पहले मैं अपना परिचय दे देता हूँ. मेरा नाम हर्षद है. मेरी उम्र 25 साल है और कद 5 फुट 8 इंच का है. मैं दिखने में स्मार्ट नौजवान हूँ. कोई भी लड़की देखते ही मुझ पर फ़िदा हो जाती है.
मैं इंजीनियर हूँ और अभी एक बड़ी कंपनी में मैनेजर हूँ. मेरा गांव पुणे से नजदीक है, यही कोई 30-35 किलोमीटर के फासले पर है.
हमारे घर में मैं, पिताजी और मेरी सौतेली मां रहते हैं. बड़ी बहन शादी हो गयी है और वह अपने ससुराल में है. पिताजी की उम्र 48 साल है. उनका कद भी मेरे जितना ही है. वे एक कंपनी में अफसर हैं. वो अपने काम की वजह से हफ्ते में तीन चार दिन घर से बाहर ही रहते हैं.
मेरी सौतेली मां का नाम अदिति है. उनकी उम्र 35 साल है. उनका कद साढ़े पांच फीट है और फिगर 34-30-38 का है. मेरी सौतेली मां दिखने में खूबसूरत हैं. उनकी चूचियां हरी-भरी हैं और चूतड़ों का आकार एकदम गोल मटोल है. जब मां चलती हैं, तो उनकी मस्तानी चाल देख कर किसी का भी लंड खड़ा हो जाएगा.
मेरी सौतेली मां तो सिर्फ रिश्ते में ही मेरी मां हैं. लेकिन उन्होंने आज तक कभी मुझे इसका अहसास नहीं होने दिया. वो मुझे अपना फ्रेंड ही समझकर बर्ताव करती हैं. मुझे बहुत ही प्यार करती हैं और मेरा बहुत ख्याल रखती हैं.
हम दोनों माँ बेटा बहुत सारी बातें खुलकर करते हैं. एक दूसरे के साथ हंसी मजाक करते हैं. कभी कभी पास बैठकर एक दूसरे के गले में हाथ डालकर बातें करते हुए बैठते हैं. मेरे सिवाए उनके साथ बातें करने के लिए कोई नहीं था क्योंकि पिताजी उन्हें ज्यादा समय नहीं दे पाते थे.
इतना खुलापन होने के बावजूद भी मैंने कभी भी अपनी सौतेली मां को गलत नजर से नहीं देखा था.
ये बात एक साल पहले की है. मैं एक कंपनी में इंटरव्यू के लिए गया था. सौभाग्य से पहली बार में ही मेरा चयन मैनेजर के पद के लिए हो गया. कंपनी ने मुझे मेरी नियुक्ति का पत्र भी दे दिया और अगले हफ्ते ज्वाइन करने को कहा.
मैंने अपनी इस सफलता पर बहुत खुश हो गया था. बाहर आकर मैंने बाईक निकाली और रास्ते से मिठाई की दुकान से पेड़े का डिब्बा खरीद कर कुछ ही मिनट में अपने घर आ पहुंचा.
उस समय दोपहर के साढ़े बारह बजे थे. मैंने उत्साह में मां को आवाज दी, तो वो किचन में थीं. वो बोलीं- हां मैं यहां हूँ … क्या हुआ आज बहुत खुश दिख रहा है हर्षद!
मैं उनके पास जाकर बोला- हां मां … मुझे जॉब मिल गयी है. ये देखो लैटर.
उन्होंने नियुक्ति पत्र पढ़ा, तो वो भी बहुत खुश हो गईं.
उन्होंने मेरा अभिनंदन किया और मुझे अपने गले से लगा लिया. मैंने भी पेड़े का डिब्बा किचन की पट्टी पर रखकर उनको अपनी बांहों में भर लिया.
उन्होंने मेरे माथे पर किस किया, फिर मेरे दोनों गालों पर किस किया.
मां मुझे बांहों में भरे हुए थीं और वे मेरी पीठ सहला रही थीं.
मां बोलीं- हर्षद, आज मैं बहुत खुश हूँ.
उनका सर मेरे कंधे पर टिका हुआ था. उनके कड़क स्तन मेरे सीने पर दबे जा रहे थे. मैं भी उनकी पीठ पर अपने हाथ फेर रहा था. मेरे दिल में आज कुछ कुछ होने लगा था. उनकी गर्म सांसें मेरे बदन को उत्तेजित कर रही थीं. मुझे सौतेली मां की चूत चुदाई के लिए उकसा रही थी.
बात आगे बढ़ने से पहले ही मैं बोला- मां पिताजी कहां हैं?
वो बोलीं- अभी आ जाएंगे, वो कुछ काम के लिए बाहर गए हैं.
मैंने कहा- मैं पेड़े लाया हूँ … आप दोनों का मुँह मीठा करना है.
वो बोलीं- ठीक है, पहले फ्रेश हो जाओ. बाद में पहले भगवान को प्रसाद चढ़ा कर सभी को देना … समझे!
‘ठीक है मां..’ कहते हुए मैं बाथरूम में चला गया.
जल्दी जल्दी फ्रेश होकर मैंने भगवान को प्रसाद चढ़ाया, उन्हें नमस्कार किया और बाहर आ गया.
फिर मैंने मां को पेड़ा खिलाया और उन्होंने मुझे खिलाया. इतने में पिताजी भी आ गए.
हम दोनों को प्रसन्न देख कर पिताजी बोले- हर्षद क्या बात है … आज तुम दोनों बहुत खुश दिख रहे हो!
मैंने उन्हें लैटर दिखाया और मेरे जॉब लगने के बारे में सब कुछ बोल दिया.
वैसे भी लैटर में सब कुछ लिखा था. पेमेंट और ज्वाइनिंग डेट भी लिखी थी.
ये सब पढ़ कर पिताजी भी बहुत खुश हो गए. मैंने उनके चरण स्पर्श किये और उनको पेड़ा खिलाया.
उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. मैंने बोला- पिताजी आप क्यों रो रहे हैं?
पिताजी बोले- नहीं हर्षद, ये ख़ुशी के आंसू हैं. मैं तुम्हारी सफलता से आज बहुत खुश हूँ. बेटा तुम अपने पैरों पर खड़े होने जा रहे हो. हर्षद मुझे तुम पर नाज है.
ये कहकर पिता जी ने मुझे गले से लगा लिया. मां भी हमारे साथ शामिल हो गईं. हम तीनों एक दूसरे के साथ गले मिल कर अपनी ख़ुशी मनाने लगे.
ये सच में मेरे लिए बहुत ही हसीन पल था.
फिर पिताजी बोले- अदिति, खाना लगाओ … मैं फ्रेश होकर आता हूँ.
वो बाथरूम में चले गए. मां भी किचन में चली गईं. मैं डायनिंग टेबल पर कुर्सी लेकर बैठ गया.
मां ने खाना परोसा और हम तीनों बातें करके खाना खाते रहे. मैं मां के सामने बैठा था और पिताजी उनकी बगल में थे. मुझे रोटी देते समय मां को कुछ ज्यादा ही झुकना पड़ रहा था, तो मुझे उनके गोरे, कड़क स्तन दिख रहे थे. मैं भी गौर से मां के मम्मे देख रहा था. ये मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.
मां भी मुझे देख रही थीं कि मेरी नजरें उनके मम्मों पर हैं. ये देख कर आज मां की नजरें कुछ बदली सी थीं. वो मुझे बार बार देख रही थीं और मैं उनके मम्मों को निहार रहा था.
इतने में पिताजी का खाना हो गया और वो बोले- तुम लोग आराम से खा लो. मैं आराम करने जा रहा हूँ.
वो चले गए.
मां बोलीं- हर्षद, तुम ये क्या बार बार घूर-घूर कर मुझे देख रहे थे? ऐसा मुझमें तुझे क्या नया दिख रहा है? तुम बहुत बदमाशी कर रहे हो.
मैंने कहा- कुछ नहीं मां … बस मैं तो ऐसे ही देख रहा था. मुझे माफ कर दो.
वो हंसकर बोलीं- अरे हर्षद मैं तुम पर गुस्सा नहीं कर रही हूँ … मैंने तो तुम्हें ऐसे ही बोला. वैसे भी तुम्हारी यही उम्र तो है ताक-झांक करने की.
मैंने उनकी हंसी देखी, तो सामान्य हो गया.
कुछ ही देर में हमारा खाना भी हो गया और मां सभी बर्तन लेकर किचन में अपना काम करने लगीं.
मैं उठ कर अपने रूम में चला गया.
कमरे में मैं अपने बेड पर लेटा था, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी. बार बार मेरी आँखों के सामने वही सारे दृश्य आ रहे थे. मां और मैं एक दूसरे के पीठ पर हाथ फेर रहे थे. उनके स्तनों का दबाव मेरे सीने पर मुझे मस्त कर रहा था. फिर खाना खाते वक्त दिखने वाले सेक्सी मम्मों को देख कर मैं गर्म हुए जा रहा था.
मैं खुद अपने आपको कोसने लगा कि मैं अपनी मां के बारे में कितना गंदा सोचता हूँ.
यही सब सोच कर मुझे कब नींद आ गई, इसका कुछ पता ही नहीं चला.
कुछ देर बाद मां ने मुझे जगाया- हर्षद चलो … उठो फ्रेश हो जाओ. मैं चाय बनाती हूँ. तुम तैयार हो जाओ, हमें मंदिर जाना हैं.
मैं उठा और बाथरूम में जाकर फ्रेश हो गया, फिर तैयार हो गया.
पिताजी भी तैयार हो कर मन्दिर जाने के लिए सोफे पर बैठे थे. मां चाय लाईं और हम तीनों ने चाय पी ली.
फिर मन्दिर के लिए निकल गए. पैदल जाने में कुछ ही मिनट का रास्ता था.
ये गणेशजी का बड़ा मन्दिर था. हम लोग बातें करते चल रहे थे.
पिताजी बोले- आज मंगलवार का बहुत ही शुभ दिन है. हर्षद तुमने बहुत बड़ी खबर सुनायी है आज. ये सब भगवान की कृपा है बेटा. इसलिए मैंने ही अदिति को बोला कि हम मन्दिर होकर आएं.
मैं बोला- हां अच्छा हुआ पिताजी. मैं भी आपको यही कहने वाला था.
फिर हम दर्शन करके उधर बगीचे में थोड़ी देर बातें करने लगे. कुछ देर बाद हम सब घर आ गए. तब तक करीब शाम के साढ़े सात बज गए थे.
मां बोलीं- मैं खाना बनाती हूँ.
ये कह कर मां किचन में चली गईं. मैं और पिताजी टीवी चालू करके हॉल में ही सोफे पर बैठ गए. मेरी नजरें किचन में गईं, तो मां के हिलते हुए चूतड़ मुझे दिख रहे थे. उनके मस्त गोल मटोल चूतड़ मुझे उत्तेजित करने लगे थे. वे इधर उधर हिलतीं, तो उनकी गांड के दोनों फलक ऊपर नीचे हो रहे थे. जब मां नीचे को झुकतीं, तो उनके दोनों चूतड़ों के बीच वाली दरार साफ दिख रही थी.
ना चाहते हुए भी मेरी नजरें उस तरफ बार बार जा रही थीं. मैं टीवी कम, अपनी मां के मदमस्त जोवन को ही ज्यादा देख रहा था.
एक बार तो मेरी और मां की नजरें टकरा भी गईं. मैं नजरें मिलते ही सकपका गया, मगर वो मुझे देख कर हंसने लगीं. मां अब बार बार मुझे देखते हुए अपना काम करती रहीं.
इतने में पिताजी बोले- तो हर्षद कंपनी कब ज्वाइन कर रहे हो?
मैं बोला- अगले हफ्ते एक जनवरी से करने के लिए कहा गया है.
पिताजी- अच्छा है हर्षद … खूब दिल लगा कर काम करना … किसी को शिकायत का मौका मत देना.
इतने में हॉल में मां आईं और वो मेरी तरफ देख कर हंसते हुए बोलीं- किस मौके की बात कर रहे हो.
