मैंने वो पुराना फ्लैट छोड़ दिया था और अब मैं एक नयी जगह पर शिफ़्ट हो गया हूँ.
मैं अपनी पुरानी सैटिंग निशा को बहुत मिस करता हूँ और वो भी मुझे मिस करती है.
हालांकि अभी भी वो कभी कभी मुझसे चुदने के लिए आ जाती है.
दोस्तो ये हॉट भाभी बूब स्टोरी श्वेता की है, जो मेरे पड़ोस मैं रहने आयी है. उसके परिवार मैं उसका पति और एक बेटा है.
उस परिवार से मेरा परिचय हुआ, तो जानकारी हुई कि श्वेता का पति किसी बैंक मैं मैनेजर है और बेटा स्कूल में पढ़ता है.
जब भी मैं ऑफिस के लिए निकलता था, उसके पति से हाय हैलो हो जाती थी.
मेरे पड़ोस में श्वेता की फैमिली के साथ एक वकील की फैमिली भी है. हालांकि वकील साहब से मेरी ज्यादा बात नहीं होती थी.
इस नयी जगह पर मैं अकेला ही हूँ इसलिए मुठ मारकर अपना काम चलाता हूँ.
मैं आपको श्वेता के बारे में बता दूं कि वो 35 साल की दुबली पतली महिला है. उसकी हाइट यही कोई 5 फुट 5 इंच की होगी और 34-30-36 का फिगर होगा. भाभी के बूब बहुत सुंदर थे एकदम गोल और उठे हुए.
एक दिन की बात है, मैं ऑफिस के लिए अपने फ्लैट के हॉल में तैयार हो रहा था तो मुझे कुछ आवाज़ आने लगी.
ये आवाज कुछ तेज थी और ऐसा लग रहा अता जैसे किसी कपल में बहस हो रही हो.
मेरे हॉल की खिड़की और श्वेता के फ्लैट के हॉल की खिड़की पास पास ही हैं … जिसमें से मैं उसे अक्सर देखा करता था.
मुझे आवाज़ उसी के फ्लैट से आ रही थी.
मैं तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल गया.
शाम को घर पहुंचा, तो मैंने देखा कि श्वेता पास में शीतल (वकील की बीवी) से बात कर रही थी और परेशान लग रही थी.
मैं अपने फ्लैट में अन्दर चला गया. मैंने दरवाज़ा थोड़ा सा बंद कर दिया था, जिससे कि मेरे घर का अन्दर का कुछ न दिखे.
मैंने अपना बैग रखा और कपड़े बदल कर चुपचाप उन दोनों की बातें सुनने लगा.
वो दोनों सुबह की बहस पर बात कर रही थीं.
श्वेता बोली- मेरे पति ऐसे ही हैं, छोटी छोटी बात पर ग़ुस्सा करते हैं.
फिर शीतल उसे समझाने लगी- कोई बात नहीं … सब ठीक हो जाएग, सब भूल जाओ. जब वो वापस आएं, तो उससे प्यार से बात करना.
कुछ देर बाद उन दोनों की बातें बंद हो गईं और वो दोनों अपने अपने फ्लैट में चली गईं.
मैं अपने फ्लैट के हॉल में बैठकर कुछ खा रहा था और अपने फोन में मैसेज चैक कर रहा था.
तभी मुझे फिर से कुछ बहस होती सुनाई दी.
मैंने सुनने की कोशिश की, मगर मैं ठीक से तो नहीं सुन पाया … पर इतना जरूर समझ गया था कि श्वेता की उसके पति से कुछ गड़बड़ चल रही है.
कुछ देर बाद सब शांत हो गया और मैं भी सो गया.
सुबह जब मैं ऑफिस के लिए निकला, तो मैंने देखा कि श्वेता के फ्लैट का दरवाज़ा बंद था.
मुझे लगा कि शायद उसका पति सुबह जल्दी ही निकल गया है.
मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और मैं भी अपने ऑफिस चला गया.
शाम को जब मैं वापस आया, तो वही दोनों महिलाओं आपस में बात कर रही थीं.
शायद उनके बीच में वही सब कल सुबह वाली बात चल रही थी.
श्वेता कुछ उदास लग रही थी.
मैंने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लग गया.
उस रात को मैंने एक मस्त सेक्स मूवी देखी और मुठ मारकर सो गया.
