दोस्तो, मेरा नाम फैजान है और मैं बिहार के एक शहर का रहने वाला हूँ। गोपनीयता के चलते अपने शहर का नाम नहीं बता सकता लेकिन बस इतना समझ लीजिये कि यह शहर गुंडागर्दी और अराजकता के लिये बदनाम है।
यह बात साल भर पहले की है जब हम अपने पुराने मुहल्ले को छोड़ कर नये मुहल्ले में शिफ्ट हुए थे। मेरे परिवार में अम्मी अब्बू और एक बड़ी बहन रुबीना ही थी जिसकी उम्र इक्कीस साल रही होगी तब और वह ग्रेजुएशन कर रही थी। जबकि मैं उससे दो साल छोटा था और मैंने इंटर के बाद बी.ए. के लिये प्राईवेट का फार्म भर के काम से लग गया था।
दरअसल हमारा मुख्य घर शहर से तीस किलोमीटर गांव में था लेकिन अब्बू की टेलरिंग की दुकान शहर में थी तो हम किराये के मकान में यहीं रहते थे। इसी सिलसिले में हमें पिछला मकान खाली करना पड़ा था और नये मुहल्ले में शिफ्ट होना पड़ा था।
यूँ तो हम चार भाई बहन थे लेकिन बीमारी के चलते दो भाइयों की मौत छोटे पर ही हो गयी थी और हम दो भाई बहन ही बड़े हो पाये थे। माँ बाप दोनों चाहते थे कि हम कम से कम ग्रेजुएशन की पढ़ाई तो कर लें लेकिन मेरा खुद का पढ़ाई में कोई खास दिल नहीं लगता था तो इंटर के बाद प्राइवेट ही ऐसे कालेज से बी.ए. का फार्म भर दिया था जहां नकल से पास होने की पूरी गारंटी थी और खुद अब्बू की दुकान जाने लगा था कि उन्हें थोड़ा सहारा हो जाये।
जबकि बहन रेगुलर शहर के इकलौते प्रतिष्ठित कालेज से पढ़ाई कर रही थी. यहां जब मैं यह कहानी इस मंच पर बता रहा हूँ तो मुझे यह भी बताना पड़ेगा कि वह लंबे कद की काफी गोरी चिट्टी और खूबसूरत थी, जिसके लिये मैंने अक्सर लड़कों के मुंह से ‘क्या माल है’ जैसे कमेंट सुने थे, जिन्हें सुन कर गुस्सा तो बहुत आता था लेकिन मैं अपनी लिमिट जानता था तो चाह कर भी कुछ नहीं कह पाता था।
शक्ल सूरत से मैं भी अच्छा खासा ही था लेकिन कोई हीरो जैसी न पर्सनालिटी थी और न ही हिम्मत कि गुंडे मवालियों से भिड़ जाऊं. फिर मेरी दोस्ती यारी भी अपने जैसे दब्बू लड़कों से ही थी।
कुछ दिन उस मुहल्ले में गुजरे तो वहां के दबंग लड़कों के बारे में तो पूरी जानकारी हो गयी थी और खास कर राकेश नाम के लड़के के बारे में, जो उनका सरगना था। उनमें से ज्यादातर हत्यारोपी थे और जमानत पर बाहर थे लेकिन उनकी गुंडागर्दी या दबदबे में कमी आई हो, ऐसा कहीं से नहीं लगता था। उनमें से ज्यादातर और खास कर राकेश को राजनैतिक संरक्षण भी हासिल था, जिससे उसके खिलाफ पुलिस भी जल्दी कोई एक्शन नहीं लेती थी।
और रहा मैं … तो मेरी तो हिम्मत भी नहीं पड़ती थी कि जहां वह खड़ा हो, वहां मैं रुकूं… जबकि वह कुछ दिन में मुझे पहचानने और मेरे नाम से बुलाने लगा था। परचून की दुकान पे खड़ा होता तो जबरदस्ती कुछ न कुछ ले के खिला ही देता था। थोड़ी न नुकुर तो मैं करता था लेकिन पूरी तरह मना करने की हिम्मत तो खैर मुझमें नहीं ही थी।
उसकी इस कृपा का असली कारण तो मुझे बाद में समझ में आया था कि वह बहुत बड़ा चोदू था और उसकी नजर मेरी बहन पर थी। उसकी क्या मुहल्ले के जितने दबंग थे, उन सबकी नजर उस पर थी और शायद राकेश का ही डर रहा हो कि वे एकदम खुल के ट्राई नहीं कर पाते थे।
मेरे पिछले मुहल्ले का माहौल ऐसा नहीं था तो यहां सब थोड़ा अजीब लगता था और गुस्सा भी आता था। कई बार जब आते जाते लड़कों को मेरी बहन को इशारे करते या फब्तियां कसते देखता तो आग तो बहुत लगती थी लेकिन फिर इस ख्याल से चुप रह जाता था कि वहां तो बात-बात पे छुरी कट्टे निकल आते थे तो ठीक भी नहीं था मेरा बोलना।
रुबीना के लिये यहां जिंदगी बड़ी मुश्किल थी क्योंकि उसे कालेज के बाद कोचिंग के लिये भी जाना होता था जहां से शाम को वापसी होती थी और गर्मियों में तो फिर उजाला होता था वापसी में तो चल जाता था लेकिन जब दिन छोटे होने हुए शुरू हुए तो जल्दी ही अंधेरा हो जाता था जिससे उसे वापसी में बड़ी दिक्कत होती थी।
इस बारे में उसने तो मुझे बाद में बताया था लेकिन कहानी के हिसाब से मेरा यहां बताना जरूरी है कि गर्मियों के दिनों में तो फिकरे ही कसते थे लोग लेकिन जब से वापसी में अंधेरा होना शुरू हुआ तब से उसका फायदा उठाते वे लफंगे गली में उसे न सिर्फ इधर उधर टच करते थे, दूध दबाते थे बल्कि कई बार तो तीन चार लड़के पकड़ कर, दीवार से टिका कर बुरी तरह मसल डालते थे।
ऐसे ही एक दिन शाम को वापसी में मैंने इत्तेफाक से यह नजारा देख लिया था. मेरा घर एक लंबी बंद गली के अंत में था और गली के मुहाने पर यूँ तो एक इलेक्ट्रिक पोल था जो रोशनी के लिये काफी था लेकिन शाम को उस टाईम तो अक्सर कटौती की वजह से लाईट रहती ही नहीं थी।
