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अजीब दास्ताँ है ये

 



ऐसे ही मेरी कहानी लिखने का सिलसिला चल रहा था, जब मुझे एक दिन एक लड़की का ईमेल आया उसने मेरी कहानी पढ़ी और पढ़ कर मुझे तारीफ का ईमेल किया। मैंने भी उसका शुक्रिया किया, ऐसे ही धीरे धीरे बात बढ़ने लगी, तो मुझे पता चला कि वो लड़की मेरे शहर से कोई 100 किलोमेटर दूर रहती है।

फिर एक दिन उस लड़की ने अपनी पिक्स भी मुझे भेजीं। एक बहुत ही सुंदर, दूध से भी गोरी, बड़ी प्यारी से 18 साल की लड़की। मेरे बच्चों जैसी!
अब मेरी कोई बेटी नहीं है तो मुझे उस पर बहुत प्यार आया। इतना प्यार आया कि मुझे ऐसे लगने लगा जैसे वो मेरी ही बेटी हो और बस मुझसे दूर कहीं हॉस्टल में या पीजी में रहती हो।

मगर सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि हमारी जान पहचान मेरी कहानी पढ़ने की वजह से हुई थी, तो मुझे तो ये था कि कोई मेच्योर लड़की होगी, इसी लिए मैंने उस से शुरू से ही अपनी बातचीत ऐसी रखी जिसमें बहुत से असंसदीय शब्दों का प्रयोग किया। मगर उसने कहा कि उसे ये शब्द सभी पता हैं और वो सब कुछ जानती है. मगर वो इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर सकती, उसे अच्छा नहीं लगता बात करते हुये गांड, फुद्दी, लंड या मादरचोद बहनचोद जैसी शब्दावली का इस्तेमाल करना।

यह बात मुझे बाद में पता चली कि वो सिर्फ एक 18 साल की लड़की है। यह जानने के बाद मेरा उस लड़की के लिए नज़रिया काफी हद तक बदल गया। साफ बात है, पहले तो मैं उस पर अपनी ठर्क मिटाता था, मगर बाद में मुझे लगा कि नहीं … यह लड़की इसलिए मेरी दोस्त नहीं बनी है कि मैं उस पर अपनी गंदी निगाह डालूँ। मगर जब हम दोनों में किसी कहानी को लेकर बात होती, तो स्वाभाविक तौर पर मुझे उसके साथ बहुत खुल कर बात करनी पड़ती. और जब मैं लिखता ही सेक्सी कहानियाँ हूँ, तो हमारी बात चीत का असल मुद्दा सेक्स ही होता।

अब मैं उसे अपने बेटी की तरह चाहता भी था और उस से सेक्सी बातें भी करता था। उसके मन में क्या चल रहा था, मुझे नहीं पता; मगर मेरे मन में बहुत हलचल थी, बेचैनी थी। मैं खुद यह नहीं समझ पा रहा था कि मैं उस किस नज़र से देखूँ कि बाप की नज़र से या एक ठर्की मर्द की नज़र से। तो मैंने सोचा इस रिश्ते को कोई नाम देकर देखता हूँ।
मैंने उससे कहा कि वो मुझे पापा कह कर बुलाया करे।
उसके बाद वो हमेशा मुझे पापा ही कहती, मैं भी उसे बेटा ही कहता।

मगर इससे भी मेरी कश्मकश का कोई हल नहीं निकला। मैं उसे बेटी कह कर भी चोदने के सपने देखता। मन में सोचता कि अगर कहीं ऐसी बात बने कि वो मुझसे सेक्स करने को मान जाए तो मुझसे ज़्यादा दूर तो वो है नहीं; इसलिए मैं वहाँ उसके पास चला भी जाऊंगा.
पर फिर सोचता, वो तो मुझे पापा कहती है, क्या मैं उसको चोद पाऊँगा।

ईमेल के जरिये हमारी बातचीत होती रही। वो अक्सर मुझे अपनी सेलफ़ी खींच कर भेजती रहती थी, मैंने उसे समझाया भी कि ये इंटरनेट की दोस्ती का कभी ऐतबार नहीं करना चाहिए. तुम अभी छोटी हो इसलिए इंटरनेट पर कभी भी किसी को भी अपनी पिक्स नहीं भेजनी चाहिए।

हमारी बातचीत चलती रही, वो अक्सर अपने बारे में मुझे बताती रहती, बाप बेटी के रिश्ते बनने के बावजूद मैं कभी कभी उसके जिस्म के बारे में उस से पूछता, और वो भी बड़े आराम से बता देती, मेरी ब्रा का साइज़ ये है, पेंटी का साइज़ ये है। मैं मन ही मन बहुत प्रसन्न होता, एक 18 साल की नौजवान लड़की एक 47 साल के आदमी को अपने अनछूये, कुँवारे जिस्म के बारे में बता रही है। उसके सीने के उभार उसकी गांड की गोलाई, जांघों का चिकनापन, महीना आने का दिन, झांट के बाल साफ करती है या नहीं, सब कुछ वो मुझे बता देती थी और ऐसे विश्वास से बताती जैसे उसका मुझसे कोई पर्दा ही नहीं था।

कभी कभी मैं सोचता कि यार एक कच्ची कली तेरे पास सेट हो गई है, अगर मौका मिलता है तो रगड़ दे। कच्ची कली को मसल कर फूल बना दे, खोल दे उसकी फुद्दी के रास्ते।
18 साल की नाज़ुक की लड़की को चोद कर तो तुझे ज़िंदगी का वो सुख मिलेगा, जिसके लिए दुनिया के बड़े बड़े तीस मार खान तरसते हैं।

मगर फिर ये भी ख्याल आता कि यार वो तो तुझे पापा कहती है। फिर मैं सोचता, पापा कहती है तो क्या, मेरी बेटी तो नहीं, मेरा खून नहीं। मेरे लिए तो वो बस एक अनचुदी फुद्दी है। क्या सच में अनचुदी है।
फिर मैंने उससे पूछा कि क्या उसका कोई बॉय फ्रेंड है, क्या कभी उसने सेक्स किया है। तो उसने बताया कि उसका एक बॉयफ्रेंड तो है, मगर उसके साथ उसने सिर्फ दो बार किस किया है, उससे ज़्यादा उसने कुछ नहीं किया। न उसके बॉय फ्रेंड ने उसके मम्मे दबाये, न उसको अभी तक अपना लंड निकाल कर दिखाया है। सेक्स का तो अभी सवाल ही पैदा नहीं होता।

सच में मेरे मन में उसकी अनदेखी गुलाबी फुद्दी की बहुत ही सुंदर तस्वीर बन गई। मैं मन ही मन सोचने लगा कि अगर उसके साथ सेक्स करने का मौका मिल जाए तो पहले मैं उसकी गुलाबी फुद्दी को तब तक चाटूँ, जबतक उसका पानी न गिर जाए, उसकी गुलाबी फुद्दी से निकलने वाले पानी को पी कर मैं धन्य हो जाऊँ, उसकी गांड के नन्हे से छेद भी चाट जाऊंगा। उसके सारे चूतड़ भी चाट लूँगा। नर्म, मुलायम, गुलाबी रंग का उसका जिस्म, जहां भी मुंह लगाऊँगा, बस रस ही रस चूसने को मिलेगा।