अगले दिन शनिवार था, सो ऑफिस का टेंशन नहीं था. मैं सुबह देर से उठा और अपने हॉल की खिड़की में ऐसे ही खड़ा था.
आदतन श्वेता की खिड़की में झांका तो देखा कि श्वेता कुछ काम कर रही थी, लेकिन वो कुछ उदास लग रही थी.
मुझे उसका पति भी नहीं दिख रहा था.
थोड़ी देर में शीतल ने बेल बजायी, श्वेता ने दरवाज़ा खोला और वो दोनों बैठकर बातें करने लगीं.
मैं खिड़की से थोड़ा अलग होकर उन दोनों की बातें सुनने लगा.
वो दोनों श्वेता और उसके पति के बीच हुई बहस के बारे में बात करी थीं.
थोड़ी देर बाद शीतल चली गयी और मैं भी नहा कर नाश्ता करने लगा.
नाश्ते के बाद मैं हाल की खिड़की के नजदीक खड़े होकर फ़ोन पर बात करने लगा.
तभी श्वेता भी उसकी खिड़की में आ गयी. मैं फ़ोन पर बात करते करते उसको देखने लगा.
एक बार तो उसने भी मेरी तरफ देखा … लेकिन उसे कोई रिऐक्शन नहीं दिया.
वो अन्दर चली गयी … मैं अपने फ़ोन पर बात करके अपने काम में लग गया.
उसके बाद कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा, पर श्वेता से मेरी कोई बात नहीं हो पायी.
फिर एक रविवार के दिन उसके पति अमितेश ने मुझसे बात की. मेरे बारे में पूछा और अपने बारे में बताया.
उसने मेरा फ़ोन नम्बर भी लिया और उस दिन मैंने चाय भी उनके यहां ही पी.
श्वेता चाय देने आई तो उसने मुझसे ज्यादा कुछ बात नहीं की … बस हाय बोला और कुछ नहीं.
वो चाय देकर चली गयी और अपने काम में लग गयी.
मैंने भी कुछ देर तक अमितेश से बात की और अपने फ्लैट पर आ गया.
फिर कुछ दिन ऐसे ही चलता रहा. अब अमितेश से बात होने लगी और थोड़ी बहुत श्वेता से भी.
धीरे धीरे श्वेता से और भी बातें होने लगीं, साधारण सी कुछ हंसी मज़ाक़ भी चलने लगा.
मैंने महसूस किया कि ये देखकर शीतल को कुछ जलन सी होने लगी थी. खैर मुझे उससे कोई मतलब नहीं था.
अब मैं अपने हॉल की खिड़की से श्वेता को देख लेता था और उससे कभी कभी बात भी हो जाती थी.
इसी बीच अमितेश और श्वेता के बीच के झगड़े के कारण उन्होंने अपने बेटे को उसके दादा-दादी के पास आगे की पढ़ाई के लिए भेज दिया था.
एक दिन मैंने ऑफिस से छुट्टी ली हुई थी, मैं घर पर ही था. दोपहर का टाइम था … मैं अपनी खिड़की में खड़ा था.
मैंने देखा कि श्वेता अभी-अभी नहा कर निकली थी और उसके बाल भी गीले थे. अपने बाल सुखाने के लिए वो खिड़की में आ गयी.
उसने मुझे देख कर स्माइल दी, तो मैंने भी स्माइल दे दी.
इस वक्त उसने टी-शर्ट और लोवर पहना हुआ था. वो नहाकर आयी थी … तो उसके कपड़े ठीक से नहीं थे. उसके कंधे पर ब्रा की काली पट्टी चमक रही थी.
मैं उसे ही देख रहा था. उसकी इस टी-शर्ट का गला भी थोड़ा बड़ा था, जिससे भाभी के बूब के बीच की लाइन थोड़ी ज्यादा ही दिख रही थी.
इस वक्त उसके फूले हुए स्तन मुझे बेहद उत्तेजित कर रहे थे.
कुछ देर तक श्वेता की जवानी को निहारने के बाद मैं वहां से हट गया.
मेरे लंड में कुछ कुछ हलचल होने लगी थी.
मैं अभी भी उसकी वो ब्रेजियर की काली पट्टी और दूधिया बूब की लाइन को ही याद करते हुए गर्मा रहा था.
तभी मेरे फ्लैट की घंटी बजी, मैंने देखा तो श्वेता ही थी.
उसने पूछा- आज आप ऑफिस नहीं गए?