जब पिताजी ने उन्हें समझाया.
तो वो मुझे आंख मारकर बोलीं- वैसे ही बहुत होशियार है मेरा हर्षद. उसे कुछ बताने की जरूरत नहीं है. खुद ही सब समझ जाता है.
उनकी इस बात का अर्थ मुझे कम समझ में आया था. तब भी उनकी दबती आंख ने मुझे हिम्मत दे दी थी.
मैं भी उनकी तरफ देख कर मुस्कुराने लगा.
फिर पिताजी बोले- हां वो तो है ही.
हम सब हंसने लगे.
फिर कुछ देर टीवी देखने के बाद मां बोलीं- चलिए मैं खाना लगाती हूँ … नौ बज गए हैं. आपको कल सुबह आठ बजे ऑफिस भी जाना है ना!
पिता जी को ये याद आया, तो वो भी उनकी हां में हां मिलाते हुए हाथ धोने चले गए.
मां किचन में चली गईं.
मैं उनके सेक्सी चूतड़ों को देखता रह गया.
कुछ देर बाद मैं भी उठा और हाथ धोकर आ गया. तब तक मां ने खाना परोस दिया था. हम सभी ने साथ में खाना खा लिया.
पिताजी अपने बेडरूम में चले गए. मैं भी अपने रूम में चला गया. मां किचन में अपना काम समेटने लगीं.
मैं रात को सोते समय सिर्फ एक जांघिया में ही सोता हूँ. लेकिन अभी ठंडी की वजह से मैंने लुंगी और बनियान भी पहनी हुई थी.
मैं लेट गया, लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी. आंखें बंद करने के बाद न चाहते हुए भी मुझे मां के कड़क और सेक्सी स्तन, गोल-मटोल हिलते हुए चूतड़ और उनके गर्म हाथों का स्पर्श बार बार गर्म कर रहा था. उनकी गर्म सांसें मेरे गालों पर मुझे महसूस हो रही थीं.
ये सब सोचकर मेरे बदन में कुछ कुछ होने लगा था. मेरा लंड आहिस्ता आहिस्ता खड़ा होने लगा था. मुझे अब लगने लगा था कि मेरा लंड जांघिया को फाड़कर बाहर आने की कोशिश कर रहा है.
मैंने लुंगी में हाथ डालकर जांघिया को नीचे कर दिया … और लंड को आजाद कर दिया. फिर ऊपर से लुंगी ठीक करके लंड ढक लिया. इस समय मेरा लंड अपने पूरे आकार में था. मेरा लंड सात इंच लंबा और किसी मोटी ककड़ी सा मोटा है. इतना भीमकाय लंड भला एक चुस्त जांघिया में कैसे रह सकता था.
इतने में मां मेरे कमरे का दरवाजा खोल कर अन्दर आ गयी और बोलीं- हर्षद ठंड ज्यादा है ना … तो मैं तुझे ये कम्बल देने आयी थी. मैंने आँख खोल कर मां को देखा, तो पाया कि उनकी नजरें मेरी लुंगी में बने हुए तंबू पर थीं. मैं घबराकर उठकर बैठ गया. मेरी तो फट गयी थी. ठंडी में भी मुझे पसीना आ रहा था.
मां की मस्त जवानी मुझे उनको चोदने के लिए बेचैन कर रही थी.
इसलिए मैं अपने कमरे में आ गया और लंड को सहलाते हुए मां की जवानी को सोचने लगा.
तभी मां मेरे कमरे में आ गईं और मैं उन्हें देख कर अपनी लुंगी को सम्भालने लगा था.
अब आगे की मां बेटा की चुदाई की कहानी:
मां हंसकर बोलीं- ऐसा होता है इस उम्र में.
उनकी नजरें मेरी लुंगी के तंबू पर ही जमी थीं. मां बोलीं- अभी सो जाओ हर्षद, ग्यारह बज गए हैं.
मां अपने बेडरूम में चली गईं. उनका कमरा मेरे कमरे से लगा हुआ ही था.
फिर मैं सो गया.
सुबह नौ बजे मैं उठा, तो पिताजी अपने ऑफिस चले गए थे.
मैं नहाने जा रहा था, तभी मां ने किचन से हंसकर आवाज दी- अरे उठ गए हर्षद. रात को नींद लगी आ नहीं!
माँ से मैं नजरें नहीं मिला पा रहा था. फिर भी किसी तरह मैं बोला- हां मां बहुत अच्छी नींद आई.
मैंने उनकी तरफ देखा, तो मैं तो होश ही खो बैठा. मैं उन्हें देखता ही रह गया. मां ने एक पिंक कलर की टाइट सी नाइटी पहनी थी. उसमें से उनकी ब्लैक कलर की ब्रा और पैंटी साफ़ दिख रही थी. उनका एकदम सेक्सी क्लीवेज देखकर मेरे लंड में हलचल होने लगी. मां क्या मस्त सेक्सी माल लग रही थीं.
इतने में मां बोलीं- हर्षद कहां खोया है … और ऐसे क्या देख रहा है मुझे!
ये बोलते समय उनकी नजरें मेरी तौलिया पर टिकी थीं. जो मैंने अपनी कमर पर लपेटा हुआ था. लंड खड़े हो जाने से लंड का काफी उभार साफ़ दिख रहा था.
खड़ा लंड देख कर मां हंसकर बोलीं- हर्षद जल्दी जाओ और नहाकर आओ. मैं तुम्हारे लिए नाश्ता और चाय बना देती हूँ.
मैं बाथरूम में चला गया और दरवाजा बंद कर दिया. मैं तौलिया हटा आकार पूरा नंगा हो गया और शॉवर चालू कर दिया.
अभी भी मेरा लंड तना हुआ था. मैंने लंड हाथ में पकड़कर मुठ मारना शुरू किया और मां की चूचियों को याद करते हुए लंड की मुठ मारकर उसे शांत कर दिया.
फिर मैं नहाकर बाहर आया और अपने रूम में चला गया. मैं तैयार होकर हॉल में आकर सोफे पर बैठ गया.
मुझे रेडी देख कर मां नाश्ता लेकर आईं. मुझे नाश्ता की प्लेट देकर वो भी मेरे पास ही बैठ गईं.
उनकी जांघें मेरी जांघों को टच कर रही थीं. उनके बदन की मदहोश करने वाली खुशबू मुझे मस्त कर रही थी. उनका सेक्सी बदन देखकर तो मैं पागल ही हो गया था. उनकी नजरों में कुछ अजीब सी प्यास मुझे दिखने लगी थी.
मैं नाश्ता कर रहा था. मां मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोलीं- हर्षद नाश्ता अच्छा नहीं बना क्या? तुम शायद कुछ सोच रहे हो … क्या बात है हर्षद!
मैंने बोला- कुछ नहीं मां … बस ऐसे ही.
मैंने नाश्ता खत्म किया और चाय पीकर मां को बोला- मैं जरा बाहर जाकर आता हूँ. खाने के समय पर आ जाऊंगा.
मां बोलीं- ठीक है आराम से जाना, बाईक ठीक से चलाना और जल्दी वापस आना, मैं इंतजार करूंगी.
मैंने ‘हां मां ठीक है!’ कह कर अपने कदम बाहर की ओर बढ़ा दिए. मैंने अपनी बाईक निकाली और निकल पड़ा.
करीब साढ़े बारह बजे मैं घर आया. मेरी बाईक की आवाज सुनते ही मां गेट खोलने आ गईं.
मैंने मां से कहा- अरे मां आपने क्यों तकलीफ की, मैं खुद ही गेट खोल लेता ना!
वो बोलीं- अरे मेरा काम खत्म हो गया था हर्षद और मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी.
मैं अन्दर आया और मां ने गेट बंद कर दिया. हम घर में अन्दर आ गए.
मां बोलीं- तुम फ्रेश होकर आओ, मैं खाना लगाती हूँ.
मैं फ्रेश होकर आया, तब तक मां ने खाना लगा दिया था. फिर हम दोनों ने खाना खाया और मैं अपने रूम में चला गया. उधर मैंने अपने कपड़े उतारे और लुंगी लगा कर पेपर पढ़ने लगा.
मां किचन में अपना कर रही थीं.
कुछ ही देर में मां सब काम खत्म करके मेरे रूम में आ गईं.
मैं उन्हें देख कर बोला- आओ मां. मै समझा था कि आप अपने बेडरूम मे सोने जाओगी.
मां मेरे पास बैठकर बोलीं- अभी मुझे नींद नहीं आ रही.
उनकी नजरों में सेक्सी भाव झलक रहे थे. कल से मुझे उनके बर्ताव में बदलाव दिख रहा था. वो मेरी तरफ आकर्षित हो रही थीं. मुझे भी ये अच्छा लग रहा था.
उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोलीं- हर्षद, अभी अगले हफ्ते तुम अपने ऑफिस जाने लगोगे, तो मेरा क्या होगा … मेरे दिन कैसे कटेंगे. हर्षद तुम एक ही सहारा हो मेरा … जो मेरे दिल की बात समझ सकते हो. अब मैं दिन भर किससे बातें करूंगी हर्षद!
ये कहते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए.
उनकी हालत देखकर मुझे भी रहा नहीं गया और मैं उन्हें अपनी बांहों में भरकर बोला- रो मत मां … सब ठीक हो जाएगा. आपको कुछ दिन तकलीफ होगी … फिर आदत लग जाएगी. वैसे भी काम होने के बाद आप टीवी देखती रहा करो … फिर दो घंटे सो जाया करो.
मां बोलीं- इतना आसान है क्या हर्षद!
मैं उनके आंसू पौंछने लगा. मुझे उनका स्पर्श मदहोश कर रहा था. हम दोनों एक दूसरे के तरफ आकर्षित हो रहे थे.
इतने में मां बोलीं- हर्षद मैं तुम्हें अपना बेटा नहीं बल्कि एक दोस्त मानती हूँ. तुमसे अपनी सभी बातें शेयर करती हूँ. मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ हर्षद.
बस ऐसे ही बोलते बोलते मां ने मेरा चेहरा अपने हाथों में पकड़ कर मेरे माथे पर किस किया, फिर गालों पर चूमा और फिर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.
मैं भी इससे मदहोश हो गया था. मैंने भी उन्हें अपनी बांहों में कस लिया. मैं भी उन्हें साथ देने लगा. मैं भी उनके होंठों चूसता रहा.
हम दोनों एक दूसरे की पीठ पर हाथ घुमा रहे थे. हम दोनों की सांसें बहुत तेज चलने लगी थीं. मेरे दोनों हाथ उनके मुलायम सेक्सी बदन पर फिरने लगे थे. वो भी मेरी कमर, पीठ, जांघों पर हाथ फिरा रही थीं.
इससे मेरा लंडा खड़ा होने लगा. मेरी लुंगी में तंबू सा बन गया था. लंड खड़ा हुआ, तो मैंने झट से अपने हाथ मां के बदन से हटा लिए.
मां बोलीं- क्या हुआ हर्षद!
मैं बोला- मां हम दोनों ये सब गलत कर रहे हैं. तुम मेरी मां हो. ये सब करना पाप है.
ये कह कर मैं खड़ा हो गया.
तभी मेरी लुंगी में तंबू बना देखकर मां बोलीं- अगर ये सब पाप है, तो ये ऐसा क्यों हो गया?
उन्होंने वैसे ही तंबू को पकड़ कर मेरा लंड हिला दिया. मेरी तो फट रही थी. मां के पकड़ने से मेरा लंड तो और जोश में आने लगा था.
मेरे पास इसका कुछ जवाब नहीं था. मैं बोला- पता नहीं, कल से ऐसा क्यों होने लगा है.
मां बोलीं- तुम एक मर्द हो और मैं एक औरत हूँ. इसलिए सेक्स भावनाएं जागृत होती हैं. तुम अब बड़े हो गए हो. देखो तुम्हारा लंड कितना बड़ा और लंबा हो गया है.