तो उस टाईम मैं भी इत्तेफाक से घर की तरफ आ रहा था और शायद थोड़ा पहले ही रुबीना भी गली में घुसी होगी। अंधेरा जरूर था मगर इतना भी नहीं कि कुछ दिखाई न और लाईट हस्बे मामूल गायब थी। तो गली में घुसते ही मुझे वह तीन लड़के किसी को दीवार से सटाये रगड़ते दिखे जो मेरी आहट सुन के थमक गये थे।
फिर शायद उन्होंने मुझे पहचान लिया और वे उसे छोड़ के मेरे पास से गुजरते चले गये। मैं आगे बढ़ा तो समझ में आया कि वह रुबीना थी, उसने भी मुझे पहचान लिया था और बिना कुछ बोले आगे बढ़ गयी थी। हम आगे पीछे कर में दाखिल हुए थे और वह चुपचाप अपने कमरे में बंद हो गयी थी।
मैं उसकी मनःस्थिति समझ सकता था, इसलिये कुछ कहना पूछना मुनासिब नहीं समझा।
अगले दिन दोपहर में जब हम घर पे अकेले थे तब मैंने उससे पूछा कि क्या प्राब्लम थी तो पहले तो वह कुछ बोलने से झिझकी। जाहिर है कि हम भाई बहन थे और हममें इस तरह की बातें पहले कभी नहीं हुई थी… लेकिन फिर उसने बता दिया कि उसके साथ क्या-क्या होता था और वह अब सोच रही थी कि कोचिंग छोड़ ही दे।
तो मैंने उसे भरोसा दिलाया- अभी रुक जाओ, मैं देखता हूँ कुछ।
मैंने सोचा था कि राकेश से कहता हूँ… वह बाकी लौंडों को तो संभाल ही लेगा और जाहिर है कि खुद अपने जुगाड़ से लग जायेगा. लेकिन मुझे अपनी बहन पर यकीन था कि वह उसके हाथ नहीं आने वाली और इसी बीच उसका ग्रेजुएशन कंपलीट हो जायेगा।
मैंने ऐसा ही किया. अगले दिन मौका पाते ही राकेश को पकड़ लिया और दीनहीन बन कर उससे फरियाद की, कि वह मुहल्ले के लड़कों को रोके जो मेरी बहन को छेड़ते हैं। उसकी तो जैसे बांछें खिल गयीं। ऐसा लगा जैसे वह चाहता था कि मैं उससे ऐसा कुछ कहूँ। उसने मुझे भरोसा दिलाया कि मेरी बहन अब उसकी जिम्मेदारी… बस एक बार मैं उससे मिलवा दूं और बता दूं कि राकेश अब उसकी हिफाजत करेगा और फिर किसकी मजाल कि कोई उसे छेड़े।
मुझे उस पर पूरा यकीन नहीं था लेकिन फिर भी मैंने डरते-डरते रुबीना को राकेश से यह कहते मिलवा दिया कि वह मुहल्ले का दादा है और अब वह किसी को तुम्हें छेड़ने नहीं देगा।
इसके दो दिन बाद मैंने अकेले में रुबीना से पूछा कि अब क्या हाल है तो उसने बताया कि अब लड़के देखते तो हैं लेकिन बोलते नहीं कुछ और कोचिंग से वापसी में राकेश उसे खुद से पिक कर के दरवाजे तक छोड़ने आता है। मैं मन ही मन गालियां दे कर रह गया. समझ सकता था कि राकेश अपने मवाली साथियों को रुबीना के विषय में क्या समझाया होगा।
बहरहाल, इस स्थिति को स्वीकार करने के सिवा हमारे पास चारा भी क्या था। कम से कम इस बहाने वह मवालियों से सुरक्षित तो थी।
धीरे-धीरे ऐसे ही कई दिन निकल गये।
फिर एक दिन इत्तेफाक से मैं उसी टाईम वापस लौट रहा था जब वह वापस लौटती थी। वह शायद आधी गली पार कर चुकी थी जब मैं गली में दाखिल हुआ। लाईट हस्बे मामूल गुल थी और नीम अंधेरा छाया हुआ था। इतना तो मैं फिर भी देख सकता था उसके साथ चलता साया, जो पक्का राकेश ही था.. उसके गले में बांह डाले था और दूसरे हाथ से कुहनी मोड़े कुछ कर रहा था। पक्का तो नहीं कह सकता पर अंदाजा था कि वह उसके दूध दबा रहा था।
मेरे एकदम से आग लग गयी और मैं उसे आवाज देने को हुआ पर यह महसूस करके मेरी आवाज गले में ही बैठ गयी कि उसकी हरकत से शायद रुबीना को कोई एतराज ही नहीं था, क्योंकि न उसके कदम थमे थे और न ही वह अवरोध करती लग रही थी।
मुझे सख्त हैरानी हुई। दरवाजे पर पहुंच कर शायद दोनों ने कुछ रगड़ा रगड़ी की थी जो अंधेरे में मैं ठीक से समझ न सका और फिर वह अंदर घुस गयी और राकेश वापस मुड़ लिया।
मेरे पास पहुंचते ही उसने मुझे पहचान लिया और एक पल को सकपकाया तो जरूर लेकिन फौरन चेहरे पर बेशर्मी भरी मुस्कान आ गयी- घर तक छोड़ के आया हूँ बे, अब कोई नहीं छेड़ता। डोंट वरी… एश कर।
वह मेरे कंधे पर हाथ मारता हुआ गुजर गया और मुझसे कुछ बोलते न बना।
घर पहुंच कर मेरा रुबीना से सामना हुआ तो मेरा दिल तो किया कि उससे पूछूं लेकिन हिम्मत न पड़ी और बात आई गयी हो गयी।
अगले हफ्ते रात के करीब दस बजे मैं वापस लौट रहा था कि राकेश ने मेरी गली के पास ही मुझे रोक लिया। जनवरी का महीना था.. लाईट तो आ रही थी पर हर तरफ सन्नाटा हो चुका था। वे एक खाली खोखे में बैठे थे जो था तो धोबी का लेकिन अभी वहां अकेला राकेश ही था और उसका एक चेला, जिसने मुझे रोका था।
“अंदर चल।” चेले ने मुझे कंधे पर दबाव डाल कर खोखे के अंदर ठेलते हुए कहा और बाहर खुद खड़ा हो गया।
खोखा सामने से तो बंद था तो सामने से कुछ दिखना नहीं था और साइड से जो अंदर घुसने का रास्ता था, वहां चेला खड़ा था। अंदर जिस टेबल पर धोबी प्रेस करता था, उस पर दारू की एक आधी खाली बोतल और दो गिलास रखे थे और साथ ही रखा था एक देसी कट्टा, जो शायद मुझे डराने के लिये था।
ठंड में भी मेरे पसीने छूट गये।
“क्या बात है दद्दा?” मैंने डरते-डरते पूछा।
