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बहन की सहेली की चुदाई- एक भाई की कश्मकश

 



रोज़ की तरह मेरे लिए वो भी एक सामान्य दिन था. कॉलेज से घर आकर मैंने दरवाजे की बेल बजाई. नौकरानी ने दरवाजा खोला और मैं घर में दाखिल हो गया. अपने कमरे की तरफ जा ही रहा था कि चलती निगाह सुमिना के साथ बैठी उस लड़की पर जा रुकी.

सुमिना, मेरी 22 साल की कुंवारी और सगी बड़ी बहन जो अभी बी.ए. के फाइनल इयर में थी, एक तीखे नैन नक्श वाली खूबसूरत लड़की है. काली गहरी आंखें, लम्बी नाक और हल्के गुलाबी होंठ। कभी उन पर लिपस्टिक लगा लेती थी तो किसी मॉडल से कम नहीं लगती थी. गहरे काले रंग के बाल जिनको उसने स्ट्रेट कराया हुआ था उसकी पीठ पर फैले हुए चमकते रहते थे.

मगर मेरा ध्यान तो उसके साथ बैठी सादगी की मूरत पर अटक गया था. इससे पहले मैंने उसको अपने घर में अपनी बहन के साथ कभी नहीं देखा था. सिम्पल सा पीले रंग का प्रिंट वाला सूट और उस के नीचे सफेद पजामी पहने हुए बैठी थी. अपने दोनों हाथों की कुहनियों को घुटनों पर टिका कर अपनी ठुड्डी उस पर सेट कर रखी थी. गले में सफेद ज़मीन की पीले फूलों वाली चुन्नी गले में डाले हुए वो मेरी बहन सुमिना के साथ मीठी गुफ्तगू में मशगूल सी अपने में ही खोई हुई थी.

मेरे कदम तो आगे बढ़ रहे थे लेकिन नज़र जैसे उसी चेहरे पर कहीं पीछे ही उलझ गई थी. कमरे तक पहुंचते-पहुंचते उसको ऊपर से नीचे तक देखने में मेरी गर्दन घूमती चली गई. अचानक कमरे के दरवाजे से टकराया तो सहसा ही उन दोनों की वार्तालाप में विघ्न आ गया और दोनों ही मेरी तरफ देखने लगी. जब उसका चेहरा मेरी तरफ घूमा तो उसकी पलकों ने उसकी काली चमकीली आंखों को ऐसे ढक लिया जैसे छुई मुई को छू लिया हो मेरी नज़रों ने। वो नीचे देखने लगी और मैं अपने कमरे में अंदर घुस गया और धीरे से दरवाजा बंद कर लिया.

घर में घुसने से पहले गर्मी और थकान से परेशान था लेकिन उस खूबसूरत चेहरे से टकराकर आंखों के साथ-साथ पूरे बदन को ठंडक मिल गई थी. कंधे पर लटके बैग को बेड पर फेंका और कुछ सोचते हुए शर्ट के बटन खोलने लगा. शर्ट के बटन खोलते हुए मन के अंदर ही अंदर उठने वाली उमंग मंद मुस्कान बन कर मेरे होंठों पर फैल गई थी. पैंट को निकाल कर दरवाजे के पीछे हैंगर पर टांग दिया और तौलिया लेकर उसे कंधे पर डाला और अंडरवियर की इलास्टिक को एडजस्ट करते हुए नंगे पैरों ही बाथरूम में घुस गया. आज शॉवर से गिर रही बूंदों की छुअन गर्म जिस्म पर बाकी दिनों की अपेक्षा ज्यादा ठंडी महसूस हो रही थी.

गीले अंडरवियर को दोनों हाथों से खींच कर घुटने मोड़ते हुए टखनों से निकाल कर एक तरफ डाल दिया. वस्त्रहीन भीगे जिस्म पर हाथ फिराया और फिर दायें हाथ से पकड़ कर लिंग को शॉवर से गिर रहे पानी के धारे के नीचे कर दिया. पूरे बदन में गुदगुदी सी हो रही थी. जिस्म वहीं बाथरूम में कैद था लेकिन मैं और मेरा मन कहीं अपने ही ख्यालों में उड़ रहा था.

साबुन उठाया और दायां हाथ अपने आप ही मेरी हल्के बालों वाली छाती पर चलने लगा. जब थोड़े से झाग बन गये तो बारी-बारी से हाथ उठाकर दोनों बगलों को साबुन से मल कर पसीने के किटाणुओं का गला घोंटते हुए नीचे काले झाटों को भी साबुन लगाकर साफ करने लगा. फिर बड़े ही प्यार से पूरे बदन पर हाथ फिराते हुए शरीर पर बहते पानी को हर अंग पर लगे साबुन तक पहुंचाते हुए खुद को धोने लगा. शावर से गिरता पानी बदन पर लगे साबुन को तो साफ कर रहा था मगर सुमिना के साथ बैठी उस लड़की की मासूमियत का रंग था कि हर पल और गहराता जा रहा था.

सारा साबुन साफ करने के बाद शावर बंद कर दिया और तेजी के साथ तौलिया से बदन को रगड़ने लगा. गीला अंडरवियर फर्श पर ही छोड़कर भीगे हुए नंगे पैरों को ठंडे फर्श पर आहिस्ता से रखते हुए लटकते-झूलते लिंग के साथ बाहर आ गया. अलमारी से एक साफ फ्रेंची निकाली और जांघों से फंसाते हुए लिंग को छिपा लिया. फ्रेंची पर बना लिंग का उभार भी आज बदन में सनसनी पैदा कर रहा था. वासना से नहीं बल्कि किसी और अहसास से जिसको अभी बयां करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे.

लोअर डालकर टी-शर्ट पहन लिया और गीले बालों को तौलिया से पौंछते हुए आइने के सामने जाकर झटकने लगा. कंघी उठाकर लम्बे बालों को मांग निकालते हुए व्यवस्थित किया और चप्पलें पहन कर दरवाजे की तरफ बढ़ा. एक उत्सुकता थी मन में उसको दोबारा देखने की. दरवाजा खोल कर बाहर आया तो हॉल में कोई नहीं था.