वो अक्सर मुझे अपनी सेलफ़ी भेजती रहती और मैं हर बार उसकी पिक्स देख कर उसके साथ बातें करके उसके प्यार की गहराई में और डूबता जाता। अब तो मुझे हर पल, सोते जागते, उठते बैठते सिर्फ उसी का खयाल आता। मैं अंदर ही अंदर बहुत बेचैन हो रहा था। कभी मैं उसको चोदने के खवाब बुनता, कभी उसको अपनी बेटी की तरह प्यार करने का सोचता। कभी मेरा मन मुझे अपनी बेटी के बारे में ऐसा गंदा सोचने पर, ऐसे गंदी गंदी बातें करने पर लानत देता, कभी उसको चोदने के लिए उसको मनाने के लिए नए नए आइडिया देता। मैं खुद नहीं समझ पा रहा था कि मैं क्या करूँ।

बहुत सी कहानियों में बहुत से लोगों ने मुझसे राय मांगी थी; मैंने उनको राय दी भी और उनको मेरी राय पसंद भी आई। मगर अपनी बारी मुझे कोई राय, कोई समझ काम नहीं आ रही थी। मुझे ऐसे लग रहा था, जैसे मैं बिलकुल ही बेवकूफ़ हो गया हूँ, मुझे कोई समझ ही नहीं। कभी वो मेरे ख्यालों में मेरे सामने पूरे कपड़ों में सजी धजी, मेरी बेटी बन कर आती तो कभी नंग धड़ंग। कभी वो मेरी गोद में मेरी बेटी की तरह बैठती, तो कभी मैं उसे अपनी गांड मेरे ताने हुये लंड पर सेट करने को कहता।

इस सब से निकालने का एक रास्ता मैंने सोचा कि मैं उससे ही पूछता हूँ कि अगर वो मेरे साथ सेक्स करने को तैयार है तो मैं उसके पास जाऊंगा और उसे चोद दूँगा। भैनचोद मेरी बेटी थोड़े ही है; मेरे लिए तो सिर्फ एक फुद्दी है, एक कुँवारा जिस्म।

फिर सोचा ‘नहीं यार … मैं उसको बर्बाद क्यों करूँ!’ चलो उसने मेरी लिखी कहानियाँ पढ़ ली, मुझसे बात भी कर ली, मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं उसके भोलेपन का फायदा उठाऊँ।

खैर मैंने एक दिन उस से पूछा- मान लो अगर एक दिन मैं तुमसे मिलने आता हूँ, तुम भी मुझसे मिलने मेरी बताई हुई जगह पर आती हो और मैं तुम्हारे सामने एक प्रस्ताव रखता हूँ कि मैं तुमसे सेक्स करना चाहता हूँ। यहाँ हम दोनों अकेले हैं, कोई हमे देख नहीं रहा। पूरी आज़ादी है हमें; तो तुम क्या करोगी?



मैंने सोचा कि मैं उससे ही पूछता हूँ कि अगर वो मेरे साथ सेक्स करने को तैयार है तो मैं उसके पास जाऊंगा और उसे चोद दूँगा। भैनचोद मेरी बेटी थोड़े ही है; मेरे लिए तो सिर्फ एक फुद्दी है, एक कुँवारा जिस्म।
फिर सोचा ‘नहीं यार … मैं उसको बर्बाद क्यों करूँ!’ चलो उसने मेरी लिखी कहानियाँ पढ़ ली, मुझसे बात भी कर ली, मगर इसका मतलब यह तो नहीं कि मैं उसके भोलेपन का फायदा उठाऊँ।

खैर मैंने एक दिन उस से पूछा- मान लो अगर एक दिन मैं तुमसे मिलने आता हूँ, तुम भी मुझसे मिलने मेरी बताई हुई जगह पर आती हो और मैं तुम्हारे सामने एक प्रस्ताव रखता हूँ कि मैं तुमसे सेक्स करना चाहता हूँ। यहाँ हम दोनों अकेले हैं, कोई हमे देख नहीं रहा। पूरी आज़ादी है हमें; तो तुम क्या करोगी?

उसने मेल भेजा- मुझा नहीं पता पापा। मैं अभी तक ये सब सोच नहीं पाई कि अगर आपने मेरे सामने ऐसी कोई बात कही तो मैं क्या करूंगी।

मैंने फिर मेल की- देखो बेटा, यह कोई पक्का नहीं है, हो सकता है मैं तुमसे मिलने कभी भी आऊँ। मगर अब जब तुमसे मैंने सेक्स के ऊपर इतनी बात करी है, हमने आपस में सेक्स पर एक दूसरे को सब कुछ बताया है। कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि मैं तुम्हें अपने सामने नंगी देखना चाहता हूँ, तुम्हारे इस कुँवारे जिस्म को भोगना चाहता हूँ। तब तुम क्या सोचती हो, तुम क्या करोगी?
उसने मेल भेजा- पापा, मैंने आपसे अपने दिल की हर बार की है। यह सच है कि मैं सेक्स करना चाहती हूँ मगर मुझे ये लगता है कि अभी मेरी इतनी उम्र नहीं हुई है कि मैं ये सब करूँ। मुझे आपसे बात करना बहुत अच्छा लगता है, आप सेक्सी बातें भी करते हो, मुझे कोई दिक्कत नहीं, मैं आपको अपना बहुत अच्छा दोस्त मानती हूँ, जिसके सामने मैं इतना खुल कर बोल सकती हूँ, जितना मैं अपनी किसी खास सहेली से भी नहीं करती। मैंने कभी सोचा नहीं कि मैं आपसे सेक्स करूंगी, पर यह भी नहीं सोचा कि हमारे बीच ये नहीं हो सकता। पता नहीं, होगा या नहीं, मुझे कुछ नहीं पता।

अब उसकी इस बात ने मेरे सामने और समस्या पैदा कर दी। मतलब वो मेरे साथ सेक्स करने को तैयार है भी और नहीं भी। कभी कभी तो मैं उसे सेक्स के लिए तैयार करता, उसे समझाता और वो भी कह देती- ठीक है, जब मिलेंगे तो कर लेंगे।
मगर कभी कभी मैं सोचता ‘अरे छोड़ यार, क्यों लड़की को बहका रहा है। एक बार उसे सेक्स के आदत पड़ गई तो फिर तो वो अक्सर सेक्स चाहेगी। तू तो उसे एक बार चोद कर आ जाएगा, उसके बाद उसका क्या होगा, वो तो पता नहीं; फिर अपनी इस अधूरी इच्छा को पूरा करने के लिए किस किस से चुदेगी। वो तो एक डॉक्टर बनना चाहती है और तू उसे एक गलत राह पर धकेलना चाहता है।’
मैं तो जैसे किसी चक्रव्यूह में फंस गया था।

फिर मैंने सोचा, यार माँ चुदाए दुनियादारी; अगर वो मेरे पास आने को तैयार है तो मैं उसे चोदूँगा, और मुझे कुछ नहीं चाहिए। मुझे सिर्फ उसकी गुलाबी कुँवारी फुद्दी में अपना लंड डालना है। बस उसके बाद मैंने उस से हमेशा ही सेक्स और सिर्फ सेक्स करने की ही बातें करने लगा।

और धीरे धीरे मेरी मेहनत रंग लाई और एक दिन उसने भी कह दिया- ठीक है पापा, अब जब हमारा रिश्ता ही ऐसा है, तो कोई बात नहीं। अगर आप मुझसे मिलने आते हो और मुझे सेक्स के लिए कहते हो तो मैंने आपको अपना सब कुछ सौंप दूँगी। आप मेरे जिस्म के साथ कुछ भी कर लेना। मुझे कोई ऐतराज नहीं है।
मैं तो खुशी से उछल पड़ा ‘अरे यार, ये तो चुदने को मान गई!’

