बात उन दिनों की है, जब मैं गर्मी की छुट्टियों में अपने गाँव में था. चूँकि उत्तर भारत में गर्मी की छुट्टियाँ लगभग दो महीने की होती है, तो मैं भी गाँव पर अपने हमउम्र दोस्तों के साथ मस्ती करता रहता था.
हमारा गाँव पूर्वी उत्तर प्रदेश की किसी आम गाँव जैसा ही है. आस पास बसे घर और बस्ती के बाहर लोगों के बाग़ और खेत. ये वो समय होता है जब औरतें अपने बच्चों के साथ अपने मायके भी जाती हैं. हालाँकि कई बार केवल बच्चे ही ननिहाल में रहने जाते हैं.
उस वक़्त हमारी बुआ की बेटी भी हमारे घर आयी हुई थी. चूँकि हमारे बुआ जी की मृत्यु कई साल पहले ही हो गयी थी, तो उनकी बेटियां गर्मियों में अक्सर अपने ननिहाल यानि हमारे घर आती थी.
हमारे घर में आम के बाग़ थे, तो ये मौसम आने के लिए अच्छा रहता था.
थोड़ा पीछे जाते हुए ये बता दूँ कि हमारी बुआ की 3 बेटियां और 1 बेटा है. जो दीदी इस वक़्त हमारे घर आयी हुई थी, वो उनकी बीच वाली बेटी थी. मैं अपने भाई बहनों में सबसे छोटा था और मेरे पिताजी भी बुआजी से छोटे थे, तो मेरे और दीदी की उम्र में काफी अंतर था. उस वक़्त मैं लगभग 21 साल का था और सुनीता दीदी, हाँ! उनका नाम सुनीता था, वो लगभग 35 साल की थी. उनके उस वक़्त 3 बच्चे भी थे लेकिन बच्चे अपने बाबा दादी के साथ उनकी ससुराल में थे.
ये वक़्त लगभग जून के मध्य का था. हमारे घर पर खेती-बाड़ी थोड़ी अधिक थी तो हर वक़्त कुछ ना कुछ अनाज छत पर सूखने के लिए फैला रहता था.
उस दिन मैं अपने द्वार (घर के बाहर की वो जगह जहाँ बाहर के मेहमानों को बैठाया जाता है. जो लोग गाँव के परिदृश्य से परिचित होंगे वो जानते होंगे.) पर अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठा दोपहर में ताश खेल रहा था.
मौसम सुबह से ही बारिश का बन रहा था और दोपहर होते होते, बादलों ने पूरे आसमान को ढक लिया. हम बेपरवाह होकर मौसम का आनंद उठाते हुए ताश में ही व्यस्त थे. थोड़ी देर बाद जब मैं उठ कर अपने घर में गया तो देखा कि मेरी माँ, बड़े भाई और वो दीदी छत पर थे. मैं सीढ़ियों से चढ़ता हुआ ऊपर गया तो देखा वो सारे लोग हाथ में बोरी और झाड़ू लिए सरसों जो सूखने के लिए छत पर फैली थी, उसको बटोरने के लिए लगे हुए थे.
मेरी माँ ने थोड़ी नाराज़गी दिखाते हुए कहा- जब तुम देख रहे थे कि बारिश होने को है तो घर नहीं आ सकते थे क्या? छत पर ये सब फैला था.
मैंने भी कहा- तो आपको बुला लेना चाहिए था. यहीं तो था मैं!
माँ ने उसके बाद फिर कुछ नहीं कहा.
मैं सुनीता दीदी को वहां देख कर आश्चर्य में था कि वो कब आ गयीं. जब उन्होंने बताया कि थोड़ी देर पहले … तब मुझे लगा कि मैं ताश खेलने में इतना व्यस्त था कि कब वो हमारी बैठक के सामने से निकल कर घर में आ गयीं, मुझे पता ही नहीं चला.
खैर जो भी थोड़ा बहुत काम बचा था, मैं उसमें हाथ बंटाने लगा. काम लगभग खत्म हो गया था तो मेरे भाई नीचे चले गए.
मम्मी दूसरी तरफ छत साफ़ कर रही थी और सुनीता दीदी एक तरफ. अचानक मेरी नज़र सुनीता दीदी की तरफ गयी तो उनके झुकने की वजह से उनके कुरते का हिस्सा नीचे झूल गया था और उनके क्लीवेज गहराई तक दिख रहे थे.
उनका रंग गेंहुआ था, लेकिन कपड़ों के अन्दर रहने की वजह से वो हिस्सा काफी गोरा था.
हर जवान लड़के की तरह मेरी भी हालत थी और उसी तरह मेरी भी नज़र वहां से हट नहीं रही थी. उस कुरते का शायद गला भी काफी गहरा था, इस वजह से वो और भी ज्यादा दिख रहा था.
अचानक से उनकी नज़र ऊपर उठी तो उन्होंने मुझे वहां देखते हुए पकड़ लिया. हालाँकि मैं कुछ ऐसा नहीं कर रहा था जिसपर वो सबके सामने उंगली उठा सकें, लेकिन शर्म से मेरी ही नज़रें झुक गयीं और मैं दूसरी तरफ देखने लगा.
हालाँकि मन में एक चोर था जो बार बार उसी तरफ देखने के लिए जोर मार रहा था. दीदी ने कुछ ना बोलते हुआ बस अपने कुरते को थोड़ा ऊपर खींच लिया और बाक़ी का काम खत्म कर के नीचे चली गयीं.
मैं भी थोड़ी देर बाद घर से बाहर चला गया.
चूँकि वो गर्मी के दिन थे, और आप सब को पता ही है कि गाँवों में बिजली की क्या हालत रहती है, तो इस वजह से पूरे गाँव की तरह हम लोग भी छत पर सोते थे. हालाँकि पंखा लगा कर सोते थे कि अगर रात में बिजली आये तो कुछ तो हवा का आनंद मिले.