“आज मूड हो रहा है बे… इस टाईम कोई लौंडिया तो मिलेगी नहीं। तू ही सही। यह देख।” उसकी आवाज और चढ़ी हुई आंखें बता रही थीं कि वह नशे में था। मुझे उससे डर लगने लगा था।
जबकि उसने अपनी पैंट सामने से खोल कर अंडरवियर समेत नीचे कर दी थी जिससे उसका अर्ध उत्तेजित लिंग एकदम मेरे सामने आ गया था। उसके निगाहों से घुड़कने पर मैंने उसके लिंग की ओर देखा… अभी पूरी तरह खड़ा भी नहीं था तब भी सात इंच से लंबा ही लग रहा था और मोटा भी काफी थे। टोपे पर से आगे की चमड़ी अभी पूरी तरह हटी नहीं थी।
“अभी बैठे-बैठे तेरी बहन के बारे में सोच रहा था। झेल पायेगी उसकी चूत।” वह लहराती हुई आवाज में बोला और ऐसे तो मुझे आग लग गयी लेकिन मेज पर रखे कट्टे की तरफ देख कर मेरे अंदर उठा गुस्से का गुबार झाग की तरह बैठ गया।
“मुझे क्या पता।” प्रत्यक्षतः मैंने अनमने भाव से कहा।
“तुझे पता तो होगा कि कितनी बार चुद चुकी है… उंगली डलवाने में तो साली सी-सी करने लगती है। वैसे चूत मस्त है उसकी फूली हुई।” वह अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़ कर अपना लिंग सहलवाते हुए बोला।
और मैं मन ही मन हैरान रह गया कि यह क्या कह रहा था वह … मुझे तो नहीं लगता था कि रुबीना किसी को स्पर्श भी करने देती होगी और यह उसकी योनि में उंगली करने की बात कर रहा है। मुझे कुछ बोलते न बन पड़ा।
“अच्छा भोसड़ी के… कभी दूध देखे तूने उसके। एकदम झक्क सफेद हैं और ऊपर से गुलाबी-गुलाबी घुंडियां। मजा आ जाता है चूसने में.. बस दूध ही पिलाई है बहन की लौड़ी। अभी तक चूत के दर्शन भी न कराये हैं.. बस उंगली करा के ही रह गयी है।”
मेरे लिये सब किसी बड़े आश्चर्य से कम नहीं था कि मेरी सती सावित्री बहन, जो हमेशा नकाब में रह कर घर से निकलती थी… मुहल्ले के एक छंटे हुए बदमाश को अपने साथ यह सब करने दे रही थी। या हो सकता है कि वह भी ऐसे ही मजबूर पड़ जाती हो जैसे इस वक्त मैं था।
“देख बेटा फैजान… इस टाईम मेरे जितनी गर्मी चढ़ी है कि बिना माल निकाले लंड ठंडा नहीं होगा। तेरी बहन को तो जब चोदूंगा तब चोदूंगा लेकिन अभी तेरे पास दो ऑप्शन हैं। या तो गांड में ले सकता है तो ले ले या फिर मुंह से चूस कर निकाल दे।”
मन में गालियों का गुबार फूट पड़ा लेकिन जाहिर है कि कुछ कर तो सकता नहीं था। जी चाहा कि पलट कर भाग लूं लेकिन बाहर तो उसका चेला यमदूत की तरह जमा था।
“हाथ से निकाल देता हूं न दद्दा।” मैंने लगभग रो देने वाले अंदाज में कहा।
“उससे तो आधी रात हो जायेगी तुझे बेटा … इतनी आसानी से नहीं निकलता मेरा।”
यानि कोई ऑप्शन नहीं था… इस तरह के छोटे शहरों में रहने वाले जानते होंगे कि सीधे सादे लड़कों के साथ यह सब होता रहता है। ऐसा नहीं कि मेरे साथ कभी गुदामैथुन न हुआ हो … कभी सात आठ बार इसका शिकार अब तक हो चुका था लेकिन यह कोई सहज स्वीकार्य स्थिति मेरे लिये एक तो कभी नहीं हुई और दूसरे उसका लिंग ऐसा था कि मेरे बस से बाहर था।
तो पीछे से लेने का ऑप्शन ही नहीं था… मैंने रो देने वाले अंदाज में थोड़ा झुक कर उसकी टोपी को मुंह में ले लिया। यह मेरे लिये बिल्कुल पहला अनुभव था। एक तीखी सी गंध नथुनों में घुसी जो शायद मूत्र की थी और एकदम से उबकाई होने को हुई तो नीचे ही थूक दिया।
उसने एक हाथ से मेरे बाल पकड़ लिये ताकि मैं मुंह न हटा सकूँ और मैं मरे-मरे अंदाज में जहां तक हो सकता था, उसके लिंग को मुंह में लिये मन ही मन घिनाते हुए ‘चपड़-चपड़’ करने लगा।
“अबे चिकने, क्या मरे-मरे अंदाज में चूस रहा है… थोड़ा दबा के, रगड़ के चूस।” उसने लगभग गुर्राते हुए कहा।
मना करने की तो जुर्रत नहीं थी… जी भले हबक रहा हो। उसने दूसरे हाथ से मेरी कमर को अपनी तरफ खींच कर मेरे नितंब सहलाने और गुदा द्वार में ऊपर से ही उंगली करने लगा।
“कसम से फैजान … लंड तू ले रहा है और दिख मुझे रुबीना रही है। शाबाश और जोर से चूस।” वह थोड़े जोश में आता हुआ बोला।
थोड़ी ‘चपड़-चपड़’ के बाद ही वह फुल टाईट हो गया। मोटा तो दा ही, लंबाई में भी आठ इंच से कम न रहा होगा… उसे देखते बार-बार मेरे मन में यही ख्याल आ रहा था कि यह मेरी बहन पर चढ़ेगा तो उस बेचारी को कितनी तकलीफ होगा, कितना तड़पेगी वह।
चूसते चूसते एकदम से वह फूल गया और उसके झड़ने की आशंका में मैंने मुंह पीछे खींचना चाहा लेकिन उसने दोनों हाथों से मेरा सर जकड़ लिया। एकदम से वीर्य की पिचकारी मेरे गले में उतरती चली गयी। फिर और कुछ हल्की पिचकारी उसने मारी, कुछ हलक में उतर गयी तो कुछ मैंने हलक बंद करके रोक ली। एकदम से उबकाई होने लगी और मैं छटपटाने लगा तो उसने मुझे छोड़ दिया।
मैं झटके से बाहर खड़े चेले को धक्का देते बाहर निकला और झुक कर उल्टी करने लगा। जो पेट में गया था, वह तो निकला ही… जो पहले का था, वह भी निकल गया।