मैंने बोला- हां ऐसे ही … आज जाने का मन नहीं था.
श्वेता- अकेले हो तो खाने का क्या करोगे?
मैं बोला- मैं बना लेता हूँ, खाना बनाना आता है मुझे.
वो बोली- शादी नहीं की?
मैं बोला- हां नहीं की.
अब उसे मैं वो सब नहीं बताना चाहता था कि शादी क्यों नहीं की. मैं उसे बैठने का कहा तो वो सोफे पर बैठ गई.
उसके बाद हम दोनों ऐसे ही बातें करने लगे और फिर अपने अपने फ्लैट में चले गए.
उस दिन के बाद से हमारी काफ़ी बातें होने लगीं. हम दोनों थोड़ा और पास आ गए थे.
एक दिन हम दोनों ऐसे ही बात कर रहे थे, तो श्वेता बोली- वैसे तुम्हारी कोई गर्लफ्रेंड तो होगी!
मैं- मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है. वैसे बुरा नहीं मानो तो एक बात कहूँ.
श्वेता- हां कहो न!
मैं- आप ही मेरी गर्लफ्रेंड बन जाओ ना!
श्वेता- क्या बोल रहे हो, पता है ना कि मैं शादीशुदा हूँ … और अब ऐसा मज़ाक़ भी किया … तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.
मैं- सॉरी … अब ऐसा नहीं बोलूंगा.
श्वेता कुछ ग़ुस्से में अपने फ्लैट के अन्दर चली गयी.
मुझे तो डर ही लग रहा था कि श्वेता अपने पति या शीतल को ना बात दे.
ऐसे ही कुछ दिन और निकल गए, मैंने अमितेश और श्वेता से कोई ज्यादा बात नहीं की.
मैंने अब जब भी श्वेता को देखा, तो वो हमेशा मुझे नज़रंदाज़ कर देती थी.
मैं भी कोई ज्यादा ध्यान नहीं देता था.
फिर ये शनिवार सुबह की बात है. मैं हर बार की तरह अपनी खिड़की में खड़ा था, तभी मुझे कुछ झगड़ने की आवाज़ें आने लगीं.
शायद अमितेश और श्वेता फिर से लड़ रहे थे.
कुछ देर बाद मैंने देखा कि अमितेश ग़ुस्से में कहीं बाहर चला गया.
मैंने खिड़की से देखा कि श्वेता उदास बैठी है और उसकी आंखों में आंसू थे.
पहले मैंने सोचा कि बात करूं या ना करूं … कहीं उस दिन जैसे नाराज़ हो गयी तो?
संयोग से उस दिन शीतल भी घर पर नहीं थी, तो फिर मैंने सोचा कि जो होगा सो देखा जाएगा.
मैं उसके फ्लैट पर चला गया.
मुझे देख कर वो कुछ सोचने लगी. फिर बोली- अन्दर आओ … रुक क्यों गए!
मैं अन्दर आ गया और मैंने हिम्मत करके पूछा- क्या हुआ उदास क्यों हो?
वो बोली- कुछ नहीं, बस ऐसे ही!
मैं बोला- कुछ तो बात है … मैंने सुना था सुबह आप दोनों किसी बात पर बहस कर रहे थे.
मेरी इस बात पर वो थोड़ी देर तो कुछ नहीं बोली, फिर एकदम से रोने लगी.
मैंने पूछा- क्या हुआ कुछ तो बोलो!
उसने बोला- अमितेश बात बात पर नाराज़ हो जाते हैं … और बहुत कुछ बोल देते हैं.
फिर उसने सुबह हुई बहस के बारे में भी बताया.
सब सुनने के बाद मैं उससे बोला- जाने दो, जितना ज़रूरी हो उतनी बात करो. थोड़ा तुम भी बताओ कि तुम्हें भी बुरा लगता है.
उसका मूड ठीक करने के लिए मैं इधर उधर की बातें करने लगा और उसे कुछ हंसाने की कोशिश करने लगा.
थोड़ी देर बाद वो नॉर्मल हुई और हंसने लगी. उसका मूड ठीक होते ही मैं वापस अपने फ्लैट पर आ गया.
उस दिन के बाद से श्वेता और मैं बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे.
अब हम फ़ोन पर भी मैसेज करके बात करने लगे थे. इससे हम दोनों और क़रीब आ गए थे.
एक दिन की बात है, श्वेता की खिड़की में कुछ कपड़े सूख रहे थे. मैं अपनी खिड़की में खड़ा था.