ये कहकर मां खड़ी हो गईं और मुझसे लिपट गईं. उन्होंने मुझे अपनी बांहों में कसके जकड़ लिया था. उनके दोनों कड़क मम्मे मेरे सीने पर दब गए थे. उनकी गर्दन मेरे कंधे पर थी.
मैं भी अपने आप पर काबू नहीं रख पाया. मेरे भी हाथ उनकी पीठ और कमर को सहलाने लगे थे. मेरा लंड भी उनकी जांघों के बीच जाकर चुत से टकरा रहा था.
मां रोने लगी थीं और उनके आंसू बहकर मेरे कंधे को गीला कर रहे थे. ये महसूस करते ही मैं एकदम से होश मैं आया और अलग हो गया.
मैंने पूछा- मां आप क्यों रो रही हो?
मां- नहीं हर्षद, मैंने बरसों से इन आसुँओं को बहुत रोके रखा है … जी भर के रो लेने दे मुझे … मैं बहुत प्यासी हूँ हर्षद. मैं किसी मेरा दुःख कैसे बताऊं … अगर मेरी मां या बहन होती, तो उन्हें बता सकती थी. सब कुछ है मेरे पास … लेकिन मेरे जिस्म की प्यास को मैं कैसे बुझाऊं. दिन तो तुम लोगों के साथ निकाल लेती हूँ. लेकिन रात जल्दी नहीं कटती.
वो आगे बोली- मैं क्या करूं हर्षद … तुम ही बताओ. मैं तो पराये मर्द के बारे में सोच भी नहीं सकती. अपने घर की इज्जत का सवाल है … और मैं अपने घर की इज्जत पर कोई दाग नहीं लगने दूंगी हर्षद. एक तुम ही मेरी मदद कर सकते हो हर्षद.
मैं बोला- मां अगर तुम यही चाहती हो, तो मैं तैयार हूँ. मैं तुम्हें हमेशा खुश देखना चाहता हूँ.
ये सुनकर मां मुझे लिपटकर बोलीं- आय लव यू हर्षद.
मैंने भी मां को बांहों में भर लिया और कहा- आय लव यू मां.
मां बोलीं- हर्षद जब हम दोनों अकेले हों, तो तुम मुझे सिर्फ अदिति कहकर ही बुलाओगे.
ये कह कर वो मुझे किस करने लगीं. मेरा लंड उनकी चुत पर ऊपर से ही रगड़ रहा था.
अब मां बोलीं- चलो अब देर न करो … जल्दी मेरी प्यास बुझा दो. अब नहीं रहा जाता हर्षद.
मैं भी बहुत जोश में था. मैंने मां को उनकी कमर के नीचे हाथ डालकर उठाया और उनके बेडरूम में ले गया. मैंने मां को बेड पर लिटा दिया. मैं भी अपनी बनियान और लुंगी निकालकर उनके ऊपर चढ़ गया और किस करने लगा.
उन्होंने भी मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और चूसने लगीं. मां अपनी जीभ मेरे मुँह में डालकर मुझे चूसे रही थीं. मैं भी अपनी जीभ उनके मुँह में डाल रहा था.
आह क्या बताऊं … ये मेरे लिए अजीब अनुभव था … मुझे बहुत मजा आ रहा था.
फिर मैंने अपने हाथ उनके कड़क मम्मों पर रख दिए और अब मैं मां के मम्मों को मसलने लगा था. मां मादक सिसकारियां भरने लगी थीं.
कुछ देर की चूमाचाटी के बाद मां बोलीं- आह हर्षद मेरी नाइटी, ब्रा, पैंटी निकाल कर नंगी कर दो मुझे.
मैं भी यही चाहता था.
मैंने उनकी नाइटी निकाल दी. फिर ब्रा और पैंटी भी उतार दी. वाह क्या मदमस्त जिस्म था मेरी जवान सौतेली मां का … मैं नशीली निगाहों से उनका मस्त जिस्म देखने लगा.
मां के कड़क उभरे हुए मम्मे, पतली कमर और मुलायम जांघें … और उन दोनों चिकनी टांगों के बीच छुपी हुई गुलाबी चुत एकदम साफ थी. शायद मां ने सुबह ही अपनी चुत की झांटें साफ की थीं.
मैं तो मां की चुत देख कर अपने होश खो बैठा था और बस देखे जा रहा था.
तभी मां चुत उठाते हुए बोलीं- हर्षद सिर्फ देखते रहोगे क्या? चलो जल्दी से अपना जांघिया निकालो न!
मैं बोला- नहीं अदिति … तुम ही उतार दो.
मां उठीं और उन्होंने मेरा जांघिया नीचे खींच दिया. मेरा आधा सोया हुआ लंड झट से आजाद हो गया और फुदकने लगा.
उन्होंने मेरे लंड को निहारते हुए मेरी जांघिया पैरों से निकाल दी. अब मैं बिस्तर पर घुटनों के बल बैठा था. मां ने अपने दोनों हाथों में मेरा लंड ले लिया और उसे सहलाने लगीं.
मेरा पूरा बदन रोमांचित और गरम होने लगा. मेरा साढ़े सात इंच लम्बा और मोटा लंड लोहे जैसा सख्त हो गया था.
मां लंड हाथ से सहलाते हुए बोलीं- हर्षद तेरा लंड कितना लंबा और मोटा है. ये तो मेरी तो चुत फाड़ देगा … तेरे पिताजी का तो पांच इंच ही लंबा है और पतला सा है. हमारी शादी के बाद छह महीने तक ही मुझे चुदाई का मजा मिल सका. फिर तेरे पिताजी का तो दो मिनट में हो जाने लगा था … और मैं वैसे ही प्यासी सो जाती थी. अब मेरी प्यास तो ये तुम्हारा ये तगड़ा लंड ही बुझाएगा हर्षद.
ये कहते हुए उन्होंने मेरे लंड के सुपारे पर अपनी जीभ गोल गोल घुमा दी. इससे मेरे तो पूरे बदन में जैसे करंट सा दौड़ गया था.
मैंने मां को बेड पर लिटाया और 69 की पोजीशन बनाते हुए मैं उनके ऊपर आ गया. मां की टांगों को फैलाकर मैंने उनकी गुलाबी चुत पर किस किया. मां के मुँह से एक मीठी आह निकल गयी. वो भी मेरे लंड पकड़ कर मुँह लेने की कोशिश करने लगीं … मगर बड़ा लंड होने के कारण मां के मुँह में लंड नहीं जा पा रहा था.
मां मेरे लंड का सुपारा चूसने लगीं. मुझे भी जोश भरने लगा था. मैंने कोशिश करके अपना लंड उनके मुँह में दे दिया. अब वो लंड मस्ती से चूसने लगी थीं.
मैं मां की चुत पर अपनी जीभ फिरा रहा था. उसी के साथ मैं मां की जांघों को भी सहला रहा था.
मां के मुँह से कामुक सिसकारियां निकलने लगी थीं. उनकी चुत से मीठा रस बह रहा था और मैं उसे चाटकर पी रहा था.
मां ने भी जोश में आकर मेरा लंड चूसना शुरू कर दिया था. अब मैं भी लंड को उनके गले तक डाल रहा था. सच में मुझे बहुत मजा आ रहा था.
फिर मैंने एक उंगली मां की चुत में डाल दी, तो वो एकदम से कसमसा उठीं- आह आह … हर्षद ओह अहाहा … सससह.
मां वासना से भरी सिसकारियां लेने लगी थीं.
फिर मैंने एक साथ मां की चुत में दो उंगलियां डाल दीं और अन्दर बाहर करने लगा. मां की चुत बहुत कसी हुई थी. वो जोरों से आहें भरने लगीं. मां की चुत से झरने की तरह रस बहने लगा था. मैं चुतरस पीते पीते उनका मुँह चोद रहा था.
अब मेरा भी रस निकलने वाला था, तो लंड एकदम कड़क और गर्म हो गया था.
मैं बोला- अदिति मेरा निकलने वाला है.
वो बोलीं- मुँह में ही निकाल दो … मुझे तुम्हारा रस पूरा पीना है.
ये सुनकर मैं मस्त हो गया कि मेरी सौतेली मां मेरे लंड का जूस पीना चाह रही हैं.
मैंने भी अपनी जीभ चुत में अन्दर तक डालकर चूसना शुरू कर दिया था. वो नीचे से अपनी गांड उठा रही थीं. मैंने भी नीचे हाथ डालकर मां की गांड को पकड़ रखा था.
इसी बीच मेरे लंड ने जोर से पिचकारी मार दी. मेरा लौड़ा मां के मुँह में उनके गले तक घुस गया था. मेरा रस सीधा अन्दर जा रहा था और मां लंड चूसकर रस पीती रहीं. उन्होंने आखिरी बूंद तक लंड चूसा.
फिर हम दोनों ही शांत होकर दो मिनट ऐसे ही 69 में पड़े रहे.
इसके बाद मां एक हाथ से मेरे लंड को सहलाने लगीं और दूसरे हाथ से मेरी पीठ और गांड को सहलाने लगीं. मैं भी उनकी चुत पर अपने होंठों को रखकर चूमने लगा, तो वो गर्म सिसकारियां भरने लगीं.
जल्दी ही उन्होंने अपनी टांगें फैला दीं. अब मैं अपनी जीभ को मां की चुत पर नीचे से ऊपर तक फेर रहा था. मैं उनके दाने को जीभ से कुरेद भी रहा था. इससे मां को बहुत जोश आने लगा था. वो अपनी गांड हिलाकर मेरा साथ दे रही थीं.
मैंने अपने दोनों हाथों से उनकी चुत को फैलाया और अपनी जीभ अन्दर तक डाल दी.
वो जोरों से आह भरने लगीं- ओह हर्षद क्या कर रहे हो … बस करो … अब अपना लंड डाल दो मेरी चुत में … आह अब नहीं रहा जाता हाय … अअअहाहा … अं ऊंऊं डाल दो ना!
उनकी चुत से फिर से कामरस बहने लगा था. मैं चुत को अपनी जीभ से चाट रहा था. वो सिसकारियां भर रही थीं और मेरे लंड को जोर से चूसने में लगी थीं.
मुझे भी अब नहीं रहा जा रहा था.
मां बोलीं- हर्षद बेटा, प्लीज डाल दो ना अपना लंड मेरी चुत में जल्दी से … और बरसों की मेरी प्यास बुझा दे.
मैं देर न करते हुए उनकी टांगें बीच बैठ गया. उनकी टांगें फैलाकर मेरे लंड का सुपारा उनकी चुत पर ऊपर से नीचे तक रगड़ने लगा. वो कसमसा उठीं.
मैं लंड का टोपा उनकी चुत की फांकों में ऊपर से नीचे फेरते हुए चुत के दाने पर रगड़ने लगा.
मां तिलमिलाए जा रही थीं. उन्होंने नीचे हाथ डालकर मेरे लंड को पकड़कर कहा- हर्षद … प्लीज जल्दी से इसे डाल दो ना … जल्दी से अन्दर कर दे प्लीज़ … नहीं तो मैं मर जाऊंगी.
मुझसे भी उनकी हालत नहीं देखी जा रही थी. मैंने भी लंड का सुपारा गीली चुत पर रखा और एक जोर का धक्का दे दिया.
अभी मेरा सिर्फ दो इंच लंड ही अन्दर घुस सका था, मगर मां चिल्ला उठीं- ओय ऊंई मर गयी रे … हर्षद हाय अअहह हहऊ ऊ ऊ आहिस्ता डालो ना हर्षद … तेरा लंड बहुत मोटा है … फाड़ डालेगा क्या मेरी चुत को.
मैंने उनके मुँह पर अपना मुँह रखकर उनके होंठों को चूसने लगा. वो भी मेरे होंठों चूस रही थीं.
मैं अपने दोनों हाथों से उनके चूचे मसल रहा था. वो एक दो पल में ही सामान्य हो गईं.