उल्टी रुकी तो मैं पलट के भाग लिया। पीछे से उसने आवाज दी थी लेकिन मैंने रुकने की जरूरत नहीं समझी।
घर तक पहुंचने पर सवा दस से ऊपर हो चुके थे। ठंडी के दिनों में इतनी देर तक अम्मी अब्बू सो जाते थे। मैंने रुबीना के फोन पे मिसकाल दी… देर से आने पर यह मेरा इशारा होता था और वह दरवाजा खोल देती थी।
उसके दरवाजा खोलते ही मैंने अम्मी अब्बू के बारे में पूछा तो उसने कहा कि शायद सो गये हैं। मैंने उसे अपने कमरे में आने को कहा और बेसिन पर जा कर मुंह धोने, कुल्ली करने लगा।
वह समझ गयी थी कि कोई बात थी तो चुपचाप मेरे कमरे में आ गयी थी। भले वह उम्र में मुझसे दो साल बड़ी थी लेकिन कोई बहुत अदब इज्जत वाली बात नहीं थी हमारे बीच और यही वजह थी कि हम दोस्तों की तरह बात कर लेते थे।
मैंने उसे वह सबकुछ बता दिया जो राकेश ने अभी मेरे साथ किया था। सुन कर वह थोड़ी हैरान जरूर हुई लेकिन परेशानी उसके चेहरे पर फिर भी न दिखी।
“मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह तुम्हें भी छोड़ेगा।” उसने बस इतना ही कहा।
“वह बता रहा था कि वह तुम्हारे साथ सब करता है? एक दिन मैंने उसे देखा भी था तुम्हें रगड़ते, जब वह तुम्हें छोड़ने आया था।”
“रोज ही रगड़ता है जब छोड़ने आता है। कहता है कि बाडीगार्ड की ड्यूटी निभाता हूँ तो इतनी उजरत तो मिलनी चाहिये।”
“तुम्हें बुरा नहीं लगता।”
“हर वह लड़की जो जवान होती है, उसे इन तजुर्बों से गुजरना ही पड़ता है। पहली बार जब किसी ने हिप पे टच किया था तो बुरा लगा था, पहली बार जब किसी ने सीने पर हाथ मारा था तब बहुत खराब लगा था। लेकिन अपने शहर का हाल तो जानते ही हो … लड़की ज्यादा हिम्मत दिखाये तो कुछ भी कर सकते हैं हरामी। सिवा चुप रह जाने के सही विकल्प क्या था भला।
पहले भी सब होता था पर इस मुहल्ले में आते ही जैसे रोज का मामूल हो गया। नहीं अच्छा लगता था। जी करता था कि उन सब के हाथ तोड़ दूं लेकिन यह कहां मुमकिन था? फिर तुमने राकेश से बात की तो यह सिलसिला थम गया … लेकिन यह राहत भला कितनी देर की थी। आखिर उसे भी तो उजरत नहीं थी इस अहसान की।
पहली बार घर छोड़ते आने के टाईम उसने हिप पर टच किया। बुरा लगा, लेकिन कुछ कह न पाई… अगले दिन उसने गले में हाथ डाल दिया। तब भी अच्छा नहीं लगा और मना भी किया तो उसने कहा कि ठीक है, कल से वह छोड़ने नहीं आयेगा… फिर खुद झेलना। तो मुझे झुकना पड़ा, क्योंकि वह तजुर्बे इस तजुर्बे से ज्यादा बुरे और जलालत वाले थे। फिर उसे खुली छूट मिल गयी।”
“लेकिन वह तो और भी बहुत कुछ बता रहा था… चलते-चलते इतना सब का मौका कहां मिल जाता है?”
“वह हलवाई के साथ वाली गली है न, उसमें उसकी एक रखैल रहती है जो शाम के वक्त अकेली होती है तो कोचिंग से वापसी में पांच से दस मिनट मुझे वहीं जाना पड़ता है। उसका बस चले तो घंटा भर रोक ले लेकिन मैंने कह रखा है कि देर हुई तो अब्बू कोचिंग पहुंच जायेंगे और उन्हें पता चल जायेगा कि मैं बीच में कहीं गायब होती हूँ तो अगले दिन से कोचिंग बंद … इसी बिना पर पांच दस मिनट में छोड़ देता है।”
“मैंने यह सोच कर उसकी मदद मांगी थी कि यह तीन चार महीने संभाल लेगा, तब तक एग्जाम हो जायेंगे औल तुम्हें बाहर निकलने की जरूरत ही नहीं रह जायेगी लेकिन …”
“सोचा तो मैंने भी यही था लेकिन उसने भी यह भांप लिया है शायद … इसलिये एग्जाम से पहले ही सबकुछ कर लेना चाहता है।”
“क्यों न अब्बू को सबकुछ इशारों में बता कर मुहल्ला ही चेंज कर लें।”
“उससे क्या होगा? कौन सा यह दिल्ली मुंबई है… छोटा सा तो शहर है। हम जहां जायेंगे वह वहां पहुंच जायेगा। मुझे नहीं लगता कि हमें अब तब तक उससे छुटकारा मिलने वाला जब तक वह किसी केस में अंदर न हो जाये।”
“लड़की होना भी ऐसी जगह गुनाह है। तुम्हें कितना खराब लगता होगा यह सब।”
“एक बात कहूँ… तुम लड़के हो, शायद इस बात को ठीक से न समझ पाओ। जवान जनाना बदन स्पर्श पे मर्दाना संसर्ग मांगने ही लगता है। पहले जब जबरदस्ती, अनचाहे तौर पर मुझे छुआ जाता था तब बहुत खराब लगता था लेकिन फिर वह मौका आया जब उसकी गोद में बैठ कर खुद को छुआना पड़ा और वह उस उस अंदाज में जो पहले कभी सोचा भी नहीं था तो अहसास बदल गये।”
“मतलब?” मैं हैरानी से उसका चेहरा देखने लगा।
“मतलब कि मैं भले तुम्हारी बहन हूँ तो तुम्हें खराब लगेगा लेकिन हूँ तो एक लड़की ही, जिसके शरीर में भी एक भूख बसती है … तो उसका पांच दस मिनट में वह सब कर लेना बुरा नहीं बल्कि एक राहत जैसा महसूस होता है।”
“तो मतलब मौका आयेगा तो तुम उससे करा भी लोगी?” मैंने अविश्वास भरे अंदाज में कहा।
“क्या मेरे पास नकारने का विकल्प होगा? क्या अभी तुम्हारे पास था? जिस चीज से यह तय है कि हम बच नहीं सकते तो क्यों न उसे एंजाय ही कर लिया जाये। अक्लमंदी इसी में है।”
“तुमने उसका सामान देखा है कितना बड़ा है?”