तभी श्वेता ने मुझे आवाज़ लगायी- मयंक.
कपड़े टंगे होने की वजह से हम एक दूसरे को देख नहीं पा रहे थे.
श्वेता अपनी खिड़की में झुकी और टंगे हुए कपड़ों के नीचे से इशारा किया.
मैंने भी थोड़ा झुक कर बोला- क्या हुआ?
श्वेता झुकी हुई थी, तो उसके आधे बूब उसके टॉप में से दिख रहे थे.
मैं बात भी कर रहा था और भाभी बूब भी देख रहा था.
वो बोली- क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- कुछ ख़ास नहीं, कुछ काम है क्या?
वो बोली- कुछ नहीं, अमितेश आज भी ऑफिस गए हैं … और मैं अकेली बोर हो रही हूँ. आ जाओ, चाय पी लेते हैं.
मैंने कहा- ठीक है आता हूँ.
ये सब बात करने के दौरान मेरा पूरा ध्यान भाभी बूब पर ही था.
शायद उसने भी ये समझ लिया था कि मैं क्या देख रहा हूँ.
खैर … मैं उसके घर चाय के लिए पहुंचा और हम बात करने लगे.
श्वेता- तुम्हारे होने से मैं खुश ही रहती हूँ, मुझे अकेलापन नहीं लगता वरना अमितेश के पास तो टाइम ही नहीं है.
मैंने पूछा- आपकी और अमितेश की इतनी बहस क्यों होती है?
श्वेता बोलने लगी- यार, वो मेरा ध्यान नहीं रखते हैं.
मैंने कहा- मुझे तो ऐसा नहीं लगता कि वो आपका ध्यान नहीं रखते हैं.
श्वेता बताने लगी कि अमितेश बात बात पर ग़ुस्सा करते हैं … और लड़ते रहते हैं.
उसने उसके और अमितेश के बारे में और भी कुछ बताया कि किस तरह उनके बीच बहस होती रहती है.
बात करते करते अचानक से श्वेता की गर्दन में दर्द होने लगा- आह … मेरी गर्दन!
मैं बोला- क्या हुआ?
श्वेता- मेरी गर्दन अचानक से बहुत दर्द करने लगी.
मैं- मैं कुछ करूं?
श्वेता- हां प्लीज़ थोड़ी मालिश कर दो.
श्वेता कुर्सी पर ही बैठी रही और मैं पीछे से उसकी गर्दन की मालिश करने लगा.
चूंकि मैं खड़ा था … तो ऊपर से उसके बोबों पर मेरा ध्यान बार बार जा रहा था.
गर्दन की मालिश करते करते मैं उसके कंधे भी दबा रहा था.
मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. नर्म गर्म बदन दबाने में मुझे मज़ा आ गया और ऊपर से उसके बोबों के थोड़े थोड़े दर्शन भी मेरे लंड को गर्म कर रहे थे. मेरा लंड कड़क होने लगा था.
थोड़ी देर बाद मैं बोला- अब ठीक लग रहा है?
श्वेता- हां अब ठीक है … थोड़ा आराम कर लूंगी … तो ठीक हो जाएगा.
फिर मैं अपने फ्लैट पर आ गया और पलंग पर लेटे-लेटे श्वेता और उसके बोबों के बारे में सोचने लगा.
जब न रहा गया तो मैंने उसको सोचते सोचते बाथरूम में जाकर एक बार मुठ मार ही ली.
फिर कुछ दिनों बाद शनिवार को सुबह सुबह मैंने देखा कि अमितेश बैग लेकर कहीं जाने की तैयारी में था.
मैंने पूछ ही लिया- कहीं बाहर जा रहे हैं?
अमितेश बोला- हां मुझे अफ़िस के काम से एक सप्ताह के लिए बाहर जाना है.
मैं मन ही मन थोड़ा खुश हुआ कि चलो इस बहाने श्वेता से कुछ ज्यादा बात करने का मौक़ा मिल जाएगा.
दोपहर को मैंने खिड़की से देखा कि श्वेता हॉल मैं कुछ कर रही है और गर्मी होने के वजह से उसने एक ढीली सी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहन रखी थी.
उसकी गोरी चिकनी टांगें बड़ी मस्त लग रही थीं.
मैं तो बस उसे देखता ही रह गया. ऐसा लगा रहा था कि वो सफ़ाई कर रही है और इसी वजह से वो बार बार झुक रही थी.