उस रात भी मैं मम्मी और दीदी छत पर ही बिस्तर लगा कर सो रहे थे. मेरे भाई नीचे देर तक टीवी देखते थे तो वो कई बार वहीं पर इन्वर्टर के सहारे चल रहे पंखे में ही सो जाते थे. और इससे पहले आप पूछें तो बता दूँ कि मेरे पिताजी की मृत्यु 3 साल पहले हो चुकी थी. तो घर में हम इतने ही लोग थे.
मैं पहले ही पंखे के साइड जाकर सो गया था तो जब दीदी और मम्मी सोने के आयी, तो दीदी बीच में और मम्मी उनके बगल में जाकर लेट गयी. चूँकि वो मेरी बड़ी बहन थी, तो उम्र में मुझसे काफी बड़ी, तो अगल बगल सोने में किसी को भी कोई दिक्कत नहीं थी.
रात में गर्मी के मारे मेरी नींद खुल गयी. मैंने उठ कर पानी पिया और फिर आकर अपनी जगह लेट गया. कुछ ही मिनट में लाइट आ गयी और पंखे की हवा लगने से मुझे फिर से नींद आनी शुरू हो गयी.
जब पंखे की हवा लगनी शुरू हुई तो दीदी ने भी अपने शरीर को थोड़ा सा खिसका कर पंखे के सामने कर लिया.
उस वक़्त उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी, जो उन्होंने शाम को भीगने के बाद कपड़े बदल कर पहनी थी.
मैं आधी नींद में था लेकिन उनको बगल में देख कर और पंखा चलने से गर्मी से ध्यान हटने की वजह से शाम के नज़ारे मुझे याद आने लगे. वो याद आने पर मैं करवट बदल कर उनकी तरफ मुड़ गया. हालाँकि कुछ करने की हिम्मत नहीं थी लेकिन फिर भी जवानी का जोश … मैंने बस अपने हाथ को उठा कर उनके खुले हुए पेट पर रख दिया.
ये सब करते हुए मेरी आँखें बंद थी कि अगर वो जाग भी रही होंगी तो उन्हें यही लगेगा कि मैंने नींद में ऐसा किया है.
थोड़ी देर तक मैंने अपना हाथ उनके पेट पर ऐसे ही रहने दिया. चूँकि मेरी आगे कुछ करने की हिम्मत नहीं थी तो मैं खुद भी नींद में था वो मैंने अपना हाथ नीचे कर लिया और सोने की कोशिश करने लगा.
थोड़ी देर बाद मुझे ऐसा लगा जैसे कि कोई मेरी उँगलियों को छू रहा हो. पहले तो मेरा ध्यान नहीं गया लेकिन थोड़ी देर बाद मेरी आँख हल्की सी खुल गयी तो मैंने देखा की दीदी का हाथ मेरे हाथ के पास था, और उनकी उँगलियाँ मेरी हथेली को छू रही थीं.
मुझे लगा कि शायद नींद में होगा, तो मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया.
लेकिन थोड़ी देर बाद मेरी नींद खुल गयी. अब उनकी उँगलियाँ एक ही जगह पर थी बिना हिले-डुले. मैंने थोड़ी हिम्मत करते हुए अपनी उँगलियों से उनकी कलाई को छुआ तो उन्होंने अपने हाथ में मेरी उँगलियों को पकड़ लिया.
जब थोड़ी देर बाद उन्होंने उँगलियों को अपनी पकड़ से आजाद किया तो मैंने फिर से हाथ उठा कर उनके खुले पेट पर रख दिया. थोड़ी देर वैसे ही रखने के बाद मैंने उनके पेट को सहलाना शुरू कर दिया. ऐसे करते करते कब मेरी आँख लग गयी मुझे पता ही नहीं चला.
उस वक़्त शायद इससे ज्यादा करने की मेरी हिम्मत भी नहीं थी.
अगले दिन मैं सुबह चाय पीकर दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने चला गया. गर्मियों की छुट्टियों में दिन ऐसे ही बीतता था.
दोपहर में जब मैं वापस आया तो सारे लोग खाना खा चुके थे. गाँव में लोग खाना थोड़ा जल्दी खा लेते हैं. मैंने किचन से खाना लिया और खाने के बाद ऊपर के कमरे में चला गया.
हमारे घर में में गर्मी की दोपहर लोग नीचे के कमरे में ही आराम करते हैं, क्यूंकि वो अपेक्षाकृत ठंडा रहता है. लेकिन नीचे फ़ोन के नेटवर्क की हालत बहुत ख़राब रहती है, इसलिए मैं कई बार ऊपर ही जाकर थोड़ी देर लेटता था.
जब मैं ऊपर गया तो वो दीदी वहां लेटी हुई थी. वो अभी जगी हुई थीं. जब मैंने उन्हें देखा तो मैंने उनसे कहा कि मुझे पता नहीं था वो यहाँ पर हैं, वो आराम करें, मैं नीचे जाकर ही लेट जाता हूँ. उन्होंने मुझे रोकते हुए कहा- नहीं, मैं भी सो नहीं रही थी. और अगर मुझे सोना ना हो, तो बैठ कर मुझसे बात कर सकता है.
मेरी भी आँखों में नींद नहीं थी तो मैं वहीं बैठ कर उनसे बात करने लगा और साथ साथ मोबाइल में सर्फिंग करता रहा. चूँकि हमारी कभी इतनी ज्यादा बात होती नहीं थी, इसलिए मुझे भी नहीं समझ में आ रहा था कि उनसे क्या बात करूँ.
इसलिए मैंने जीजाजी और उनके ससुराल के जितने भी थोड़े बहुत लोगों को जानता था उनके बारे में पूछने लगा.