“हां.. वह निकाल कर सहलवाता है तो देखा तो है ही और उसी वजह से तो डरती हूँ कि जल्दी पीछा छुड़ा के भागती हूँ लेकिन मन में कहीं न कहीं यह सोच के एक एक्सेप्टेंस तो रहता ही है कि बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी।”
“तुमने पहले किया है क्या कभी?” कोई और मौका होता तो यह बात मेरी जुबान से न निकल पाती लेकिन आज बात और थी।
“कभी नहीं। ज्यादा डर तो इसी से रहता है कि पहली बार में ही इतना बड़ा लेकिन खैर… देखते हैं।”
“हो ही न पायेगा।” मैंने बेयकीनी से कहा।
“तुम बुद्धू हो। तकलीफ ज्यादा होगी लेकिन हो सब जायेगा। कुदरत ने वह अंग बनाये ही इस तरह से होते हैं।”
“तुम्हें कभी उसने चुसाया?”
“कोशिश कई बार की लेकिन मैं न नुकुर कर के टाल गयी … लेकिन देर सवेर यह नौबत आयेगी ही तो मन में उसका भी नकार नहीं है।”
“और मुंह में ही निकाल दिया तो … छी। उल्टी करते आंतें गले में आ गयी हैं।”
“तुम्हारा मामला दूसरा है। न तुम समानलिंगी आकर्षण महसूस करते हो, न गे हो और न ही तुम्हारे लिये यह एक्सेप्टेड था जबकि मैं अपोजिट सेक्स हूँ तो मेरे लिये हर चीज में आकर्षण भी है और कुछ भी अनएक्सपेक्टेड नहीं।”
मैं बड़े ताज्जुब से उसे देखने लगा और वह मुस्करा रही थी… मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी बहन और बड़ी हो गयी हो। अपना अच्छा बुरा मुझसे कहीं बेहतर समझती हो और उसे अपने शरीर को इस्तेमाल करने की भी पूरी आजादी है, जिसकी चिंता में मैं दुबला हुआ जा रहा हूँ।
खैर… उस बात को कई दिन गुजर गये और यूं ही जनवरी निकल गयी। फिर फरवरी के पहले हफ्ते में ही राकेश ने एक रात मुझे अकेले में धर लिया कि संडे दोपहर मुझे रुबीना को ले के एक जगह आना है, चाहे जो भी बहाना बनाना पड़े।
मतलब यह कोई फरियाद नहीं थी बल्कि हुक्म था जो मुझे मानना ही था। मैंने बहन से बताया तो वह उसे पहले ही बता चुका था। वह समझ सकती थी, मैं समझ सकता था कि क्यों बुलाया था। संडे मतलब दो दिन बाद और इन दो दिनों तक लगातार मेरी आंखों के आगे मेरी नाजुक सी बहन और राकेश का लंबा मोटा लिंग नाचते रहे और मैं मन ही मन बुरी तरह बेचैन होता रहा।
जैसे तैसे संडे भी आ ही गया। संडे को कोचिंग की छुट्टी होती थी और अब्बू भी घर ही होते थे तो कालेज की किसी लड़की से मुलाकात के बहाने मुझे साथ ले कर उनकी ही स्कूटी से घर से निकलना न बहुत मुश्किल था और न ही अम्मी अब्बू के लिये किसी किस्म की शक शुब्हे वाली बात ही थी।
जो पता राकेश ने बताया था वह शहर के किनारे नये बसते मुहल्ले में एक बनते हुए मकान का था जहां एक ही कमरा रिहाइश के काबिल था और वहां दो तख्त मिला कर बिस्तर बना लिया गया था और उसी कमरे में एक प्लास्टिक टेबल सहित चार कुर्सियां मौजूद थीं जिन पर वह अपने जैसे दिखने वाले दो दोस्तों के साथ बैठा शराब पी रहा था।
हमें देखते ही उनकी आंखों में भेड़िये जैसी चमक आ गयी थी और मैं सहम गया था। राकेश के सिर्फ इशारे पर रुबीना ने नकाब उतार दिया था और वह तीनों इस तरह से उसे निहारने लगे थे जैसे कसाई बकरे का मुआयना कर रहा हो कि कहां कितना गोश्त निकलेगा।
राकेश के संकेत पर वह तख्त पर बैठ गयी और वह खुद भी उठ कर उससे चिपक कर बैठ गया, जबकि वह बाकी दोनों वैसे ही बैठे रहे।
उनकी बातों से अंदाजा हुआ कि वे तीनों ही किसी कॉमन केस में आरोपी थे, जिसकी कल सुनवाई होनी थी और उन्हें इस बात की पूरी आशंका थी कि कल उनकी आजादी खत्म हो सकती थी और वे लंबे नप सकते थे… तो आज मौज मेला कर लेना चाहते थे।
लेकिन राकेश तक तो ठीक था, पर यह दोनों क्यों थे … क्या तीनों ही रुबीना के साथ करने वाले थे? क्या उसे यह स्थिति पता थी? क्योंकि जैसा ताज्जुब वहां राकेश के दोनों साथियों को देख कर मुझे हुआ था, वैसा उसे होता मुझे नहीं लगा था।
उसके दोस्तों, जिनके नाम बाद में पता चले जिंकू और गुड्डा थे… ने इच्छा प्रकट की थी कि मुझे इस बीच टहलने के लिये बाहर भेज दिया जाये लेकिन खुद रुबीना ने ही मना कर दिया। यह मेरे लिये और ताज्जुब की बात थी कि क्या वह इन लोगों के साथ संभोग के दौरान मेरी मौजूदगी में सहज रह पायेगी।
लेकिन इसकी एक बड़ी वजह मेरी समझ में यही आई कि वह राकेश को जानती थी जबकि बाकी दोनों उसके लिये अजनबी थे, जिन्हें ले कर उसके मन में डर रहा होगा और वह भी कोई इस चीज की आदी तो थी नहीं, यह पहली बार ही हो रहा था तो ऐसी स्थिति में शायद मोरल सपोर्ट चाहती हो। वैसे भी जब हमारे बीच यह सब बातें ओपन थी ही तो एक कदम और आगे बढ़ जाने से क्या बिगड़ जाना था।
लेकिन यह मेरे लिये भी कम तकलीफ की बात तो नहीं होती कि मैं अपने सामने उन तीनों से अपनी बहन को चुदते देखता। मैं वहां से हट जाना चाहता था लेकिन मेरी निगाहें रुबीना से मिलीं तो वह याचना करती लगी। शायद भरोसा नहीं कर पा रही थी उन लोगों पर … वैसे भी वह नशे में थे।
उसकी हालत देखते हुए मैं चुपचाप बैठ गया और लाचारी और बेचारगी से उन्हें देखने लगा।
