या और मोहन की माँ आपस में गुत्थम गुत्था हो गईं और दोनों की जीभें आपस में एक दूसरे से छेड़खानी करने लगीं। संध्या खींच कर माँ को दर्पण के पास ले आई और उसे दर्पण की ओर खड़ा करके पीछे से उसके स्तनों को मसलने लगी और फिर पीठ पर चुम्मियाँ लेते हुए नीचे की ओर जाने लगी। माँ खुद को दर्पण में नंगी देख रही थी लेकिन दूसरी ओर से मोहन अपनी माँ को पहली बार इतनी करीब से नंगी देख रहा था।
थोड़ी देर बाद संध्या ने सासू माँ को बिस्तर पर धकेल दिया और खुद उनके ऊपर चढ़ गई। दोनों एक दूसरे की चूत चाटने लगीं। संध्या ने माँ को ऐसे लेटाया था कि उनकी चूत सीधे दर्पण की दिशा में ही थी। थोड़ा चूसने के बाद संध्या ने अपने सर ऊपर किया और दर्पण की तरफ इशारा किया कि देखो और फिर माँ की चूत की फांकें खोल के मोहन को दिखाईं।
काफी देर तक चूसा-चाटी करके जब दोनों झड़ गईं तो संध्या ने सासू माँ को लंड दिखाई के बारे में याद दिलाया।
संध्या- माँ जी, मैं चलती हूँ। आपको वो लंड देखना हो तो ये दीवार पर जो दर्पण है इसको देखते रहना अब थोड़ी ही देर में इसमें लंड दिख जाएगा।
माँ- काय दुलेन? बावरी हो गई का?
संध्या ने बस हल्की सी मुस्कुराहट बिखेरी और बाहर चली गई। सासू माँ इसी असमंजस में थीं कि ये क्या मज़ाक है; दर्पण में लंड कैसे दिखेगा? यही सोचते हुए वो दर्पण के सामने जा कर खड़ी हो गईं। मोहन को लगा वो अपना नंगा रूप निहार रहीं हैं तो वो भी देखने लगा कि तभी संध्या अन्दर आई। उसने दर्पण बंद किया लेकिन बंद करते करते उसने दूसरी तरफ का दर्पण थोड़ा सा खोल दिया। दर्पण बंद होने के बाद उसने मोहन के खड़े हुआ लंड को पकड़ कर अपनी ओर खींचा।
संध्या- आजा मेरे राजा! माँ की चूत देख के खड़ा हो गया?
जब सासू माँ ने दर्पण को सरकते हुए देखा तो वो अचंभित रह गईं। उन्होंने जो थोड़ा सा खुल गया था वहां उंगलियाँ डाल कर दर्पण को पूरा सरका दिया और उसके ठीक सामने उसके नंगे बेटा-बहू थे। संध्या लंड को पकड़ कर घुटनों के बल बैठी थी। माँ को कुछ सुनाई तो नहीं दे रहा था लेकिन संध्या अपने पति के लंड से बच्चों की तरह पुचकारते हुए बात कर रही थी।
संध्या- माँ की चूत देख के खड़ा है …? चोदेगा …? मादरचोद बनना है …? ठीक है बन जाना, लेकिन अभी पहले मेरी चुदाई कर।
इतना बोल कर संध्या ने मोहन को दर्पण की तरफ घुमाया और उसके पीछे बैठ कर उसके अन्डकोषों को पकड़ कर दर्पण में दिखा कर चिढ़ाते हुए बोली कि क्या बात है आज कुछ ज्यादा ही बड़ा दिख रहा है। दरअसल उसका उद्देश्य इस लंड के दर्शन माँ को पास से कराने का था। फिर संध्या ने मोहन को बिस्तर पर ऐसे लिटाया कि उसका लंड दर्पण की ओर रहे। फिर ठीक जैसे मोहन को माँ की चूत दिखाई थी वैसे ही मोहन के मुँह पर चढ़ कर अपनी चूत चुसवाते हुए उसने मोहन का लंड चूसना शुरू कर दिया।
जब वो थोड़ा गीला हो गया तो दर्पण की तरफ देख कर उसने ऐसे इशारा किया जैसे बड़ा स्वादिष्ट लंड है। उसके बाद एक मस्त चुदाई हुई जिसमें संध्या ने मोहन के लंड का भरपूर प्रदर्शन किया। आखिर चुदवा के संध्या और मोहन सो गए और मोहन की माँ अपनी चूत रगड़ती रही। अब मोहन को सिर्फ ये पता था कि उसने उसकी माँ को देखा है लेकिन उसकी माँ ने उसे भी देखा ये उसे नहीं पता था। अगले दिन संध्या ने अपनी सासू से अकेले में बात की।
संध्या- देखा ना फिर आपने जो लंड मैंने दिखाया था। कैसा लगा?
माँ- ना बहू … मैं अपनेई मोड़ा संगे … नईं नईं … जे ना हो सके।
संध्या- आपने ही तो कहा था बात बाहर गई तो बदनामी होगी। अब ये तो घर के घर में ही है किसी को कानो कान खबर नहीं होगी। आपको इतना चाहते हैं ये … बड़े प्यार से ही चोदेंगे। इतने प्यार से तो प्रमोद के पापा ने भी नहीं चोदा होगा।
माँ- मो से नईं होएगो जे सब। तूई आ जाऊ करे एक चक्कर सोने से पेलम, उत्तोई भोत है।
रात को सोने से पहले संध्या अपनी सासू के पास गई एक बार फिर मोहन को अपनी चुसाई-चटाई का खेल दिखाया और जब सासू माँ को झड़ा के वापस आ रही थी तो सासू माँ का मन किया कि वो आज फिर उनकी चुदाई देखें। संध्या दरवाज़े तक पहुँच ही गई थी कि सासू माँ ने उसे रोका।
माँ- बहू! सुन … आज बी कांच खुल्लो छोड़ दइये नी।
संध्या- नहीं, आज खिड़की नहीं दरवाज़ा खुला छोडूंगी; आने का मन हो तो आ जाना। ज्यादा कुछ नहीं तो लंड ही चूस लेना। मैं अपनी चूत इनके मुँह पे दबा के बैठी रहूंगी तो पता नहीं चलेगा कि मैं चूस रही हूँ या तुम।
इतना कह कर संध्या चली गई।
माँ कुछ देर तक तो उम्मीद लगाए बैठी रही कि शायद दर्पण खुल जाएगा, लेकिन फिर बैचैनी से कमरे में इधर उधर नंगी ही चक्कर काटने लगी। आखिर सोचा खिड़की ना सहीं दरवाज़ा तो खुला है, क्यों ना वहीं जा कर बहू की चुदाई के दीदार कर लिए जाएं। उसने सोच लिया था कि इससे ज्यादा कुछ नहीं करेगी। बस बहू की चुदाई देखते देखते अपनी चूत में उंगली कर लेगी और वापस आ जाएगी।
मोहन के कमरे की अटैच्ड बाथरूम कुछ बड़ी थी और दरवाज़े से लगी हुई थी इस वजह से कमरे का दरवाज़ा पूरा भी खोल दो तो अन्दर का पूरा कमरा दिखाई नहीं देता था। हिम्मत करके माँ ने कमरे के अन्दर नग्नावस्था में ही प्रवेश किया और बाथरूम की दीवार के किनारे खड़े होकर अन्दर झाँका। अन्दर का दृश्य ठीक वैसा ही था जैसा संध्या ने वादा किया था।
संध्या, मोहन के ऊपर चढ़ी हुई थी और वो दोनों एक दूसरे के कामान्गों को चूस व चाट रहे थे। एक तो माँ के दिल की धड़कन तभी से बढ़ी हुई थी जब से वो नंगी अपने बेटे के कमरे में दाखिल हुई थी, ऊपर से ये दृश्य देख कर तो उसके हाथ पैर ही ढीले पड़ने लगे थे। एक तरफ़ा दर्पण के पीछे से चुदाई देखना तो लाइव टीवी जैसा था लेकिन ये सचमुच में आमने सामने का जीवंत अनुभव था।
उत्तेजना का मारे माँ की चूत से रस टपकने लगा। लेकिन अब तक भी ये उत्तेजना उसके बेटे के लिए नहीं थी। ये तो बस पहली बार था जब वो अपनी आँखों के सामने चुदाई होते देख रही थी और वो भी जब खुद वहां नंगी खड़ी थी। ये भी सच था कि उसने एक साल से भी ज्यादा समय से लंड नहीं देखा था और ऐसा जवान पहलवान लंड तो पता नहीं कब देखा था उसे याद तक नहीं था। उसकी चूत तो बस वो लंड देख रही थी। वो किसका लंड था ये ना तो उसकी चूत को दिखाई दे रहा था ना उसकी आँखों को; क्योंकि मोहन का चेहरा तो संध्या की पिछाड़ी के नीचे छिपा पड़ा था।
उत्तेजना में माँ को होश नहीं रहा कि चूत में उंगली करते करते उसके शरीर के कुछ हिस्से दीवार की ओट से बाहर निकल रहे हैं और ज्यादा हिलने-डुलने के कारण संध्या की नज़र में भी आ चुके हैं। अचानक से जब माँ ने देखा कि संध्या ने चूसना बंद कर दिया है और वो बस मुठिया रही है तो उनकी नज़र संध्या के चेहरे की तरफ गई और देखा कि संध्या उनको ही देख कर मुस्कुरा रही है।
संध्या ने अपने एक हाथ, चेहरे हाव-भाव और आँखों से ही इशारा करके सासू माँ को कह दिया कि बड़ा मस्त लौड़ा है … एक चुम्मी तो बनती है। माँ से भी रहा नहीं गया। उसे बहू बेटा कुछ याद नहीं रहा, बस उसकी काम-वासना की प्यास बुझाने वाली साथी के हाथ में एक मस्त लंड दिखाई दिया जिसे वो अपने से दूर नहीं रख पाई और संध्या के पास चली गई। संध्या ने अपने हाथ से लंड का सर माँ की ओर झुका दिया। माँ ने पहले तो मोहन के लंड की टोपी पर एक छोटी सी पप्पी ली; फिर उससे रहा नहीं गया तो उसने सीधे उसे संध्या के हाथ से छीन कर दोनों हाथों से पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ से चाटने लगी जैसे बिल्ली लपलप करके दूध पीती है।
इस सब में एक बात जो माँ के दिमाग को सोचने का मौका नहीं मिला वो ये कि मोहन जब 4 हाथ अपने लंड पर महसूस करेगा तो क्या वो समझेगा नहीं कि वहां संध्या के अलावा भी कोई है। वही हुआ भी मोहन ने तुरंत संध्या को अपने ऊपर से अलग किया और सामने देखा कि उसकी वही माँ उसका लंड शिद्दत से चूस रही है जिसने उसे इसलिए दूध पिलाने से मना कर दिया था कि वो अपना लंड सहला रहा था।
मोहन- ये क्या कर रही हो माँ!