उन्होंने बताया कि जीजाजी की तबियत बहुत ठीक नहीं रहती है. ऐसी घबराने वाली कोई बात नहीं बस सांस की थोड़ी तकलीफ़ उनको रहती है लगातार, बहुत इलाज कराने के बाद भी.
थोड़ी देर इधर उधर की बात के बाद वो बोली- कल के बारे में कुछ कहना है तुम्हें?
मेरे पैरों के खून सर में आ गया और ऐसे लगा जैसे किसी ने कई मंजिल वाली इमारत से नीचे धकेल दिया हो.
मैंने अनजान बनते हुए कहा- कौन सी बात?
उन्होंने बिना चेहरे पर कोई भाव लाये हुए कहा- इतने मासूम मत बनो. मुझे सब पता है तुम कल शाम को सरसों बटोरते हुए जो देख रहे थे.
मैंने अपनी नज़रें नीचे करते हुए कहा- वो तो गलती से हो गया था.
उन्होंने फिर कहा- वो रात में भी वो गलती से ही हुआ?
मुझे काटो तो खून नहीं … समझ में नहीं आ रहा था क्या कहूँ. मैं उस पल को कोस रहा था जब उनके कहने पर मैं वहां बैठ कर उनसे बात करने लगा था.
मैंने घबराते हुए निगाहें नीचे कर ली और मेरे पैर जैसे काँप रहे थे.
मेरी हालत देख कर वो हँसने लगी. उनको हँसता देख कर मैं आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा.
वो हँसते हुए ही बोली- घबराओ मत, मैं किसी से शिकायत नहीं करुँगी तुम्हारी.
मैंने उनकी तरफ ख़ुशी ख़ुशी देखा और केवल ये बोल पाया- थैंक यू दीदी. आज के बाद फिर कभी ऐसा नहीं करूँगा मैं!
मेरी ये बात सुनकर उन्होंने कहा- नहीं, ये तो गलत बात होगी.
यह कहकर उन्होंने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया.
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर चल क्या रहा है. मैंने उसी अनिश्चितता के भाव से जब उनकी तरफ देखातो उन्होंने मेरे हाथ को और जोर से पकड़ लिया.
उन्होंने कहा- देखो, अगर मैं ये कहूँगी कि रात में जो हुआ वो मुझे अच्छा नहीं लगा तो ये झूठ होगा.
अब मुझे और किसी इशारे की जरुरत नहीं थी. मैंने उनके हाथ को अपने हाथ में लिया और धीरे धीरे सहलाना शुरू कर दिया. उनकी साड़ी का पल्लू उनके कन्धों से नीचे सरक गया था और हम दोनों की सांसें भरी हो रही थी. उनकी निगाहें नीचे थी और केवल हम दोनों के हाथों को देख रही थी.
मेरी नज़र उनके चेहरे पर थी. उनके हाथ को सहलाते सहलाते मैं अपने हाथों को उनके कन्धों तक ले गया और वहां से उनकी गर्दन तक. उनकी गर्दन पर हाथ रखते ही उन्होंने सर को एक तरफ झुका कर मेरे हाथ को अपने सर और कंधे के बीच बड़ा दिया.
उनकी त्वचा गर्मी की वजह से थोड़ी सी गीली हो रही थी लेकिन उनके शरीर का तापमान बढ़ा हुआ था और सांसें तेज़ चलने की वजह से उनका सीना ऊपर नीचे हो रहा था.
हम दोनों थोड़ी देर उसी हालत में बैठे रहे.
थोड़ी देर बाद जब उन्होंने सर ऊपर उठा कर मेरे हाथ को आजाद किया तो उनकी निगाहें मेरे चेहरे पर थी और होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान तैर रही थी. हम दोनों को पता था कि आगे क्या करना है, बस पहल कौन करेगा जंग किसकी थी.
हम दोनों भाई बहन अपने आप को रोक रहे थे … कुछ शर्म और कुछ घबराहट के कारण.
अंततः मैंने आगे झुक कर उनके माथे पर अपने होंठों को रख दिया. उनकी आँखें बंद हो गयीं थी. मैंने अपने होंठों को थोड़ी देर वहीं छोड़ दिया.
हम दोनों के हाथ अभी भी आपस में जुड़े हुए थे. अब केवल हाथ नहीं बल्कि उँगलियाँ आपस में उलझ गयी थी.
मैंने अपने होंठों को उनके माथे से हटाते हुए उनकी आँखों पर रख दिया. उनकी पलकें हल्की हल्की काँप रही थी जिन्हें मैं अपने होंठों से महसूस कर सकता था. अब मैं आँखों से हट कर उनके गालों को चूमता हुआ उनके होंठों तक आ गया.
पहले मैंने उनके ऊपर से ही किस किया. उन्होंने अपने होंठों को बंद ही रखा. फिर मैंने अपने होंठों से ही उनको खोलने की कोशिश करी. उनकी सांसें तो भरी हो रही थी लेकिन होंठ अभी भी बंद थे. मैंने उनका हाथ छोड़ कर अपने हाथ को उनकी कमर पर रख दिया और हल्के हल्के सहलाने लगा.
उनके मुंह से एक सिसकी निकली और मैंने उसी दौरान उनके निचले होंठ को अपने होंठों के बीच दबा लिया.
उन्होंने कोई विरोध नहीं किया.
मैं धीरे धीरे उनके होंठों को चूसता रहा. थोड़ी देर बाद जब उनकी झिझक थोड़ी खत्म हुई तो उन्होंने भी साथ देना शुरू कर दिया. अब मेरा एक हाथ उनकी कमर पर था और दूसरा उनके घुटनों पर. मैं एक हाथ से उनकी कमर और एक हाथ से कपड़ों के ऊपर से ही घुटनों के आस पास सहला रहा था.
थोड़ी देर बाद उन्होंने खुद ही अपने आप को हल्का सा पीछे किया और दीवार का सहारा लेते हुई अधलेटी स्थिति में आ गयी. मैंने भी उसी हिसाब से खुद को एडजस्ट किया और दुबारा से अपने चेहरे को उनके चेहरे के पास ले गया.