टेबल पर कॉफी के दो झूठे कप रखे हुए थे. किचन से कुछ आवाज आई तो कदम उस तरफ बढ़े. जाकर देखा तो सुमिना खाना बना रही थी.
“क्या बना रही हो?” पास जाकर मैंने सुमिना से पूछा।
“राजमा-चावल” उसने जवाब दिया.
“ये लड़की कौन बैठी थी तुम्हारे साथ हॉल में?” मैंने सहजता से पूछा।
“काजल… मेरे कॉलेज की दोस्त है। हम दोनों एक ही क्लास में हैं।”

‘ओके’ इससे ज्यादा न तो मैंने कुछ कहा और न ही सुमिना से कुछ और पूछने के लिए मेरे पास अभी था। वो कहते हैं न कि ‘ठंडा करके खाना चाहिए…’ बस उसी नीति का ख्याल आ गया था।

मैं हॉल में जाकर टीवी देखने लगा. एक पुरानी एक्शन फिल्म आ रही थी टीवी पर. लेकिन आज मूड कुछ बदल गया था. कोई लव-स्टोरी देखने का मन था. मन कुछ गुनगुनाना चाहता था जैसे.

दस मिनट बाद सुमिना थाली में गर्म-गर्म राजमा चावल लेकर मेरे साथ वाले सोफे पर आ बैठी.
“आज तो नज़रें डगमगा रही थीं जनाब की …” सुमिना ने एक थाली मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा.
“क्यूं, ऐसा क्यूं लगा तुझे?” मैंने अनजान सा बनने की कोशिश की।
“रहने दे, मैं बहन हूं तुम्हारी! मुझसे ज्यादा बनने की कोशिश करना बेकार है।” सुमिना ने जैसे मेरे मन में उठती प्यार की उमंग की पतंग की डोरी अपने शब्दों के हाथ से वापस अपनी तरफ खींचते हुए कहा।
“ऐसी कोई बात नहीं है, जैसा तू सोच रही है! चुपचाप अपना लंच कर और मुझे मूवी देखने दे.” मैंने बात को टालते हुए कहा।
“मेरी छठी इन्द्री कभी मुझसे झूठ नहीं बोलती, देख लेना … तुम भी यहीं हो और मैं भी!” सुमिना ने अपनी बात की गारंटी भरते हुए जवाब दिया.

दोनों भाई-बहन लंच करते हुए टीवी देखने लगे. लंच करने के बाद शरीर में सुस्ती सी आ गई और मैं अंगड़ाई लेते हुए उठ कर अपने कमरे में जाकर बेड पर गिर गया. थोड़ी ही देर में नींद आ गई. शाम के पांच बजे आंख खुली तो शरीर ताजगी से भर चुका था. अब और लेटने का मन नहीं कर रहा था.

कुछ देर बेड पर पड़ा हुआ फोन में मैसेज चैट चेक करने लगा. दोस्तों-लफंगों से बातें करते हुए दो घंटे कब निकल गये पता नहीं चला.

शाम को पास ही के पार्क में घूमने चला गया. वहाँ पर कॉलोनी वाले बच्चों के साथ थोड़ा ‘क्रिकेट वर्ल्ड कप’ के लिए खेला और फिर आठ बजे घर आया तो अंधेरा हो चुका था. माँ ने डिनर की तैयारी कर ली थी और सुमिना अपने कमरे में शायद पढ़ाई कर रही थी.

साढ़े नौ तक सब लोग खाना खाकर फ्री हो गये. पिता जी और मैं आधे घंटे तक न्यूज चैनल में आंखें गड़ाये रहे और फिर माँ-बेटी को टीवी पर हमारा ये मालिकाना हक बर्दाश्त नहीं हुआ. सुमिना ने मेरे हाथ से रिमोट छीन लिया और सीरियल देखने लगी.

मुझसे तो वो ड्रामा झेला नहीं गया इसलिए उठ कर अपने कमरे में आ गया और बेड पर लेट कर फोन हाथ में उठा लिया. फिर रात के 12 बजे तक चैटिंग का दौर चला और जब धीरे-धीरे सबके रिप्लाई आने बंद हो गये तो मैंने भी मैसेंजर बंद कर दिया.

एक पॉर्न साइट खोलकर देसी इंडियन नंगी लड़कियों की तस्वीरें देखने लगा. देखते-देखते लौड़ा बिना मेरी इजाजत के ही तन गया और लिंग के हुक्म पर हाथ अपने आप ही लोअर की इलास्टिक से जबरदस्ती अंदर घुस कर फ्रेंची के ऊपर से ही अंदर तने हुए, स्पर्श के लिए मचलते, मेरे प्यासे लिंग को सहलाने लगा.

मगर सहलाने भर से काम कहां बनने वाला था. न चाहते हुए भी हाथ अंदर अंडरवियर में घुस गया और लंड के टोपे को पूरा पीछे खींच कर फिर से आगे ढकने की क्रिया को बार-बार दोहराने लगा. बढ़ती हुई वासना के साथ हाथ की स्पीड लिंग पर अपने आप ही बढ़ ही रही थी.

जब भी कोई सेक्सी जवान खूबसूरत सी नंगी लड़की जूम करने के बाद फोन की स्क्रीन पर उभर कर आती थी तो अंदर से दबी हुई सी वासना भरी स्स्स … आह्ह … की सिसकारी निकल जाती थी. कभी नज़र किसी के चूचों के बीच में तने हुए भूरे निप्पलों पर जाती तो कभी किसी प्यारी सी चिकनी चूत पर. मुट्ठ मारने के दौरान उठने वाले वेग में लंड को हाथ का स्पर्श देने का मजा भी कुछ कम नहीं होता। यही हस्तमैथुन का आनंद है!

मेरा हाथ जोश में आ चुके मेरे लिंग की तेजी के साथ मुट्ठ मारने लगा. धीरे-धीरे लिंग को कसने वाले फोर्स के साथ हाथ की पकड़ मेरे तने हुए लौड़े पर बढ़ती जा रही थी. पांच-सात मिनट तक नंगी चूचियों और चूतों को मन ही मन सिसकारियां भरते हुए देखने के बाद आखिरकार मैंने अपने अंडकोषों में हवस की गर्मी से उबल रहे वीर्य पर नियंत्रण खो दिया और मेरे तने हुए लंड ने अपना सारा उबाल वीर्य के रूप में अंडरवियर में ही उड़ेल दिया.