अब मैंने फिर से एक और जोरदार धक्का मार दिया. अबकी बार मेरा आधे से अधिक लंड चुत में घुस गया था. मैं उन्हें चूम रहा था, तो वो चिल्ला नहीं पाईं. लेकिन उनकी आंखों में आंसू आ गए थे. वो रो रही थीं … दर्द को सहन नहीं कर पा रही थीं.
मैं अपना मुँह ऊपर उठाकर बोला- क्या हुआ अदिति … तुम्हारी आंखों में आंसू कैसे हैं?
मां बोलीं- मुझे दर्द हो रहा है हर्षद … मैं पहली बार इतना बड़ा लंड मेरी चुत में ले रही हूँ ना … इसलिए. अब ठीक है तुम करो..
वो मुझे चूमने लगीं.
मैंने भी उनकी कमर को दोनों हाथों से पकड़ कर लंड थोड़ा बाहर निकालकर जोर से धक्का मारा और पूरा लंड चुत में उतार दिया.
मां जोर से चिल्लाईं, लेकिन उनकी आवाज बाहर नहीं आयी. मैंने अपने होंठों से उनका मुँह बद कर दिया था. उनके मुँह से अब बस सिसकारियां निकल रही थीं.
वो बोलीं- हर्षद तुमने तो मेरी चुत फाड़ दी आज … शायद खून निकल गया है.
मैंने नीचे देखा, तो उनके चुत रस के साथ थोड़ा सा खून भी बाहर आया था.
मैंने मां को चूमकर कहा- हां अदिति, सच में खून निकला है. मगर तुम घबराओ नहीं … अब कुछ भी दर्द नहीं होगा. बस अब सिर्फ मजा ही आएगा.
मां बोलीं- हर्षद मैं सभी दर्द सह लूंगी. मैं बहुत खुश हूँ आज. इतना बड़ा लंड मेरी चुत में जाकर मेरे गर्भाशय को छू रहा है.
मैं यह सुनकर जोश में आ गया और उनके मम्मों को चूसने लगा. दूसरे हाथ से दूसरे दूध को रगड़ने लगा.
मां कामुक सिसकारियां लेने लगी थीं. उनके हाथ मेरी पीठ पर और गांड पर फिरने लगे थे. मां नीचे से अपनी गांड हिलाने लगी थीं.
इससे मैं भी समझ गया कि मां का दर्द कम हो गया है.
मैंने अपनी दोनों हाथों में मां के दोनों मम्मे पकड़ कर रगड़ते हुए मोर्चा सम्भाल लिया. मैं अपना लंड अन्दर बाहर करने लगा. मां की चुत रस छोड़ रही थी. उनका गर्म चुतरस मेरे लंड को महसूस हो रहा था.
फिर मैंने उनकी टांगों को अपने हाथ से फैलाया और जोर जोर से धक्के मारने लगा.
मां मस्ती से मादक सिसकारियां निकालने लगीं. अब मां को चुदने में बहुत मजा आ रहा था. वो भी नीचे से गांड उठाकर मेरा लंड अन्दर ले रही थीं.
करीब दस मिनट तक मैं ऐसे ही जोर से चुदाई करता रहा. मां अब फिर एक बार झड़ने लगी थीं. उनकी चुत ने गर्म रस का फव्वारा मेरे लंड पर छोड़कर मेरे लंड नहला दिया … और वो शांत होती चली गईं.
मेरी मां अपने हाथ फैलाए और आंखें बंद करके सिसकारियां लेते हुए आराम से पड़ी थीं. मैं भी उनके दोनों हाथों पर अपने हाथ रखकर उनके ऊपर लेट गया. अपने होंठों को मां के होंठों पर रख दिए.
लेकिन अभी तक मेरा वीर्य नहीं निकला था.
मैं मां से बोला- अब तक का सफर कैसा लगा अदिति?
तो वो मुझे चूमते हुए बोलीं- हर्षद क्या बताऊं तुझे … मैं तो शब्दों में बयान ही नहीं कर सकती. मुझे बहुत मजा आ रहा है … मैं अपनी जिंदगी पहली बार इतने मजे ले रही हूँ. लगता है कि मैं आज जन्नत की सैर कर रही हूँ.
ये सुनकर मैं खुश हो गया. मैं मां से बोला- अदिति अभी मेरा वीर्य नहीं निकला है. मुझे और मजे लेना है … और तुम्हें भी बहुत खुश करना है.
वो हंसकर बोलीं- मैं भी यही चाहती हूँ हर्षद.
वो मुझे चूमने लगीं और नीचे से अपनी गांड ऊपर नीचे करने लगीं.
मुझे भी जोश आने लगा था. मैंने उनकी कमर पकड़कर लंड अन्दर बाहर करके मां को चोदने लगा. मां की चुत गीली होने के कारण अब फच पच पचा फच की आवाज निकलने लगी थीं. साथ में अदिति के मुँह से निकलती मादक सिसकारियों की आवाज से बेडरूम का माहौल रोमांटिक हो गया था.
मैं अपना लंड आधे से ज्यादा बाहर निकालकर जोर से अन्दर डाल रहा था. मां को भी चुदने में मजा आ रहा था. वो भी अपनी गांड उछाल उछालकर मेरा साथ दे रही थीं.
ऐसे ही दस मिनट तक मैं मां को चोदता रहा. वो भी मस्त मजे ले रही थीं और सिसकारियां भी भर रही थीं.
मां बोलीं- हर्षद आह और जोर से चोद दो … मैं फिर से झड़ने वाली हूँ.
वो चौथी बार झड़ने वाली थीं … अब मैं भी झड़ने वाला हो गया था.
मैं जोर जोर से लंड को चुत के अन्दर तक घुसाने लगा. मैंने मां से बोला- हां मेरी जान अब मेरा भी निकलने वाला है … क्या मैं अपना वीर्य अन्दर ही छोड़ दूँ?
मां बोलीं- हां अन्दर ही छोड़ दो … बहुत प्यासी है मेरी चुत, तुम्हारा अमृत जैसा वीर्य पीकर तृप्त हो जाएगी.
मां के ऐसा कहते ही उनकी चुत रस छोड़ने लगी और मैं भी जोर-जोर से धक्के मारने लगा. जैसे ही चार पांच जोर के धक्के मारे, मेरे लंड से निकली वीर्य की पिचकारी उनके गर्भाशय को भरने लगी थी.
मां ने भी मेरे रस को अपने अन्दर जाता हुआ महसूस किया था. वो सिसकारियां भरने लगी थीं. उन्होंने मेरी कमर को अपनी टांगों में जकड़ रखा था. वो अपनी चुत पर दबाव बनाकर रखना चाहती थीं. उन्हें बहुत मजा आ रहा था. मेरा पूरा वीर्य मां की चुत में निकल गया था.
इस तरह से पहली बार बेटे ने मां को चोदा.
मैं झड़ कर मां के ऊपर ही सो गया था. हम दोनों बहुत थक चुके थे. दोनों ही एक दूसरे के बांहों में समा गए थे. मैं अपना सर उनकी गर्दन पर रखकर लेटा रहा. दोनों की गर्म गर्म सांसें तेज चल रही थीं.
दस मिनट तक हम ऐसे ही एक दूसरे की बांहों में जकड़े पड़े थे.
मां आंखें बंद करके निढाल होकर पड़ी थीं. उनके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी दिखायी दे रही थी.
मैंने अपने होंठ मां के गुलाबी होंठों पर रख दिए.
तो उन्होंने अपनी आंखें खोल दीं और बोलीं- हर्षद आज मैं पूरी तरह से तृप्त हो गयी हूँ. ये सब तुम्हारे लंड का कमाल है … और तेरा भी. हर्षद आज क्या चुदाई की है तुमने … मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम एक अनुभवी मर्द की तरह करीब आधे घंटे से ज्यादा समय तक मेरी चुत चुदाई करोगे. थैंक्यू हर्षद … तुमने मेरी बरसों से प्यासी चुत की प्यास आज अपने अमृत से बुझा दी. मैं ये पल कभी नहीं भूलूंगी … आज का ये सुनहरा दिन मेरी जिन्दगी में मुझे हमेशा याद रहेगा. अब हमेशा तुम मुझे ऐसे ही खुशी देते रहना. आय लव यू हर्षद.
मां ये बोलकर मुझे चूमने लगीं.
मैं भी उन्हें आय लव यू टू अदिति बोलकर चूमने लगा.
मेरा लंड सिकुड़कर चुत से बाहर निकल आया था. मां ने मोबाइल की घड़ी देखी, तो छह बज चुके थे.
मां बोलीं- उठो हर्षद … शाम के छह बज गए हैं. आज बहुत देर हो गयी है. कैसे समय निकल गया, पता ही नहीं चला.
मैं उनके ऊपर से उठकर बाजू हो गया. मां उठीं, तो उन्होंने देखा कि उनकी चुत से हम दोनों का रस बाहर बह रहा था. बेड की चादर पूरी गीली हो गयी थी. वो बेड से नीचे उतरीं. मैं भी नीचे उतर गया. उनकी चुत से कामरस अभी भी बहकर घुटने तक आ रहा था.
उन्होंने बेडशीट निकाल कर रख दी और मुझसे बोलीं- चलो बाथरूम में चलते हैं हर्षद.
हम दोनों नंगे ही बाथरूम में गए और साथ में नहाने लगे. मां ने गर्म पानी का फव्वारा चालू कर दिया और मेरे लंड को धोने लगीं. मैं उनकी चुत साफ कर रहा था. तभी मेरा लंड फिर खड़ा होने लगा, तो मैं मां के पीछे गया और उनको अपनी बांहों में भर लिया. मेरा तना हुआ लंड दोनों टांगों के बीच घुसकर चुत को रगड़ने लगा.
मां भी उत्तेजित होकर सिसकारियां भरने लगीं.
मां बोलीं- हर्षद क्या तुम्हारा अभी दिल नहीं भरा? छोड़ दो बस करो.
मैं बोला- नहीं अभी मेरा दिल नहीं भरा अदिति … मैं और सेक्स चाहता हूँ.
वो बोलीं- ओके … पर अभी नहीं हर्षद. तेरे पिताजी सात बजे के बाद कभी भी आ सकते हैं. प्लीज मान भी जाओ हर्षद … हम कल करेंगे. अब तो मैं हमेशा के लिए तुम्हारी ही हूँ ना.
ये सुनकर मैं मां से अलग हो गया और हम दोनों नहाकर नंगे ही अपने रूम में चले गए.
थोड़ी ही देर में हम तैयार हो गए. मैं हॉल में आकर टीवी चालू करके सोफे पर बैठ गया. मां भी साड़ी पहनकर आ गईं.
उसी समय पिताजी भी आ गए.
मां मुझसे मुस्कुरा कर बोलीं- हर्षद, मैं तुम दोनों के लिए चाय बनाकर लाती हूँ.
मैं धीमे से हंस दिया.
मैं मां की मटकती हुई गांड को देख कर धीमे से मुस्कुरा दिया.
तभी पिता जी के फोन पर किसी का कॉल आ गया और वे जल्दी में आवाज लगाते हुए चले गए- अदिति मैं जरूरी काम से जा रहा हूँ. बस अभी आ जाऊंगा.
मैंने पिताजी को रोकने की कोशिश की कि चाय पी कर चले जाना पिताजी.
मगर शायद कोई अर्जेंट कॉल था, इसलिए पिताजी रुके नहीं.
पिताजी के जाते ही मां आ गईं और पिताजी को न पाकर मुझसे पूछने लगीं- क्या हुआ? तेरे पिताजी किधर चले गए?
मैंने मां को आते देख आकर उठ कर दरवाजे की कुंडी लगा दी और सब बताते हुए उनको अपनी गोद में खींच लिया.
मां हंसते हुए मेरी गोद से उठीं और बोलीं- उधर चाय उफन रही होगी. मुझे जाने दे.
मां किचन में चली गईं और मैं अपने लंड के उफान को दबाने लगा.
एक मिनट बाद मां दो कप में चाय लेकर आ गईं और मेरे पास बैठकर चाय पीने लगीं.
हम एक दूसरे की देखकर हंसने लगे थे. मां के चेहरे पर आज बहुत खुशी दिख रही थी.