इस बार पहल उन्होंने करी और मेरे निचले होंठ को अपने होंठों के बीच ले लिया. थोड़ी देर ऐसे ही करते हुए उन्होंने अपनी जुबान मेरे मुंह के अन्दर धकेलने के कोशिश करी. मैंने अपने मुंह को थोड़ा खोलते हुए उनकी जबान को अन्दर लिया और उसे चूसने लगा.
थोड़ी देर बाद जब उन्होंने सांस लेने लिए होंठों को अलग किया तो उनके चेहरे पर जैसे एक अजीब सी चमक थी. मैंने उनकी कमर पर हाथ रखते हुए, उनके गले को चूमा. उन्होंने अपनी उँगलियों को मेरे बाल में फंसा दिया.
अब जैसे जैसे मैं उनके गले को चूमता जा रहा था, उनकी उँगलियाँ मेरे बालों को सहलाती जा रही थी. उन्होंने अपने सर को पीछे धकेल कर मेरे चूमने के लिए जैसे और जगह बना दी हो. उनके होंठों से हल्की हल्की सिसकारी निकल रही थी.
मैंने चूमना छोड़ कर अब उनके गले की त्वचा को हल्का हल्का चूसने शुरू कर दिया था. हालाँकि मैं ज्यादा देर तक ऐसा नहीं कर रहा था क्यूंकि मैं नहीं चाहता था कि ये निशान कोई देखे और वो परेशानी में पड़ जाएँ.
उनका पल्लू अब पूरी तरह से उनकी गोद में पड़ा था और छातियाँ गहरी सांस से ऊपर नीचे हो रही थी. मैं धीरे धीरे उनकी गर्दन से नीचे उतार रहा था. मेरे होंठ अब अब उनके ब्लाउज के गले पर था. उनका ब्लाउज थोड़ा डीप कट था तो जितना भी हिस्सा दिख रहा था मैं उसको लगातार चूम रहा था और अपनी जीभ से गीला कर रहा था.
गर्मी की वजह से उनकी त्वचा हल्का सा नमकीन लग रही थी लेकिन उस वक़्त मेरे दिमाग में और कुछ भी नहीं था.
मेरे हाथ अब उनकी कमर से ऊपर उनके ब्लाउज से ढके हुए हिस्से को सहला रहे थे. उन्होंने अपने शरीर को थोड़ा और नीचे कर लिया मेरी सहूलियत के लिए.
मेरे होंठ अब उनके ब्लाउज के ऊपर से उनके स्तनों के स्वाद ले रहे थे. मैं ब्लाउज के ऊपर से ही उनके कड़े निप्पल को महसूस कर सकता था और चूसने की कोशिश कर रहा था.
मेरा हाथ अब उनकी कमर और पेट के बजाये उनकी टांगों पर था और उनके घुटनों के ऊपर की त्वचा को सहला रहा था. मेरा मुंह उनके एक निप्पल और और हाथ दूसरे स्तन पर था. मैं ब्लाउज के ऊपर से ही उनकी निप्पल को चूस रहा था और दूसरे निप्पल को चुटकी काट रहा था और सहला रहा था.
उन्होंने अपना एक हाथ नीचे किया और मेरे शॉर्ट्स के ऊपर से ही मेरे लिंग को पकड़ लिया. थोड़ी देर उसको सहलाने के बाद उन्होंने उसको बाहर निकालने के लिए मेरे शॉर्ट्स की इलास्टिक को नीचे खिसकाने लगीं.
मैं इतनी जल्दी ये सब खत्म नहीं करना चाहता था. इसलिए मैंने अपने शरीर को थोड़ा और नीचे खिसका लिया. उन्होंने निराशा में मुझे ऊपर खींचने की कोशिश करी लेकिन फिर जब मैंने उनको मौका नहीं दिया तो उन्होंने अपने शरीर को ऊपर खिसका कर मेरे होंठों को अपने स्तनों से अलग कर दिया.
जब मैंने नज़र उठा कर ऊपर देखा तो उन्होंने मुस्कराते हुए अपने हाथों को अपने स्तनों पर रखा और एक एक करके ब्लाउज के हुक खोलने लगी.
मैंने भी देरी ना करते हुए बचे हुए दोनों हुक खोले और इससे पहले कि वो हाथ पीछे करके ब्लाउज को शरीर से अलग करतीं, उनके ब्रा से बाहर निकले हुए स्तनों के हिस्से पर भूखे भेड़िये जैसा टूट पड़ा. मैंने इतने बड़े स्तन पहले कभी नंगे नहीं देखे थे.
मेरे दिमाग में कल शाम की सारी तस्वीरें आ गयीं जब उनका क्लीवेज मुझे दिखा था. मैं उनके स्तनों को हल्का हल्का दांतों से काटने लगा और उनके मुंह से हल्की सी चीख निकल गयी. उन्होंने अपने हाथों को पीछे ले जाकर अपने ब्रा का हुक खोल दिया जिससे उनकी ब्रा थोड़ी सी ढीली होकर सरक गयी.
मैंने ब्रा को पूरा निकलने के बजाये कप्स को ऊपर खिसका दिया और उनके स्तनों को कपड़ों से आजाद कर दिया. मेरी बेसब्री देख कर वो हंस दी और खुद ही ब्रा को अलग कर के बेड पर रख दिया.
पहले तो मैंने उनके दोनों स्तनों को अपने हाथों में पकड़ा और फिर एक एक कर के दोनों को एक बच्चे जैसे चूसने में जुट गया. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये सच में हो रहा है.
जब मेरे होंठ एक निप्पल पर होते थे तो हाथ दूसरे पर … दीदी के मुंह से लगातार सिसकी निकले जा रही थी.