उसके बाद मैं तो मन में न जाने क्या क्या सपने बुनने लगा।

फिर एक दिन मैंने उससे मिलने का प्रोग्राम बनाया। मेरी कोई इतनी दिक्कत नहीं थी क्योंकि मैं तो अपने ऑफिस का काम कह कर घर जा सकता था, मगर उसके लिए दिक्कत थी। तो करीब इस सेटिंग को एक महीने से भी ऊपर का समय लगा। उसने मुझे एक दिन बताया जिस दिन वो मुझसे मिल सकती थी। उस दिन उसके पास सिर्फ 3 घंटे थे जिसमें वो घर से बाहर रह सकती थी।

मैंने अपने केमिस्ट दोस्त से पहले सेक्स के बाद लड़की को होने वाले दर्द, रक्तस्राव और बुखार (यदि हो जाए तो) उस सबकी दवाई ले ली। पहले तो मैंने सोचा कि वो तो पहली बार सेक्स करने जा रही है, और उसने बताया था कि वो पॉर्न नहीं देखती. तो इसका मतलब उसके पास सेक्स का जो भी ज्ञान है, वो सिर्फ सेक्सी कहानियाँ पढ़ कर ही आया है। तो मैंने अपने लिए भी एक दवा ले ली। *** ताकि मौके पर लंड धोखा न दे जाए। कहीं उसके सामने मेरे मन में छुपा बैठा एक बेटी का बाप जा जाए और मेरे खड़े लंड को बैठा दे ‘नहीं नहीं … बाप को नहीं जागने देना। शैतान को ही जगाए रखना है।’

हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी पिक्स तो बहुत पहले से दिखा रखी थी तो पहचान में कोई दिक्कत नहीं थी। मैंने अपने किसी वाकिफ की सिफ़ारिश से होटल का एक कमरा उसके शहर में पहले से बुक करवा लिया था। मैं अपनी ही गाड़ी ले कर गया। सुबह करीब 10 बजे मिलने का प्रोग्राम था मगर मैं तो 9 बजे ही पहुँच गया।

होटल में पहुँच कर मैंने रूम की चाबी ली और अपने कमरे में जा कर बैठ गया। हम दोनों के पास के दूसरे का फोन नंबर नहीं था तो हमारी बात ईमेल की जरिये ही होती थी। मैंने रूम में पहुँचते ही उसे ईमेल किया कि मैं पहुँच गया हूँ, तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूँ।
उसका भी जवाबी मेल आया- मैं अभी तैयार हो रही हूँ, बस थोड़ी ही देर में घर से निकल रही हूँ।

मैं कमरे में बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगा और टीवी देखने लगा।
करीब सवा दस बजे उसका फिर से मेल आया- पापा मैं आ रही हूँ।
मैंने उसे अपने होटल का नाम और रूम नंबर बता दिया।

करीब 20 मिनट बाद मेरे रूम का दरवाजा किसी ने खटखटाया, मैंने उठ कर दरवाजा खोला।
सामने तो जैसे हुस्न की देवी खड़ी हो!
मेरा कद 6 फीट है, तो वो भी 5 फीट 5 इंच के करीब होगी। खूबसूरत चेहरा, पतला सा नाज़ुक सा बदन। खूबसूरत लहंगे में लिपटी ऐसी लगी जैसे भगवान ने मुझे कोई नायाब गिफ्ट इस सुनहरे लिबास में लपेट कर दिया हो।

“हैलो पापा!” वो बड़े प्यार से मीठी आवाज़ में बोली।
मैंने भी कहा- हैलो माई चाइल्ड।
मैंने दरवाजा खोला तो वो अंदर आ गयी। मैंने दरवाजा बंद किया।

एक बार तो दिल किया इसे अभी अपनी बांहों में भर लूँ! मगर नहीं अभी सब्र!

उसके पर्फ्यूम से सारे कमरे में खुशबू फैल गई। वो जाकर बेड पर ही बैठ गई; मैं भी जाकर उसके पास बैठ गया।
“कैसी है मेरी प्रिंसेस?” मैंने खुश होकर पूछा।
वो भी हंस कर बोली- एकदम मस्त!
मैंने भी कहा- ज़बरदस्त!

हम दोनों हंस पड़े तो मैंने अपनापन सा दिखने के लिए उसके कंधे पर हाथ रखा। नर्म सा कंधा, सच में उसे छूकर ही मेरे मन का शैतान जाग गया ‘हाय … कितनी प्यारी लड़की है, क्या आज मैं इस मासूम कली के जिस्म को अपनी मर्दानगी से मसलूँगा?’ मैंने सोचा।

उसके बाद हम दोनों काफी देर इधर उधर की बातें करते रहे। मैं कुछ समान अपने साथ लेकर आया था। मैंने उसे खाने पीने को दिया। हम दोनों ने साथ में खाया भी और पिया भी।

कुछ देर बाद मैंने सोचा के अब मुद्दे पर आना चाहिए। मैंने पूछा- अच्छा बेटा अब ये बताओ, जो बात हमने ईमेल पर करी थी, उसके बारे में तुम्हारा क्या विचार है?
वो बोली- कौन सी बात पापा?
मैंने कहा- हमने ये बात करी थी कि अगर हम कभी मिलेंगे, और अगर इस तरह किसी प्राइवेट जगह पर मिलेंगे, तो हमारे बीच कुछ और भी होगा.
मैंने जानबूझ कर सेक्स शब्द का प्रयोग नहीं किया।

वो बोली- हाँ, आपने कहा तो था, तो क्या अब आप मेरे साथ सेक्स करोगे?
मैंने कहा- नहीं, मैं तुम्हारे साथ सेक्स नहीं करूंगा, हम दोनों आपस में सेक्स करेंगे।
वो बोली- एक ही तो बात है।
मैंने कहा- नहीं बेटा, एक ही बात नहीं, मैं तुमसे सेक्स करूंगा, इसमें तुम्हारी मर्ज़ी शामिल नहीं। हम दोनों सेक्स करेंगे, मतलब हम दोनों अपनी अपनी इच्छा से वो सब कुछ करेंगे, जो हम सोच कर यहाँ आए हैं।
वो बोली- देखो पापा, मैंने आज तक कभी ऐसा कुछ नहीं किया है, इसलिए मुझे नहीं पता कि ये सब कैसे होता है। आप तो शादीशुदा हो, आप अपनी पत्नी के साथ वो सब कुछ रोज़ ही करते होंगे, आप जानते हो। मेरे लिए तो यह ऐसे है जैसे बिना पढ़े कोई पेपर देना। आपकी कहानियाँ पढ़ कर ही मुझे थोड़ा बहुत ज्ञान है। सच में सेक्स कैसे होता है, मुझे कुछ नहीं पता। आगे आपकी मर्ज़ी … आप जो चाहो कर लो।