ढीली टी-शर्ट पहनी होने की वजह से जब भी वो झुकती, तो उसकी काली ब्रा से ढके उसके गोरे गोरे बोबे दिख जाते.
मैं ये सब बड़े मज़े से देख रहा था.
तभी श्वेता ने मुझे देख लिया और कहने लगी- अरे तुम कब आए … मैंने तो देखा ही नहीं!
मैंने कहा- बस अभी आया, क्या चल रहा है?
मैंने पूछा तो श्वेता बोली- बस साफ़ सफ़ाई.
मैंने मज़ाक़ किया- कुछ मदद करूं?
श्वेता- क्या मदद कर सकते हो?
मैं बोला- सफ़ाई करते करते थक गई होगी … मैं चाय बना दूंगा?
श्वेता- हम्म … चलेगा, पर इधर ही आकर बना लो.
मैं अपनी टी-शर्ट और शॉर्ट्स पहनकर उसके फ्लैट पर पहुंच गया और किचन में चाय बनाने लगा.
चाय बनाते बनाते बीच मैं उससे बात करने के लिए हॉल में आ जाता और मौक़ा मिलते ही उसके बोबे भी देख लेता.
थोड़ी देर में चाय बन गयी. मैं और श्वेता हाल में बैठकर चाय पीने लगे और बात भी करते जा रहे थे.
मैं बोला- और कुछ मदद चाहिए सफ़ाई में?
श्वेता- नहीं बस हो गयी … अब तो नहाना बाक़ी है बस!
मैं बोला- ओके मुझे भी नहाना है … तो मैं जाता हूँ.
श्वेता- थोड़ी देर रुक जाओ … मैं नहा लूं, फिर चले जाना.
मैं बोला- ठीक है.
मैं अपने मोबाइल में गेम खेलने लगा.
श्वेता के बाथरूम के सामने गलियारे जैसा था, जो हॉल में से दिखता था. वो नहाने की तैयारी कर रही थी और जैसे ही वो बाथरूम में गयी, मुझे कुछ ज़ोर से गिरने की आवाज़ आयी.
मैंने आवाज देकर पूछा- श्वेता क्या हुआ?
श्वेता दर्द से कराहते हुए- मेरा पैर फिसल गया … मेरी मदद करो.
मैं जैसे ही बाथरूम की तरफ़ गया … तो देखा कि श्वेता गिरी पड़ी थी और उससे उठा ही नहीं जा रहा था.
वो बोली- मुझे उठाने में मदद करो.
मैं उसे उठाने लगा, पहले तो मैंने उसका हाथ पकड़ा और उठाया, पर उसके पैर में मोच आ गयी थी … तो वो ठीक से चल ही नहीं पा रही थी.
जैसे ही मैंने उसकी कमर पर हाथ रखा तो मेरे पूरे शरीर में करंट दौड़ गया. मैं किसी तरह उसे सहारा देकर बेडरूम में ले आया और उसे पलंग पर लेटा दिया.
मैं- श्वेता तुम ठीक हो न … कहां लगी है?
श्वेता- आह पैर मुड़ गया है और कमर में भी दुख रहा है.
मैं- कुछ स्प्रे वगैरह है … तो मैं लगा देता हूँ.
श्वेता- हां, वो पास की दराज में है.
मैंने दराज से स्प्रे निकाल कर पैर पर लगा दिया और थोड़ी सी मालिश भी कर दी. मालिश करते करते मेरा लंड भी थोड़ा कड़क हो गया था.
मैंने पूछा- अब ठीक है?
श्वेता- हां दर्द कुछ कम हुआ है.
मैं- तुम आराम करो … मैं अपने फ्लैट पर जाता हूँ. तुम्हें कुछ काम हो तो मुझे फ़ोन कर लेना, मैं आ जाऊंगा.
श्वेता- मेरी कमर भी दर्द कर रही है … तो प्लीज़ थोड़ी सी मालिश कर दो.
मैं- पर मैं कैसे?
श्वेता- क्यों क्या हुआ? नहीं कर सकते क्या?
मैं- वो बात नहीं है … अच्छा बताओ कहां दर्द हो रहा है?
श्वेता उल्टा लेट गयी और बोली- लेफ़्ट साइड में दर्द हो रहा है.
मैं पलंग की साइड में आया और उसका टॉप थोड़ा सा ऊपर किया और हाथ से छूकर पूछा- यहां दर्द हो रहा है?