वीर्यकोष खाली करने के बाद शांत होते हुए मैंने फोन एक तरफ डाल दिया और फिर आंखें बंद कर ली. लंड तो शांत हो गया था लेकिन मन को शांति नहीं मिली थी. जब तक जिस्म और मन का आपसी ताल-मेल सही न बैठे और दोनों में से किसी एक को भी अधूरी संतुष्टि से संतोष करना पड़े तो ऐसा लगता है कि जैसे कहीं कुछ रह गया है, जो पूरा होना बाकी है.
मेरे साथ भी ऐसा ही हो रहा था. लंड को तो हिला कर मैंने खुश कर दिया था लेकिन मन में एक अधूरापन सा था. मुझे लग रहा था कि यही क्रिया अगर किसी पार्टनर के साथ होती तो आनंद इससे कहीं ज्यादा और बेहतर संतोष देने वाला होता!

लंड की मुट्ठ मारने के बाद शरीर की उर्जा कम हो गई थी जिससे धीरे-धीरे पलकें भारी होने लगीं. फिर कब मैं सपनों की दुनिया में चला गया इसकी खबर नहीं लगी।

नींद फिर सुबह ही खुली. उठ कर फ्रेश हुआ और नहा-धोकर कॉलेज के लिए निकल गया. कॉलेज में दिन बहुत जल्दी बीत जाता था और कब घर जाने का वक्त नजदीक आ जाता था कभी ध्यान जाता ही नहीं था क्लास में.

पूरा दिन क्लास में मस्ती होती रहती थी. उस दिन भी जब मैं घर लौटा तो फिर से काजल को सामने बैठे हुए देखा. इस तरह धीरे-धीरे काजल का हमारे घर पर आना रोज ही होने लगा. उसका परिणाम ये हुआ कि क्लास में भी मैं अब बार-बार घड़ी की तरफ देखता रहता था. कब लेक्चर खत्म होगा और कब यहां से छुट्टी मिलेगी, यही विचार चलते रहते थे. घर जाने की बेचैनी सी उठनी शुरू हो गई थी आजकल।

घर जल्दी जाने का एक ही कारण था- काजल के हुस्न का दीदार और साथ ही साथ उसको पटाने की चाहत।

अब वो लगभग रोज ही सुमिना के साथ पढ़ाई करने के लिए चली आया करती थी. मेरा मन अब घर में ज्यादा लगने लगा था. यहां तक कि अपने फोन से भी मैंने दूरी बना ली थी. किताबों का तो पता ही नहीं था कि कहां पड़ी हुई हैं.

बार-बार बहाने से काजल को देखने की कोशिश करता रहता था. इधर सुमिना शायद मेरी मंशा को भांप चुकी थी. मगर इस बारे में अभी मैं ज्यादा आश्वस्त नहीं था. मगर बीतते दिनों के साथ अब काजल भी चोरी-चोरी मुझे देखने की कोशिश करती थी लेकिन कभी खुलकर उसने भी मेरी तरफ नहीं देखा. उसकी नज़रें हमेशा नीचे ही झुकी रहती थीं. मगर एक दो-बार मैंने उसको आंखों की गुस्ताखियां करते हुए रंगे हाथ पकड़ लिया था।

हम दोनों के बीच में अब तक न तो कुछ बात हुई थी और न ही दोनों में से किसी एक की तरफ से बात करने की कोई पहल. मगर मेरी बेचैनी हर दिन बढ़ती जा रही थी. जब भी काजल मेरी बहन सुमिना के साथ बैठी होती तो वहीं आस-पास मंडराने लगता था. अब तो रात को मुट्ठ मारने का मन भी नहीं करता था. बस कोशिश यही रहती थी कि किस तरह से काजल के साथ बात करने की शुरूआत करूं. ऐसा कौन सा तरीका निकालूँ कि मैं उसके करीब जा सकूँ.

सुमिना यूं तो काजल के साथ व्यस्त रहती थी लेकिन मैं कोई चान्स नहीं लेना चाहता था अपनी बड़ी बहन के सामने. इसलिए अभी तो सब कुछ चोरी-चोरी चुपके-चुपके ही हो रहा था.

एक दिन जब मैं कॉलेज से आया तो वह दोनों अपनी पढ़ाई में लगी हुई थीं। दरवाजा खुला था इसलिए मेरे आने की आहट न हुई। सुमिना का मुंह दूसरी तरफ था. जबकि काजल ने मुझे मेन गेट से अंदर आते हुए देख लिया था क्योंकि उसका मुंह सामने की तरफ था. घर में दाखिल होते समय उसने मुझे देख लिया था.

मैं धीरे से अपने कमरे की तरफ जा ही रहा था कि एक धीमी सी मगर मीठी आवाज ने मेरे कान खड़े कर दिये.
“सुमिना, सुधीर आ गया है …”

यह काजल की आवाज़ थी क्योंकि सुमिना की आवाज़ को तो मैं अच्छी तरह पहचानता था. उस दिन पहली बार मैंने काजल के मुंह से अपना नाम सुना. अगर वो चाहती तो मुझे भैया कह कर भी संबोधित कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा नहीं किया. उसने मेरा नाम ही लिया, मगर बहुत धीरे. उसने पूरी कोशिश की कि आवाज मेरे कानों तक न जाये मगर मेरे जिस्म का हर अंग तो जैसे उसी की तरफ ही लगा रहता था.

सुमिना ने मुड़कर देखा तो मैं अपने कमरे में घुस ही रहा था. उस दिन मन में लड्डू से फूट रहे थे. मैं ये तो नहीं जानता था कि काजल की तरफ मेरा ये झुकाव प्यार था या महज आकर्षण के पीछे छिपी हुई वासना! मगर जो भी था, बड़ा ही बेचैन करने वाला अहसास था जो हर दिन प्रबल होता जा रहा था.

अब तो ऐसा लगने लगा था कि काजल को घर में देख लूं तो दिन सफल सा मालूम होता था.

फिर अचानक से काजल ने आना बंद कर दिया. मैं कॉलेज बंक करके रोज़ उसी के लिए घर जल्दी पहुंचता था मगर कई दिन से वो आ ही नहीं रही थी. मन में एक खालीपन सा बनना शुरू हो गया था उसकी गैरमौजूदगी से. बेचैनी बढ़ने लगी थी.