माँ इतनी मग्न थी कि उसने जवाब देने के लिए लंड चूसना बंद करना ज़रूरी नहीं समझा और संध्या की तरफ इशारा कर दिया। शायद वो ये कहना चाह रही थी कि इसकी वजह से वो ये कर रही है; लेकिन संध्या ने इस मौके का फायदा उठा कर मस्त जवाब दिया।
संध्या- बचपन में जितना दूध पिया है ना माँ का अब माँ को अपने दूध का क़र्ज़ वापस चाहिए।
मोहन- क्यों नहीं माँ! तूने जितना भी दूध पिलाया है उसकी मलाई-रबड़ी बना बना के वापस करूँगा। चूस ले माँ … जितना मन करे चूस ले।
संध्या- जिस तरह से माँ जी मथ-मथ के चूस रहीं हैं मुझे तो लगता है सीधा घी ही निकलेगा। हा हा हा …
अब माँ अपने बेटे का लंड चूसे और उसमें से प्यार का फ़व्वारा ना छूटे, ऐसा कैसे हो सकता था। जल्दी ही मोहन ने अपनी माँ का मुँह मलाई से भर दिया और माँ भी उसे बिना रुके गटक गई। आज माँ ने ना केवल अपने बेटे का बल्कि पहली बार किसी का भी वीर्यपान किया था। अचानक जब उनकी मोहन से नज़रें मिलीं तो उसकी वासना का सपना टूटा और उसे अहसास हुआ कि ये क्या हो गया। वो उठ कर जाने लगीं।
माँ- मैं चलत हूँ अब। तुम दोई कर ल्यो अपनो काम।
संध्या- अरे माँ जी … अभी से कहाँ … आपने हमको तो मौका दिया ही नहीं अपनी सेवा का।
संध्या ने लपक के उनको जाने से रोक लिया और प्यार से पकड़ के पलंग पर बैठा दिया। संध्या खुद ज़मीन पर घुटनों के बल बैठ गई और माँ की चूत चाटने लगी। मोहन उनके स्तन सहलाने लगा तो माँ भी वैसे ही आँख मूँद कर लेट गई। अब तो मोहन को और आसानी हो गई वो दोनों हाथों से माँ के दोनों स्तनों को मसलने लगा और बारी बारी से दोनों के चूचुक भी चूसने लगा। उधर संध्या भी एक हाथ से अपने पति के लंड को मसल मसल कर खड़ा करने लगी।
जैसे ही लंड खड़ा हुआ, संध्या ने उसे खींच कर अपनी तरफ आने का इशारा किया। मोहन समझ गया और आगे सरक गया। संध्या ने उसे अपने मुँह में ले कर बस गीला करने के लिए ज़रा सा चूसा और फिर अपने हाथ से मोहन के लंड को उसकी माँ की चूत पर रगड़ कर सही जगह सेट कर दिया और मोहन के नितम्बों पर एक चपत लगा कर उसे चुदाई शुरू करने का सिग्नल भी दे दिया।
मोहन ने धीरे धीरे अपना लंड अन्दर की ओर धकेलना शुरू किया। माँ की चूत ज्यादा टाइट तो नहीं थी लेकिन इतनी ढीली भी नहीं थी कि कसावट महसूस ना हो। एक तो काफी समय से ये चूत चुदी नहीं थी तो थोड़ी कसावट आ गई थी उस पर ऐसा मुशटंडा लौड़ा तो ज़माने बाद उनकी चूत में घुसा था। माँ तो उस लौड़े को अपनी चूत में महसूस करते करते एक बार फिर भूल गईं थीं कि ये उनके बेटे का ही लंड था। मोहन ने धीरे धीरे चुदाई शुरू कर दी। उधर स्तनों का मसलना और चूसना अभी भी वैसे ही जारी था, और अब तो संध्या ने भी एक चूचुक चूसने की ज़िम्मेदारी खुद ले ली थी।
दोनों स्तनों को एक साथ मसला और चूसा जा रहा था और ज़माने बाद इतना मस्त लंड माँ की चूत चोद रहा था। माँ तो मनो जन्नत की सैर कर रही थी। इस सबके ऊपर संध्या ने एक और नया काम कर दिया। वो अपना हाथ माँ-बेटे के नंगे जिस्मों के बीच ले गई और अपनी उंगली से माँ की चूत का दाना सहलाने लगी। ये तो जैसे सोने पर सुहागा हो गया। माँ का बदन इस चौतरफा सनसनी तो बर्दाश्त नहीं कर पाया और वो झड़ने लगी। लेकिन मोहन तो अभी अभी झड़ के निपटा था वो अभी कहाँ झड़ने वाला था तो कोई नहीं रुका सब वैसे ही चलता रहा और माँ झड़ती रही।
थोड़ी देर बाद जब अतिरेक की भी अति हो गई तो झड़ना बंद हुआ लेकिन चुदाई अभी भी वैसी ही चल रही थी। आखिर जब माँ दूसरी बार भी झड़ गई तो संध्या ने मोहन को रुकने को कहा। फिर संघ्या नीचे लेटी और माँ को अपने ऊपर आ कर एक दूसरे की चूत चाटने की मुद्रा में लेटने को कहा। संध्या और मोहन की माँ एक दूसरे की चूत चाट रहीं थीं और ऐसे में मोहन ने फिर से माँ चोदना शुरू किया। संध्या अब भी माँ कि चूत का दाना चूस रही थी और अपने दोनों हाथों से उनके स्तन मसल रही थी।
इस बार जब माँ ने झड़ना शुरू किया तो वो पागलों की तरह संध्या की चूत चाटने लगीं और मोहन ने भी ये देख कर जोश में चुदाई की रफ़्तार बढ़ा दी। आखिर माँ का झड़ना बंद होते होते संध्या और मोहन भी झड़ गए। मोहन ने अपना लंड तब तक माँ की चूत से नहीं निकाला जब तक उसके लंड से वीर्य की आखिरी बूँद तक नहीं निकल गई। लेकिन जब उसने लंड बाहर निकाला तो संध्या ने माँ की चूत को चूस चूस के सारा वीर्य अपने मुँह में भर लिया फिर उसने पलट कर माँ को सीधा किया और उनको फ्रेंच किस करके अपने मुँह में भरा सारा माल माँ के मुँह में डाल दिया। माँ ने भी झट उसे पी लिया।
संध्या- आपके दूध का क़र्ज़ है मैं क्यों उसमें मुँह मारूं? हे हे हे …
इस बात पर सभी हंस दिए और इस तरह मोहन मादरचोद बन गया।
शेर एक बार आदमखोर हो गया तो बस हो गया; फिर वो वापस साधारण शेर नहीं बन सकता। मोहन को भी अपनी माँ की चूत की ऐसी चाहत लगी कि अगले कई दिनों तक उसने संध्या के साथ मिल कर अपनी माँ को बजा बजा के पेला लेकिन माँ की उमर जवाब दे चुकी थी।
माँ ने एक दिन बोल ही दिया कि अब वो केवल कभी कभी चुदवाया करेंगी लेकिन मोहन ने भी चालाकी दिखा दी- देख माँ! बाक़ी तेरा जब मन करे चुदवा, ना चुदवा… तेरी मर्ज़ी! लेकिन संध्या की माहवारी के दिनों में मेरी मर्ज़ी चलेगी। बोलो मंज़ूर है?