श्वेता- नहीं थोड़ा नीचे.
मैंने अपना हाथ थोड़ा नीचे किया और फिर पूछा- यहां?
वो बोली- नहीं, थोड़ा और नीचे.
मैंने अपना हाथ थोड़ा और नीचे किया और फिर पूछा- यहां?
श्वेता- नहीं थोड़ा और नीचे.
ऐसा बोलकर उसने अपने शॉर्ट्स और पैंटी दोनों को थोड़ी नीचे खिसका दी, जिससे उसकी गोरी गांड दिखने लगी. उसकी गोरी गांड देखकर मेरा लंड कड़क होने लगा, जो मेरी शॉर्ट्स के ऊपर से दिख रहा था.
श्वेता- क्या हुआ मालिश क्यों नहीं कर रहे?
मैं- कुछ नहीं वो बस …
इतना बोलकर उसकी गोरी और नर्म गांड पर मालिश करने लगा. मैं ज्यादा ज़ोर नहीं दे रहा था.
श्वेता- क्या बात हैं मयंक, पैर पर तो बड़े अच्छे से मालिश कर रहे थे. अब क्या हुआ?
शायद उसने मेरे लंड का उभार देख लिया था.
मैं बोला- कुछ नहीं … तुम तो सुंदर हो ही और तुम्हारा शरीर और भी ज्यादा सुंदर है.
मैंने सोच लिया था कि कैसे भी हो, आज श्वेता को चोद कर ही रहूँगा. शायद श्वेता भी यही चाहती थी.
श्वेता- बस इतने में ही मैं तुम्हें सुंदर लगने लगी.
ये बोलकर श्वेता सीधी पलंग पर बैठ गयी और उसने अपना टॉप निकल दिया.
अब उसके गोरे बोबे उसी काली ब्रा में मेरे सामने थे, जिसे मैं चोरी चोरी देख रहा था.
मैंने भी मौक़े का फ़ायदा उठाया और अपनी टी-शर्ट और नेकर निकाल दी.
अब वो अपनी नेकर और ब्रा में थी और मैं अपने अंडरवियर में था.
श्वेता ने उंगली से मुझे करीब आने का इशारा कर दिया.
मैं श्वेता के करीब आ गया और उसके बोबे उसकी ब्रा के ऊपर से ही दबाने लगा था.
उम्म्म … क्या मज़ा दे रहे थे.
इधर श्वेता मेरा अंडरवियर धीरे धीरे नीचे खिसकाने लगी और जैसे ही मेरा अंडरवियर थोड़ा नीचे हुआ तो मेरा लम्बा और मोटा लंड सीधा लहराता हुआ बाहर आ गया.
मेरा मोटा लम्बा लंड देखकर श्वेता की आंखें खुली की खुली रह गईं.
मैं- क्या हुआ … ऐसे क्या देख रही हो?
श्वेता- कुछ नहीं … इसे देखकर लग रहा है कि मैंने कोई बाथरूम में गिरने का ड्रामा करके कोई गलती नहीं की.
उसकी इस बात से मैं भी हंस दिया.
उसने मुझे पूरा नंगा कर दिया. वो अभी पलंग पर ही बैठी थी और मैं उसके सामने खड़ा था.
पहले श्वेता मेरे लंड से खेलने लगी; फिर लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी.
मैंने आंखें बंद कर लीं. लंड चुसवाने में मस्त मज़ा आ रहा था.
थोड़ी देर बाद मैंने श्वेता से बोला- केवल लंड ही चूसोगी या कुछ और भी प्लान है?
श्वेता- अब तुम्हारी बारी, जो करना है कर लो.
मैंने उसकी नेकर और पैंटी निकाल दी और उसे पलंग पर ही घोड़ी बना दिया. वो पलंग पर घुटनों के बल थी और मैं उसके पीछे अपना मोटा लंड लिए उसे चोदने के लिए तैयार था.
मैं अपना लंड उसकी चूत पर टिका कर रगड़ने लगा. फिर मैंने एक झटका मारा तो मेरा सुपारा उसकी चूत में जा घुसा.
मुझे ऐसा लगा जैसे किसी तंग बिल में मेरा लंड फंस गया हो.
उसे भी थोड़ा दर्द हुआ और वो थोड़ा आगे की ओर झुक गयी.
इससे मेरा लंड बाहर आ गया.