मैं अब और भी बड़ी उलझन में फंस गया। जिस लड़की को मैं इतने दिन से चोदने के सपने देख रहा था, वो मेरे सामने बैठी थी और उसने अपनी तरफ से मुझे यह छूट भी दे दी थी कि मैं उसके साथ जो चाहे कर लूँ। मैं सोचने लगा कि क्या करूँ, क्या ना करूँ।
तो मैंने सोचा करके ही देखते हैं।

मैंने उसको उठाया और अपनी गोद में बैठा लिया। मेरी जांघ पर वो ऐसे आराम से बैठ गई जैसे उसे इसमें कोई दिक्कत न हो।
क्यों … क्योंकि वो अपने पापा की गोद में बैठी थी और मैं अपनी बेटी के कोमल जिस्म को घूर रहा था; सोच रहा था शुरुआत कहाँ से करूँ।

मैंने उसे अपनी और झुकाया तो उसने मेरे कंधे पर अपना सर रख लिया। इतना विश्वास, वो भी एक अंजान आदमी पर जिसे वो आज पहली बार मिली और उसकी गोद में बैठकर अपना सर उसके कंधे पर रख, उसे कुछ भी करने की इजाज़त दे दी। मैंने बहुत सेक्स किया है, मगर आज तक मेरी हालत इतनी खराब नहीं हुई थी। मेरे 47 साल की सारी दुनियावी समझ को एक 18 साल की लड़की ने आज चैलेंज कर दिया था। उसने अपना तन मन सब मुझे सौंप दिया था, अब मेरे ऊपर था कि मैं उसके इस विश्वास का मान रखूँ या इस विश्वास को तोड़ कर मैं उसके जिस्म से खेलूँ।
मैंने अपने मन को समझाया- अरे पागल मत बन, भावुक मत हो। तू यहाँ इसे चोदने आया है, इसकी फुद्दी मार और चलता बन, इसने कौन सा मना करना है। आई तो ये भी चुदवाने के लिए ही है। और तूने भी तो इसे साफ शब्दों में समझा दिया था कि मिलने पर चुदाई होगी। तो फिर … बस इसे चोद और चलता बन।

मगर मैं दूसरी तरफ अपने कंधे पर सर रख कर आराम से टीवी देखती उस लड़की के साथ कैसे ये सब शुरू करूँ। कोई रंडी या गश्ती होती तो अभी तक तो मैं उसको कबका नंगी करके खुद भी नंगा हो चुका होता। या इस वक़्त तक वो मेरा लंड चूस रही होती, मैं उसके सारे बदन को सहला चुका होता और बस अब अपने लंड पर कोंडोम चढ़ा कर उसे चोदने वाला होता।


मैं बड़ी उलझन में फंस गया। जिस लड़की को मैं इतने दिन से चोदने के सपने देख रहा था, वो मेरे सामने बैठी थी और उसने अपनी तरफ से मुझे यह छूट भी दे दी थी कि मैं उसके साथ जो चाहे कर लूँ। मैं सोचने लगा कि क्या करूँ, क्या ना करूँ।
तो मैंने सोचा करके ही देखते हैं।

मगर मैं दूसरी तरफ अपने कंधे पर सर रख कर आराम से टीवी देखती उस लड़की के साथ कैसे ये सब शुरू करूँ। कोई रंडी या गश्ती होती तो अभी तक तो मैं उसको कबका नंगी करके खुद भी नंगा हो चुका होता। या इस वक़्त तक वो मेरा लंड चूस रही होती, मैं उसके सारे बदन को सहला चुका होता और बस अब अपने लंड पर कोंडोम चढ़ा कर उसे चोदने वाला होता।

लेकिन यहाँ तो 20 मिनट से वो मेरी गोद में बैठी थी और अभी तक मैंने उसे कहीं भी नहीं छुआ था। मगर मेरा दिल चाह रहा था कि मेरे सीने के पास, बिल्कुल पास उसका सीना भी था, जिसे मैं छू सकता था, अपने हाथ में पकड़ कर दबा कर देख सकता था। मगर न जाने वो क्या था, जो मुझे रोके रखा था।

जब भी मैं बाहर कहीं बाज़ार में या रिश्तेदारी में कहीं भी जाता तो अक्सर ऐसी छोटी छोटी लड़कियाँ देखता जो अभी अभी जवानी में अपने कदम रख रही होती। उनके कपड़ों में से झाँकते उनके नए नए उभर रहे जिस्मानी आकार, जो उनकी टी शर्ट के नीचे कुछ भरे भरे होने का एहसास करवाते। उनकी जांघों पर, चूतड़ों पर चढ़ने वाली चर्बी की परतें, जो उनके गोल गोल चूतड़ों और संगमरमरी जांघों की और सबका ध्यान आकर्षित करती। मेरा बड़ा दिल करता कि इस लड़की के मम्में दबा कर देखो, जीन्स में छुपी हुई उसकी सेक्सी टाँगें जो छुप कर भी अपनी गोलाइयाँ सब को दिखा रही होती, उन खूबसूरत जांघों को सहला कर देखूँ, इन मोटे मोटे गोल उठे हुये चूतड़ों को दबाऊँ, इस मस्त गोल गांड पर ज़ोर से एक चपत मार कर देखूँ।

मगर आज मुझे क्या हो गया था; एक पराई नौजवान लड़की, जिसके पास वो सब कुछ था, जो और लड़कियों में देखता था, और उसका पूर्ण समर्पण भी था। अगर मैं उसके मम्में, जांघ, चूतड़, या उसके बदन पर कहीं भी, उसके किसी भी गुप्तांग को छू लेता तो मना नहीं करती। वो यहाँ आई थी तो इसी लिए आई थी। मैंने उसे साफ साफ कह दिया था कि हम सेक्स करेंगे। तो मैं क्या उसे छू कर देखूँ।
मेरे मन में विचार आया।

तो मैंने सबसे पहले उसके सर पर एक छोटा सा चुम्बन लिया जैसे कोई भी बाप अपनी बेटी का सर चूम लेता है। मगर मेरे चूमते ही और वो और कसमसा कर मेरी गोद में सिमट गई।
“ओह …” उसका नर्म, नन्हा सा स्तन मेरे सीने से लग गया। बेशक मेरे मन को एक बहुत ही सेक्सी सा एहसास हुआ मगर फिर भी न जाने क्यों मेरा दिल सा भी भर आया। मैंने उसे और कस कर अपनी बांहों में भरा। उसने अपनी बाजू मेरे पेट से उठाई और मेरी पीठ के पीछे लेजाकर, पूरी तरह से अपनी आगोश में लेकर वो मुझसे लिपट गई।

अब तो उसके दोनों बेहद मुलायम मम्में मेरे सीने से लग गए। कितने मासूम, कितने प्यारे, कितने नर्म मम्में। उसके जिस्म की नर्मी मेरी पैन्ट में कैद मेरे लंड को जैसे ललकार रही थी। मगर मैं जैसे तैसे अपनी कामुकता को अपने काबू में करने की कोशिश कर रहा था। मैं तो बस इसी तरह उसे गले लगा कर प्यार करना चाहता था मगर पैन्ट के अंदर रहने वाला ये लंड किसी रिश्ते किसी बंधन को नहीं मानता। उसके कुँवारे जिस्म के एक अजब सी गंध, एक खुशबू मुझे आ रही थी जो मेरे अंदर की भावनाओं को भड़का रही थी।