माँ- हओ बेटा, तेरे लाने इत्तो तो करई सकत हूँ। अबे इत्ति बुड्ढी बी नईं भई हूँ के मइना में 3-4 बखत जा ओखल में तुहार मूसल की कुटाई ना झेल सकूँ।
उसके बाद माँ अपने तरफ का दर्पण हमेशा खुला रखतीं थीं और रोज़ बेटे बहु की चुदाई देखती थीं। कभी अगर देर से नींद खुलती तो नहाने के लिए बेटा-बहू के साथ ही चली जातीं थीं। तीनो फव्वारे के नीचे एक साथ नहाते, एक दूसरे को साबुन लगते और नहाते नहाते माँ की चुदाई तो ज़रूर होती ही थी।
इसके अलावा जब भी मन करता तो कभी कभी रात को बेटे के बेडरूम में जाकर खुद भी बेटे से चुदवा आतीं थीं; नहीं तो महीने के उन दिनों में तो मोहन खुद आ जाता और पटक पटक के अपनी माँ की चूत चोदता था। कभी कभी माँ-बेटे की चुदाई देख कर, संध्या माहवारी के टाइम पर भी इतनी गर्म हो जाती कि वो भी आ कर अपनी गांड मरवा लेती थी।
कभी संध्या को बोल दिया जाता कि पंकज का ध्यान रखे और फिर दिन दिहाड़े किचन या बाहर के कमरे में माँ बेटा की चुदाई हो जाती। यह सुविधा संध्या को भी मिलती थी; बस इतना बोलने की ज़रूरत होती थी कि माँ जी ज़रा पंकज का ध्यान रखना, मैं रसोई में चुदा रही हूँ।
जब सब मज़े में चल रहा होता है तो समय भी जैसे पंख लगा कर उड़ने लगता है। पंकज छह साल का हो गया था और प्रमोद और शारदा की बेटी सोनाली दो से ऊपर की थी जब खबर मिली कि शारदा एक बार फिर गर्भवती हो गई है। पिछली बार उसके पेट से होने पर प्रमोद ने संध्या को चोद कर ना केवल खुद बहुत मज़े किये थे बल्कि संध्या ने भी अपनी दो लंडों से चुदाने की इच्छा पूरी कर ली थी।
इसी सबको याद करते करते एक रात मोहन और संध्या पुरानी यादों में खोए हुए थे।
मोहन- उस बार तुमने प्रमोद से माँ के कमरे में जा के चुदाया था ना? तब तो तुमने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन तुम माँ के इतने करीब आ जाओगी।
संध्या- हाँ, तब तो उनके कमरे में चुदवाना ही मुझे बड़े जोखिम का काम लगा था तब क्या पता था कि एक दिन मैं उनको उनके बेटे से ही चुदवा दूँगी और फिर उनके साथ मिल कर चुदाई किया करुँगी।
मोहन- अरे हाँ इस बात से याद आया। तुमको वादा किया था कि अगर तुमने मुझे माँ की चूत दिलवा दी तो जो तू मांगेगी वो दिलवाऊंगा।
संध्या- हाँ कहा तो था लेकिन…
मोहन- लेकिन क्या? तू बोल के तो देख?
संध्या- मेरा तो फिर से दो लौड़ों से एक साथ चुदाने का मन कर रहा है।
मोहन- अरे, इसमें मांगने जैसा क्या है ये तो बिना मांगे मिला था ना जब प्रमोद आया था। हाँ लेकिन अब तो वो आएगा नहीं… देख संध्या, मैं तो बिल्कुल राजी हूँ। तू कहे तो एक बार जा के प्रमोद को मना के लाने की कोशिश भी कर सकता हूँ लेकिन उसका आना मुश्किल है। और तेरे ही भले के लिए मैं नहीं चाहता कि अपन किसी ऐरे-गैरे को अपनी चुदाई में शामिल करें। अब तू ही बता कैसे करना है? तू जो कहेगी मुझे मंज़ूर है।
संध्या- आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं भी किसी गैर से चुदाना नहीं चाहती। एक अपना है अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो लेकिन उसके पहले मुझे एक राज़ की बात बतानी पड़ेगी।
मोहन- राज़ की बात? मुझे तो लगा तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाया। सुहागरात पर ही सब सच सच बता दिया था। फिर कौन सी राज़ की बात?
संध्या- सुहागरात पर जो बताया वो सब सच ही था। एक शब्द भी आज तक आपसे झूठ नहीं बोला लेकिन एक बात थी जो बस बताई नहीं थी। आप पहले ही गुस्से में थे और मुझे डर था कि अगर ये बात बता दी तो कहीं आप मुझे छोड़ ही ना दो।
मोहन- तो फिर अब क्यों बता रही हो? अब डर नहीं है? मन भर गया क्या मेरे से?
संध्या- अरे नहीं, अब डर नहीं अब भरोसा है। अब हमारे बीच प्यार इतना गहरा है कि मुझे पता है कुछ नहीं होगा। और सबसे बड़ी बात यह कि अब मुझे पता है कि आपको यह बात शायद इतनी बुरी ना लगे जितना मैंने सोचा था।
मोहन- अब पहेलियाँ ना बुझाओ! बता भी दो!
संध्या- ठीक है बताती हूँ। जैसा मैंने आपको बताया था कि कामदार को मार-पीट कर भगाने के बाद भैया मुझे समझा रहे थे कि कैसे ये सब ऐसे काम वालों के साथ करने से नाम तो हमारा ही ख़राब होगा ना। मुझे उनकी बात भी समझ आ रही थी लेकिन इस सारे टाइम ना तो मैंने अपने कपड़े वापस पहने थे और ना उन्होंने मुझे पहनने को कहा था।
मुझे भैया की बात से लग रहा था कि उनको मेरी फिकर है और वो मुझे प्यार करते हैं इसलिए नहीं चाहते कि मेरे साथ कुछ गलत हो। इन सब से शायद मन ही मन उनके लिए मेरा विश्वास बढ़ गया और मेरे जो हाथ अब तक मेरी गोलाइयों और इस मुनिया को छिपाने की कोशिश कर रहे थे वो साधारण रूप में आ गए और मैं उनके सामने वैसे ही नंगी बैठी थी।
अचानक मेरा ध्यान गया कि भैया के पजामे में तम्बू बन रहा है। आखिर पप्पू है तो नंगी लड़की देख कर खड़ा तो होगा ही, फिर वो लड़की बहन हो या माँ ही क्यों ना हो? सही बोल रही हूँ ना?
मोहन- हम्म्म… बात तो सही है। मुझे समझ भी आ रहा है कि तुम्हारी कहानी किस तरफ जा रही है लेकिन अब मेरा पप्पू बोल रहा है कि सुन ही लेते हैं पूरी कहानी। आगे सुनाओ!