राकेश उसका चेहरा पकड़ कर उसके होंठों को चूसने लगा था। उसके मुंह से छूटते शराब के भभूके रुबीना को भारी पड़ रहे होंगे लेकिन बर्दाश्त करना ही था। फिर राकेश ने मेरे देखते उसकी जम्पर पकड़ कर ऊपर उठा दी कि उसकी पहनी काली ब्रा बाहर आ गयी।
कुछ पल तो वह एक हाथ से ऊपर से ही दोनों दूध दबाता रहा, फिर उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया और पीठ पर ब्रा के हुक खोलते हुए उसे ऊपर उठा कर रुबीना के दोनों दूध बाहर निकाल लिये और दोनों हाथों से दोनों दूध दबाने लगा।
भले वह मेरी बहन हो, हम एक घर में रहते हों और बचपन में मैंने उसे बिना कपड़े भी देखा हो लेकिन उसके विकसित दूध पहली बार देख रहा था। जैसी वह गोरी चिट्टी थी वैसे ही उसके दूध भी एकदम झक सफेद थे राकेश की भाषा में और उन पर उभरे आधा इंच के चुचुक गुलाबी थे, जिन्हें वह मसल रहा था।
अब मेरी कैफियत अजीब हो रही थी … मतलब कुछ भी हो लेकिन मैं पुरुष ही साबित हो रहा था। मुझे इस हालत में गुस्सा आना चाहिये था लेकिन मैं उस आक्रोश को महसूस ही नहीं कर पा रहा था।
राकेश ने दोनों दूध छोड़ के उसकी सलवार का नाड़ा खोला और उसे खड़ी करके एकदम सफेद रंग की पैंटी समेत घुटनों तक नीचे खिसका दिया। एकदम से उसकी योनि का ऊपरी हिस्सा अनावृत हो गया जो अस्पष्ट तो था लेकिन ऊपर चार पांच दिन पहले के शेव किये काले बाल साफ देखे जा सकते थे।
फिर उसकी कमर में हाथ डालते राकेश ने उसे बिस्तर में गिरा लिया और उल्टा कर दिया जिससे उसके चांद जैसे उज्ज्वल सफेद चिकने नितंब आंखों के सामने आ गये। राकेश ने अपनी पैंट भी अंडरवियर समेत घुटनों तक सरका दी जिससे उसका बड़ा सा झूलता हुआ लिंग आजाद हो गया। वह अपने लिंग को रुबीना के चूतड़ों की दरार में टिका कर उसे रगड़ने लगा और हाथों से उसकी पीठ और कमर मसलने लगा।
मैं देख सकता था उसका लिंग रुबीना के चूतड़ों को पार कर रहा था और मैं सोच रहा था कि यह जब अंदर डालेगा तो बेचारी का क्या हाल होगा… और यह सोच-सोच कर मेरा हलक सूखने लगा था।
जबकि इस रगड़ाई ने राकेश के दोनों साथियों जिंकू और गुड्डा को भी उकसा दिया था और वे दोनों भी अपनी पतलूनें जांघियों समेत घुटनों तक उतार कर अपने लिंग हाथ से सहलाते हुए बिस्तर पर पहुंच गये थे। उनके लिंग देख कर मुझे राहत हुई कि वे पांच से छः इंच तक के सामान्य लिंग ही थे न कि राकेश जैसे।
अब राकेश हटा तो जिंकू लद गया… वह रुबीना के होंठ चूस रहा था, दूध मसल रहा था, घुंडिया चूस रहा था और उसके चूतड़ों पर अपना लिंग रगड़ रहा था। ऐसा तो खैर मुझे नहीं लगा कि उसका यूँ रगड़ना रुबीना को कहीं से बुरा लग रहा हो और न ही ऐसा लग रहा था जैसे वह इस घर्षण को एंजाय कर रही हो। शायद वह खुद ही कशमकश में होगी अपनी शारीरिक अनुभूतियों को ले कर।
जिंकू हटा और गुड्डा तो और आक्रामक अंदाज में उसे रगड़ने लगा।
इस बीच राकेश ने कपड़ों से पूरी तरह आजादी पा ली थी और नंगा हो गया था। जबकि जिंकू अब अपने कपड़े उतारने लगा था। राकेश ने रुबीना की सलवार भी पैंटी समेत उतार कर मेरे मुंह पर फेंक दी, जैसे कह रहा हो कि बहन के कपड़े हैं तू संभाल। फिर उसका कुर्ता और ब्रेसरी भी उसके शरीर से निकाल कर मेरी तरफ उछाल दी।
गुड्डा अच्छे से रगड़ चुका तो हट कर कपड़े उतारने लगा और जिंकू जो कपड़े उतार चुका था, अब रुबीना के दोनों दूधों को मसल मसल कर पीने लगा था… राकेश घुटनों के बल रुबाना के मुंह के पास पहुंच गया था और एक हाथ से उसके सर को सपोर्ट देते दूसरे हाथ से लिंग को पकड़ कर उसके होंठों पर रगड़ने लगा।
पता नहीं क्यों मुझे लगा कि वह मना कर देगी और राकेश शायद मान भी जाये … लेकिन मुझे यह देख कर निराशा हाथ लगी कि उसने मुंह खोल कर राकेश का लिंग अंदर ले लिया और उसे चूसने लगी। मैंने अपने चूसने से उसकी तुलना की … उसने सही कहा था कि विपरीतलिंगी आकर्षण अलग होता है। उसके चूसने का अंदाज अलग था और जहां मुझे जबरदस्ती जैसा लग रहा था, वहीं वह मजा लेती लग रही थी।
गुड्डा कपड़े उतार चुका तो उसने पैरों की तरफ आ कर रुबीना के दोनों पैर इस तरह फैला दिये कि उसकी योनि पूरी तरह खुल कर सामने आ गयी और इस तरह वह मुझे भी दिख गयी। गोरी, गुदाज, फूली हुई जिसके गहरे रंग के उभरे हुए किनारे जैसे उसे घेरे हुए हों। उसने उंगली और अंगूठे से उसे फैलाया… अंदर ऊपर से नीचे तक सुर्ख गोश्त। जो छेद था भी वह इतना संकुचित होगा कि दूर से देखने पर दिख तक नहीं रहा था।
“उस्ताद, यह तो कच्ची है यार।” वह मजे लेते हुए बोला।
“हां बे पता है… पता है, इसने मेरे लंड के लिये ही झिल्ली बचा कर रखी हुई थी। आज मैं ही सील तोड़ूंगा इसकी।” राकेश अपना लिंग चुसाता हुआ बोला।
गुड्डा अपना मुंह उसकी योनि तक ले जा कर सूंघने लगा और अच्छे से सूंघने के बाद अपनी जीभ से उसकी योनि के उभरे गहरे किनारों को छेड़ने चुभलाने लगा। जिंकू ऊपर उसके वक्षों का बुरी तरह मर्दन किये दे रहा था और राकेश अपने लिंग को चुसाते हुए एकदम कठोर किये ले रहा था।