मैं- क्या हुआ … तुम ठीक तो हो?
श्वेता- हां मैं ठीक हूँ … बस थोड़ा आराम से करो. तुम्हारा बहुत मोटा है.
मैं बोला- ठीक है, पर तुम इस बार थोड़ा कड़क रहना.
मैंने फिर से अपना लंड उसकी चूत पर रखा और इस बार उसकी कमर को कस के पकड़कर एक ज़ोरदार झटका दे दिया.
मेरा आधा लंड उसकी चूत में घुस चुका था.
उसके मुंह से चीख निकल गयी- उफ्फ … उम्म!
उसे दर्द हुआ था लेकिन उसने अपने आपको सम्भाले रखा. मेरे दूसरे झटके से मेरा पूरा लंड उसकी चूत को फाड़ता हुआ अन्दर जा घुसा.
वो सिहर गई और उसकी तेज आवाज निकल गई- आह … मर गई.
मैं थोड़ी देर रुका और फिर धीरे धीरे धक्के लगाने लगा.
थोड़े दर्द के बाद श्वेता को भी मज़ा आने लगा और उसके मुँह से कामुक आवाज़ आने लगी- आह्ह … ओहह … आआआ … स्स्स … अम्म … आह!
उसको चोदने में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
चोदते चोदते मैंने उसकी ब्रा भी पीछे से खोल दी.
अब मैं उसके 34 साइज़ के बोबे पीछे से पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से धक्के दिए जा रहा था. श्वेता भी इस चुदाई का मज़ा ले रही थी.
एक तरफ़ मैं ऊपर से उसके चुचे दबा रहा था और नीचे से उसकी चूत फाड़ रहा था. उधर वो भी अपनी चुत का भोसड़ा बनवाने में लगी हुई थी.
कुछ देर उसी अवस्था में चोदने पर श्वेता का शरीर अकड़ेने लगा और वो झड़ गयी.
थोड़ी देर बाद मैंने अपना लंड निकाला और श्वेता से कहा- अब सीधी लेट जाओ पलंग पर!
उसने वैसा ही किया.
मैं उसके ऊपर चढ़ गया और अपना लंड उसकी चूत पर रख दिया.
चूंकि वो पहले ही झड़ चुकी थी … तो उसकी चूत बहुत गीली थी. मैंने जोर दिया तो एक ही झटके से पूरा लंड चुत के अन्दर घुस गया था.
मैं एक बार फिर उसके चुचे दबाकर उसे चोदने लगा और श्वेता भी मस्ती में मेरा साथ देने लगी.
उसके मुँह से मादक आवाज़ आने लगीं- उह्हह … उई … सीईई … मर गई मयंक … फाड़ डाली रे मेरी चूत उफ़ … क्या मोटा लंड है … चुत की बखिया उधेड़ दी तुमने … अह्ह्ह … उह्ह्ह … सीई … हां … और ज़ोर से … और ज़ोर से!
क़रीब 15 मिनट तक मैंने उसे ज़ोरदार चोदा और इस बीच वो दो बार और झड़ी. अब मेरी बारी थी झड़ने की.
मैं बोला- श्वेता अमृत रस कहां निकालूं?
श्वेता बोली- हाय मयंक … निकाल दे ना अपने लंड का अमृत रस … मेरी चूत में जल्दी से … सी … उई अह्ह्ह … हां … मेरी चूत भी पानी छोड़ने वाली है यार … जरा तेज तेज रगड़ दे.
बस फिर क्या था … आखिरी के दस ज़ोरदार धक्कों के साथ मैंने श्वेता को अपनी बांहों में भर लिया और उसकी चूत अमृत रस से भर दी.
संतुष्टि श्वेता के चेहरे पर मुस्कान बन कर उभर रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे उसे बहुत दिनों से चुदने की प्यास थी.
कुछ देर हम नंगे ही एक दूसरे के शरीर से खेलते रहे.
श्वेता मेरी तरफ मुस्करा कर देखते हुए बोली- वाह मयंक मज़ा आ गया … आज तक इतनी बढ़िया और इतनी मस्त चुदाई नहीं हुई.
उसके बाद हम दोनों ने एक दूसरे के जिस्म को खूब रगड़ रगड़ कर नहलाया.
जब तक अमितेश वापस नहीं आया, श्वेता और मैंने खूब चुदाई की मस्ती की; हर आसन में चुदाई का ज़बरदस्त आनन्द उठाया.

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