सोच रहा था कि सुमिना से इस बारे में बात करूं मगर सुमिना मेरी बड़ी बहन थी. काजल के लिए मेरा लगाव अभी मेरी नैतिकता पर हावी नहीं हुआ था. नैतिकता कह रही थी कि मैं छोटा हूँ और सुमिना बड़ी। वैसे तो भाई-बहन का रिश्ता अगाढ़ प्रेम का दूसरा रूप होता है मगर वासना जैसे मुद्दे को इस रिश्ते के बीच में लेकर आना मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था क्योंकि प्रेम अपनी जगह है और सेक्स के रुझान को लेकर अपने से बड़ी बहन के साथ डिस्कशन एक अलग ही आयाम का गठन करने के जैसा है.

मैं चाहता तो सुमिना से बहाना बनाकर काजल के बारे में पूछ सकता था लेकिन एक बड़ी बहन और उसके छोटे भाई के बीच मर्यादा की दीवार सी थी जिसको लांघने के लिए अभी आकर्षण के और अधिक प्रबल वेग की आवश्यकता थी.


कई दिनों तक इंतजार करने के बाद काजल फिर से मेरे घर पर आने लगी. काजल की कुछ दिनों की गैरमौजूदगी के अकाल में मेरे प्यार के नए-नए पौधे की पत्तियां सूखने लगी थी. मगर उसके दोबारा आ जाने से उसकी मौजूदगी की बूंदों पड़ने से अब उस आकर्षण के पौधे ने एक बार फिर से नई कोपलें निकाल दी थीं.

अब मैं मौका नहीं चूकना चाहता था. मैं जानता था कि काजल भी मेरी तरफ आकर्षित है लेकिन उससे अकेले में बात करने का कभी मौका मिलता ही नहीं था क्योंकि सुमिना हमेशा पास में होती थी. सुमिना के सामने हाय-हैल्लो से ज्यादा कुछ बात होना संभव भी नहीं था फिर भी मैंने उम्मीद बांधी हुई थी कि कभी तो उसके करीब जाने का मौका मिलेगा ही.

एक दिन सुमिना और काजल दोनों शॉपिंग का प्लान बना बैठीं. जाने को तो वो दोनों पापा के साथ भी जा सकती थीं लेकिन पापा के साथ उनके न जाने का कारण यह था कि सुमिना और काजल दोनों जवान लड़कियां थीं इसलिए अपने से बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ वो न तो खुल कर बातें कर पातीं और न ही मटरगश्ती ही हो सकती थी.

इसलिए मेरे हिसाब से सुमिना ने इसके लिए मुझे ही टोका क्योंकि पापा के साथ कहीं बाहर जाना उनको भी शायद रास नहीं आ रहा होगा. जब मैं कॉलेज से आया तो सुमिना ने मुझसे कहा- सुधीर, आज तुम हमें मार्केट में ले चलोगे क्या?

पहले तो मुझे मेरे कानों पर यकीन नहीं हुआ, मैं वहीं बुत बन कर खड़ा हो गया जैसे मुझे कोई सांप सूंघ कर चला गया हो.
फिर जब सुमिना ने अपने ही मन में कुछ सोचकर ये कहा- कोई बात नहीं, हम दोनों फिर कभी चली जायेंगी, तुम आराम करो.
तब मेरा स्वप्न टूटा और मैंने हाथ से छूटते हुए मौके के चौके को ऐसे कैच किया कि यह कैच मेरे प्यार की पिच पर काजल को क्लीन बोल्ड करने का एकमात्र अवसर है।

मैंने तुरंत हां कर दी.
सुमिना मना करती रही लेकिन अब उन दोनों को शॉपिंग पर ले जाना मेरे लिए इतना जरूरी हो गया था जैसे प्यास से मरते हुए इन्सान को पानी का एक घूंट नसीब हो जाये.

काजल के करीब जाने का एक यही मौका था मेरे पास जिसे मैं किसी भी हाल अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था. मैंने बहाने पर बहाने बनाये और आखिरकार सुमिना को उसी दिन शॉपिंग पर चलने के लिए मजबूर कर दिया.

हाथ-मुंह धोकर मैंने जल्दबाजी में खाना ठूंसा और निवाले निगल-निगल कर फटाफटा पेट भर लिया. अगले दस मिनट के भीतर मैं उनकी सेवा में हाजिर था.

उस दिन काजल ने तोतिया (पैरट ग्रीन) रंग का सूट पहना हुआ था. जिसमें उसका गोरा रंग चमक रहा था. ऐसा लग रहा था कि फरवरी की सर्दी में फूल की कोई कली खिलने के लिए बस सूरज की किरणों की गर्माहट मिलने का इंतजार कर रही है. उसके यौवन की कली पर अपने प्यार की पहली किरण मैं ही छोड़ना चाहता था.

तीनों बाहर की तरफ चले ही थे कि मां ने पूछ लिया- कहां जा रहे हो?
सुमिना बोली- माँ, मैं काजल के साथ मार्केट जा रही हूं. इसे भी कुछ सामान लेना था और मुझे अपने कपड़े ड्राइक्लीन के लिए देने जाना है.
मां बोली- तो मैं भी चल पड़ती हूं तुम्हारे साथ, मुझे भी बाजार से सामान लाना है. मैं कई दिन से जाने की सोच ही रही थी लेकिन टाइम नहीं मिल पा रहा था. अब तुम दोनों जा ही रही हो तो मैं भी चल पड़ती हूँ. तुम्हारे पापा के लिए भी कुछ अंडरगार्मेन्ट्स ले आऊंगी और अपना भी कुछ सामान लाना है मुझे।

मां की बात सुनकर सुमिना ने काजल की तरफ देखा और उन दोनों ने मेरी तरफ। मगर माँ थी इसलिए बात टाली नहीं जा सकती थी. फिर इतने में ही पापा अंदर से निकल कर आ गये.
पापा बोले- तुम लोग कहीं जा रहे हो क्या?
मैंने कहा- हां, सोच तो रहे थे कि चले जायें.
पापा बोले- कहां जा रहे हो?
मां ने कहा- बाज़ार तक होकर आ रहे हैं.
पापा बोले- फिर मैं भी चल पड़ता हूँ!
मां ने भी तपाक से कहा- हाँ चलिये, आप यहां घर पर अकेले बैठ कर क्या करेंगे.