मैंने खुद को रोकना चाहा मगर फिर भी मेरा हाथ उठा और मैंने उसकी जांघ पर अपना हाथ रख दिया। उसने सिर्फ एक बार मेरे हाथ की तरफ देखा, मैंने धीरे से उसकी जांघ पर हाथ फेरा, जीन्स के मोटे कपड़े के नीचे से भी मैं उसकी जांघ की नर्मी और चिकनाहट महसूस कर सकता था। मैंने उसकी जांघ को दबाया, कमर से लेकर घुटने तक कई बार उसकी जांघ पर हाथ फेर फेर कर सहलाया।

कितनी कामुकता थी, उस लड़की के जिस्म में … मेरे लंड ने मेरी पैन्ट के अंदर करवट ली। मुझे लग रहा था कि मेरे लिए पीछे जाने के रास्ते बंद हो रहे हैं। मैं जांघ पर हाथ फेरते फेरते उसके एक चूतड़ को भी दबाया। बहुत ही नर्म, मगर सॉलिड चूतड़।
फिर मैंने दोनों चूतड़ों को दबाया और उसकी जीन्स की जो सिलाई उसके चूतड़ों के बीच में से हो कर जाती है, उस सिलाई पर भी अपनी उंगली फिरा कर देखी। अपने अंदाजे से मैं हिसाब लगाया कि ‘यहाँ इस जगह उसकी फुद्दी होगी।’

बेशक मैं अभी सिर्फ एक कपड़े को ही छू पाया था मगर इसी एहसास से मेरा मन गदगद था कि इस कपड़े के नीचे के कुँवारी फुद्दी है। महसूस तो वो भी कर रही होगी कि एक पराया मर्द जब एक लड़की या औरत के बदन को छूता है तो कैसा एहसास होता है। बेशक उसने पहले कभी भी सेक्स नहीं किया मगर अच्छे बुरे स्पर्श की पहचान तो उसे थी। और क्योंकि मैंने तो उसके मुक़ाबले बहुत सेक्स किया है तो मुझे तो उसके साथ बीत रहे एक एक पल में अपनी कामुकता के और बढ़ने का अहसास हो रहा था।

फिर मैंने उसकी जांघ से अपना हाथ उठा कर उसके कंधे पर रखा और उसके कंधे को सहलाता हुआ उसकी पीठ से नीचे उतरा। रास्ते में उसके ब्रा के स्ट्रैप ने दो बार मेरे हाथ को रोका।
“आह …” औरत का ब्रा भी कितनी सेक्सी चीज़ बनाई है बनाने वाले ने। अगर औरत ने ना भी पहना हो, कहीं पर टांगा हुआ मिल जाए तो भी देखने और छूने से पुरुष को अत्यंत आनंद की अनुभूति होती है। और अगर औरत ने ब्रा पहना हो फिर तो देखने और छूने का अहसास और भी अधिक आनंददायी हो जाता है।

मगर मेरी गोद में कोई औरत नहीं, एक 18 साल की मासूम सी लड़की लेटी थी। उसके मन में क्या चल रहा था, मुझे नहीं पता, मगर मेरा मन उसके कोमल जिस्म को सहलाने के लिए मुझे मजबूर किए जा रहा था। तो उसके जिस्म को थोड़ा और अपने से चिपकाने के लिए मैं बेड पे नीचे को सरक गया और सीधा लेट गया. और इस तरह वो भी मेरे ही जिस्म के ऊपर अपने आप सेट हो गई।
अब तो वो किसी छोटी लड़की की तरह मेरे जिस्म के ऊपर लेटी थी पूरी तरह चिपक कर। मेरा लंड मेरी पैन्ट में पूरी तरह तन चुका था, शायद मेरे लंड को वो अपने पेट पर महसूस भी कर रही हो।

वो मेरे ऊपर उल्टा लेटी थी तो मैंने अपने दोनों हाथ उसके दोनों चूतड़ों पर रखे। जीन्स में कैद उसके दोनों चूतड़ों के मैंने अपने दोनों हाथों से कई बार हल्के दबा कर देखा। मैं मज़ा भी लेना चाहता था मगर यह भी नहीं चाहता था कि मेरा छूना उसको बुरा लगे। मगर फिर भी उसको छूकर, शायद मैं बाज़ार में टाइट जीन्स पहन कर घूमने वाली लड़कियों के गोल गोल चूतड़ों को दबाने का अहसास कर रहा था।

उसके चूतड़ और जांघों को मैंने बड़े अच्छे से सहला कर दबा कर देखा। फिर उसकी दोनों टाँगें खोल कर मैंने अपनी कमर के अगल बगल रखी और उसे उठाया। वो जब उठ कर बैठी तो ठीक मेरे तने हुये लंड के ऊपर बैठी। जैसे मुझे उसकी फुद्दी की नर्मी मुझे मेरे कड़क लंड पर महसूस हुआ, वैसे ही उसे भी तो अपनी नर्म सी फुद्दी के नीचे कुछ सख्त सा महसूस हुआ होगा। क्योंकि जब वो बैठी तो उसने अपने आप को मेरी कमर के ऊपर थोड़ा सा एडज्स्ट किया. यानि उसने मेरे तने हुये लंड को अपनी फुद्दी के नीचे इस तरह से सेट किया कि वो उसकी दोनों जांघों की गहराई में बड़े अच्छे से फिट हो गया।

मैंने उस से पूछा- तुम्हें पता है कि इस वक़्त किस चीज़ पर बैठी हो?
उसने हाँ में सर हिलाया।
मैंने पूछा- क्या है?
वो धीरे से बड़ी मीठी सी आवाज़ में बोली- लंड।
कितनी मिठास थी उसकी आवाज़ में। अब मुझे बड़ी तसल्ली सी हुई कि ये भी पूरी तरह से मन बना कर आई है.

मैंने भी हिम्मत सी करके उसे अपनी ओर खींचा, वो नीचे को झुकी तो उसकी टीशर्ट का गला भी नीचे को झुक कर झूल गया। मैंने उसकी टी शर्ट के गले के अंदर निगाह मारी; ‘वाह … जन्नत!’ दो दूध से भरे छोटे छोटे मम्मे उसकी ब्रा में कैद। ऊपर से देखने से पता नहीं चलता था, लगता था, छोटे छोटे हैं, मगर अगर अंदर से देखा जाए तो इतने छोटे भी नहीं थे।

मुझे इस तरह उसकी टीशर्ट के अंदर देखते हुये उसने पूछा- क्या देख रहे हो पापा?
मैंने कहा- मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी यह नन्ही सी गुड़िया अब पूरी जवान हो चुकी है, बस तुम्हारी जवानी की बहार देख रहा हूँ।
वो बोली- तो अच्छी तरह से देख लो न!