मैं बोला- अदिति … तुमने आज मुझे बहुत खुश कर दिया है. मैंने अब तक चार लड़कियों को चोदा है, मगर उन्हें चोदने में भी इतना मजा नहीं आया जितना तुम्हारी चुत चुदाई में मजा आया. वाकयी तुम बहुत सेक्सी हो … तुम्हारा बदन बहुत गठीला है.
इस पर मेरी सौतेली मां बोलीं- हर्षद, तुमने तो बरसों से प्यासी अपनी माँ की चुत की आग बुझा दी है. मैं तुम्हारी बहुत आभारी हूँ. पहले तो मैं बहुत डर रही थी कि तुमसे ये सब बातें कैसे कहूँ, लेकिन जब से मैंने तुम्हारा मोटा लंड देखा था, तभी से मेरा दिल तुमसे चुदवाने को मचल रहा था. आज वो सुनहरा दिन ही आ गया. मैं बहुत ही खुश हूँ हर्षद …
अदिति आगे बोली- आज से जब हम दोनों को मौका मिलेगा, हम ऐसे ही चुदाई करेंगे हर्षद. मगर ध्यान रखना कि ये बात सिर्फ हमारे बीच में ही रहना चाहिए.
इसी तरह से हम दोनों बातें करते हुए अपनी चाय खत्म करने लगे.
चाय के बाद मां कप लेकर किचन में चली गईं और कोई दस मिनट बाद वो अपना काम निपटा कर वापस आ गईं.
मैंने उनको देख कर अपना लंड सहलाया तो मां मेरी गोद में आकर बैठ गईं. मैंने भी उन्हें अपने दोनों हाथों से कसके जकड़ते हुए भींच लिया और उनके मम्मों को सहलाने लगा.
वो कामुक सिसकारियां लेने लगीं. नीचे से मेरा लंड खड़ा होकर मां की गांड की दरार में घुस गया था. लंड को महसूस करते ही मां ने अपनी गांड हिलाकर लंड को ठीक से अपनी गांड की दरार में सैट कर लिया. उन्हें भी खड़े लंड पर गांड घिसने में मजा आ रहा था.
मैंने अपने हाथ पेट के रास्ते उनकी साड़ी के अन्दर डालकर उनकी गर्म चुत पर रख दिए. फिर मां की चुत को सहलाते हुए मैं दूसरे हाथ से उनके मदमस्त मम्मों को दबाने लगा.
वो भी कामुक सिसकारियां भरने लगी थीं. मैं मां के गालों पर और उनके होंठों को अपने होंठों से चूम रहा था.
मां कुछ ही पलों में बहुत ज्यादा उत्तेजित और कामुक हो गयी थीं.
मैं बोला- अदिति अब क्या इरादा है … क्या तुम अभी मुझसे चुदवाना चाहती हो?
मां बोलीं- हां … लेकिन पूरी चुदाई अभी नहीं कर पाएंगे हर्षद … तेरे पिताजी कभी भी आ सकते हैं.
उनकी बात एकदम सही थी. इतने में डोर बेल बज गई. शायद पिताजी लौट आए थे.
मां उठ कर साड़ी ठीक करके गेट खोलने चली गईं. मैं भी कायदे से बैठ गया. मेरा लंड खड़ा होने के कारण लुंगी में तंबू बन गया था, तो मैंने लंड को नीचे दबाया और ऊपर अखबार लेकर पढ़ने का नाटक करने लगा.
पिताजी अन्दर आकर मेरे सामने बैठ गए.
मां भी गेट बंद करके आ गईं और पिताजी से बोलीं- आप फ्रेश होकर आइए. मैं आपके लिए चाय बनाती हूँ.
पिताजी भी मां की बात सुनकर सर हिलाते हुए बाथरूम में चले गए.
थोड़ी ही देर में पिताजी फ्रेश होकर कपड़े चेंज करके वापस आए और सोफे पर बैठ गए.
तभी मां चाय लेकर आ गईं और पिताजी को चाय देकर अन्दर जाने लगीं.
पिताजी बोले- अदिति जरा यहीं बैठो. मुझे तुम दोनों से कुछ बात करनी है.
मैं और मां ने एक दूसरे को आशंका से देखते हुए लगभग एक साथ ही पूछा- क्या बात है … बोलिए न!
तभी पिताजी बोले- अरे मेरे पास सतारा से लता का फोन आया था.
लता मेरी बड़ी बहन का नाम है. दो साल पहले उसकी शादी हुई थी.
पिताजी- आजकल लता की सास बीमार हैं. वे दो दिन हस्पताल में भर्ती थीं. आज ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली है. मैं सोच रहा हूँ कि तुम दोनों जाकर उससे मिल आओ. कल सुबह जाकर शाम को वापस आ जाना. फिर हर्षद को समय नहीं मिलेगा. एक बार उसने ऑफिस ज्वाइन किया तो उससे मिलना ही नहीं हो पाएगा.
पिताजी ने आगे कहा- बहुत दिन हो गए हैं … हम लता की ससुराल भी नहीं गए हैं. इसी बहाने लता और उसके बच्चे की भी कुशलक्षेम मालूम हो जाएगी. सही कहता हूँ ना अदिति, हर्षद?
तभी मां मेरी तरफ देखते हुए बोलीं- हां ठीक है … कल नौ बजे तक हम दोनों सतारा के लिए निकल चलेंगे … चलेगा ना!
पिताजी बोले- हां ठीक है. अभी जल्दी से खाना बना लो … मैं काफी थक गया हूँ. तब तक मैं कमरे में जाकर आराम कर लेता हूँ.
मां हां कहते हुए किचन में खाना बनाने चली गईं और मैं टीवी देख रहा था.
फिर घड़ी में नौ बज गए थे … खाना तैयार हो गया था.
मां ने कहा- हर्षद … अपने पिताजी को खाना खाने के लिए बुला लाओ, मैं तब तक खाना लगाती हूँ.
मैंने पिताजी को बुलाया, फिर हम तीनों इधर उधर की बातें करते हुए खाना खाने लगे. खाना के बाद मां सब बर्तन लेकर किचन में चली गईं.
फिर पिताजी बोले- बेटा हर्षद … अब तुम भी सो जाओ, सुबह तुम्हें जल्दी जाना है ना! मैं भी सोने को जाता हूँ … कल मुझे ऑफिस भी जाना है.
ये कहकर वो अपने बेडरूम में चले गए और मैं अपने रूम में आ गया. मैं बेड पर लेट गया. मैं आज बहुत खुश था कि कल मैं और मां दोनों एक साथ पहली बार कहीं सफर में जाने वाले थे … कितना मजा आएगा … जब सिर्फ हम दोनों ही साथ में होंगे.
ये सब सोचते सोचते कब नींद लग गई, मुझे पता ही नहीं चला.
सुबह मेरा माथा चूमकर मां ने मुझे जगाया, तो मैंने आंखें खोलकर देखा और कुनमुना कर बोला- सोने दो ना मां.
वो बोलीं- मां नहीं … सिर्फ अदिति कहो … पिताजी अभी अभी ऑफिस गए हैं. उठो जल्दी … हमें सतारा भी जाना है ना!
मैंने मां को खींच कर अपनी बांहों मे जकड़ लिया और उनके दोनों गालों को चूमा. आह मां के बदन से क्या मादक खुशबू आ रही थी … वो अभी अभी नहा कर आयी थीं और नाइटी में ही थीं.
मां हंसती हुई बोलीं- तुम बहुत बदमाश हो गए हो … जल्दी से उठो और तैयार हो जाओ.
ये कहते हुए मां ने उठकर मेरे ऊपर पड़ा कम्बल हटा दिया. कम्बल हटते ही उनकी नजर मेरे खड़े हुए लंड पर पड़ी, जो लुंगी के अन्दर तंबू बनाए हुए था.
मां मेरा खड़ा लंड देख कर हंसते हुए बोलीं- तेरा ये भी बड़ा बदमाश हो गया है. मुझे देखते ही खड़ा हो जाता है.
मां ने एक हाथ से ऐसे ही ऊपर से मेरे लंड को जोर से दबा दिया और बोलीं- जाओ जल्दी से नहाकर तैयार हो जाओ. मैं भी तब तक तैयार हो जाती हूँ. अभी सवा आठ बजे हैं … आधे घंटे में हमें निकलना है हर्षद.
मां ये कहते हुए चली गईं.
मैं भी उठकर बाथरूम में चला गया.
मैं नहा कर अपने रूम में जाकर कपड़े निकालने लगा. मैंने एक अच्छा सा फॉर्मल पैन्ट और शर्ट पहना और परफ्यूम का स्प्रे मारकर तैयार हो गया. मैंने ऊपर से जैकेट डाल ली.
उधर मां भी तैयार हो चुकी थीं. वो अपने रूम से बाहर आ गईं, तो मैं उन्हें देखते ही रह गया. मां ने पीले रंग की साड़ी पहनी थी और मैचिंग का ब्लाउज पहना हुआ था. साड़ी के ऊपर से ही उनके कसे हुए चूचे मस्त दिख रहे थे.
मां ने साड़ी को कसावट के साथ पहना हुआ था, इस वजह से पीछे से उनकी गांड बहुत सेक्सी दिख रही थी. मां के लंबे और काले बाल कमर के नीचे तक उनके मादक चूतड़ों तक लहरा रहे थे. मेरी सौतेली मां क्या गदर माल लग रही थीं.
मुझसे रहा नहीं गया. मैंने उनके करीब जाकर उनको अपनी बांहों में कस लिया और उनके होंठों पर अपने होंठ रखकर उन्हें चूम लिया. उन्हें भी मेरा यूं चूमना बहुत अच्छा लगा.
उन्होंने भी मेरे होंठों को चूमकर अपने से मुझे अलग करते हुए कहा- अभी बस करो हर्षद … हमें निकलना होगा. चलो जल्दी से निकलो … लो ये ताला ले लो, गेट को बंद करके लगा देना.
तभी मैं बोला- अदिति, अपना स्वेटर तो पहन लो … तुम्हें बाइक पर स्वारगेट तक जाना है, ठंड लगेगी.
वो हां में सर हिलाते हुए अन्दर कमरे में जाकर नीले रंग का एक फुल आस्तीन का स्वेटर पहन कर आ गईं. उनके पास एक शॉल भी थी.
तब तक मैंने बाइक बाहर निकाल ली थी.
अब करीब पौने नौ बज गए थे. हम दोनों अपनी मंजिल की तरफ निकल गए. बाइक पर जाते समय तेज ठंडी हवा लग रही थी. इस वजह से मां मुझसे पूरी तरह से चिपक कर बैठी थीं.
मैंने बोला- अदिति … अपने दोनों हाथ मेरी कमर को पकड़ कर कसके बैठो … नहीं तो गिर जाओगी … रास्ता खराब है.
तो मां ने भी एक हाथ से कमर को पकड़ लिया और दूसरा हाथ मेरी जांघ पर रख दिया.
मुझे भी अब मजा आने लगा था. मां के कड़क मम्मे मेरे पीठ पर दब गए थे. उसका अहसास मुझे हो रहा था. वो भी जानबूझ कर अपने चूचे मेरे पीठ पर रगड़ रही थीं. ऐसे ही मस्ती करते हुए हम थोड़ी देर में स्वारगेट पहुंच गए थे.
बाइक बाहर स्टैंड पर खड़ी करके हम एसटी स्टैंड में आ गए.
उधर पुणे से कोल्हापुर जाने वाली बस लगी थी. वो बस निकलने ही वाली थी. सतारा बीच में पड़ता है. हम दोनों बस में जाकर दो सीट वाली सीट पर बैठ गए. बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी. कुछ ही देर में बस चल पड़ी थी. मैं और मां हंसी मजाक करते हुए एक दूसरे के जिस्म की गर्मी के मजे लेने लगे थे.