मैंने मन ही मन कहा ‘इन दोनों (मां-पापा) को भी अभी टांग अड़ानी थी बीच में।’
पांचों के पांचों घर का ताला लगाकर बरामदे में खड़ी कार की तरफ बढ़ चले. गाड़ी पापा ने चलाने का फैसला किया. मां आगे वाली सीट पर पापा की बगल में बैठ गयी. पीछे की तरफ एक साइड से सुमिना ने दरवाजा खोला और काजल को पहले बैठने के लिए कहा. ज़ाहिर सी बात थी कि काजल के बाद सुमिना घुसने वाली थी और सबसे आखिर में मैं.

लेकिन मैं भी इतनी जल्दी हार मानने वालों में से नहीं था. मैं फटाक से घूमकर दूसरी तरफ पहुंच गया. मेरे दूसरी तरफ से घूम कर जाने से अब स्थिति ऐसी बनने वाली थी कि काजल पीछे वाली सीट पर बीच में आने वाली थी और हम दोनों भाई-बहन काजल की अगल-बगल बैठने वाले थे. जब तक सुमिना अंदर घुसी मैंने दूसरी तरफ से जाकर गाड़ी का दरवाजा खोल लिया था.

अंदर बैठते ही एक बार सुमिना ने मेरी तरफ हैरानी से देखा मगर वो कुछ कर नहीं सकती थी अब।
काजल तो जैसे चाहती ही यही थी कि मैं उसके साथ ही बैठूं, इसलिए वो हल्के से नीचे ही नीचे मुस्करा रही थी.

पापा ने गाड़ी स्टार्ट की और हम चल पड़े. काजल का कंधा मेरे कंधे से लगा हुआ था और नीचे उसकी जांघ मेरी जांघ को स्पर्श कर रही थी. अभी तक काजल को लेकर मैं इतना कामुक नहीं हुआ था मगर होता कब तक नहीं!

बार-बार उसके बदन का स्पर्श मेरे अंदर के पौरूष को नारी काया के प्रति जन्मजात समाहित वासना को भीतर ही भीतर आंच देने लगा था. जिसका सीधा असर मुझे मेरे लिंग पर पड़ता हुआ महसूस होने लगा था.

अभी मेरे मन में उसको चोदने का ख्याल तक नहीं आया था लेकिन आज जब उसके स्पर्श को हासिल करने में कामयाब हो ही गया था तो भला ख्याल आने में कहां देर लगनी थी! बार-बार उसकी जांघ से मेरी जांघ टच होने के कारण मेरा लंड तनना शुरू हो गया था. काजल का गोरा हाथ उसकी जांघ पर रखा हुआ था.

मेरा लंड तन कर पैंट में झटके देने पर मजबूर हो चला था और मन कर रहा था कि काजल का हाथ पकड़ लूं लेकिन अभी तो वह मधुर अहसास केवल स्वप्न तक ही सीमित था. वासना की अग्नि इतनी नहीं धधकी थी कि भय की लोह-दीवार को पिघला सके. लंड भले ही पैंट में मचल रहा था लेकिन दिल कह रहा था- नहीं, अभी ये सही वक्त नहीं है।

गाड़ी सड़क पर दौड़ रही थी कि अचानक एक रिक्शा वाला सामने आ गया तो पापा ने एकदम से ब्रेक पर पैर दबा दिया और बड़ी मुश्किल से गाड़ी की टक्कर रोड के बीच बने डिवाइडर से होते हुए बची. जब सब लोग संभले तो मेरी जांघ पर मेरा ध्यान गया जिस पर काजल का हाथ मेरी पैंट को कस कर खींचे हुए था. वो शायद टक्कर के डर से डर गई थी.

स्स्स … अंदर ही अंदर एक आह सी उठी. लंड तो पहले से ही खड़ा हुआ था, ऊपर से काजल के हाथ का स्पर्श सीधा मेरी जांघ पर … वो भी मेरे तने हुए लंड से दो-तीन इंच की दूरी पर! उफ्फ लंड झटके पर झटके देकर जैसे पागल हो उठा.

मुझे नहीं पता काजल ने मेरी पैंट में तने हुए लंड को देखा या नहीं लेकिन मैं खुद ही अपने तनाव को अपने दूसरे हाथ से छिपाने की कोशिश करने लगा. मैंने अपना हाथ अपने तने हुए लौड़े पर रख लिया. फिर मिनट भर के बाद काजल ने अपना हाथ मेरी जांघ से हटा लिया. मैंने अपना दूसरा हाथ भी काजल से सटी अपनी जांघ पर रख लिया और अपने दोनों हाथों की उंगलियों को अपने अंडकोषों के ऊपर मिलाकर इस तरह से रख लिया कि कहीं से भी काजल को मेरी उत्तेजना के बारे में भनक न लगे.

थोड़ी ही देर में मार्केट पहुंच गए और हमने पार्किंग में गाड़ी पार्क कर दी. मॉल में जाकर माँ और पापा एक साथ हो लिये. काजल और सुमिना दोनों साथ-साथ चल रही थीं. मैं उन चारों के पीछे-पीछे कभी काजल को देख रहा था और कभी आस-पास की दुकानों पर नज़र घुमा कर टाइम पास कर रहा था. तनने के बाद सो चुके लंड से कामरस की एक बूंद निकल कर अंदर ही अंदर अपने मुझे मेरे लंड के टोपे पर ठंडा-ठंडा अहसास करा रही थी.

घूमते-फिरते हम एक गारमेंट्स की शॉप में घुस गये. उस शोरूम में लेडीज़ और जेन्ट्स दोनों ही डिपार्टमेंट थे. माँ और पापा एक तरफ चले गये. मैं, सुमिना और काजल एक साथ थे. फिर सुमिना की नज़र किसी कपड़े पर पड़ी और हम तीनों उसी तरफ चले गये.

सुमिना ने एक टॉप उठाया. गुलाबी रंग का टॉप था. उसे शायद वो काफी पसंद आ गया था. उसने काजल को दिखाते हुए उसकी राय जाननी चाही और काजल ने भी अपनी पसंद की मोहर लगा दी सुमिना की पसंद पर।
सुमिना खुश हो गई और फिर उसको ट्राई करने के लिए ट्रायल रूम की तरफ चली गई. अब काजल और मैं दोनों बाहर अकेले थे.

इतने दिनों के बाद मुझे काजल के साथ ये लम्हा नसीब हुआ था. एक तरफ खुशी भी थी और कौतूहल के साथ-साथ अजीब सा डर भी लग रहा था. मन तो कर रहा था कि उससे बात करने की पहल कर दूं लेकिन ज़बान में जैसे दही जम गई थी. चाहकर भी हिल नहीं रही थी.