मैंने उसे सीधा करके बैठाया और उससे पूछा- क्या तुम अपनी ये टी शर्ट उतार सकती हो?
मैं और कुछ कहता … इससे पहले उसने अपनी टी शर्ट उतार कर एक तरफ रख दी।

‘अरे वाह …’ कितना गोरा, उजला बदन था उसका, आज तक जिसे किसी ने नहीं देखा। मैं पहला मर्द था जिसने उसके इस खूबसूरत कुँवारे जिस्म को पहली बार देखा था।
फिर भी मैंने पूछ लिया- क्या तुम्हारे बॉयफ्रेंड ने कभी तुमको इस हालत में देखा है?
वो बोली- नहीं, कभी नहीं! मैंने उसे सिर्फ दो बार किस किया है, उसने तो कभी इनको हाथ भी नहीं लगाया।

मेरा दिल तो जैसे उछल पड़ा; मैंने अपने हाथ बढ़ा कर उसके दोनों मम्में पकड़ कर देखे, बिल्कुल अनछुए, नर्म, मुलायम, कच्चे मम्मे। हल्के हाथों से मैंने उसके दोनों मम्में उसके ब्रा के ऊपर से ही पकड़े और दबा कर देखे, ऐसे जैसे आप कोई बहुत ही नाज़ुक काँच का सामान अपने हाथ में पकड़ते हो कि कहीं गिर न जाए, टूट न जाए। सच में दबा कर मज़ा आ गया।

मैंने उसके ब्रा में से बाहर दिख रहा उसका क्लीवेज भी छू कर देखा। दोनों छोटे छोटे मम्मों के बीच में काफी जगह थी। खूबसूरत, जवान और पराई लड़की के जिस्म में तो जैसे जादू होता है। जहां कहीं भी हाथ लगा लो, बस मज़ा ही मज़ा आता है।
कई बार मैंने उसके मम्मों को छूकर, दबा कर देखा। उसकी चिकनी कमर पर हाथ फेरे, क्या शानदार शेप थी उसके बदन की। सिर्फ जीन्स और ब्रा में वो गज़ब की सुंदर और बेहद सेक्सी लग रही थी।

एक ऐसा सीन मेरे सामने था कि अगर वो यह कहती ‘पापा, आप मेरे साथ सेक्स नहीं कर सकते, बस मैं इतना ही दिखाऊँगी, आप अपना हाथ से हिला लो और बस।’
तो मैं उसके इस खूबसूरत जिस्म को देख कर हाथ से हिलाने को भी तैयार था।
मगर उसने ऐसा कुछ नहीं कहा।

मैंने भी उठ कर अपनी शर्ट उतार दी, अपने जूते, जुराब, पैन्ट भी उतार दी। अब मेरे बदन पर सिर्फ मेरी चड्डी थी और मेरी चड्डी में से झांक रहे मेरे कड़क लंड को देख कर वो बोला- पापा, आपका तो काफी बड़ा है।
मैंने कहा- अरे नहीं, बड़ा तो नहीं है, तुम्हारी आंटी तो बड़े आराम से ले लेती है।
वो बोली- वो तो आंटी हैं न, मैं तो आपकी नन्ही सी बेटी हूँ, अगर मुझे दर्द हुआ तो?
मैंने कहा- ओह, हाँ अगर दर्द हुआ तो हम नहीं करेंगे। ठीक है, पर जब तक तुम सहन कर सकोगी, तब तक करेंगे।
वो बोली- ठीक है।
मैंने आगे बढ़ कर उसकी जीन्स का बटन खोला और फिर ज़िप खोली। और फिर उसकी जीन्स खींच कर नीचे उतारनी चाही मगर स्किन टाईट जीन्स उतरी ही नहीं।
मैंने कहा- अरे यार … इतनी टाईट जीन्स तुम लोग पहन कैसे लेती हो?
वो हंसी और बोली- बस हम ही पहन सकती हैं और हम ही उतार सकती हैं।
कह कर उसने एक मिनट में अपनी जीन्स उतार दी।

उसके बदन पर अब सिर्फ पिंक ब्रा और पिंक पैन्टी थी।

मैंने उसे अपने पास खींचा और उसकी चिकनी जांघों पर हाथ से सहला कर देखा। बेहद मुलायम जांघें … मैं तो उसके सामने ही बैठ गया और उसकी दोनों जांघों को चूमने लगा।
उसको गुदगुदी हुई तो मैंने उसे घुमा दिया, अब उसकी पीठ मेरी तरफ थी। सबसे पहले मैंने उसके कंधे चूमे, फिर बाजू, पीठ पर चूमता हुआ नीचे को आया। और फिर उसके दोनों चूतड़, जांघें, पिंडलियाँ, पाँव सब चूमे।
तब अपनी गोद में उसे उठा कर बेड पर लेटाया।

कितनी गजब की खूबसूरती थी उस लड़की में। जैसे कोई अप्सरा पड़ी हो मेरे सामने। मैंने उसके साथ लेट कर उसके सारे बदन को जहां जहां भी हो सकता था, चूमा।



कितनी गजब की खूबसूरती थी उस लड़की में। जैसे कोई अप्सरा पड़ी हो मेरे सामने। मैंने उसके साथ लेट कर उसके सारे बदन को जहां जहां भी हो सकता था, चूमा।

वो बोली- पापा, क्या चूमते ही रहोगे?
मैंने कहा- मेरी जान, तुम्हारे बदन एक एक अंग में रस ही रस भरा है। मैं तो लगता है, तेरे रस का स्वाद लेते लेते ही मर जाऊंगा।
वो चुप रही, पता नहीं उसे इस बात की समझ थी भी या नहीं।

मैंने अब आगे बढ़ाने की सोची। सबसे पहले मैंने उसकी ब्रा खोली और उतार दी। हल्के गुलाबी रंग के छोटे छोटे निप्पल पहले मैंने अपनी उंगली से छूकर देखे, फिर मुंह में लेकर चूसे। चूसते ही वो कसमसाई, शायद उसको भी अपने मम्में चुसवा कर मज़ा आया।

उसके मम्में चूसते चूसते मैंने अपना एक हाथ उसकी पैन्टी में डाला। शायद उसने अच्छे से शेव की थी, या बिकिनी वेक्स कारवाई थी, उसकी अल्हड़ फुद्दी पर एक भी बाल नहीं था। मैंने उसकी पैन्टी नीचे सरकाई तो उसने खुद ही उतार दी।

मैं उठ कर उसकी टाँगों के पास आ गया। पहली बार अपनी मुंह बोली बेटी की फुद्दी देखी. वैसे मैंने अपनी मुंह बोली बेटी को भी आज पहली बार ही देखा था, तो उसकी हर चीज़ पहली बार ही देख रहा था।
मैंने उसकी फुद्दी को छूकर देखा और उसकी दोनों टाँगों को खोला, ऐसी लाजवाब फुद्दी, जैसे बनाने वाले ने पेंसिल से एक पतली ली लकीर खींच दी हो बस।

मैंने अपने हाथ से उसकी फुद्दी के होंठ खोल कर देखे, अंदर छोटी सी भग्नासा और गहरे गुलाबी रंग की फुद्दी। बिल्कुल कुँवारी! मैंने देखा कि उसकी तो हाइमन भी अभी तक जुड़ी हुई थी।
मैंने सोचा कि अगर मैंने इसकी कुँवारी फुद्दी में अपना लंड घुसेड़ा और इसकी हाइमन फट गई तो इसके तो खून निकलेगा। तो इसके लिए ज़रूरी है कि मैं इसे पहले इसके बारे में समझाऊँ।

तो मैंने अपने मोबाइल पर उसको हाइमन और पहले सेक्स में होने वाली सारी क्रियाएँ दिखाई। पहले सेक्स में होने वाला दर्द, खून का निकलना, सब दिखाया।
वो बोली- मुझे पता है, पापा, मैंने सब पढ़ रखा है।
तो मेरे लिए ये काम आसान हो गया।

फिर मैंने उसे कहा- क्या तुम मेरी चड्डी उतारोगी?
वो उठी और उसने मेरी चड्डी मेरी कमर के दोनों तरफ से पकड़ कर नीचे खींच दी।

7 इंच का तना हुआ लंड उसके सामने प्रकट हुआ; काला लंड लाल टोपा।
उसने बड़े गौर से देखा ‘ऐसा होता है!’ वो बोली।
मैंने कहा- तो और कैसा होता है?
वो बोली- ये तो काला है। मोटा सा भद्दा सा।
मैंने कहा- हाँ, तो?