मैंने अब निप्पल को छोड़कर उनके स्तन के नीचे के हिस्से को ऊपर उठाया और उसके नीचे की त्वचा को चाटने लगा. वो अपनी दोनों टांगों को आपस में रगड़ रही थी. मेरा हाथ भी अब उनकी जाँघों पर था और मैं लगातार उनके जाँघों के मांस को अपने हाथ से दबा और सहला रहा था.
मेरे लिए जैसे उनके स्तन ज़न्नत जैसे थे. मैं उन्हें छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं था. कभी एक तो कभी दूसरे तरीके से मेरा ध्यान उन्हीं पर था. कभी एक निप्पल, कभी दूसरे. निप्पल को छोड़ता तो उनके स्तन के बाकी के हिस्सों को चूसता रहता. उनके पूरे स्तन पर चूस चूस कर मैंने लाल निशान बना दिए थे.
उसके बाद मैंने उनके दोनों स्तनों को एक साथ पकड़ा और दोनों निप्पलों को एक साथ चूसने की कोशिश करने लगा. मेरे ऐसा करने की वजह से दोनों निप्पलों पर मेरा आधा मुंह पहुँच रहा था क्यूंकि उनके स्तन बहुत बड़े थे. लेकिन मुझे ऐसा करने में बहुत मजा आ रहा था.
मैंने फिर उनके दोनों स्तनों को छोड़ा और स्तनों के बीच की जगह को जबान निकल कर चाटने लगा.
दीदी मेरी हरकतों से पागल हुई जा रही थी. उन्होंने मेरे सर को जोर से अपने स्तनों पर दबाया हुआ था और उनकी सिसकारियां बढ़ती ही जा रही थी. उन्होंने अपने शरीर को इस तरह से खिसकाया की मेरा शरीर उनकी टांगों के बीच आ गया.
उन्होंने बिस्तर पर अपनी टांगों को और फैला दिया और लगभग अपनी पीठ के बल लेट गयी. अब मैं उनकी टांगों के बीच उनके शरीर के ऊपर था. उन्होंने अपना हाथ मेरी कमर पर रख कर मेरे शरीर के निचले हिस्से को अपने शरीर के और पास खींच लिया और अपने शरीर को इस तरह से रगड़ने लगी कि मेरा लंड उनकी टांगों के बीच आगे पीछे होने लगा.
हम दोनों के लिए स्थिति काबू से बाहर होती जा रही थी.
थोड़ी देर अपने शरीर को उसी तरह रगड़ने और दीदी के स्तनों को चूसने और काटने के बाद मैंने अपने हाथों से उनकी साड़ी को कमर के ऊपर उठा दिया. गाँव की बाकी औरतों जैसे दीदी भी साड़ी के अन्दर केवल पेटीकोट पहनती थी.
दीदी की नंगी चूत अब मेरे सामने थे. उस पर बहुत हल्के हल्के बाल थे जैसे ट्रिम करने के 2-3 दिन बाद होते हैं. मैं पहले कुछ देर उनकी नंगी चूत को अपने शॉर्ट्स से ढके हुए लंड से रगड़ता रहा. दीदी के धक्के नीचे से तेज़ होते जा रहे थे. उनकी चूत का गीलापन नीचे चादर और ऊपर मेरे शॉर्ट्स को भिगो रहा था.
थोड़ी देर उसी तरह रगड़ने के बाद मैंने अपने शरीर को नीचे किया और अपना मुंह दीदी की टांगों के बीच लेकर चला गया. जब दीदी को अहसास हुआ कि मैं क्या कर रहा हूँ तो उन्होंने मुझे खींच कर ऊपर करने की कोशिश करी. मुझे नहीं पता था कि उनके साथ पहले ऐसा किसी ने किया नहीं था … इस वजह से वो मुझे वो करने से रोक रही थी या अभी भी उनको शर्म आ रही थी.
हम दोनों में से कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था.
हालाँकि उनके खींचने से पहले मैंने उनकी टांगों के बीच कुछ चुम्बन दे दिए थे और उनकी सिसकारियां गवाह थी कि वो उन्हें बुरा तो नहीं ही लगा था. हालाँकि जब उन्होंने मुझे खींच कर ऊपर किया तो मैंने सोचा की अब उनसे बात करनी ही चाहिए. वरना सब कुछ बहुत ही ठंडे तरीके से होगा.
मैंने ऊपर जाकर पहले उनके होंठों को किस किया और उनके चेहरे पर आ गए बालों को कान के पीछे ले गया.
वो मुस्करा कर मेरी ओर देखने लगी.
मैं नहीं चाहता था कि मैं केवल उनके शरीर को सुख दूँ. मैं चाहता था कि वो मुझे अपना माने और उनके दिल में मेरे लिए थोड़ा प्यार रहे … इससे शारीरिक सुख कई गुना बढ़ जायेगा.
मैंने उनसे कहा- आपने मुझे रोका क्यूँ?
पहले तो कई सेकंड्स उन्होंने जवाब नहीं दिया.
मैंने जब फिर से पूछा- बोलिए ना?
तब उन्होंने कहा- आज तक तुम्हारे जीजा ने ये नहीं किया तो मुझे बड़ा अजीब लगा. और ये गन्दा भी तो है!
मैंने कहा- बिल्कुल नहीं … और आप जीजा के नहीं मेरे साथ हैं.
मेरे कहने से उनके चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी.
दीदी ने कहा- तुम्हारा जो मन हो वो करो. मैं नहीं रोकूंगी.
उनके इतना कहने की देर थी, मैंने उनके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और एक लम्बी किस देने के बाद धीरे धीरे उनके सारे अंगों को चूमता चाटता नीचे की तरफ बढ़ने लगा. उनके मुंह से लगातार सिसकारियां निकल रही थी और उनकी उँगलियाँ मेरे बालों से खेल रही थी.