लेकिन मौका बार-बार नहीं मिलता, ये बात मैं अच्छी तरह जानता था. मैंने मौके का फायदा उठाने की सोची क्योंकि कई दिन तक जब काजल घर पर नहीं आई थी, तब मैं ही जानता हूँ कि मेरे दिल पर क्या गुज़र रही थी.

इसलिए अब उससे बात करने की हिम्मत हर हाल में जुटानी थी मुझे. पूरी ताकत लगा दी अंतर्मन ने एक सवाल पूछने में- आप यहां पर फैमिली के साथ रहती हैं क्या?
काजल को शायद पहले से ही उम्मीद थी कि मैं उससे बात करने की पहल जरूर करूंगा, इसलिए उसको मेरे सवाल पर हैरानी होने की बजाय हर्ष ज्यादा हुआ.
उसने मुस्कराते हुए जवाब दिया- हां, अपने मम्मी-पापा और भाई के साथ रहती हूं.

मेरी बात का जवाब देते हुए काजल ने मेरे अगले सवाल का मुंह ऊपर उठने से पहले ही उसको अपने जवाब की जूती से जैसे रौंद दिया क्योंकि मैं इसके बाद यही पूछने वाला था कि घर में कौन-कौन है!

खैर, अब जब बात शुरू हो ही गयी थी तो आगे बढ़ानी भी जरूरी थी लेकिन समझ नहीं आ रहा था कि और क्या बात करूं. अगर मैं उससे ये पूछता कि आप क्या पढ़ाई कर रही हैं तो शायद वो मुझे लल्लू समझ बैठती क्योंकि वो मेरी बहन के साथ ही पढ़ाई कर रही थी इसलिए ऐसा बेतुका सवाल पूछ कर मैं अपना इम्प्रेशन बनने से पहले ही बिगाड़ना नहीं चाहता था.

घबराहट के कारण दिमाग ने काम करना बंद सा कर दिया था इसलिए आगे बात बढ़ाने का रास्ता सूझ नहीं रहा था. एक बार तो ये सोचा कि पूछ लूं कि कॉलेज के बाद क्या करने का इरादा है, लेकिन ये सवाल भी नए रिश्ते की बुनियाद को मजबूती प्रदान करने की दृष्टि से प्रासंगिकता की कसौटी पर खरा उतरता प्रतीत नहीं हो रहा था। अगर मैं इसी तरह के नीरस सवाल पूछता रहता तो काजल के बोर होने का डर था.

फिर दिमाग की बत्ती जली और मैंने पूछ लिया- आपको शॉपिंग करने का शौक नहीं है क्या?
यह सवाल एक नारी से वार्तालाप शुरू करने के लिए एकदम सटीक था. नारी भले ही किसी और टॉपिक में रूचि रखे न रखे लेकिन जब बात शॉपिंग पर आ जाती है तो उसको दुनिया में इससे रूचिकर विषय शायद ही दूसरा कोई लगता हो। अपनी चतुराई पर मैं फूला नहीं समा रहा था.
मेरे सवाल का बड़े ही चटक अंदाज में जवाब देते हुए उसने कहा- हां, मैं तो बहुत शॉपिंग करती हूँ, मुझे भी काफी शौक है शॉपिंक करने का, लेकिन मैं अपनी सहेलियों के साथ ही जाती हूँ. अभी तो सुमिना के साथ उसको कंपनी देने के लिए बस ऐसे ही चली आई.

मैंने कहा- क्यूं, सुमिना आपकी सहेली नहीं है क्या? आप हमारे साथ भी तो शॉपिंग कर सकती हैं.
यह कहकर मैं उसको अपनापना जताने की कोशिश कर रहा था. मेरे इस सवाल का जवाब उसे भी नहीं सूझा। सुमिना तो उसकी सहेली थी ही जिससे वो इन्कार नहीं कर सकती थी. अगर वो ये कहती कि वो हमारे परिवार के साथ शॉपिंग नहीं करना चाहती तो उसे भी शायद ये डर सता रहा होगा कि अगर उसने ऐसा कहा तो मैं कहीं ये न समझ लूं कि वो हमारे परिवार के साथ सहज नहीं है।
अपनी बातों में मैंने काजल को अच्छी तरह उलझा लिया था। जिसका मुझे अंदर ही अंदर गर्व हो रहा था।


मैं और काजल बात कर ही रहे थे कि सुमिना वो गुलाबी टॉप पहन कर बाहर आ गई. सच कहूं तो सुमिना उस टॉप में किसी मॉडल से कम नहीं लग रही थी. मेरी बहन की खूबसूरती सच में किसी की भी नज़र उस पर रोकने में बखूबी सक्षम थी. फिर चाहे वो नज़र किसी लड़की की ही क्यों न हो.

एक बार तो मेरा मन भी सुमिना के उस टॉप में उठे उसके उरोजों को देखकर जैसे वहीं पर ठहरने सा लगा था. मगर सुमिना मेरी बहन थी इसलिए उसके बारे में अपने मन में ऐसे ख्याल लेकर आने की इजाजत मेरा ज़मीर मुझे कतई नहीं दे रहा था. फिर नज़रें तो नज़रें ही होती हैं उन पर रोक लगाना इतना सरल कहां है.

सुमिना उस टॉप में बहुत ही सुंदर लग रही थी. उसके काले चमकीले बाल उस टॉप पर उसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने के साथ-साथ कितने ही तारे भी साथ में जोड़ रहे थे. काजल ने सुमिना की तारीफ करते हुए कहा- बहुत सुंदर लग रही हो …
काजल के मुंह से अपनी तारीफ सुनकर सुमिना खुश हो गई.

काजल को भी वो टॉप काफी भा गया था. इसलिए उसने उसे खरीदने का मन बना लिया. वो अंदर जाकर जल्दी से चेंज करके वापस बाहर आ गयी. इस दौरान मुझे काजल से कुछ और बात करने का मौका नहीं मिल पाया.

फिर हम तीनों बिलिंग काउंटर की तरफ चले गये. वहां जाकर सुमिना ने बिल बनवाया और टॉप लेकर हम मां-पापा का इंतजार करने लगे. कुछ मिनट तक हमने उनके आने का इंतज़ार किया लेकिन वो लोग कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे. फिर हमने सोचा कि तब तक कॉफी शॉप पर चल कर कॉफी ही पी लेते हैं.