मां ने शॉल निकाल कर अपने पैरों पर डाल ली थी. मैंने उनकी तरफ देखा तो मां ने आंख दबा दी. मैं समझ गया और मैंने उसी शॉल के अन्दर अपने हाथ डाल दिए. मैं अब अपनी मां की चुत को सहलाने लगा था और वो भी आंख बंद कर मस्त हो रही थीं.
यूं ही मां की चुत में उंगली करते हुए और उनके मम्मों का मजा लेते हुए तीन घंटे का सफर कब खत्म हो गया, हमें पता ही नहीं चला.
बस सतारा बस स्टैंड पर आकर रुक गई थी. हम दोनों बस से निकल कर अपनी मंजिल के लिए चल दिए. एक ऑटो में बैठ कर मैंने ऑटो वाले को पता समझा दिया.
करीब पन्द्रह मिनट में ही हम लता दीदी के घर पहुंच गए. हमें देखते ही लता दीदी और जीजाजी और सभी खुश हो गए. मैंने दीदी को गले लगाया और उसका हालचाल पूछा, तो वो अपनी ससुराल में बहुत खुश थी.
फिर जीजाजी और उनकी मां पिताजी से भी मां ने हालचाल पूछा. मां ने भी दीदी को गले लगाया और सबसे बातें करने लगीं.
तभी दीदी बोलीं- हर्षद तुम और मां फ्रेश हो जाओ. हम सभी साथ में खाना खाएंगे.
अभी एक बज गया था. हमें भूख भी लगी थी. हम दोनों फ्रेश होने के लिए चले गए. तब तक दीदी और उनकी सास ने सभी को खाना लगा दिया था.
हम सभी ने एक साथ खाना खा लिया और हम सब हॉल में आराम से बैठकर बातें करने लगे.
मैं और मां सभी के साथ घुल-मिल गए थे. सभी के साथ हंसी मजाक हो रहा था.
लता दीदी के घर समय कैसे बीता, इसका पता ही नहीं चला.
अब दोपहर में साढ़े तीन बज गए थे.
तभी मां ने दीदी से कहा- लता अभी हमें निकलना पड़ेगा … नहीं तो घर पहुंचने में देर हो जाएगी. शाम के समय पुणे में ट्रैफिक बहुत ज्यादा रहता है ना!
दीदी बोली- ठीक है मां लेकिन मैं अभी चाय बनाती हूँ … आप पीकर जाना.
मां बोलीं- ठीक है.
थोड़ी ही देर में हम चाय पीकर सबकी इजाजत लेकर वापस निकल पड़े.
हम दोनों हाईवे पर आकर रुक गए. जहां पुणे जाने वाली सारी बसें रुकती थीं. उधर बस स्टॉप पर और दो तीन कपल्स और दो तीन बच्चे भी खड़े थे. इतने में बस आयी, लेकिन उसमें बहुत भीड़ थी … तो हमने वो बस छोड़ दी … और दूसरी बस का इन्तजार करने लगे.
उसके बाद दो बसें और आईं, लेकिन वो भी भरी हुई थीं. ऐसे ही एक घंटा हो गया था और अब पांच बज रहे थे.
इतने में एक बस आकर रुक गयी. उसमें दस बारह लोग खड़े थे. ज्यादा भीड़ नहीं थी.
मां बोलीं- चलो हर्षद … इसी में चलते हैं … आराम से खड़े तो रह सकते हैं.
हम दोनों बस में चढ़ गए और आगे जाकर खड़े हो गए. इतने में कंडक्टर आया, तो मैंने दो पुणे की टिकट ले लीं. मैं और मां बातें कर रहे थे. साथ में हमारे बीच हंसी मजाक भी चल रहा था.
उसी बीच मां के मोबाइल पर पिताजी का फोन आ गया और वे फोन सुनने लगीं.
हम दोनों को बस में खड़े हुए करीब आधा घंटा हो गया था. फिर बस एक स्टॉप पर रुकी, तो कंडक्टर आने वाली सवारियों से बोला कि सिर्फ पुणे जाने वाले ही बैठना. बस बीच में कहीं नहीं रुकेगी.
फिर भी दसेक लोग ऊपर चढ़ गए. उसमें चार वयस्क औरतें, चार आदमी और कुछ बच्चे थे.
कंडक्टर ने दरवाजा बंद किया. बस चलने लगी. अभी बस में बहुत भीड़ हो गयी थी. मैं और मां और आगे जाकर, ड्रायवर के पीछे जो पार्टीशन होता है, वहां खड़े हो गए. मां पार्टीशन से चिपक कर खड़ी रहकर आगे देख रही थीं. मैं उनके पीछे था. आजू बाजू कुछ बच्चे और वयस्क औरतें खड़ी थीं.
रास्ता खराब था, तो हम आगे पीछे हिल रहे थे. बीच बीच में मैं मां की गांड से टकरा जाता था … तो मां पीछे मुड़कर हंस देती थीं.
तभी अचानक से ड्राईवर ने जोर से ब्रेक मारा, तो तभी सभी खड़े हुए लोग, अपने आगे खड़े हुए लोगों से जा टकराए. मैं भी मां से जाकर पूरा चिपक गया था. मेरे पास वाली औरतें मुझसे सट गयी थीं. कुछ हिलने के लिए भी जगह नहीं थी.
इस झटके से एक चालीस पैंतालीस साल की औरत मेरे साइड में मुझे पूरी चिपक गई थी. उसके बड़े बड़े मम्मे मेरी बांहों पर रगड़ रहे थे. और मेरा आधा सोया लंड मां की गांड पर रगड़ खा रहा था. मुझे इस पोजीशन में बहुत मजा आ रहा था.
मेरी सौतेली मां बीच-बीच में अपनी कमर पीछे हिलाकर मेरे लंड को दबा दे रही थीं. मैं पीछे सरकने की कोशिश करता था, लेकिन बहुत मुश्किल हो रहा था. भीड़ बहुत ज्यादा हो गई थी.
ठंडी का मौसम था, तो ठंडी हवा लग रही थी. हालांकि भीड़ की वजह से ठंड नहीं लग रही थी. शाम के सात बज गए थे. अभी और करीब एक घंटे का सफर बाकी था … जिसे ऐसे ही निकालना था.
ठंड के दिनों में अन्धेरा हो गया था और बस में भी अंधेरा छा गया था. बीच में कोई उतरने वाला भी नहीं था, तो ड्राईवर ने बस के अन्दर की लाइट नहीं जलाई थी.
मैं मां की गांड के पीछे से पूरा चिपक गया था. मेरा लंड उनकी गांड की दरार में जाकर फंस गया था. मां भी अपनी गांड हिलाकर लंड के मजे ले रही थीं. मैं अपना एक हाथ उनकी कमर में डालकर पेट को सहलाने लगा. मेरी मां कसमसा रही थीं. इधर बाजू वाली औरत के कड़क मम्मे मेरे भुजाओं को रगड़ कर मजा दे रहे थे. शायद उसे भी रगड़वाने में मजा आ रहा था.
मेरा दूसरा हाथ उस औरत की चुत के पास लटक रहा था. भीड़ और अंधेरे की वजह से किसी को कुछ नहीं दिख रहा था. मैं अब तक बहुत गर्म हो चुका था. मेरा एक हाथ मां के पेट और उनकी नाभि को सहला रहा था. मेरा पूरा तना हुआ लंड मां की गांड की दरार में डुबकियां लगा रहा था.
इस मस्ती में ही मेरा दूसरा हाथ बाजूवाली औरत की चुत के पास हिल रहा था. जैसे ही बस हिलती थी, मैं अपनी उंगलियां उसकी साड़ी के ऊपर से ही चुत पर रगड़ देता था. उसे भी अच्छा लग रहा था … तो वो औरत और मेरे से सट गयी.
मैंने उसकी रजामंदी देखी, तो मेरा हाथ सीधा उसकी टांगों के बीच में जाकर चुत पर सट गया. वो औरत भी गर्म हो चुकी थी. मैं साड़ी के ऊपर से ही उसकी चुत को रगड़ने लगा, तो उसकी गर्म सांसें मेरी गर्दन को उसकी कामुकता का अहसास दे रही थी.
इधर मां की भी कामवासना बढ़ गयी थी. उनसे रहा नहीं गया और वो पलट गईं. मां ने अपना मुँह मेरी तरफ किया और एक हाथ मेरे कंधे पर रखकर दूसरे हाथ से मेरे कड़क लंड को पकड़ कर साड़ी के ऊपर से ही अपनी चुत पर सटा दिया.
मां के मम्मे अब मेरे सीने पर टच हो रहे थे. मेरा एक हाथ उनके पीछे चला गया था. मैं मां की कमर और गांड को सहलाने लगा था. वो धीमे धीमे से कामुक सिसकारियां भरते हुए मेरे कान में अपनी गर्म सांसें निकाल रही थीं. मैंने उन्हें और जोर से अपनी ओर खींचकर मेरे साथ लिपटा लिया.
अब मां के मम्मे मेरी छाती पर दबने लगे थे. मां ने अंधेरे का फायदा उठाकर मेरे होंठों को चूम लिया और मेरे होंठों को चूसने लगीं. मुझसे भी रहा नहीं गया, तो मैं भी मां के होंठों को चूसने लगा. इधर दूसरे हाथ से मैं उस औरत की चुत रगड़ रहा था. वो भी पूरी तरह से कामवासना में डूबी थी.
मां धीमी आवाज में मेरे कान में बोलीं- हर्षद मेरी चुत पूरी गीली हो गयी है. मैं थोड़ी ही देर में झड़ जाऊंगी.
मैं बोला- अभी दूसरा कोई रास्ता नहीं है अदिति … जो होता है, हो जाने दो. मुझे भी अब नहीं रहा जाता है. मैं भी थोड़ी देर में झड़ जाऊंगा जान.
ऐसा बोलकर मैं अपने लंड से मां की चुत पर धक्के देने लगा. बाजूवाली औरत शायद झड़ गयी थी और शांत होकर थोड़ा पीछे को हो गयी थी. मैं समझ गया था.
बाजू वाली औरत की चुत से मेरा हाथ अब फ्री हो गया था. इसलिए मैंने अपना दूसरा हाथ भी मां की कमर पर रखकर दोनों हाथों से उन्हें अपनी ओर खींच लिया और उनकी गांड सहलाने लगा. गांड सहलाने के साथ में मैं अपने लंड से उन की चुत को रगड़ रहा था.
मां मेरे कान पर मुँह रखकर बोलीं- आंह हर्षद … मैं बस झड़ने वाली हूँ … मुझसे अब नहीं रहा जाता.
मैं भी उनसे बोला- अदिति, मेरा भी काम होने वाला है.
मैंने चार पांच धक्के दिए और मेरी पिचकारी निकल गई. मां को भी ये महसूस हो गया कि मैं झड़ गया हूँ. उसी पल वो भी झड़ गयी थीं और मुझसे चिपक गईं. मां ने झड़ने के बाद अपना सर मेरे कंधे पर रख दिया. मैंने भी उन्हें अपनी बांहों में कसके पकड़ रखा था. हम दोनों निढाल हो गए थे.
हमारा सफर अभी थोड़ी देर में खत्म होने वाला था. दस मिनट बाद हम स्वारगेट स्टैंड पर पहुंचने वाले थे.
मैं मां से बोला- हम थोड़ी देर में पहुंच रहे हैं.
ये सुनकर वो होश में आकर मुझसे थोड़ी अलग हुईं. मैंने भी उन्हें अपनी बांहों से अलग कर दिया.
इतने में ड्राईवर ने लाइट जला दी. मां और मैं एक दूसरे की ओर देखकर मुस्कुरा रहे थे.
मां कुछ शरमा रही थीं.
मैं उनसे बोला- क्या हुआ अदिति?
वो शरमाकर बोलीं- नीचे उतरने के बाद बताऊंगी.
थोड़ी ही देर में स्टैंड आ गया और हम नीचे उतर गए.
हम चलते चलते बाहर आ रहे थे, लेकिन कुछ मां पीछे थीं.
मैंने जरा रुक कर पूछा- अदिति क्या हुआ?