दीदी की छाती, पेट से होता हुआ मैं उनकी टांगों के बीच पहुँच गया. हालाँकि मैंने वो हिस्सा छोड़ कर पहले उनकी जाँघों को चूमना शुरू कर दिया. उन्होंने उत्तेजना के मारे अपनी टांगों को चौड़ा कर लिया था.
दीदी ने कहा- तुम्हारा जो मन हो वो करो. मैं नहीं रोकूंगी.
उनके इतना कहने की देर थी, मैंने उनके होंठों को अपने होंठों में दबा लिया और एक लम्बी किस देने के बाद धीरे धीरे उनके सारे अंगों को चूमता चाटता नीचे की तरफ बढ़ने लगा. उनके मुंह से लगातार सिसकारियां निकल रही थी और उनकी उँगलियाँ मेरे बालों से खेल रही थी.
दीदी की छाती, पेट से होता हुआ मैं उनकी टांगों के बीच पहुँच गया. हालाँकि मैंने वो हिस्सा छोड़ कर पहले उनकी जाँघों को चूमना शुरू कर दिया. उन्होंने उत्तेजना के मारे अपनी टांगों को चौड़ा कर लिया था.
मैं लगातार उनकी जाँघों को चूम और चाट रहा था. ऐसा करते करते मैंने अपनी उंगली से उनकी चूत की दरार को हल्का हल्का सहलाना शुरू कर दिया.
उनकी सिसकारियां अब आवाज़ में बदल गयी थी. उनके हाथ मेरे बालों को सहला रहे थे और मेरे हाथ उनकी चूत की दरार को. मेरे होंठ उनकी जाँघों को चाटते-चाटते आगे बढ़ रहे थे.
मैं अपनी जबान निकाल कर दीदी की जाँघों के जोड़ पर फेरने लगा. उत्तेजना में उन्होंने अपनी टांगें फैला दी और मेरे बालों को पकड़ कर खींचने लगी. मैंने अगर बगल से ध्यान हटा कर अपना मुंह सीधे उनकी चूत पर रख दिया. उसको चूमने के बाद मैंने जबान निकल कर पूरी चूत को एक बार में चाट लिया.
दीदी के मुंह से ना चाहते हुए भी आह की आवाज़ निकल गयी. मैंने अपनी उँगलियों से उनकी चूत की दरार को खोला और अन्दर के गीले हिस्से को चाटने लगा. उनकी सिसकारियां एक बार आह में बदल गयी तो वो वहीं ठहरी रहीं.
मेरी जुबान उनकी क्लिट को लगातार रगड़ रही थी. दीदी की समझ में नहीं आ रहा था कि ये हो क्या रहा है. उनके साथ आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था.
मैंने ऐसे ही उनकी चूत चाटते-चाटते धीरे से अपनी दो उँगलियाँ नीचे रखी और सहलाते सहलाते उनको दीदी की गीली चूत के अन्दर डाल दिया.
उनके मुंह से एक चीख निकल गयी लेकिन उन्होंने अपने नितम्बों को उछाल कर उनका स्वागत किया.
अब मेरी जबान और उँगलियाँ एक साथ काम कर रही थी. जबान ऊपर नीचे और उँगलियाँ अन्दर बाहर. मैंने अपने अंगूठे को उनके पीछे के छेद पर रख दिया था और उसको मसल रहा था.
दीदी के लिए तीन मोर्चों पर हमला बहुत ज्यादा हो गया था और वो संभल नहीं पा रही थी. अचानक से उन्होंने एक तेज़ आवाज़ निकली और अपने हाथों से मेरे मुंह को अपनी चूत पर दबा दिया. मैं समझ गया कि वो झड़ गयी हैं.
थोड़ी देर बार उनकी पकड़ ढीली हुई तो वो निढाल पड़ गयी.
मैंने अपने सर को उठा कर ऊपर किया तो उनकी आँखें आधी खुली थी और उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी. उन्होंने खींच कर मुझे ऊपर किया और मेरे होंठों को अपने मुंह में कैद कर लिया.
उस दिन दीदी के अंदर आग तो बहुत थी लेकिन इतने दिन बाद इस तरह का सुख पाने के बाद उनके शरीर मे हिम्मत नहीं बची थी कि वो कुछ और कर सकें। वो बस मुझे अपने शरीर से चिपका कर मेरे बालों में उंगलियां फेर रहीं थी और लगातार चूमे जा रही थीं।
थोड़ी देर बार हमें महसूस हुआ कि काफी देर हो चुकी है और शाम की चाय का वक़्त हो गया है। इस वजह से घर के बाकी लोग उठने वाले होंगे।
हमने अपने कपड़े पहने और कमरे से बाहर निकलने लगे।
वो मेरे आगे थीं। मेरा मन नहीं माना और मैंने उनको पीछे से पकड़ कर दीवार की तरफ धक्का देकर पीछे से उनसे चिपक गया। वो मेरे इस कदम से एकदम हक्की-बक्की रह गयी।
मैंने बिना वक़्त लिए अपने शरीर को पूरी तरह से उनके शरीर से चिपका लिया।
मेरा हाथ उनकी कमर पर था और मेरे होंठ उनकी गर्दन से चिपके थे। मेरे नीचे का हिस्सा उनके पिछवाड़े से जुड़ा हुआ था। मैंने कमर के नीचे के हिस्से को उनकी तरफ धकेला तो जवाब में उन्होंने भी पीछे की तरफ धक्का दे दिया।
दीदी का मन भी उतना ही बेचैन था जितना मेरा। मैंने अपनी जबान के आगे के हिस्से को हल्का सा मुँह से निकाला और दीदी की गर्दन पर आई पसीने की हल्की बूंदों को चांट लिया।