हम लोग कॉफी शॉप में चले गये और वहां जाकर मैंने तीन कॉफी ऑर्डर कर दी. हमने टेबल ले ली और काजल मेरी बहन सुमिना के साथ मेरे सामने बैठ गई. वो दोनों कुछ इधर-उधर की बातें करने लगी और मैं अपने फोन में टाइम पास करने लगा.
बीच-बीच में मैं काजल की तरफ देख रहा था. उसे देखकर जी नहीं भर रहा था लेकिन बेशर्म होकर बहन के सामने ताड़ तो नहीं सकता था उसकी सहेली को इसलिए फोन का बहाना बनाया हुआ था.

काजल को भी मैंने कई बार मेरी तरफ देखते हुए पकड़ लिया था. वो जब हंसती थी तो दिल पर जैसे कटार चल जाती थी. उसके मोतियों जैसे सफेद दांतों के ऊपर उसके होंठों पर खिली हंसी देख कर दिल को बड़ा सुकून मिल रहा था. वो भी बीच-बीच में मेरी तरफ देख कर मुस्करा देती थी.

फिर पांच-सात मिनट के बाद सर्विस ब्वॉय कॉफी लेकर आ गया और उसने तीन कॉफी के कप ट्रे के साथ ही हमारे सामने रख दिया.
“कुछ और ऑर्डर करना चाहेंगे सर?” वेटर ने पूछा।

मैंने उन दोनों सहेलियों की तरफ देखा तो उन्होंने ‘ना’ में मुंडी हिला दी.
“नहीं भैया, हमें और कुछ नहीं चाहिए, थैंक्स!” मैंने वेटर से कहा और वो वापस चला गया.

तीनों ने अपने-अपने कॉफी के कप उठा लिये और गर्म-गर्म कॉफी का लुत्फ लेने लगे. तभी माँ का फोन बजने लगा.
मैंने कॉल उठाई तो माँ ने पूछा- तुम लोग कहां पर हो सुधीर?
मैंने कहा- मां, हम तीनों यहीं कॉफी शॉप में बैठे हुए आपका इंतजार कर रहे हैं. इतना सुनने के बाद माँ ने फोन रख दिया.
फिर दोबारा से माँ का फोन आया- सुधीर, हम लोग पार्किंग की तरफ जा रहे हैं. तुम लोग भी आ जाओ, काफी देर हो गई है.
मैंने कहा- ठीक है मां, हम भी बस निकल रहे हैं यहां से।

पार्किंग में आने के बाद पांचों के पांचों गाड़ी में बैठ गये और फिर वही वाली स्थिति बन गई जो आते समय थी. माँ और पापा आगे बैठे हुए थे और काजल हम दोनों भाई-बहनों के बीच में थी.
पार्किंग से गाड़ी निकाली और हम मॉल से बाहर आ गये.

वापस आते हुए काजल की जांघ मेरी जांघ से अब कुछ ज्यादा ही सटी हुई मालूम हो रही थी. मेरे लंड को तनने में देर नहीं लगी. अंदर ही अंदर तूफान सा उठ रहा था क्योंकि लंड एक बार खड़ा हो जाये तो फिर उसको कुछ न कुछ चाहिये होता है. मगर इस वक्त न तो मैं अपने हाथ से ही अपने लंड को सहला सकता था और काजल का हाथ मेरे लंड पर आने की तो दूर-दूर तक कोई उम्मीद नहीं थी. काजल तो शायद ये भी नहीं जानती थी कि उसकी जांघ का स्पर्श मेरी अंतर्वासना को भड़का चुका है.

काफी देर से लंड उछल रहा था इसलिए उसमें दर्द होना शुरू हो गया था. मैंने बहाने से अपने हाथ को नीचे ले जाकर लंड को थोड़ा एडजस्ट करने की कोशिश की तो उसी वक्त काजल की नज़र हल्की सी नीचे की तरफ जाकर मेरी इस हरकत को देख गई.
मैंने झट से हाथ वापस हटा लिया अपने लंड से मगर ससुरा लंड अभी भी यूं का यूं पैंट को उठाये हुए था. अब मुझे शर्मिंदगी सी महसूस होने लगी थी. मगर समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं इसको छिपाने के लिए!

मैंने सुमिना की तरफ देखा तो वो अपने फोन में लगी हुई थी. मैंने भी अपना फोन निकाल कर अपना ध्यान दूसरी तरफ लगाने की कोशिश की ताकि मेरा तना हुआ लंड खुद से ही नीचे बैठने की कोशिश करे. मैं भी फोन निकाल कर मैसेज वगैरह चेक करने लगा. लंड को नीचे बैठाने की मेरी कोशिश मुझे कामयाब होती भी दिखाई दी. चूंकि मेरा दिमाग अब फोन की स्क्रीन पर मैसेज पढ़ने में व्यस्त हो गया था इसलिए शारीरिक गतिविधियों की तरफ इतना ध्यान नहीं जा रहा था.

लंड बैठना शुरू ही हुआ था कि मेरे बेबस लंड पर एक और प्रहार हो गया जिसकी मुझे उम्मीद कतई नहीं थी. काजल ने मेरी जांघ पर अपना हाथ रख लिया था. मेरे हाथ में फोन था. मैंने उसी पोजीशन में फोन की स्क्रीन पर देखने का नाटक करते हुए मैंने आंखों की पुतलियों को नीचे की ओर मोड़ दिया ताकि वो पता लगा सकें कि काजल का हाथ कहां रखा हुआ है.

काजल का हाथ ठीक मेरी जांघ पर रखा हुआ था और उसकी उंगलियां मेरी जांघ पर फैली हुई थीं. उसके गोरे हाथ को जब मेरी नजरों ने देख लिया तो मेरा अधसोया सा लंड टन्न से फिर तनकर उछल पड़ा. मुझे समझ नहीं आ रहा था कि काजल ये जान-बूझ कर रही है या उसने अनजाने में ही मेरी जांघ पर हाथ रखा हुआ है. मगर जो भी हो उसके हाथ का ऐसी संवेदनशील जगह पर होना मेरे अंदर गजब की वासना भर रहा था.