फिर वे एकसाथ तीनों मिल कर उसे रगड़ने लगे। राकेश ने भी लिंग निकाल लिया और उसके होंठ चूसने लगा। तीनों ही उसे बुरी तरह रगड़ रहे थे, चाट रहे थे और चूस रहे थे… उसके होंठ, वक्ष, चुचुक, योनि और नितंब कुछ भी महरूम न रहा और बार-बार तीनों में से कोई न कोई अपना लिंग उसके मुंह में दे देता, जिसे वह चपड़-चपड़ कर चूसने लगती।
अब देख के लग रहा था कि शरीर को मिलते घर्षण का आनंद अब उसे उत्तेजित कर चुका था और वह सिर्फ एक चीज को छोड़ कर बाकी सब भूल गयी थी कि वह स्त्री थी और कुछ पुरुष उसे यूँ शारीरिक सुख दे रहे थे, जो कि उसका हक था।
वे एकसाथ तीनों मिल कर उसे रगड़ने लगे। राकेश ने भी लिंग निकाल लिया और उसके होंठ चूसने लगा। तीनों ही उसे बुरी तरह रगड़ रहे थे, चाट रहे थे और चूस रहे थे… उसके होंठ, वक्ष, चुचुक, योनि और नितंब कुछ भी महरूम न रहा और बार-बार तीनों में से कोई न कोई अपना लिंग उसके मुंह में दे देता, जिसे वह चपड़-चपड़ कर चूसने लगती।
अब देख के लग रहा था कि शरीर को मिलते घर्षण का आनंद अब उसे उत्तेजित कर चुका था और वह सिर्फ एक चीज को छोड़ कर बाकी सब भूल गयी थी कि वह स्त्री थी और कुछ पुरुष उसे यूँ शारीरिक सुख दे रहे थे, जो कि उसका हक था।
मैं सबके लिये नगण्य हो कर रह गया था और एक चीज मैं भी महसूस कर रहा था कि उस लाईव पोर्न को देखते मैं भी बस पुरुष हो कर रह गया था। न भाई बचा था न दोस्त… उन्नीस का होने तक भले मेरे साथ पांच छः बार गुदामैथुन किया गया हो लेकिन मुझे कभी वेजाइनल सेक्स का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ था तो अब तक मैं उस सुख से वंचित ही था।
जो सामने था, वह उत्तेजना से भर देने वाला था, रगों में उबाल ला देने वाला था और मैं अपने लिंग को कठोर होते महसूस कर सकता था।
मेरी बहन का मखमली गोरा गुदाज बदन वह तीनों मजबूत मर्द मसल रहे थे, रगड़ रहे थे… उसका मुखचोदन कर रहे थे, दूध दबा रहे थे, घुंडियां चूस रहे थे, योनि सहला रहे थे, आगे पीछे के छेदों में उंगली कर रहे थे और वह सीत्कार कर रही थी, कभी-कभी जोर से कराह उठती थी और अब बस कमरे में पांच शरीर ही रह गये थे, कोई रिश्ता न बचा था। तीन मर्द एक स्त्री शरीर का घर्षण कर रहे थे और एक मर्द उस लाइव नजारे को देख कर उत्तेजना से तप रहा था।
मैंने महसूस किया था कि मेरे लिंग से भी पानी निकलने लगा था और मैं अपने सूखे होंठों पर जीभ फिराते पैंट के ऊपर से ही उसे दबाने सहलाने लगा था। बहन या बहन की चुदाई को ले कर जो भी प्रतिरोध या आक्रोश मेरे मन में था, वह खत्म हो चुका था… जब जिसके शरीर का उपभोग हो रहा था, शुरुआती हिचकिचाहट के बाद वह खुद उस सबको एंजाय कर रही थी तो मैं प्रतिरोध करने वाला कौन होता था।
जल्दी ही वह चारों पूरी तरह गर्म हो गये। तीनों के लिंग कठोर हो कर तन गये थे और रुबीना की योनि भी गीली हो कर बहने लगी थी… तब वह अलग हो गये।
“चल मेरी जान… अपने पहले लंड के लिये तैयार हो जा। थोड़ा दर्द तो होगा पर बाद में मजा भी खूब आयेगा।” राकेश अपने लिंग को हाथ से सहलाते हुए बोला।
गुड्डा और जिंकू उसके दायें बायें लेट कर उसका एक-एक दूध सहलाते पीने लगे और हाथ से नीचे योनि भी ऊपर-ऊपर से सहलाने लगे। राकेश ने रुबीना के घुटने मोड़ कर उसके पैर फैला लिये थे। इसके बाद राकेश ने उठ कर अलमारी में मौजूद एक शीशी उठाई और उससे ढेर सा जेल निकाल कर अपने लिंग पर मलने लगा। यह देख मुझे बड़ी राहत हुई कि कम से कम चिकना कर के घुसायेगा… वैसी ही घुसाने की कोशिश करता तो बेचारी की हालत खराब हो जाती।
इतना गर्म होने के बाद रुबीना की योनि हालाँकि आलरेडी बह रही थी लेकिन उसने वहां जेल डाल कर उसे और चिकना कर दिया और छेद में बिचली उंगली अंदर बाहर करने लगा… जबकि दोनों जमूरे उसकी योनि के ऊपरी सिरे पर छेड़छाड़ करते उसके दाने को सहला रहे थे।
फिर जब दोनों अंगों पर काफी चिकनाहट हो गयी तो वह अपने लंबे मोटे लिंग को एक हाथ से पकड़ कर उसकी चिकनाई बहाती योनि पर ऊपर नीचे रगड़ने लगा।
“डालूं?” राकेश ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा और मेरी बहन ने सर हिला कर “हां” में इशारा किया।
हमारे यहां एक देसी कहावत है कि भैंस बियाये और बर्ध की गांड फटे। यह हाल मेरा हो रहा था कि चुदने मेरी बहन जा रही थी और फट मेरी रही थी कि कैसे जायेगा उसका इतना मोटा लिंग जहां छेद तक ठीक से नहीं दिख रहा था।
उधर राकेश ने एकदम से धक्का दिया और रुबीना की चीख निकल गयी। मेरा दिल जोर से धड़का और पसीना सा आ गया जबकि वह छटपटाने लगी थी। जिंकू और गुड्डा ने उसे दबोच लिया था कि वह ज्यादा हिल न सके और राकेश ने उस पर झुकते हुए उसका मुंह दाब लिया था कि वह और चीख न सके और उन्हें देखते मेरी हालत खराब हो रही थी।
फिर मेरे देखते राकेश ने दूसरा धक्का और जोर से लगाया और उस पर लद गया। दोनों चेले साइड हो गये और राकेश उस पर छा गया और उसके होंठ चूसने लगा। वह उसके नीचे दबी छटछपटाती रही और मेरी बेचैनी बढ़ती रही।
धीरे-धीरे उसकी छटपटाहट शांत हो गयी और फिर राकेश उसके होंठों को छोड़ उसके दूध दबाने और चूसने लगा। फिर अपनी कमर को उसी पोजीशन में रखते, घुटने मोड़ते वह उठा तो दोनों चेलों ने फिर हमला कर दिया उसके दूधों पे और उन्हें मसलने चुभलाने लगे।