वो बोलीं- हर्षद मेरी पैंटी पूरी गीली होकर रस जांघों पर बह रहा है. इसलिए मुझे चलने में दिक्कत हो रही है.
मैंने बोला- हम्म … मेरा भी यही हाल है.
वो शरमा गईं और हंसने लगीं.
मां बोली- अब चलो … यही बात मैं तुम्हें बस में बताने वाली थी.
मैं बोला- अच्छा तो ये बात थी.
ये कहकर मैंने उनके कंधे पर हाथ रख दिया और हम दोनों आगे चलने लगे.
बाइक स्टैंड सामने ही था. मैं बाइक लेकर आया. मां पीछे बैठ गईं और हम निकल पड़े.
करीब आठ बज चुके थे.
हम सिटी से थोड़ा बाहर आए, तो रोड के नजदीक ही एक होटल था. मैंने होटल के सामने बाइक रोक दी.
मां उतरकर बोलीं- क्या हुआ हर्षद?
मैंने बोला- अदिति, घर में जाकर कब खाना बनाओगी … एक तो तुम सफर से ही बहुत थक गयी हो. मैं इधर से हम दोनों का खाना पार्सल करवा लेता हूँ.
अदिति ने बोला- ठीक है हर्षद.
इतने में मां के फोन पर फोन आया. मैं होटल में अन्दर चला गया.
थोड़ी ही देर में मैं पार्सल लेकर बाहर आया. मैंने मां से पूछा- किसका फोन था अदिति?
मां ने कहा- तेरे पिताजी का था. वो पूछ रहे थे कि हम लोग कितनी देर में घर पहुंच जाएंगे.
मैंने कहा- क्या पिताजी बाहर नहीं गए? उन्हें दो दिन किसी काम की वजह से बाहर जाना पड़ रहा था?
मां- नहीं वो तो घर से जा चुके हैं. वे तो सिर्फ हमारे आने की पूछ रहे थे.
मैं बोला- अच्छा … और मुझसे कुछ कहा कि नहीं?
मैं बाइक स्टार्ट करके बोला, तो मां पीछे बैठकर बोलीं- उन्होंने कहा कि हर्षद को बोलो कि अपनी मां और घर का दो दिन ख्याल रखे.
मैंने बोला- ठीक है. अब मैं दो दिन तुम्हारा अच्छे से ख्याल रखूंगा.
मां ने हंस कर मुझे कसकर पकड़ लिया.
हम दस मिनट में ही घर आ पहुंचे. मैंने गेट का ताला खोल दिया. मां अन्दर गईं और सभी लाइटें जला दीं. मैंने बाइक अन्दर लेकर गेट लॉक किया और अन्दर जाकर सोफे पर बैठ गया.
मां ने मुझे पानी लाकर दिया और बोलीं- हर्षद मैं नहाने जा रही हूँ, मुझे बहुत गंदा लग रहा है. तुम बाद में नहा लेना.
वो बाथरूम में चली गईं और मैं सोफे पर लेट गया. खड़े रहकर सफर करने से बदन में दर्द हो रहा था.
थोड़ी देर में मां नहाकर आ गईं और मुझसे बोलीं- हर्षद जाओ जल्दी से नहा लो.
वे अपने रूम में चली गईं. मैं नहाने चला गया.
कुछ देर बाद मां नहाकर बाहर आ गईं और मुझे आवाज देकर बोलीं- हर्षद अब तू जा और जल्दी से नहा के आ जा.
ये कहते हुए वो अपने रूम में चली गईं.
मैं भी उठकर बाथरूम में घुस गया और पूरा नंगा होकर गर्म पानी का फव्वारा चालू करके आराम से नहाने लगा. मैं अपनी जांघों पर और लंड पर मेरे वीर्य के सूखे हुए धब्बे साफ करने लगा. साबुन लगा कर लंड को भी आगे पीछे करके मस्ती से सफाई करने लगा. गर्म पानी से शरीर की थकान भी दूर हो गयी थी.
मैं नहाकर तौलिया लपेट कर अपने रूम में आ गया. लुंगी और बनियान पहनकर जब मैं बाहर आया, तो मां टेबल पर खाना लगा रही थीं. मैं जाकर कुर्सी पर बैठ गया.
मैंने मां से बोला- यार, बहुत भूख लगी है अदिति.
वो मेरे बगल में बैठते हुए बोलीं- हां हर्षद, मुझे भी लगी है. अच्छा हुआ खाना पार्सल करवा कर ले आया … नहीं तो बहुत देर हो जाती.
इस तरह से बातें करते साथ मैंने खाना खत्म कर दिया.
मां बोलीं- हर्षद चलो मेरे बेडरूम में आ जाओ. मैं थोड़ी देर में आती हूँ.
वो सब बर्तन लेकर किचन में चली गईं.
मैं भी उनके बेडरूम में जाकर लेट गया. पहले भी जब पिताजी काम से बाहर रहते हैं, तो मैं मां के साथ ही सोता था. लेकिन तब की बात अलग थी. हमारे बीच तब सिर्फ मां बेटे का ही रिश्ता था … लेकिन आज की बात अलग थी.
आज हम जैसे की पति पत्नी के रिश्ते से एक साथ सोने वाले थे. मेरे मन में तो लड्डू फूट रहे थे कि पिताजी दो दिन घर पर नहीं हैं इसलिए जवान सौतेली मां की चुदाई का भरपूर मजा मिलेगा.
मैं आंखें बंद करके सोच रहा था कि इन दो दिनों में मां को कैसे कैसे चोदूं.
थोड़ी ही देर में मां कमरे में अन्दर आ गईं और दरवाजा बंद करके मेरे पास आकर लेट गईं.
मेरी आंखें बंद ही थीं.
मां बोलीं- सो गए क्या हर्षद!
मैं चुप रहा तो उन्होंने कहा- नाटक मत करो यार!
ये कहकर मां ने मेरे होंठों पर अपने होंठों को रख दिया और चूमने लगीं.
मुझसे भी रहा नहीं गया, तो मैंने उन्हें अपनी बांहों में कसकर पकड़ा और उनके गाल, होंठ और गर्दन पर चूमने लगा.
मां भी मुझे चूमकर बोलीं- चलती बस में तो तूने मेरी हालत खराब कर दी थी. आह तू मुझे उधर कितना रगड़ रहा था. तूने अपने मोटे लंड को मेरी चुत पर इतना ज्यादा रगड़ा था कि मैं चलती बस में ही दो बार झड़ गयी थी.
ये कहते हुए मां ने अपनी एक टांग मेरी टांग पर रख दी. उनकी टांग मेरे लंड को टच कर रही थी. मैं तो लुंगी के अन्दर नंगा ही था.
मां ने डिजायनर नाइटी पहनी थी. उसके अन्दर ब्रा और पैंटी भी नहीं पहनी थी. उनके निपल्स कड़क हो गए थे, जिससे वो इस झीनी सी नाइटी में से साफ दिख रहे थे.
मैंने मां के मम्मों को अपने हाथों से सहलाने लगा और दबाने लगा. मां मादक सिसकारियां भरने लगीं और मेरे ऊपर चढ़ गईं.
उन्होंने मेरी बनियान को निकाल दिया और नीचे झुककर मेरे सीने पर मेरी घुंडियों पर अपनी जीभ फेरने लगीं. मुझे बहुत गुदगुदी होने लगी थी. नीचे मेरा लंड तनकर उनकी नाइटी के ऊपर से ही उनकी चुत को रगड़ रहा था.
मां भी कमर हिलाकर अपनी चुत को मेरे लंड पर रगड़ रही थीं.
कुछ देर की चूमा-चाटी के बाद हम दोनों नंगे होकर एक दूसरे के सामने थे.
फिर मैंने मम्मी को घुटने के बल बिठाते हुए सीधा खड़ा कर दिया और मैं भी अपने घुटने के बल खड़े होकर उनके जिस्म से सट गया.
अब हम दोनों के बदन पूरी तरह से एक दूसरे के नंगे बदन से चिपक गए थे.
मम्मी भी जोश में आ गयी थीं. हम दोनों ने एक दूसरे को अपनी बांहों में कसकर जकड़ लिया था. मम्मी के कड़क मम्मे मेरे सीने पर दब गए थे. हम दोनों बहुत गर्म हो रहे थे. नीचे मेरा तना हुआ लंड मम्मी की चुत से टकरा रहा था. मम्मी की चुत एकदम गीली हो गयी थी. उनकी चुत का गीलापन मेरे लंड को महसूस हो रहा था.
हम दोनों एक दूसरे की गांड और पीठ को सहला रहे थे, साथ में एक दूसरे की गर्दनों पर चूम भी रहे थे. मैं मम्मी को कभी उनके गाल पर, तो कभी होंठों को चूस रहा था. अजीब और मस्त सी फीलिंग हो रही थी.
दोस्तो, मैं आपको कैसे लिख कर बताऊं … बस उस आनन्द को सिर्फ महसूस ही किया जा सकता था. हम दोनों पूरी तरह से कामवासना में डूब चुके थे. हमें आस पास किसी भी चीज का कोई अहसास ही नहीं हो रहा था.
फिर मैंने मम्मी को बेड पर सीधा लिटा दिया. मैं कमरे की हल्की सी रोशनी में उनका पूरा नंगा जिस्म देख रहा था. क्या मस्त सेक्सी बदन था मम्मी का. उनके कड़क और गोल मम्मे एकदम से कड़क हो गए थे और उनके निपल्स तन गए थे. मम्मी की पतली सी कमर, सेक्सी नाभि और गीली हुई पड़ी माँ की चुत, जो रोशनी में चमक रही थी.
उनकी गोरी गोरी फैली हुई टांगें मेरे लंड को बेकाबू कर रही थीं.
मम्मी मस्त नशीली आवाज में बोलीं- हर्षद, अपनी आंखें फाड़कर क्या देख रहे हो? तुम बहुत बदमाश हो गए हो!
ये कहते हुए मम्मी ने अपने एक हाथ से मेरे तने हुए लंड को पकड़ा और सहलाने लगीं.
मैं भी जोश में आकर उनकी कमर पर बैठ गया. मम्मी के दोनों मम्मों को अपने हाथों से रगड़ने लगा. साथ में अपने दोनों हाथ के अंगूठों और एक उंगली के बीच में दबा कर दोनों निप्पलों को मींजने लगा.
उनके मुँह से मदभरी सिसकारियां निकलने लगीं. मैं चुचियां मसलते हुए मम्मी के होंठों को भी चूसने लगा.
मम्मी भी मेरे होंठ और जीभ चूसने लगीं. वे पूरी कामुकता से भरकर कसमसा रही थीं. शायद मेरी मम्मी झड़ने वाली थीं.
फिर मम्मी बोलीं- आह हर्षद … अब नहीं रहा जाता … मैं झड़ने वाली हूँ.
मैं उन्हें 69 की पोजीशन में ला दिया. मैंने अपना मुँह उनकी चुत पर रख दिया … और चुत को जीभ से चाट दिया.
इस स्पर्श से मम्मी के मुँह से ‘आहहह..’ निकल गयी. मैं लगातार चुत पर जीभ फेरता गया. उनकी टांगें अपने आप फैल गयी थीं. मम्मी की चुत से गर्म और खट्टा कसैला सा चुत रस बहने लगा था. मैं बहुत प्यार से उस नमकीन अमृत को पी रहा था.
मम्मी अपने हाथ से मेरा सर अपनी चुत पर दबाए जा रही थीं. साथ में एक हाथ से मेरा लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी थीं.
दस मिनट तक हमारी चुत लंड की चुसाई चलती रही थी.
फिर अदिति बोलीं- अब बस भी करो हर्षद … अब मुझसे नहीं रहा जाता … तू जल्दी से अपना मोटा लंड मेरी चुत में डाल दो और बुझा दो मेरी चुत की प्यास.
मैं ये सुनकर उठ गया और उनकी दोनों टांगों के बीच में बैठ गया.
मैंने मम्मी की गांड के नीचे एक तकिया रख दिया. इससे उनकी चुत ऊपर आ गयी.