मैंने काजल की तरफ देखा तो वो सुमिना के फोन में देख रही थी. मैंने सोचा कि शायद हो सकता है कि अनजाने में काजल का हाथ मेरी जांघ पर आ गया हो इसलिए इतनी जल्दी किसी निष्कर्ष पर पहुंचना ठीक नहीं था. मैंने उसका हाथ ऐसे ही रखा रहने दिया. मगर यहां पर मेरे लिए चिंताजनक बात ये थी कि मेरे तने हुए लंड का टोपा काजल की सबसे छोटी उंगली से बस इंच भर की दूरी पर ही रह गया था.

मन में वासना का वेग इतना बढ़ने लगा था कि मन कर रहा था कि जांघ को फैला दूं और काजल के हाथ को रास्ता दे दूं कि वो मेरे खड़े लंड पर आकर उसकी क्षुधा को शांत करने में अपना योगदान दे लेकिन ऐसा करना अभी मुझे एकतरफा फैसला लगा.
अभी मैं इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं था कि काजल के मन में भी कुछ ऐसा ही चल रहा है या ये सब अनजाने में ही हो रहा है.

फिर दो मिनट बाद वो हुआ जिसने अंदर मेरे अंदर काम की ज्वाला एकदम से ही भड़का दी. काजल के हाथ की दो उंगलियां मेरे तने हुए लौड़े पर आकर ठहर गई थीं. मैंने हैरानी से काजल की तरफ तिरछी नजर करके देखा तो उसने अपना दुपट्टा अपने हाथ से ठुड्डी के नीचे इस तरह से दबाया हुआ था कि दुपट्टे ने सुमिना और मेरे बीच में एक दीवार सी बना दी थी और सुमिना की नजर इस तरफ पड़ ही नहीं सकती थी. काजल अभी भी सुमिना के फोन की स्क्रीन में नजरें गड़ाये हुई थी.

मगर उसकी उंगलियों की पोजीशन को देख कर ऐसा लग रहा था कि वो उंगलियां जैसे वह रास्ता खुद ही तय करते वहां तक पहुंची हों. उसकी उंगलियों का स्पर्श पाकर मेरा लंड फुफकारते हुए उछल-उछल कर झटके देने लगा. मगर फिर भी उसकी उंगलियां मेरे लंड पर जमी रहीं. तनाव इतना प्रबल था कि मेरी जांघ न चाहते हुए भी काजल की जांघ को धकेलती हुई थोड़ी सी फैल गई और कोशिश करने लगी कि काजल की उंगलियां मेरे लंड को पूरा का पूरा कवर कर लें.

बहुत ही कामुक अहसास उबल रहा था अंदर ही अंदर. फिर काजल ने धीरे से अपने हाथ को थोड़ा सा और मेरे तने हुए लंड की तरफ सरकाया और फिर उसकी चार उंगलियां मेरे लंड पर आ गईं. अब मुझे यकीन हो चला था कि काजल भी मेरे लंड को पकड़ना चाहती थी इसीलिये वह जानबूझकर मेरे लंड की तरफ अपने हाथ को बढ़ाये जा रही थी.

फिर उसने अपने पूरे हाथ को मेरे लंड पर रख दिया और मुझे जैसे वासना का नशा सा चढ़ने लगा. मेरा लंड झटके पर झटके दे रहा था. बार-बार उछल-उछल कर काजल के हाथ को ये जता रहा था कि उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी है. उसको पकड़ कर सहला दे अब कोई. मगर काजल को जैसे मेरे लंड के साथ-साथ मुझे भी तड़पाने में आनंद आ रहा था, इसलिए वो आराम से अपने हाथ को मेरे लंड पर रखे हुए थी.

फिर उसने एक-दो बार मेरे लंड पर अपने हाथ से दबाव बनाते हुए उसको नापने की कोशिश की तो मैं मदहोशी से भर गया. मन कर रहा था अभी काजल को पकड़ कर उसके होंठों को चूस लूं और उसके चूचों को दबा दूं. मगर वो बेदर्दी से मेरे लंड पर अत्याचार किये जा रही थी. मैं बेबस था. न तो काजल के बदन को छू सकता था और न ही अपने लंड को सहला सकता था.

हां, लेकिन एक काम जरूर कर सकता था. मैंने अपने हाथ को भी काजल के हाथ के ऊपर रख दिया. अब काजल के हाथ पर मेरा हाथ रखा हुआ था और काजल का हाथ मेरे लंड पर। दोनों हाथों के दबाव से लंड पगला गया. ऐसा महसूस होने लगा कि लंड झटके मार-मार कर अभी वीर्य निकाल देगा पैंट में!

लेकिन काजल ने मेरे और मेरे लंड पर कुछ रहम खाया और मेरा हाथ उसके हाथ पर रखने के कुछ सेकेण्ड के बाद ही काजल ने अपना हाथ मेरे तने हुए लंड से हटाते हुए अपनी तरफ खींच लिया. मगर उसकी नजरें अभी भी सुमिना की तरफ ही थीं.

फिर कुछ देर के बाद हम घर पहुंच गये. मेरे लंड का काजल ने बुरा हाल कर दिया था. लेकिन उसके चेहरे पर न तो कोई भाव था और न ही ऐसा कोई चिह्न जिससे मैं ये पता लगा सकूं कि उसने ये सब जान-बूझकर किया है. मगर जो भी हुआ उसमें मजा बहुत आया.

शायद सुमिना को पता लगने के डर से वो किसी तरह का रिएक्शन नहीं देना चाह रही होगी. या फिर ये सोच रही होगी कि कहीं मुझे पता न लग जाये कि वो भी उसी आग में जल रही है जो आग आज मैंने अपने भीतर महसूस की।

घर आने के बाद पापा ने गाड़ी पार्क कर दी और हम चारों अंदर चले आये.

तभी पीछे से हमारी कामवाली घर में दाखिल हुई. उसने माँ से पूछा- मेमसाब, मैं पहले भी आई थी लेकिन घर का ताला लगा हुआ था.
माँ बोली- हां आशा, मैं तुझे फोन करके बताना ही भूल गई कि हम लोग मार्केट जा रहे हैं. चल अब तू आ गई है तो सबके लिये चाय ही बना दे। हम लोग तो थक गये हैं.
आशा बोली- जी मालकिन, मैं अभी चाय लेकर आती हूं.

इतना कहकर आशा रसोई में चली गई. सुमिना और काजल दोनों ही सुमिना के कमरे में चली गईं.


कहानी अगले भाग में जारी रहेगी।

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