संध्या- मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने आखिर बोल ही दिया…
संध्या और उसके भाई की कहानी:
संध्या- भैया! मैं कोई उस कामदार से प्यार नहीं करती, मुझे तो ये बाबा की किताबों में जो फोटो हैं ये सब करने का मन किया इसलिए मैंने उसको डरा धमका के बुलाया था। बहुत दिनों से ये सब देख रही हूँ और ये कहानियां पढ़ के काफी कुछ सीखा है। जब अपनी बुर का दाना रगड़ती हूँ तो बड़ा मज़ा आता है। सोचा अगर इसमें इतना मज़ा आता है तो इसके आगे जो करते हैं उसमे कितना मज़ा आता होगा।
सुधीर भैया- ठीक है, तुम्हारी बात भी सही है। मैंने भी ये किताबें पढ़ी हैं और मैं भी ये सब फोटो देख-देख कर मुठ मार चुका हूँ और चाहता तो मैं भी बाबा की तरह किसी काम वाली को चोद सकता था लेकिन मैंने सुना है बहार लोग बाबा के बारे में क्या क्या बातें करते हैं। उनकी तो ज़मीदारी में बात चल गई। लोग राजा समझते हैं तो कम से कम सामने तो सब इज्ज़त करते हैं लेकिन अब हमारी पीढ़ी में ये सब नहीं चलेगा। वो ज़माने गए अब ये सब करेंगे तो कोई हमारी इज्ज़त नहीं करेगा।
संध्या- बात तो भैया आप सही कह रहे हो। लेकिन…
सुधीर- मैं समझ रहा हूँ तू क्या कहना चाह रही है। तुझे ऐतराज़ ना हो तो हम एक दूसरे की मदद कर सकते हैं।
संध्या- आप चोदोगे मुझे?
सुधीर- अरे नहीं ऐसे नहीं। कल को तेरी शादी होगी तो दूल्हा समझ जाएगा कि तू कुंवारी नहीं है। गलती से भी शादी के पहले चुदाई ना कर लेना।
संध्या- फिर कैसे हम एक दूसरे की ठरक ठंडी करेंगे?
सुधीर- हाँ… ठरकी बाप की ठरकी औलादें हैं कुछ तो करना पड़ेगा। मैंने एक फोटो में देखा था लड़के ने लड़की की गुदा में अपना लिङ्ग डाला हुआ था। लड़कियों को शायद वहां भी मज़ा आता होगा। तूने कभी कोशिश की है क्या वहां उंगली करने की?
संध्या- नहीं की… अभी करके देखूं?
सुधीर- रुक, तू पलट के लेट जा मैं करता हूँ।
संध्या पेट के बल लेट गई और सुधीर ने अपनी छोटी बहन के दोनों पुन्दे अलग करके गुदा का छेद चौड़ा किया फिर उसके बीच में अपने मुँह की थोड़ी लार टपका दी। फिर धीरे से नितम्बों वो वापस ढीला छोड़ दिया और उनके साथ दोनों हाथों से खेलने लगा। वो पहले दोनों तरफ से उनको दबाता फिर छोड़ देता और उन्हें खुद-ब-खुद हिलते हुए देखता। थोड़ी देर बाद उसने फिर दोनों नितम्बों को अलग करके पीछे वाले छेद में थोड़ी लार टपकाई और फिर धीरे से बंद करके खेलने लगा।
संध्या- ये क्या कर रहे हो भैया? डालो ना उंगली!
सुधीर- अरी मेरी भोली बहन! चूत तो तेरी इतनी गीली हो रही है। अब गांड तो अपने आप गीली नहीं होगी ना। उसको अन्दर तक गीली करने के लिए ये सब किया है। अब डालता हूँ उंगली।
सुधीर ने अपनी उंगली अपने मुख में डाल कर अच्छी तरह से लार में भीगा कर गीली की और जैसे ही अपनी बहन की गांड के छेद पर रखी, गांड सिकुड़ के कस गई। सुधीर ने अपने दूसरे हाथ से संध्या के नितम्बों से पीठ तक सहलाया और उसे अपनी गांड ढीली छोड़ने को कहा। जब वो ढीली हुई तो सुधीर ने उंगली घुसाई लेकिन अभी बस नाखून जितनी उंगली अन्दर गई थी कि गांड फिर सिकुड़ गई। सुधीर ने धीरज से फिर इंतज़ार किया और आखिर 2-3 बार कोशिश करने के बाद पूरी उंगली अन्दर गई। फिर ऐसे ही धीरे धीरे करके उसने उसे अन्दर बाहर करना शुरू किया और साथ में अपनी बहन के पुन्दे मसलता रहा।
सुधीर- मज़ा आ रहा है क्या?
संध्या- मज़ा तो आ रहा है। थोड़ा अलग तरह का है लेकिन कुछ कुछ चूत में उंगली करने जैसा भी लग रहा है।
सुधीर- ठीक है फिर हम यही किया करेंगे। लेकिन अभी तो इसमें उंगली ही बड़ी मुश्किल से जा रही है लंड कैसे जाएगा? कुछ सोचना पड़ेगा। आज इसे छोड़ के बाकी तू जो चाहे सब कर लेते हैं।
संध्या- बाकी सब बाद में कर लेंगे कोई बात नहीं लेकिन अभी कपड़े उतार के नंगे तो हो। शर्म नहीं आती नंगी बहन के सामने पूरे कपड़े पहन कर खड़े हो! जल्दी उतारो मुझे बड़ा प्यार आ रहा है आप पर, अपने नंगे भाई को गले लगाने का मन कर रहा है।
फिर जैसे ही सुधीर नंगा हुआ संध्या उस से ऐसे चिपक गई जैसे बन्दर का बच्चा बंदरिया को कस के पकड़कर चिपका रहता है। उस दिन पहले तो दोनों भाई बहन ने बहुत साड़ी नंगी मस्ती की फिर अलग अलग तरह के चुम्बन और आलिंगन जो उन किताबों में बताए थे वो सब करके देखे। आखिरी में भाई ने बहन की चूत और बहन ने भाई का लंड चूस कर एक दूसरे को झड़ाया। अगले दिन सुधीर गाँव के बढ़ई से एक कंगूरे जैसा कुछ बनवा लाया।
बढ़ई को तो उसने यही कहा था कि पलंग का कंगूरा टूट गया है तो बना दो लेकिन सच तो कुछ और ही था। शहर जा कर वो एनिमा लगाने का सामान भी ले आया था।
उस रात सुधीर ने वो लकड़ी का कंगूरा एक घी के डब्बे में डुबो कर रख दिया। उस रात दोनों भाई बहन साथ ही सोये और उन्होंने नंगे-पुंगे काफी मस्ती की चुदाई नहीं की। अभी घर वालों को शादी से वापस आने में 2-3 दिन और बाकी थे।
अगली सुबह संध्या जब संडास से वापस आई तो सुधीर ने उसे एनिमा लगाया और जब उसका मलाशय पूरा साफ़ हो गया तो उसी एनिमा की नली से उसकी गुदा में ४-६ बड़े चम्मच घी अन्दर डाल दिया और फिर घी में रात भर से डूबा हुआ वो लकड़ी का कंगूरा उसके गुदाद्वार पर रख कर दबाया तो फिर वही सिकुड़ने वाली समस्या सामने आई लेकिन ये सुधीर ने लकड़ी का खिलौना बनवाया था इसमें ३ कंगूरे थे सबसे छोटा, मंझोला और फिर सबसे बड़ा और उसके बाद चपटा था जो अन्दर नहीं जा सकता था। धीरे धीरे करके सुधीर ने तीनों कंगूरे संध्या की गांड में डाल दिए। पर्याप्त मात्रा में घी होने की वजह से ज्यादा दर्द नहीं हुआ।
उसके बाद संध्या अपने रसोई के काम में लग गई। शुरू शुरू में खिनचाव के कारण पिछाड़ी में थोड़ा दर्द था लेकिन धीरे धीरे वो काम काज में सब भूल गई और दो तीन घंटे में दर्द ख़त्म भी हो गया।
दोपहर में दोनों ने हल्का फुल्का ही खाना खाया और उसके बाद बेडरूम का दरवाज़ा बंद करके दोनों भाई-बहन अपनी उस अवस्था में आ गए जैसा ऊपर वाले ने उन्हें इस दुनिया में भेजा था।