दीदी के मुंह से सिसकारी निकल गयी और उन्होंने अपने सर को एक तरफ करके गर्दन को मेरे लिए खोल दिया। इसके साथ ही उन्होंने अपने कमर के नीचे के हिस्से को धीरे धीरे मेरे लिंग पर रगड़ना शुरू कर दिया।
मैंने अपनी पकड़ उनकी कमर पर मजबूत कर ली और उनके धक्कों का साथ देने लगा। उनके होंठ हल्के से खुले थे और उनके मुंह से हल्की हल्की सिसकारी निकल रही थी। मेरे होंठ उनकी गर्दन का रसास्वादन कर रहे थे और हाथ उनके खुले पेट पर लगातार घूम रहे थे।
दीदी ने दीवार का सहारा ले लिया और अपने नितम्बों को पूरी तरह से मेरी तरफ धकेल दिया।
मैंने भी उनको निराश ना करते हुए उनकी कमर को थोड़ा आगे से पकड़ा और अपने सख्त लिंग को उनके नितम्बों की दरार में फँसाने की कोशिश करने लगा।
हम दोनों पूरी तरह से होश खो चुके थे।
अचानक से नीचे से मेरी माँ ने चाय के लिए आवाज़ दी। हम जैसे किसी और ही दुनिया मे थे और वहां से वापस आ गए हो। हमने अपने आपको संभाला और नीचे जाने लगे।
दीदी ने मुझे अपनी तरफ खींचा और मेरे होंठों को चूमते हुए अपनी जुबान मेरे मुंह मे धकेल दी। साथ ही मेरे लिंग पर हाथ रगड़ते हुए अपनी मुट्ठी में उसे भींचने लगी। कुछ सेकंड ऐसा करने के बाद उन्होंने मुझे वहीं छोड़ दिया और एक सेक्सी सी मुस्कान देकर वो आगे चल दी।
मैंने किसी तरह खुद को संभाला और फिर मैं भी नीचे आ गया।
उस दिन हम लोगों को और अकेले बिल्कुल वक़्त नहीं मिला। बस एक दूसरे को हम चोरी-छुपे प्यासी निगाहों से देखते रहे।
दीदी को अगले दिन वापस उनके घर जाना था। मुझे लगा शायद ये अरमान अधूरा ही रह जायेगा। लेकिन दीदी ने शायद सब कुछ पहले से ही सोच रखा था। उन्होंने सबके सामने मुझे कहा- अभी तो तुम्हारी छुट्टी बाक़ी है, तुम मेरे साथ क्यों नहीं चल लेते कुछ दिन?
आमतौर पर तो मैं ऐसे किसी के यहां जाता नहीं … लेकिन यहां तो मकसद कुछ और ही था। मैं थोड़ी ना-नुकुर के बाद तैयार हो गया। अगर मैं ऐसे ही तैयार हो जाता तो पता नहीं लोगों को क्या लगता।
आमतौर पर उनको ड्राइवर छोड़ने जाता … लेकिन चूंकि मैं जा रहा था इसलिए उसकी जरूरत नहीं थी। उनका सारा सामान और आम वगैरह कार में लदवाने के बाद हम दोनों लोग शाम के वक़्त घर से निकले।
उनका घर हमारे घर से लगभग 50-60 किलोमीटर की दूरी पर था। सड़क चूंकि बहुत अच्छी नहीं थी और बीच में थोड़ा इलाका जंगल का था इसलिए डेढ़ से दो घंटे लग जाते थे।
हम अपने गांव से थोड़ी दूर ही बाहर आये थे, कि दीदी ने अपना हाथ उठाकर मेरी जाँघ पर रख दिया। वो धीरे धीरे उसको सहलाने लगी। मैं ड्राइविंग पर ध्यान देना चाहता था जबकि वो चाहती थी कि मैं कहीं और ध्यान दूँ।
उनका हाथ मेरी जाँघ और उसके आस पास ही घूम रहा था। उनके स्पर्श का असर दिखना शुरू हो गया था। मेरा लिंग सख्त होने लगा था।
उनको ये महसूस हुआ और उनके चेहरे पर एक मुस्कराहट आ गयी। उन्होंने हाथ को जाँघ से हटा कर सीधे लिंग पर रख दिया। वो वहीं पर धीरे धीरे अपना हाथ सहलाने लगी। उनके हाथ लगाते ही जैसे किसी ने जादू कर दिया हो।
मेरे लिए खुद को काबू में रखना बहुत मुश्किल हो रहा था लेकिन मैं कुछ कर भी नहीं सकता था। वो इस स्तिथि का भरपूर मजा ले रही थी। लेकिन उनकी भी बैचैनी बढ़ती जा रही थी। इसी तरह आधा रास्ता लगभग खत्म हो गया।
बीच में जो 15-20 मिनट का रास्ता जंगल का था वो शुरू हो गया था। जंगल मे लगभग 5 किलोमीटर अंदर चलने के बाद मुझे दिखा कि एक कच्चा रास्ता अंदर की तरफ का रहा था।
मैंने गाड़ी उसी तरफ मोड़ दी।
दीदी ने कहा- अरे वो गलत रास्ता है।
मैंने कहा- कई बार गलत चीजें सही चीजों से ज्यादा सही होती हैं।
वो शायद मेरा मतलब समझ गयीं थी। उन्होंने फिर कुछ नहीं बोला।
लगभग 2 किलोमीटर अंदर चलने के बाद मैंने गाड़ी एक किनारे जगह देखकर रोक दी। गाड़ी का हैंडब्रेक लगाने के तुरंत बाद मैंने उनकी तरफ देखा और उनको बिना वक़्त गवाएं अपनी तरफ खींच लिया।
वो जैसे खुद ही तैयार बैठी थी। उन्होंने खुद को मेरी बाहों में ढीला छोड़ दिया। मैंने सीधे उनके अंगारों जैसे जलते होंठों पर अपने होंठों को रख दिया और अपना हाथ उनकी कमर पर रख कर उनको अपनी तरफ खींच लिया। उनके निचले होंठों को अपने होंठों के बीच दबा कर मैं धीरे- धीरे चूसने लगा।