वो बोली- पर जो छोटे बच्चे होते हैं, उनकी तो वो छोटी सी गोरी सी होती है।
मैंने कहा- अरे डार्लिंग, बचपन में सबकी गोरी गोरी होती है, बड़े होकर सबकी काली हो जाती है। तुम्हारी जब शादी हो जाएगी तो तुम्हारी भी काली हो जाएगी।
उसने गंदा सा मुंह बनाया, बोली- मैंने आपकी कहानीयों में पढ़ा था कि लेडीज इसे मुंह में लेकर चूसती हैं।
मैंने कहा- हाँ, सब चूसती हैं, तुम्हारी आंटी चूसती हैं, तुम्हारी मम्मी भी तुम्हारे पापा का चूसती होगी.

तो उसने बड़ी हैरानी वाले भाव दिये। शायद उसे अभी इसका स्वाद पता नहीं था, पर मुझे पता था कि जिस दिन इसे लंड चूसने का स्वाद लग गया, उस दिन पहले ये लंड चूसा करेगी, फिर सेक्स किया करेगी।
मैंने सोचा तो इसे भी लंड चूसने का स्वाद लगाते हैं। मैं उसकी टाँगें खोल कर बीच में आ गया और उसकी कमर उठा कर अपने मुंह के पास की।
वो बोली- पापा, चटोगे?
मैंने कहा- हाँ, इतनी खूबसूरत फुद्दी को अगर चाटा नहीं तो ये तो उसकी तौहीन हुई।

मैंने उसकी फुद्दी के आस पास कुछ चुम्बन लिये, वो तो इतने से ही मचल उठी- पापा मत करो, गुदगुदी होती है.
मैंने कहा- अब तो बस गुदगुदी और गुदगुदी ही होगी.

और फिर जब मैंने उसकी सारी की सारी फुद्दी अपने होंठों में भर ली तो वो तो जैसे अकड़ गई, मेरा सर पकड़ लिया उसने। फिर मैंने अपनी पूरी जीभ ही उसकी फुद्दी में नीचे से ऊपर तक फेरी। उसने अपनी कमर उचकाई और मेरे सर के बाल पकड़ कर ज़ोर से बोली- पापा!
मैं समझ गया कि लड़की को बहुत ही ज़्यादा मज़ा आया है।

बस फिर तो मैंने उसकी फुद्दी में ऊपर से नीचे से, अंदर से बाहर से, आगे से पीछे, यहाँ तक की गांड छेद तक सब कुछ चाट गया। जब मैंने देखा कि फुद्दी चटवाते वक्त उसकी तड़प और आनंद की सीमा बहुत आगे तक बढ़ गई है तो मैंने अपनी कमर उसके मुंह के पास की ताकि वो मेरे लंड को नजदीक से देख सके।
मुझे कुछ कहने ज़रूरत नहीं पड़ी; मैं सिर्फ उसकी फुद्दी चाटता गया, उसने खुद ही मेरा लंड अपने हाथों में पकड़ लिया और उससे खेलने लगी। कभी उसका टोपा बाहर निकालती, कभी खींच कर अंदर कर देती।

आगे पीछे करते करते जब उसका उन्माद अपने चरम की तरफ बढ़ने लगा तो उसने अपने आप मेरे लंड को अपने मुंह में ले लिया। मैंने उसे नहीं सिखाया कि लंड कैसे चूसते हैं, मगर वो लगी चूसने, जीभ से चाटने।
सेक्स का प्रोग्राम तो इंसान के दिमाग में प्री इन्स्टाल्ड ही आता है।

अब मुंह बोला बाप फुद्दी चाट रहा था और मुंह बोली बेटी लंड चूस रही थी। मुझे पता था कि यह इसका पहला सेक्स है इसलिए उत्तेजना में ये जल्दी झड़ जाएगी।
और वही हुआ … अगले ही पल वो तो अपनी फुद्दी को मेरे मुंह पर रगड़ने लगी और मेरे लंड को अपने दाँतों से काट लिया, जैसे उसे खा जाना चाहती हो। मैंने पहले उसकी फुद्दी में उंगली डालने की सोची थी, मगर मैंने ऐसा नहीं किया, मैंने सिर्फ जीभ से ही उसकी फुद्दी को चाटना जारी रखा, वो कभी कमर हिलाती, कभी मेरे लंड को निगल जाना चाहती, खा जाना चाहती.

मैंने उसकी कमर को कस कर अपने मुंह से जोड़े रखा। मुझे महसूस हुआ जैसे उसका शायद थोड़ा सा पेशाब निकल गया, मगर मैंने उसकी फुद्दी से मुंह नहीं हटाया और जो कुछ भी उसकी फुद्दी से निकला, मैं पी गया।
वो तड़पती रही, मुझे छोडने के लिए भी कहा मगर मैंने उसको तब तक नहीं छोड़ा जब तक वो शांत नहीं हो गई।
जब वो शांत हो गई तो मैंने उसको ढीला छोड़ दिया, वो बेजान सी हो कर एक तरफ को लुढ़क गई।

मैंने उस से पूछा- मज़ा आया मेरे बेबी को?
वो बोली- पापा, मुझे तो लगा था कि मैं मर ही जाऊँगी, ऐसा तो मुझे आज तक कभी महसूस नहीं हुआ, क्या इतना मज़ा आता है सेक्स करने में?
मैंने कहा- इससे भी ज़्यादा।
वो बोली- इससे भी ज़्यादा क्या?
मैंने अपना लंड हिला कर कहा- जब ये इसके अंदर जाएगा।
वो बोली- दर्द होगा?
मैंने कहा- हाँ थोड़ा सा।
वो बोली- तो धीरे धीरे करना पापा, आपकी बेबी अभी छोटी है।
मैंने कहा- तुम चिंता मत करो मेरी जान, बड़े आराम से करूंगा।

मैंने उसको सीधा किया, उसकी दोनों टाँगें खोली, अपने लंड के टोपे पर थोड़ा सा थूक लगाया और उसकी फुद्दी पर रखा।
उसने अपने दोनों हाथों से अपनी फुद्दी ढक ली।
मैंने उसके दोनों हाथ खोले, और फिर से अपना लंड उसकी फुद्दी पर रखा और फिर हल्का सा ज़ोर लगाया, जैसे ही मेरे लंड का थोड़ा सा टोपा उसकी फुद्दी में घुसा, वो तो उछल पड़ी- अरे नहीं नहीं पापा, बहुत दर्द होगा।
मैंने कहा- अरे नहीं पगली, तो इसे अंदर तो जाने दे!