नंगी संध्या बिस्तर पर पलटी मार के लेट सुधीर उसकी जाँघों के दोनों और अपने पैर घुटनों के बल टिका कर बैठ गया। उसका लंड उसकी नंगी बहन की खूबसूरती को सलाम ठोक रहा था। सुधीर ने उस लकड़ी के चपटे हिस्से को पकड़ कर धीरे धीरे खींचना शुरू किया। पहला कंगूरा निकलने में थोड़ी मुश्किल हुई क्योंकि ये सबसे बड़ा था। थोड़ा दर्द भी हुआ लेकिन बीच वाला कंगूरा बिना किसी दर्द के निकल गया और छोटा वाला तो पता ही नहीं चला कि कब निकल गया।
सुधीर ने बिना समय गंवाए अपने लंड पर थूक लगाया और संध्या की गांड में डाल दिया। पर ये क्या उसके लंड का मुंड ही अन्दर गया था और संध्या की गांड ने उसे कस कर पकड़ लिया। दरअसल अभी जो कंगूरे निकाले थे उनके निकलने की अनुभूति अलग थी और कोई भी गांड किसी वास्तु को निकालने में तो अभ्यस्थ होती है लेकिन अन्दर लेने के लिए नहीं … इसलिए ऐसा हुआ था।
खैर सुधीर भी अपने नाम को सार्थक करने वाला व्यक्ति था उसने धीरज रखी और थोड़ी देर बाद जब गांड ढीली पड़ी तब धीरे धीरे लंड अन्दर डाला।
हालाँकि घी ने संध्या की गांड काफी नरम और चिकनी कर दी थी और इतनी देर उस लकड़ी के डुच्चे की वजह से भी कुछ फर्क पड़ा था। आखिर लंड पूरा अन्दर गया और फिर सुधीर ने अपनी बहन की गांड मारनी शुरू की। कुछ देर तक लेटे-लेटे गांड मराने के बाद संध्या घोड़ी बन गई और फिर सुधीर ने उसके दोनों स्तनों को अपने हाथों से मसलते हुए पकड़ा और संध्या को ऊपर खींच लिया अब संध्या भी घुटनों के बल खड़ी थी और सुधीर पीछे से उसके उरोजों को मसलते हुए उसके साथ गुदा-मैथुन कर रहा था।
संध्या के हाथ ऊपर उठे हुए थे और वो अपने पीछे खड़े अपने भाई के सर को अपनी ओर खींच रहे थे। इस अवस्था ने दोनों होंठों से होंठ जोड़ का चुम्बन भी कर रहे थे।
तभी सुधीर ने अपना एक हाथ संध्या के स्तन से हटा कर उसकी योनि की तरफ बढ़ाया। जैसे ही सुधीर ने अपनी बहन की चूत का दाना छुआ, संध्या ऊह-आह की आवाजें निकालने लगी। और जब सुधीर ने उसे मसलना और रगड़ना शुरू किया तो संध्या पगला गई और कुछ तो भी बड़बड़ाने लगी।
संध्या- ऊऽऽऽह… आऽऽऽह… सुधीर… सुधीर… उम्म्ह… अहह… हय… याह… मज़ा आ रहा है सुधीर… और करो… मस्त चोद रहे हो यार…
यह पहली बार था जब उसने अपने भाई को नाम से बुलाया था लेकिन वो अपने आपे में नहीं थी।
जल्दी ही दोनों भाई बहन झड़ने लगे। सुधीर ने अपना सारा वीर्य संध्या की गांड में ही छोड़ दिया जो इतनी कस गई थी कि सुधीर का ढीला पड़ा लंड भी आसानी से नहीं निकल पाया। उसने कोशिश भी नहीं की और दोनों एक दूसरे के ऊपर गिर पड़े और काफी समय तक वैसे ही पड़े रहे।
इस तरह संध्या ने पहली बार अपने ही भाई से गांड मराई। उसके बाद वो अक्सर अपने भाई के साथ कामक्रीड़ा करती लेकिन हमेशा गुदा या मुख मैथुन ही होता था। कभी उसके भाई ने उसे चोदा नहीं था। गांड मराई के अवसर भी परिवार के साथ होने के कारण कम ही मिल पाते थे लेकिन लंड चूसने का काम तो हर एक दो दिन में हो ही जाता था। घर का शायद ही ऐसा कोई कोना हो जिसमें उसने अपने भाई का लंड नहीं चूसा हो।
नीचे सैंया ऊपर भैया
यह सारी कहानी सुनाने के बाद संध्या ने मोहन से पूछा कि वो ये सब सुन कर नाराज़ तो नहीं है?
मोहन- नहीं यार, अब क्या नाराजगी? मुझे वैसे भी गांड मारने का कोई खास शौक नहीं है। तूने मुझे कुँवारी चूत का मज़ा दिला दिया और क्या चाहिए? रही बात भाई की … तो अब उस बात पे क्या नाराज़ होऊंगा, अब तो मैं खुद मादरचोद बन के बैठा हूँ।
संध्या- तो फिर अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो मुझे आपसे चूत और भैया से गांड एक साथ मरवाने में बड़ा मज़ा आएगा।
मोहन- ऐतराज़ क्या होगा? एक काम कर अभी राखी आने वाली है तो सुधीर को यहीं बुलवा ले। बाकी सब मैं सम्हाल लूँगा।
अगले ही दिन संध्या ने अपने भाई को संदेश भिजवा दिया कि इस साल राखी पर वो ही आ जाए और साथ में इशारे के तौर पर ये भी लिख दिया कि कुछ पुरानी यादें ताज़ा करनी हैं।
यह पढ़ कर सुधीर समझ गया कि शायद उसकी बहन राखी पर उपहार में उसका लंड चाहती है। यह इशारा इसलिए था ताकि सुधीर अकेला ही आये।
राखी को ज्यादा समय बचा भी नहीं था। सुधीर ने अकेले जाने का कोई बहाना सोच लिया।
एक समस्या और थी वो ये कि माँ को बताना है या नहीं। संध्या ने इस बारे में मोहन को कहा तो उसने कहा कि वो माँ से बात करके पता करेगा।
फिर एक रात मोहन सोने के समय अपनी माँ के कमरे में पहुँच गया और संध्या के सरदर्द का बहाना बना कर उसने अपनी माँ को चोदा और चुदाई के बाद जब लंड चूत में ही फंसा था, वो अपनी माँ से चिपका उनके स्तनों को सहला रहा था।
मोहन- माँ… एक बात बता?
माँ- पूछ?
मोहन- मेरी कोई बहन होती तो तू उसको चोदने देती क्या?
माँ- चोदन तो तोय जा चूत बी ना मिलती… अब का करूँ, मो सेई चुदास सेन नी भई।
मोहन- मेरा मतलब अगर मेरी बहन होती और हमसे भी रहा नहीं जाता और हम दोनों चुदाई करने लगते तो तू मना करती क्या?
माँ- और नी तो का…! अब बा की चूत बा के खसम के लाने… पर तू काय इत्तो खोद खोद के पूछ राओ है। थारी तो कोई भेन हैइज नी।
मोहन- कुछ नहीं ऐसे ही पड़े पड़े मन में ख्याल आया इसलिए पूछ लिया। चल अब तू सो जा। मैं चलता हूँ अब।
मोहन ने और ज्यादा पूछना सही नहीं समझा क्योंकि माँ को शक होने लगा था कि बात क्या है। इन सब बातों से ये भी नहीं लगा कि माँ को भाई-बहन की चुदाई मंज़ूर हो सकती है। मोहन ने ये बात संध्या को बताई और दोनों ने निर्णय लिया कि माँ को ये बात ना बताई जाए।
संध्या- लेकिन फिर कैसे करेंगे? माँ की खिड़की तो आजकल सारा टाइम खुली रहती है। इतने दिन के बाद मस्त चुदाई मिलेगी। मुझे वो छोटे से मेहमानों के कमरे में नहीं चुदाना। ऊपर से बेचारे भैया ने आज तक हमेशा गांड ही मारी है कभी चोदा नहीं। पहली बार उनसे चुदवाऊँगी तो कुछ तो ख़ास होना चाहिए ना।
मोहन- एक काम करेंगे, मैं सुधीर के पास चला जाऊँगा और तुम माँ को कुछ बहाना बना कर वो कांच बंद कर देना।
आखिर राखी वाले दिन सुबह सुधीर आ गया। रक्षाबंधन का मुँहूर्त दोपहर का था तो मोहन सुधीर से खेती-किसानी की बातें करने लगा। संध्या जल्दी से नाश्ता ले कर आ गई। उसने मोहन और सुधीर को नाश्ता दिया और वापस रसोई में खाना बनाने के लिए जाने लगी तो सुधीर ने उसे वहीं उनके साथ बैठने को कहा।
संध्या ने मोहन से नज़रें बचाते हुए सुधीर से कहा- मैं तो अपना नाश्ता कर ही लूंगी.