दीदी भी बदहोश होकर मेरा साथ दे रही थी।
हम दोनों के पास ज्यादा वक्त नहीं था। उसी मदहोशी में दीदी का हाथ उनके ब्लाउज के हुक खोलने लगा। मैंने भी उनका साथ देते हुए बचे हुए हुक खोले और दीदी ने तुरंत उसको निकाल कर पीछे की सीट पर फेंक दिया।
बिना देर किये हुए उन्होंने अपने हाथ पीछे ले जाकर ब्रा के हुक्स खोले और उसे भी उतार कर पीछे फेंक दिया।
मेरा हाथ अब कमर से होते हुए उनके वक्ष पर आ गया। उनके निप्पल पत्थर जैसे सख्त हो चुके थे। मैंने उनकी सीट का लिवर खींच कर सीट को एकदम पीछे कर दिया। वो सीट पर पीछे की तरफ चली गयीं।
मैं उनके होंठों को छोड़ कर उनकी गर्दन को चूमते और काटते हुए उनके क्लीवेज की तरफ बढ़ने लगा। उनके स्तन हवा में उठे हुए थे। मैंने उनके एक निप्पल को मुंह में रखा और भूखे बच्चे जैसा उसको चूसने लगा।
दीदी के मुंह से एक लंबी सी आह निकल गयी।
मैं अभी ढंग से अपना पूरा ध्यान दे भी नहीं पाया था कि दीदी का हाथ मेरे बेल्ट पर चला गया। उन्होंने उसी पोजीशन में बेल्ट का हुक खोला और पैंट के बटन खोलने लगी।
मैंने अपना मुंह उठाते हुए उनसे पूछा- इतनी जल्दी क्या है?
उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींचते हुए कहा- इतने सालों से तो भूखी हूँ, अब और इंतज़ार नहीं होता। और पिछले दो दिनों में तुमने मेरी हालत और खराब कर रखी है। बाकी हमें घर भी पहुँचना है। वहां जो मर्ज़ी जितना मर्ज़ी उतना कर लेना।
मैंने अपना हाथ दीदी की साड़ी के अंदर डाल कर उनकी पैंटी को छुआ तो देखा कि वो उनके रस से सराबोर थी। मैं उनकी बेचैनी को समझ रहा था।
उन्होंने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और मेरी पैंट के बटन को खोल कर उसको नीचे खिसका दिया। मेरी अंडरवियर के ऊपर से वो अपना हाथ रगड़ने लगी। मैंने उनकी साड़ी को उनकी कमर तक ऊपर किया और एक ही झटके मे उनकी पैंटी को उनके पैरों तक नीचे खिसका दिया।
दीदी ने अपनी पैंटी को निकाल दिया और अपने पैरों को और चौड़ा कर के मुझे आगे की तरफ खींच लिया।
मैंने पहले अपने लिंग के अगले हिस्से को उनकी दरार पर थोड़ी देर रगड़ा। दीदी से कंट्रोल नहीं हुआ, फिर उन्होंने खुद ही पकड़ कर धीरे से उसको अंदर कर लिया। मैंने उसी फ्लो में आगे की तरफ झटका दिया तो दीदी के पानी की वजह से पूरा का पूरा अंदर चला गया।
दीदी के मुंह से एकदम से सिसकारी निकली उम्म्ह… अहह… हय… याह… और एक लंबी आह भी। उनका हाथ मेरे पिछवाड़े पर चला गया और दीदी ने मेरी कमर को अपनी ओर खींच लिया।
मैंने अपना मुंह दीदी कर वक्ष पर रख और वहां जगह जगह चाटने और चूसने लगा। नीचे से दीदी ने धक्के लगाने शुरू कर दिए थे और उसके जवाब में ऊपर से मैंने भी।
पूरी कार में केवल दीदी की आह और सिसकारियां गूंज रही थी। उसके अलावा दीदी के पानी की वजह से जब लिंग उनके अंदर बाहर हो रहा था तो वो आवाज हम दोनों के सुख को दिखा रही थी।
मैं लगातार दीदी के निप्पल को चूस और काट रहा था। हम दोनों पूरी तरह से एक दूसरे में डूब चुके थे। बाहर की दुनिया से हमारा कोई लेना देना नहीं था इस वक़्त।
अचानक दीदी ने कहा- आह! थोड़ा तेज करना भैया!
मैंने अपनी गति और धक्कों की तीव्रता दोनों बढ़ा दी थी।
दीदी के मुंह से आह और ओह्ह के अलावा बस ये निकल रहा था- रुकना मत … ऐसे ही करते रहना।
काफी देर बाद दीदी ने अपनी टांगों से मेरी कमर को जकड़ लिया और चिल्लाई- बस बस बस!
मुझे लग गया कि दीदी बस अपने चरम पर पहुँचने पर वाली हैं। मैंने भी खुद को इतने दिन से रोक रखा था। मुझे भी नहीं लगा कि मैं अब ज्यादा देर इंतज़ार कर पाऊंगा।
दीदी ने कहा- तुम अंदर ही अपना निकाल देना।
कुछ और धक्कों के बाद दीदी के मुंह से एक लंबी चीख निकली और वो थोड़ा ढीली हो गयी।
दो तीन तेज़ धक्कों के बाद मैंने दीदी को ज़ोर से पकड़ा और अपने वीर्य की धार उनकी योनि की गहराई मैं अपना सब कुछ निकाल दिया।
हम दोनों थोड़ी देर ऐसे ही एक दूसरे से चिपके लेटे रहे।
फिर दीदी ने ही कहा- अब चलें? घर पहुंच कर बचा हुआ काम खत्म कर लेना।
हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और अपनी अपनी सीटों पर बैठ गए.
अब हमारी मंजिल दीदी की ससुराल थी.

0 Comments