मैंने मम्मी की टांगें और फैला दीं … और मेरे तने हुए लंड का टोपा मम्मी की चुत पर लगा दिया.
मैं उनकी चुत के ऊपर के दाने पर लंड का सुपारा रगड़ने लगा … तो मम्मी कसमसाने लगीं- ओह आह हर्षद बहुत मजा आ रहा है … आह मेरे राजा ऊं ऊं हाय हाय उहं उहं हर्षद अब नहीं रहा जाता … डाल दो ना अपना लंड मेरी चुत में … क्यों सता रहा है.
ये कहकर मम्मी नीचे से अपनी गांड उठाने लगीं. वो मेरे लंड को अपनी चुत में लेने को तड़प रही थीं. मम्मी के मुँह से कामुकता भरी सिसकारियां लगातार निकल रही थीं.
मुझसे भी मम्मी की हालत नहीं देखी जा रही थी. वो पूरी तरह से मदहोश हो गयी थीं. उनकी कामुक सिसकारियां की वजह से मैं भी पूरे जोश में आ गया था.
फिर मैंने अपने लंड के टोपे पर सौतेली मम्मी की चुत का रस लगाकर उसे चिकना कर दिया और उनकी फूली हुई गुलाबी चुत की फांकों में लंड रखकर अपने हाथों से लंड को दबाते हुए टोपा अन्दर डाल दिया.
मम्मी अपने मुँह से आहें भरती रहीं.
मैं नीचे को झुककर मम्मी की दोनों चुचियों को चूसने लगा. मम्मी सीत्कार भरकर बोलीं- ओह हर्षद प्लीज … लंड को और अन्दर डाल दो ना.
ये कहते हुए मम्मी नीचे से अपनी गांड ऊपर को उठाए जा रही थीं. मेरा भी लंड जोश आ रहा था.
फिर मैंने जोर से धक्का दे दिया, तो मेरा आधा लंड मम्मी की चुत में घुसता चला गया था.
मम्मी चिल्लाने लगीं- उई माँ … मर गई!
मैंने अपने होंठ उनके होंठों पर रखकर उनकी आवाज बंद कर दी और उनके होंठों को चूसने लगा.
अदिति ने जैसे तैसे मुँह हटाया और कराहते हुए बोलीं- आह हर्षद … बहुत दर्द हो रहा है … मेरी चुत फट गई शायद.
ये कहकर वो मेरी जीभ को अपने मुँह में लेकर चूसने लगीं. मैं भी उनकी जीभ को चूसने लगा था.
थोड़ी देर बाद मम्मी का दर्द थोड़ा कम हुआ, तो मैंने सीधा होकर अपने लंड को थोड़ा बाहर निकाला और फिर से जोर का धक्का दे मारा. इस बार मेरा पूरा लंड मम्मी की चुत की दीवारों को चीरते हुए अन्दर घुस गया.
फिर से मम्मी तिलमिलाकर चिल्लाने लगीं- हाय रे हर्षद फट गयी मेरी चुत … ऊई मम्मी ओह हाय अंह अंह हुँम हुँम..
मम्मी के मुँह से दर्द भरी सिसकारियां निकलने लगी थीं. शायद उनकी चुत में बहुत दर्द हो रहा था. उनके चेहरे पर ये साफ दिख रहा था.
आंखें बंद करके मम्मी कहे जा रही थीं- आह … कितना कड़क और गर्म लोहे जैसा लंड है तेरा हर्षद … सच में मैं मर गई रे..
दोस्तों, मम्मी की चुत मेरे लंड हिसाब से काफी कसी हुई थी. मुझे मेरे लंड पर पूरा दबाव महसूस हो रहा था. मम्मी की चुत की दीवारों की जकड़न मुझे पागल किए दे रही थी.
मेरी मम्मी निढाल होकर लेटी थीं. उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे.
मैं उनके ऊपर लेट गया और उन्हें चूमते चूमते उनके चुचों को सहलाने लगा.
कुछ मिनट ऐसे ही हमारी चूमा-चाटी चलती रही थी. अब मम्मी अपने दोनों हाथों से मेरी पीठ और कमर को सहलाने लगी थीं. बीच में वो मेरी गांड को भी सहलाने लगीं … साथ में वो मेरे होंठों को भी चूम रही थीं.
अब धीरे धीरे उनका दर्द कम हो रहा था. हम दोनों की कामुकता फिर से बढ़ने लगी थी.
तभी मम्मी नीचे से अपनी गांड ऊपर नीचे हिलाने लगीं. वो मुझे अपनी दोनों हाथों से अपनी बांहों में कसकर बोलीं- हर्षद, मैं झड़ने वाली हूँ.
मैं लंड थोड़ा बाहर निकाल कर जोर से धक्के देने लगा. मेरी छाती उनकी चुचियों से रगड़ रही थी. मम्मी कामुक सिसकारियां भरने लगी थीं.
मैं सीधा होकर अब अहिस्ता अहिस्ता अपना लंड अन्दर बाहर करने लगा, तो मम्मी भी अपनी गांड उठा उठाकर मेरा हथियार अपनी चुत मे ले रही थीं.
थोड़ी ही देर में अदिति ने अपना गर्म कामरस मेरे लंड पर छोड़ दिया. मैं उन्हें धकापेल चोदे जा रहा था.
उनके मुँह से लगातार सिसकारियां निकल रही थीं. मम्मी अब तक दो बार झड़ चुकी थीं. मेरा लंड पूरी तरह से गीला हो गया था … तो अब बड़ी आसानी से चुत में अन्दर बाहर हो रहा था.
मम्मी को भी बहुत मजा आने लगा था. मम्मी बोलीं- अब और करो हर्षद … अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा है. मेरे राजा … जल्दी जल्दी चोदो मुझे … और अपना रस गिरा दो … आह फाड़ दो मेरी चुत को … आह चुत में जल्दी से रस डाल दो … आज मैं सब सहन कर लूंगी … आह रुकना मत … होने दो मुझे दर्द.
मेरी सौतेली मम्मी कामुकता भरी आवाज में बोल रही थीं.
अब तक मैं भी बहुत बेकरार हो गया था. मम्मी की चुत चुदाई करते हुए मुझे आधे घंटे से ज्यादा समय हो चुका था. मेरा लंड अदिति की चुत में डंडे की तरह घुसकर बैठा था.
मैं सीधा होकर अपना लंड आधे से ज्यादा बाहर निकालकर जोर से धक्के मारने लगा. मेरा लंड मम्मी की चुत में पूरी गहराई में जा रहा था.
उधर मेरे हर धक्के से मम्मी के मुँह से जोर से सिसकारियां निकल रही थीं. साथ में वो अपनी गांड उठा-उठा कर मेरा लंड चुत में ले रही थीं.
वो अपने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ों को मसल रही थीं.
अब मेरे मुँह से भी सिसकारियां निकलने लगी थीं. मेरे हर धक्के के साथ मम्मी कराहने लगी थीं. चुत और लंड पूरी तरह से गीले होने के कारण फच फच की आवाजें आ रही थीं. साथ में अदिति और मेरी कामुक सिसकारियां से पूरा बेडरूम गूंजने लगा था.
हम दोनों की चुदाई का ये मधुर संगीत सुनने वाला कोई भी नहीं था. हम दोनों कामवासना में पूरी तरह से डुबकी लगा रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे कि हम जन्नत की सैर कर रहे थे.
फिर मम्मी बहुत जोश में आकर नीचे से अपनी गांड उठाकर मेरे लंड पर तेजी से लंड अन्दर लेने लगी थीं. मैं समझ गया था कि मम्मी तीसरी बार झड़ने वाली हैं. उनका बदन अकड़ने लगा था.
मम्मी कह रही थीं- आह हर्षद अब नहीं सह सकती मैं … आह अब बुझा दो ना मेरी प्यासी चुत की प्यास … आह भर दो मेरी चुत को अपने वीर्य रस से.
मैं भी खुद को नहीं रोक पा रहा था. मैंने अपनी मम्मी की चुत में दस बारह जबरदस्त धक्के दिए, तो अदिति ने मेरे लंड पर अपना चुतरस का गर्म फव्वारा छोड़ दिया. साथ ही मेरे लंड से वीर्यपात होकर अदिति की चुत में भरने लगा.
अहाह … क्या अनुभव था दोस्तो … वाकयी मैं उस आनन्द को शब्दों में बयान नहीं कर सकता.
मेरा लंड मम्मी के गर्भाशय को छू रहा था. उधर मम्मी भी मस्त हो गयी थीं. वो मेरे वीर्य को अपनी चुत में महसूस कर रही थीं.
हम दोनों ही पूरी तरह से निढाल हो गए थे. मैं मम्मी के ऊपर ही लेटकर उनके होंठों को चूसने लगा. वो भी मेरे होंठों को चूसने लगीं. मैं अपना सर मम्मी की गर्दन पर रखकर गर्दन को चूमने लगा.
तो मम्मी ने अपनी दोनों बांहों में मुझे कस लिया. ऐसे ही हम एक दूसरे को सहलाते हुए दस मिनट तक पड़े रहे. हमारी गर्म सांसें एक दूसरे की गर्दन पर महसूस हो रही थीं. उधर नीचे मेरा लंड सिकुड़ कर चुत से बाहर आ गया था.
मम्मी की चुत से हमारा दोनों का कामरस बहकर उनकी गांड से ऊपर से तकिया पर फैलने लगा था. फिर मैं मम्मी से अलग होकर साइड में लेट गया.
मम्मी का चेहरा मैं अपनी तरफ करके उन्हें चूमकर बोला- कैसा लगा अदिति?
अदिति के चेहरे पर कुछ अजीब सा आनन्द साफ़ दिख रहा था. वो बहुत खुश थीं. उनका चेहरा खिला हुआ था.
मम्मी बोलीं- क्या बताऊं हर्षद … मैं तो शब्दों में इस ख़ुशी को बता नहीं ही सकती … लेकिन तुमने मेरी बरसों की प्यास बुझा दी. क्या चोदते हो हर्षद तुम … मेरी चुत, कमर और जांघों में दर्द हो रहा है … लेकिन मजा ही बहुत आ रहा था हर्षद. तुम कितनी जोर से धक्के मारते थे … मेरी तो जान निकल गयी थी. कितना पॉवर है यार … तू मुझे एक घंटे से चोद रहा है. पहली बार मैंने अपनी चुत इतनी देर तक चुदवाई है. आज मैं बहुत खुश हूँ हर्षद. आई लव यू मेरे राजा.
ये कहकर मम्मी मुझे चूमकर उठ गईं. उन्होंने बिस्तर को देखा, तो तकिया पूरा खराब हो गया था. मम्मी ने अपनी नाईटी से अपनी चुत को और तकिया को पौंछ कर उसे एक साइड में रख दिया. इसके बाद मम्मी ने मेरे लंड को अच्छे से साफ किया और नाईटी नीचे फेंक दी.
अब हम दोनों एक दूसरे से लिपटकर सो गए.
मम्मी अपने हाथ से मेरे लंड को बड़े प्यार से सहलाकर बोलीं- हर्षद, क्या लंड है तेरा … अब मैं तो इसकी दीवानी हो गयी हूँ.
वो लंड सहलाती रहीं.
मैं भी उनकी चुचियों को मसलकर बोला- अदिति, अब मेरा लंड सिर्फ तुम्हारा ही है. जब चाहो तुम्हारी सेवा के लिए हाजिर हो जाएगा.
मम्मी मुझे चूमने लगीं. मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया था.
मै मम्मी से बोला- अब तैयार हो गई तुम?
मम्मी मेरे लंड को जोर से दबाकर बोलीं- हां हर्षद … अब इसका इलाज करना ही पड़ेगा ना!
रात के एक बज चुके थे. फिर मैं मम्मी के ऊपर चढ़ गया. मैंने दो बार उनकी जमकर चुदाई की और सुबह के पांच बजे हम एक ही रजाई में एक दूसरे से लिपट कर सो गए.


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