और फिर आँख मार कर अपनी एक उंगली बड़े कातिलाना अंदाज़ में ऐसे चूसी जैसे लंड चूस रही हो।
सुधीर समझ गया कि आज तो ये उसका लंड चूस कर ही राखी मनाने वाली है। लेकिन मौका कब मिलेगा ये सुधीर को नहीं पता था।
सच तो ये था कि जब तक संध्या और सुधीर के बाबा जिंदा थे तब तक उन्होंने कभी सुधीर को अपनी बहन से मिलने नहीं दिया। पिछली बार उनके गुजरने के बाद के कार्यक्रम में ही दोनों मिले थे लेकिन तब माहौल थोड़ा ग़मगीन भी था और भीड़-भाड़ भी बहुत थी। उसके बाद से अब तक मिलने का कभी मौका ही नहीं मिला था।
बहरहाल, नाश्ते के बाद खाना और खाने के बाद राखी बाँधने का कार्यक्रम हुआ और फिर सब बैठ कर परिवार और रिश्तेदारी की बातें करते रहे। थोड़ी देर बाद माँ तो अपने पोते पंकज के साथ खेलने चली गईं और थोड़ी देर बाद मोहन भी बोला कि वो पेशाब करने जा रहा है। जैसे ही कमरे में संध्या और सुधीर के अलावा कोई ना बचा वैसे ही संध्या सुधीर पर झपट पड़ी। वो उसके ऊपर चढ़ गई और उसके मुँह में अपनी जीभ डाल कर एक गहरा चुम्बन लिया, फिर उसका लंड सहलाने लगी।
संध्या- अच्छे से तैयार कर लो इसको … आज रात को ये पहली बार मेरी चूत में घुसेगा।
सुधीर- माना तेरी शादी हो गई, बच्चा भी हो गया लेकिन अभी यहाँ इन सब के बीच ये सब ना कर बहना। पकड़े गए तो सारी जिंदगी का रोना हो जाएगा।
संध्या- वो सब आप मुझ पर छोड़ दो। आप तो बस आज अपनी बहन चोदने की तैयारी करो।
सुधीर- क्या बात है! तेरे तो लगता है काफी बड़े बड़े पर निकल आये हैं।
संध्या- इनको पर नहीं मम्मे कहते हैं भैया! बड़े तो भाभी के भी हो गए होंगे एक बच्चे के बाद!
संध्या ने अपने स्तनों को मसलते हुआ कहा और फिर वापस अपनी जगह जा कर बैठ गई।
थोड़ी देर में मोहन भी आ गया और उसने सुधीर को खेत पर चलने के लिए पूछा। फिर दोनों खेत देखने चले गए।
शाम को आये, खाना वाना खाया और मोहन सुधीर को मेहमानों वाले कमरे में ले गया। वहां बैठा कर वो एक पुरानी स्कॉच की बोतल निकाल लाया जो उसे प्रमोद ने यूरोप से ला कर दी थी।
आज उसका साला जो आया था कुछ खास करना तो बनता था।
संध्या ने चखना लाकर दे दिया।
मोहन- सुनो! माँ सो जाएं तो बता देना।
संध्या- ठीक है।
मोहन ने दरअसल इशारे में संध्या को वो खिड़की बंद करने को कहा था जिससे माँ उनके कमरे में देख सकती थी। इधर जीजा-साले की दारू पार्टी शुरू हुई उधर संध्या माँ के पास गई।
संध्या- माँ जी, ये तो भैया के साथ मेहमानों वाले कमरे में हैं। जीजा-साले की पार्टी चल रही है। कहो तो आपकी चूत-सेवा कर दूं? नहीं तो मैं फिर सोने जाती हूँ।
माँ- नईं री। आज तो भोत थक गई।
संध्या- ठीक है फिर मैं जाती हूँ… अरे ये कांच! इसको बंद कर देती हूँ, भैया ने देख लिया तो अजीब लगेगा।
ऐसे बहाना बना कर संध्या ने कांच पूरा ही बंद कर दिया। अब उसे केवल संध्या-मोहन के कमरे से खोला जा सकता था। उसके बाद संध्या ने मोहन को बता दिया कि माँ सो गईं हैं और वो भी सोने जा रही है। तब तक इन दोनों का पहला ही पैग चल रहा था। जब वो ख़त्म हुआ तो मोहन ने भी अपने बेडरूम जाने की बात कही।
मोहन- चलो साले साहब चलते हैं।
सुधीर- अरे! अभी तो बस एक ही पैग हुआ है। चले जियेगा जल्दी क्या है?
मोहन- यार इस शराब में वो नशा कहाँ जो तुम्हारी बहन में है। मैं तो कहता हूँ तुम भी चलो; दोनों मिल के साथ मज़े करेंगे।
सुधीर- क्या जीजाजी आप तो एक ही पैग में टल्ली हो गए। वो मेरी बहन है। चलो ठीक है आप जा के मज़े करो, मैं यहीं रुकता हूँ।
मोहन- अरे नहीं यार, मुझे चढ़ी नहीं है। और तुम तो ऐसे बोल रहे हो जैसे बहन है तो तुमने कुछ क्या ही नहीं कभी। जो इतनी सब बातें करते थे लोग … वो क्या मुझे पता नहीं?
सुधीर- अरे नहीं जीजाजी, आप गुस्सा मत हो वो सब तो अफवाहें उड़ा दी थीं लोगों ने आप भी कहाँ लोगों की बातों में आ गए।
मोहन- अच्छा!!! अफवाहें थीं? चलो फिर मेरे साथ तुम्हारी बहन से ही पूछ लेते हैं।
इतना कह कर मोहन सुधीर का हाथ पकड़ कर साथ में अपने बेडरूम में ले गया। दरवाज़ा आधा खुला हुआ था, लाइट जल रहीं थीं और संध्या एक चादर ओढ़ कर लेटी हुई थी।
मोहन- संध्या बताओ अभी तुम्हारे और सुधीर के बीच क्या क्या हुआ है?
सुधीर- देखो ना यार संध्या, जीजाजी को एक पैग में ही चढ़ गई है पता नहीं क्या क्या बोल रहे हैं।
संध्या ने एक झटके में अपनी चादर झटक कर अलग कर दी और बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई। चादर के अन्दर वो पूरी नंगी थी। सुधीर तो सकते में आ गया उसे समझ ही नहीं आया कि हो क्या रहा है। वो इधर उधर देखने का नाटक करने लगा।
सुधीर- संध्या, ये क्या है तुमने भी पी रखी है क्या? ऐसे मेरे सामने नंगी क्यों आ रही हो?
संध्या- इनको दारू नहीं, मेरा नशा चढ़ा है भैया। एक बार मेरे होंठों से पी लो तो तुमको भी चढ़ जाएगा।
इतना कह कर नंगी संध्या ने अपने भाई को अपनी बाहों में जकड़ लिया और उसके होंठों को चूसने लगी। सुधीर उत्तेजना में पागल हुआ जा रहा था लेकिन फिर भी ऐसा दिखा रहा था जैसे खुद को छुड़ाने की कोशिश कर रहा हो।
तभी मोहन ने उसकी ग़लतफ़हमी दूर की- साले साहब शरमाओ नहीं, मुझे लोगों ने नहीं खुद संध्या ने सब कुछ विस्तार से बता दिया है कि कैसे आपने इसकी गांड मारना शुरू किया था। मुझे कोई आपत्ति नहीं है। संध्या की इच्छा थी कि वो हम दोनों से एक साथ चुदाए और गांड मराए, इसीलिए आपको बुलवाया था।
संध्या- हाँ भैया, ये सच बोल रहे हैं मैंने ही इनको सब बताया था और इनको कोई तुम्हारे साथ मेरी चुदाई करने में मज़ा ही आएगा। तुम फिकर ना करो। हमाम में सब नंगे हैं।
तब तक मोहन ने अपने कपड़े निकाल फेंके थे और वो संध्या के साथ सुधीर के कपड़े निकालने में उसकी मदद करने लगा। कुछ ही पलों में तीनों नंगे हो चुके थे लेकिन घबराहट के मारे सुधीर का लंड खड़ा नहीं हुआ था।
संध्या तुरंत घुटनों के बल बैठ कर अपने भाई का लंड चूसने लगी। सुधीर ने अपने जीजा की तरफ देखा तो वो संध्या को लंड चूसते हुए देख रहे थे और अपना लंड मुठिया रहे थे। अचानक दोनों की नज़रें मिलीं तो मोहन मुस्कुरा दिया। इस से सुधीर को बहुत साहस मिला और अब वो संध्या का सर पकड़ कर अपनी कमर हिलाते हुए अपनी बहन का मुँह चोदने लगा।
मोहन- ये हुई ना बात साले साब। आब आये ना सही लाइन पे।