बड़ी मुश्किल से मैंने उसक पकड़ कर फिर से लेटाया। मगर इस बार मैं उसके ऊपर लेट गया और अपने बदन के वज़न से मैंने उसको काबू किया, उसकी अपनी आगोश में मजबूती से जकड़ा और फिर लंड को उसकी फुद्दी पर रखा और ज़ोर लगाया।
इस बार उसे सच में दर्द हुआ, मगर इस बार वो अपनी इच्छा से हिल भी नहीं सकती थी।
“आह … पापा… नहीं … निकालो, पापा प्लीज प्लीज़ प्लीज़ पापा, बहुत मोटा है, पापा, प्लीज़ … ईईए … नहीं पापा सुनो, प्लीज़!” वो चीखती रही और मैंने अपने लंड का टोपा उसकी फुद्दी में पूरा घुसेड़ दिया।

फिर मैं थोड़ा सा रुका। उसका चेहरा लाल हो गया, जैसे सांस रुक गई; चेहरे पर दर्द के भाव, आँखों में याचना। जैसे कोई निरीह प्राणी किसी कसाई को देखता है।
मगर कसाई को दर्द कहाँ।
मैंने फिर से ज़ोर लगाया, उसका चीखने चिल्लाना फिर से चालू हो गया। मगर मैंने उसका चीखना चिल्लाना नहीं सुना। मेरे दिमाग में काम सवार था, मुझे तो बस हर हाल में इस कुँवारी कन्या का कौमार्य भंग करके अपनी मर्दानगी के अहम को संतुष्ट करना था।

मुझे महसूस हुआ कि उसकी फुद्दी में गीलापन बढ़ गया है, मैंने देखा कि मेरा आधा लंड उसकी फुद्दी में घुस चुका था और मैंने अपने लंड पर लगा खून भी देख लिया।
“आह, फाड़ दी कुँवारी फुद्दी … कच्ची कली को मसल कर फूल बना दिया!” मेरे मन में तो अलग ही विचार चल रहे थे। मैं ज़ोर लगाता गया और वो बेचारी रोती बिलखती रही, मैं भी अपना पूरा लंड उसकी फुद्दी में घुसा कर ही माना।

शायद दर्द इतना ज़्यादा था कि वो रो तो रही थी, मगर उसकी आँखों से आँसू नहीं आ रहे थे। वो मुझसे से सिर्फ और सिर्फ थोड़ा सा लंड बाहर निकाल लेने की विनती कर रही थी। मगर मेरे तो जैसे आँख कान सब बंद हो गए थे; मुझे तो मदहोशी छाई थी।

पूरा लंड जब घुस गया, फिर मुझे कुछ होश आया तो मैंने कुछ जोरदार शॉट मारे। बार बार ज़ोर से अपना लंड उसकी फुद्दी में अंदर बाहर किया, जैसे ड्रिल मशीन से कोई सुराख करते हैं, या किसी चीज़ का कोई सुराख और खुला करते हैं।
लड़की की तो सांस ही रुक गई जैसे … मुंह खुला का खुला रह गया।
क्या चीज़ है ये सेक्स! जिस लड़की को मैं अपनी बेटी मानता था, जिससे मैं इतना प्यार करता हूँ, फिर उसको इतना दर्द कैसे दे सकता हूँ। मगर मैंने उसे दर्द दिया, बहुत दर्द दिया, इतना कि शायद वो ज़िंदगी भर न भूल सके।

फिर मैंने अपना लंड उसकी फुद्दी से बाहर निकाला; कई जगह खून के धब्बे थे।
उसने एकदम से उठ कर देखा, नीचे चादर पर भी खून गिरा हुआ था।
वो तो घबरा गई- पापा, ये क्या? इतना खून? आप तो कहते थे कि थोड़ा सा दर्द होगा, पर ये देखो, क्या किया आपने, कितना खून निकाल दिया आपने!
और वो ज़ार ज़ार रोने लगी।

मैंने उसे चुप कराना चाहा, मगर उसने तो मुझे छूने भी नहीं दिया। कितनी देर वो रोती रही, मेरा तो खड़ा लंड भी बैठ गया। उधर वो नंगी बैठी रो रही थी, और इधर मैं नंगा बैठ कर उसके चुप होने का इंतज़ार कर रहा था।
कुछ देर बाद वो कुछ संभली, तो मैंने उसे फिर से समझाया। मगर शायद लड़की को काफी तकलीफ हुई थी तो उसने और कुछ भी करने से मना कर दिया।

फिर मैंने उसे कहा- देखो, जब मैंने तुम्हें मज़ा दिया, तो क्या मुझे मज़ा करने का हक नहीं?
वो बोली- मज़ा करो … मगर आपने मुझे कितना दर्द दिया।
मैंने कहा- अरे यार … पहली बार में सबको दर्द होता है, अब तुमने अपना मज़ा तो कर लिया जब दर्द हुआ तो मेरा मज़ा बीच में ही रह गया।

वो बोली- अब आपने क्या मज़ा करना है?
मैंने कहा- देखो, आज तुम्हें तकलीफ है, आज हम ये नहीं करेंगे, पर तुम मुझे थोड़ा सा मज़ा तो दे सकती हो।
वो बोली- क्या?
मैंने कहा- तुम मेरा हाथ से ही हिला दो।
उसने अपने आँसू पौंछे और बोली- कैसे।

मैंने उसके हाथ में अपना लंड पकड़ाया, उसे हिला कर दिखाया- बस ऐसे ऐसे हिला दो।
वो मेरा लंड हिलाने लगी तो मैं उसके मम्मों को चूसने लगा। गालों पर होंटों, पर भी चूमा। मेरा लंड फिर से तन गया।
खड़ा लंड देख कर वो बोली- अब ये मत कहना कि फिर से करते हैं, मैं अब दोबारा इसे नहीं लूँगी।
मैंने कहा- नहीं कहता, आज नहीं … फिर कभी करेंगे।
वो बोली- जी नहीं, फिर कभी भी नहीं करेंगे.

मुझे लगा, लो भाई ये चिड़िया तो उड़ गई अपने हाथ से। तो मैं उसके बदन से खेलता रहा और वो मेरे लंड की हिलाती रही। कभी इस हाथ से कभी दूसरे हाथ से। काफी देर हिलाने के बाद जब वो थक गई, बोली- पापा आप खुद ही हिला लो, मुझसे नहीं होता।
तो मैंने उसे बेड पे लेटा दिया और उसकी जांघों पर बैठ कर खुद अपने हाथ से अपना लंड हिलाने लगा।

अपने हाथ की बात और होती है; दो तीन मिनट में ही मेरा भी पानी निकल गया। सारा माल मैंने उसकी खून से सनी फुद्दी पर ही गिराया।

जब मैं शांत हो कर लेट गया तो वो उठ कर बाथरूम में गई और अंदर जाकर खुद को धो साफ करके बाहर आई। बाहर आने पर मैंने उसको अपने साथ लाई कुछ दवाएं दी और उन्हें लेने का तरीका समझाया। उसकी पैन्टी में पैड लगया और उसे एक दो दिन पैड लगाये रखने की सलाह दी।

उसके बाद वो चली गई और मैं अपने घर वापिस आ गया।

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