बैठ कर राकेश ने अपना खून से नहाया लिंग बाहर निकाला तो उसकी खून खच्चर योनि मुझे दिखी और मेरा कलेजा हलक को आया। सारी उत्तेजना हवा हो गयी। मैं बेचैनी से हाथ मलता उठने को हुआ तो राकेश ने घुड़कती हुई निगाहों से मुझे देखा और मैं कसमसाते हुए वापस बैठ गया।
रुबीना शायद बेहोश हो गयी थी।
उसने सरहाने पड़ा अंगोछा उठाया और लिंग और योनि के खून को साफ करने लगा। अच्छे से साफ करने उसने फिर जेल लगाया और एक बार फिर उसकी योनि से लिंग सटा कर अंदर ठेल दिया। नीम बेहोशी में भी उसके शरीर का निचला हिस्सा हल्के से छटपटाया लेकिन इस बार राकेश ने थामने की कोशिश नहीं की।
दोनों चेले ऊपर पहले की तरह लगे रहे और राकेश धीरे-धीरे लिंग अंदर बाहर करने लगा। साथ ही वह अपने अंगूठे से उसके दाने को रगड़ भी रहा था ताकि उसमें उत्तेजना का संचार होता रहे। जबकि मुझे लग रहा था कि वह होश में ही नहीं रही थी।
सबकुछ यूँ ही होता रहा और करीब तीन चार मिनट बाद उसमें हलचल हुई और वह आंखें खोल कर राकेश को देखने लगी। फिर उसने चेहरा घुमा कर मेरी ओर देखा जैसे मुझे आश्वासन दे रही हो कि वह ठीक है … साथ ही उसकी निगाहों में गर्व का भी भाव मैंने महसूस किया कि जैसे कह रही हो कि देखा, मैंने कहा था न कि हमारे अंगों की बनावट ऐसी होती है कि मैं झेल लूंगी।
जबकि राकेश अब फिर उस पर झुकता हुआ उसके होंठों को चूसने लगा।
फिर धीरे-धीरे उसके धक्कों में तेजी आने लगी और वह उठ कर बाकायदा बैठ गया। अब जिंकू उसके सीने पर बैठ गया अपने ही घुटनों पर वजन रखते हुए और अपना लिंग उसके दूधों के बीच रख कर, उसे दोनों दूधों से दबाते हुए आगे पीछे करने लगा। गुड्डा उसी पोजीशन में उसके मुंह पर बैठ कर अपना लिंग उसके मुंह में दे कर आगे पीछे करने लगा और यूँ इन पोजीशंस में तीनों उसे चोदने लगे।
जब धीरे-धीरे मैंने उसे सहज होते देखा तो मुझे भी राहत हुई और मेरी उत्तेजना का स्तर फिर बढ़ने लगा।
जब राकेश ने भी उसकी सहजता को महसूस कर लिया तो उसने उन दोनों से हटने को कहा और दोनों ही रुबीना को छोड़ के अलग हट गये। ऐसा लगा जैसे वह अब वन ऑन वन चोदन के मूड में हो।
रुबीना को भी शायद यही चाहिये था। अब तक वह निर्लिप्त भाव से उन्हें जैसे झेल रही थी लेकिन अब वह खुद से सहयोग करने लगी। दोनों एक दूसरे से चिपटने रगड़ने लगे और अब वह खुद से एंजाय करने लगी राकेश के हैवी लिंग को। दोनों पोजीशन बदल-बदल कर एक अति उत्तेजित संभोग कर रहे थे। सबसे ज्यादा एंजाय शायद उसने डोगी स्टाईल में किया। मुझे लगा कि अब तक उसके दिमाग में शायद जो-जो रहा हो, वह सब भोग लेना चाह रही हो।
कमरे के सीमित वातावरण में उनकी धचर-पचर गूँज रही थी और मुझे यह देख कर थोड़ा हैरानी भी हो रही थी कि कैसे राकेश अपने लंबे मोटे लिंग से इतनी आसानी से उस योनि से समागम कर पा रहा था जिसने पहले कभी कोई उंगली तक अंदर न ली हो।
फिर वह थक कर हट गया तो रुबीना की योनि को फिर साफ कर के जिंकू ने अपना लिंग घुसा दिया और भचीड़ भचीड़ कर उसे चोदने लगा। मुझे यकीन था कि राकेश के मुकाबले उसे राहत महसूस हो रही होगी।
हालाँकि भले जिंकू उसके लिये अजनबी हो लेकिन उससे चुदाने में भी वह वही आत्मीयता दिखा रही थी जो राकेश के साथ दिखा रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे कोई प्रेमी जोड़ा संभोगरत हो। धक्के खाते हुए उसका पूरा शरीर लहरें ले रहा था और उसके वक्ष बुरी तरह हिल रहे थे।
फिर वह थक गया तो उसे हटा कर गुड्डा लग गया और वह उससे भी उसी अंदाज में चुदाने लगी जैसे पहले राकेश और जिंकू से चुदा रही थी।
चुदते-चुदते वह झड़ी न झड़ी, मुझे नहीं पता लेकिन अगले दो घंटे तक वह तीनों मिल कर उसे बारी-बारी चोदते रहे और इस बीच दो-दो बार झड़े। बहरहाल मेरे हिसाब से गनीमत यह रही कि उसके मुंह में नहीं झड़े। कोई योनि में झड़ा, कोई चूतड़ों पे, कोई पेट पे तो कोई चूचों पे।
और इस दो घंटे की चुदाई में वह बुरी तरह थक गयी थी और उसका हाल ऐसा हो गया था कि वह ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। हालाँकि उस चुदाई को देख के मेरी अंडरवियर भी भीग गयी थी और बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को झड़ने से बचाया था।
इसके बाद वहां रुकने की जरूरत नहीं थी। मैं उसे ले के घर आ गया और वह पड़ गयी। अगले दो दिन उसकी हालत खराब ही रही और उसे तकलीफ से उबरने में दवा खानी पड़ी थी। अम्मी के पूछने पर खराब तबीयत का बहाना बना दिया था।
राकेश का अंदेशा सही निकला था और वह बुक हो गया था। एक बार की चुदाई में उससे छुट्टी मिल गयी थी। जैसा उसने कहा था कि उसके जाने के बाद भी कोई रुबीना को परेशान नहीं करेगा। वाकई उसके पीछे मुहल्ले के लौंडे लफाड़ी फब्तियां भले कसते रहे हों या पीठ पीछे बातें बनाते रहे हों लेकिन सामने से कोई हरकत नहीं करता था और इसी तरह उसका ग्रेजुएशन कंपलीट हो गया और बाहर निकलने की झंझट ही खत्म हो गयी।

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