सुधीर- क्या जीजाजी! कौन पति अपने सामने अपनी बीवी को चुदवाता है? वो भी उसके भाई से? अब इतनी बड़ी बात हज़म करने में टाइम तो लगेगा ना।
मोहन- और कौन लड़की चुदाई से पहले अपनी गांड मरवाती है? वो भी अपने भाई से? ये बात तो बड़ी जल्दी समझ आ गई थी साले साहब! हा हा हा…
इस बात पर सभी हँस पड़े। संध्या को भी हँसी आ गई और उसने लंड-चुसाई छोड़ दी। माहौल हल्का होने से सुधीर की घबराहट भी ख़त्म हो गई थी और उसका लंड भी अब अपनी बहन को सलामी देने लगा था।
मोहन को लगा अब सब गर्म हो गए हैं और संध्या नाम के मसालेदार गोश्त को बीच में डाल कर सैंडविच बनाने का समय आ गया है। लेकिन जब उसने संध्या को बिस्तर की तरफ ले जाने के लिए हाथ बढ़ाया तो संध्या ने बड़े ही घिघियाते हुए उस से अनुरोध किया- सुनो ना… भैया को आज पहली बार मौका मिल रहा है। हमेशा से मेरी चूत कुंवारी रखने के चक्कर में बस गांड ही मारते थे, कभी चोदा नहीं। आज राखी का दिन भी है तो पहले ज़रा भैया से चुदवा लेने दो ना। उसके बाद आप भी आ जाना हमारे साथ। प्लीज़…
जब भी मायके से कोई आता है तो बीवियों का सारा झुकाव उन्हीं की तरफ हो जाता है। जो बीवी, पति को अपनी जूती की नोक पर रखती हो, वो भी गिड़गिड़ाने लगती है। पति को भी पता होता है कि अभी विनती कर रही है लेकिन अगर बात ना मानी तो कल बेलन भी फेंक कर मार सकती है तो अक्सर पति अपना बड़प्पन दिखाते हुए हाँ कर ही देते हैं। मोहन ने भी वही किया; ड्रेसिंग टेबल का स्टूल एक कोने में सरका कर बैठ गया।
उधर संध्या अपने भैया का लंड पकड़ कर बड़े प्यार से उसे बिस्तर तक ले गई और उसे वहां लेटा कर खुद उसके ऊपर लेट गई। मोहन ने पहले संध्या को अपने परमप्रिय मित्र प्रमोद से चुदवाया था लेकिन तब वो भी चुदाई में शामिल था। आज जो दृश्य उसके सामने था वो तो मोहन के लिए बिल्कुल नया था। उसकी धर्मपत्नी अपने नंगे भाई के गठीले बदन पर नंगी पड़ी हुई थी। उसके सुडौल स्तन उसके भाई के सबल सीने पर जैसे मसले जा रहे थे। उसकी कमर इस तरह लहरा रही थी मानो अपने भाई के लंड के साथ अठखेलियाँ कर रही हो।
अभी दोनों भाई बहन बस चुम्बन और आलिंगन में ही व्यस्त थे। ऐसा नहीं था कि लंड खड़ा नहीं था या चूत को गीली होने में कोई कसर बाकी थी लेकिन इतने सालों के बाद ये दो बदन मिल रहे थे, और वासना कोई लिंग-योनि के समागम का ही तो खेल नहीं है। और भी बहुत कुछ होता है जिसकी कामना मन और शरीर दोनों को होती है। काफी देर तक दोनों एक दुसरे की जीभें और होंठ चूसते-चाटते रहे। इसके साथ साथ सुधीर अपने हाथों को अपनी बहन के पूरे नंगे शरीर पर फेर कर पुरानी यादें ताज़ा कर रहा था और संध्या हल्के हल्के अपने तन को लहराते हुए मानो अपना नाज़ुक जिस्म अपने भाई की बलिष्ठ काया पर मसल रही थी।
मोहन के मन में कहीं ना कहीं जलन की भावना भी आने लगी थी, उसके मन में प्यार भरी गाली उमड़ी ‘बहन का लौड़ा’
जैसे नाचने का मज़ा अलग होता है और नृत्य देखने का अलग वैसे ही ये जो वासना का नंगा नाच मोहन की आँखों के सामने चल रहा था वो उसे कुछ ज्यादा ही मोहक लग रहा था। कई तरह के चुम्बनों और आलिंगनो ने बाद संध्या उठी और उसने सुधीर का लंड अपनी चूत के मुँह पर रख दिया।
संध्या- बोलो, बना दूँ बहनचोद?
सुधीर- जल्दी से बना दे मेरी बहन … बना दे अपने भाई को बहनचोद।
सुधीर ने संध्या के दोनों उरोज अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसलते हुए कह दिया। सुधीर अब अधीर हो चुका था, संध्या ने भी उसकी धीरज का इम्तेहान नहीं लिया और उसकी बात ख़त्म होने से पहले ही गप्प से अपने भाई का लंड पूरा अपनी चूत में घुसा कर उस पर बैठ गई। उसकी आँखें बंद हो गईं और वो किसी और ही दुनिया में खो गई। शायद वो अपने भाई को अपने अन्दर महसूस कर रही थी। फिर वो ऐसे लहराने लगी जैसे उसे ही देख कर कटरीना ने शीला की जवानी पर कमर हिलाना सीखा हो।
मोहन के दिल में तो आग लगी हुई थी। उसका बस चलता तो अभी जाकर संध्या को चोद डालता। आखिर उससे सहन नहीं हुआ और अपने आप उसका हाथ उसके लंड पर चला गया। जिंदगी में पहली बार वो खुद की मुठ मार रहा था। शुरू से ही वो और प्रमोद एक दूसरे की मुठ मारा करते थे। लेकिन आज इस कामुक नज़ारे को देख कर मोहन बेबस हो गया था।
उधर संध्या ने पहले लंड पर बैठे बैठे आगे-पीछे कमर हिला कर चुदाई की फिर कुछ समय तक घुड़सवारी की तरह उछल उछल कर अपने भाई के लंड को अपनी चूत में अन्दर-बाहर किया। ऐसे में उसके उछलते स्तनों को देख कर मोहन की मुठ मारने की रफ़्तार अपने आप बढ़ गई।
आखिर जब थक गई या शायद उत्तेजना कुछ ज्यादा बढ़ गई तो उसने अपने स्तन अपनी भाई की चौड़ी छाती पर चिपका कर उसके अधरों से अधर जोड़ चूसने लगी। अब उसकी कमर ठीक वैसे ही हिल रही थी जैसे पुरुष चुदाई के समय हिलाते हैं। फर्क सिर्फ इतना था कि यहाँ एक बहन अपने भाई को चोद रही थी।
आखिर सुधीर और मोहन दोनों एक साथ झड़ गए। सुधीर का फव्वारा अपनी बहन की चूत में छूटा और मोहन का हवा में लेकिन उस बारिश की कुछ बूँदें संध्या की नंगी पीठ पर भी गिरीं और तब उसे होश आया कि उसका पति भी उसी कमरे में है। उसने मोहन की तरफ देखा और वैसे ही अपने भाई की छाती पर पड़े पड़े उंगलियों के इशारे से उसे अपनी ओर बुलाया। ना जाने अचानक उसे अपने पति की इस हालत पर प्यार आया या तरस लेकिन उसने मोहन के वीर्य में सने लिंग को चूमा फिर सारा वीर्य चाट कर साफ़ कर दिया।
अगले दौर में मोहन को भी शामिल होना था लेकिन अभी तो दोनों जीजा-साले के लंड झड़ के मुरझाए हुए थे। संध्या ने दोनों के लंड एक साथ चूसने की कोशिश की लेकिन वो इतने छोटे थे कि अभी दोनों को इतना पास लाने का कोई मतलब नहीं था।
संध्या अभी तक झड़ी नहीं थी तो वो एक एक करके दोनों के लंड चूसने में मूड में नहीं थी। ऐसे में उसको एक ही उपाय नज़र आया- सुनो जी! आप भैया का लंड चूस दो ना। प्रमोद भाईसाब का भी तो चूसते थे।
मोहन- अरे लेकिन प्रमोद की बात अलग थी।
सुधीर- क्या बात कर रही है संध्या? जीजाजी क्या लौंडेबाज हैं?
संध्या- अरे नहीं भैया, वो तो इनके बचपन के दोस्त हैं। दोनों ने साथ मुठ मारना सीखा था इसलिए। और आप भी ना… ये भी मेरे भैया ही तो हैं कोई गैर थोड़े ही हैं। मेरे भाई के लिए इतना नहीं कर सकते क्या?
संध्या ने फिर अपने वही बच्चों वाले लहजे में कहा और मोहन पिघल गया। वैसे भी ‘सारी खुदाई एक तरफ और जोरू का भाई एक तरफ!’
तो मोहन ने सुधीर का लंड चूसना शुरू किया और संध्या ने मोहन का। इधर सुधीर ने संध्या की टांगें पकड़ कर अपनी तरफ खींचीं और उसकी चूत चाटने लगा। मोहन भी भले ही अपने साले का लंड चूस रहा था लेकिन उस पर लगा हुआ रस संध्या की चूत का ही था। उसकी चूत की खुशबू और लंड की चुसाई ने दोनों लंडों को फिर खड़ा होने में देर नहीं लगने दी।
संध्या तो वैसे ही झड़ने की तलब में तड़प रही थी। वो तुरंत मोहन के लंड पर चढ़ बैठी और अपने भैया को गुदा-मैथुन का आमंत्रण दे दिया। फिर सारी रात संध्या की चूत और गांड की वैसी ही कुटाई हुए जैसे दो मूसलों से एक ओखली में मसाला कूटा जाता है।
अगले दिन तीनों देर से उठे और फिर तीनों साथ में नहाये। वहां भी खड़े खड़े मोहन और सुधीर ने संध्या के दोनों छेदों को खाली नहीं रहने दिया।
इस सब में सब लोग माँ को तो भूल ही गए थे। वो थोड़ी अनमनी सी नज़र आ रही थी। सुबह का नाश्ता आज लगभग खाने के टाइम पर मिला था।
संध्या को लगा कि शायद इसी वजह से नाराज़ होंगी। जो भी हो, दिन इधर उधर की बातों और काम में निकल गया।
सुधीर को वापस जाना था लेकिन उसे एक और रात के लिए रोक लिया। वो भी मना नहीं कर सका … कौन नहीं चाहेगा कि उसे एक और रात अपनी बहन चोदने को मिले।
रात को जब तीनों बेडरूम में मिले तो संध्या ने फिर वही अपनी बच्चों जैसी राग अलापी- सुनिए ना… आज मेरा मन है कि पूरी रात मैं बस भैया से ही चुदवाऊँ … फिर पता नहीं कब मिलना हो।
मोहन- अरे यार, फिर मैं क्या करूँगा? तुमको पता है मुझे मुठ मारने की आदत नहीं है। कल जिन्दगी में पहली बार मुठ मारी थी।
संध्या- जाओ… जाकर अपनी माँ चोदो।
सुधीर- संध्या! ये क्या तरीका है अपने पति से बात करने का। एक तो भले इंसान ने हमको चुदाई करने का मौका दिया और तुम उनसे ऐसे बात कर रही हो?
संध्या- अरे नहीं भैया, मैं गाली नहीं दे रही हूँ। वो सच में अपनी माँ चोदते हैं। यहाँ बैठे बैठे बोर होंगे इसलिए सलाह दे रही थी कि अपनी माँ के साथ चुदाई कर लें।
मोहन ने कहा- ठीक है!
और वो अपनी माँ के कमरे की तरफ चला गया।
इधर सुधीर को विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। वो भले ही खुद अपनी सगी बहन से साथ किशोरावस्था से ही सम्भोग कर रहा था लेकिन उसे लगा था कि वो ही ये काम कर रहा है बाकी दुनिया में कोई ऐसा नहीं कर सकता।
हाँ यह बात सच है कि हर घर में ऐसा नहीं होता लेकिन जो भी हो रिश्तों में चुदाई एक सच्चाई तो है। लेकिन फिर भी ये जितनी कहानियों में दिखाई देती है उतनी सच्चाई में नहीं क्योंकि समाज में इसे बहुत बुरी नज़र से देखा जाता है।
सुधीर- तो क्या जीजाजी शादी के पहले से ही अपनी माँ को चोद रहे हैं?
संध्या- नहीं, सच कहूँ तो अभी एक डेढ़ साल पहले मैंने ही अपनी सास को इन से चुदवाया है। लेकिन इच्छा इनकी बचपन से थी।
सुधीर- हाँ, मुझे भी माँ के मम्मे बड़े पसंद थे। मैंने भी तेरे पैदा होने के बाद भी उनका दूध पीना नहीं छोड़ा था लेकिन फिर वो गुज़र गईं। खैर तूने कैसे अपनी सास चुदवा दी?
संध्या- वो लम्बी कहानी है बाद में बताऊँगी, अभी तुम ये देखो।
इतना कह कर संध्या ने वो दर्पण हटा दिया और सामने का दृश्य देख कर मोहन के दिल की धड़कन बढ़ गई। मोहन अपनी माँ को घोड़ी बना के चोद रहा था। मोहन की माँ के लटके हुए स्तन हर धक्के के साथ झूला झूल रहे थे। इस दृश्य को देख सुधीर एक बार फिर अपना धैर्य खो बैठा और पहले उसने अपने कपड़े निकाल फेंके और फिर अपनी बहन को नंगी कर के वहीं चोदने लगा।
उधर मोहन को संध्या की चुदाई की हल्की हल्की आवाजें सुनाई पड़ रहीं थीं क्योंकि सुधीर उसे बड़ी जोर से पीछे से चूत में लंड डाल कर खड़े खड़े कांच के पास ही चोद रहा था और एक दर्पण खुला होने की वजह से ज्यादा प्रतिरोध भी नहीं था। मोहन भी जोश में आकर अपनी माँ की चूत का भुरता बनाने लगा।
काफी देर बाद जब माँ-बेटा झड़ गए तो थोड़ा सुस्ताने के बाद माँ ने अपनी बात कही।
माँ- बेटा! सच्ची बतैये… कल से जे का चल राओ है?
मोहन- क्या मतलब? कुछ भी तो नहीं?
माँ- मोए का तूने बच्चा समझी है। मोए सब समझ आ रई है। तू बता रओ है कि मैं अबेई जा के बहू से पूछ लऊं?
मोहन- अब मैं क्या बताऊँ। आप समझदार हो… आपको जो भी समझ आया है सही ही आया होगा।
माँ- पर बहू ने तो कई थी के बा ने अपने भाई से कबऊ नी चुदाओ।
आखिर मोहन से माँ को पूरी कहानी सुना दी। लेकिन माँ को यह बात पसंद नहीं आई। उनका साफ़ कहना था कि जब तक पति है तब तक किसी और से चुदवाना सही नहीं है। मोहन ने भी उनको यह नहीं बताया कि किसी और से चुदवाने की शुरुवात उसी ने करवाई थी। माँ भी खुद अपने बेटे से चुदवा रहीं थीं तो ज्यादा कुछ बोल नहीं सकती थीं लेकिन उनको ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगा कि कोई उनके बेटे की आँखों के सामने उसकी बीवी को चोद के जाए।
अगले दिन सुधीर चला गया लेकिन फिर अक्सर घर से किसी ना किसी बहाने निकलता और एक दो रात अपनी बहन के घर रुक कर जाता। मोहन की माँ ने साफ़ कह दिया था कि जब भी वो आये तो मोहन उनके पास ही रहा करे। उनकी पुरानी सोच को ये बात समझ नहीं आ सकी कि मोहन को भी अपनी पत्नी को उसके भाई से चुदवाने में मज़ा आता था। मोहन की माँ अपनी बहू से खफा भी थी तो अब उसने साथ में चुदवाना बंद कर दिया था तो कभी कभी दोनों सुधीर को शहर की किसी होटल में बुला कर एक साथ सामूहिक चुदाई कर लिया करते लेकिन अक्सर तो मोहन को घर पर अपनी माँ ही चोदनी पड़ती।
उधर शारदा ने एक बच्चे को जन्म दिया। इस बार लड़का हुआ था जिसका नाम उन्होंने सचिन रखा। मोहन और संध्या बधाई देने गए लेकिन अब उनके बीच चुदाई का रिश्ता नहीं बचा था। हाँ पर उनके बच्चों यानि कि सोनाली और पंकज में दोस्ती का नया रिश्ता ज़रूर शुरू हो गया था।
अगले ही महीने संध्या ने भी खुशखबरी दे दी। वो भी गर्भवती हो गई थी। इस बार मोहन को प्रमोद की ज़रूरत नहीं थी, उसके पास चोदने के लिए उसकी माँ थी।
नौ महीने बाद जब संध्या ने जब एक बेटी को जन्म दिया तो शायद उस बच्ची की किस्मत में माँ का प्यार नहीं था। मोहन के सर पर दो बच्चों को पालने की ज़िम्मेदारी आ गई। ऐसे में प्रमोद और शारदा ने पूरी दोस्ती निभाई और मोहन की बेटी रूपा को अपना दूध पिलाया लेकिन उसके एक साल की होने पर मोहन की माँ उसे अपने पास ले आईं और उन्ही ने उसे पाला।
अब मोहन की जिंदगी भी ज़िम्मेदारी के बोझ तले इतनी दब गई थी कि उसको ज्यादा चोदा-चादी के बारे में सोचने का समय नहीं मिलता था। कभी कभार माँ को चोद लेता था वरना ज्यादातर समय उसका खेती-बाड़ी और बच्चों की देखभाल में ही गुज़रता था। धीरे धीरे बच्चे बड़े होते रहे और माँ-बाप बूढ़े।


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